Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 65
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययन [२], ------ मूलं [२५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२५] दीप नमंसद २ ना जामेय दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ चम्पाओ पडिणिक्खमइ २ ना बहिया जणवयविहारं विहरइ (सू. २५) हा 'अद्वे समढे त्ति अस्त्येषोऽर्थ इत्यर्थः, अथवा अर्थः-मयोदित वस्तु समर्थः-सङ्गतः, हन्ता इति कोमलामन्त्रणवचनं, 'अज्जो' त्ति आर्या इत्येवमामन्यैवमवादीदिति, 'सहन्ति ति यावत्करणादिदं दृश्यं-वमन्ति तितिक्खन्ति, एकार्थाथैते, विशेषव्याख्यानमप्येषामस्ति तदन्यतोऽवसेयमिति ।। (मू. २५) | तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उबासगपाडिमं उवसम्पजिताणं विहरइ, तए णं से कामदेव समणोवाजासए बहुहिं जाव भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं जाफासेना मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झुसित्ता सदि भत्ताई अणसणाए छेदेना आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपने कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणाभे विमाणे देवनाए उववन्ने, तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णता कामदेवस्सऽवि देवस्स चत्तारि पलिओ बमाई ठिई पण्णता । सेणं भन्ते ! कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणन्तरं चयं । काचइत्ता कहिं गमिहिइ कहिं उबवजिहिइ ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे सिमिहिइ । निक्खेवो (सू. २६) अनुक्रम [२७] FaPaumaan unconm IRHuntaram.org ~64~

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