Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 64
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययन [२], ----- मूलं [२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४] दीप उपासक- 5 अकरणं पावाणं कम्माणं आइक्खह, धर्ममुपशमादिस्वरूपं ब्रूयोति हृदयं, नत्यि णं अण्णे कोइ समणे वा माहणे वा जे र कामदेवादशाने एरिसं धम्ममाइविखत्तए, प्रभुरिति शेषः, किमङ्ग पुण एतो उत्तरतरं , एवं वदिचा जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसंध्य यनम् पडिगयत्ति ॥ (सू.२४) कामदेवाइ ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणावासयं एवं वयासी-से नूणं कामदेवा ! तुम्भं पुच्वरत्तावरनकालसमयसि एगे देवे अन्तिए पाउन्भए, तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउच्वइ २ चा आसुरुते ४ एगं महं नीलुप्पल जाव असिं गहाय तुमं एवं वयासी-हं भो कामदेवा ! जाव जीवियाओ ववरोविज्जसि, तं तुम तेणं देवेणं एवंवुत्ते समाणे अभीए जाब विहरसि एवं वण्णगरहिया तिण्णिवि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारयच्या जाव देवो पडिगओ, से नूणं कामदेवा अढे सम?, हन्ता, अस्थि, अज्जो इ समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गन्थे य निग्गन्थीओ य आमन्तेत्ता एवं वयासी-जड ताव अज्जो समणोवासगा गिहिणो गिहमाझावसन्ता दिवमाणुसतिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्म सहन्ति जाव अहियासेन्ति, सक्का पुण्णाई अज्जो ! समणेहिं निम्गन्थेहिं दुवालसा गणिपिडगं अहिज्जमाणेहिं दिव्वमाणुमतिरिक्खजोणिए सम्म सहितए जाव आहियासिनए, तओ ते बहवे समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स तहति एयमढें विणएणं पडिसुणन्ति । तए णं से कामदेवे समणोवासए हट्ठ जाव समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ अट्ठमादियइ, समणं मगवं महावीरं तिक्खुत्तो वन्दइ । अनुक्रम [२६] SAREairahid | भगवंत-महावीरेण कृत कामदेवश्रावकस्य द्रढत्वस्य प्रसंशा ~634

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