Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 50
________________ आगम (०७) “उपासकदशा” - अंगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययन [२], ------ मूलं [२०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०७], अंग सूत्र - [०७] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: सपासकदनाङ्ग ॥ २३ ॥ प्रत सूत्रांक [२०] दीप अनुक्रम वगए विहरइ, तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ २ ना आसुरने १२ कामदेवातिवलियं भिउडिं निडाले साहट्ट कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डि करेइ, तए णं से काम- ध्ययनम् देवे समणावासए तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं सम्मं सहइ जाब अहियासेइ ( सूत्रं २०) तिवलिय' ति त्रिवलिको भृकुटि-दष्टिरचनाविशेष ललाटे 'संहृत्य विधायति चलयितुमन्यथाकत, चलनं च द्विधाकासंशपद्वारेण विपर्ययद्वारेण च, तत्र क्षोभयितुमिति संशयतो, विपरिणमयितुमिति च विपर्ययतः ॥ (मू.२०) तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाय विहरमाणं पासइ २ ना जाहे नो संचाएइ । कामदेवं समणोवासयं निग्गन्थाओ पावयणाओ चालिनए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे सन्ते तन्ने परितन्ते । सणियं मणियं पच्चोसक्कइ २ ना पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ २ ना दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ २ ना एगं महं, दिवं हथिरुवं विउबइ सनपइट्ठियं सम्म संठियं मुजायं पुरओ उदग्गं पिट्ठओ वराह अयाकुच्छिं अलम्बकुच्छिं पलम्बलम्बोदराधरकर अभुग्गयमउलमल्लियाविमलधवलदन्तं कञ्चणकोसीपविट्ठदन्तं आणामियचावललियसंविल्लियग्गसोण्डं कुम्मपडिपुण्णचलणं वीसइनखं अल्लीणपमाणजुतपुच्छं मतं मेहमिव गुलगुलेन्तं मणपवणजइणवेगं १ दिव्वं हत्थिरूवं विउब्वइ २ ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ २ ना कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हं भो कामदेवा ! समणोवासया तहेव भणइ जाव न भजेमि तो ते अज्ज अहं [२२] कामदेवस्य धर्मप्रज्ञप्ति: एवं मायी-मिथ्यादृष्टि: देवकृत: उपसर्ग: ~ 49~

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