Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 41
________________ आगम (०७) प्रत सूत्रांक [१७] दीप अनुक्रम [१९] “उपासकदशा” अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः) अध्ययन [ १ ]. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... अत्र प्रथमं अध्ययनं परिसमाप्तं - मूलं [१७] ..आगमसूत्र [०७], अंग सूत्र [०७] “उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः तए णं से आणन्दे समणोवासए बहहिं सीलवएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाणिना एक्कारस य उवासग पडिमाओ मम्मं कारणं फासित्ता मासियाए संलेहणाए अनाणं असित्ता सट्टिं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मबार्डंसगस्स महाविमाणस्म उत्तरपुरच्छ्रिमेणं अरुणे विमाणे देवताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेमइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं आणन्दस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । आणन्दे भन्ते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खणं ३ अणन्तरं चयं चत्ता कहिं गच्छिहिर कहिं उववज्जिहिद ?, गोयमा ! महाविदेहे वासे मिज्झि हिङ । निक्खेवो ॥ सतमस्स अस्स उवामगदसाणं पढमं अज्झयणं समत्तं ॥ सू० १७ ॥ 'निक्खेवओ'त्ति निगमनं, यथा "एवं खलु जम्बू ! समणेणं जाब उबासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण त्तेत्तिबेमि" ।। ( मू. १७) इत्युपासकदशाङ्गे प्रथममानन्दाध्ययनम् ॥ For Parts Only ~40~

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113