Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 78
________________ आगम “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) ---- (०७) अध्ययन [६], मूलं [३५-३६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [३५-३६] दीप अनुक्रम [३७-३८] उपासक-16 मङ्गुलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती नस्थि उट्ठाणे इ वा जाव नियया सबभावा, मझुन्ली गं समणस्स भगवो महावीरस्सा कुण्डकोदशाङ्गे धम्मपण्णत्नी अस्थि उट्ठाणे इ वा जाव अणियया सवमावा, तुमे णं देवा ! इमा एयारूवा दिव्वा देविडी दिबालिकाध्यक देवजुई दिब्वे देवाणुभावे किणा लद्धे किणा पत्ते किणा अभिसमन्नागए किं उट्ठाणेणं जाब पुरिसक्कारपरक्कमेणं देवेन बादः उदाहु अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ?, तए णं से देवे कुण्डकोलियं समणोवासयं एवं वयासीएवं खलु, देवाणुप्पिया ! मए इमेयारूवा दिवा देविटी ३ अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमनागया तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवा ! तुमे इमा एयारूवा दिया देविड्डी अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, जेसि णं जीवाणं नस्थि उट्ठाणे इ वा पते किं न देवा?, अह णं देवा ! तुमे इमा एयारूवा दिव्या देविडी ३ उट्ठाणेणं जाव परक्कमेणं लद्धा पना अभिसमन्नागया तो जं वदसि-सुन्दरी णं गोसालस्स मङ्गुलिपुत्तस्स धम्मपण्णनी-नस्थि उट्ठाणे इ वा जाव नियया सवभावा, मङ्गुली णं समणस्त भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उदाणे इ वा जाव अणियया सब्वभावा, तं ते मिच्छा ॥ तए थे| से देवे कुण्डकोलिएणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे सरि जाव कलुप्ससमावन्ने नो संचाएइ कुण्डकोलियम समणोवासयस्स किंचि पामोक्खमाइक्खिनए, नाममुद्दयं च उनरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेडरता जामेव दिसें पाउभए तामेव दिसि पडिगए। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसडे, तर णं से कुण्डकोलिए समगोवासर इमीसे कहाए लद्धटे हट्ठ जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ धम्मकहा (सू. ३६ ) REaurahminilna Pranamamucom कुंडकोलिक-श्रमणोपासक: एवं मिथ्यादृष्टि: देवकृत: मिथ्यात्व प्रेरणा ~ 77~

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