Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 37
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्तिः ) अध्ययन [१], ----- मूलं [१४-१६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४-१६] दीप अनुक्रम [१६-१८] यरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहारी विहरद ताव ता में से कल्लं जाव जलते अपश्चिममारणन्तियसलेहणाझूसणाझसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स कालं अणवकमाणस्स विहरित्तए, एवं सम्पेहेइ २ ना ailकल्लं पाउ जाव अपच्छिममारणन्तिय जाव कालं अणवकङमाणे विहरइ ॥ तए णं तस्स आणन्दस्स ममणोवास*गस्स अन्नया काइ सुभेणं अन्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पन्ने, पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पश्चजोयणसइयं खेतं जाणड पासइ, एवं दक्षिणेणं पञ्चत्थिमेण य, उतरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासधरपवरं जाणइ पासइ, उर्दू जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ, अहे जाव इमीसे स्यणप्पभाए पुढवीए लोलुयसुर्य नस्यं चउरासीयवाससहरसटिइयं जाणइ पासइ ॥ मू०१४॥ | तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए, परिसा निग्गया, जाव पडिगया, तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अन्तेवासी इन्दभूई नामं अणगारे गोयमगोचेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वजारसहनारायसवन्यणे कणगपुलगनिघसपम्हमारे उम्गतवेदिततवे तत्ततवे घोरतये महातवे उराले घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबम्भचेरवासी उच्छढसरीरे सहित्तविउलतेउले से छ, छट्रेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेण संजमेणं | तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तए णं से भगवं गोयमे छक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करे। बिझ्याए पोरिसीए झाणं झायइ, तश्याए पोरिमीए अतुरियं अचवलं असम्भन्ते मुहपनि पडिलहेइ २ नाभायणवत्थाई Rapranaamwan umom murary.org आनन्दस्य अवधिज्ञानस्य उत्पत्ति:, गौतमस्वामिन: वर्णनं एवं तस्य भिक्षाचर्यागमनं ~36~

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