Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 33
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) अध्ययन [१], ------ मूलं [१०-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०-१२ दीप अनुक्रम [१२-१४] संथरइ, दम्भसंथारयं दुरूहइ २ ना पोसहसालाए पोसहिए दम्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उचसम्पज्जिता णं विहरइ ॥ सू०१२॥ - महावीरस्स अन्तियति अन्ते भवा आन्तिकी महावीरसमीपाभ्युपगतेत्यर्थः तां 'धम्मपण्णत्ति'ति धर्मपज्ञापनामुपसम्पय अङ्गीकृत्यानुष्ठानद्वारमः 'जहा पूरणोत्ति भगवत्यभिहितो बालतपस्वी स यथा स्वस्थाने पुत्रादिस्थापनमकरोत् तथाऽयं कृतवानित्यर्थः । एवं चासौ कृतवान 'विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावित्ता मित्तनाइनियगसम्बन्धिपरिजणं आमन्तेत्ता तं मित्तनाइनियगसम्बन्धिपरिजणं विउलेणं ४ वत्थगन्धमल्लालङ्कारेण य सकारत्ता सन्माणेत्ता तस्सेव मित्तनाइनियगसम्बन्धिपरिजणस्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुड़म्बे ठावे ठावित्त'नि मायकुलसित्ति स्वजनगृहे । 'उवक्खडेउति उपस्करोतु-राध्यतु, 'उवकरेउ ति | उपकरोतु, सिद्धं सद् द्रव्यान्तरः कृतोपकारम्-आहितगुणान्तरं विदधातु (म.१२) | तए ण मे आणन्दे ममणोवासए उवासगपडिमाओ उवसम्पजित्ता णं विहरइ, पढम उवासगपडिमं अहासुनं अहाकप्पं अहाभग्गं अहातचं सम्म कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ किनेइ आराहेद ॥ तए णं मे आणन्दे सम-1 णोबासए दाचं उवामगपडिमं, एवं तचं चार्थ पञ्चमं छ, मत्तमं अट्ठमं नवमं दसम एक्कारसमं जाव आराहेइ॥ सू.१३॥ 'पढमति एकादशानामायामुपासकातिमा-श्रावकोचिनाभिग्रहविशेषरूपामुपसम्पद्य विहरति, तस्याश्वेद स्वरूपम् 'सङ्कगदि१ शङ्कादिशल्यचिरहितमम्गदर्शनयुक्तस्तु यो जन्तुः । झोपरणविप्रमक एषा खल भवति प्रथमा तु ॥१॥ SANEauratonhand ForParuaaTINUEom आनदश्रावकस्य “११-श्रावकप्रतिमा"- स्वीकार ~ 32 ~

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113