Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 89
________________ आगम “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) ---- (०७) अध्ययन [७], मूलं [४१-४२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४१-४२] दीप अनुक्रम कश्चित्तदपहरति त्वं च तमाक्रोशयसि तत एवमभ्युपगमे सति यदसि- नास्त्युत्थानादि इति तत्ते मिथ्याअसत्यमित्यर्थः ॥ (म्.४१-४२) | तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्म भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मं सोचा निसम्म हट्तुद्र जाव हियए जहा आणन्दो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ, नवरं एगा हिरण्णकोडी निहाणपउना एगा हिरण्णकोडी बुद्धिपउना एगा हिरण्णकोडी पदित्थरपउना एगे वए दसगोसाहस्सिएणं वएण जाव सभणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ ना जेणेब पोलासपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ २ चा पोलासपुरं नयरं मझमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव । अग्गिमित्ता भारिया तेणेव उवागच्छइ २ ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छाहि णं तुम समणं भगवं महावीरं वन्दाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पश्चाणुव्वइयं सत्ससिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजाहि, तए णं सा अग्गि|मित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासमस्स तहनि एयमद्रं विणएण पडिसुणेइ ॥ तए णं से सद्दालपुत्ने समणोवासए कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेद २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तजोइयं समखुरवालिहाणसमलिहियसिद्धएहिं जम्बूणयामयकलावजोत्तपइविसिट्ठएहि रययामयघण्टसुत्तरज्जुगवरकञ्चणखइयनस्थापग्गहोग्गहियएहिं नीलप्पलकयामेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणगघण्टियाजालपरिगयं सुजा TRIEFINI TATISSIDIA [४३-४४] सद्दालपुत्र-श्रमणोपासक: एवं तस्य गृहिधर्मस्वीकरणम् ~88~

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