Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 70
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) अध्ययन [३], ------ मूलं [२८-२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: सपासक चुलनी पित्रध्य. प्रत सूत्रांक [२८-२९] मातृवधान न्तोषसर्गः दीप अनुक्रम [३०-३१] उजलं जाव अहियासमि, एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आयञ्चइ, अहं तं उज्जलं जाव अहियासे- मि, तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पामइ २ ला ममं चउत्थंपि एवं वयासी-हं भो चुलणीपिया समणोवासया ! अपत्थियपत्थया जाव न भजमि तो ते अज्ज जा इमा माया गरु जाव चवरोविज्जास. तए णं अहं तेणं परिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि, तए णं से पुरिसे दोच्चंपि तपि ममं एवं वयामी-हं भो चुलणीपिया समणोवासया ! अज्ज जाव ववरोविज्जसि, तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चपि तच्चपि ममं एवं वुनस्स समाणस्स इमेयारूवे अन्झथिए ५ अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जाव समायरइ, जेणं ममं जेटुं पुनं साओ गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव आयश्चइ, तुम्भेऽवि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेता मम अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तएत्तिकह उद्घाइए, सेऽवि य आगासे उप्पइए, मएऽवि य खम्भे आसाइए महया महया सद्देणं कोलाहले कए, तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-नो खलु केई पुरिसे तव जाव कणीयसं पुतं साओ गिहाओ निणेइ २ ना तब अग्गो घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिढे, णं तुम इयाणि भग्गब्बए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि, तं णं तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि. तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए भद्दाए सत्थवाहीए तहत्नि एयमद्वं विणएणं पडिसणेइ २ ला तस्स ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवज्जड (म.२८) Baitaram.org चुलनीपिता एवं देवकृत-उपसर्ग: ~69~

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