Book Title: Aagam 07 UPASAK DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(०७)
प्रत
सूत्रांक
[१०-१२]
दीप
अनुक्रम
[१२-१४]
अध्ययन [ १ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..
उपासक
दशा
।। १४ ।।
“उपासकदशा” - अंगसूत्र - ७ (मूलं + वृत्तिः)
Eucation!
आगमसूत्र [०७], अंग सूत्र [०७]
लु अहं वाणियगामे नरे बगर जावसयत्सवि य णं कुडुम्बरस जाव आधारे, तं एएणं विक्संवेणं अहं को संचामि सगणस्म भगव महावीरस्म अन्तियं धम्मपष्णत्तिं उवसम्पजित्ना णं विहरिए । तं सेयं खलु ममं क जाव जलते विले असणं जहा पूरणो जाव हत्तं कुडुम्बे ठवेत्ता तं मित्तं जाव जेथुनं व आपुच्छिता कोल्लाए सन्नियमे नायकुलसि पोसनाले पडिलेहिना समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपष्णत्तिं उवसम्पजिना विहरिए । एवं सम्पति जिमियतरागएतं मित्त जाव विउलेणं पुप्फ ५ सकारेड
● सन्माणे २ तानेव भिन जान पुर्ण साधना एवं क्यासी एवं खलु पुना ! अहं वाणियगांमे
मूलं [१०-१२] "उपासकदशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
絢
बहू राईसर जहां चिन्ति जाय विहरिए सेयं खलु मम दाणिं तुमं सस्स कुडुम्बस आलम्बणं ४ उवत्ता जाव विहनिए । तए णं पुरे आणन्दरस समणोवासगस्स वहति एयम विणणं परिणे । तए णं से आणन्दे समणीवास तसेच मित्त जाव पुरओ जेपु कुटुम्बे ठवे २ ता एवं वयासी मा णं देवाणुप्पिया ! * तुभे अजप्पभिर्ड के मम बहुमु कज्जेस जाय आपुच्छर वा पडिपुच्छउ वा ममं अट्टाए असणं वा ४ उवक्खडेउ वा उवेंकरेज वा । तए णं से आणन्दे समणोवास जेटुपुर्ण निनाई आपूछनी सर्यााओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ ता वाणियगामं नयम मझेणं निगच्छ २ ना जेणेव कोल्लाए सनिये से जेणेव नायकुले जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छना पोसहसाले पमज्जह २ ना उच्चारणसंवर्णभूमिं पडिलेहेद २ नामसंयायं
For Parts Only
~ 31~
१ आनन्दाध्ययनं
॥ १४ ॥

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113