Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 39
________________ आगम (०७) प्रत सूत्रांक [१४-१६] दीप अनुक्रम [१६-१८] “उपासकदशा” अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः) अध्ययन [ १ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित... - ..आगमसूत्र [०७], अंग सूत्र [०७] गांयमं एजमाणं पासइ २त्ता हट्टु जाव हियए, भगवं गांयमं बन्दइ नर्मस ना एवं वयासी एवं खलु भन्ते ! अहं इमेणं उरालेणं जाव धमणिसन्तए जाए, न संचारभि देवाणुप्पियस्स अन्तियं पाउव्यवित्ताणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवन्दित्तए, तुभे णं भन्ते ! इच्छाकारेणं अणभिओएणं इओ व पह. जा णं देवाणुप्पियाणं तिक्खुनो मुद्राणेणं पारस बन्दामि नमामि । तए णं से भगवं गोयमे जेणेव आणन्दे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ ॥ सू० १५ ॥ आनन्दस्य गौतमस्वामिना सह अवधिज्ञान विषयक चर्चा तणं से आणन्दे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणं पाए वन्दइ नमसः २ता एवं वयासी-अत्थि णं भन्ते ! गिहिणो गिहिमज्झावसन्तस्स ओहिनाणे समुप्पज्जद ?, हन्ता अस्थि, जइ णं भन्ते ! | गिहिणो जाव समुप्पज्जइ, एवं खलु भन्ते ! ममवि गिहिणो गिहिमज्झावसन्तस्म ओहिनाणे समुप्पन्ने- पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे पञ्च जोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं नरयं जाणामि पासामि । तए णं से भगवं गोयम आणन्दं समणोवासयं एवं वयासी-अत्थि णं आणन्दा ! गिहिणो जाव समुप्पज्जइ, नो चेव णं एमहालए, तं णं तुयं आणन्दा ! एयस्स | टाणस्स आलोएहि जाव तवोकम्मं परिवज्जाहि । तए णं से आणन्दे समणीवास भगवं गोयमं एवं वयासी-अत्थि णं भन्ते ! जिणवयणे सन्ताणं तञ्चाणं तहियाणं सन्भूयाणं भावाणं आलोज समद्रे, जइ णं भन्ते ! जिणवयणे सन्ताणं जाव भावाणं नो आलोइज जाव मूलं [१४- १६] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः For Pernal Use Only ~38~ जाव पडिवजिजह ?, नो इणट्ठे तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्ज तं णं arr

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