Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान संपादक-पुरातत्त्वाचार्य, जिनविजय मुनि [सम्मान्य संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर ] साधुसुन्दर गणी विरचित उक्ति रत्नाकर राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान पुरातत्त्वा न्वेषण मन्दिर ज य पुर (राजस्थान) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर ( राजस्थान ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट ) द्वारा प्रकाशित - राजस्थान पुरातन गम माला -1 प्रधान संपादक पुरातत्त्वाचार्य, मुनि जिनविजर [सम्मान्य संचालक - राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर ] प्रकाशनकर्ता संचालक - राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर जयपुर (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर * राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्थापित राजस्थान में प्राचीन साहित्य के संग्रह, संरक्षण, संशोधन और प्रकाशन कार्यका महत् प्रतिष्ठान राजस्थानका सुविशाल प्रदेश, अनेकानेक शताब्दियोंसे भारतका एक हृदयस्वरूप स्थान बना हुआ होनेसे विभिन्न जनपदीय संस्कृतियों का यह एक केन्द्रीय एवं समन्वय भूमि सा संस्थान बना हुआ है । प्राचीनतम आदिकालीन वनवासी भिल्लादि जातियों के साथ, इतिहासयुगीन आर्य जातिके भिन्न भिन्न जनसमूहों का यह प्रिय प्रदेश बना हुआ है। वैदिक, जैन, बौद्ध, शैव, भागवत एवं शाक्त आदि नाना प्रकार के धार्मिक तथा दार्शनिक संपदायक अनुयायी जनों का यहां स्वस्थ और सहिष्णुतापूर्ण सन्निवेश 'हुआ है। कालक्रमानुसार मौर्य, शक, क्षत्रप, गुप्त, हूण, प्रतिहार, गुहिलेत, परमार, चालुक्य, चाहमान, राष्ट्रकूट आदि भिन्न भिन्न राजवंशों की राज्यसत्ताएं इस प्रदेशमें स्थापित होती गईं और उनके शासनकालमें यहांकी जनसंस्कृति और राष्ट्र उम्पत्ति यथेष्ट रूप में विकसित और समुन्नत बनती रही। लोगोंकी सुख-समृद्धि के साथ विद्यावानोंकी विद्योपासना भी वैसी ही प्रगतिशील बनी रही, जिसके परिणाममें, समयानुसार, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देश्य भाषाओं में असंख्य ग्रन्थोंकी रचनारूप साहित्यिक समृद्धि भी इस प्रदेश में विपुल प्रमाण में निर्मित होती गई । इस प्रदेशमें रहनेवाली जनताका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुराग अदभुत रहा है, और इनके कारण राजस्थानके गांव-गांव में आज भी नाना प्रकारके पुरातन देवस्थानों और धर्मस्थानों का गौरवसादक अस्तित्व हमें दृष्टिगोचर हो रहा है। राजस्थानीय जनताके इस प्रकार के उत्तम सांस्कृतिक - आध्यात्मिक अनुरागके कारण विद्योपासक वर्गद्वारा स्थान-स्थान पर विद्यामठों, उपाश्रयों, आश्रमों और देवमन्दिरोंमें वायात्मक साहित्य के संग्रहरूप ज्ञानभण्डार - सरस्वती भण्डार भी यथेष्ट परिमाण में स्थापित थे। ऐतिहासिक उल्लेख आधारसे ज्ञात होता है कि राजस्थानके अनेकानेक प्राचीन नगर जैसे आघाट, शिमाल, जाबालिपुर, सत्यपुर, सीरोही, बाडमेर, नागौर, मेडता, जैसलमेर, सोजत, पाली फलोदी, जोधपुर, बीकानेर, सुजानगढ, भटिंडा, रणथंभोर मांडल, चितौड, अजमेर, नराना, आमेर, सांगानेर, किसनगढ़, चूम, फतेहपुर सीकर आदि सेंकडों स्थानोंमें, अच्छे अच्छे ग्रन्थभण्डार विद्यमान थे। इन भण्डारामं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देय भाषाओं में रचे गये हजारों ग्रन्थोंकी हस्तलिखित, मूल्यवान पोथियां संगृहीन थीं। इनमें से अब केवल जैसलमेर जैसे कुछ एक स्थानोंके ग्रन्यभण्डार ही किसी प्रकार सुरक्षित रह पाये हैं । मुसलमानों और इंग्रेजों जैसे विदेशीय राज्यलोलुपोंके संहारात्मक आक्रमणों के कारण हमारी वह प्राचीन साहित्य-सम्पत्ति बहुत कुछ नष्ट हो गई। जो कुछ बची-खुची थी वह भी पिछले १००-१५० वर्षक अन्दर, राजस्थान से बहार - काशी, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, बंगलोर, पूना, बडौदा, अहमदाबाद आदि स्थानोंमें स्थापित नूतन साहित्यिक संस्थाओंके संग्रहों में बडी तादाद में जाती रही है। और तदुपरान्त युरोप एवं अमेरिका के भिन्न भिन्न ग्रन्थालयों में भी हजारों ग्रन्थ राजस्थान से पहुंचते रहे हैं। इस प्रकार यद्यपि राजस्थानका प्राचीन साहित्य भण्डार एक प्रकार से अब खाली हो गया हैं; तथापि, खोज करने पर, अब भी हजारों ग्रन्थ यत्रतत्र उपलब्ध हो रहे हैं जो राजस्थान के लिये नितान्त अमूल्य निधि स्वरूप हो कर अत्यन्त ही सुरक्षणीय एवं संग्रहणीय हैं । * २] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्ष और सन्नोषका विषय है कि राजस्थान सरकारने हमारी विनम्र प्रेरणासे प्रेरित हो कर, इस राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर ( राजस्थान ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीटयूट ) की स्थापना की है और इसके द्वारा राजस्थानके अवशिष्ट प्राचीन ज्ञानभण्डारकी सुरक्षा करनेका समुचित कार्य प्रारंभ किया है । इस कार्यालय द्वारा राजस्थानके गांव-गांवमें ज्ञात होने वाले ग्रंथों की खोज की जा रही है और जहां कहींसे एवं जिस किसीके पास उपयोगी ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं उनको खरीद कर सुरक्षित रखनेका प्रबन्ध किया जा रहा है। सन् १९५० में इस प्रतिष्ठानकी प्रायोगिक स्थापना की गई थी, और अब पिछले वर्ष, १९५६ के प्रारंभसे, सरकारने इसको स्थायी रूप दे दिया है और इसका कार्यक्षेत्र भी कुछ विस्तृत बनाया गया है। अब तकके प्रायोगिक कार्य के परिणाममें भी इस प्रतिष्ठानमें प्रायः १०००० जितने पुरातन हस्तलिखित ग्रन्थोंका एक अच्छा मूल्यवान संग्रह संचित हो चुका है । आशा है कि भविष्यमें यह कार्य और भी अधिक वेग धारण करता जायगा और दिन-प्रति-दिन अधिकाधिक उन्नति करता जायगा। जिस प्रकार उक्त रूपसे इस प्रतिष्ठानके प्रस्थापित करने का एक उद्देश्य राजस्थानकी प्राचीन साहित्यिक संपत्तिका संरक्षण करनेका है. वैसा ही अन्य उद्देश्य इस साहित्यनिधिके बहुमूल्य रत्नस्वरूप ग्रन्थोंको प्रकाशमें लानेका भी है। राजस्थानमें उक्त रूपमें जो प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उनमें सेंकडों ग्रन्थ तो ऐसे हैं जो अभी तक प्रकाशमें नहीं आये हैं: और सेफडों ही ऐसे हैं जिनके नाम तक भी अभी तक विद्वानोंको ज्ञात नहीं है । यह सब कोई जानते हैं कि इन ग्रन्थों में हमारे राष्ट्रके प्राचीन सांस्कृतिक इतिहासकी विपुल साधन-सामग्री छिपी पड़ी है । हमारे पूर्वज हजारों वर्षों तक जो ज्ञानार्जन करते रहे उसका निष्कर्ष और नवनीत नीकाल नीकाल कर, वे अपनी भावी सन्ततिके उपयोगके लिये इन ग्रन्था त्मक कृतियोंमें संचित करते गये। व्याकरण, कोष, काव्य, नाटक, अलंकार, छन्द, ज्योतिष, वैद्यक, कामविज्ञान, अर्थशास्त्र, शिल्पकला आदि लौकिक विद्याओंके ज्ञानके साथ श्रुति, स्मृति, पुराण, धर्मसूत्र, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, जैन, बौद्ध, शाक्त, तंत्र, मंत्र आदि धार्मिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विद्याओंके रहस्य भी इन ग्रन्थों में नाना स्वरूपोंमें ग्रथित किये हुए हैं । इसी प्रकार, युग युगमें होने वाले अनेक शूर-वीर, दानी-ज्ञानी, सन्त-महन्त, त्यागी-वैरागी, भक्त-विरक्त आदि गुण विशिष्ट नर-नारी जनोंके जीवन और कार्योंके विविध वर्णन-चित्रण भी इन्हीं ग्रन्थों में अन्तर्निहित हैं । अर्थात् हमारे राष्ट्रकी सर्व प्रकारकी गौरव-गरिमाविषयक कथा-गाथाकी रक्षा करने वाला हमारा यही एकमात्र प्राचीन साहित्यसंग्रह है। इसी के प्रकाशसे संसार में भारतका गुरुपद ज्ञात हुआ और स्थापित हुआ है। यद्यपि आज तक इनमें से हजारों ही प्राचीन ग्रन्थ, प्रकाशमें आ चुके हैं, फिर भी हजारों ही ऐसे ग्रन्थ और बाकी हैं जो अन्धकारके तलघर में दटे पडे हैं । इनका उद्धार करना और इन्हें प्रकाशमें रखना यह अब इस नूतन जीवन प्राप्त नव्य भारतके प्रत्येक व्यक्ति और संस्थाका परम कर्तव्य है। इसी कर्तव्यको लक्ष्य कर, इस संस्था द्वारा 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' के प्रकाशनका आयोजन भी किया गया है। इसके द्वारा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देश्य भाषाओं में निबद्ध विविध विषयों के प्राचीन ग्रन्थ, तज्ज्ञ एवं सुयोग्य विद्वानोंसे संशोधित और संपादित हो कर प्रकाशित किये जा रहे हैं। अब तक कोई छोटे बडे २० ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और प्रायः ३० से अधिक ग्रन्थ प्रेशोंमें छप रहे हैं । राजस्थान सरकार वर्तमानमें, इस कार्य के लिये प्रतिवर्ष २०००० रूपये खर्च कर रही है-पर हमारी कामना है कि भविष्यमें यह रकम बढाई जाय और तदनुसार अधिक संख्यामें इन प्राचीन ग्रन्थों का समुद्धार और प्रकाशन कार्य किया जाय । साहित्यका प्रकाश ही प्रजाके अज्ञानान्धकारको नष्ट कर, उसे दिव्यताका दर्शन कराता है। माघ शुक्ला १४, वि. सं. २०१३.1 (जीवनके ७० वें वर्षका प्रथम दिन)। मुनि जिन विजय Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके कुछ ग्रन्थ प्रकाशित ग्रन्थ : कम्गामृतप्रपा - हार मोमेश्वर वालशिक्षाव्याकरण-ठकर संग्रामसिंह संस्कृत ५ पदार्थरत्नमञ्जुषा- पं० कृष्णमिश्र १ प्रमाण मञ्जरी नाकिक चूडामणि सर्वदेवा ६ काव्यप्रकाश, संकेत- भद्र सोमेश्वर ___चाय प्रणीत। तीन व्याख्याओंसे समलंकृत। ७ वसन्तविलास - फागु काव्य २ यत्रराजरचना- जयपुर नरेश महाराज ८ नृत्यरत्नकोश- राजाधिराज कुंभकर्ण देव सवाई जयसिंह समारचित । ९ नन्दोपाख्यान - संस्कृत और गजस्थानी महर्णिकुलवैभवम् - विद्यावाचस्पति स्व. १. रत्नकोश विविधवस्तुसंग्रह विचारात्मक धीमधुमदन ओडाविरचित । ४ तर्कसंग्रह-फकिका. पं. समाकल्याण कृत । ११ चान्द्रव्याकरणम् - आचार्य चन्द्रगामि ., कारकसंवन्धोद्योत - पं. रमसनन्दिकृत १२ स्वयंभू छंद - स्वयंभ कवि ६ वृत्तिदीपिका-६. मौलिकृष्णभद्र कृत। १३ प्राकृतानन्द - कवि रघुनाथ ७ शब्दरत्नप्रदीप संक्षिप्त संस्कृत शब्दकोष १८ मुग्धाववोध आदि ऑक्तिक संग्रह ८ कृष्णाति -- कवि गोमनायकृत गीतिकाव्य। १५ कविकौस्तुभ पं. रघुनाथ मनोहर ९ शंगारहागवलि - हर्पकचि चिरचित। १६ दुर्गापुष्पांजलि -- पं. दुर्गाप्रसादजी १. चक्रपाणिविजयमहाकाव्य - पं. लगा१ दशकण्ठवधम... -घरमा रचित । १८ कर्णकुतूहल नाटक 11 राजविनोद काव्य -- कवि उदयराज रचित। १९. कृष्णलीलामृत काव्य १२ नृत्तसंग्रह-नाट्यविषयक पठनीय ग्रन्थ ।। १३ नृत्यरत्नकोश- महाराणा कुम्भकर्ण प्रणीत । राज्यस्थानी भाषाग्रन्थ १४ उक्तिरत्नाकर-पण्डिन साधुसुन्दरगणी कृन। १ वांकीदासरी वातां- चारणकवि बांकीदास १५ कविदर्पण - प्राकृत छन्दोरचनात्मक ग्रन्थ । २ मुंहता नैणसीरी ख्यात - जोधपुरके १६ वृत्तजातिसमुच्चय-विरहाइ कवि कृत । मुंहता नेणसी लिखित १७ ईश्वरविलास महाकाव्य - पं० भद्र- 3 गोरा बादल-पदमिणी चउपई-जन यति कवि हेमन्नन कृ. राजस्थानी भाषा ग्रन्थ राठोड वंशरी विगत -- राठोडोंके १ कान्हड दे प्रवन्ध कवि पद्मनाभ रचित। इतिहासको कथा।। २ क्यामखां रामा मुस्लिम कवि जानकृत। ' राजस्थानी साहित्य संग्रह - राजस्थानी ३ लावागमा - चारणकविया गोपालदानकृत। भाषा में लिखित विविध वृत्तान्त ।' प्रेसांम् छप रहे ग्रन्थ दाढाला एकल गिडरी वात- राजस्थानी भापाकी एक मरण प्रहसनात्मक रचना । (क) संस्कृत ग्रन्थ ७ सुजान संवत - कवि उदयराम रचित १ त्रिपुराभारती -- लघुपंडित ८ चन्द्रवंशावलि - कवि मतिराम कृत २ शकुनप्रदीप -- लावण्य शमा ९. राजस्थानी दूहा संग्रह इन ग्रन्थोंके अतिरिक्त अनेकानेक संस्कृत, प्राकृतं. अपभ्रंश, प्राचीन राजस्थानी - हिन्दी भाषामें रचे गये ग्रन्थोंका संशोधन - संपादन आदि कार्य किया जा रहा है। F विकत । इसी तरह गष्ट्र - भाषा हिन्दीमें भी उच्च कोटि के ग्रन्थोंके प्रकाशनका आयोजन चल रहा है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान संपादक-पुरातत्त्वाचार्य, जिनविजय मुनि [सम्मान्य संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर ] साधुसुन्दर गणी विरचित उक्ति रत्नाकर ************.प्रकााक- *-*- **** राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर जय पुर (राजस्थान) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्यद्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिलभारतीय तथा विशेषतः राजस्थानदेशीय पुरातन कालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषानिबद्ध विविधवाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि प्रधान संपादक पुरातत्त्वाचार्य, जिनविजय मुनि [ ऑनरर मेंबर ऑफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी ] सम्मान्य सदस्य भाण्डारकर प्राच्यविद्या संशोधन मन्दिर, पूना; गुजरात साहित्य सभा, अहमदाबाद विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोधप्रतिष्ठान होसियारपुर; निवृत्त सम्मान्य नियामक (ऑनररि डॉयरेक्टर)- भारतीय विद्याभवन, बंबई. 3222 ग्रन्थाङ्क २१ ६६EEEE साधुसुन्दर गणी विरचित उक्ति रत्नाकर प्रकाशक राजस्थान राज्याशानुसार संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर जयपुर (राजस्थान) माघ । विक्रमाब्द २०१३ । । राज्यनियमानुसार - सर्वाधिकार सुरक्षित फरवरी खिस्ताब्द १९५७ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसुन्दर गणी विरचित उक्ति रत्नाकर [उक्तीयक-औक्तिकपदानि-शब्दानुक्रमादिसमवेत प्रथमवार प्रकाशित] संपादक आचार्य, जिनविजय मुनि [प्रधान संपादक-राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला तथा सिंघी जैन ग्रन्थमाला] प्रकाशक राजस्थान राज्याशानुर संचालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर जयपुर (राजस्थान) माघ वि. सं. २०१३ फरवरी राज्या सार- सवाधिकार सुरक्षित | इ.सं. १९५७ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर - अनुक्रम १ उक्तिरत्नाकर २ अज्ञात विद्वत्कर्तृक उक्तीयक ३ अज्ञात विद्वत्संगृहीतानि __पुरातन औक्तिक पदानि ४ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत शब्दानुक्रम पृ. १-४५ ,, ४६-५८ ,, ५९-८२ ,, ८३-११८ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना स्व-संपादित 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला में हमने एक 'उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण' नामक प्रन्थ प्रकाशित किया है, जिसकी भूमिकामें निम्न प्रकारका उल्लेख किया है --- "महात्मा गांधीजीके मुख्य नेतृत्व में स्थापित अहमदाबाद के राष्ट्रीय गुजरात विद्यापीठके 'पुरातत्त्व मन्दिर' नामक विशिष्ट विभागके आचार्यपद पर, सर्व प्रथम, जब मेरी विशिष्ट नियुक्ति हुई, तभीसे मैंने औक्तिक प्रकारके साहित्यका संकलन करना निश्चित किया था और यथाशक्य उसको प्रकाशमें लानेका प्रयत्न चलाया था। ई. स. १९२३-२४ के अरसेमें, मैं एक वार पाटण गया और वहाँसे कुछ अन्यान्य औक्तिक प्रकरणोंके प्राचीन आदर्श प्राप्त किये। उक्त गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर के तत्वावधानमें संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भारतीय प्राचीन भाषाओंके, उच्चकोटीय अध्ययनके साथ, गुजराती भाषाके प्राचीन इतिहास और साहित्यके अध्ययनकी भी विशेष व्यवस्था की गई थी। उसके पाठ्यक्रममें आवश्यक ऐसे एक सन्दर्भ ग्रन्थका संकलन करनेकी दृष्टिसे 'प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ' के नामसे एक संग्रहात्मक ग्रन्थ मैंने तैयार करना प्रारंभ किया, जिसमें वि. सं. १३०० से ले कर १६०० तकके ३०० वर्षों में लिखे गये, प्राचीन गुजराती ( अर्थात् पश्चिमी राजस्थानी) भाषाके चुने हुए उद्धरणोंका एक अच्छा प्रमाणभूत संग्रह संकलित करनेका उद्देश्य रखा था। इसके लिये मैंने बहुत कुछ आधारभूत सामग्री एकत्र करनी शुरू की। पाटण, अहमदाबाद आदिके भण्डारोंमें प्राप्त प्राचीन ताडपत्रीय एवं वैसी ही प्राचीन कागजीय पुस्तकोंमें, यत्र तत्र उपलब्ध फुटकल गद्य उद्धरणोंके साथ, कुछ स्वतंत्र प्रकरणरूप कृतियोंका भी मैंने संग्रह किया ।"-इत्यादि । इन प्रकरणरूप कृतियोंमें, प्रस्तुत 'उ क्ति र ना क र' भी एक थी, जो अब इस प्रकार, 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित हो रही है। इस ग्रन्थकी सर्वप्रथम प्रतिलिपि पाटणके भण्डारमेंसे प्राप्त प्राचीन पोथी परसे उसी समय कराई गई थी। इसका मुद्रण कार्य प्रारंभ करनेका निश्चय होने पर बीकानेरके जैन भण्डारमेंसे भी एक अन्य प्रति, श्रीयुत अगर चन्दजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुई। अन्यान्य ग्रन्थसंग्रहोंमें भी इस ग्रन्थकी प्रतियां उपलब्ध होती हैं, अतः ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक प्रसिद्ध एवं पठनोपयोगी ग्रन्थ रहा है। इस ग्रन्थके कर्ता साधुसुन्दर नामक जैन यतिजन हैं जो बहुत करके राजस्थान निवासी थे। इनके गुरु साधुकीर्ति पाठक -पदधारी यतिवर्य थे जो बहुत बडे पण्डित और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। प्रस्तुत ग्रन्थकारने अपने गुरुके विषयमें, ग्रन्थान्तकी प्रशस्तिमें कहा है कि 'इनने यवनपति ( बादशाह अकबर ) की सभामें, अन्यान्य पन्थोंके पंडितोंके ___ 1 इस प्रतिके अन्तमें निम्न प्रकार लिपिकारका परिचायक उल्लेख किया हुआ है'संवत् १७५० वर्षे आषाढ सुदि ८ दिने बुधवारे पं. कनकवल्लभ लिपीकृतम् । शिष्य अमीचन्द शिष्य कृष्णानै लिपिकृत दत्तम् । श्रीरस्तु लेखकपाठकयोः।' Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ६ साथ वाद-विवाद करने में खूब ख्याति प्राप्त की थी; इस लिये बादशाहने इनको 'वादिसिंह'का इल्का प्रदान किया था । ये हजारों शास्त्रोंका सार जानने वाले असाधारण विद्वान् थे'इत्यादि । ग्रन्थकार साधुसुन्दरका बनाया हुआ 'धातुरत्नाकर' नामका एक अन्य बहुत बडा संस्कृत ग्रन्थ उपलब्ध होता है जिसमें संस्कृतके प्रायः सब धातुओं का संग्रह किया गया है और उनके रूपाख्यानोंका विशद आलेखन किया गया है। वह धातुरत्नाकर वि० सं० १६८० में बन कर पूर्ण हुआ था। इनकी बनाई हुई एक संस्कृत स्तुति भी प्राप्त होती है जिसमें जैसलमेर के किलेमें प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ जैन तीर्थंकरकी स्तवना की गई है । यह स्तुति वि० सं० १६८३ में बनी है । इससे साधुसुन्दर गणिका जीवनसमय विक्रमकी १७ वीं शताब्दीकी अन्तिम पचीसी निश्चित होता है । इन्हीं साधुसुन्दरके एक शिष्य उदद्यकीर्ति नामक यति थे जिनने विमलकीर्तिकी बनाई हुई 'पदव्यवस्था' नामक मन्थकृति पर वि. सं. १६८१ में, व्याख्या की हैं । इससे यह भी ज्ञात होता है कि ग्रन्थकर्ताकी गुरु-परंपरा एवं शिष्य परंपरा दोनों ही विद्याकी उपासना में दत्तचित्त थीं । * ग्रन्थगत विषयका अवलोकन करनेसे विद्वानोंको ज्ञात होगा कि ग्रन्थकारने, अपनी देश-भाषा में प्रचलित, देश्य स्वरूपवाले शब्दों के संस्कृत प्रतिरूपोंका ज्ञान कराने की दृष्टिसे इसका संकलन किया है। भारत महाराष्ट्रकी सर्व काल एवं सर्व देश व्यापिनी प्रधान साहित्यिक भाषा संस्कृत रही है । भारतीय वाङ्मयके इतिहासके आदि युगसे ले कर वर्तमान समय तक, संस्कृतकी प्रतिष्ठा और प्रभुता अक्षुण्ण रही है। बीच-बीच में कालक्रमानुसार, संस्कृत के सन्तत प्रवाह के साथ साथ, उससे उत्पन्न एवं उससे सहकार प्राप्त मागधी, शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्री आदि अनेक प्राकृत भाषाओं का प्रादुर्भाव हो कर धीरे धीरे Sant विकास होता गया। फिर बाद में उनका स्वरूपान्तर हो कर उनके स्थानमें तत्तत् देशीय अपभ्रंश भाषाओं का जिनको मध्यकालीन वैयाकरणोंने 'देश्यभाषा' के सर्व - सामान्य नामसे उल्लिखित किया है- आविर्भाव हुआ। भारतके समग्र उत्तरापथकी वर्तमान प्रादेशिक भाषाएं - हिन्दी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, सिंधी, राजस्थानी ( - गुजराती, मारवाडी, मालवी) आदि लोकभाषाएं उसी अपभ्रंशके नूतनस्वरूपप्राप्त - विकसित भाषा विभाग हैं। इन भाषाओंमें, सेंकडों ही संस्कृत मूल शब्द, भिन्न भिन्न देश और जाति के लोगों के पारस्परिक संपर्कके कारण, उच्चारण-भेद एवं व्यवहार-भेद द्वारा, अन्याकार स्वरूपको प्राप्त होते गये । खास करके संस्कृत के जिन मूल शब्दों में संयुक्ताक्षर अधिक होते हैं उन शब्दोंके प्राकृत - अपभ्रष्ट रूप विशेष रूप में परिवर्तित होते रहे । स्वयं 'संस्कृत' शब्दका रूपान्तर 'संखय' 'सक्कय' 'संगड' आदि और प्राकृत शब्दका रूपान्तर 'पागय' 'पाइय' 'पायड' आदिके रूपमें परिवर्तित हो गया । ' उपाध्याय' शब्दका अपभ्रष्ट रूप, 'ओझा' 'झा' 'वझे' आदि बन गया | संस्कृत शब्दों के ये प्राकृत - अपभ्रष्ट रूप किस प्रक्रिया द्वारा बनते गये, इसका विचार प्राकृत - अपभ्रंशके व्याकरण ग्रन्थोंमें बहुत कुछ किया गया Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर है। जिन व्यक्तियोंको संस्कृत एवं प्राकृत भाषा-साहित्यका विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करना अपेक्षित होता है वे तो इन भाषाओंके व्याकरण ग्रंथोंका यथायोग्य अध्ययन द्वारा ही उसे प्राप्त करनेका प्रयत्न करते रहते हैं। पर जो व्यक्ति सामान्य रूपसे, देश्य भाषा और संस्कृत भाषाका, व्याकरणकी दृष्टिसे परस्पर कितना साम्य है और कितना विभेद है; तथा जो शब्द देश्य रूपमें लोकप्रचलित हो कर, संस्कृत रूपसे भिन्नाकार दिखाई देते हैं, उनका संस्कृत प्रतिरूप कैसा होता है - यह बात जानना चाहते हैं उनके लिये, संक्षेपमें कुछ अवबोध करने करानेकी दृष्टिसे, पूर्व कालीन विद्वानोंने औक्तिक संज्ञावाले ग्रन्थों- प्रकरणोंकी फुटकर रचनाएं की हैं। ___ इन रचनाओंमें सबसे प्राचीन कृति जो हमें उपलब्ध हुई है, वह उक्त सिंघी जैन ग्रन्थमालामें प्रकाशित 'उक्तिव्यक्ति प्रकरण' है। हमारे मतानुसार विक्रमकी १२ वीं शताब्दीके अन्त भागमें उसकी रचना हुई होगी। उस ग्रन्थका कर्ता दामोदर पण्डित उत्तर प्रदेशके बनारस नगरका रहने वाला था। उसने बनारसके बाल विद्यार्थियोंको, अपने समयमें प्रचलित बनारसकी देश्य भाषाका अर्थात् तत्कालीन जनपदीय भाषाका, व्याकरणकी दृष्टिसे संस्कृत भाषाके साथ कैसा संबन्ध है और किस प्रकार देश्य शब्दोंका संस्कार करनेसे संस्कृतका शुद्ध रूप बनता है - यह बतानेके लिये, उस ग्रन्थकी रचना की है। बनारसकी गणना उस समय कोशल देशकी राजधानीके रूपमें होती थी; अतः विद्वानोंने वहांकी लोकभाषाका नाम कोशली रखना उचित समझा है । उस ग्रन्थ की प्रस्तावनामें इस विषयके बारेमें हमने जो उल्लेख किया है, उसे यहां संबन्धित समझ कर, उद्धत किया जाता है ___"इस ग्रन्थमें इस प्रकार केवल प्राचीन कोशली भाषाका नमूना ही हमें नहीं मिल रहा है - परंतु उसके साथ, व्याकरण शास्त्र विषयक कई अन्य महत्त्वकी बातोंका भी इसमें उल्लेख है। ग्रन्थकार इसमें प्रयुक्त देश भाषाका कोई विशिष्ट नाम निर्देश नहीं करता है। वह इसे केवल, सामान्य रूपसे 'अपभ्रंश' के नामसे उल्लिखित करता है। उस समय, संस्कृत एवं प्रौढ प्राकृतके सिवा लोकव्यवहारकी प्रचलित देशभाषाके लिये विद्वान् जन अपभ्रंश नामका व्यवहार करते थे। अपने समयमें- अपने देशमें प्रचलित, लोकव्यवहृत अपभ्रंश भाषाका, संस्कृत व्याकरणकी पद्धतिसे किस प्रकारका संबन्ध है और किस प्रकार लोकभाषाके लोकरूढ उक्तियों= शब्दप्रयोगो द्वारा संस्कृतके व्याकरणका आधारभूत स्थूल ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है - इसका विचार पण्डित दामोदरने इस ग्रन्थमें निबद्ध किया है। इसमें प्रयुक्त 'उक्ति' शब्दका अर्थ है 'लोकोक्ति' अर्थात् लोकव्यवहार में प्रयुक्त भाषापद्धति; जिसे हम हिन्दीमें 'बोली' कह सकते हैं। लोकभाषात्मक 'उक्ति'की जो 'व्यक्ति' अर्थात् व्यक्तता स्पष्टीकरण - तत्संबन्धी विचारका विवेचन - इस ग्रन्थमें किया गया है अतः इसका नाम 'उक्तिव्यक्तिशास्त्र' रखा गया है।" Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना "लोकभाषामें प्रचलित अधिक शब्द, वास्तवमें तो प्रायः संस्कृत भाषाके ही मूल शब्द हैं, परंतु पामरजन अर्थात् अपठित एवं अशिक्षित जनोंके अशुद्ध वाग्व्यापारके कारणसे, उन शब्दोंके वर्गों, अक्षरों आदिमें परिवर्तन हो हो कर, उनके मूल स्वरूपका भ्रंश हो गया अर्थात् वे शब्द अपने असली रूपसे भ्रष्ट हो गये । इसलिये इस लोकव्यवहार में प्रचलित शब्दस्वरूपवाली भाषाको पण्डित दामोदरने अपभ्रंश या अपभ्रष्ट नामसे उल्लिखित किया है; और किस तरह इन अपभ्रष्ट शब्दप्रयोगोंका, संस्कृतके व्याकरणनिबद्ध क्रिया, कारक, कर्म आदि उक्ति प्रकारोंके साथ, संबन्ध रहा है, उसका स्वरूपप्रदर्शन, इस ग्रन्थमें किया है। इसीलिये इसका दूसरा नाम 'प्रयोग प्रकाश' ऐसा भी रखा गया है ।" "ग्रन्थमें प्रतिपादित इस महत्त्वके विषय पर यहां अधिक लिखनेका अवकाश नहीं है। सद्भाग्यसे इस विषयके प्रतिपादक, इसी शैलिमें लिखे गये, अनेक छोटे बडे ग्रन्थ, हमें राजस्थान एवं गुजरातके प्राचीन ग्रन्थभण्डारों में से प्राप्त हुए हैं और उनके संग्रहात्मक ऐसे दो-तीन संग्रह-ग्रन्थ हम और प्रकाशित करना चाहते हैं। इनमेंसे, 'उक्तिरत्नाकर' आदि, ऐसी ही ४-५ कृतियोंका संग्रहस्वरूप, एक ग्रन्थ तो, राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्थापित एवं प्रकाशित तथा हमारे द्वारा संचालित एवं संपादित 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला में शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।" “इस प्रकारकी उक्तिव्यक्ति विषयक भिन्न भिन्न कृतियोंका और उनमें ग्रथित भाषा विषयक सामग्रीका विस्तृत विचार, हम किसी अन्यतम ग्रन्थमें करना चाहते हैं । हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, बंगाली आदि भारतीय-आर्यकुलीन-देशभाषाओंके विकास-क्रमके अध्ययनकी दृष्टिसे यह औक्तिक-साहित्य-संग्रह बहुत उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करेगा।" - इत्यादि उपर दिये गये उद्धरणमें जिन ४-५ कृतियोंका निर्देश सूचित किया गया है उनमें से प्रस्तुत संग्रहमें तो मुख्यतया साधुसुन्दर रचित 'उक्तिरत्नाकर' ही मुद्रित है। अन्य मुख्य रचनाएं, इसके द्वितीय भागके रूपमें छप रही हैं, जिनमें कुलमण्डन सूरिका बनाया हुआ 'मुग्धावबोध-औक्तिक' आदि संगृहीत हैं। साधुसुन्दर गणीने अपनी प्रस्तुत रचनामें, प्रारंभमें संस्कृत व्याकरणके षट्कारक विषयक प्रकरणका निरूपण किया है। संस्कृत भाषाका प्रारंभिक परिचय प्राप्त करनेवालेके लिये यह जानकारी प्रथम आवश्यक होती है कि कौन सी विभक्तिका प्रयोग किस अर्थमें किया जाता है । अतः प्राथमिक विद्यार्थियोंको विभक्तिके ज्ञानके साथ ही कारक अर्थों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक रहता है। इस लिये इस प्रकारके जो औक्तिक प्रकरण रचे गये हैं उनमें प्रायः प्रथम कारक अर्थोंका निरूपण किया हुआ होता है । प्रस्तुत उक्तिरत्नाकरमें भी उसी शैली अनुसार प्रारंभमें कारक प्रकरण लिखा Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर गया है । बाद में प्रायः २४०० जितने देश्य शब्द और उनके संस्कृत प्रतिरूप बतलाने वाले शब्दों का विशाल शब्दसंग्रह दिया गया है । प्रस्तुत संग्रह में उक्तिरत्नाकरके बाद दो अन्य ऐसी ही पुरातन रचनाएं दी गई हैं। इनमें पहली रचनाका नाम सामान्य रूप से 'उक्तीयक' ऐसा लिखा मिला है और दूसरी रचनाका नाम 'औक्तिकपदानि ' ऐसा लिखा मिला है। इन रचनाओंके कर्ता या संग्राहकके नाम नहीं उपलब्ध हुए। जिन प्राचीन प्रतियों परसे इनका मुद्रण किया गया है वे प्रतियां विशेष प्राचीन हैं । अर्थात् उक्तिरत्नाकरके कर्ताके समय से भी पूर्व लिखी गई ज्ञात होती हैं। इस प्रकारके और भी अनेक फुटकर संग्रह हमें प्राप्त हुए हैं जिनका प्रकाशन द्वितीय भाग में करना सोचा गया है। इन रचनाओं में प्रतिपाद्य विषय तो एक ही प्रकारका होता है पर संकलन करनेकी शैली पृथक् पृथक होती है । इसमें दी गई 'उक्तीयक' नामक रचना में प्रारंभ में 'वर्तमानकालिक' धातुरूप दिये हैं । उसके बाद कृदन्तसाधित शब्द दिये हैं । तदनन्तर 'तव्य' प्रत्ययान्त शब्दरूप दिये गये हैं। बाद में सर्वनाम आदि शब्दों का संग्रह दिया गया है। इसमें 'कारक विचार' प्रकरण नहीं दिया गया । 'औक्तिकपदानि ' नामक रचनामें, प्रारंभ में 'कारकविचार' आलेखित किया गया है । साधुसुन्दर गणीने अपनी रचना में 'कारकविचार' शुद्ध संस्कृतमें लिखा है तब इस रचना में यह प्रकरण अपनी देश्य भाषामें लिखा गया है । कारकविचारके बाद, इसमें वर्तमान, भूत, भविष्य आदि 'कालविचार' दिया गया है । बाद में शब्दसंग्रह है । तदनन्तर 'क्रियावचन' दिये गये हैं। फिर 'कर्मणिवाक्य' प्रयोग हैं। इसके अनन्तर विभक्ति- अर्थ और उनके वाक्य प्रयोग दिये हैं । फिर 'समासप्रकरण' दिया गया है. और इसके बाद तद्धित शब्दोंका विचार किया गया है । अन्तमें क्रियाओंके प्रेरक रूप और सनन्त रूपोंका दिग्दर्शन कराया गया है । इस प्रकार इस रचना में व्याकरण के मुख्य मुख्य सभी विषयोंका विवेचन दिया गया है । * हमारे राष्ट्र के किसी भी प्रदेशकी मातृभाषा संस्कृत नहीं है । मातृभाषाएं तो तत्तत् प्रादेशिक भाषाएं हैं, जिनका स्वरूप वर्तमान में संस्कृतसे बहुत कुछ भिन्न मालूम होता है । मनुष्य के ज्ञानके विकासका क्रम सर्व प्रथम मातृभाषा द्वारा शुरू होता है । मातृभाषा द्वारा ही प्राप्त शब्दज्ञानके आधार पर, मनुष्य अन्यान्य भाषाओंका ज्ञान प्राप्त करता रहता है, और उनके द्वारा वह अपनी ज्ञानसमृद्धि बढाता जाता है । हमारे देशकी सर्व प्रकारकी प्राचीन ज्ञानसमृद्धि, संस्कृत वाङ्मयरूप भंडार में निहित है । हजारों वर्षों से हमारे पूर्वज अपने अनुभव और बुद्धिबलसे प्राप्त समग्र ज्ञानसमृद्धिको, इसी संस्कृत वाङ्मयके भण्डारमें अर्पण करते रहे हैं और इस लिये हमारा यह वाङ्मय भण्डार, संसारके अन्यान्य भाषाकीय प्राचीन ज्ञानभण्डारोंकी अपेक्षा, सबसे Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना अधिक समृद्ध रहा है। आज भी इस भण्डारकी महत्ता और प्रतिष्ठा कम नहीं हुई है । अतः भारतके प्रत्येक विकासोन्मुख और संस्काराभिलाषी मनुष्यके लिये संस्कृत भाषाका ज्ञान प्राप्त करना परापूर्व कालसे, परम कर्तव्यरूप माना गया है । अन्य किसी प्रकारके विशेष ज्ञानके लिये न सही, पर, केवल वाणीकी शुद्धिके लिये - जिह्वाके सुसंस्कारके लिये-सुशब्द और कुशब्दका भेद समझनेके लिये ही, संस्कृत भाषाका अल्पस्वल्प भी परिचय प्राप्त करना परम आवश्यक माना गया है । इसी लिये हमारे पूर्वज यह एक अमूल्य शिक्षासूत्र बना गये हैं कि __ यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् । मा भूत् स्वजनः श्वजनः, स्वराज्यमपि च श्वराज्यं यत् ॥ हमारे पूर्वज हमें कह रहे हैं कि-हे पुत्रो ! यदि तुम कुछ अधिक न पढ सको, तो खैर, पर थोडा सा व्याकरण तो अवश्य ही पढना, जिससे तुम 'स्वजन'को 'श्वजन' और 'स्वराज्य' को 'श्वराज्य' कह कर अपशब्दभाषी मूर्ख नर बनने से बच सको ।' जिनको थोडा सा भी शुद्ध भाषा ज्ञानका परिचय होगा, वे इस कथनके मर्मको ठीक समझ ही गये होंगे । इस प्रकार वाणीकी शुद्धि एवं ज्ञानकी वृद्धिके निमित्त संस्कृत भाषाका स्वल्पज्ञान प्राप्त करना भी परम हितावह है । इसी हितको उद्देश्य करके पूर्वकालीन विद्वानोंने प्रस्तुत कृतिके समान सामान्य मुग्धजनोंके बोधके लिये अपनी रचनाएं की हैं 'उक्तीनां संग्रहं वक्ष्ये स्वान्ययोहितहेतवे।' उपर हमने सूचित किया है कि हमारी देश्य भाषाओं में हजारों ही मूल संस्कृत शब्दोंके, देश एवं काल आदिकी भिन्न भिन्न परिस्थितियोंके कारण, विचित्र रूषान्तर हो गये हैं। कुछके अक्षर बदल गये, कुछके अर्थ बदल गये और कुछके उच्चार ध्वनि ही बदल गये हैं। ऐसे रूपान्तरित देश्य शब्दोंके संस्कृत प्रतिरूप क्या हैं, मुख्य तया यही प्रदर्शित करनेके लिये साधुसुन्दर गणीने इस रचनामें प्रयत्न किया है । जैसा कि हमने उपर सूचित किया है ग्रन्थकार प्रायः राजस्थान निवासी हैं अतः इन शब्दोंमें राजस्थान एवं उसके समीपवर्ति गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा, सिंध, पंजाब आदि प्रदेशोंमें प्रचलित देश्य शब्दोंका अधिक संग्रह होना स्वाभाविक ही है । पर इनमें सेंकडों शब्द ऐसे भी मिलेंगे जो सुदूर पूर्वके एवं दक्षिणके देशोंमें भी प्रचलित होंगे । अतः हम आशा करते हैं कि यह संग्रह, भारतकी प्रादेशिक भाषाओंके तुलनात्मक अध्ययन करने वालोंकी दृष्टिसे, तथा राष्ट्र भाषाके पद पर प्रतिष्ठित नूतन भारतकी राष्ट्र-भारती हिन्दीके विकास एवं विस्तारके ज्ञानकी दृष्टिसे भी उपयोगी सिद्ध होगा। भारतीय विद्याभवन, बंबई । मुनि जिन विजय ता. १-२-५७ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुसुन्दर गणी कृत उक्ति रत्नाकर Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि कृत उक्तिरत्नाकर * फ्र एैनमः फ्र स्मृत्वा श्रीभारतीं देवीं गुरुपादांश्च भक्तितः । उक्तीनां सङ्ग्रहं वक्ष्ये स्वान्ययोर्हितहेतवे ॥ १ ॥ तावत् तदुपयोगिविभक्तिस्वरूपं निरूप्यते । तत्र कर्तृकर्मकरणसम्प्रदानापादानाधाररूपाणि षट् कारकाणि । सप्तमः सम्बन्धः । उक्तानुक्तभेदेन द्विधा षट् कारकाणि । तत्रोक्तेषु प्रथमेव विभक्तिः । अनुक्तेष्वनुक्रमेणैताः स्युः । कर्मणि द्वितीया । कर्तृ करणयोस्तृतीया । सम्प्रदाने चतुर्थी | अपादाने पञ्चमी । आधारे सप्तमी । सम्बन्धे षष्ठी । इति संक्षेपेण विभक्तयः कथिताः । विस्तरोऽग्रेऽभिधास्यते । I - करोतीति कर्त्ता । स त्रिविधः - खतन्त्रः, हेतुकर्त्ता, कर्मकर्त्ता च । यो न परैः प्रेर्यते स स्वतन्त्रती । यथा गौर्गच्छति । योऽन्यं कारयति स हेतुकर्ताच्यते । अनेककर्तृके मुख्यं कर्तारं प्रत्ययो वक्ति । यथा - राजा सूपकारेनौदनं पाचयति । यो नापरैः प्रयुक्तः परान् प्रेरयति स मुख्यः । यथा - राजा चैत्रेण श्रियं पोषयति । हेतुकर्ता त्रिधा - प्रेषकः, अध्येषकः, आनुकूल्यभागी च । यः प्रभुत्वेन प्रेरयति स प्रेषकः । यथा - राजा सेवकैः संग्रामं कारयति । यः सत्कारपूर्वकं प्रेरयति सोऽध्येषकः । यथा - श्रद्धावान् पुमान् गुरुं भोजयति । यो न प्रेषते नाध्येषते सोऽनुकूलभागी । चेतनाचेतनत्वेनानुकूल भागी द्विधा । चेतनो यथा-पुत्रो जनकं हर्षयति । अचेतनो यथा - कारीषोऽग्निर्ब्राह्मणमध्यापयति । यदा कर्ता स्वव्यापारं कर्मण्यारोपयति तदा कर्मकर्ता । यथा- पच्यते शालयः स्वयमेव । अत्र प्रस्तावादनुक्तभेदोऽपि कथ्यते । यथा - छात्रवृन्देन सरखती वन्द्यते । यत् क्रियते तत् कर्म । एतदनेकधा । निर्वर्त्य विकार्य - प्राप्यभेदेन त्रिधा । इष्टानिष्टानुभयभेदात् पुनस्त्रिधा । तथा अकथितं कर्म कर्तृकर्म च । यत्पूर्वमसज्जायते जन्मना वा प्रकाश्यते तन्निर्वर्त्यम् । असज्जायते यथा कारुः कटं करोति । जन्मना प्रकाश्यते यथा - माता सुतं सूते । यत् सतो गुणान्तराधानात् प्रकृत्युच्छेदतो वा विकारं प्रतिपद्यते तद्विकार्यम् । - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत गुणान्तराधानात् यथा- स्वर्णकारः स्वर्णं कुण्डली कुरुते । प्रकृत्युच्छेदतो यथा-अग्निः काष्ठं दहति । यत्र क्रियाकृतो विशेषो नास्ति तत् प्राप्यम् । यथा-चाक्षुषः सूर्यं पश्यति। यदीप्सितं तदिष्टम् । यथा-बालो मृष्टान्नमत्ति । यद् द्विष्टं सत्प्राप्यते तदनिष्टम् । यथा- अन्धः सर्व लङ्घयति। यद्वा कण्टकान् मृद्राति । यत्रेच्छाद्वेषौ न स्तस्तदनुभयम् । यथा-पान्थो ग्राम गच्छंस्तरोर्मूलान्युपसर्पति। दुहादीनां धातूनां प्रयोगे यद् द्वितीयं कर्म तदकथितम् । तच्च यथा- गोपो गां पयो दोग्धि। मुख्य - गौणकर्मभेदमाहयचोपज्युयमानं पयःप्रभृति तन्मुख्यं कर्म । यत्र निमित्तमपरं तद्गौणं कर्म। तच गोप्रभृति नीयमानं भारादि । नीवह्यादेर्धातुगणस्य प्रधानं कर्म। तत् तव्यादौ प्रत्यये उक्तसञ्जम् । यथा-देवदत्तेन भारो ग्रामं नेयः। दुहि याचि रुधि प्रच्छि भिक्षि त्रुवि शासि चित्राः, नी वहि जि मोषि दण्डि मोदि कृषि मन्थि हृञ् प्रभृतयश्च धातवोऽपादानादिविधि बाधित्वा द्विकर्मका भवन्ति । यथा - मुनिः कृतकोपं शमं याचति । अविनीतं विनयं याचति । अत्र याचिरनुनयार्थी ग्राह्यस्तेनास्य भिक्ष्यर्थाद् भेदः । सत्ता शुद्धि समृद्धि वृद्धि शयन स्थानासन दीप्ति लज्जा जीवन रोदन हदन नृत्य प्रलाप क्रोध सन्तोष रुचि शोक दोष मरण स्पद्धो विहार भय मदोन्माद प्रमादाद्या अकर्मका धातवः । यदुक्तम् सत्ताशुद्धिसमृद्धिवृद्धिशयनस्थानासने भासने, लज्जा जीवनरोदने च हदने नृत्ये प्रलापे क्रुधि । सन्तुष्टौ रुचिोकदोषमरणस्पर्धाविहारेषु च, ज्ञेयो धातुरकर्मको भयमदोन्मादप्रमादेषु च ॥१॥ सकर्मकाकर्मकयोलक्षणमिदम् - यदा कर्तृक्रियारूपपदद्वन्द्वात् पृथक किमपेक्षा स्यात् तदा सकर्मको धातुरन्यथा अकर्मकः । यदुक्तम् कर्तृक्रियापदद्वन्द्वात किमपेक्षा यदा पृथक् । तदा सकर्मको धातुर्विपरीतस्त्वकर्मकः ॥ १॥ अण्यन्तकर्ता ण्यन्तेषु कर्म स्यात् तत् कर्तृकर्म ज्ञेयम् । पुनरेष्वेव नीखाद्यदिहाशब्दायक्रन्दिवर्जितेषु बोधाहारगतिशब्दकर्मनित्याकर्मकधातुध्वेतद् भवति । यथा-आचार्यः शिष्यं तत्त्वं बोधयति । बोधार्थाः सामान्येन ज्ञानार्थाः। इन्द्रियगम्यार्था अपि दृश घ्रा स्पृश ध्यै स्मृ तुल्याश्च । मैत्रो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर ३ " 1 भर्तारं रमणीं गमयति । अत्र गमिर्भजनार्थस्तेन न कर्तृकर्मत्वम् । विष्णुः पार्थं समरं गमयति । अत्र गत्यर्थ एव । नयत्यादिवर्जनम् । नयतेः प्रापणोपसर्जन प्राप्त्यर्थत्वेन गत्यर्थत्वात्, खाद्यद्योराहारार्थत्वात् हाशब्दायक्रन्दां च शब्दकर्मकत्वात् प्राप्ते कर्तृकर्मत्वे प्रतिषेधार्थम् । नयति भारं चैत्रः । नाययति भारं चैत्रेण मैत्रः । खादयति पिता पुत्रेण खाद्यम् । आदयत्यन्नं चैत्रेण मैत्रः । ह्राययति चैत्रं मैत्रेण देवदत्तः । शब्दाययति चैत्रं मैत्रेण देवदत्तः । ऋन्दयति चैत्रं मैत्रेण देवदत्तः । कर्मसंज्ञाप्रतिपेधात् स्वव्यापाराश्रयं कर्तृत्वमेव । वहेरसारथिकर्तृत्वे तथा भक्षेरहिंसायां च न कर्तृकर्मत्वम् । यथा - भूपतिर्भूत्येन भारं ग्रामं वाहयति । सारथिकर्तृत्वे तु कर्तृकर्मत्वमेव । यथा - सारथिरुक्षाणं सस्यं ग्रामं वाहयति । चैत्रौ मैत्रेण मोदकान् भक्षयति । हिंसायां तु कर्तृकर्मत्वमेव । यथा-व्याधो गृहकुकुटं कीटकान् भक्षयते । हृकोः कर्ता णिगि वा कर्म भवति । यथा - स्वामी भृत्यं भृत्येन वा भारं ग्रामं हारयते । वणिक कारू कारुणा वा कटं कारयते । दृइयभिवाद्योः कर्ता आत्मनेपदे वा कर्म भवति । यथा - राजा लोकं लोकेन वाऽऽत्मानं दर्शयते । पिता पुत्रं पुत्रेण वा पूज्यमभिवादयते । केचिच्चौरादिकस्याप्यभिवादेः कर्म वेच्छन्ति । अविवक्षितकर्मधातोरणि कर्तुर्णी वा कर्मत्वम् । यथा - मैत्रेयचैत्रं चैत्रेण वा पाचयते । पिता पुत्रेण पाचयति । आख्यात -समास - तद्धित - कृद्भिः कर्मण उक्तत्वं स्यात् । आख्यातेन यथा - कुम्भकारेण कुम्भः क्रियते । समासेन यथा - आरूढवानरो वृक्षः । तद्धितेन यथा - शत्यः शतिकश्च पटः । शतेन क्रीतः शत्यः शतिकञ्च । कृता यथा- तैः कटः कृतः । अथवा एकस्य द्विकर्मणो धातोरुभयत्राप्युक्तत्वम् । बोधाहारार्थशब्दकर्मवतां णिगि सति पर्यायेणोभयत्राप्युक्तत्वम् । बोधार्थादीनां यथा - गुरुणा शिष्यो धर्मं बोध्यते, शिष्यं वा धर्मो बोध्यते । दात्रा अतिथिः ओदनं भोज्यते, अतिथि वा ओदनो भोज्यते । गुरुणा शिष्यो ग्रन्थं पाठ्यते, शिष्यं वा ग्रन्थः पाठ्यते । गत्यर्थाकर्मणां णिगि मुख्यं कर्म उक्तं स्यात् । यथा - तैमैत्रो ग्रामं गम्यः, तैमैत्रो मासमास्यते । षट् कारके तु णिगि प्रोक्तमन्यद्वा कर्म कर्मजः प्रत्ययो वक्ति । यथा - स तैमैत्रं ग्रामो गम्यः । तैमैत्रं मास आस्यते । क्रियाविशेषणस्यापि सकर्मकधातुषु नपुंसकत्वमेकत्वं कर्मत्वं च प्रयुज्यते । यथा - एवा ब्राह्मणी स्तोकं पचति सर्वं खादयति च । कुम्भः शीघ्रमुत्पद्यते । गलिगः सुखं जीवति । कर्मोपसंहारः कथ्यते । इत्येतत् प्राप्यं निर्वर्त्य विकार्य चेति त्रिधा इष्टानिष्टानुभयभेदैर्नवधा स्यात् । तत्पुनः प्रधानेतरभेदाभ्यामष्टादशधा । इति संक्षेपेण कर्मप्रपञ्च दर्शितः । 1 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि-कृत अथ करणम् । येन क्रियते तत् करणम् । तद् द्विधा - बाह्यमाभ्यन्तरं च । बाह्यं यथा - दात्रेण व्रीहीन् लुनाति । आभ्यन्तरं यथा - मनसा मेरुं गच्छति । अस्य करणस्य कारकान्तरतः स्वकाङ्क्षया प्रकर्षो न । यथा - दात्रैः शस्त्रैर्नखैर्वयो लूनाः । तद्बहुधाऽपि । एष रुद्रीय पशुं ददातीत्यर्थे कर्मणः करणसंज्ञा संप्रदानं च कर्म स्यात् । एष पशुना रुद्रं यजति । तथा समविषमयोः कर्मत्वे करणं भवति । यथा समेन धावत्यश्वः । विषमेण I धावत्यश्वः । ४ अथ संप्रदानम् । तत् संप्रदानं यस्मै पूजानुग्रहकाम्यया दित्सा | संप्रदानं त्रिधा - अनुमन्तु प्रेरकं अनिराकर्तृ चेति । ददामीति वचनं श्रुत्वा एवं कुर्वित्यनुमन्यते तदनुमन्तृ । यथा - यजमानो गुरवे गां ददाति । यच्च देहीत्युक्त्वा दातारं प्रेरयति तत् प्रेरकम् । यथा - द्विजाय गां देहि । यन्नानुमन्यते नापि प्रेरयति किन्तु मूकवदास्ते तद् अनिराकर्तृ । यथादेवाय हेम दत्ते, राज्ञो दण्डं दत्ते, प्रतः पृष्ठिं दत्ते । अत्र दित्सा नास्ति । भट्टस्य शतं दत्ते । अत्र च नार्चानुग्रहकाम्यया दानं तेन न सम्प्रदानम् । तदेव संप्रदानं यत् त्यागभावयुक्तं स्यात् । दीयमानेन संयोगाद् यदि स्वामित्वं लभते । रजकस्य वस्त्रं दत्ते । अत्र त्यागाभावस्तेन न सम्प्रदानम् । द्विजस्य भाटकेन गृहं दत्ते । अत्र स्वामिता न । गृहस्य स्वामी हिजो न भवतीति न सम्प्रदानम् । अथापादानम् । यस्मादपायस्तदपादानम् । तदचलं चलं च । अचलं यथा - वृक्षात् पर्णं पतति । चलं यथा - धावतोऽश्वादपतदश्ववारः । I अथाधिकरणम् । आधारोऽधिकरणम् । तत् पद्मकारम् । वैषयि कम् १, औपश्लेषिकम् २, आभिव्यापकम् ३, नैमित्तिकम् ४ सामीप्यकम ५, औपचारिकम् ६, चेति । विषयो नान्यत्र भावः । यथा - दिवि देवाः सन्ति । यत्रैकदेशसंयोगः स उपश्लेषः । यथा - चैत्रः कटे आस्ते; गृही गृहे तिष्ठति । यत्र सर्वाङ्गसंयोगस्तदभिव्यापकम् । यथा - तिलेषु तैलम्, दनि घृतम् । यस्य यन्निमित्तं तन्नैमित्तिकम् । यथा - शूरो युद्धे संनह्यते, व्याधो दन्तयोः कुञ्जरं हन्ति । समीपमेव सामीप्यम् । यथागङ्गायां घोषः, गङ्गासमीपे घोष इत्यर्थः । शकुनिर राकाशे याति, भक्तिमान् गुरौ नमति । यदुपचाराद्भवेत्तदौपचारिकम् । यथा - अङ्गुल्यग्रे करिशतमास्ते । अस्यायमिति सम्बन्धः । षष्ठ्युत्पत्तिस्तु मुख्यात् । तस्माद्विवक्षया सर्वाणि कारकाणि भवन्ति । स्वस्वामित्वादिभेदेन षष्ट्यधिकशतमर्थाः Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर सन्ति । स्वस्वामित्वे यथा-राजा भूमेः पतिः, अयं गवां स्वामी। जन्यजनकसम्बन्धे यथा-पार्वतीपरमेश्वरी जगतः पितरौ। वध्यवधकभावे यथा-हरिः कंसस्य हिंसकः । भोज्यभोजकभावे यथा-मयूरोऽहेर्भोक्ता। धायेधारकभावे यथा-भृत्यश्छन्नस्य धारकः। उक्ता अनुक्तविभक्तयः। अथोक्तविभक्तीराह । तत्रोक्तः कर्ता यथा-जिनो जयति । कारको देवदत्तः । वैयाकरणः पुरुषः । कृतप्रणामो जनः । एवमादिष्वाख्यातकृत्-तद्धितप्रत्ययानां समासस्य च कर्तरि विहितत्वादुक्तः कर्तेत्युच्यते। उक्ते कर्तरि प्रथमैवेति न्यायात्, प्रथमा ।१।। 'जैनेन जीवदया क्रियते' इत्युक्तं कर्म । २। 'लात्यनेनेति लानीयं चूर्णम्' इत्युक्तं करणम् । ३।। 'दीयतेऽस्मै इति दानीयो ब्राह्मणः, एवं दक्षिणीयो ब्राह्मणः' इह संप्रदाने ईयप्रत्ययः, एवं 'दत्तभोजनोऽतिथिः' समासोऽत्र संप्रदाने । एवमादिषूक्तत्वात् संप्रदाने प्रथमा ।४। उक्तमपादानं यथा- 'विभेत्यस्मादसौ भीमो राक्षसः', एवं 'उच्छिन्नजनपदो देशः' समासोऽत्रापादाने । एवमादिपूक्तत्वादपादाने प्रथमा।५। ____ उक्तमधिकरणं यथा- 'आस्यतेस्मिन् तदासनम्' करणाधिकरणयोश्चेत्यधिकरणे युट् । एवं 'वटकिनी पौर्णमासी' प्रायेण वटकानि भुज्यन्तेऽस्यामित्यधिकरणे तद्धितेऽन् प्रत्ययः । एवं 'मत्तबहुमातङ्गं वनम्' समासोऽत्राधिकरणे । एवमादिषूक्तत्वादधिकरणे प्रथमा । ६। उक्तसम्बन्धो यथा-गावो विद्यन्तेऽस्य गोमान् देवदत्तः, एवं चित्रगुर्देवदत्तः। समासोऽत्र सम्बन्धे । एवमादिषूक्तत्वात्सम्बन्धे प्रथमा।७। इत्युक्तविभक्तयः। .. अयोक्त्युपयोगिनस्तदक्षरशब्दसंस्काराः केचित्तदर्थशब्दसंस्कारा अपि दयन्ते [देश्यशब्दाः तेषां संस्कृतरूपाणि च ।। अरिहंत अर्हन् । सूरिज सूर्यः । सुहगुरु शुभगुरुः। मगसिरनषत्र मृगशिरोनक्षत्रम् । ओझउ उपाध्यायः । आदरा आर्द्रा । आचारिज आचार्यः । असलेस अश्लेषा । ठवणारी स्थापनाचार्यः। सनीचर शनैश्चरः। साध साधुः। राह राहुः । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि - कृत केत केतुः। भइरव भैरवः । सुषमाअरउ सुषमारकः । गोरी गौरी। दुषमाअरउ दुःषमारकः। चाउंडा चामुण्डा । मुहूरत मुहूर्तः। श्रीवच्छ श्रीवत्सः। अंधारउ अन्धकारम् । लखमी लक्ष्मीः । अमावस अमावास्या। सरसती सरस्वती । पोस पौषः। सारद शारदा । माह माघः। सूगडांग सूत्रकृताङ्गम् । फागुण फाल्गुनः। ठाणांग स्थानाङ्गम् । चेत चैत्रः। सज्झाय खाध्याय । पहेली प्रहेलिका। वइसाख वैशाखः। जेठ ज्येष्ठः। वातचीत वा चिन्ता। आसाढ आषाढः। ऊतर उत्तरम् । सावण श्रावणः । असोई उपश्रुतिः। भाद्रवउ भाद्रपदः। चाटुकारिया चाटुकारिकाणि आसू आश्विनः। वचन वचनानि । साच सत्यम् । काती कार्तिकः । छ रितु षड् ऋतवः। कूड कूटम् । ऑलंभउ उपालम्भः । सरतकाल शरत्कालः। आण आज्ञा । वरसालउ वर्षाकालः । वाजित वादित्रम् । वरस वर्षम् । वाजउ वाद्यम् । अहोरात अहोरात्रः। अवाज आतोद्यम् । ततकाल तत्कालम् । पडहङ पटहः । आगास आकाशम् । आशंक आशङ्का । मेह मेघः । चोज चोद्यम् । करा करकाः। अचरिज आश्चर्यम् । पूरव दिश पूर्वा दिक् । आंसू अश्रुः । दक्खिण दक्षिणा । नींद निद्रा। पच्छिम पश्चिमा । स्वस्थपणउ स्वास्थ्यम् । उत्तर उत्तरा। उच्छुकपणउ औत्सुक्यम् । विदिस विदिक् । आलस आलस्यम् । अपछर अप्सरसः। जिणचंदभट्टारक जिनचन्द्रभट्टारकाः। जउराणउ यमराजः। छावडउ शावकः । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंअर कुमारः । जोवन यौवनम् । बूढउ वृद्धः । वडपण वार्द्धकम् । सीख्य शिक्षितः । विन्यानी वैज्ञानिकः । कुच्छित कुत्सितः । कायर कातरः । घातकू धातुकः । चोरी चौरिका । वणीमग वनीपकः । सालू ईर्ष्यालुः भूखियउ बुभुक्षितः । भूख बुभुक्षा । त्रिसियउ तृषितः । भात भक्तम् । मांड मण्डः । तीमण तेमनम् । घेवर घृतवरः । दूध दुग्धम् । दही दधि । खीर क्षैरेयी । मांखण क्षणम् । रांध्यउ राद्धम् । सीध सिद्धम् । कांजी काञ्जिकम् । वेसवार वेषवारः । चूक चुक्रम् । आमलवेतस आम्लवेतसः । राई राजिका । धाणा धान्यकम् । पीपल पिप्पली । त्रिगडू त्रिकटु | उक्तिरत्नाकर जीउ जीरकः । हींग हिङ । चाबण चर्बणम् । कलेव कल्यवतः । धायउ धातः । आपणी धाय आत्मीयप्रातः । श्रेठ धृष्टः । विलख विलक्षः खास कासः । खाज खर्जूः । गड गडुः । को कुष्ठः हिडकी हिका । फोडर स्फोटकः । व्याऊ विपादिका । लेह लेखकः । मसि मषी मसी वा । सेठि श्रेष्ठी । जूआरउ द्यूतकारकः । पासउ पाशकः । आणी सुवासिनी । वहू वधू । जानी जन्याः । पणीहारि पानीहारिका । sोहल दोहदम् । पूत पुत्रः । भात्रीजउ भ्रात्रीयः । भाणेजउ भागिनेयः पोत्रउ पौत्रः । दोहीत्र दौहित्रः । गोल गोलकः । भाई भ्राता । पीरियड पितृव्यः । ७ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत सालउ श्यालः । साली श्याली। माउलउ मातुलः । बहिणि भगिनी । नणंद ननान्दा । बाप बप्पः। माइ माता। धाई धात्री। सासू श्वश्रूः । सुसरउ श्वशुरः। पितर पितरः । सयणाचार स्वजनाचारः। आपणउ आत्मीयः । सगउ खकः। सयर शरीरम् । मडउ मृतकः । मुंड मुण्डः। माथइ भमरउ मस्तके भ्रमरकः । सिमथउ सीमंतः। पली पलितम् । मुहडउ मुखकम् । निलाड ललाटः। कान कर्णः । आंखि अक्षि । कीकी कीका। भिउडी भृकुटिः । नाक नकम् । होठ ओष्ठः । गाल गल्लः । मूंछ श्मश्रु । दाढी दाढिका। दाढ दाढा। जीभ जिह्वा । तालुयउ तालुकम्। घांटी घण्टिका। गाबडि प्रीवा। खांधउ स्कन्धः । काख कक्षा । पासउ पार्श्वम् । कुहणी कफणिः । कलाई कलाचिका। हाथ हस्तः । आंगुली अङ्गुलिः । अंगूठउ अङ्गुष्ठः । विहथि वितस्तिः । ताली तालिका। मूठि मुष्टिः। चलू चलुकः। घाम व्यामः । पुरस पौरुषम् । पूठउ पृष्ठम् । उच्छंग उत्सङ्गः। कालिजउ कालेयम् । तिली तिलकः । प्लीह प्लीहा। आंत्र अत्राणि । कडि कटिः । पूंद पुतौ । चूति च्युतिः । आंड अण्डम् । साथलि सक्थि । जांघ जङ्घा। पीडी पिण्डिका। चूंटी घुण्टकः । पान्ही पाणिः । लोही लोहितम् । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर हाड हडम् । पांसुली पशुका। मीजी मज्जा । चांमडी चर्मिका । नस नसा। लाल लाला। वीठ विष्ठा । गृह गूथम् । वेस वेषः। मांडणउ मण्डनम् । पडवास पटवासकः । कपूर कर्पूरः । अगर अगुरु। जाइफल जातिफलम् । कुंकू कुङ्कुमम् । लउंग लवङ्गम् । मउड मुकुटम् । गुथिवउ ग्रन्थनम् । सेहरउ शेखरः । वाली वालिका। कडउ कटकः। नेउर नूपुरम् । तंत्र तन्त्रकम् । चलणी चलनी। कांचली कञ्चलिका। साडी शाटी। कच्छोटउ कच्छापटः। काछडी कच्छाटिका । नातणउ नक्तकः। पछेवडउ प्रच्छदपटः। गूणि गोणी। पालथी पर्यस्तिका। नउद नवतः। उ.र.२ आथर आस्तरः। चंद्र्यउ चन्द्रोदयः। गुलणी गुणलयनिका । मांचउ मञ्चकः। खाटि खट्टा । उसीसउ उच्छीर्षकम् । आरीसउ आदर्शः। अलतउ अलक्तकः । लाख लाक्षा। काजल कज्जलम् । दीवउ दीपः । दसी दशा। वीझणउ व्यजनकम् । कांकसी कङ्कतिका। तंबोलरी थई ताम्बूलस्य स्थगी । महतउ महामात्यः । सुंक शुल्कः । अंतेउर अन्तःपुरम् । बहरी वैरी। मित्राई मैत्री। हेरू हैरिकः। लांच लञ्चा। गूझ गुह्यम् । असवार अश्ववारः। अंगरखी अङ्गरक्षी। धनुष धनुः। वेझ वेध्यम् । खयडउ खेटकः। मोगर मुद्गरः । प्रयाणउ प्रयाणकम् । राडि राटिः। धाडि धाटी। सराध श्राद्धम् । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत दीख दीक्षा। कातरि कर्तरी । ईधण इन्धनम् । कातरणी कर्तनिका । राख रक्षा। त्राकलउ तकुः । छार क्षारः। पीजणउ पिञ्जनम् । जनोई यज्ञोपवीतम् । वरता वरना । . वणिज वाणिज्यम् । आर आरी। मूल मूल्यम् । सूत्रहार (सूथार) सूत्रधारः । संचकार सत्यङ्कारः । वांसोली वासी। नाव नौः। करवत करपत्रकम् । बेडी बेडा । टांकुलउ टङ्कः । उधार उद्धारः । लोहार लोहकारः। पडहू प्रतिभूः। कंदोई कान्दविकः । साखी साक्षी। नावी नापितः । गाउ गव्यूतम् । आहेडर आखेटकः । कोस क्रोशः । आहेडी आखेटिकः । जोअण योजनम् । वागुर वागुरा । गोवाल गौपाल:। वागुरी वागुरिकः । आहीर आभीरः । पासी पाशिका । करसउ कर्षकः। भील भिल्लः । खेती क्षेत्री। भूइ भूः। हलरी ईस हलस्य ईषा । धरती धरित्री। मई मत्यम् । सींधव सैन्धवम् । कोदालउ कुदालः। विडलूण विडलवणम् । खणेत्रउ खनित्रम् । जवखार यवक्षारः। पराणी प्राजनम् । साजी खर्जिका । जोत्र योत्रम् । खलहाण खलधानम् । मेढी मेधी। खलउ खलम् । कारू कारः। खेड खेटम् । माली मालिकः। खंधार स्कन्धावारः। कलाल कल्यपालः। कोट कोट्टः । मद मधम् । वाणारसी वाराणसी। सूई सूची। अउज अयोध्या । सूईउ सौचिकः। ऊजयणी उज्जयिनी । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हथिणाउर हस्तिनापुरम् । आगरज अर्गलापुरम् । लाहउर लाभपुरम् । सरसउपाटण सरस्वतीपत्तनम् । बीकानयर विक्रमनगरम् । जालउर जाबालपुरम् । साचउर सत्यपुरम् । भरुअच्छ भृगुकच्छपुरम् । सुरंग सुरङ्गा । मसाण श्मशानम् । सीहदार सिंहद्वारम् । मढ मठः। परव प्रपा। बार द्वारम् । घर गृहम् । आगल अर्गला। कुंची कुञ्चिका। तालउ तालकम् । कवाड कपाटम् । छावति छदिः। मतवारणउ मत्तवारणम् । पूतली पुत्रिका पुत्रिला वा। सउगडउ समुद्गकः। मंजूस मञ्जूषा । बुहारी बहुकरी। ऊखलउ उदूखलः । किडउ कटः। मूसल मुशलः । चूल्ही चुल्लिः । घडउ घटः। अंगारसगडी अङ्गारशकटी । भाठ भ्राष्ट्राः। कडाहउ कटाहः। उक्तिरत्नाकर मउणि मणिकः । गागरी गर्गरी। मंथाणउ मन्थानकः । हिमालउ हिमालयः । सेब्रुजउ शत्रुञ्जयः । सोवनगिरि सुवर्णगिरिः। पाहाण पाषाणः । पाथर प्रस्तरः। आगर आकरः । खाणि खानिः। गेरू गैरिकम् । सोनागेरू सुवर्णगैरिकम् । खडी खटी। सिंघाण सिंहानः। काटी कट्टिका। काट कट्टः। तांबउ ताम्रम्। उअउ त्रपुकम् । कथीर कस्तीरम् । रूपउ रूप्यम् । पीतल पित्तलम् । कांसउ कांस्यम् । पारउ पारतः (दः)। सोरठी सौराष्ट्री। तूरी तुवरी । हरियाल हरितालम् । हींगलू हींगुलुः । रावटउ राजावर्तः । परवाली=प्रवाली प्रवालम् । मोती मौक्तिकम् । अथाह अस्थाघम् । आछउ अच्छम् । ओस अवश्यायः। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत पालट प्रालेयम् । बहेडउ बिमीतकः । हीम हिमम् । हरडइ हरीतकी। धूअरि धूमरी । चांपउ चंपकः। फीण फेनः । जाइ जातिः । घाट घट्टः । बीजोरउ बीजपूरकः । वेरा विदारकाः। कयर करीरः । परनालि प्रणाली । धाहडी धातकी। कूल्ह कुल्या । कउछ कपिकच्छ्रः । कादम कर्दमः । धत्तूरउ धत्तूरकः । उमाड उल्मुकम् । कउठ कपित्थः । धूअउ धूमः । नालेर नालिकेरः । बीजली विद्युत् । वांस वशः । वाउ वायुः । नागरवेलि नागवल्ली। वाडी वाटी। द्राख द्राक्षा। वेलि वल्ली। बालउ बालकम् । जड जटा। साठी षष्टिकः । छालि छल्ली। चणउ चणकः। काठ काष्ठम् । मूंग मुद्गः । मांजरि मञ्जरिः । मउठ मकुष्ठः । पान पर्णम् । गोहू गोधूमः । कली कलिका। वाल वल्लः । गोछउ गुच्छः। कुलथ कुलत्थः । विकस्यउ विकसितम् । कुलथी कुलस्थिका । गांठि ग्रन्थिः। तूंअरि तुंबरी। पीपल पिप्पलः। सामउ श्यामकः। वड वटः। कांग कङ्गुः। उंबर उदुम्बरः। चीणउ चीनकः। आंबउ आम्रः। सरिसव सर्षपः। बील बिल्वः । वथूअउ वास्तुकम् । केसू किंशुकः । कारेलउ कारवेल्लः। कपास कर्पासः। कोहलउ कूष्माण्डः। बोरि बदरी। चीभडी चीभिटी। महूअउ मधूकः । कंकोडउ कर्कोटकः । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर १३ मूलउ मूलकम् । रोहीस रोहिषः। डाभ दर्भः। ध्रोब दूर्वा । मोथ मुस्ता। त्रिणउ तृणम् । खड खटः । विस विषः । वच्छनाग वत्सनागः। कीडउ कीटः । जलो जलौकाः । कवडउ कपर्दः । करडी कपर्दिका। बांभणी ब्राह्मणी। घीवेलि घृतेली। उदेही उपदेहिका। लीख लिक्षा। जू यूका। छप्पई षट्पदी। माकण मत्कुणः । वीरू वृश्चिकः । भमरउ भ्रमरः । खजूअउ खद्योतः । मयण मदनम् । माखी मक्षिका। तिथंच तिर्यङ् । हाथी हस्ती। सुंड शुण्डा । आंकुस अङ्कुशः । घोडउ घोटकः। पूछ पुच्छम् । दामण दामाञ्चनम् । पाखर प्रक्षरः। वाग वल्गा। पलाण पल्ययनम् , पर्याणं वा । ऊंट उष्टः। करहउ करभः । गद्दहउ गर्दभः ! बलद बलीवर्दः । सांड षण्डः, षण्ढः । धोरी धौरेयः । पोठीयउ पृष्टयः। सींग शृङ्गम् । वांझ गाइ वन्ध्या गौः । ऊहाडउ ऊधः। छाणउ छगणम् । गोउल गोकुलम् । खीलउ कीलकः । कालउ छगलः। बाकरउ बर्करः । मींढउ मेण्डकः। कूकर कुक्कुरः । सीह सिंहः । वाघ व्याघ्रः। सादूल शार्दूलः । चीत्रउ चित्रकः। गइंडउ गण्डकः। सूअर सूकरः। रीछ ऋच्छः, ऋक्षो वा। स्याल शृगालः। लउंकडी लोमटिका। सिसलउ शशः । गोह गोधा। गोहीरउ गोधेरः । मूसउ मूषकः । ऊंदिरउ उन्दुरः। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत जाहर जाहकः। सास श्वासः । नउल नकुलः। आउषउ आयुः। विसहर विषधरः। कुंअलउ कोमलः। सउण शकुनः । सूंआलउ सुकुमालः। पंखी पक्षी। नीठुर निष्ठुरः । चांच चञ्चुः। महुरउ मधुरः। पीछ पिच्छम् । मीठउ मृष्टम् ( मिष्टम् )। पांख पक्षः। पांडरउ पाण्डुरः । मोर मयूरः, मोरो वा । कविलउ कपिलः। चांदलउ चन्द्रकः । सामलउ श्यामलः। कोइल कोकिलः । काबरउ कर्बुरम् । कोइली कोकिला। पांति पतिः। घूघू घूकः। थोडउ स्तोकम् । कूकडउ कुक्कुटः। ऊजलउ उज्ज्वलम् । चास चाषः। चोखउ चोक्षम् । बाबीहड बप्पीहः । नयडउ निकटम् । टींटोहडी टिट्टिभः । सासतउ शाश्वतम् । चिडउ चटकः। माझ मध्यम् । चिडी चटका । विचालउ विचालम् । बगलउ बकः। सारीखउ सदृक्षम् चील्ह चिल्लः । झांप झम्पा। सूडउ शुकः । भखउ भरितम् (भृतम्)। सारी शारिका । वींव्यउ वेष्टितम् । चामाचेड चर्मचटका। दाधउ दग्धम् । वागुलि वल्गुलिका। वीध्यउ विद्धम् । आडि आदिः । फाडियउ पाटितम् । पारेवउ पारापतः। छेदियउ छेदितम् । तीतिर तित्तिरिः। लाधउ लब्धम् । माछलउ मत्स्यः । पठावियउ प्रस्थापितम् । तन्तुअउ तन्तुः । कामण कार्मणम् । काछबउ कच्छपः । सांकडउ संकटम् । दादुर दर्दुरः। उच्छव उत्सवः । जनम जन्म । मेलउ मेलकः । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकर विधन विघ्नः। परिचउ परिचयः । काज कार्यम् । ऊपरि उपरि । आगइ अग्रतः। सांप्रत सांप्रतम् । अरिहंतभणी नमो अर्हते नमः । सद्दहियउ अद्धितम् । वांकउ वक्रम् । कुंपल कुड्मलम् । मणसिल मनःशिला। सुमिणउ स्वप्नः । पीहर पितृगृहम् । आलउ आर्द्रम् । सिढिल शिथिलम् । करीस करीषः। गुहिरउ गम्भीरम् । विहूणउ विहीनः । पीठ पीठम् । मउर मुकुरम् । गरुयउ गुरुकम् । भिंगार भृङ्गारः। वींट वृन्तम् । सिंगार शृङ्गारः। रिणउ ऋणम् । गारवउ गौरवम् । गउरवान गौरं गौरवर्णं च। सांकलउ शृङ्खलम् । छांह छाया । नीमी नीवी। झीणउ क्षीणम् । खोडउ वो(क्षौः) टकः। जट्ट जत्तः । भसम भस्म । दाहिणउ दक्षिणः । कोहली कूष्माण्डी। सलाह श्लाघा । हलुअउ लघुकः । सीप शुक्तिः। मइलउ मलिनम् । छोति छुप्तिः। अछूतउ अच्छुप्तः । हेठइ अधः। तुम्ह केरउ युष्मदीयः । अम्ह केरउ अस्मदीयः । एकलउ एकः (एककः)। नवलउ नवः । पीलउ पीतम् । काठउ गाढम् । जेवडउ यावान् । तेवडउ तावान् । वीच वर्म। वहिलउ शीघ्रम् । झगडउ झगटकः । कोड कौतुकम्। जुआ जुआ पृथक् पृथक् । समधात समधातुः। गीत धातइ गायउ गीतं धातुना गीतम् । आगइ वाघ अग्रे व्याघ्रः । पाछइ दोतडि पश्चादुस्तटी। वरतरकाटिवउ वरत्राकर्तनम् । सड्यउ शटितम् । मांडी मण्डिका । लापसी लपनश्रीः। गुलमंडा गुडमण्डका। वीनती विज्ञप्तिः। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत कञ्चोलउ कचोलकः। बीह बिभीषिका । डोइलउ दारुहस्तकः । तलार तलारक्षः । कुघाट कुघाटः। सेल शल्यः । कावडि कावाकृतिः । साल शल्यम् । चूकउ चुक्कितः । चूणि चूणिः। आरती आरात्रिकम् । फाटउ स्फाटितम् । मंगलेवउ मङ्गलदीपकः। गोफणि गोफणी। धत्तूरियउ धत्तरितः। ओठी औष्ट्रिकः । बूंब बुम्बा। कापडी कार्पटिकः । सार सारा । विसोआ विंशोपकाः । गलणउ गलनकम् । सींगडी शृङ्गिका । दंतसूकट दन्तशकटः। चाकी चक्रिका । खीचडउ क्षिप्रचटः। चकरडी चक्रिका । राब रब्बा। दोहणी दोहिनी। कणहतउ कणभक्तम् । पूत्रेलउ पुत्रकः । वेगउ वेगवान् । गूजर गूर्जरः । ऊधारइ उद्धारके। गूजरी गूर्जरी। वाहरू व्याहारकः । नाथियउ नस्तितः । हेडाऊ हेडावित्तः । अखाडउ अक्षपाटकः । धरणइ धरणके। दाणमंडही दानमण्डपिका । कूचउ कूर्चकः । मूली मूलिका। पोटली पोट्टलिका । सूली शूलिका। पोटलिया पोलिकाः। ध्रुवउ ध्रुवकः । नीसाण निःखानः। मढी मठिका। कांठलउ कण्ठकः। भमरडउ भ्रमरकः । पाहरू प्राहरिकः । गोमूत्री गोमूत्रिका । पीठी पिष्टिका । पूलउ पूलकः। अखत्र अक्षत्रम् । पुडउ पुटकः । ऑलग अवलगा। दाणउ दानकः । संधूख्यउ संधुक्षितः । सींगउ शृङ्गकम् । पहुरइ प्रहरके। किवाडी कपाटिका । लालि लल्लिः । कांबडी कंबाष्ठिका । किलकिलाट किलकिलायितम् । सउणी शकुनिकः । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावटउ पादावर्त्तः । गदहिला गर्दभिल्लाः । लात लत्ता । सेरी सेरिका । सीरवी सीरपतिः । नाहर नाखरः । रोझ रोधः । आखलउ आस्खलकः । निeras निश्रावः । डहर दहरः । मुजल मुखजलम् । महुआल मधुजालम् । सिलावट शिलावर्तकः । जाडउ जाड्यम् । मुखास मुखास्या । दंतूसल दन्तमुसलः । रती रक्तिका । बीयर बीजकः । अंको अंकुटकः । लट्टूला वडी टिः । धणिया धनीयम् । कहाणी कथानिका । खटमल खट्टामल्लः । भडिथ भडित्रम् । डाकर डात्कारः । लडी लिण्डिका । पाणी पानीयम् । पाण पानम् । जडी जटी, जटिका । सीअल शीतलिका । पाइणि पद्मिनी । पमोडी पद्मकर्कटी उ०र० ३ उक्तिरत्नाकर वही वहिका । पान्हउ प्रस्नवः । आलावउ आलापकः । अद्देसउ उद्देशकः । रांजणी रक्तचन्दनम् । खीरणी क्षीरिका | पतंग पत्र पतङ्गं वा । कुंभट कुजकण्टकः । ass बटिकः, बिभेदको वा । ', धामण धर्मणः । लेसूडउ लेखशाटकः । गोखरू गोक्षुरः । कांडी कण्डी । भांखडी भक्षटः । मरूअउ मरुबकः । एलियर ऐलेयम् । बेल बेला । खरडी खरकाष्ठका | देवल देवताली । का सुंदर कासमर्दः । संद स्यन्दः । बीजाबोल बीजकबोलः । सातपरिया सप्तपर्यायनः । पवित्री पवित्रकम् । मुहछण मुखक्षणः । हाक हक्का । हासी हासिका । नवारसउ नवायसम् । चील्हसाग चिल्लीशाकम् । पाइली पल्ली । कुंभी कुंभिका । कंसाल कंसालः । त्राकडील तुलावेलकः । १७ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रघर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत कुंपी कुम्पिका। सीलउ आहार वाइलउ हवइ कचोलर कचोलकम् । शीतल आहारो वातलो भवति । कांगउ कगः । वाछडउ गाइ धायउ ग्वालेर गोपालगिरिः । वत्सको गां धावितवान् । घिसि घृष्टिः । पात्रांरउ काप पात्राणां कल्पः। परसु परश्वः । मूठउ मुष्टः । जमवारउ जन्मवारकः । रूठउ रुष्टः गिलगिली गिलगिलिका तूठउ तुष्टः । बकोर बकरिका। राखडी रक्षाटिका। खयर वडी खदिरवटिका । काकरउ कर्करः । धनागरउ धान्यनागरम् । संदेसउ संदेशकः । काकडीरउ गिर कर्कट्या गिरः । सोनारउ मणियउ सुवर्णस्य मणिकः । कोरियउ पात्रउ कोरितं पात्रम् । विरूयउ विरूपकम् । कोरिवल कोरवणम् । संथारउ संस्तारकः । मुंहाली सुकुमारिका । पहिलउ आपइ पछइ बापइ चीठी चीष्ठिका। प्रथममात्मनः पश्चाप्पस्य । वरसोला वर्षोपलः । दसेआगलउ दशभिरर्गलः । तको आयउ तकः आगतः । गादी गब्दिका। तका मुहपती तका मुखपोतिका । धीया न पुत्ता धीदा न पुत्रः । दाम करइ काम द्रम्मः करोति कर्म । चाथ(प्र० वाघ)रि च(प्र० व )स्तरी । गहिलउ घणुं उतावलउ हवइ तूणियउ कापडउ तूर्णितं कर्पटम् । पहिलो धनमुत्तालो भवति । अढारइ नात्रा अष्टादशनात्रकाणि । आगी वीझाई अग्निर्विध्यातः । नहरणी नखहरणी, नखरदनिका वा । गुल गुलियउ गुडो गुल्यः । नखांरउ समारिवउ नखानां समारणं साकर मीठी शर्करा मिष्टा । समारचनं वा। आखा त्रीज अक्षततृतीया । सांजउ मात्राविना निरोध न करइ। भाउ बीज भ्रातृद्वितीया । संयतो मात्रकं विना निरोध न करोति । दीवाली दीपालिका । केलि कदली। होली होलिका। केला कदलीफलानि । आंबइरा मउरा आम्रस्य मयूराः । चवलारी फली चपलकानां फल्यः । लेसाल लेखशाला । धोवणी धावनिका । पोसाल पोषधशाला जयणा यतना। थांपणि स्थापनिका । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . उक्तिरत्नाकर बाउची बाकुची । घर गृहं घरो वा। ओवउ अपवर कः। अंतेउरी अन्तःपुरिका । पातली लोवडी प्रतला लोमपटी। ऊतारणउ अवतारणकम् । तंबोली ताम्बूलिकः । गांधी गान्धिकः । तेली तैलिकः । हेवउ हेवाकः । मिठाई मृष्टादिका। सुंखडी सुखादिका। ऊभउ ऊर्द्धः। बइठउ उपविष्टः । तंबोल बीडउ ताम्बूलबीटकम् । आलजाल बोलइ आलजालं ब्रवीति । सीकारा मूकइ सीत्कारान् मुञ्चति । पोईस पूतिकेशः । छानउ छन्नः। परताति परतप्तिः । राइणि राजादनी। कुंअरि कुमारी। गिलो गडूची। आंबारी कातली आम्रकर्त्तलिका ।। पुहुंक पृथुकम् । पहुआ पृथुकाः। टांक टङ्कः । मासउ माषकः। आक अर्कः । नींबू निम्बुकः । सिरघू शिग्गुः । छीकउ शिक्यम् । थूणी स्थूणी। थांभउ स्तम्भः । सीविवउ सीवनम् । सांडसउ संदंशः । मणिआर मणिकारः । आंबिली आम्लिकी। गाडी गन्त्री। डांस दंशः। मसउ मशकः । अरडसर अटरूषः । मोरसिखा मयूरशिखा। महुलेठी मधुयष्टिः । अरीठउ अरिष्टः । ल्हसण लशुनः। गाजर गृञ्जनम् । किरातउ किरातः । जीवापोता पुत्रजीवकः । थूथउ तुच्छम् । दीवडी दृतिः । भांगरउ भृङ्गराजः। अतिविस अतिविषा। धाणी धानाः । सातू सक्तवः । धररी जाली गृहस्य जालिका । गउख गवाक्षः । बाण संधियउ बाणः सन्धितः । ऊंचउ ऊछालियउ उच्चमुच्छालितः । फलहउ फलिहकः । झाड झाटः। सूआर सूपकारः । रसोई रसवती। सोनाररी मूस सुवर्णकारस्य मूषा।। कुंभार हांडी घडइ कुम्भकारो हण्डिका घटयति । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत सांखडि संखडिः संस्कृतिर्वा । दीह दिवसः । वीवाहपगरण विवाहप्रकरणम् । राति रात्रिः । पढमाली प्रथमालिका। वरसात वर्षारात्रः । कोठार कोष्ठागारम् । रखवालउ रक्षपालः। भंडार भाण्डागारम् । वासउ वासकः। अरहट अरघट्टः। कोठउ कोष्ठकः । घरटी घरिट्टिका। ओही वीट उपधिबेण्टलिका, घरट घरट्टः। उपधिवेष्टिका वा। चमार चर्मकारः । वेसाघाडउ वेश्यापाटकः। वाणही उपानत् । दंडाउंछणउ दण्डकपुञ्छनम् । सूपडउ सूर्पकम् । घीरी तरी मृतस्य तरिका । चालणी चालनी। ऊकुडउ उत्कुटुकः। नीसा मिश्रा । ऊकडू (प्र०) उत्कुटकः । लोढउ लोष्टकः। गिलोई गिरोलिका । ढल दलिः। गोआडइरउ खात्र गोवाटकस्य क्षात्रम् । नीसरणी निःश्रेणिः । पडजीभी प्रतिजिह्वा । पोली पोलिका। फोडी स्फोटिका। पूडा पूपकाः। आजिकाल्हि जतियारउ घण ठाणउ वडी वटिका। । छई अद्यकल्ले यतीनां धनस्थानकमस्ति। वडा वटकाः । दयामणउ दयामनकः । लाडू लड्डुकाः । निसूग निःशूकः । खाजा खाद्यकानि । ससूग सशूकः । ऊकरडी उत्कुरुटिका। निद्धंधस निर्द्धन्धसः । दुक्खइ करालियउ दुःखेन करालितः । भाणउ भाजनम् । साधुसंघाडउ साधुसंघाटकः ।। थाल स्थालम् । त्रेगति (डि ) त्रिकाष्टिका । थाली स्थालिका। तेरइ काठिया त्रयोदश काष्टिकाः । रांधणउ रन्धनम् । सूतउ घोरइ सुप्तो घोरयति । कातती कर्त्तन्ती। सीयालउ शीतकालः। पीजती पिञ्जन्ती। उन्हालउ उष्णकालः । पीसती पिंषन्ती। घडियालउ घटिकालयः । मूंदडी मुद्रिका । घडी घटिका। सांकली संकलिका। पहर प्रहरः। सरसवेल सर्षपतैलम् । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरनाकर अलसिवेल अतसीतैलम् । पमार परमारः। जावेल जात्यतैलम् । सोलंकी चौलुक्यः । कडुछी कटुच्छकिका। पोरवाड प्राग्वाटः । कडुछउ कटुच्छकः । भाट भट्टः । उवाणउ ठाण उद्वानं स्थानम् । ऊड उडः । चेलउ कहियइ घेणू गाइ चेल्लकः कथ्यते ओंड ओड्डूः । धेनुः । थूभ स्तूपम् । वाउलि वातोली। थडउ स्थलकम् । लूणकयरा लवणकरीराणि । रूंख रुक्षः (वृक्षः ?) पाउंछणउ पादपुन्छनकम् । वाडी वाटिका। ओघउ ओघः । देवदत्त अधूरउ पूरिसइ निसेजा निषद्या । देवदत्तः अद्धं पूरयिष्यति । चोलवटउ चोलपट्टः । आठउ अष्टकः ।। पछेवडी प्रच्छादपटी। लेव लेपः । पडघउ पतवहम् । चूंटउ घट्टकः । वींटणउ वेष्टनकम् । आंबाफाड आम्रपाली । कीटी किट्टिका। पूगीफाड पूगीफलफाली। वानी वर्णिका। गवाणि गवादनी । वानगी वर्णिका। रूतउ रुप्तः । पलीवणउ प्रदीपनकम् । कुपियउ कुपितः । राजवी राजबीजी। ऊग्रहणी उद्हणिका। काज नीवडियउ कार्य निर्वटितम् । छींडी खण्डी। जोगवटउ योगपः । पुत्रि जायइ वधामणउ नवकारवाली नमस्कारमालिका । ___ पुत्रे जाते वर्द्धमानकम् । जपमाली जपमालिका । घूघुरउ धुर्धरः । ऊछीनउ उच्छिन्नम् । सेई सेतिका। खत उपरि खार दीधउ मुंडउ मुण्डकः । ___ क्षतस्योपरि क्षारो दत्तः । कूटणउ कुट्टनम् । कडू कटुकम् । पीटणउ पिट्टनम् । निसोत निःश्रोतः। दीवाकाणउ दीपकाणः । वज वचा। फरलउ फरलः । तज त्वक् । कोटवाल कोट्टपालः। राठऊड राष्ट्रकूटः। ऊघाडिवउ उद्घाटनम् । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादर दर्दरः । पण्डितप्रवर श्रीसाधुसुन्दरगणि- कृत गुलपापडी गुडपर्पटिका। साथ सार्थः । गुलधाणी गुडधानाः। पह पथः । वलउ वलकः । माजणउ मजनम् । पीढी पीठी। जुवान युवानः। छाजउ छाद्यकम् । पोथउ पुस्तकम्। देहरइ आमलसारउ त्रापर तर्पः। देवगृहे आमलसारकः । रांपी रम्पा। गजथर गजस्तरः । वेढिमी वेष्टिमा । साभरमती साभ्रमती नदी । करंबउ करम्बः । जउणा यमुना। खेडउ खेटकः। पारस पाहाण स्पर्शपाषाणः । पाद्र पदम् । चित्रावेलि चित्रकवल्ली। सीर सिरा। गदगदवचन गद्गदवचनम् । पांजरउ पञ्जरः । मणमणउ मन्मनः । दोरउ दवरकः दोरो वा । छीतर छित्वरः । जाजरउ जर्जरः। चोरइ खात्र पाड्यउ झालरि झल्लरिका । चौरेण खात्रं पातितम् । मरमरसबद मर्मरशब्दः। मादल मर्दलः। तमक तमकः । बाउल बब्बूलः। राजान राजानकः । हीडि हिण्डिः। रोहीडउ रोहीतकः । कडणि कटिनिः । नारिंग रूंख नारङ्ग रु(वृ? )क्षः। पापड पर्पटः। धींगउ धींगः। कारटउ कारटकम् । अनाड अनाट: । कारटियउ कारटिकः। ऊकरडउ उत्कुरुटः। धड धटः । अखोड अक्षोटः। खण क्षणः । भांड भण्डः। डहरउ दहरः । चोरडउ चोरटः। पींडार पिण्डारः । लउडउ लकुटः । खारउ क्षारम् । चीकणउ चिकणः । खप्पर खर्परम् । मायउ मातः । खापरउ खपरः । गाह गाथा । चरू चरुः । सीथ सिक्थः । गात्री गात्रिका। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीखल चिखलः । पाटउ पट्टः । राजारउ पटउ राज्ञः पट्टः । खाली खिल्ली (प्र० खल्ली ) । ताल तलः । गोल गोलकः । 'वाउल वातूलः । भलि भृमलः, भ्रमि । कमलउ कामलः । हींगवणि हिपर्णी । आरति अतिः । नीठि निष्ठा । धूआ ध्रुवा । धू धुत्रः । माणी मानिका । नीक नीका' । कणी कणिका । मजीठ मञ्जिष्ठा । ऊन ऊर्णा । प्रतीठ प्रतिष्ठा । पाज पद्या । सेस शेषा 1 उतिरत्नाकर वेठि विष्टिः । गिरठि गृष्टिः । काणि कानिः । पासा केवली पाशककेवली । संधूखण संधुक्षणम् । नाणउ नाणकम् । गाण पिंगाणम् । पिंगाणी पिङ्गाणिका । सयर वलि शरीरे वलिः । कुढि कुष्ठी । कुट्ट कुट्टी | हुडुक हुडुकः । मोगर मुद्गरम् | अंकोल अङ्कोठः । वाटि वत्तिः । आखर अक्षतः । आखा अक्षताः । आबू अर्बुदः । खीरणी क्षीरिणी । क्यार केदारः । दी मंदिर द्वीपमन्दिरः । पुडर पुटः । पडल पटलम् । कांद कन्दः । डोडी दोडी । ईसा । भालि भलिः । पालि पछि । चाचरि चचरिः । खली खलिः । तूली तुलि: । फूटी काकडी स्फुटिकर्कटी । कांबी कम्बिः । प्रत्यन्तरे टिप्पनकम् -१ हस्तपादावमर्दनो रोगः । २ सारिणिः । काठीहारउ काष्ठाहारकः । ह्रींडिया हिण्डिकाः । राउलउ राजकुलम् | वाटली वलिका । थली स्थली । सालवी शालापतिः । २३ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जो यौटकम् | अणहारउ अनुहारः । आंक अङ्कः । कोडिका भाडs कोटिटंका भाटकम् । रांक रङ्कः । साग शाकम् । हरी हरितकम् । सूग शूका । वधूवर पुंखिय वधूवरं पुंखितम् । सिघ शिखा । गूंद गोन्दः । खजूर खर्जूरम् । खजूर खर्जूरकः । राई राजि: । सांन सञ्ज्ञा । पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि-: आटउ अट्टः । चून चूर्णम् । चूनउ चूर्णकः । कुंकुम् । कूड कूटम् । व्रणरउ पाटड व्रणस्य पट्टः । सिलापट शिलापट्ट: । मांचइरी वडी मञ्चकस्य वटी । वाटभोजन वाटभोजनम् । वाड वृतिः । कूआकंठइ कूपकण्ठे । तपरी काष्ठा तपसः काष्ठा । कुंढगोठि कुण्ठगोष्टी | कुंठसस्त्र कुण्ठं शस्त्रम् । कोठ असुद्ध कोष्ठः अशुद्धः । निवाय कोठउ निर्वातः कोष्ठः । नीठ किre निष्ठया कृतः । भली निष्टा भव्यनिष्ठा । -कृत छट्ठीलिखित षष्टीलिखितम् । तापसरी कुण्डी तापसस्य कुण्डी । तीरथइ कुंड तीर्थे कुण्डः । खंडी थाली खण्डी स्थाली । खांड गोधड खंडो गोधवः I पिण्डखजूर पिण्डीखर्जूरम् । प्रसादरा खण प्रासादस्य क्षणाः । कुंभी पर थांभर कुम्भ्या उपरि स्तम्भः । बस्तुरी वाणि वस्तुनो वाणिः । जायउ पूत जातः पुत्रः । रातउ रक्तः । विरत विरक्तः । लोकांरी सोइ लोकानां श्रुतिर्वाता । वस्त्रगांठ वस्त्रग्रन्थिः । गलगांठी गलग्रन्थयः । मांदउ मन्दः । रांध धान रन्ध्यं धान्यम् । गंगेटी गङ्गेष्टिका | गाभरू गर्भरूपम् । वाछरू वत्सरूपाणि । वाछडा वत्सकाः । ठाणउ स्थानकम् । वणी वनी, खं वनम् । कांसीवाज कांस्यवाद्यम् । सीख शिक्षा । छुरउ छुरः । खुरज क्षुरः । कुंभारर चाक कुम्भकारस्य चक्रम् । autos काम्पिल्यम् । टार टारः । धानघरी तरी धान्यघृतस्य तरी अवस्था । सापर दर सर्पस्य दरः डर दरः । Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ उक्तिरत्नाकर नेत्रउ नेत्रम् । देहरइरउ निकरउ देवगृह स्य निकरः । सीहरी फाल सिंहस्य फालः । वालर काकडी वल्लूरकर्कटी । फालरउ परिधान फालस्य परिधानम् । कुचेल कुचेलः । घररा वला गृहस्य वलयः । पुष्फपडली पुष्पपटली । रूखउ रूक्षम् । मयणहल मदनफलम् । पास पार्श्वम् । खडगरउ पडीआर खड्गस्य प्रत्याकारः । खाटकी खट्टिकः । वाहर व्याहरा। हाटडी हट्टिका । वाहरू व्याहरिकः । माथइ खोल मस्तके खोलकः । गुणणी गुणनिका । सेजगंडुआ शय्यागण्डकाः ।। घाघर नदी घर्धरिका नदी । धणिया ओसड धनिका ओषधम् । चउपउ चतुष्पदम् । घरधणियाणी गृहधनिका । छीकणी छिकिका । पाडउ पाटकः । कसी कषीका, कशी वा। साथियउ खस्तिकः । कुसि कुशा। भस्मसूत भस्मसूतकम् । समि कियउ समीकृतः । सूआ सूचकाः । सिम कियउ सिमीकः। बीजी भूमि द्वितीया भूमिका । पालणउ पालनकम् । भूमिका रचना । परचूरणि लेखउ प्रचूर्णि लेख्यकम् । काकीडउ कर्किडः, काकपिण्डः । बावनउ चंदन द्विपञ्चाशकं चन्दनम् । दोहडउ द्रोहाटः । पादरियउ पाद्रिकः । चीपिडउ चिपिटः । गामडिउ ग्रामटिकः । गायारउ चरउ गवां चरणम् । धूणियउ धूनितम् । मकनउ हाथी मत्कुणो हस्ती। कुरुटतउ कुरुटन् , कुरुट धातुः । करमदउ करमर्दकः । रुलियउ रुलितः, रुल धातुः । घूधुरी घूघुरी। खेलणउ खेलनकम् । तिल पील्या तिलाः पीडिताः। क्रयाणारी भरणी क्रयाणकानां भरणिका। गलहथउ गलहस्तः । वलतउ वलन् । गामरउ गोयरउ ग्रामस्य गोचरः । ऊवलतउ उद्वलन् । कुंआरीरी घाघरी कुमार्या घर्घरी । गलहथियउ गलहस्तितः । कुंमारउ सोनउ कुमारं सुवर्णम् । लाहणउ लाभनकम् । कूवडउ कूवरः । हाडफूटि हड्डस्फोटिः । दादुर वाजउ द१रवाद्यम् । झामलउ ध्यामलम् । नांगर नागरम् । नीठियउ निष्ठितम् । Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत कांठउ कण्ठकः । मासिहाई मातृष्वस्त्रीयः । गोहूंरी थूली गोधूमानां स्थूला। मामउ मामकः । रवऊ रवकः । मामी मामकी । पाजणी पर्यायणिका। पाटूआली पादप्रहारिणी । अंधमूंधपणइ अन्धमुग्धिकया । अरत परत बाप सरीखउ वणवउ वयनम् । __ आकृत्या प्रकृत्या बप्पसदृशः। पहिस्खउ परिहितम् । अंगीठउ अग्निपीठम् । आधासीसी अर्द्धशीर्षी । ऊघड दूघडउ उद्घटदुर्घटम् । काकडासींगी कर्कट शृङ्गिका । चीफाड चित्तस्फोटकः। नासिवा करतउ नष्टुं कुर्वन् । निलखणउ निर्लक्षणः । मेथीरा लाडू मेथ्या लड्डुकानि । अही' अधेनुकम् । पीपलरी पीपी पिप्पलस्य पिप्पका । उपरि ठाई उपरिस्थायी। विहाणउ विभातम् । कांकसी कचाकर्षणी। बहिरउ बधिरः । हथीयार हस्ताधारः। सिरीस शिरीषः। कउसीसउ कपिशीर्षकम् । फूटरउ स्फुटतरः । मुखामुखि मुखामुख्यता । जानीवासउ जन्यावासकः । गोगीडउ गोकीटः । ऊधंधलु उद्धूलिकम् । ऑलउ उपालयः। उसीआलु अस्पृष्टालयम् । नीकउ निष्कः । बूंघटउ अवगुण्ठनम् । कल्होडउ कलभोत्कटः । आहर जाहर एहिरे याहिरा । आलीगारउ अलीककारः । चांद्रिणु चन्द्रिकालयम् । पाटू पादधातः । धणीवउ धन्यवयाः । दीवी दीपिका । नीखणियामउ निःक्षणकर्मा । भंजवाड भङ्गपातः । मेराईउ मेरायकम् । पडाई पताकिका। वादलउ वारिदपटलम् । पेलावेलि प्रेराप्रेरि। अभोखउ अभ्युक्षणम् । वियारियउ विप्रतारितः । ऑलखउ उदकोदञ्चनः। छेतरियउ छलान्तरितः । पछोकडउ पश्चादोकः । दडबडाइड द्रवकघातितः । उपवासीउ उपोषितः । खाजहलउ खाद्यफलम् । पोसहथउ पोषधस्थः । पीजहलउ पेयफलम् । हियाविउँ हृदयार्पितम् । वाउलउ वार्तालयः। फुईहाई पितृष्वस्त्रीयः । ऊजाणी उद्यानिका । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ उक्तिरत्नाकर भोगल भुजार्गला। ताहरुं त्वदीयम् । मेहरू महत्तरः । माहरूं मदीयम् । देखाविखि दृष्टापेक्षा। तुम्हारु युष्मदीयम् । वरांसियउ विपर्यस्तः । अम्हारं अस्मदीयम् । आज अद्य । किसउ कीदृशः । काल्हि कल्ये। जिसउ यादृशः । परम परे द्यविः । तिसउ तादृशः । अरीम अपरेयुः । अन्यस्मिन्नहनि । इसउ ईदृशः। __ अन्येयुः । अनेसउ अन्यादृशः। आजूणउ अद्यतनम् । अम्हसरीषउ अस्मादृशः। काल्हूणउ कल्यतनम् , ह्यस्तनम् । तूंसरीषउ त्वादृशः । हिवडां इदानीम् । मूंसरीषउ मादृशः । अहुण अधुना। तुम्हसरीषउ युष्मादृशः । हिवडांगें आधुनिकम् । जेतलुं यावन्मात्रम् । मुहिया मुधा । तेतलुं तावन्मात्रम् । जिम यथा । एतलु एतावन्मात्रम् , इयन्मात्रम् । तिम तथा । केतलुं कियन्मात्रम् । जां यावत् । औरहुं अर्वाक् । तां तावत् । परहउ परतः । एकवार एकदा । बाहिरि बहिः, बाह्ये । सवइवार सर्वदा। एकपरि एकधा । जहियइ यदा। बिडंपरि द्विधा। तहियइ तदा, तदानीम् । इत्यादि। कहियइ कदा। अनेरीवार अन्यदा। 'जडपणउ' इत्यादी भावे त-त्वौ किहां कुत्र, के। यण वा । जडता, जडत्वं, जिहां यत्र । जाड्यम् । तिहां तत्र । अहुण ऐषमः, परुः परुत् । इहां अत्र । एक एकत्वसंख्यायामित्येकः । अनेतई अन्यत्र । __ 'तीशोली'ति कः। सगलइ सर्वत्र । बि द्वौ पुमांसी, स्त्रियौ, कुले च । झटकइ झटिति । दउढ यद्धः । जूउ युतः । अढी अर्द्धतृतीयः। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ त्रिण्ह त्रयः, तिस्रः, त्रीणि, पुमांसः, स्त्रियः, कुलानि वा । 'उभेर्द्वत्री' वेत्यनेन 'उभ पूरणे' इत्यस्मादिः प्रत्ययोsस्य च दूत्रे - त्यादेशौ । पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि कृत - चारि चत्वारः, चतस्रः, चत्वारि । 'चतेरुर्' इत्यनेन 'चतेग् याचने' इत्यस्मादुप्रत्ययः । पांच पञ्च 'पचुङ् व्यक्तीकरणे' 'उक्षि- तक्षी' त्यन् प्रत्ययः । छ षट् 'सहेः षष् च' इत्यनेन 'पहि मर्षणे' इत्यस्मात् किपू, षष् चास्यादेशः । सात सप्त 'षप्यशौटिभ्यां तन्' इत्यनेन 'प् समवायें' इत्यस्मात्तन् प्रत्ययः । आठ अष्ट 'अशौटि व्याप्तौ' इत्यस्मात् 'षप्यशौटिभ्यां तन् इत्यनेन तन् प्रत्ययः । नव निधान, नव निधानानि, 'णुक स्तुती' इत्यस्मात् 'उक्षितक्षी' त्यन् । दस दश्यन्ते दश । 'लूप्यूवृषी' ति किदन् । इग्यारइ एकादश । बाहर द्वादश । तेरह त्रयोदश । चउद चतुर्दश । वीस द्वौ दशतो मानमेषां संख्येयानामस्य वा संख्यानस्य विंशतिः । 'विंशत्यादय' इत्यनेन द्वेर्दशदर्थे विभावः । शतिश्च प्रत्ययः । saare एकविंशतिः । बावीस द्वाविंशतिः । वीस त्रयोविंशतिः । चउवीस चतुर्विंशतिः । पंचवीस पञ्चविंशतिः । छावीस षड्विंशतिः । सत्तावीस सप्तविंशतिः । अट्ठावीस अष्टाविंशतिः । इगुणत्रीस एकोनत्रिंशत् । त्रीस त्रयोदशतो' मानमेषां संख्येयानामस्य वा संख्यानस्य त्रिंशत् । 'विंशत्यादयः' इत्यनेन त्रेत्रिन् भावः । शश्च प्रत्ययः । एकत्रीस एकत्रिंशत् । बत्रीस द्वात्रिंशत् । तेत्रीस त्रयस्त्रिंशत् । चउत्रीस चतुस्त्रिंशत् । परंत्रीस पञ्चत्रिंशत् । छत्रीस षत्रिंशत् । समंत्रीस सप्तत्रिंशत् । अठत्रीस अष्टात्रिंशत् । इगुण चालीस एकोनचत्वारिंशत् । चालीस चत्वारो दशतो मानमेषां संख्येयानामस्य वा संख्यानस्य चत्वारिंशत् । 'विंशत्यादयः' इत्यनेन चतुरश्चत्वारि भावः शच प्रत्ययः । पनर पश्चदश । सोल षोडश । सतर सप्तदश । अदार अष्टादश । इगुणवीस एकोनविंशतिः । १ त्रयो दशतः = त्रिवारदशतः = वारत्रयदशतः, इति भावः । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ उतिरत्नाकर इगतालीस एकचत्वारिंशत् । सतसठि सप्तषष्टिः । बयालीस द्विचत्वारिंशत् ।। अडसठि अष्टषष्टिः । त्रतालीस त्रिचत्वारिंशत् । इगुणहत्तरि एकोनसप्ततिः। चउमालीस चतुश्चत्वारिंशत् । सत्तरि सप्त दशतोमानमेषां संख्येपचतालीस पञ्चचत्वारिंशत् । यानामस्य वा संख्यानस्य छयालीस षट्चत्वारिंशत् । सप्ततिः । 'विंशत्यादयः' इत्यसइतालीस सप्तचत्वारिंशत् । नेन सप्तनस्तिः । अठतालीस अष्टचत्वारिंशत् । इगहत्तरि एकसप्ततिः। इगुणपचास एकोनपश्चाशत् । बिहत्तरि द्विसप्ततिः। पचास पञ्च दशतो मानमेषां त्रिहत्तरि त्रिसप्ततिः। संख्येयानामस्य बा संख्या- चउहत्तरि चतुःसप्ततिः । नस्य पञ्चाशत्, 'विंशत्या- पंचहत्तरि पश्चसप्ततिः। दयः' इत्यनेन शत्प्रत्ययः, छहत्तरि षट्सप्ततिः। पश्चन आत्वं च । सतहत्तरि सप्तसप्ततिः। इकावन एकपञ्चाशत् । अठहत्सरि अष्टसप्ततिः। बावन द्विपश्चाशत् । इगुण्यासी एकोनाशीतिः। त्रिपन त्रिपश्चाशत् । असी अष्टौ दशतो मानमेषां चउपन चतुष्पश्चाशत् । संख्येयानामस्य वा संख्यापंचावन पञ्चपञ्चाशत् । नस्य अशीतिः, 'विंशत्याछपन षट्पश्चाशत् । दयः' इत्यनेन तिप्रत्ययः, सत्तावन सप्तपञ्चाशत् । अष्टनोऽशी च। अठावन अष्टपश्चाशत् । इक्यासी एकाशीतिः। इगुणसठि एकोनषष्टिः । व्यासी द्वयशीतिः। साठि षष्टिः । षट् दशतो व्यासी त्र्यशीतिः। मानमेषां संख्येयानामस्य वा चउरासी चतुरशीतिः। संख्यानस्य षष्टिः, 'विंशत्या- पंचासी पश्चाशीतिः। दयः' इत्यनेन षषस्तिः षश्च । छयासी षडशीतिः।। इगसठि एकषष्टिः । सल्यासी सप्ताशीतिः । बासठि द्वाषष्टिः। अव्यासी अष्टाशीतिः। त्रेसठि त्रिषष्टिः। नव्यासी नवाशीतिः, एकोननवचउसठि चतुःषष्टिः। तिवा। पइसठि पश्चषष्टिः । निऊ नव दशतो भानमेषां संख्येछासठि षट्षष्टिः। __यानामस्य वा संख्यानस्य Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत नवतिः विंशत्यादयः' इत्यनेन क्तसंख्याशब्दा उत्तरशब्दनवनस्तिः । परा योज्याः । इकाणू एकनवतिः। सहस सहस्रम् । बाणू द्विनवतिः। लाख लक्षम् । कोडि कोटिः। त्र्याणू त्रिनवतिः। बीज द्वितीयः । चउराणू चतुर्नवतिः। त्रीजउ तृतीयः । पंचाणू पञ्चनवतिः। चउथउ चतुर्थः। छिन्नू षण्णवतिः। पांचमउ पञ्चमः । सताणू सप्तनवतिः। छट्टउ षष्ठः । अठाणू अष्टनवतिः। सातमर सप्तमः । नवाणू नवनवतिः। आठमउ अष्टमः । सउ दश दशतो मानमेषां संख्ये नवमउ नवमः । यानामस्य वा संख्यानस्य दसमउ दशमः । शतम् । 'विंशत्यादयः' इत्य इग्यारमउ एकादशः। नेन दशानां शभावः तश्च बारमउ द्वादशः । प्रत्ययः। तेरमउ त्रयोदशः। एकोत्तर सउ एकोत्तरं शतम् । चउदमउ चतुर्दशः । बिडोत्तर सउ द्वयुत्तरं शतम् । पनरमउ पञ्चदशः। तिडोत्तर सउ त्र्युत्तरं शतम् । सोलमउ षोडशः । चउडोत्तर सउ चतुरुत्तरं शतम् , सतरमउ सप्तदशः । इत्यादि नवनवतिं यावत्पूर्वो- अठारमउ अष्टादशः । प्राच्यानां मते-एकादशमः, द्वादशमः, त्रयोदशमः, चतुर्दशमः, पश्चदशमः, षोडशमः, सप्तदशमः, अष्टादशमः, इति सपूर्वपदादपि नन्ताद् मो भवति। इगुणीसमउ एकोनविंशतितमः, एकोनविंशो वा। वीसमउ विंशतितमः, विंशो वा । एकवीसमउ एकविंशतितमः एकविंशो वा।। एवं नवनवतिं यावत्सर्वत्र डट-तमटौ पर्यायेण योज्यौ । षष्टिसप्तत्यशीतिनवतिशब्देभ्यः संख्यापूर्वपदेभ्यः संख्यापूरणे तमडेव, न डट् । षष्टितमः, सप्ततितमः, अशीतितमः, नवतितमः। सोपपदेभ्यस्तभावपि एकषष्टितमः एकषष्टः, एकसप्ततितमः एकसप्ततः, एकाशीतितमः एकाशीतः, एकनवतितमः एकनवतः। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सउमउ शततमः । सहसमउ सहस्रतमः । लाखमउ लक्षतमः । कोडम कोटितमः । मासमउ दिहाडउ मासतमं दिनम् । इग्यारमी एकादशी, एकादशमी वा । वीसमी विंशतितमी, विंशी वा । त्रिवाय त्रिपादः । चारोली चारकुलिका | धाड धाक । थीणउ घी स्त्यानं घृतम् । Anise कोटः । थुड स्थुडम् । उगमुगउ अवाग्मुकः । ईड अण्डकः । ऑलखाणड उपलक्षणम् । सामाई सामायिकम् । एका सणउ एकासनकम् । व्यासणउ द्व्यासनकम् । आंबिल आचाम्लम् । निवी निर्विकृतम् । पाडिहारू प्रातिहारिकम् । नोहली नवफलिका । राइत राजिकातितम् । केवल के केवलः क । काइका कर्णे का । पच्छिम कि पश्चिमायां कि । अग्गम की अग्रिमायां की । । gst कुलघु दीरas a वृद्धौ कू । मात्र के एकमात्रायां के । बिमात्र के द्विमात्रयोः कै । कानमात को कर्णमात्रयोः को । उतिरक्षाकर ३१ aaraarar at द्विमात्रकर्णेषु कौ । मस्तक के मस्तक बिन्दौ कं । आगलमींढइ कः अग्रे बिन्दोः कः । पडिवा प्रतिपत् । बीज द्वितीया । तीज तृतीया । चउथि चतुर्थी । पांचमि पञ्चमी । छठि षष्ठी । सातमि सप्तमी । आठमि अष्टमी । नवमि नवमी । दसमि दशमी । अग्यारस एकादशी । बारसि द्वादशी । तेरसि त्रयोदशी । चउदसि चतुर्दशी । पूनम पूर्णिमा । अमावस अमावास्या । जर म्हि यदि कथमपि, चेत् । पछई पश्चात् । पाछिल पाश्चात्यम् । साम्ह संमुखम् । सुगामणउ शूकाजनकम् । परायउ परकीयम् । अजी अद्यापि । तां तथापि । सांझ सन्ध्या । पहुंचउ प्रातिभाव्यम् । चउघडि चतुर्धटिकम् । उसूर उत्सूरः । आधु अर्द्ध: । पूरङ पूर्णः । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत उइलउ अर्वाचीनम् । कडिदोरउ कटीदवरकः। परलउ पराचीनम् । पग पदः। अऊठ अर्द्धचतुर्थः । लीह रेषा । साढापांच सार्द्धपञ्चकम् । हीअउ हृदयम् । काइ कुतः, कस्मात् , किम् वा । थण स्तनौ । दूबलउ दुर्बलः। रूं रोम । रलीयामणउ रतिजनकम् । भूहिरउ भूमिगृहम् । उदेगामणउ उद्वेगजनकम् । पाइक पादातिकः । सोहामणउ सौभाग्यवान् । सागडी शकटिकः । अगेवाण अग्रानीकः। दडउ कन्दुकः। चउकीवट चतुष्कपट्टः । तलाउ तटाकः । ऑरीसउ अवघर्षः । बहेडउ द्विघटकम् । सालणउ शालनकम् । चहुंटी चञ्चूपुटिका। सिली शिलाका। कावडि कपोती। पडसाल प्रतिशाला। गरढउ गतार्धवयाः। आंगणउ अङ्गणम् । वेगड विकटशृङ्गः । बारवट द्वारपट्टः। पयंतरउ प्रत्यन्तरम् । भारउट भारपट्टः । डोकरउ दोलत्करः। खूणउ कोणकम् । सीरामण शीताशनम् । डेहली देहली। सउडि संवृतिः । .. भीति भित्तिः । सीरख शीतरक्षिका। टीपणउ टिप्पनकम् । तुलाई तूलिका पाटी पट्टिका । मासी मातृष्वसा । पोथी पुस्तिका। फुई पितृष्वसा । छोह सुधा। भउजाई भ्रातृजाया । भीतरउ अभ्यन्तरम् । बिउणउ द्विगुणम् । चउगठि चतुष्काष्ठिका । तिउणउ त्रिगुणम् । पहिरणउ परिधानम् । चउगुणउ चतुर्गुणम् । आडण अङ्गमण्डनम् । वुहरउ व्यवहा । पांगुरणउ प्रावरणम् । कडब कणाबा। टीलउ तिलकः। दोटी द्विपटी। बहुरखउ बाहुरक्षकः। निद्रालखउ निद्रालक्षः । मुंदडी मुद्रिका। सांडसउ संदंशकः । .. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाथडी भस्त्रा खाट मचिका । घामांची घटमञ्चिका । आरती आरात्रिका | पोली प्रतोली । गंभार गर्भागारम् । देउली देवकुलिका | भमती भ्रमावती । सूणहर शयनगृहम् | चाचर चत्वरम् । चउरी चतुरिका | चउसालउ चतुःशालम् । दावा वट उद्वर्त्म | दारिकावाटकः । रान अरण्यम् । बाफ बाष्प: । आधरण आघ्राणं, अधिश्रयणं वा । सेवंती शतपत्रिका | कणयर करवीरः । वेल विच किलः । पाउल पाटला | पुंआड प्रनाटः । जव यवः । कोठीभse कोष्ठभेदकः । मांडा भण्डका । साकुली शष्कुली । वालहली वफलिका | खीच क्षिप्रः । खीचडी चिटिका । खारिक खाधारिका | टोपर टोपपरः । काढर काथः । तंगोटी तंगपटी | साथरउ स्रस्तरः । उ०र० ५ afrater मांची मञ्चिका । नही नखिका । वईंगणु वृन्ताकम् । हलद हरिद्रा । आदउ आर्द्रकम् । चउरसउ चतुरस्रः । धोयण धावनम् । मोकल मुत्कलः । पिहुलउ पृथुलः । गाडरि गड्डरी । जुआरि युगन्धरी । पूअरउ पूतरकः । भइरव भैरवी । भीखारी भिक्षाचरः । दांतिल दन्तुरः । खोडउ खोडः । मातर मत्तः । दोसी दौयकः । सांबलउ शम्बलम् | प्राहुणउ प्राघुणः । लाज लज्जा । पजूसण पर्युषणा । चउमास चतुर्मासकम् । अठाही अष्टाहिका । पाखखमण पक्षक्षपणम् । पोरसी पौरुषी । नवकारसी नमस्कारसहितम् । पचखाण प्रत्याख्यानम् । पडिकमणउ प्रतिक्रमणम् । पडिलेहण प्रतिलेखना | बांदण वन्दनकम् | खामणउ क्षामणकम् । कासग कायोत्सर्गः । खमासण क्षमाश्रमणम् । ३३ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ वखाण व्याख्यानम् । परंजणी प्रमार्जनिका । पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि-कृत कम (व)ली कपरिका, कपलिका वा । ठवणी स्थापनी । पायठवणउ पात्रस्थापनकम् । गोछड गोच्छकम् । पाय केसरी पात्र केशरिका । पडलउ पटलकम् । रयताणउ रजस्त्राणम् । त्रिपण तर्पणम् । कडहटर कटाहटकम् । लेखणि लेखनी | मसीजण मषी भाजनम् । ders वेधकम् । दांडी दण्डिका । आचार्यांस आचार्यमिश्राः । उपाध्यायांस उपाध्यायमिश्राः । वणारिस वाचनाचार्यः । पंड्यांस पण्डितमिश्रः । गणीस गणिमिश्रः । ओली आली । बोर बदरम् | नोमाली नवमालिका | फोफल पूगफलानि | मयगल मदकलः । अलसी अतसी । सालवाहन सातवाहनः । पलीवणउ प्रदीपनकम् । लाठि यष्टिः । कणियार कर्णिकारः । कानी कर्णिका | माटी मृत्तिका । विसंठुल विसंस्थुल: । उछाह उत्साहः । सींभ श्लेष्मा । पांभडी पक्ष्माटिका | आलाणथंभ आलानस्तम्भः । मरहठ महाराष्ट्रः । ताठउ त्रस्तः । सीख शिक्षा | जस यशः । विमासिव विमर्शनम् । डखउ दरितः । चक्र चकितः । पीपलीमूल पिप्पलीमूलम् । जोतिषी ज्योतिषिकः । निमित्ती नैमित्तिकः । ऊठिवउ उत्थानम् । ताली तालिका | तिल तिलकः । मसउ मषः । ऊवटणउ उद्वर्त्तनम् । सन्यासी सान्यासिकः । बांभण ब्राह्मणः । हुंछउ उञ्छः । पाथउ प्रस्थ: । आढउ आढकः । हाथ हस्तः । एवाल जावालः | कुटुंबी कुटुम्बी । दात्रउ दात्रम् । सुंबरी वडी बस्य वटी । सुंचल सौवर्चलम् । कुरुखेत कुरुक्षेत्रम् | कामरू कामरूपः । काछउ कच्छः । मालवउ मालवः | बंग बङ्गाः । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरनाकर अंग अङ्गाः। साइणि शाकिनी । मारू मारवः । भुइफोड भूमिस्फोटः। कसमीर कश्मीराः । ऑधाहूली अधःपुष्पी। कणउज कन्यकुब्जम् । संखाहोली शङ्खपुष्पी । कोसंबी कौशाम्बी । सोवा शतपुष्पी। चांप चम्पा। सु तद् सः । कूडी कुतूः । जो यद् यः। करवती करकपत्रिका। 'तनित्यजियजिभ्यो डद्' इति डद् । घांट घण्टा। थूथउ तुच्छम् । अउ इदम् , अयम् । हीरउ हीरकः । 'इणो दमक्' इति दमक । वेलू वालुका । एह एतद् एषः 'इणस्तद' इति तद् । फुलिंग स्फुलिङ्गः। कुण किम् , कः। ताड तालः । 'को डिम' इति डिम् । पीलू पीलु । तुं, तुम्हे युष्मद् - त्वम् , यूयम् । गूगल गुग्गुलुः । युषः सौत्रः सेवायाम् । गलियार गलिः । बिलाडउ बिडालः। हुं, अम्हे अस्मद् - अहं, वयम् । मंजार मार्जारः । 'असूच क्षेपणे' 'युष्यसिभ्यां पाढ पाठः । _क्यद' इति क्यद् । टसर तसरः। आणंद आनन्दः। अथ क्रियाविधिविभागः । त्रिविधो धातुः परस्मैपदी, आत्मनेपदी, उभयपदी चेति । तत्र परस्मैपदिधातोः कर्तरि परस्मैपदम् , आत्मनेपदिधातोः कर्तरि आत्मनेपदम् , उभयपदिधातोः कर्तरि उभयपदम् । कर्मणि भावे च त्रिभ्योऽप्यात्मनेपदमेव । प्रत्येकं विभक्तिप्राप्तिमाह - 'हवइ, दियइ, लियइ, करइ, इत्यादी वत्तेमानायाः परस्मैपदम् । 'दीजइ, लीजइ, कीजई' इत्यादौ कर्मणि वर्तमानाया आत्मनेपदम् । 'देजे, लेजे, करिजे' इत्यादौ एकारान्तवचने सप्तमी। 'देइ, लेइ, करि' इत्यादी अनुमति पश्चमी । क्रियासमभिहारे सर्वकालेषु पञ्चम्या मध्यमपुरुषैकवचनम् । क्रियासमभिहारः पौनःपुन्यं भृशार्थो वा। यथा माघकाव्ये - यो रावणः । 'पुरीमवस्कन्द लुनीहि नन्दनं, मुषाण रत्नानि हरामराङ्गनाः।' अत्रातीते काले हि। 'दीजउ, लीजउ, कीजउ' इत्यादौ कर्मणि पञ्चम्या आत्मनेपदम् । Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रघर श्रीसाधुसुन्दरगणि- कृत 'दीघउ, लीघउ, कीधउ' इत्यादी ह्यस्तन्यद्यतन्यौ परोक्षा च । 'काल्हि दीधउ' इत्यादौ ह्यस्तन्येव, न परोक्षायतन्यौ । 'आज दीघउ, आज लीधउ' इत्यादी अद्यतनी, न परोक्षाह्यस्तन्यौ । 'म देइ, म लेइ, म करि, म देसि, मलेसि, म करिसि' इत्यादी माशब्दयोगेऽद्यतनी, मास्म योगे ह्यस्तन्यद्यतन्यौ, माङ्योगे तु यथाप्राप्ते पञ्चमी भविष्यन्ती च । 'म दीधु, म लीधु, म कीधु' इत्यादौ कर्मणि माशब्दयोगे अद्यतन्याः, मास्मयोगे ह्यस्तन्यद्यतन्योः, माङ्योगे तु पञ्चम्या आत्मनेपदम् । 'जइ देत, जइ लेत, जइ करत' इत्यादौ क्रियातिपत्तिः । 'जइ दीजत, जइ लीजत, जड़ कीजत' इत्यादौ कर्म्मणि क्रियातिपत्तेरात्मनेपदम् । ‘देसिइ, लेसिइ, करिसिइ' इत्यादी, 'नही दियइ, नहीं लिया, नही करई' इत्यादौ च भविष्यन्ती । ३६ ‘दीजिसिइ, लीजिसिइ, कीजिसिइ' इत्यादी, 'नही दीजइ, नही लीजइ, नही कीजइ' इत्यादौ च कर्मणि भविष्यन्त्या आत्मनेपदम् । ‘काल्हि देसिइ, काल्हि लेसिइ' इत्यादी श्वस्तनी । ‘वर्षशत जीविसिइ, वइरी जिणिसिह' इत्यादी आशीर्युक्ते भविष्यति काले आशीः । अथ कृत्प्रत्ययप्राप्तिमाह 'देतउ, लेतउ, करतउ' इत्यादौ कर्त्तरि वर्तमाने शत्रुशानौ परस्मैपद्यात्मनेपदिनोः । उभयपदिन उभावपि । 'दीजतउ, लीजतउ, कीजतउ' इत्यादौ कर्मणि शानः | देणहार, दायकः दाता; लेणहार, लायकः लाता; करणहार, कारकः कर्ता इत्यादी वर्त्तमाने अकतृयौ । 'दीधउ' दत्तः दत्तवान् ; लीघउ, लातः लातवान्; कीधउ, कृतः कृतवान् इत्यादी अतीते क्तक्तवतू; कर्मणि क्तः, कर्त्तरि तन्तुः । गत्यर्थाकर्मकादिभ्यः कर्त्तरि क्तोऽपि । यथा-अयमागतः आगतवानपि । तथा परस्मैपदिनः कसुः, आत्मनेपदिनः कानः, उभयपदिन उभावपि । 'देइउ, लेइउ, करीउ' इत्यादौ क्त्वा, 'देवा, लेवा, करिया' इत्यादौ दातुमित्यादि शलज्ञायोगे क्त्वा प्रत्ययोक्तौ तुम् । 'करी जाणुं, पढी सकउं' कर्त्तुं जानामि पठितुं शक्रोमि, इति । 'देवउं, लेबउं, करिवउं' इत्यादौ कर्मणि तव्यानीयौ - दातव्यं दानीयम्, कर्त्तव्यं करणीयम् । कचित् क्यप् घ्यणावपि - कृत्यं, कार्यं चेति । ‘देणाहरु, लेणाहरु, करणाहरु' इत्यादौ भविष्यति काले तुमन्तात् काममनसौ, तुमो मलोपश्च । दातुकामः दातुमनाः कर्त्तुकामः कर्त्तुमनाः । 3 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ क्रियापदानि - हवइ भवति । कलइ कलयति । गिणइ गणयति । गुणइ गुणयति । चीत्रइ चित्रयति । दूषइ दूषयति । मूत्रइ मूत्रयति रचइ रचयति । विरचइ विरचयति । वर्णव वर्णयति । कहइ कथयति । परूवइ प्ररूपयति । वांटइ वण्टयति । fishes हिंदोलयति । धमइ धमति । पियइ पिबति । जायइ याति । लियइ लाति । वायइवाति । न्हायइ स्नाति । चिणइ चिनोति । ऊडइ उड्डयते । धूणइ धूनयति । करइ करोति, करता । जाग जागर्त्ति । आदर आद्रियते । धरइ धरति । भरइ भरति । मरइम्रियते वर वृणुते । हर हरति । गिरइ गिरति । उक्तिरत्नाकर तरइ तरति । गायइ गायति । ध्यायइ ध्यायति । धायइ प्रायति । सं शङ्कते । ares हिति । लिखइ लिखति । माइ मार्गयति । अरथइ अर्थति । लांघइ लङ्घते । अरचइ अर्चयति । संकुचइ संकुचति । चर्चयति । चरचइ पचइ पचति । चलुञ्चति । वाचइ वाचयति । वंचइ वञ्चयते । सोचइ शोचति । सींचइ सिश्चति । पूछइ पृच्छति । वांछ वाञ्छति । उपारजइ उपार्जति । गाजइ गर्जति 1 आंजइ अनक्ति । गुंज गुञ्जति । कूजइ कूजति । तर्जइ तर्जति । तिजइ व्यजति । पींजइ पिञ्जयति । भांडइ भण्डयति । भांजइ भनक्ति । भाजइ भज्यते । मांजर मार्ष्टि, मार्जति वा । ३७ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ लाजइ लज्जते । सरजइ सृजति । कूटइ कुट्टयति । खेडइ खेटयति । घट घटयति । चूंटइ चुण्टयति । तोडइ त्रोटयति । त्रुटति । मोडइ मोटयति । लूटइ लुण्यति । फोडइ स्फोटयति । फूटइ स्फुटति । लुठइ लुठति । ओलंडइ ओलण्डयति । क्रीडइ क्रीडति । खंडइ खण्डयति । जोडइ जोडयति । बूडइ ब्रडति । मांडइ मण्डयति । पीडइ पीडति । कीर्त्तइ कीर्त्तयति । चींतवइ चिन्तयति । नाचइ नृत्यति । पडइ पतति । आपडइ आपतति । ऊपडइ उत्पतति । कुहइ कुथ्यति । मथइ मश्नाति । आक्रंदइ आक्रन्दयति । कूद कूर्दते । खायइ खादति । निंदs निन्दति । पादइ पर्दते । पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि-कृत मर्दइ मृगाति । रोयइ रोदिति । वांदइ वन्दते । Parsa | हग हदते । ऊपज उत्पद्यते । नीज निष्पद्यते । संपजइ संपद्यते । बांधइ बध्नाति । बूझ बुध्यते । झूझइ युध्यते । रूंधइ रुणद्धि । रांधइ राध्यति । आराधइ आराध्यति । सूझइ शुध्यति । सीझइ सिध्यति । साध साध्नोति । वीधर विध्यति । खणइ खनति । जामइ जायते । मानइ मानति । हणइ हन्ति । आपइ अर्पयति । कुपइ कुप्यति । कांप कम्पते । कलप कल्पते । जपइ जपति । तप तपति । दीपइ दीप्यते । धूपइ धूपयति । लींपइ लिम्पयति । लोपइ लुम्पति । चुंबइ चुम्बति । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विलंबइ विलम्बते । खुभइ क्षोभते । खोभइ क्षोभयति । लहइ लभते। सोभइ शोभते । खमइ क्षमते । जीमइ जेमति । नमइ नमति । दमइ दाम्यति । भमइ भ्रमति । रमइ रमते । वमइ वमति । कामइ कामयते । आक्रमइ आक्रमते । खिरइ क्षरति । विचारइ विचारयति । चोरइ चोरयति । पूरइ पूरयति । मंत्रइ मन्त्रयते । निजंत्रइ नियन्त्रयति । फुरइ स्फुरति । गालइ गालयते । गिलइ गिलति । टलइ टलति । फलइ फलति । आफलइ आस्फलति । हालइ हल्लति । हीलइ हीलयति । चावइ चर्बयति । जीवइ जीवति । धावइ पही धावति पथिकः । बालक मा नइ धाव बालको मातरं धावति । उक्तिरत्नाकर सीवइ सीव्यति । सेवइ सेवति । नासइ नश्यति । विणसइ विनश्यति । डसइ दशति । पइसइ प्रविशति । फरसइ स्पृशति । काढइ कर्षति । खसइ खषति । घसइ घर्षति । घोसइ घोषति । चूसइ चूषति । पोसइ पुष्यति । भखइ भक्षति । भीखइ भिक्षते। भाषइ भाषते। भषइ भषति । मुसइ मुष्णाति । रूसइ रुष्यति । राखइ रक्षति । हीसइ हेषति । लखइ लक्षयति । वरसइ वर्षति । सुसइ शुष्यति । सीखइ शिक्षते । हरषइ हृष्यति। तूसइ तूषति । खासइ कासते । त्रासइ त्रस्यति । निरभरछइ निर्भयति । नीससइ निःश्वसिति । ऊससइ उच्छुसिति । प्रसंसइ प्रशंसति । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झूरइ खिद्यते। पण्डितप्रवर -श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत ग्रहइ गृह्णाति । छाजइ, रिजइ राजते। गरहइ गर्हति । खूपइ मज्जति । दोहइ दोग्धि । पूंजइ पुञ्जयति । दहइ दहति । विढवइ अर्जयति । मूझइ मुह्यति । जूपइ युनक्ति । वहइ वहति । उखुडइ उलूरइ त्रुटति । नीसरइ निस्सरति । घोलइ घूर्णति । ऑसरइ अपसरति । विरोलइ मथ्नाति । फाडइ पाटयति । ऊदलइ आञ्छिदइ आछिनत्ति । ठंभीजइ स्तभ्यते । फंदइ स्पन्दते । बजरड़ कथयति । मलइ मृद्गाति । दुगुंछइ जुगुप्सते। सद्दहइ श्रद्धत्ते । विसूरइ उंघइ निद्राति । हाकइ निषेधते । मिलायइ म्लायति । झखइ संतपति । ढांकइ छादयति । समाणइ समापयति । दूमइ दावयति । घातइ क्षिपति । धवलइ धवलयति । लोटई खपिति । तोलइ तुलयति । बडबडइ विलपति । मेलवइ मिश्रयति । आढवइ आरभते । भमाडइ भ्रमयति । जभाआइ जृम्भते । नसावइ नाशयति । आभिडइ संगच्छते । दाखवइ दर्शयति । ऑगालइ रोमन्थयति । प्रकासइ प्रकाशयति । देखइ पश्यति । कंपावइ कम्पयति । छिवइ स्पृशति । लुकइ निलीयते । ढंढोलइ गवेषयति । नीवडइ पृथक् स्पष्टो वा भवतीत्यर्थः । चोपडइ म्रक्षयति । आछोटइ आछोटयति । डरइ त्रस्यति । वीसरइ विस्मरति । पलोटइ पर्यस्यति । महमहइ मालती मालतीगन्धः प्रसरति। चडइ आरोहति । साहरइ, संवरइ संवृणोति । थाका थक्कति, नीचां गतिं करोति, समारइ समारचयति । विटम्बयति वा । फीटइ भ्रंशते । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ उक्तिरत्नाकर विट्टालइ अस्पृश्यसंसग करोति । ग्रसइ असते। चांपइ आक्रमति । अभ्यसइ अभ्यस्यति । पमावइ प्रमापयति । विमासइ विमृशति । हाथी गुलगुलायइ हस्ती गुलगुलायते । पडीगइ प्रतिकरोति । जललियइ उल्लालयति । छइ अस्ति । ढोकइ ढोकयति । आखइ आख्याति । पधारउ पादाऽवधार्यताम् । आवइ एति, आयाति वा । संभालइ संभालयति । ऊगइ उदेति । पलाणइ पर्याणयति । आथमइ अस्तमेति । लालइ लालयति । पूजइ पूजयति । सांधइ संधयति, संधत्ते वा । नमस्करइ नमस्करोति । हेरइ हेरयति । कुसणइ कुष्णाति । धीरवइ धीरयति । वीनवइ विज्ञपयति । भलिसुं भलिष्ये । वापरइ व्याप्रियते। ऊछलइ उच्छलति । पावइ प्रापति (प्राप्नोति ?) ऊछालइ उच्छालयति । पामइ प्रपूर्वोऽमिः प्राप्ती, प्रामति । साहइ साहयति । वीखरइ विकिरति । संबाहइ संवाहयति । परिणइ परिणयति । कूकइ कूत्करोति कुर्वते वा। वीवाहइ वीवाहयति । हकइ ढोकते। पूरइ पूर्यते। थांभइ स्तन्नाति । बीहइ बिभेति । ताकइ तर्कति । बीहावइ भापयते । निर्धाटइ निर्धाटयति । उल्लावइ उल्लवति । ऊलडइ उल्लुडयति । उल्लींचइ उल्लञ्चति । विकुर्वइ विकुर्वति । सुंघइ शिंघति । पालइ पालयति । छांडइ छर्दयति । पायइ पाययति । निरखइ निरीक्षते । बोलइ ब्रवीति । परखइ परीक्षते । जीपइ जयति । ऊवेखइ उपेक्षते । जाणइ जानाति । उध्रकइ उद्रेकते । आरंभइ आरभते। पडखइ प्रतीक्षते। सांभरइ स्मरति । समरइ स्मरति । परीछइ परेरिषेः, परीच्छति । बलइ ज्वलति । उ० र०६ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ करडइ कुन्तति । पण्डितप्रवर श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत बालइ ज्वालयति । सूअइ खपिति । मोलइ मृदु लुनाति । फेडइ स्फेटयति । विढइ विध्यति । पसीअइ प्रसीदति । माचइ माद्यति । ऑढइ अवगुण्ठते । दूमइ दुनोति । प्रोअइ प्रवयति । सुणइ शृणोति । वणइ वयते। दीखइ दीक्षते । प्रेरइ प्रेरयति । सुहायइ सुखायति । वलइ वलते। विगोवइ विगोपयति, विगूयति । आलिंगइ आलिंगति । विगूयइ विगूप्यति । वाअइ वादयति । नरनरइ नदति । छायइ छादयति । थवइ स्थगयति । लाडइ ललति । मनावइ मानयति । काट द्रउडइ द्रुताटयति । नांखइ निःक्षिपति । कुसइ क्रोशति । पखालइ प्रक्षालयति । निरंजइ नियोजयति, नियन्त्रयति वा । धोअइ धावति । कसइ कषति । संधूखइ संधुक्षते । लुणइ लुनाति । सांचइ संचिनोति । कींगायइ केकायते । अउगनाइ अपकर्णयति । खोडायइ खोडायते। ऊजालइ उज्वलयति । विहडइ विघटते। गांठइ ग्रन्थते ( प्रथ्नाति )। मीचइ मीलति । चूअइ चोतति । ऊजाइ उद्याति । थीजइ स्त्यायते। अवहथइ अपहस्तयति । वीझायइ विध्यायति । मानइ मन्यते । वीझावइ विध्यापयति । वासइ वासयति । वाधइ वर्द्धते । आलूजइ अलमुज्जति । खीलइ कीलति । पहिरइ परिदधाति । ऊमटइ उन्मज्नति । छेदइ छेदयति। पसवइ प्रसवति । पसीजइ प्रखिद्यते । मायइ माति । तीमइ तेमयति । भणइ भणति । अडवडइ अधःपतति, अधःपूर्वः पतः । पढइ पठति । सिणमिणइ शनैर्मिनोल्यम्बुदः। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ अडइ अडुति। उक्तिरत्नाकर बसवसइ बहु स्यन्दति भूमिः । उंजइ उदञ्जयति । वावइ वपति । उघडइ उद्धटते। छिवइ छुपते, स्पृशति वा । फीटइ स्फिटते । छूटइ छुट्टति । सूकइ शुष्कति । उखेलइ उत्कीलयति । खूदइ क्षुन्ते, क्षुणत्ति वा। खीलइ कीलति । सीदाअइ सीदति । वघारइ व्याघारयति । ऊगटइ उद्वर्त्तयति । वखाणइ व्याख्यानयति। भेदइ भिनत्ति । सकइ शक्नोति । सरवइ श्रवति । दंभइ दनोति । खीजइ खिद्यते । परवारइ अपारयति । विआरइ विप्रतारयति । वारइ वारयति । विंहचइ विभजति । निवारइ निवारयति । खडहडइ खटत्पतति । वरांसीयइ विपर्यस्यति । गलअलइ गलगिलति । पल्हालइ पर्याद्रवयति । पतीजइ प्रत्ययते, प्रत्येति, प्रतीयते वा । पालवइ पल्लवयति । पवीत्रइ पवित्रयति । पचारइ प्रत्युच्चारयति । पालटइ परावर्तयति, परिवर्त्तयति वा । थाहरइ स्थानमाहरति । हडहडइ हटाद्धसति, हडहडयति वा । आयसइ आदिशति । परीसइ परिवेषयति । टलवलइ टलद्वलति । वींटइ वेष्टते । कलकलइ कलकलयति । ऊवेढइ उद्वेष्टते। झणझणइ झणऽझणयति। समेटइ समेटयति । वाधइ वर्द्धयति । वीसमइ विश्राम्यति । हसइ हसति । चडइ चटति । सहइ सहते। अउलवइ अपलपति । आखुडइ आस्खलति । आचमइ आचामति । रंजइ रञ्जयति । ऊपणइ उत्पवते। सपइ शपति। वीकइ विक्रीणाति । फडफडइ पटपटायते । उघडइ उद्घटते। कडकडइ कटकटायते, चक्षुः । ऊघाडइ उद्घाटयति । उदेगइ उद्वेगयति । ऊठइ उत्तिष्ठति । हीडइ हिंडते। नीठइ निस्तिष्ठति। ऊकदइ उत्कूदते । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डितप्रवर-श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत द्रमद्रमइ द्रमद्रमति । निराकरइ निराकरोति । तडफडइ तटत्पटति, तडफडयति वा । रहइ रहति । बडबडइ तटत्रुटति । छेकइ छेत्करोति । लोटइ लुट्यति, लोट्यति, लोटति वा । छींकइ छीत्करोति । लेटइ लेट्यति । धडहडइ घटत्करोति । नाथइ नाथति, वृषं तु नस्तयति । भडहडइ भटत्करोति, भडहडयति वा । धूंसइ ध्वंसते । हाकइ हाल्करोति । पाठवइ प्रस्थापयति । फूंकइ फूत्करोति । ससइ श्वसिति । चीचूअइ चीत्करोति । वीससइ विश्वसिति । झाकई झात्करोति । गूंथइ ग्रन्थयति । थूकइ थूत्करोति । मारइ मारयति । चूकइ चूत्करोति । झंपावइ झम्पामाप्नोति । पुकारइ पूत्करोति । पीसइ पिनष्टि । मागइ मार्गयति । गाहइ गाहते । याचइ याचते। विहाइ विभाति । घूमइ घूर्णयति । आभिडइ आभ्यटति । सरइ सरति । वधावइ वर्द्धयति । उइसइ। ऑलखइ उपलक्षयति । अथ कर्मकर्तरिमोकलावइ मुत्कलापयति । राचइ रच्यते । गंधाअइ गन्धायते । पाचइ पच्यते । पडूछइ प्रतिपृच्छति । दाझइ दह्यते । औठंभइ अवष्टम्नाति, अवष्टम्भते । वाजइ वाद्यते। पलाणइ पर्याणयति । खाजइ खाद्यते । सूजइ श्वयति । लुणाइ ल्यते । सूजवइ शोफयति । घसाइ घृष्यते । वाटइ वर्त्तयति । कराअइ क्रियते । परतइ परिवर्त्तयति । जणाइ ज्ञायते । खडखडइ खटत्करोति खडखडयति वा । वधाअइ वय॑ते । उपगरइ उपकरोति । ॥ इति कतिचित् क्रियापदानि ॥ बइसइ) उपविशति । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ प्रशस्तिः । राजन्वतीं श्रीजिनराजिसन्ततिं कुर्वत्सु शश्वजिनचन्द्रसूरिषु । सूरीकृतश्रीजिनसिंहसूरिषु युगप्रधानेषु महोगभस्तिषु ॥ १॥ खरतरगणपाथोराशिवृद्धौ मृगाङ्का, यवनपतिसभायां ख्यापितार्हन्मताज्ञाः । प्रहतकुमतिदर्पाः पाठकाः साधुकीर्ति प्रवरसदभिधाना वादिसिंहा जयन्तु ॥ २ ॥ तेषां शास्त्रसहस्रसारविदुषां शिष्येण शिक्षाभृता __ भक्तिस्थेन हि साधुसुन्दर इति प्रख्यातनाम्ना मया । ग्रन्थोऽयं विहितः कवीश्वरवचोबुद्धयोक्तिरत्नाकरः स्वान्यानां हितहेतवे बुधजनैर्मान्यश्चिरं नन्दतु ॥ ३ ॥ ॥ इति पं० साधुसुन्दरगणिविरचित उक्तिरत्नाकरग्रन्थः सम्पूर्णः ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक ॥ ६ ॥ श्रीशारदायै नमः ॥ * आरोप आरोपयति । आरोहइ आरोहति । उन्मूलइ उन्मूलयति । ऊठइ उत्तिष्ठति । ऊठाइ उत्थापयति । थापइ स्थापयति । स्पर्द्धर्इ स्पर्द्धति । ऊलालइ उल्लालयति । ऊललइ उल्ललति । ऊछालइ उच्छलति । ऊडइ उड्डीयते । आथमइ अस्तमेति, अस्तमयति, अस्तं गच्छति, अस्तं याति । प्रकासइ प्रकाशयति । सूझइ शुध्यति । सुझव शोधयति । दूहवइ दुनोति, दुःखीकरोति । आश्रइ आश्रयति, आश्रयते । षा (खा) सइ कासति । प ( ख ) मइ क्षमते, सहते, क्षाम्यति । निंदइ निन्दति, जुगुप्सति । पडीगरइ चिकित्सति । यूं ( खूं ) इक्षुण्णति । पीसइ पिनष्टि । परिसीजइ परिश्रियति । दो [] छइ निर्भर्त्सयति । त्रासवइ त्रासयति । त्रासइ त्रस्यति । कांप कंप | फिरइ भ्रमति, परिभ्रमति । विहसइ विकसति । भेलइ मिश्रयति । रमइ रमते, क्रीडति । इति । प्रेरइ प्रेरयति, नुदति । भुंजइ भृज्जति । वांछइ वाञ्छति, इच्छति, अभिलषते । नमस्करइ नमस्करोति, नमस्यति, प्रणमति । वांदइ बन्दते । पूजइ पूजयति, अर्चयति, महति । छiss व्यजति, जहाति, उज्झति । es विभेति । कोइ निःकुणाति । वीससइ विश्वसिति । ससइ खसति (श्वसिति ? ) । नीससइ निःश्वस(सि)ति । वारइ वारयति । निवारइ निवारयति । निषेधइ निषेधयति । आलोचइ आलोचयति, पर्यालोचयति । जायइ गच्छति, याति । आवइ आगच्छति । नीकलइ निर्गच्छति, निःसरति, निर्याति । बोल ब्रूते, वदति, वक्ति । चालइ चलति । जीमइ जिमति, भुंक्ते, अत्ति । पीयइ पिबति । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आस्वासइ आखाश्रयति (आश्वासयति ) । संघइ जिति । सांभलइ शृणोति, आकर्णयति । जोयइ पश्यति, ईक्षति (ते), विलोकयति । दिषा (खा) डइ दर्शयति । संभलावइ श्रावयति । जिमाडs जेमयति, भोजयति । करइ करोति, कुरुते । करावइ कारयति । सर्जइ सृजति । लेइ लाति, गृह्णाति, गृह्णीते, आदत्ते । लिवरावइ ग्राहयति । दिइ ददाति, दत्ते यच्छति, वितरति । दिवरावइ दापयति । जाणइ जानाति, अवगच्छति । जणावइ ज्ञापयति । कहइ कथयति, शंसति । स्तवइ स्तौति, स्तवीति । श्लाघइ लाघते । वरइ वृणोति । तरइ तरति । तारइ तारयति । विचारइ विचारयति । विमासइ विमर्शति । धरइ धरति । धरावइ धारयति, अवधारयति । das विक्रीणाति । वेचावर विकापयति । अज्ञातविद्वत्कृत उक्तीयक विसाहइ विसाधयति । लाभइ लभते, प्राप्नोति । वंचइ वचयति । मरइ म्रियते, विपद्यते । tata | वापरइ व्याप्रियते । छइ अस्ति, वर्त्तते, विद्यते । हु भवति । जागs जागर्ति । जगाडइ जागरयति । सूइ स्वपिति, शेते, निद्राति । बइसइ उपविशति । छींक क्षति | तेइ आकारयति, आह्वयति, आहृयते । प्रीणइ प्रीणयति, पृणाति । नांप(ख)इ विकीरति । घालइ क्षिपति । घलाइ क्षेपयति । काढइ कति । आकर्ष आकर्षति । (खे) डइ कर्पति, कृषति । संक्षेपइ संक्षिपति । लिखइ लिखति । लिया (खा ) वइ लेखयति । उपकरइ उपकरोति, उपकुरुते, उपकरति । घइति । घसावइ वर्षयति । आपइ अर्पयति 1 का कर्त्तति, कर्त्तयते । iss मण्डयति, भूषयति । ढांकs स्थगति, आच्छादयति, पिदधाति, पिधत्ते । वटइ उद्वर्त्तयति । न्हाइ स्नाति । ૪૭ हवाइ स्नपयति, स्नापयति । वावइ पति । परिणइ परिणयति, विवाह्यति । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञातविद्वत्कृत उक्तीयक हेजु करइ स्निह्यति । प्रयुजइ प्रयुंक्ते । पहिरइ परिदधाति । सींचइ सिञ्चति, अभिषिञ्चति । पहिरावइ परिधापयति । वरसइ वर्षति । ओटइ अवगुंठयति । मानइ आमनति । पांगुरइ प्रावृणोति । बूझइ बुध्यते । पांगुरावइ प्रावारयति । मनावइ प्रसादयति । वहइ वहति । चोरइ चोरयते, अपहरति । वाहइ वाहयति । औलवइ अपलपति, अपगुते । मारइ हन्ति । शापइ शपते, आक्रोशति । मरावइ घातयति । अपराधइ अपराध्यति, विराध्यति । छेदइ छिन्दति । तस्करइ तस्करयति । भांजइ भनक्ति । राष(ख)इ रक्षति, पाति, त्रायते, गोपायति पडइ पतति । आणइ आनयति । [पाडइ] पातयति। अणावइ आना[य]यति । आपडइ आपतति । परिणावइ परिणाययति । वारइ वारयति, निवारयति । चडइ चटति । [मूकइ ] मुञ्चति । ऊचाटइ उच्चाटयति । भणइ भणति, पठति, अध्येति । अवतरइ अवतरति, अवतारयति । भणावइ भाणयति, पाठयति, अध्यापयति । चुंटइ चुण्टति, अवचिनोति । आक्रमइ आक्रमते, पराक्रमते । चिणइ चिनोति । ऑलखइ उपलक्ष्यते । लुणइ लुनाति । गिणइ गणयति । लुणावइ लावयति । गुणइ गुणयति । घडइ घटते, घटयति । वषा(खा)णइ व्याख्याति । ऑलगइ अवलगति, सेवते । पूछइ पृच्छति । नासइ नश्यति, पलायते । नाचइ नृत्यति। अलंकरइ अलङ्करोति । नचावइ नर्त्तयति । बांधइ बध्नाति । गाइ गायति । छूटइ छुट्टति । वाइ वादयति । फूटइ स्फुटति । वाजइ वादति। विहरइ विहरति । वीनवइ विज्ञपयति, विज्ञापयति । हसइ हसति । संदिसइ सन्दिशति, आदिशति । हसावइ हासयति । जोडइ युनक्ति, युंक्ते । मवइ मिनोति, माति। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक सीवइ सीवति । उपचईइ उपचीयते। गूंथइ प्रश्नाति । वाधइ वर्द्धते। गूफइ गुम्फति । वधारइ वर्द्धयति । ऊलसइ उल्लसति । ॥ इति वर्तमानकालक्रिया ॥ हरषी(ष)इ हृष्यति, माद्यति, मोदते । आरोग्यउ आरोपितम् । शोचइ शोचते। आरुह्यउ आरूढः, चटितः । कूपइ कुप्यति, _ध्यति । उन्मूल्यउ उन्मूलितः। विलवइ विलपति । रहिउ स्थितः। रोइ रोदिति । रहाविउ स्थापितः । कूटइ कुट्यति । ऊठिउ उत्थितः, उत्थितवान् । ताडइ ताड[य]ते, ताडयति । [ठिउ] तस्थिवान् । वर्तइ वर्त्तते । गयउ गतः, यातः। प्रसवइ प्रसूते, जनयति । आव्यउ आगतः । ऊपजइ उत्पद्यते, जायते । नीकल्यउ निर्गतः । ऊपजावइ उत्पादयति। नीसरिउ निःसृतः। दूषइ दूष्यति । पइठउ प्रविष्टः। पादइ पर्दते, कुश्शाति। बइठउ उपविष्टः, निषण्णः, आसीनः । हगइ हदते। पूछिउ पृष्टः । पचइ पचति । दीठउ दृष्टः । भजइ भजते । जोइउ निरीक्षितः, अवलोकितः। शोभइ शोभते। जाण्यउ ज्ञातः, बुद्धः, अवगतः । जिणइ जयति, पराजयति । निवारिउ निषेधितः, निराकृतः । सूकइ शुष्यति । सूतउ सुप्तः, शयितः, शयितवान् । तपइ तपति, उत्तपति । जाग्यउ जागरितः, जागरितवान् । उद्यमइ उद्यमते। लाज्यउ लजितः । रूंधइ रुणद्धि । घ्राइउ घ्राणः। भरइ भरति । रमिउ रंतः (रतः), क्रीडितः, क्रीडितवान् । फाडइ स्फाटयति । हूउ भूतः, भूतवान् , जातः, जातवान् । रुचइ रोचते। ऊतयउ अवतीर्णः । कल्पइ कल्पते। तय तीर्णः । आकलइ आकलयति । निस्तय निस्तीर्णः। बीहावइ भापयति । वापरिउ व्यापृतः । ष(ख)ईइ क्षीयते। भागउ भनः । उ०र०७ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० लागउ लग्नः । साज सज्जः । संपन्न सम्पन्न: । जरि जीर्णः । न्हाउ स्नातः दाधर दग्धः । पडिउ पतितः । हर हृष्टः, आनंदितः । विचारिख विचारितम् । विभासउ विमृष्टम् । taarte अवधारितम् । धरिउ धृतम् । भरिउ भृतम् । कीधुं कृतम्, कृतवान् । धुं छातम्, गृहीतम्, आत्तम् । दीधुं दत्तम्, दत्तवान् । षा (खा ) धुं अत्तम्, जग्धम् । भष्य (ख्य ) उ भक्षितम्, खादितम् । जीमिङ जिमितम्, भुक्तम् । पीधुं पीतम् । सूंध्यउ आघ्रातम् । सांभल्यउ श्रुतम्, श्रुतवान् । फरिस्य स्पृष्टः । वेयर विक्रीतम् । अज्ञात विद्वत्कर्तृक उक्तीयक विसाहिउ विसाधितम्, क्रीतम् । आलोच्यर आलोचितम् । लाधर लब्धम् । पामिउ प्राप्तम् । वंच्यउ वंचितः । अपराध्यउ अपराद्धः । मनाव्यउ प्रसादितः । चायउ चारितम् । नाठउ नष्टः । लुंटिड लुटितः । मुस्यउ मुष्टः । राषि (खि) उरक्षितः । आण्यउ आनीतम् । अणाव्यउ आनायितम् । मूंकि मुक्तम् । त्यजिउ व्यक्तम् । लुणिउ लुणितं, लूनम् | रंग्य रञ्जितम् । घडि घडितम् । होम हुतम् । हकारिउ आकारितः । अलग्याउ अवलगितः, सेवितः, निषेवितः । वंछिउं इष्टम्, वांछितम्, अभिलषितम् । बांधि बद्धः । छोडिउ छोटितः । जिण्यउ जितः, निर्जितः, पराजितः । भण्यउ भणितः पठितः, पठितवान्, अधीतः । भणाव्य भाणित: पाठितः, अध्यापितः । पालिउ पालितः, लालितः । ताडिउ ताडितः । स्तविउ स्तुतः । वीनव्य विज्ञप्तः । आदिस्य आदिष्टः संदिष्टः । आथम्य अस्तमितः । ऊगिउ उदितः । त्राठउ त्रस्तः । वीहि भीतः । बीहावि भाषितः । [वासिउ ] वासितः । आक्रमिङ आक्रांतः । ऑलखिउ उपलक्षितः । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुणगुणितम्, गणितम् । वषा (खा )णि व्याख्यातम् । नाचिङ नृत्तम् । रोइ रुदितम्, विलपितम् । विलोइड विलोडितम्, मर्दितम्, विलुरितम् । दोही दुग्धा । लधी नीता । आक्रुसिङ आक्रुष्टः, शप्तः । प्रजूंजिउ प्रयुक्तः, नियुक्तः । जोय योजितः । परिण्यउ परिणीतः, विवाहितः । चडिउ चटितः । ऊचाटिङ उच्चादितः । चुटिर चुण्टितः । चिणिउ चितः । अज्ञात विद्वत्कर्तृके उक्तीयक अलंकरिङ अलङ्कृतः, मण्डितः । विहसि विकसितः । फूटउ स्फुटितः । हसि हसितः । वमिवान्तः । मविउ मातः । सीव्यउ स्यूतः, सीवितः । गूंथ्यउ ग्रथितः । [ गूं फिउ ? ] गुम्फितः । भमिउ पर्यष्टितः । थाकउ श्रान्तः । वूठउ वृष्टः । तूठउ तुष्टः । संतोष संतोषितः । कुपि कुपितः क्रुद्धः । कूट कुट्टितः । मारिउ मारितः । मूर मृतः, विपन्नः । aise aोडितः । गोपिविउ गोपितः, गुप्तः । वर्त्तिवर वर्त्तितः, वर्त्तितवान् । प्रसविउ प्रसूतः जातः । ऊपजावि उत्पादितः, जनितः । कुहिर कुथितम्, विनष्टम् । फाड्यउ स्फाटितम् । भेदि मेदितम्, भिन्नम् । भेटिङ भेटितः । सूकर शुष्कः । तपि तप्तः । रुंधि रुद्धः । बीसरिडं विस्मृतम्, विस्मारितम् । विराध्यउ विराद्धः । [ आराध्यउ ] आराद्धः । वंदिउ वंदितः, नमस्कृतः, नतः । शोभिउ शोभितः । आकलिङ आकलितः । परीसिउ परिवेषितम् । छमकारिउ छमत्कारितम् । वाधि वर्द्धितः । क्षमि क्षान्तः । शमिउ शान्तः, उपशान्तः । सहि सोढः । हिउ व्यूढः । ऑलवर अपलपितम् । [ होमिउ ] हुतम् । परिसीन परिखिन्नः । प्रेरिङ प्रेरितः, नोदितः । ऊडिउ उड्डीतः, उत्पतितः । कहिउ कथितम् उक्तम्, उक्तवान् । धोई धौतः, धौतवान् । मेलिङ मेदितम्, मिश्रितम् । ५१ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ पडिगरिउ प्रतिजागरितः, पटूकृतः, चिकित्सितः । विसि विपर्यस्तः । मूंड मुण्डितः । लिषि (खि) उ लिखितम् । चोपड्यउ मर्षितः । बलिउ ज्वलितः, दग्धः । चालिउ चलितः, प्रस्थितः । कांपिङ कम्पितः । चेति चेतितम् | अज्ञात विद्वत्कर्तृक उक्तीयक पांगुयउ प्रावृतः । पहिरिउ परिहितः । पहिराविउ परिधापितः । ढांकिउ स्थगितम्, छन्नम्, आच्छादितवान् । [ऊपनड] उत्पन्नः । धमि धमितम् । तेजिडं उत्तेजितम् । खुभिउ क्षुब्धः । आपडिउ आपतितः । नांषि (खि) उ निक्षिप्तः । घालिउ क्षिप्तः । विषे (खे) रिङ विकीर्णम् । विदारिख विदारितः, विदीर्णः । गालिडं गालितम्, छाणितम् । हणिउ हतः, घातितः । नहुतरिउ निमन्त्रितः । धाई धावितः । [ श्लाघिउ ] श्लाघितः । आश्लेषिङ आलिङ्गितः । आपिउ अर्पितम् । मागि मार्गितम्, याचितम्, प्रार्थितम् । धोईउ धौतः, धौतवान् । ऊवेषि(खि) उ उपेक्षितः । आरोपिवर आरोपणीयम्, आरोपयितव्यम्, आरोप्यम् । आरोहिवडं आरोहणीयम्, आरोहितव्यम्, आरोह्यम् । करवरं कर्त्तव्यम्, करणीयम्, कार्यम् । लेवूं ग्रहीतव्यम्, ग्रहणीयम्, ग्राह्यम् । देवूं दानीयम्, दातव्यम्, देयम् । रहिउं स्थातव्यम्, स्थानीयम्, स्थेयम् । [ ऊपडिवूं ] प्रस्थातव्यम्, [प्रस्थानीयम्, प्रस्थेयम् ] । षा (खा ) वरं भक्षितव्यम्, भक्षणीयम्, भक्ष्यम् । आस्वादिखूं आखादयितव्यम्, आखादनीयम् [आखाद्यम् ] । पीवुं पातव्यम्, पानीयम्, पेयम् । रांधिव राधनीयम्, पक्तव्यम्, पचनीयम्, पाक्यं ( पाच्यम् ) । परीसिव्यं परिवेषणीयम्, परिवेषितव्यम्, परिवेषयितव्यम् । संघ प्रातव्यम्, घ्राणीयम् । सांभलेव्यं श्रोतव्यम्, श्रवणीयम् श्रव्यम्, आकर्णयितव्यम्, आकर्णनीयम् । देषि (खि) व्युं दर्शनीयम्, दर्शयितव्यम्, दृश्यम् । जोइ विलोकयितव्यम्, विलोकनीयम्, ईक्षितम् । पहिरवं परिधातव्यम्, परिधानीयम् । पांगुरितुं प्रावरितव्यम्, प्रावरीतव्यम्, प्रावरणीयम्, प्राधृत्यम् । धरितुं धर्त्तव्यम्, धरणीयम्, धार्यम्, धारयितव्यम् । वहिवूं वहनीयम्, वोढव्यम्, वाह्यम् । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञात विद्वत्कर्तृक उक्तीयक मूक मोक्तव्यम्, मोच्यम् । छांडिवुं त्यक्तव्यम्, त्यजनीयम् । हणिवुं हन्तव्यम्, हननीयम् । भांजियुं भक्तव्यम्, भञ्जनीयम् । भेदिव्यं भेदितव्यम्, भेत्तव्यम्, भेदनीयम्, भेद्यम् । वारि वारयितव्यम्, वारणीयम्, वार्यम् । पडिवुं पतितव्यम्, पतनीयम्, पायम्, पातयितव्यम्, पातनीयम् । नमस्करिव्यं नमस्कर्त्तव्यम्, नमस्करणीयम्, नमस्कृत्यम् । वांदिवं वन्दनीयम्, वन्दितव्यम्, वन्द्यम् । श्लाघितुं श्लाघनीयम्, श्लाघयितव्यम्, श्लाघ्यम् । पूजितुं पूजनीयम् पूजितव्यम्, पूज्यम् । अर्चनीयम्, अर्चयितव्यम्, अर्च्यम् । जिमिबुं भोक्तव्यम्, भोजनीयम्, भोज्यम्, भोजयितव्यम् । पढिवुं पठितव्यम्, पठनीयम्, पाठ्यम्, अध्येतव्यम्, अध्ययनीयम्, अध्येयम् । भणिवुं भणनीयम्, भणितव्यम्, भाण्यम्, भणयितव्यम्, पाठनीयम्, पाठयितव्यम्, अध्यापनीयम्, अध्यापयि - तव्यम् । [ गुणिबूं ] गुणनीयम्, गुणयितव्यम् । गुण्यम् । णिगवूं गणनीयम्, गणयितव्यम्, गण्यम् । उलषि (खि) वुं उपलक्षणीयम्, उपलक्षि तव्यम् उपलक्ष्यम् । परीषि (खि) वुं परीक्षितव्यम्, परीक्षणी यम्, परीक्षयितव्यम् । वखाणिवुं व्याख्यातव्यम्, व्याख्यानीयम्, व्याख्येयम् । ५३ [ कहि ] कथयितव्यम्, कथनीयम् । कथ्यम् । [ निवेदितुं ] निवेदयितव्यम्, निवेदनीयम्, निवेद्यम् । वनवितुं विज्ञापयितव्यम्, विज्ञापनीयम्, विज्ञाप्यम् । संदिस सन्देष्टव्यम्, सन्देशनीयम्, सन्देश्यम् । आदिश आदेष्टव्यम्, आदेशनीयम्, आदेश्यम् । बोलिवुं वक्तव्यम्, वचनीयम्, वाच्यम्, वदितव्यम्, वदनीयम् । पूछिवं प्रष्टव्यम्, पृच्छनीयम्, पृह्यम् । वाचितुं वाचयितव्यम्, वाचनीयम्, बाच्यम् । अधारितुं अवधारयितव्यम्, अवधारणीयम्, अवधार्यम् । धरि वरणीयम्, धारयितव्यम्, धार्यम् । भरि भरणीयम्, भरितव्यम् । नियोजितुं नियोजितव्यम्, नियोजनीयम् । नियोज्यम् । जोडिवं योजनीयम् योजयितव्यम्, योज्यम् । गाइ गातव्यम्, गानीयम्, गेयम् । नाचितुं नर्त्तनीयम्, नर्त्तितव्यम्, नृत्यम् । वाइवुं वादयितव्यम्, वादनीयम्, वाद्यम् । लिखितुं लिखनीयम्, लिखितव्यम्, लेख्यम्, लेखनीयम्, लेखयितव्यम् । मनावितुं मन्तव्यम्, मननीयम् । जाणिवुं ज्ञातव्यम्, ज्ञानीयम्, ज्ञेयम् अवगन्तव्यम्, अवगमनीयम्, अवगम्यम् । बूझि बोधव्यम्, बोधनीयम्, बोध्यम् । विमासिवं विमर्शनीयम्, विमर्थम् । तरिधुं तरितव्यम्, तरणीयम्, तार्यम् । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ नाहितुं स्नातव्यम्, स्नानीयम्, स्नेयम् । विचारितुं विचारयितव्यम्, विचारणीयम्, विचार्यम् । वेचितुं विक्रेतव्यम्, विक्र[य]णीयम्, विक्रेयम् । विसाहि विसायितव्यम्, विसाधनीयम्, विसाध्यम् । लहिधुं लब्धव्यम्, लभनीयम्, लभ्यम् । पामिवुं प्राप्तव्यम्, प्रापणीयम्, प्राप्यम् । आप अतिव्यम् अर्पणीयम्, अर्घ्यम् । वंचि वञ्चयितव्यम्, वञ्चनीयम्, वश्यम् । अपराधितुं अपराधितव्यम्, अपराधनीयम्, अपराध्यम् । मनावि प्रसादयितव्यम्, प्रसादनीयम्, प्रसाद्यम् । चोरि चोरयितव्यम्, चोरणीयम्, चौर्यम्, अपहर्त्तव्यम्, अपहरणीयम्, अपहार्यम्, तस्करणीयम् । अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक " राषि (खि) वुं रक्षितव्यम्, रक्ष्यम्, [ रक्षणीयम् ] परित्रातव्यम् । पालिबुं पालयितव्यम्, पालनीयम्, पाल्यम्, गोपयितव्यम्, गोपनीयम्, गोप्यम् । आणिधुं आनेतव्यम् आन [य]नीयम् आनेयम्, आनाय्यम् | परिणयुं परिणतव्यम्, परिण[य]नीयम्, परिणेयम्, परिणाय्यम्, उपयन्तव्यम्, उपयमनीयम्, उपयम्यम् । अवतरितुं अवतरितव्यम्, अवतरणीयम्, अवतार्यम् । चुंटिवं अवचेतव्यं, अवचयनीयम्, अवचेत्यम्, चिणि चेतव्यम्, चयनीयम्, चेयम् । लूणिवं लवितव्यम्, लवनीयम्, लव्यम्, लाव्यम् । रमितुं तव्यम्, रमणीयम्, क्रीडितव्यम्, क्रीडनीयम् । घडि घटयितव्यम्, घटनीयम् । होमिवं होतव्यम्, हवनीयम्, हव्यम् । ऑलग अवलगितव्यम्, अवलगनीयम्, सेवनीयम्, सेव्यम् । वांछि वाञ्छितव्यम्, वाञ्छनीयम् । नासितुं पलायितव्यम् पलायनीयम्, नष्टव्यम् । अलंकार अलङ्कर्त्तव्यम्, अलङ्करणीयम्, अलङ्कार्यम् । विपरावितुं व्यापारयितव्यम्, व्यापारणीयम्, व्यापार्यम् । उच्छाहिवउ उत्साहनीयः, उत्साह यितव्यः, उत्साहाय्यः, प्रेरणीयः, प्रेरयितव्यम्, प्रेर्यः, नोदनीयः, नोदयितव्यः, नोद्यः । अनुमोदिवं अनुमोदनीयम्, अनुमोदयितव्यः, अनुमोद्यः । * क्रिया च कर्त्ता च तथा च कर्म, अनुक्तमुक्तं पुरुषत्रयं च । संख्या परस्मैपदलिङ्गकानि, तथात्मने कालविभक्तयश्च ॥ १ संख्याविभक्तिलिङ्गपुरुषत्रयञ्च यदुक्तं भवति तस्यैव ग्राह्यम् । क्रियाकर्त्तादिकं सर्व पूर्वलोकप्रदर्शितम् । सारखतमितान्नेयं संस्कृतं ज्ञातुमिच्छता ॥ २ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुं हुं इत्यर्थे स्वं अहम् | तुम्हि तुम्हे अम्हि अम्हे इसमें यूयं वयम् । मईया मया । तुम्हि अम्हि तुम्हे अम्हे इ कीजइ युष्माभिः अस्माभिः क्रियते । तूं मुंहइ तत्र मम । तुम्हनई अम्हनई युष्माकम् अस्माकम् । ताहरु तावकम्, तावकीयम्, तावकीनम्, अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक त्वदीयम् । माहरु मदीयम्, सामकम्, मामकीनम्, मामकीयम् । तुम्हारुं युष्मदीयम्, यौष्माकम्, यौष्माकी - नम् । अम्हारु अस्मदीयम्, अस्माकीनम्, अस्मा तिहातणूं तत्रत्यम् । इहांतं अत्रत्यम् । जिहांतणं यत्रत्यम् । किहांतं कुत्रत्यम् । कम् । आपणूं आत्मीयम्, स्वयम्, निजम् । परायउ परकीयम् । पछइ पश्चात् । आगिलुं अग्रेतनम् । 1 बाहिरल्युं बाह्यम् । माहिल्युं मध्यवर्त्ति, आभ्यन्तरम् । छेहि अन्त्यम्, अन्तिमम् । पहिलं प्रथमम् । कां किञ्चित् किमपि । कोऽपि । कोई कश्चित्, पाहिलं पाश्चात्यम् । जिम यथा । तिम तथा । किम कथम् । किस किम् । एतलं एतावत्, इयत् । जेवलं यावत् । तेतलं तावत् । जिसउ यादृक्, यादृशः, यादृक्षः । अनेरिसिङ अन्याहम्, अन्यादृक्षः । तुम्हासित युष्मादृशः भवादृशः । अम्हासित अस्मादृशः । केतलउ कतिपयः; कति । केलं कियत् । इणि परिइत्थम्, अनया रीत्या । इम एवमेव । विणा, पापड़ विना, ऋते, अन्तरेण, व्यतिरेकेण । पुरु परुत् । कहां कुत्र । जिहां यत्र । तिहां तत्र । afers कदा | जहियइ यदा । तहियइ तदा । अन्येtवार अन्यदा । हिविडां अधुना इदानीम्, सम्प्रति, साम्प्र तम् । आज अद्य । काल्हि कल्ये । परमइ परेद्युवि । अहूण ऐषमस्य । .. 1 तउ तत् । जउ यत् । अ इत्यर्थे असौ अयं एषः । अन्यादृशः, Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक जु, यो, ये यः। उंचानीचं उच्चावचम्। तु, सु, ते सः। लहुडु लघु । आपइणी आत्मना, खयम् । भारी गुरु । तां तावत् । वडर वृद्धम् । जां यावत् । अउंगउ मुगउ अवाक् मूकः(१) । उहरडं अंतर्धाकार । कूका हेवाका । परहउ पराक् । कन्हइ पासि पार्श्वे, समीपे, निकटे । आघउ अतस्ततः । माहि मध्ये । तिरछउ आडउ, तिर्यक् , तिरश्चीनम् । विचालुं अन्तरालम् । एतला ऊपरूं अतः ऊर्द्धम् । ठाल रिक्तम् । आजु लगइ अद्य प्रभृति । भरि निचितम् । आजूनुं अद्यतनम् । जिमणुं दक्षिणम् । काल्हन कल्यतनम् । डाबडं वामम् । ऊपरिलु उपरितनम् । ढील शिथिलम् । हेठिलुं अधस्तनम् । पालटिउ परावर्त्तः। ऊपरि उपरि, उपरिष्टात् । बापडउ वराकः। बाहिर हुँतउ बहिस्तात् । नहींत नो वा । विसिमिसि प्रतिस्पर्द्धा, अहमहमिका । एह ठाम हुँतउ अमुष्मात् , अस्मात् , एतमाणसामउ मनुष्यात्मकः । ___ स्मात् स्थानात् । सामुहु सन्मुखः । जेह ठाम हुंतउ यतः, यस्मात् स्थानात् । उपराठउ पराङ्मुखः। तेह ठाम हुंतउ ततः, तस्मात् स्थानात् । अनेरुं अन्यत् , अपि च, अपरं च । अजी अद्यापि । किहां हुंतउ कुतः, [कस्मात् ] स्थानात् । आगइ अग्रे, तत्पुरः। अनेरी परि अन्यथा । अग्रेतनु पुरः। सर्व परि सर्वथा । सदा सर्वदा नित्यं प्रत्यहं निरन्तरं सततम् । एक परि एकधा। तुहइ तदपि । बिहुं परि द्विधा । जइ यद्यपि । त्रिहुं परि त्रिधा । तउ तर्हि । सर्वत्र संख्याशब्देषु 'संख्यायाः इ, ए इदम् , एतत् , अदः। प्रकारेण' इति सूत्रेण 'धा' प्रत्ययः। अलजु उत्कण्ठा । पहिलउ प्रथमः । ऊंचउं उच्चैः। बीजउ द्वितीयः । नीचर्ड नीचैः। त्रौजउ तृतीयः । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक चउथउ चतुर्थः। द्वि द्वौ। पांचमउ पञ्चमः । त्रिणि त्रयः। छट्टउ षष्ठः। च्यारि चत्वारः। सातमउ सप्तमः। पांच पञ्च । आठमउ अष्टमः। नवमउ नवमः । सात सप्त । दसमउ दशमः । इत्यादि । आठ अष्टौ। वीसमउ विंशतितमः । नव नव । त्रीसमउ त्रिंशति (? त्)तमः । दश दश चालीसमउ चत्वारिंशति(त् ?)तमः । इग्यार एकादश । विंशतिप्रभृतिशब्दात् 'तम' बार द्वादश। प्रत्ययः। तेर त्रयोदश। पालउ पादचारः। चवदइ चतुर्दश। जोहारः जोत्कारः। पनरइ पञ्चदश । सोहिलं सुखावहम् । सोल षोडश सतर सप्तदश । दोहिलं दुःखावहम् । अठार अष्टादश । लाई लम्पकः । रलियामणुं रतिजनकम् । उगणीस एकोनविंशति । उदेगामणुं उद्वेगजनकम् । विंशति, एकविंशति, द्वाविंशति, जूउ भिन्नः, पृथक् । त्रयोविंशति, चतुर्विंशति, पञ्चविंअरणइ अरतिः । शति, षड्विंशति, सप्तविंशति, अष्टाकिर किल । विंशति, एकोनविंश (? त्रिं) शत्, साधुपणू साधुत्वम् , साधुता। त्रिंशत्, एकत्रिंशत्, द्वात्रिंशत्, निश्चयार्थे एव शब्दः। त्रयस्त्रिंशत् , चतुस्त्रिंशत्, पञ्चत्रिंच समुच्चये शत्, षत्रिंशत्, सक्षत्रिंशत्, परिवारि प्रपारितम् । अष्टात्रिंशत्, एकोनचत्वारिंशत्, मउडई २ शनैः २ मन्दम् २ । चत्वारिंशत्, एकचत्वारिंशत् , पुण पुण वारं वारम् । द्वाचत्वारिंशत्, त्रयश्चत्वारिंशत् , विलखउ विलक्षः, वक्रमयः, वक्रमयम् । चतुश्चत्वारिंशत्, पञ्चचत्वारिंशत्, लोहमू लोहमयम् । षट्चत्वारिंशत्, सप्तचत्वारिंशत्, अनेथि अन्यत्र । अष्टाचत्वारिंशत् , एकोनपञ्चाशत्, केवडूं कियन्मात्रम् । पञ्चाशत्, एकपञ्चाशत्, द्वापश्चाएक एकः। शत्, त्रिपञ्चाशत्, चतुःपञ्चा Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ अज्ञातविद्वत्कर्तृक उक्तीयक शत्, पञ्चपञ्चाशत्, षट्पञ्चाशत् , पश्चसप्ततिः, षट्सप्ततिः, सप्तससप्तपञ्चाशत् , अष्टापश्चाशत् , एको- प्ततिः, अष्टासप्ततिः, एकोन[-] नषष्टिः, षष्टिः, एकषष्टिः, द्वाषष्टिः, शीतिः, [अशीतिः], एकाशीतिः, त्रिषष्टिः, चतुःषष्टिः, पञ्चषष्टिः, द्वाशीतिः, त्रयोशीतिः, चतुरशीतिः, षट्षष्टिः, सप्तषष्टिः, अष्टाषष्टिः, पञ्चाशीतिः, षडशीतिः, सप्ताशीतिः, एकोनसप्ततिः, सप्ततिः, एकसप्ततिः, अष्टाशीतिः, एकोननवतिः, नवतिः। द्वासप्ततिः, त्रिसप्ततिः, चतुःसप्ततिः, नवनवतिः। ॥इत्यज्ञातविद्वत्कर्तृकमुक्तीयकं समाप्तमिति ॥ . ॥ शुनं भवतु ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञात विद्वत्संगृहीतानि पुरातन-औक्तिकपदानि [ कारकविचार ] अथ षट् कारकाणि लिख्यन्ते छ कारक, सातमउ संबंधु । कर्त्ता, कर्म्म, करणु, संप्रदानु, संबंधु, अधिकरण | कर तु कर्त्ता । कीज तं कर्नु । जीण करी क्रिया कीजइ तं करणु । ये देवातणी वाञ्छा, येह रूप कांई, धरी कांई; तं कारकु संप्रदानसंज्ञकु हुइ । जेहतर अपाय विश्लेषु हुइ, जेहतर भयु हुई, जेहतर आदान ग्रहणु हुइ, तं कारकु अपादान संज्ञकु हुइ । जेह कन्हर, जेह माझि, जेह पासि, जेह तणउ, जेह तणी, जेह तणउं, जेहरहिं इस संबंधु । गामि, पाद्रि, षलइ, क्षेत्रि, वनि, पर्वत, माझि, बाहिरिइत्यर्थे आधारु । ', कर्त्ता प्रथमा । कमि द्वितीया । करण तृतीया ? संप्रदानि [ चतुर्थी ।] [ अपादानि ] पंचमी । संबंधि षष्ठी । अधिकरण सप्तमी । 1 जउ पाधरी उक्ति तर उक्त कर्त्ता । उक्ते कर्तरि प्रथमा । अनुक्तुं कर्म । अनुक्ते कर्मणि द्वितीया । बांकी उक्ती तर अनुक्त कर्ता, उक्तं कर्म । अनुक्ते कर्त्तरि तृतीया, उक्के कर्मणि प्रथमा । कालि भावि सप्तमी । वेला, दीसु, पक्षु, मासु, वर, ऋतु इत्यादि कालः । अमुक हुंतई अमुकुं हौउं इत्यादि भावः । पाखइ, विना, किशा पाखइ, जेह, त्यहांविनायोगे द्वितीया तृतीयापश्चस्यः । यावद्योगे द्वितीया । परितो योगे द्वितीया । अनभित्र योगे द्वितीया । प्रभुतियोगे पञ्चमी । अर्वाक योगे पञ्चमी । एक आगलि एक वचनु, बिहु आगल द्विवचनु, घणां आगलि बहु वचनु । त्रुटितप्रत्यन्तर प्राप्त पाठभेद । अथ पट् कारकमभिलिख्यते । यथा -छ कारक, सातमउ संबंध | कर्ता १, कर्म २, करण ३, संप्रदान ४, अपादान ५, संबंध ६, अधिकरण ७ । जे करइ ते कर्ता । जं की जइ तं कर्म । जेगइ करी क्रिया कीजइ ते करण । जेह भणी धरीइ कांई तं कारक संप्रदान। जिह हुंतु अपाय विश्लेष हुई जेह तु भय हुई जिह तु आदान ग्रहण कीजइ तं कारक अपादान । जिह कन्दर, जिह माहि, जिह पासि, जिह तं, जिह तणी, जिह तणू, जिहनइ, जिहकिहिं, इत्यादि संबंधः । गामि पादि क्षेत्रि खलइ वनि पर्वत माहि बाहिरि इत्यादि आधार । कर्ता प्रथमा । कर्म द्वितीया । करणि तृतीया । संप्रदानि चतुर्थी । अपादानि पंचमी | संबंधि षष्टी । अधिकरण सप्तमी । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० थ्यु स्थितम् । अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि [शब्दसंग्रह] पढतउ पठन् । बोलतउ वदन् , जल्पन् । कीधुं कृतम्। मारतउ घ्नन् । लिधुं गृहीतम् । जाणतउ जानन्। दीधरं दत्तम् । जिमतउ भुञ्जन् । ग्यउं गतम् । अछतउ आव्यउं आगतम् । रहतउ आण्यउं आनीतम् । देखतउ पश्यन् । पढि पठितम् । पूछतउ पृच्छन् । बोल्यउं उक्तम् । [३] मारिउं हतम् । कीजत क्रियमाणम् । जाणिउं ज्ञातम् । लीजतउं गृह्यमाणं, लीयमानम् । यमिउं भुक्तम् । दीजतरं दीयमानम् । रहिउं रहितम् । जईतउं गम्यमानम् । थाकडं - आवीत आगम्यमानम् । आणीत आनीयमानम् । दीठ दृष्टम् । पढीतउं पठ्यमानम् । पूछिउं पृष्टम् । बोलीत उच्यमानम् । मारीत हन्यमानम् । करतउ कुर्वन् । जाणीत ज्ञायमानम् । लेतु गृह्णन् । यमीतउं भुज्यमानम् । देतउ ददन् । रहित । जातउ गच्छन् । अछीउंस स्थीयमानम् । आवतउ आगच्छन् । दीसतउं दृश्यमानम् । आणतउ आनयन् । पूछीतउं पृच्छ्यमानम् । [१] दीठउं दृष्टम् । मारतु घ्नन् । दीजतूं दीयमानम् । कीधुं कृतम् । पूछ्युं पृष्टम् । लीधुं गृहीतम्। जिमतु भुजानः । अशने तु जईतूं गम्यमानम् । दीधुं दत्तम्। [२] आत्मनेपदीड। आवीतूं आगम्यमानम् । ग्यउं गतम्। करतु कुर्वन् । आणीतूं आनीयमानम्। छतु रहितु तिष्ठन् । आव्युं आगतम्। देतु ददन्। पढीतूं पट्यमानम् । आण्युं आनीतम्। देषतु पश्यन् । बोलीतूं उच्यमानम्। खातु खादन् । पढ्बउं पठितम् । पूछतु पृच्छन् । मारीतूं हन्यमानम् । जातु गच्छन् । बोल्युं उक्तम् । जाणोतुं ज्ञायमानम्। जाण्युं ज्ञातम् । आवतु आगच्छन् । [३] जिमीतूं भुज्यमानम्। जिम्युं भुक्तम् । आणतु आनयन् । कीजतूं क्रियमाणम् । रहीतुं स्थीयमानम् । रहिउ थाकउ ] रहितं पटतु पठन् । लीजदूं गृह्यमाणं नीयमानं दीसत दृश्यमानम् । थि स्थितं च बोलतु वदन् । वा। पूछीतूं पृच्छ्यमानम्। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___६१ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि बोलिवा वक्तुम् । मारिवा हन्तुम् । जाणिवा ज्ञातुम् । यमिवा भोक्तुम् । रहीवा स्थातुम् । [४] करी कृत्वा । लेई गृहीत्वा । देई दत्वा । जाई गत्वा । आवी आगल्य । आणी आनीय। पढी पठित्वा । बोली उक्त्वा। मारी हत्वा । जाणी ज्ञात्वा । यमी भुक्त्वा । रही स्थित्वा । देखी दृष्ट्वा । पूछी पृष्ट्वा । अछिवा देषिवा द्रष्टुम् । पूछिवा प्रष्टुम् । [६] करणहारु कर्तुकामः । लेणहारु ग्रहीतुकामः । देणहारु दातुकामः । जाणहारु गन्तुकामः। आवणहारु आगन्तुकामः। आणनहारु आनेतुकामः । पठणहारु पठितुकामः । बोलणहारु वक्तुकामः । मारणहारु हन्तुकामः । जाणनहारु ज्ञातुकामः । पूछणहारु प्रष्टुकामः । [७] करिवं कर्त्तव्यम् । लेवउं ग्रहीतव्यम् । देवु दातव्यम् । करिवा कर्तुम् । लेवा ग्रहीतुम् । देवा दातुम् । जाइवा गन्तुम् । आविवा आगन्तुम् । आणिवा आनेतुम् । पढिवा पठितुम् । EHIYA [४] करी कृत्वा । लेई गृहीत्वा, नीत्वा । देई दत्त्वा । जई गत्वा । आवी आगत्य, एत्य। आणी आनीय। पढी पठित्वा। बोली उक्त्वा। मारी हत्वा । जाणी ज्ञात्वा । जिभी भुक्तत्रा। खाई भक्षयित्वा। रही स्थित्वा। देषी दृष्ट्वा । पूछी पृष्ट्वा । जाइवा गन्तुम् । पठणहार पठितुकामः। आचिवा आगन्तुम् । बोलगहार वक्तुकामः। पूछिया प्रष्टुम् । मारणहार हन्तुकामः। जाणहार ज्ञातुकामः। पूछणहार प्रष्टुकामः। करणहार कर्तुकाम । लेणहार हतुकाम। जाणहार गन्तुकाम। करिवू कर्तव्यम् । आवणहार आगन्तुकामः। लेवू ग्रहीतव्यम् । आणनहार आनेतुकामः। देवू दातव्यम् । करिवा कर्तुम् । लेवा ग्रहीतुम्। देवा दातुम् । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ जाइबरं गन्तव्यम् । आवि आगन्तव्यम् । आणिवरं आनेतव्यम् । पढिरं पठितव्यम् । बोलिवरं वक्तव्यम् । मारिवरं हन्तव्यम् । जाणिव ज्ञातव्यम् । यमिव भोक्तव्यम् | रहिवर अछिव देषिवरं द्रष्टव्यम् । पूछिव प्रष्टव्यम् । की उं लीधरं दीघ करतुं लेतुं देतुं कीजतुं दीजतुं करी de to करिवा लेवा देवा अविज्ञात विद्वत्सं गृहीतानि औक्तिकपदानि स्थातव्यम् । आविवूं आगन्तव्यम् । आणि आतव्यम् । बोलिवूं वक्तव्यम् । मारिं हन्तव्यम् । जाणिवूं ज्ञातव्यम् । जिमिवूं भोक्तव्यम् । रहिं स्थातव्यम् । देवूं द्रष्टव्यम् । इत्यादौ निष्टाक्तः । इत्यादौ शतृङ् । इत्यादी तत्वा । } इत्यादी तुम् । । पूछि प्रष्टव्यम् । पढिबूं पठितव्यम् । बाज अय । काहि कल्ये । परम पद्यवि । भरीरम अपरेद्यवि । आजूनूं अद्यतनम् । ज्ञा धातु प्रयोगे स्वास्थाने तुम्करी जाणउं कर्तुं जानामि । पढी सकुं पठितुं शक्नोमि । करणहारु लेणहारु देणहारु करि लें देवं आजु अद्य । कालि कल्ये । परम परेद्यवि । अरिरम अपरेद्युः । आजूण अद्यतनम् । काल्हूणउं कल्यतनम् । Tasi अधुना इदानीं, सांप्रतं, संप्रति । तिम तथा । किम कथम् । fruit इत्थम् । जहींय यदा । हवडांनुं आधुनिकं, सांप्रतीनम् । नहीं तु नो वा, नो चेत् । लगइ प्रभृति, आरभ्य । पाखइ विना, ऋते । मुहीयां मुधा । यिम यथा । कालूं कल्यतनम् । हवडांनूं आधुनिक, साम्प्र तीनम् । Tasi अधुना इदानीम्, सम्प्रति, साम्प्रतम् । इत्यादौ शतृ-कानशौ नहि तु नो वा नो चेत् । लगइ प्रभृति, आरभ्य । इत्यादौ तव्यानीयौ । पाइ विना, ऋते । मुहीआं मुधा । जिम यथा । तिम तथा । किम कथम् । इणी परि इत्थम् । जीईं यदा । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aहींय तदा । कहीं कदा | अनेकवार अनेकधा । ज्यार अन्यदा । सवईवार सर्वदा, सदा । एकवार एककृत्वः । एवं वारस्य संख्यायाः कृत्वस् । एकपरि एकधा । व्यहु परि द्विधा, द्वैधम् । परि त्रेधा, ध्यम् । हुपरि चतुर्धा | किहां कुत्र, क । यहां यत्र । तिह्नां तत्र । ईहां अत्र, इह । अनेति अन्यत्र | सघले सर्वत्र । वली व्याहृत्य । तिमइ तत्कालम् । झटक झटिति । जू पृथक् । ताहरु तदीयम् । माहर मदीयम् । तम्हारडं युष्मदीयम् । कहीई कदा | अनेकवार अनेकदा | अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि अम्हारडं अस्मदीयम् । ज्यार अन्यदा । सवई वार सर्वदा । एक वार एककृत्वः । बिवार द्विकृत्वः । त्रिवार त्रिकृत्वः । च्यारि वार चतुः कृत्वः । सउ वार शतकृत्वः । वारस्य सख्यायां कृत्वस् एक परि एकधा । बिहु परि द्विधा । त्रिहुं परि त्रिधा । चिहुं परि चतुर्धा | किहां कुत्र । जिह्वां यत्र । तिह्नां तत्र । ईहां अत्र, इह । अनेथि अन्यत्र | सघलइ सर्वत्र । । वली व्यावृत्य । झटकई शटति । ताहरउ तावकः, तावकीनः । माहरउ मामकः, मामकीनः । जां यावत् । तत् । जेतलं यावन्मात्रम् । तेतलं तावन्मात्रम् । एव एतावन्मात्रम् । केतलउं कियत् । केवडुं कियन्मात्रम् | एतलडं इयत् । यदि यतः । तु ततः । जं यत् । तं तत् । किमइ यदि किमपि चेत् । इ अन्यथा | इसुं इति । होउ एवम् । हवं अथ | हावलि प्रत्युत । पूठि अनु । साहु अभिमुखः । डाबर वाम । जूउ पृथक् । ताहरूं त्वदीयम् । माहरु मदीयम् । तम्हारुं युष्मदीयम् । अम्हारूं अस्मदीयम् । याण यावत् । ताण तावत् । जेतलं यावन्मात्रम् | तेतलं तावन्मात्रम् । एतलं एतावन्मात्रम्, इयत् । केवलं कियत् । जु यदि । जईयइ किमइ यदि किमपि, यदि चेत् । म इस्य अन्यथा | इति । हा एवम् अथ । हावलि प्रत्युत । पूठि अनु । साम अभिमुख | डावउ वाम । ६३ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि यमणु दक्षिणः। परहु पराक् । वांकउ कुटिलः। पाखलि परितः, सर्वतः, विष्वक, पाधरु ऋजु, सरलः। समन्तात् , समन्ततः। लांबउ दीर्घः। उगउमुगउ अवाङ्मूकः। हेठि अधः। झलझांषसउ चलवांक्षम् । ऊपरि उपरि । ऊधांधलु उद्धूलिकम् । आडउ तिर्यक् । तिरछउ तिरश्चीनः। सूगामण शूकाजनकम् । अहिवा अधवा, विधवा आगिल अग्रे, पुरः। पाछिलु पाश्चात्यः। सूहव सुधवा। सरीषउ सदृक्, समानः, सदृक्षः । ऊतरिण्यु उत्तारिततृणम् । किसउ कीदृग् , कीदृशः, कीदृक्षः । पढू प्रतिभूः। इसउ ईदृक्, ईदृश, ईदृक्षः। पढूचउं प्रतिभाव्यम्। यसउ यादृक्, यादृशः, यादृक्षः । उपरीयामणु उत्कटिकाकुलं रणरणकं वा। तिसउ तादृक्, तादृशः, तादृक्षः। ओल्यउ अर्वाचीनः। अनेसउ अन्यसदृक्, अन्यसदृशः, पयलु पराचीनः । अन्यसदृक्षः। विलखउ विलक्षः। तूंसरीषउ त्वादृशः । द्रहद्रहवार जयद्रथवेला । मूंसरीषउ मादृशः। तांगणी तनुगमनिका । तम्हंसरीषउ युष्मादृशः। गोई गोसली गोप्यसिलाका । अम्हंसरीषउ अस्मादृशः। ऊकरडी अबकरोत्करिका। अरहु अव्वोक्। पूंजउ अवकर । जिमणउ दक्षिण। किसउ कीदृशः, कीहक् । अम्हसरीषउ अस्मादृशः । उत्तराणउं उत्तारिततृणम् । वांकु कुटिल। जिसउ यादृक्, यादृशः, उरहु अर्वाक् । पढू प्रतिभूः, लग्नकः । पाधरु ऋजु, सरल। यादृक्षः। परह पराक्। परह पराक्। पढ़चूं प्रतिभाव्यम्।। लांबउ दीर्घः । तिसउ तादृशः, तादृक्, पापलि परितः, सर्वतः, ऊफिरीयामणू उत्कलिकाहेठि अधः। __तादृक्षः। विष्वक्, समन्तात्। कुलं रणरणकं वा। उपरि उपरि । ईसउ ईटक्, ईदृशः, ईदृक्षः। उगमगउ अवाटमकः । उरलिउं अबोचीनम् । पइलउ पराचीनः । आडु तियक् । अन्यसरीषउ अन्यसदृक्, झलझांखसउ चलत(द्) विलखउ विलक्षः। तिरिछउ तिरश्चीनः। अन्यसदृशः। ध्वालम् । आगलि अग्रे. पुरः। दहद्रहवार जयद्रथवेला । [तुम्हसरीघर?] भवा- ऊधाधलं. उद्धालेकम् । तांगणी तनगमनिका। आगिलउ अग्रेसरः। दृशः, भवादक्षः । सूगामणउं सूकाजननम् । गोई गोसली गोप्यसिश)पाछिलउ पाश्चात्यः। तूंसरीषउ त्वादृशः। पींप नही क्षेम क्षितिर्न हि। 1 लाका। सरीषु सदृक्, समानः, मूसरीषउ मादृशः। अहिवा अधवा । उकरडी अवकरोत्करिका । ___ सदृशः, सदृक्षः। तम्हसरीषु युष्मादृशः। सूहव सुधवा । पुंजउ अवकरः सङ्करश्च। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिक पदानि । उक्त व्यहु प्रकारि - कर्त्ता, कमि, भावि, कर्मकर्त्ता । जउ उक्ति पाधरी हुइ - उक्तिमाहि कर्त्ता कर्म हुइ ते उक्ति कर्त्ती जाणिवी चांकी उक्ति हुइ तु माहि कर्त्ता हुइ, कर्म न हुई तउ ते उक्ति भावि जाणिवी । जु कर्म्म फीटी कर्त्ता आविउ हुइ, ते उक्ति कर्मकर्त्ता जाणिवी । कर्त्ता परस्मै पद दीजइ । कम्मि भाविं 1 आत्मनेपद दीजइ । पुरुष केता ? ३ । कुण कुण ? प्रथम, मध्यमु, उत्तमु । नामि बोलावीय ते प्रथमपुरुष । तु हि मध्यम पुरुष हुइ । हुं अम्हि उत्तम पुरुष | काल केता ? ३ । कुणकुण? वर्त्तमान, अतीत, भविष्य । वर्त्त वर्त्तमानु, व अतीतु, वर्त्तसिइ भविष्यु । वर्त्तमानकालि ३ विभक्ति हुइ - वर्त्तमाना, सप्तमी, पंचमी । अतीत कालि ४ बिभक्ति—ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, स्म संयोगि वर्त्तमाना । भविष्यकालि ३ विभक्ति - भविष्यन्ति, आशिः, श्वस्तनी | करइ, लिइ, दिइ; करत, ल्यथ [द्यथ ?]; करूं ल्युं, घुं, इसइ बोलि वर्त्तमान कालु | वर्त्तमानानुं परस्मैपदु दीजइ । कीजइ, लीजइ, दीजइ; कीज, लीज, दीज; कीजुं, दीजुं, लीजुं; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु वर्त्तमानानुं आत्मनेपदु दीजइ । । करिजे, लेजे, देजे; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु । सप्तमीनुं परस्मैपद दीजइ । कीजिजे, लीजिजे, दीजिजे; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु । सप्तमीनुं आत्मनेपद दीजइ । करइ, लिइ, दिइ; करउ, लिउ, दिउ; इसइ बोलिवइ वर्त्तमानु कालु । पंचमीनुं परस्मैपदु दीजइ । ६५ करतउ, लेतउ, देत; करता, लेता, देता; करती, लेती, देती; करतउं, लेतउं, देतउं; इसइ बोलिवइ अतीत कालु । ह्यस्तनी अद्यतनी परोक्षानुं परस्मैपदु दीजइ । कीजउ, लीजउ, दीजउ, इसइ बोलि वर्त्त - मानु कालु | पंचमीनुं आत्मनेपदु दीजइ । उ०र०९ कीधुं, लीधुं, दीघुं; कीधा, लीधा दीधा; कीधी, लोधी, दीधी; इसइ बोलिवइ अतीत कालु । ह्यस्तनी अद्यतनी परोक्षानुं आत्मनेपद दीजइ । करिसिइ, लेसिइ, देसिइ; करसुं, लेसुं, देसुं; करिस्यडं, लेस्यउं, देस्यउं; इसइ बोलिवइ भविष्यु कालु । भविष्यन्तीनुं परस्मैपदु दीजइ । करीसिह, लीजसिह, दीजसिह; इसइ बोलि भविष्य कालु | भविष्यन्तीनुं आत्मनेपदु दीजइ । भविष्यकालि आशीर्वादयोगी आशीर्विभक्ति दुइ; अनइ भविष्य कालि योगि श्वस्तन विभक्ति दीजइ । भविष्यंतीनी वाणी बोलीइ । बोलिवइ अतीत कालु। क्रियातिपत्तीनउं परस्मैपद जउ-जु करत, जु लेत; जु देत; इसि दीजिइ । जु कीजत, जु दीजत, जु लीजत; इसिइ बोलिवइ अतीत कालु । क्रियातिपत्तिनउं आत्मनेपद दीजइ । कर्ता परस्मैपद दीजइ, कमि आत्मनेपदुदीजइ । I अथ त्यादि विभक्ति केती ११० । कुण कुण : वर्त्तमाना १, सप्तमी २, पंचमी ३, ह्यस्तनी ४, अद्यतनी ५, परोक्षा ६, श्वस्तनी ७, आशीः ८, भविष्यन्ती ९, क्रियातिपत्ती १० । अकेकी विभक्तिं १८ वचन - ९ परस्मैपद तणां, ९ आत्मनेपद तणां । ति, तस्, अन्ति; सि, थस, थ, मि, वसू, मसू, इं नव परस्मैपद तणां । ते, आते, अन्ते, से, आथे, ध्वे, ए, वहे महे; इं नव आत्मपद तणां । ति तस्, अन्ति; इति प्रथमपुरुषः । सि, थस्, थः इति मध्यमपुरुषः । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ मि, वसू, मसू; इति उत्तमपुरुषः । ते, आते, अन्ते इति प्रथमपुरुषः । से, आथे, ध्वेः इति मध्यमपुरुषः । ए वहे, महे; इति उत्तमपुरुषः । ति, एक वचनु; तस्, द्विवचन; अन्ति बहुवचनु । सि, एकत्रचनु; थस्, द्विवचनु; थ, बहुवचनु । सि, एकवचनु; वसू, द्विवचन; मसू, बहुवचनु । एवं सर्वत्र । कर्त्ती प्रथम पुरुष हुइ तु क्रियां प्रथम पुरुष हुइ । जु कर्त्ता मध्यम पुरुष हुइ तु क्रियां मध्यम पुरुष हुइ । कत्ती उत्तम पुरुष हुइ तु क्रियां उत्तम पुरुष हुइ । कर्त्ता आगलि एक वचनु हुइ, तु क्रिया आगलि एक वचनु । जु कर्त्ता आगलि द्विवचनु, तु क्रिया आगलि द्विवचनु । जु कर्त्ता आगलि बहुवचन, तु क्रिया आगलि बहुवचनु । कर्त्ता उक्ति हुइ तु [ क्रिया आगलि ? ] कर्त्तानी अपेक्षां विभक्ति दी जइ । जु कम उक्ति हुइ तु क्रिया आगलि कर्मनी अपेक्षां विभक्ति दीजइ । [ शब्द संग्रह ] चउकीवटु चतुष्कपट्ट । वटवानुं वर्त्मपालनम् । desi द्विघटम् । गुढरं गुदगूढम् । चउकीवटा चतुष्कपटः । वाटवाणूं वर्त्मपालनम् । बेहडूं द्विघटम् । गुढ गुदगूढम् । विसरहिडी क्षिप्रसरही अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि ण्डिका । ओरस अवघर्षकः । घरट धर्षकः । वेसर द्विशरीरः । भरत परत चाप सरीषउ आकृत्या प्रकृत्या पित्रा सदृशः खीस विकः । कोयली कोथली । अवाणू अभ्यानीकम् | पाडेबा पथादनीकम् । वूस [च] | चुहुली छुपुटिका | कावजि कायाटनी, काया वालिनी वा । खिसर हंडी क्षिप्रसरहिंडिका । ओरसु अवघर्षः । घर्षक: । घरट्टु वेरु द्विशरीरः । अरतपरत बापसरीष अवाणु अग्रानीकम् । पाछेवाणु पश्चादनीकम् । मौ मार्गीकाः, मुक्तौकाः । वेड विकटशृङ्गी । मढी मिलितशृङ्गी । फाडी प्रसृतशृङ्गी । कुंडली कंडलितशृङ्गी । मुहषायी परोक्षवादः । लिपसणडं लिप्स्यायनम् । वहल वीतवेत्रा । पटांतरं प्रत्यन्तरम् । विज्जाहरी विजयगृही | कोड कोष्टक | stee डोलत्करः । छडणि छिद्राटनी | छेकडि छिद्रकरी | सीरामणु शीताशनं, शरीराप्यायनकं वा । उडि संवृत्तपटी | गरढड गतार्धवयाः । वडीयायित वस्तुवित्तः । नीक नीरक्ता । ऊलसीधुं उल्लासितसन्धिकसू, उत शलं वा । मार्गोकाः [ मुक्तौका वेगडी विकटशृङ्गी । मीढी मिलितशृङ्गी । फाडी प्रसृतराङ्गी । आकृत्या प्रकृत्या च पितृसदृशः । खाई परोक्षवादी | लिपसणूं लिप्तायिकम् । वरहलि वीतवेत्रा । वरसवियाणि समांसमीना । पटांतरूं प्रत्यन्तरम् । वा] [विज्ञाहरी] बिजयगृहा । कोठउ कोष्टकः । डोकर डोलकरः । छीडणि छिद्राटिनी | Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीरष शीतरक्षा । तुलाई तूलिका | ऊसीसउं उपधानम् । शलाटु शिलाघटकः । मडि मड्डिका । अविज्ञात विद्वत्सं गृहीतानि औक्तिकपदानि खंडातु खड्गवित्तः । भथायितु तूणवित्तः, भस्त्रवित्तो वा । पूण पिचुमर्दी | आंगड अंगमंडनम् । कागु काकः, वायसो वा । वावि वापी | कूड कूपः, अन्धुः । तलागु तडाग, जलाधारः । खोखली दीर्घिकाः पडूकरणम् । बगाई नृभिका | चीपडी चिपटः । गूंहली गोमुखा । कोस कालि कालिकः । व (च?) णहडीउ चणकवर्तकः । लुंकड लोकटिका । सवार सवेला । मां कुण मत्कुणः । कालाखरिङ कालाक्षरितः, दाणी । धणिउ झणितः । दीवाली दीपालिनी, दीपोत्सवो वा । त्रुटी त्रिपुटी | धुलहडी धूलिपटिका, धूलितटी, रजोत्सवो कोषसमृद्धः । वा । थुंकु निष्ठीव । आभूयानुं उद्भिद्यमानम् । झगडउ उद्गदः । छयारु गेयकारु | चिणोठी चित्रपृष्ठा, गुंजा, कृष्णलवा । डक अपराख्या । ढांकडं स्थागनकम् । सूरजं शयनगृहम् । पथरणारं प्रस्तरणम् । ओढणउं आच्छादनम् । नणंद ननन्दा | नणदोई ननान्पतिः । जमाई जामाता । नाणिद्रउ ननान्दृसुतः । भत्रीजर भ्रातृजः, भ्रातृसुतः । परीयडु निर्णेजकः । छीप रजकः । ffairs aौकिकः । arya अनग्निकः । फिरक स्फुरितचत्रिका | पाटूआली पादप्रहारवती । पाणीकण षा (खा) दनपरम् । परमूणउं परमदिवसीयम् । पुरोकडं प्रावर्षीयम् । सरलउ दीर्घः, प्रलंबः । ऊघडदूघउ उद्घटदुर्घटः । कहू आलउ कोलाहलः । देसानी छायाकरः । मोलीउं ( मूर्द्धवेष्टनम्, मोसंधीयुं । उष्णीषं वा । निलाड ललाट, निटिलं वा । पोटीङ पृष्ठवाहक ! अरणइ अरति । राजगुल राजकुलम् | Part किल । बिमणउं द्विगुणम् | ६७ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ त्रिगुणु त्रिगुणम् । चउगुणरं चतुर्गुणः । चीषलालुं कर्द्दमाकुलं, पङ्किलं वा । परिवाखुं प्रपारितम् । मुई मन्दं मन्दम् | वली वली पुनः पुनः । पालटर परिवर्त्तः । पालटिङ परिवर्तितः । बापडउ बराकः । विहर व्यतिकरः । अविज्ञात विद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि नान्हउ लघु, हख । कडब कणीम्बा | आरती आरात्रिका | लागु लग्नः । लगाडिउ लगितः । पाटलउ पाटचारः । जुहारु नमस्कारः । सोहिलउं सुखावहम् । दोहिलडं दुःखावहम् | रुलीयामणउं रतिजनकम् । ऊदेगामण उद्वेगजनकम् । उताई राजपुत्रता । राउत राजपुत्र । द्रम्मामु द्रम्ममय । अणि अपशकुनिक । सुण शकुन । स (सु) उं खप्नम् | अंबोse धम्मिल्ल | वीणि वेणि । मांडहिय बलात्कारेण, हठाद्वा । घायंस सहसैव । देहरारु देवतावसरः । आरतीयासरु आरात्रिकावसरः । सर्वोरु सर्वावसरः । मोटर स्थूल । धूपधाणडं धूपधाम, धूपदहनपात्रम् । वरांसि विपर्यस्त | ain विपर्यास | आखुडिउ अवस्खलित । घोडाहाड वाजिशाला, अश्वकुटी वा । रसोय रसवती, पाकस्थानं, महानसं वा । भंडारु भांडागारः, कोशो वा । मंत्रास [ मंत्रावसरः ] । हथसाल हस्तिशाला, गजसदनं वा । श्रीगर श्रीकरणम् । वयगरणउ व्ययकरणम् । asiमंची घटमञ्चिका । दाब जलयंत्रम् | अरहड्ड अरघट्टक | परव प्रपा । छमकाव्य छमत्कारितम् । अवाडूउ प्रतिकूल । सवाडूउ सानुकूलः । पडीसारख प्रतीसारक । गुडित: । पाव ( ख ? ) रिउ प्रक्षरितः । कुजि को जानाति । हि बाद, बालहिता वा । वरगडु वराकर्षक | जानुत्र यज्ञयात्रा | जानावासउ यज्ञावासक । एकउडर एकपटक | घूघटि अवगुण्ठन । गमाणि गवादिनी । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहरजाहर आगमनगमनिका । खाजलु खाद्यफलम् । पीजहलु पेयफलम् | मसाहणी महासाधनिक । आखउंडली अक्षपटलिका । बलबली वाचाल, वावदूक मेरा मेराद्यकम् । अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि अभोखणुं अभ्युक्षणम् । ऊलिष उदकोलञ्चन । पच्छोकडु पश्चादोकस्तम् । usो प्रयोस् । उपवासी उपोषित | फुई पितृष्वसा । मासी मातृष्वसा । खिसा । ( माउ ? ) लाणि मालपत्नी । भुजाई भ्रातृजाया । सासू व । पीत्राणी पितृव्यपत्नी । पीत्री पितृव्य । माउलउ मातुल । फुईहा पितृस्वस्त्रीय | माई ( 'हायी ) ) मास्याही · मातृष्वस्रीय | [ ? ] लाही मातुली । देशांतरी देशान्तरिक | पलवटि परिवलितपटी । पिराण प्रतोदः, प्राजिनं, तोत्रं, प्रवयणं वा । चंदौउ चंद्रोदय, उल्लोच । परयच्छ तिरस्करिणी । बाउलु बब्बूल । आंबिली चिंचा, चिश्चिणी वा । दीवी दीपवर्त्तिक । चांद्रिणानी लांप चंद्रायलिप्सा । धातस्वायु धातुस्वादकः । साध (थ ? ) संस्था । आद्रहृणु अधिश्रयणम् । अहिनाणु अभिज्ञानम् । हरावि पराजित । विदाणउ वितानप्रभाव । कोटीलड कुट्टक | परालु पलालम् । अरडकमल्लु अर्यटक[ म ? ]ल्ल | आडि सूतिकागृहम् । भोलड मुग्धः । पाहरी प्राहरिकः । उखु गवाक्ष । fotas निद्रारुद्ध । ऊंडहणुं उद्वहनकम् । खोडउ खञ्जः । पलेवलजं प्रदीपकम् । न्युंजणउं नियन्त्रकम् । गउंछणडं गुच्छनकम् । न्युंछणरं न्युञ्छनकम् । छाणावलि कारीषावली । देही उद्भेदका । आडाबंग तिर्यक्सूत्रिका | ऊटी उट्टीकनम् । कूडछी कूर्मेच्छुका । जो योक्त्रम् । जूंस युगम्। तीन्ह तीक्ष्णम् । कोटडë प्राकारम् । गढ़ दुर्ग: । ६९ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि अथ क्रियावचनानि थाकइ स्थानमाहरति, स्थानयति । मांजइ प्रमाष्टिं । फूटइ स्फुटति । जागइ जागर्ति । पतीजइ प्रत्येति, प्रत्ययति, प्रतीयते । गायइ गायति । वरासीयि विपर्यस्यते । होमइ जुहोति । जाम(य?)इ जायते । गूंथइ गुथ्यति । हुइ भवति । करइ करोति, कुरुते, विदधाति, विधत्ते ।। खाजइ कण्डूयति । धरइ दधाति, धत्ते, धरति, धारयति । ओलंसइ उपालभते । दि यच्छति, राति, दत्ते, दाति । ऊटंटइ उद्वन्धयति । लि नयति, आदत्ते, गृह्णाति, विगृह्णाति । क्रमइ कामति । ऊडइ उत्पतति, उड्डीयते। आयसिइ आदिशति । आचरइ आचरति। वाधइ वर्द्धते । पवित्रइ पवित्रयति, पुनाति । निवीजइ निर्विज्यते । ऊपणइ उत्पुनाति । कुपइ कुप्यते, क्रुध्यति, रुष्यति । धूपइ धूपायति । तोलइ तूलयति। क्षरइ क्षरति । सहइ क्षमति, तितिक्षति, सहते, क्षाम्यति, वीकइ विक्रीणाति, विक्रीते । मृष्यति । मर्दइ मुद्राति ( मृदाति ?)। मरइ म्रियते, विपद्यते। मिलइ मिलते। आषुडइ आस्खलति । अडइ अड्डते । फडफडइ फटफटायते । छूटइ छुट्यति । शपइ शपति, शप्यते इत्यादि । ऊठइ उत्तिष्ठति । तिष्ठति गम्ल दृशूज्वलो नीठइ निस्तिष्ठति । स्पृहस् पृच्छति नी पचक् पठौ । किरगिरइ किरगिरति । क्षिप् भणौ विश मुंच षिच् कृषौ वषाणइ व्याख्यानयति । त्यज दहौ तरति स्तु चल त्रमौ ॥१ छिछ(प?)इ छुपति, मृशति । लिखन् मोखन् जिघ्रति वर्षे वावइ वपति । पिब् पतेऽथ जि जीव परस्मै । चोरइ मुष्णाति, चोरयति । यज् वपौ वद् वे वसौ ऊखेडइ उत्कीलयति । वहत्युभयमाह भवादिगणानाम् ॥ २ डांभइ दन्नाति । वर्तते च रमते वृध्व्यथौ वारइ वारयति, निवारयति, निषेधयति । याचते च लभते च शोभते । पल्हालइ प्रक्लियति । कंपते च घटते सुखायते पालुइ पल्लवयति। प्रारभते सहते तदात्मने ॥ ३ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्सं गृहीतानि औक्तिकपदानि अद् हन् इणू भा वा शास्ति वा जागृ माति खप रुद वच वायाम्नात्यदादि: परस्मै । दुह लिह चदा धत्ते भयं स्तुड् भी ही निगदित इह लोके आत्मने षूङ् धातुः ॥ ४ व्यध् हृष्ट कुप् तृत्यनशोष लिप् दुषौ क्लिब शाम्यति तुष्यति । भ्रम कुपौ च दिवादि परस्मै तम विदौ दौ गदितस्तु किलात्मा ॥ ५ विञ् वृञ् किल दुञ शकापौ स्वादिगा निगदितास्तु परस्मै । रुदभिदा छिद भुंजयुजौ वा भुजयुता उभयं च रुधादिः ॥ ६ ॥ तनोति डुकृञ भयं तनादिः स्तृपू ग्रह ही मुष लूड विक्री । क्रियादयः पायुभयं च चिति लोके समाजिधुरताडि भिक्षैौ ॥ ७ अविकरण कर्त्तरि । दिवादेर्यत् । नु खादेः तनादेरुः । ना ऋयादेः । चुरादेश्व । इमानि सर्वाणि विकरणसूत्राणि । । परस्मैपदे ह्यस्तनीं यावत् । आत्मनेपदे सर्वत्र सार्वधातुके यण् । लज्जासत्ता स्थितिजागरणं वृद्धिक्षय भयजीवितमरणम् । शयनक्रीडारुचिदीप्त्यर्था धातव एतें कर्मविहीनाः ॥ १ [ कर्मणि वाक्य ] लाजीइ अनेन हीयते । तई भलई हुईइ त्वया भव्येन भूयते । म रही मया स्थीयते । पाहरी जागीर यामकेन जागते । युवाइ असौ वर्द्धते । एयु जीवइ असौ जीवति । वयरी मरीइ अरिणा म्रियते । ७१ त्वया सुप्यते । बालेन रम्यते । दानिना शोभ्यते । कर्त्तरि कर्म्मण्यपि कर्म्म नागच्छति । अथ द्विकर्मको भावः । दुहि याचि रुधि प्रच्छिभिक्ष चित्रानुपयोगिनिमित्तमपूर्वविधौ । ब्रुवि शासिगणेन च यत्सते ( ? ) तदकीर्त्तितमाचरितं कविना ॥ १ जयत्यर्थयती मन्थि चतुर्थो दण्डयत्यपि । एभिः सह बुधैर्ज्ञेया द्वादशैत्र दुहादयः ॥ २ नवोकृषोचापि गत्यर्थानां तथैव च । द्विकर्मकेषु ग्रहणं ण्यन्ते कर्म च कर्मणः ॥ ३ असौ गां दोग्धि पयः । विप्रो राजानं गां याचते । असौ गामवरुणद्धि व्रजम् । पान्थरछात्रं पन्थानं पृच्छति । असौ वृक्षमवचिनोति फलानि । विप्रः शिष्यं धर्मं ब्रूते । पण्डितः शिष्यं धर्ममनुशास्ति । कोऽपि बुद्ध्या ग्रामं छात्रशतं जयति । प्रार्थयति राजानं ग्रामं गुरुः । मध्नन्ति स्म जलधिं देवासुराः । 1 [ द्विकर्मक वाक्य ] देवदत्तु गनुं स दंड असौ देवदत्तो गर्गान् शतं दण्डयति । ए छाली गामि लिइ अजां नयति ग्रामम् । ए कुंभतणु भारु हरइ असौ कुंभं भारं हरते । वहति ग्रामं भारं देवदत्तः । कर्षति शाखां ग्रामं देवदत्तः । इन्तेऽपि द्विकका भवन्तिभोजयति पायसं छात्र कश्चित् । बोधयति बटुं ग्रन्थं गुरुः । वाचयति श्लोकं पुत्रं पिता । कर्मण्यपि द्विकर्मका भवन्ति - दुह्यते गौः पयो गोपालेन । याच्यते राजा गां विप्रेण । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि रद्ध्यते गौर्ब्रजं गोपालकेन । ददाति, असौ ऋत्विग्भ्यो दक्षिणां वितपृच्छ्यते छात्र: पंथानं पान्थेन । रति, इत्यर्थे पारलौकिके निःस्पृहे चतुर्थी । अवचीयते वृक्षः फलानि पुरुषेण । भूतंतउ प्राणीया भला भूतानां प्राणिनः अनुशिष्यते छात्रो धर्म पण्डितेन । श्रेष्ठाः । प्रार्थ्यते राजा ग्रामं गुरुणा । प्राणीयां तु मतिजीवी भला प्राणिनां एवं सर्वत्र। मतिजीविनः श्रेष्ठाः । पूर्वकर्तरि षष्ठी, कर्मणि षष्टी, करणषष्ठी,, इत्यर्थे अपादाने । संप्रदानषष्ठी, अपादानषष्ठी, संबंधिषष्ठी, निर्धा- निर्धारणे षष्टी, सप्तमी च भवतिरणषष्ठी, काले भावे षष्ठी, अधिकरणषष्ठी-एते मनुष्यमाहि ब्राह्मण श्रेष्ठ मनुष्येषु षष्ठीभेदाः । सर्वत्र षष्ठीबाधकानि कारकाणि । ब्राह्मणाः श्रेष्ठाः । तई गामि जाइवउं गन्तव्यं ते ग्रामे । गाईमाहि काली गाइ घणु दूधु गोषु मइ घरि रहिवउं मम गृहे स्थातव्यम् । __ कृष्णा संपन्नक्षीरा गौः। कृत्यानां कर्तरि वा षष्ठी इति सप्तमी च भवति । एयु शास्त्र वाचणहारु असौ शास्त्राणां बांभणनउं घरु ब्राह्मणस्य गृहम् । वाचयिता । व्यासनउं ग्रामु व्यासस्य ग्रामः । इति संबंधिषष्ठी। एयु वेद पढणहारु असौ वेदानामध्येता। णकतचोः कर्मणि षष्ठी, इतरेषां द्वितीया। लोक विक्रमादित्यु राउ स्मरइ लोको विक्रमादित्यराज्ञः स्मरति । एयु अन्नि ध्रायु असौ अन्नानां तृप्तः । विसनरु काष्टि न ध्रायु अग्निः काष्ठानां एयु बोल्या प्रयोग संभारतउ श्लोक न तृप्यति । नींपजावइ असावुक्तानां प्रयोगानां स्मरन् श्लोकान् निष्पादयति । पाणी भरि सरोवर जलस्य पूर्ण तडा- श्रीवासदेव दैत्य मारइ श्रीवासुदेवो गम् । दैत्यानां निहन्ति । कोठउ कणि भरिउ कणानां पूर्णोऽयं राउ बांभणना वयरि मारइ राजा विप्राणां वैरिणां नाति (हन्ति)। इत्यर्थे पूरिसुहितार्थानां करणे पष्ठी । इत्यर्थे स्मरणहिंसार्थानां प्रयोगे कर्मणि एयु प्रधानरहि लांच भइसि दि असा षष्टी। वमात्यस्य लञ्चया महिषीं ददाति । ___ एयु देवतणइ अर्थि फूलपत्री मेलइ एयु पोष्यवर्गरहिं यावज्जीवु भरणु असौ देवताभ्यः पुष्पपत्राणामुपस्कुरुते। पोषणु दि असौ पोष्यवर्गस्य याव- एयु श्राद्धतणइ अर्थि चोषा मुग ज्जीव भरणपोषणं ददाति । मेलइ असौ श्राद्धाय तन्दुलमुद्गानामुऐहिकफलार्थसंप्रदाने षष्ठी, पारलोके च पस्कुरुते । चतुर्थी । यथा - कश्चित् ब्राह्मणेभ्यो गां इति करोतेः प्रतियत्ने कर्मणि षष्ठी। ___ कोष्ठकः । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि एयु दोरी सापु भणी जाणइ असौ गत्यर्थकमणि चतुर्थी वारज्जु सर्पस्य जानीते। ग्रामं गच्छति, प्रामाय गच्छति असौ । एयु तेलु घीउ भणी जाणइ असौ तैलं कर्मप्रवचनीयैश्च । अनु-अभि-प्रति एते घृतस्य जानीते। कर्मप्रवचनीयाः । एषां योगे द्वितीया । एयु एकलउ विदेशि जातउ भयतउ अनुशब्दः पृष्ठे अभिज्ञाने मध्ये सन्मुखे समीपे पीलउ पुरुषभणी जाणइ असौ सहाथैएकाकी विदेशं व्रजन् भयात् कीलकं तु पूठि त्यामनु । नरस्य जानीते। पर्वतनइ अहिनाणि गामु वसइ इत्यर्थे संभ्रान्तिज्ञाने जानातेः कर्मणि षष्ठी। पर्वतमनु नगरं वसति । सुखदुःखाभ्यां करणे द्वितीया आंबामाहि कोइलि बासइ सहकारमनुएयु सुखिहिं दीहाडा नींगमइ असौ ___ कोकिला कूजति। सुखं दिनानि निर्गमयति। वृक्ष सामहुँ आभउं वृक्षमन्वझपटलम् । एयु दुःखिं द्रव्यु उपार्जइ असौ दुःखं देवालय कन्हलि तीथु छा देवालयमनु द्रव्यमुपार्जयति । तीर्थं तिष्ठति। हेत्वर्थे तृतीया तइसउं वात करइ लागनु वाती करोति। राउ लोकपाहिं करसणु करावइ राजा गुरु साम्हु ऊठ असा गुरु म्युत्तिष्ठति। लोकः कर्षणं कारयति । ग्रामि दीहाडी प्रति एकु द्रम्मु लहइ ब्राह्मणु शिष्यपाहिं पोथउं लिखावइ प्रामे प्रतिदिनं दम्मकं लभते । एयु ब्राह्मणप्रति भक्ति बोलइ असौ विप्रः शिष्येण पुस्तकं लेखयति । इति हेतु कर्ता। प्रतिविग्रं भक्ति जल्पति । कालाध्वभावदेशानां कर्मसंज्ञा उभयतः परितः सर्वतो योगे द्वितीया देवालय बिहंगमे वड दोसई देवालयवैष्णवु रातिं च्यारइ पुहुर जागइ रज- . जागइ रज- . मुभयतो न्यग्रोधो दृश्यते। न्याश्चतुरो यामान् जागर्ति वैष्णवः । घरपालि वाडि करइ गृहं परितो वृति सात मसवाडा नइ वहइ सप्तमासान्नदी करोति । गाम सविहं गमा क्षेत्र वाव्यां ग्रामं कापि कृतो हीने कर्मणि प्रधानक्रियापेक्षया सर्वतः क्षेत्राण्युप्तानि । द्वितीया न भवति उपर्यधोऽधीनां सामीप्य एव कर्मद्वित्वे-- तइं वयरी आणी बांधीवउ त्वया उपरि ऊपरि गामु उपर्युपरि प्रामम् । रिपुरानीय बध्यताम् । हेठलि हेठलि नगरु अधो अधो नगरम् । 'विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्।' अदूरे एनोऽपञ्चम्याः, एनप्रत्ययान्तयोगे द्वितीयाईणं हु व्यारीउ द्रव्यु लीधउ अनेनाऽहं गाम दाहिण गमइ ढूकडी वाडी ग्राम विप्रतार्य द्रव्यं गृहीतः। दक्षिणेन निकटं वाटिका। उ० र० १० वहति । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि गाम बिहुं विचि नदी गामद्वयमन्तरा नदी। स्यातां यदि पदे द्वे तु, यदि वास्य बहून्यपि नगरनइं उत्तर गमइंदूकडउ पर्वतु तान्यन्यस्य पदस्यार्थे बहुव्रीहिः समस्यते ॥ नगरमुत्तरेण निकषा पर्वतः । (४) जीणई समासि बि पद अथ समयाहाधिगन्तरान्तरेण युक्ता द्वितीया घणां पद अनेरा पद तणइ अर्थि तू कन्हलि त्वां समया । मेलाई तेयु समासु ब्रहुव्रीहि एयु मुंडउ एनं धिग्। जाणिवउ, अनइ बहुव्रीहि समासि तू पाषइ त्वामन्तरेण । यद् शब्द छेहि प्रयुंजीइ। मूं पाषइ मामन्तरेण । (क) घणउ गुड छइ जीण लाडू [समास प्रकरण] प्रभूतो गुडो यस्मिन् मोदके स प्रभूद्विगुर्द्वन्द्वोऽव्ययीभावः कर्मधारय एव च । तगुडो मोदकः । तत्पुरुषो बहुव्रीहिः षट् समासाः प्रकीर्तिताः ॥ (का) सदाचार बांभणु जीणइं गामि पदे तुल्याधिकरणे विज्ञेयः कर्मधारयः। सदाचारा विप्रा यस्मिन् ग्रामे स (१) जीणं समासि वि पद तुल्या- सदाचारविप्रो ग्रामः । धिकरण हुई सु समासु कर्मधार- (कि) घणां निर्मलां पाणी जीणं नदि यसंज्ञिक हुइ। प्रभूतानि निर्मलानि उदकानि यस्यां नीलं उत्पलं-नीलोत्पलम् । उत्तमः पुरुषः नद्यां सा प्रभूतनिर्मलोदका नदी। उत्तमपुरुषः। (की) पामी विद्या जेहि पुरुषि संप्राप्ता [संख्यापूर्वो द्विगुरिति ज्ञेयः] विद्या यैनरैः ते संप्राप्तविद्या नराः । (२) जीणई समासि संख्या गणितु (कु) निर्मलबुद्धि विप्र वैद्य सुभट पूर्वपदि बोलाइ ते समास द्विगु अछई जीण राज भुवनि निर्मलबुजाणिवउ । सप्तऋषयः । पञ्चाम्राः। पञ्चानां मूलानां द्धिका विप्रा वैद्याः सुभटा यस्मिन् राज भुवने तद् निर्मलबुद्धिविप्रवैद्यसुभटं समाहारः-पञ्चमूली। विभक्तयो द्वितीयाद्या नाम्ना परपदेन तु। राजभुवनम् । समस्यन्ते, समासो हि ज्ञेयस्तत्पुरुषस्य च ॥ (कू) रुलीयायित कीधा जीणं बांभण (३) जीणं समासि द्वितीयालगइ तोषिता विप्रा येन स तोषितविप्रः । छ विभक्ति आगिलई पदि सरसी (के) अगिउ वृक्षु जीणई क्षेत्रि मेलीयि सु समासु तत्पुरुषु प्ररूढो वृक्षो यस्मिन् क्षेत्रे तत् प्ररूढजाणिवर। वृक्षं क्षेत्रम् । ग्रामं गतः-ग्राम गतः, ननिर्भिन्नः-नखनि- (कै) इकडी गंगा जीणइं देशि आसन्ना भिन्नः । ब्राह्मणाय देयं-ब्राह्मणदेयम् । गंगा यस्मिन् देशे स आसन्नगंगो देशः । मञ्चात्पतितः-मञ्चपतितः। राज्ञः पुरुषः- (को) सरीषउं नामुं जेहनउं सदृशं नाम राजपुरुपः। अक्षेषु शौण्ड:-अक्षशौण्डः। यस्य स सनामा । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि ७५ (कौ) सरीषउं गोत्रु जेहनउं सदृशं गोत्रं ये ये लहुडा ते ते यमिवा बइसई यस्य स सगोत्रः। यथालघु भोक्तुमुपविशन्ति ।। द्वन्द्वसमुच्चयो नाम्नोर्बहूनां वापि यो भवेत्। एयु जेतला बांभण तेतला निर्वाप (५) जीणं समासि बिहुं नामनउ दिइ असौ यावद्विग्रं निर्वापान् ददाति । समुच्चयुः अथ घणां नामनउ जेतलां खांडां तेतला राजपुत्र यावसमुच्चयु ते समासु द्वंद्व जाणिवउ। खड्गं राजपुत्राः । नरश्च नारायणश्च-नरनारायणौ । पीठं जेसला छात्र तेतला पोथां यावच्छात्रं च छत्रं च उपानच्च पीठछनोपानहम् । ____ पुस्तकानि । ब्राह्मणाश्च क्षत्रियाश्च वैश्याश्च शूद्राश्च ब्राह्म- ब्राह्मणसिउं जाइ सविप्रो याति । णक्षत्रियविट्शूद्राः। साकरसिउं दूध पीइं सशर्करं पयः पिबति। -चकारबहुलो द्वंद्वः। पुत्रसिउं यमइ सपुत्रो भुते । पूर्व वाच्यं भवेद्यस्य सोऽव्ययीभाव इष्यते॥ अव्ययीभावे सहशब्दस्य सभावः । (६) जीणं समासि अव्ययपदसंयुक्त __पारे मध्ये अन्ते योगे द्वितीयापूर्वपद वाच्यु हुइ सु समासु अव्ययी- समुद्रमाहि रत्न नीपजई मध्येसमुद्रं भाव जाणिवु । रत्नानि निष्पद्यन्ते। गामनइ पाषइ अधिकरी प्रवर्तइ । नइमाहि माछा हीडई मध्येनदी मत्स्या ___ अधिग्रामं नरः । विचरन्ति । सामीप्ये अव्ययीभावः पाणीनइ पारि देवालयु पारेजलं देवाघर कन्हलि वृक्षु उपगृहं वृक्षः।। लयानि । वृक्ष कन्हलि घर उपवृक्षं गृहम् ।। पाणीनइ छेहि वृक्षु अन्तेजलं वृक्षः । बांभणनउ अभावु ब्राह्मणानामभावः तलाव विचि देहरउं अन्तस्तडागं देव- अब्राह्मणम् । गृहम् । मापीनउ अभावु मक्षिकानामभावो गाम विचि वडु मध्येग्रामं वटः । __ निर्मक्षिकम् । परिशब्दो वर्जनेअनुयोगः पश्चादर्थे पाटण टाली किहां वसीइ परिपत्तनं बांभण पाछलि शिष्य अनुवित्रं शिष्यः । ____ कापि नोष्यते। राजा पाछलि सेना अनुराजं सेना । नास्तिक टाली कुण पापीउ परिनास्तिकं वर पाछलि गीत गाती स्त्री अनुवरं ___कोऽपि न पापी । गानगायन्त्यो नार्यः । आङ् यावदर्थे मर्यादाभिविधौ-आ गृह केदारसमीपि सरस्वती अनुकेदारं सर- यावद्गृहम् , आ ग्रामं यावद्ग्रामम् । खती। __ एवं अव्ययीभाव समास नपुंसकये ये वडा ते ते मान लहई यथावृद्धं लिंगीयु जाणिवउ । मानं लभन्ते। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि अथ तद्धितप्रत्यया लिख्यन्ते- जननउ समूहु जनता । मजीठ राती साडी माजीष्ठा साटिका। बंधुनउ समूह बन्धुता । हलगुआं वडां हारिद्राणि वटकानि । इति सहायीयांनउ समूहु सहायता । रागयोगात् अण् । __गजात् समूहे घटामघाभियुक्ता रात्रिः दिनं मासो वा–माघी हाथीयांनउ समूह गजघटा । रात्रिः, माघ दिनम् , माघो मासः ।। धेनुहस्तिशब्दात् समूहे कण्फागुण मासतणी पूनिम फाल्गुनी धेनुनउ समूह धैनुकम् ।। पूर्णिमा । हाथीयांनउ समूहु हास्तिकम् । एवं सर्वत्र नक्षत्रयोगे अण् । गुणतत्त्वभूतेन्द्रियविषयशब्दास्त्रकरणानां लाप रातउ कांवलउ लाक्षिकः कम्बलः । समूहे ग्रामो वक्तव्य:............ लाक्षिकी साडी । गुणनु समूहु गुणग्रामः । एवं तत्त्वग्रामः, इति लाक्षारक्तार्थे इकण् । भूतग्रामः, इंद्रियग्रामः, विषयग्रामः, कागनटोलर वायसं वृन्दम् । शब्दग्रामः, अस्त्रग्रामः, करणग्रामः, अंगनानउँ वृंदु आंगनं वृन्दम् । केशशब्दात् समूहे हस्तपक्षपाशा पुरुषतणुं समवायु पौरुपम् । भवन्तिइति समूहे अण् । केशनउ समूहु केशहस्तः, केशपक्षः, पुरुषात् समूहे एयण केशपाशः । पुरुषतणउ समहु पौरुषेयम् । तरुपद्मिनीकुमुदकमलादिभ्यः समूहे स्त्रीतणउ समूह स्त्रैणं वृन्दम् । खण्डो वक्तव्यः । समस्तवृक्षतृणगुल्मस्त्रीनी सभा स्त्रैणी परिपत् । जातिभ्योऽपिस्त्रीर्नु धनु खैणं धनम् । तरूनउ समूहु तरुखण्डम् । [एवं ] पुरुषन वृंदु पौंस्यं वृन्दम् । पग्निनीखण्डम् , कुमुदखण्डम् , कमलस्त्रीपुंसाभ्यां नण् - स्मणौ। खण्डम् । उष्ट्रा उक्ष राजन्य राजन् वत्स मनुष्याणां कर्मदूर्वादितृणादिभ्यः काण्डो वक्तव्यःसमूहेऽकम् कर्मनउ समूहु कर्मकाण्डम् । ऊंटनउ समूह औष्टकम् । दूर्वानउ समूहु दूर्वाकाण्डम् । वृषभनउ समूहु औषकम् । तृणानु समूहु तृणकाण्डम् । रायतणउ समूहु राजन्यकं, राजकम् । आदिग्रहणात्वत्सनु समूहु वात्सकम् । मनुष्यनउ समूहु मानुष्यकम् । अंधारानउ समूहु तमस्काण्डम् । ग्रामजनबन्धुसहायानां समूहे तल् गणिकानां समूहे यणग्रामतणु समूहु ग्रामता । गणिकानु समूहु गाणिक्यम् । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि अश्वानां समूहे ईय: कूडीरहिं हितूउं चर्म कुतव्यं चर्म । अश्वनउ समूह अश्वीयः । प्रासाद योग्य हितूई ईट प्रासादीया प्रमाणे अर्थे द्वयसट् दनट मात्रट प्रत्यया इष्टिकाः। ___भवन्ति भाणा योग्य हितूउं कांसउं भाजनीय कडि समा गहूं कटिदना गोधूमाः ।। कांस्यम् । गूडां समी पाइ जानुद्वयसी परिखा । गाडा योग्यु हितूउं लोहडळ शाकटीयं कांध समुं पाणी स्कन्धद्वयसं जलं लोहम् । स्कन्धमात्रं वा । करवतरहिं हितूर चर्मु ... ... । पदन्त्यात् इति अदितिभ्यो यण् ।। विसनररहिं हितूर काष्ठ कृशानव्यं दैत्यानां समूहो दैत्यम्, आदित्यानां काष्टम् । समूह आदित्यम् । पांड योग्य हितूई सेलडी खण्डव्या इक्षुः। एयु व्याकरणु जाणइ इत्यर्थे वैयाकरणः । इति उवर्णान्तशब्दात् यः हितेऽर्थे । सूत्रपुराणन्यायमीमांसेतिहासवेदेभ्यो वेत्त्य अन्यत्र ईयःधीतेऽर्थे इकण वत्सरहिं हितूउ वत्सीयः । घोडारहिं हितूर अश्वीयः। सूत्रु पढइ जाणइ असौ सूत्रिकः । एवं पौराणिकः, नैयायिकः, मैमासिकः, पुरुषु राजानी परि दीसइ इत्यर्थे उप ___ भाने वति, पुरुषो राजवत् दृश्यते । ऐतिहासिकः, वैदिकः। चपलपणउं इत्यर्थे तत्वौ भावे चपलता, सुवर्णनां आभरण सौवर्णान्याभरणानि । चपलत्वं, चापल्यम् । रूपानां पात्र राजतानि पात्राणि । अभिव्याप्तौ संपद्यतौ च सातिर्वा देये कप्पासनां वस्त्र कापोसानि वस्त्राणि । त्रा चहरिणनउं चांवडउं हारिणं चर्म । राजा गासु वांभणायतुं करइ राजा मृगतणउं मांसु माग्गै मांसम् । ग्रामं श्रोत्रियसात्करोति । वाघतणां पद वैयाघ्राणि पदानि । देव आयतुं करइ देवत्राकरोति । तस्येदमर्थेऽण् । वरुआयती कन्या संपजइ वरत्रासंपविकृतिवाचिनः प्रकृताबभिधेयायां हितेऽर्थे द्यते कन्या । ईयो यश्च क्षेत्रु विमणइ त्रिमणइ [करइ] द्विगुणाअंगाररहिं हित काष्ठ अंगारीयाणि करोति त्रिगुणाकरोति क्षेत्रं-इत्यर्थे डाच् । काष्ठानि । दाडिमु नीकोलइ निःकुला करोति दाडिपीला योग्य हितूर लाकडउं शङ्कव्यं दारु। मृगु वींधइ सपत्राकरोति मृगम् । बाणरहिं हितूर शरकड इषव्य: शरः- महिषु बाणि आहणइ निष्पत्राकरोति काण्डः । महिषम् । मम् । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविशातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि कणनउ संचकारु आपइ सत्याकरोति जु करत, जु लेत, जु देत इत्यर्थे क्रिया__ कणान् । तिपत्तिः। आंर्षि ग्रहियि रूपु चाक्षुष रूपम् । यद्-यदि-चेद्योगे क्रियातिपत्तिः । कानि सांभलीयि शब्दु श्रावणः शब्दः। पाते वा सप्तमी । पाहणि पीस्या सातू दार्षदाः सक्तवः । जु किमइ हुँ घरि जात, तु एयु मई ऊखलि पांड्या मुग औदूखला मुद्गाः। गामि न मोकलत यदि अहं गृहं घोडे वहीयि रथु आश्वो रथः । यायां तदयं मां ग्रामं न प्रस्थापयेत् । च्युह वहीयि गाडं चातुरं शकटम् । जु किमइ एयु गामि न जात, [तु] चौदसिं दीसइ राक्षसु चातुर्दशं रक्षः । चोरु बलद न लयेत यदि असौ ग्राम इत्यर्थेऽण् । न गच्छेत् ततश्चौरो बलीवर्दान्न हरेत् । गामेचउ ग्राम्यः, प्रामेयः, ग्रामीणः । जे किमइ एयु [गहुँ ?] लेत, तु द्राम नदीनउं जलु नादेयं जलम् । न पडत असौ गोधूमांश्चेद् गृह्णीयात् दक्षिणदिशिउ दाक्षिणात्यः । द्रम्मास्ततो न। पश्चिमीउ पाश्चिमात्यः । अतीते स्मृत्युक्तौ अभिज्ञा भविष्यन्तीपूर्वीयु पौरस्त्यः । जाण अहो पुरुष आपणि लहडा थ्या अहांनउ इहत्यः। [...... ] वस्त्र पहिरता स्मरसि तिहांनउ तत्रत्यः। पुरुष वयं लघुत्वे बहुमूल्यानि वासांसि किहांनउ कुत्रत्यः । परिधास्यामः । यहांनउ यत्रत्यः । पुरअहे दीहाडे मिष्टान्न यमता ............... पार्वतीयानि जलानि [...] मिष्टान्न भोक्ष्यामः । वर्षाकालनउ मेघु प्रावृषेण्यो मेघः । ननु शब्दयोगे पृष्ठप्रतिवचनोत्तरे अद्यतनी शरत्कालनउ तिडकउ शारदिक आतपः । पूर्वादे: उत्तरपदे वर्तमानाभावात् । हस्तलेख्यं हैमंतनु वायु हैमनः पवनः । अकार्षीत् । ननु करोमि भोः । कथं ब्राह्मणं सांझूणउं सायंतनम् । शूद्रान्न भोजयेत् । अन्यायमेव । क्रियासमभिहारे घणदीहुं चिरन्तनम् । सर्वत्र हि-खौ भवतः। घणे दिहाडे आव्यु चिरेणागतः। ब्राह्मण यमिसिं यमिसिं ब्राह्मणा भुक्ष्व भुंक्ष्व । थोडे दिहाडे आविउ अचिरेणागतः। तम्हि कहउ कहउ आपणी वात यूयं वडी वार लगाडइ विलम्बते । कथय कथय निजां वार्ताम् । साहइ अवलम्बते। अम्हि गामि जास्युं जास्युं वयं ग्रामं म दीधु, म लीधु, म कीधु आक्षेपना- गच्छ गच्छ (?) । योगे शतृडानशौ। कालपुरुषत्रयेऽप्येवम् । क्रियासमुच्चयेऽमा योगेऽन्वाक्रोशे इति सूत्रम् , मा कुर्वन् प्येवम् । नाम्न आत्मेच्छायायां यन् काम्य च मा कुर्वाणः, मा ददत् , मा ददानः। गृहीते । गृहकाम्यति । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि दासी वहूवत् मानइ वधूयति दासी नरः। एयु अति वेगलउ असौ दवीयान्, एयु लहुडउ लघीयान् लघिष्ठः । इत्यर्थे दविष्ठः, दविमा ।। . गुणादिष्टे गुण्यसौ वा पृथ्वादिभ्यो भावेऽर्थे एयु अति लहुडउ असौ यवीयान् , यविष्ठः, इमनु वा। यविमा । एय अति पहलउ असौ प्रथीयान् , प्रथिष्ठः, एय अति वहिलउ असौ क्षेपीयान.क्षेपित्रः. प्रथिमा । क्षेपिमा । एयु अति कूअलउ असौ म्रदीयान् , म्रदिष्ठः, एयु अति क्षुद्रु असौ क्षोदिया , क्षोदिष्टः, । म्रदिमा । एवं लघिमा अणिमा महिमा वरिमा क्षोदिमा । गरिमा द्रढिमा कालिमा मलिनिमा । इष्ट ईयर ईमनु वा प्रत्यये प्रशस्यस्य श्रो' । एयु अति घणउ असौ भूयान् , भूयिष्ठः, भवति । वृद्धस्य च ज्य'। अन्तिकबाढयोर्नेद भूयिमा। साधौ। युवाल्पयोः कन्य[चौ] । स्थूलदूरयुवक्षि. एयु अति प्रियु प्रेयर्नु हुयितुं असौ प्रक्षुद्राणां अन्तस्थादेर्लोपो गुणश्च । बहोर्लोपि भू प्रेयान् , [श्रेष्ठः), प्रेमा । च । प्रियस्थिरस्फिरोरुगुरुबहुलतृप्रदीर्घहखवृद्ध- एयु अति स्थिर असौ स्थेयान् , स्थेष्ठः, वृन्दारकाणां प्रस्थस्फवर्गबहत्रप्द्राघहवर्षवृन्दाः। स्थेमा । तद्वदिष्ठेमेयस्य बहुलं प्रत्ययादिलोपश्च । एयु [अति गरूउ वरीयान् , वरिष्ठः, व एयु अति प्रशस्यु असौ श्रेयान्, श्रेष्ठः, रिमा । गरीयान् , गरीष्ठः, गरिमा । श्रेमा। एयु अति बहुलु असौ बंहीयान् , बंहिष्ठः, एयु अति वडउ असौ ज्यायान् , ज्येष्ठः, [बंहिमा । ___ ज्यायिमा । एयु अति लज्जालु असौ पीयान् , पिष्ठः, एयु अति दूकडउ असौ नेदीयान् , [त्रपिमा । नेदिष्ठः, नेदिमा । एयु अति दीर्घ दीर्घनउ हुयिवउं असौ एउ अति गाढउ साधीयान् , साधिष्ठः, द्राधीयान् , द्राघिष्टः, द्राधिमा । साधिमा । एयु ह्रस्वु असौ ह्रसीयान् , हसिष्टः, हसिमा । एउ अति लहुडउ अति थोडउ असौ अति वृद्ध वर्षीयान् , वर्षिष्ठः । कनीयान् , कनिष्ठः, कनिमा । ___एकखराणामदन्तानां च आपागमः । एयु अति मोटउ असौ स्थवीयान्, एयु प्रशस्यु कहइ......। स्थविष्ठः, स्थविमा । असौ श्रापयति । एतद्वाक्यसंवादकानि पाणिनिव्याकरण- ५ स्थूलदूरयुवह्रस्वक्षिप्रक्षुद्राणां यणादिपरं गतान्यमूनि सूत्राणि पूर्वस्य च गुणः । ६-४-१५६. १ प्रशस्यस्य श्रः । ५-३-६०. ६ बहोर्लोपो भू च बहोः। ६-४-१५८. २ वृद्धस्य च । ५-३-६२. ७ प्रियस्थिरस्फिरोरुबहुलगुरुवृद्धतृप्रदीर्धवृन्दा३५-३-६३. रकाणां प्रस्थस्फवबहिगवर्षित्रदाधिवृन्दाः, ४ युवाल्पयोः कनन्यतरस्यां ५-३-६४. ६-४-१५७. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० अविज्ञात विद्वत्सं गृहीतानि ओतिपदानि एयू वडु कहइ असौ स्थापयति । एयु टूक कहइ असौ नेदयति । एयु गाउ कहइ असौ साधयति । एयु तरुण कहइ असौ यवयति कनयति । अतिहिं हुइ बोभूयते, बोभूवति, बोभोति । अतिहिं जाइ, वली वली जाइ जन म्यते, जङ्गमीति, जङ्गन्ति । अतिहिं ज्वल जाज्वल्यते, जाज्वलीति, जाज्वति । अतिहिं हसर जाहस्यते, जाहसीति, जाहस्ति । अतिहिं रहइ तेष्ठीयते, तारथायते । अतिहिं देपई दरीदृश्यते, दरीदृशीति, दरीदृष्टि | रीस्थाने लुकि रिरौ वा दरिदृष्टि, दर्दृष्टि । अतिहिं नाचइ नरीनृत्यते, नरीनृतीति, ननर्त्ति, नर्ति । अतिहिं वरसई वरीवृपीति, वरीवृष्टि, araf, f । अतिहिं पूछइ परीपृच्छयते, परीपृच्छीति परिपर्टि, पर्पष्टि । अतिहिं जाइ सरीस्रियते, सरीसरीति, सरसति, ससर्त्ति । अतिहिं मरइ मरीम्रियते, मरीमरीति, ममर्ति, मर्मति । अतिहिं लिइ नेनीयते, नेनेति । अतिहिं पचइ पापच्यते, पापचीति, पापक्ति । अतिहिं पढइ पापठ्यते, पापठीति, पापट्टि । अतिहिं भणइ बंभण्यते, बंभणीति, बंभण्टि | अतिहिं प्रेरइ चेक्षिप्यते, चेक्षिपीति, चेक्षिप्ति । अतिहिं लिखइ वावश्यते, वावशीति, वाष्टि | अतिहिं मूकइ मोमुच्यते, मोमुचीति, मोमोक्ति । अतिहिं सींचइ सेसिध्यते, सेसिचीति, सेसेक्ति । अतिहिं छांडइ तात्यज्यते, तात्यजीति, तात्यक्ति । अतिहिं दहइ दन्दह्यते, दन्दहीति, दन्दग्ध । अतिहिं जपइ जञ्जप्यते, जञ्जपीति, जञ्जति । अतिहिं दोहइ दोदुह्यते, दोदुहीति, दोदोग्धि । अतिहिं गात्रु नामइ जञ्जभ्यते, जञ्जभीति, जञ्जब्धि । अतिहिं रमइ रंरम्यते, रंरमीति, रंरन्ति । अतिहिं नमइ नंनम्यते, नंनमीति, नंनन्ति । अतिहिं तरइ तेतीर्यते, तेतरीति, तेतर्ति । अतिहिं पिसइ शनीश्रस्यते, शनीश्रसीति, शनीश्रस्ति । अतिहिं पडइ पनीपत्यते, पनीपतीति, पनीपत्ति । अतिहिं लाइ पनीपद्यते, पनीपदीति, पनीपत्ति | अतीहिं सूकइ चनीस्कद्यते, चनीस्कन्दीति, चनीस्कन्ति । अतिहिं चूंटइ, विणइ, चिणइ चेकीयते, चेकीयति, चेकेति । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि हुइवा वांछइ बुभूषति । वायिवा वांछइ विवासति । रहिवा थाकिवा थाइवा [वांछइ ] आश्रयिवा,, आशिश्रीषति । तिष्ठासति । सूयिवा ,, शिशयिषति । जाइवा वांछइ जिगमिषति । दोहिवा , दुधुक्षति । देषिवा ,, दिदृक्षति । चाटिवा , लिलिक्षति । बलिवा , जिज्वलिषति । वीहिवा ,, बिमीषति । हसिवा ,, जिहसिषति । लेवा , निनीषति । लाजिवा ,, जिहीषति । पचिवा ,, पिपक्षति । जूझिवा , युयुत्सति । पढिवा ,, पिपठिषति । सुकिवा ,, शुशुक्षति । लाषिवा ,, चिक्षिप्सति । नमिवा ,, निनंसति । भणिवा , विभणिषति । खणिवा ,, चिखास(चिखनिष)ति । पइसिवा ,, प्रविविक्षति । इंघिवा ,, जिघ्रासति । मेल्हिवा ,, मुमुक्षति । पीवा , पिपासति । सीचिवा ,, सिसिक्षति । जीपिवा ,, जिगीषति । छांडिवा , तित्यक्षति । जीविवा ,, जिजीविषति । दहिवा ,, दिधक्षति । मरिवा , मुमूर्षति । तरिवा , तितीर्षति । देवा , दित्सति । सांभलिवा, शुश्रूषति । चालिवा ,, चिचलिषति । धरिवा ,, धित्सति । फिरिवा , विभ्रमिषति । आरंभिवा ,, आरिप्सति । लिखिवा ,, लिलिखिषति । लहिवा ,, लिप्सति । चरिवा;, चुचूर्षति । सेकिवा , सिसिक्षति । पूछिया , पिप्रच्छिषति । पडिवा ,, पिपतिषति । धरिवा ,, दिधरिषति । पामिवा ,, ईप्सति । रमिवा ,, रिरंसति । फाडिवा ,, बिभित्सति । मारिवा ,, जिघांसति । जमिवा , बुभुक्षति । नाहिवा , सिष्णासति । लेवा ,, जिघृक्षति । कहिया , चिख्यासति । पूजिवा ,, अर्चिचिषति । बोलिवा ,, विवक्षति । निकोलिवा वांछइ निक्षुकोषिषति । उ०र० ११ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि रोयिवा वांछइ रुरुदिषति । करिवा वांछइ चिकीर्षति, चिकीर्षितवान्, जाणिवा ,, विविदिषति। चिकीर्षन् , चिकीर्षमाणः, चिकीर्षिता, चोरिवा ,, मुमुषिषति । चिकीर्षितुम् , चिकीर्षणाय, चिकीर्षितुचिणिवा ,, चिचीषति । कामः, चिकीर्षितुमनाः, चिकीर्षिता, चिकीर्षकः, चिकीर्षितव्यम्, चिकीर्षचूटिवा , , । णीयम् , चिकीर्ण्यम् । बीणिवा , " । अतिहि होउ बोभूयितः, बोभूयितवान्, तुणिवा वांछइ लुलूषति । बोभूयमानम् , बोभूयते, बोभूयमानः, पवित्रु करवा वांछइ पुपूषति । बोभूयिता, बोभूयितुम् , बोभूयितुकामः, स्तविवा वांछइ तुष्टुषति । बोभूयितुमनाः, बोभूयिषति, बोभूयितस्मारिवा वांछइ सुस्मूर्षति । व्यम् । एवं सर्वत्र । ॥ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिकपदानि समाप्तानि ॥ ॥ शुभं भवतु ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत शब्दानुक्रम । अतिहिं चूंटइ, ...२ अउ १५, २. ५५, २ अउगनाइ ४२,१ अउज १०, २ . अउधारिवू ५३, २ अउलवइ ४३, १ अउंगउ मुगउ ५६, २ अऊठ ३२, ३ अखत्र १६, १ अखाडउ १६,२ अखोड २२, १ अगर ९, अगेवाण ३२, १ अगेवाणू (प्र०) ६६, २ अग्गिम की ३१, १ अग्गेवाणु ६६, २ अग्यारसि ३१,२ अग्रेतनु ५६, १ अचरिज ६,२ अछइ ७४, २ अछतउ ६०,२ अछिवर्ड ६२, १ अछिवा ६१,२ अछीङ ६०,२ अछूतउ १५, २ अजी ३१, २. ५६, १ अट्ठावीस २८, २ अठतालीस २९," अठत्रीस २८, २ अठहत्तरि २९,२ अठाणू ३०," अठार ५७,२ अठारमउ ३०,२ अठावन २९, १ अठाही ३३, २ अठ्यासी २९,२ अडइ ४३, २. ७०, १ अडवडइ ४२,२ अडसठि २९, २ अतिहिं लिइ ४०,१ अढार २८,१ अतिहिं लिखइ ८०,२ अढार १८,१ अतिहिं वरसइ ८०, १ अढी २७,२ अतिहिं षिसइ ८०,२ अणगुक ६७,२ अतिहिं सिंचइ ८०,२ अतिहिं सूकइ ८०,२ अणहारउ २४,१ अतिहिं हसइ ८०,१ अणावइ ४८,२ अणाव्यउ ५०,२ अतिहिं हुइ ८०,१ अति ७९, १.७९,२ अथाह ११,२ अद्देसउ १७, २ अतिविस १९, २ अधिकरी ७५, १ अति वृद्धू ७९, २ अतिहि होउ ८२, २ अधूरउ २१, २ अनाड २२, १ अतिहिं गात्रु नामइ ८०,२ अनुमोदिवू ५४,२ अनेकवार ६३," विणइ,चिणइ । अनेतइ २७, . अतिहिं छांडइ ८०, २ अनेति ६३," अतिहिं जपइ ८०, २ अनेथि ५७, १. ६३, २ अतिहिं जाइ, वली , अनेरिसिउ ५५, २ वली जाइ । अनेरि परि ५६, २ अतिहिं ज्वलइ ८०," अनेरीवार २७, १ अतिहिं तरइ ८०,२ अनेरु ५६, १ अतिहिं दहइ ८०,२ अनेसउ २७, २. ६४," अति हिं देषइ ८०," अन्नि ७२,१ अतिहिं दोहइ ८०,२ अन्यसरीषउ (प्र०) ६४, २ अतिहिं नमइ ८०,२ अन्येरीवार ५५, २ अतिहिं नाचइ ८०,१ अपछर ६, १ अतिहिं पचइ ८०," अपराधइ ४८, २ अतिहिं पडइ ८०,२ अपराधियूँ ५४, . अतिहिं पढइ ८०,. अपराध्यउ ५०,१ अतिहिं पूछइ ८०,१ अभावु ७५, १ अतिहिं प्रेरइ ८०,२ अभोखउ २६, १ अतिहिं भणइ ८०,१ अभोखणुं ६९,. अतिहिं मरइ ८०, १ अभ्यसइ ४१,२ अतिहिं मूकइ ८०,२ अमावस ६,१ अतिहिं रमइ ८०,२ अमावसि ३१,२ अतिहिं रहइ ८०, अम्ह केरउ १५,२ अतिहिं लाइ ८०,२ अम्हनई ५५,७ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 अम्हसरीष २७, २. ६४, ३ असवार ९, २ अम्हंसरीषउ ६४, १ असी २९, २ असुणिउ ६८, १ असुद्ध २४, १ असोई ६, २ अहांनउ ७८, १ अहिनाणि ७३, २ अहिनाणु ६९, २ अम्हारउ ६३, २ अम्हारुं २७, २. ५५, १ अम्हारू ( प्र० ) ६३, ३ अम्हासित ५५, २ अम्हि ५५, १७८, २ अम्हे ३५, २. ५५, १ अरचइ ३७, २ अरडकमल्लू ६९, २ अरडूसउ १९, २ अरणइ ५७, १. ६७, २ अरत ६६, २ अरतपरत ६६, २ अरतपरत २६, २. ६६, २ अरथइ ३७, २ अरहट २०, १ सरहद्दु ६८, २ अरहु ६४, १ अरिरम ६२, २ अरिहंत ५, ११५, १ अरीठउ १९, २ अरीम २७, १ अरीरम (प्र०) ६२, २ अर्थ ७२, २ अलजु ५६, १ अलतउ ९, २ अलसिवेल २१, १ अलसी ३४, १ अलंकरइ ४८, २ अलंकरिउ ५१, १ अलंकरि ५४, २ अवतरइ ४८, २ अवतरितुं ५४, १ अवधारि ५०, १ अवथइ ४२, २ अवाज ६, २ अवाडू ६८, २ अश्व ७७, १ असलेस ५, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत अहिवा ६४, २ अहीणुं २६, ३ अहुण २७, १.२७, २ अहूण ५५, २ अहो ७८, २ अहोरात ६, १ अंकोडर १७, १ अंकोल २३, २ अंग ३५, १ अंगन ७६, १ अंगरखी ९, २ अंगार ७७, १ अंगारसगडी ११, १ अंगीठउ २६, २ अंगूठउ ८, २ अंतेउर ९, २ अंतेउरी १९, १ अंधपण २६, १ अंधारउ ६, १ अंधारानउ ७६, २ अंबोडर ६८, १ आ आउबर १४, २ आक १९, १ आकर्ष ४७, २ आकलइ ४९, १ आकलिउ ५१, २ आक्रमइ ३९, १.४८, १ आक्रमिउ ५, २ आनंद ३०, १ आसिड ५१, १ आखइ ४१, २ आखउ २३, २ आखउंडली ६९, १ आखलउ १७, १ आखा २३, २ आखात्री १८, २ आखुडइ ४३, २ आखुडिउ ६८, २ आगइ १५, १.१५, २.५६, १ आगर ११, २ आगरउ ११, १ आगल ११, १.३१, २ आगलि (प्र०) ६४, १ आगास ६, १ आगिलउ ( प्र० ) ६४, १ आगिलं ५५, १.६४, १ आगी १८, २ आघउ ५६, १ आचमइ ४३, १ आचरइ ७०, १ आचारिज ५, १ आचार्यांस ३४, १ आच्छिदइ ४०, २ आछउ ११, २ आछोटइ ४०, १ आज २७ १.५५, २.६२, २ आजिकाल्हि २०, २ आजु ६२, २ आजु लगइ ५६, १ आजूणर २७, १ आजूण ६२, २ आजूनुं ५६, १ आजूनूं (प्र०) ६२, २ आटउ २४, १ आठ २८, १.५७, २ आउउ २७, २ आठमउ ३०, २. ५७, १ आठमि ३१, २ आडउ ५६, १. ६४, १ आडण ३२, १ आडाबंग ६९, २ आडि १४, १ आडु (प्र०) ६४, १ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आढउ ३४, २ आढवई ४०, २ आण ६, २ आणइ ४८, २ आणतउ ६०, १ आणतु ( प्र०) ६०, २ आणनहार ( प्र०) ६१, ३ आणनहारु ६१, २ आनंद ३५, २ आणिव ६२, १ आणिवा ६१, १ आणि ५४, १ आणि (प्र०) ६२, १ आणी ६१, १७३, १ आणीत ६०, २ आणी तूं (प्र०) ६०, ४ आण्यउ ५०, २ आण्यउं ६०, १ आयं (प्र० ) ६०, १ आथमइ ४१, २. ४६, १ आथम्यउ ५०, २ आपडइ ३८, १४८, १ आपडिउ ५२, १ आपणउ ८, १ आपणी ७८, २ आपणी धायउ ७, २ आपणुं ५५, १ आपिउ ५२, १ आपिवु ५४, १ शब्दानुक्रम आफलइ ३९, १ आबू २३, २ आभउं ७३, २ आभरण ७७, १ आभिडइ ४०, २. ४४.१ आभूयानुं ६७, १ आमलवेतस ७, १ आमलसारउ २२, १ आयउ १८, २ आयती ७७, २ आयतुं ७७, २ आथर ९, २ आदउ ३३, २ आदरइ ३७, १ आदरा ५, २ २ आदिशबुं ५३, २ आदिस्य ५०, आद्रणु ६९, २ आधरण ३३, १ आधासीसी २६, १ आधु ३१, २ आलस ६, २ आपड़ १८, २.३०, २.४७,२ आलाणथंभ ३४, २ आपणी ५६, १ आयसइ ४३, २ आयसिह ७०, २ आरंभइ ४१, १ आरंभिवा वांछइ ८१, २ आराधइ ३८, २ [ आराध्यउ ] ५१, २ आरीसउ ९, २ आव्यु ७८, १ आव्युं (प्र०) ६०, १ आपुडइ ७०, २ आशंक ६, २ आर १०, २ आरति २३ १ आरती १६, १.३३, १.६८, २ आश्रइ ४६, १ आरतीयासरु ६०, १ आश्रयिवा ८१, २ आश्लेषिउ५२, १ आरुह्यउ ४९, २ आरोपइ ४६, १ आरोपिव ५२, २ आरोप्यउ ४९, २ आरोहइ ४६, १ आरोहिव ५२, २ आलउ १५, १ आलजाल १९, १ आलावउ १७, २ आलिंगइ ४२, २ आलीगार २६, २ आलूजइ ४२, २ आलोचइ ४६, २ आलोच्य ५०, १ आवतउ ६०, १ आवतु ( प्र० ) ६०, २ आविउ ७८, १ आविवा ६१, १ आवइ ४१, २.४६, २ आवणहार (प्र० ) ६१, ३ आवणहारु ६१, २ आवितुं ६२, १ आविवूं (प्र०) ६२, १ आवी ६१, १ आवीत ६०, २ आवीतूं (प्र०) ६०, ४ आव्यउ ४९, २ आव्यउ ६०, १ आसाढ ६, १ आसू ६, १ आस्वादिखूं ५२, २ आस्वासइ ४७, १ आहणइ ७७, २ आहर जाहर २६, १.६९, १ आहार १८, २ आहीर १०, १ आहेडउ १०, २ आहेडी १०, २ आंक २४, ४ आंकुस १३, १ आंखि ८, १ आंगड ६७, १ आंगणउ ३२, १ आंगुली ८, २ आज ३७, २ आंड ८, २ आंत्र ८, २ आंबइरा १८, २ आंबर १२, १ आंबा १९, १ आंबाफाड २१, २ ८५ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंबामाहि ७३, २ आंबिल ३१, १ आंबिली १९, २ ६९, १ आंर्षि ग्रहियि रूपु ७८, ३ आंसू ६, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत ईधण १०,१ ईमहइ (प्र०) ६३, ४ ईस २३, १ ईसउ (प्र०) ६४, २ ईहां ६३, १. ६३, २ ईडउ ३१, १ इकवीस २८, २ इकाणू ३०, इकावन २९, १ इक्यासी २९, २ इगतालीस २९, १ इगसठि २९, ३ इगहत्तरि २९, २ इगुणचालीस २८, २ इगुणत्रीस २८, २ इगुणपचास २९, १ इगुणवीस २८,१ इगुणसठि २९, १ इगुणहत्तरि २९, २ इगुणीसमउ ३०, १ इगुण्यासी २९, २ इग्यार ५७, २ इग्यारइ २८, १ इग्यारमउ ३०,२ इग्यारमी ३१,१ इणि परि ५५, २. ६२, ४ इम ५५,२ इमै ६३,२ इसउ २७ २. ६४, ५ इसुं ६३, २ इस्यउं (प्र०) ६३, ४ इहां २७, १ इहांतणूं ५५, १ उइलउ ३२, १ उइसइ ४४, १ उकरडी (प्र०) ६४,४ उखुडइ ४०,२ उखेलइ ४३, २ उगउमुगउ ६४,२ उगणीस ५७, २ उगमुगउ ३१, १ उग्रहणी २१, २ उघड दूघडउ २६, २ उच्छव १४,२ उच्छाहिवउं ५४, २ उच्छुकपणउ ६,२ उच्छंग ८, २ उछाह ३४, ३ उजालइ ४२,१ उठिउ ४९,२ उतावलउ १८, २ उत्तर ६,१ उत्तराणउं (प्र०) ६४, ४ उदेगइ ४३, २ उदेगामणउ ३२, १ उदेगामणुं ५७, ५ उदेही १३, उद्यमई ४९,१ उधार १०,१ उनका ४१,२ उन्मूलइ ४६, १ उन्मूल्यउ ४९,२ उन्हालउ २०,१ उपकरइ ४७,२ उपगरइ ४४, १ उपचईइ ४९,२ उपराठउ ५६, उपरि २१, १. २४,२ उपरि ठाई २६, २ उपरियामणु ६४,२ उपवासी ६९, १ उपवासीउ २६, उपाध्यायांस ३४,१ उपारजइ ३७,२ उमाड १२, १ उरलिउं (प्र०) ६४, ४ उरहु (प्र०) ६४, ३ उलषि(खि) ५३, १ उलूरइ ४०, २ उल्लावइ ४१, २ उल्लींचइ ४१, २ उवाणड २१,१ उवेखइ ४१, २ उसीयालु २६,१ उसीसउ ९,२ उसूर ३१,२ उहरउं ५६, १ उघई ४०, १ उंचउं ५६, १ उंचानीचुं ५६,२ उंजइ ४३, १ उंबर १२, १ ऊकडू (प्र०)२०,२ ऊकदइ ४३, २ ऊकरडउ २२, १ ऊकरडी २०, १.६४,२ ऊकुडउ २०,२ ऊखलउ ११, ऊखलि पांड्या ७८, १ ऊखेडइ ७०,१ ऊगइ ४१,२ ऊगटइ ४३,१ ऊगिउ, ५०,२ ऊगिउ वृक्षु७४, २ ऊघडइ ४३, १ ऊघडदूघडउ ६७,२ ईट ७७, २ ईणपरि ६२, २ ईणं लाजीइ ७१, १ ईणं हु व्यारीउ ७३, १ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम ऊघाडइ ४३,१ ऊपरि १५, १. ५६, १, ६४,३ एकवार २७, १. ६३, १ ऊघाडिवउ २१, २ ऊपरि ऊपरि ७३, २ एकवीसमउ ३०,१ ऊचाटइ ४८, २ ऊपरिलं ५६, १ एकासणउ ३१,५ ऊचाटिउ ५१,१ ऊपरूं ५६, १ एकु ७३,२ ऊच्छालियउ १९,२ उपार्जइ ७३, १ एकोत्तर सउ ३०, ऊछलइ ४१,७ ऊफिरीयामणू (प्र०) ६४, ४ एतलडं ६३, २ ऊछालइ ४१, १. ४६, १ ऊमउ १९, १ एतला ऊपरूं ५६, १ ऊछीनउ २१, १ ऊमटइ ४२, एतलु २७, २. ५५, २ ऊजयणी १०,२ ऊलडइ ४१,१ एतलूं (प्र०) ६३, ३ ऊजलड १४,२ ऊललइ ४६, १ एमात्र के ३१,३ ऊजाइ ४२, २ ऊललियइ ४१, १ एयु ७८,२ ऊजाणी २६,२ एयु अति कूअल ७९, २ ऊलसइ ४९, १ ऊटंटइ ७०,२ एयु अति क्षुद्रु ७९, २ ऊलालइ ४६, ऊटाटीयु ६९,२ ऊलिषउ ६९, १ एयु [अति] गरूड ७९, २ ऊठइ ४३, १. ४६, १.७०,१. ऊवट ३३, १ एयु अति घणउ ७९, २ ऊठाडइ ४६, १ ऊवटइ ४७, २ एयु अति इकडउ ७९, ५ ऊठिवउ ३४,२ ऊवटणउ ३४, २ एयु अति दीर्घ ७९, २ ऊड २१, २ ऊवलतउ २५,२ एयु अति पुहुलउ ७९, . ऊडइ ३७, १.४६, १.७०,१ ऊवेढइ ४३, १ एयु अति प्रशस्यु ७९, १ ऊडिउ ५१, २ ऊवेषि(खि)उ ५२, २ एयु अति प्रियु ७९, २ ऊतर ६,२ ऊसलसीधुं (प्र०) ६६, ३ एयु अति बहुलु ७९, २ ऊतरिण्यु ६४,२ ऊससइ ३९,२ एयु अति मोटड ७९, १ ऊतन्यउ ४९, २ ऊसीसउं ६७, १ एयु अति लज्जालु ७९, २ ऊतारणउ १९,१ ऊहाडउ १३, २ एयु अति लहुडउ ७९, २ उत्तर ७४, १ ऊंचड १९,२ एयु अति वडउ ७९, १ ऊदला ४०, २ ऊंट १३, २ एयु अति वाहिलउ ७९, २ ऊदेगामणउं ६८,१ ऊंटनउ ७६, १ एयु अति वेगलउ ७९, २ ऊदेही ६९,२ ऊंडहणुं ६९, २ एयु अति स्थिरु ७९, २ ऊधंधलु २६, १ ऊंदिरउ १३, २ एयु अनि ध्रायु ७२, १ ऊधारइ १६, १० एयु एकलउ ७३, १ ऊधांधलु ६४,२ ए ५६, १.७१, २ एयु गाढउ कहइ ८०, ऊधांधलूं (प्र०) ६४,३ एउ अति गाढउ ७९, १ एयु जीवइ ७१,१ ऊन २३,१ एउ अति लहुड एयु जेतला ७५, २ ऊपजइ ३८, २.४९ १ अति थोडउ । है ७९, १ एयु टूकडउ ८०, १ ऊपजावइ ४९, १ एक २७, २. ५७, १ एयु तरुणउ ८०,१ ऊपजाविउ ५१, २ एकउडउ ६८, २ एयु तेलु ७३, १ ऊपड ३८,३ एकत्रीस २८, २ एयु दुःखि द्रव्यु ७३, [ऊपडिबुं] ५२, २ एकपरि २७, २. ५६, २. एयु देव तणइ ७२, २ ऊपणइ ४३, १.७०,१ एयु देवदत्तु ७१, २ [ ऊपनउ] ५२, . एकलउ १५, २. ७३, १ एयु दोरी सापु ७३, . Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरनाकरादि अन्तर्गत एयु पोष्यवर्गरहिं ७२, ३ रहुं २७, २ एयु प्रधानरहि ७२, १ ऑरीसउ ३२, १ एयु प्रशस्यु कहइ ७९, २ ऑलउ २६,२ एयु बोल्या प्रयोग ७२, २ । औलखइ ४४, १.४८, १ एयु ब्राह्मणप्रति ७३, २ ऑलखउ २६, १ एयु भुंडउ ७४, १ ऑलखाणउ ३१, १ एयु लहुडउ ७९, १ ऑलखिउ ५०,२ एयु वड्डु कहइ ८०, १ ऑलग १६, १ . एयु वाधइ ७१, ऑलगइ ४८, २ एयु वेद पढणहारु ७२, १ ऑलगिवू ५४,२ एयु व्याकरणु जाणइ ७७, १ ऑलग्यउ ५०, २ एयु शास्त्र वाचणहारु ७२, १ ऑलवइ ४८, २ एयु श्राद्धतणउ ७२, २ ऑलविउ ५१,२ एयु सुखिहिं ७३, १ ऑलंभइ ७०, २ एयु हस्खु ७९, २ ऑलंभउ ६,२ एलियउ १७, २ ऑली ३४, १ एव ५७, १ ऑसरइ ४०, १ एव९ ६३, २ एवाल ३४, २ क३१, १ एह ३५,२ कउछ १२, २ एह ठाम हुंतउ ५६, २ कउठ १२, २ ओघउ २१, कउडी १३, १ ओझउ ५, १ कउसीसउ २६, २ ओटइ ४८, १ कचोलउ १८, १ ओठी १६, २ कच्चोलउ १६,१ ओढणउं ६७, २ कच्छोटउ ९, १ ओरस (प्र०) ६६, १ कडउ ९,३ ओरसु ६६, २ कडकडा ४३,२ ओलंडइ ३८१ कडणि २२, २ ओल्यउ ६४, २ कडब ३२, २.६८,२ ओवड १९,१ कडहटउ ३५, ओस ११,२ कडाहउ ११,१ ओसड २५, १ कडि ८, २ मोही २०, २ कडिदोरउ ३२,२ आँगालइ ४०, १ कडि समा ७७, १ ऑठंभइ ४४, १ कडुछउ २१, ऑड २१, २ कडुछी २११ ऑडक ६७,२ कडू २१,१ ऑढइ ४२,२ कणउज ३५.७ ऑधाहूली ३५, २ कणनउ ७८,१ कणयर ३३, १ कणहतउ १६,१ कणि ७२, १ कणियार ३४, १ कणी २३, कथीर ११, २ कन्या ७७, २ कन्हइ ५६, २ कन्हलि ७३, २. ७४, १.७५, १ कपास १२, १ कपीलउ २४, २ कपूर ९, १ कमलउ २३, १ कम(व)ली ३४, १ कयर १२,२ करइ १८,१.१८, २.३७, १ करडइ ४२, ३ करणहार ३६, पं० २२. ६१,३ करणहारु ६१, २. ६२,२ करणाहरु ३६, पं० ३३ करत ७८, २ करतउ २६, १..७०," करतु (प्र०) ६०,२ करतुं ६२, १ करमदउ २५, ५ करवत १०,२ करवतरहिं हितूउं ७७, २ करवती ३५, करवा ८२, १ करसउ १०,१ करसणु ७३, १ करहउ १३, २ करंबउ २२, २ करा ६, १ करालियउ २०, कराइ ४४,२ करावह ४७, १. ७३," करि ३५ करिजे ३५ करिवङ ३६, ५० ३१. ५२, २ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम करिवा ३६. ६१, १.६२, १ ककोडउ १२, २ करिवा वांछइ ८२, १.८२, २ कंपावइ ४०, १ करिवा होउ ८२, २ कंसाल १७, २ करिवू ६१, २. ६२, २ का ३१,१ करिवू (प्र०) ६१, ४ काउसग ३३, २ करिसिइ ३६ काकडासींगी २६, १ करी ६१, १. ६२, १ काकडी २३, १. २५, २ करीउ ३६ काकडीरउ १८, १ करी जाणउं ६२, २ काकरउ १६, २ करी जाणुं ३६, पं० २९ काकीडउ २५, १ करीस १५, १ काख ८, २ कप्पासनां वस्त्र ७७, ५ कागनउं टोलङ ७६, १ कर्मनउ समूहु ७६, २ कागु ६७, १ कलइ ३७, १ काछउ ३४,२ काछडी ९, १ कलकलइ ४३, २ कलपइ ३८, २ काछवउ १४,१ काज १५, १.२, १ कलाई ८, २ काजल ९,२ कलाल १०, काट ११,२ कली १२, १ काटइ ४२, १ कलेवउ ७, २ काटी ११,२ कल्पइ ४९, १ काठ १२, २ कल्होडउ २६,२ काठउ १५, २ कवडउ १३, काठिया २०, १ कवाड ११,१ काठीहारउ २३, २ कविलउ १४, २ काढइ ३९, २. ४७, २ कसइ ४२, २ काढउ ३३, १ कसमीर ३५, काणि २३, २ कसी २५, २ कातती २०,२ कातरणी १०,२ कहउ ७८,२ . कातरि १०, २ कहाणी १७, १ कातली १९, १ कहिउ ५१, २ काती ६, १ कहियउ २१, १. २७,१. ५५,२ कादम १२, १ कहिया वांछइ ८१, : कान ८, १ [कहि] ५३, २ कानइ का ३१, ३ कहीइं (प्र०) ६३, १ कानमात को ३१, १ कहींय ६३, १ कानि सांभलीयि ७८, १ कहूआलउ ६७,२ कानी ३", १ काप १८, २ कंदोई १०,२ कापइ ४७,२ उ. २०१२ कापडइ १८,१ कापडी १६, २ कावरउ १४, २ काम १८, २ कामइ ३९, १ कामण १४, २ कामरू ३४, २ कायर ७, १ कारटउ २२, २ कारटियउ २२, २ कारू १०,१ कारेलउ १२, २ कालाखरिउ ६७, १ कालि ६२, २ कालिजउ 6, २ कालियु ६७, १ काली ७२, २ कालूनूं (प्र०) ६२, ३ काल्हनउं ५६, १ काल्हि २७, १. ५५, २ काल्हूणउ २७, १ काल्हूणउं ६२, २ कावजि (प्र.) ६६, २ कावडि १६, १. ३२, २ काष्टि ७२, १ काष्ठ ७७, १. ७७, २ काष्ठा २४, १ कासुंदउ १७, २ कांइ ३२, १ कांई ५५, १ कांकसी ९, २. २६, २ कांग १२, २ कांगउ १८, १ कांचली ९, १ कांजी ७, १ कांठउ २६, १ कांठलउ १६, १ कांडी १७, २ कांदड २३, २ कांध समुं पाणी ७७, १ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुंभतणु ७१, २ कुंभार १९, २ कुंभाररउ २४, २ कुंभी १७, २ कुंमारउ २५, १ कू ३१, १ कूआकंठइ २४, १ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत कांपइ ३८, २. ४६, १ कीधुं ५०, १. ६०, १ कांपिउ ५२, १ कीर्तई ३८, १ कांबडी १६, २ कींगायइ ४२, २ कांबलउ ७६, १ कांबी २४, १ कुघाट १६, १ कांसउ ११,२ कुचेल २५, २ कांसउं ७७, २ कुच्छित ७,१ कांसीवाजउ २४, २ कु जि ६८,२ कि ३१, १ कुट्टि २३, २ किडउ ११,१ कुडी ३५, १ किम ५५, १.६२, २ कुडीरहिं हितूउं ७७, २ किमइ ७८, २ कुडुंबी ३४, २ किम्हइ ३१, २ कुढि २३, २ कियउ २४, १.२५, २ कुण ३५, २.७५, २ किर ५७, १ कुण्डी २४, २ किरगिरइ ७०, १ कुतिगीउ ६७, २ किरातउ १९, २ कुपइ ३८, २.७०,२ किरि ६७,२ कुपिउ ५१,१ किलकिलाट १६, १ कुपियउ २१,२ किवाडी १६, २ कुरुखेत ३४,२ किसउ २७, २.५५, १.६४, १ कुरुटतउ २५, २ किहां २७, १. ६३, १.५५, २ कुलथ १२, २ किहांतणू ५५, १ कुलथी १२, २ किहांनउ ७८, . कुसइ ४२, २ किहांहुंतउ ५६,२ कुसणउ ४१, २ की ३१,१ कुसि २५, २ कीकी ८, १ कुहइ ३८, १ कीजइ ३५.५५, १ कुहणी ८,२ कीजउ ३५ कुहिर ५१,२ कीजतउ ३६ कुंअर ७,५ कीजतउं ६०,२ कुंअरि १९, १ कीजतुं ६२, १ कुंअलउ १४, २ कीजतूं (प्र०) ६०, ३ कुंआरीरा २५, १ कीजिसिइ ३६ कुंकू ९, १ कीटी २१, ५ कुंची ११,१ कीडउ १३, कुंठसस्त्र २४, १ कीधउ ३६, पं०२४ कुंड २४, २ कीधउं ६२, १ कुंढ २४, १ कीधा ७४, २ कुंढगोठि २४, १ कीधु ७८, १ कुंपी १८,१ कूकइ ४१,१ कूकडउ १४,.. कूकर १३, २ कूका ५६, २ कूचउ १६, १ कूजइ ३७,२ कूटइ ३८, १. ४, ५ कूटणउ २१, २ कूटिउ ५१, १ कूड ६, २. २४, २ कूडछी ६९, २ कूदइ ३८, १ कूपइ ४९,१ कूल्ह १२, १ कूवडउ २५, ७ कुंभलउ ७९, १ कूढली ६६, २ कुंपल १५, १ कुंभट १७,२ कुंभी २४, २ के ३१, . केत ६,१ केतलउ ५५, २ केतलडं ६३, २ केतलुं २७, २ ५५, २ केतलूं (प्र०) ६३, ४ केदार ७५, १ केला १८, १ केलि १८, १ केवडुं ६३, २ केवडूं ५७, १ केवलउ क ३१, Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम व केशनउ समूहु ७६, २ केसू १२, १ खजूअउ १३, १ कै ३१,१ खजूर २४,१ को ३१, १ खजूरउ २४, १ कोइल १४, १ खटमल १७, १ कोइलि ७३, २ खड १३,१ कोइली १४, १ खडखडइ ४४,१ कोई ५५, १ खडगर २५, २ कोट १०, २ खडहडइ ४३, १ कोटडउं ६९, २ खडी ११,२ कोटवाल २१,२ खडोखली ६७, १ कोटीलउ ६९, २ खण २२, २. २४, २ कोठउ २०, २. २४, १. ६६,२ खणइ ३८, २ कोठउ कणि भरिउ ७२, १ खणिवा ८१, २ कोठार २०, १ खणेत्रउ १०,१ कोठीभडउ ३३, १ खत २१,१ कोड १५, २ खप्पर २२, २ कोडि २४, १.३०,२ खमइ ३९,१ कोडिमउ ३१, १ खमासण ३३,२ कोढ ७, २ खयडउ ९,२ कोथली (प्र०) ६६, २ खयरवडी १७, . कोदालउ १०,१ खरहडी १८,२ कोरियउ १८, खलउ १०,२ कोरिवउ १८, १ खलहाण १०,२ कोस १०, १ खली२३, १ कोसंबी ३५, १ खल्ली (प्र०) २४,१ कोसीटउ ६७, १ खसइ ३९, २ कोहलउ १२, २ खंडइ ३८, १ कोहली १५, २ खंडायितु ७६, १ को ३१, २ खंडी २४, २ कः ३१, २ खंधार १०,२ क्यारउ २३, २ खाई (प्र०) ६१, २ क्रमइ ७०,२ खाज ७,२ ऋयाणा २५, २ खाजइ ४४, २. ७०,२. क्रीडउ ३८,१ खाजलु ६९, १ क्षमिउ ५१, २ खाजहलउ २६, २ क्षरइ ७०, १ खाजा २०,१ क्षुद्रु ७९, २ खाट ३३, १ क्षेत्र ७३,२ खाटकी २५, १ क्षेत्रि ७४, २ खाटि ९,२ क्षेत्रु ७७,२ खाणि ११,२ खातु (प्र०) ६०,२ खात्र २०, २. २२, २ खापरउ २२,२ खामणउ ३३, २ खायइ ३८, १ खार २१, खारउ २२, २ खारिक ३३, १ खाली २३, १ खास ७,२ खासइ ३९, २ खांडउ २४,२ खांडा ७५, २ खांधउ ८, २ खिरइ ३९, १ खिसरहंडी ६६,२ खीच ३३, १ खीचडउ १६,१ खीचडी ३३, १ खीजइ ४३, १ खीरणी १७, २. २३, २ खीरि ७, १ खीलइ ४२, १.४३,२ खीलउ १३,२ खीसउ (प्र०) ६६,२ खुभइ ३९, ३ खुभिउ ५२, ५ खुरउ २४, २ खूण ३२, १ खूपइ ४०,२ खूदइ ४३, खेड १०,२ खेडइ ३८,. खेडउ २२,२ खेती १०, १ खेलणउ २५, २ खोडउ १५, १.३३, २.६९,२ खोडायइ ४२,२ खोभइ ३९, १ खोल २५, १ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत ग गाइवु ५३, २ गिरइ ३७, १ गइंडउ १३, २ गाईमाहि ७२, २ गिरठि २३, २ गउख १९, २ गाउ १०, १ गिलइ ३९, १ गउखु ६९, २ गागरी ११,२ गिलगिली १८१ गउर १५, १ गाजइ ३७,२ गिलो १९, १ गउंछणउं ६९, २ गाजर १९,२ गिलोई २०, २ गजथर २२, १ गाडरि ३३, २ गीत १५, २. ७५, १ गड ७,२ गाडा योग्यु हितूंउ ७७, २ गुड ७४, २ गदु ६९, २ गाडी १९,२ गुडिउ ६८,२ गणिकानु समूहु ७६, २ गाडु ७८, १ गुढउं ६६, १ गाढउ ७९, १.८०,१ गणिवू ५३, गुणइ ३७, १.४८, १ गणीस ३४, ५ गाती ७५, १ गुणणी २५, २ गात्री २२,२ गदगद वचन २२, १ गुणनु समूहु ७६, २ गदहिला १७, १ गात्रु ८०,२ गुणिउ ५१, १ गादी १८,१ गद्दहउ १३, २ [गुणिवू ] ५३, १ गाबडि ८, २ गमइ ७३, २ गुरु साम्हु ७३, २ गाभरू २४, २ गमई ७४, १ गुल १८,२ गामढिउ २५, २ गमा ७३, २ गुलगुलायइ ४१, १ गाम दाहिण गमइ ७३, २ गमाणि ६८,२ र गुलणी ९, २ गामनइ पाषइ अधिकार ७५,१ गलधाणी २२, १ गयउ ४९, २ गाम बिडे विचि ७४, १ गरढड ३२, २.६६,३. गुलपापडी २२, १ गामरउ २५, १ गरहइ ४०,१ गुलमंडा १४, २ गाम विचि वडु ७५, २ गरुयड १५,१ गुलियउ १८,२ गाम सविहुं गमा ७३, २ गरूउ ७९,२ र गुहिरउ १५, १ गामि ७१, २. ७२, १.७४, २ गर्गर्नु ७१, २ गुंजइ ३७, २ गामु ७३, २. ७७, २ गलअलइ ४३,७ गामेचउ ७८, ३ गुंथिवउ ९, १ गलमांठी २४,२ गूगल ३५, १ गायइ ३७, २. ७०,१ गलणउ १६, १ गूजर १६, २ गायउ १५,२ गलहथउ २५, १ गूजरी १६, २ गायवउ २५, १ गलहथियउ २५, २ गारवउ १५, १ गलियार ३५, १ गाल ८,१ गूंडा समी ७७, १ गवाणि २१,२ गालउ ३९, १ गूणि ९, १ गहिलउ १८,२ गालिङ ५२,१ गृह ९, १ [गहुं] ७८, २ गाह २२, १ गूंथइ ४४, १.४९, १. ७०, १ गहूं ७७, १ गाहइ ४४,१ गूंथ्यउ ५१, १ गंगा ७४,२ गांठइ ४२, १ गूंद २४, १ गंगेटी २४,२ गांटि १२, १ गूंफइ ४९, १ गंधाअइ ४४,१ गांधि १९, १ [गूफिर] ५१, १ गंभारउ ३३,१ गिणइ ३७, १.४८, १ गूंहली ६७, १ गाइ १८,२.२१,१.४८,१.७२,२ गिर १८, १ गेरू ११, २ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोआइरउ २०, २ गोई गोली ६४, २ गोउल १३, २ गोखरू १७, २ गोगीडर २६, २ गोछउ १२, १.३४, १ गोत्रु ७५, १ गोध २४, २ गोपिविउ ५१, २ गोफण १६, २ गोमूत्री १६, २ गोयरउ २५, १ गोरी ६, २ गोलड ७, २. २३, १ गोवाल १०, १ गोह १३, २ गोहीर १३, २ गोहू १२, २ गोहूरी २६, १ ग्य ६०, १ ग्रसइ ४१, २ ग्रहइ ४०, १ ग्रहिय ७८, १ ग्रामतणु समूहु ७६, १ ग्रामि दीहाडी प्रति ७३, २ ग्रामु ७२, २ ग्वालेर १८, १ घ घटइ ३८, १ • घडइ १९, २.४८, २ घडउ ११, १ घडामांची ३३, १ घडांमंची ६८, २ घडिउ ५०, २ घडियाल २०, १ घडि ५४, २ घडी २०, १ घण २०, २ घणउ ७९, २ शब्दानुक्रम घणउ गुड छइ जीण लाडू घणी ७८, १ घृणां निर्मलां पाणी } • जीणं नदी घणु ७२, २ घ १८, २ घणे दिहाडे आव्यु ७८, १ घरट २०, १ घरटी २०, १ घरट्टु ६६, २ घर ११, १. १९, १ घर कन्हलि वृक्षु ७५, १ ७४, २ घररा २५, १ घररी १९, २ घरि ७२, १.७८, २ घरु ७२, २. ७५, १ घलावइ ४७, २ घसइ ३९, २. ४७, २ घसाइ ४४, २ घसावइ ४७, २ घाघरनदी २५, २ घाघरी २५, १ घाट १२, १ घातइ ४०, २ घातकू ७, १ घार्यिसउं ६८, १ घालइ ४७, २ घालिङ ५२, १ घांट ३५, १ घांटी ८, २ विसि १८, १ धूमइ ४४, २ -७४, २ घूंघट २६, १ घरधणियाणी २५, १ घरपालि वाडि करइ ७३, २ ब्राइड ४९, २ च घी ३१, १ घीउ भणी ७३, १ धीरी २०, २ घीवेली १३, १ घूघटि ६८, २ घूघुरउ २१, २ घूघुरी २५, १ घुघू १४, १ घूंट २१, २ घूंटी ८, २ घेवर ७, १ घोडउ १३, १ घोडारहिं हितूउ ७७, २ घोडाहाड ६८, २ घोडे वहीयि रथु ७८, १ घोरइ २०, १ घोलइ ४०, २ घोसइ ३९, २ च ५७, १ चउकीवर ३२, १ चउकीवटा (प्र०) ६६, १ चउकीवटु ६६, १ चउगट्टि ३२, १ चउगुणउ ३२, २ चउगुण ६८, १ चउघडि ३१, २ चउडोत्तर सउ ३०, १ चउत्रीस २८, २ चउथउ ३०, २.५७, १ चउथि ३१, २ चउद २८, १ चउदमउ ३०, २ चउदसि ३१, २ चउपउ २५, २ चउपन २९, १ उमालीस २९, १ चउमासर ३३, २ चउरसउ ३३, २ चउराणू ३०, १ चउरासी २९, २ चउरी ३३, १ चवीस २८, २ ९३ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ चउस ि२९, १ चउसालउ ३३, १ चउत्तरि २९, २ चावइ ३९, १ चकरडी १६, २ चास १४, १ चक्यउ ३४, २ चांच १४, १ चडइ ४०, २.४३, १.४८, २ चांदलउ १४, १ चडिउ ५१, १ चणउ १२, २ चपलपणउं ७७, २ चमार २०, १ चरउ २५, १ चरचइ ३७, २ चरिवा वांछइ ८१, १ चरू २२, २ चर्म ७७, २ ७७, २ चलणी ९, १ चलू ८, २ चवदइ ५७, २ चवलांरी १८, १ चहुंटी ३२, २ चंदन २५, २ चंदौ ६९, १ चंद्रयउ ९, २ चाउंडा ६, २ चाक २४, २ चाकी १६, २ चाचर ३३, १ चाचरि २३, १ चाटिवा वांछइ ८१, २ चाटुकारिया वचन ६.२ atr (प्र० वाघ) र १८, १ चावण ७, २ चामाचेड १४, १ चारि २८, १ चारोली ३१, १ चान्यउ ५०, १ चालइ ४६, २ चालणी २०, १ चालिउ ५२, १ चालिवा वांछइ ८१, १ उतिरत्नाकरादि अन्तर्गत चालीस २८, २ चालीसमउ ५७, १ चांद्रिणानी लांप ६९, २ चांद्रिणु २६, १ चांप ३५, १ चांप ४१, १ चांप १२, २ चांबडउं ७७, १ चांडी ९, १ चिडउ १४, १ चिणिवा वांछइ ८२, १ चिणि ५४, १ चिणोढी ६७, २ चित्रावेलि २२, १ चिहुं परि ( प्र० ) ६३, २ चीकणउ २२, १ चीखल २३, १ चीचूअइ ४४, चीठी १८, १ चीणउ १२, २ चीत्र ३७, १ चिडी १४, १ चिणइ ३७, १४९, २.८०, २ चैत ६, १ चिणिउ ५१, १ २ चीत्र १३, २ चीपडीउ ६७, १ चीपिडउ २५, १ चीफाड २६, २ चीभडी १२, २ चील्ह १४, १ चील्ह साग १७, २ चीपलालुं ६८, १ चुंटिड ५१, १ चुंटिवुं ५४, १ चुंबई ३८, २ चूअइ ४२, १ चूक ७, १ चींत ३८, १ चुहुटली (प्र०) ६६, २ चुकलइ ४६, २ चुंटइ ४८, २ चूकइ ४४, २ चूकर १६, १ चूटिवा वांछइ ८२, १ चूणि १६, २ चूति ८, २ चून २४, १ चून २४, १ चूल्ही ११, १ चूसइ ३९, २ चूंट ३८, १.८०, २ चेतिउं ५२, १ चेलउ २१, १ चोखउ १४, २ चोज ६, २ चोपडइ ४०, २ चोपड्यउ ५२, १ चोरइ २२, २.३९, १. ४८, २ चोरडउ २२, १ चोरिवा वांछइ ८२, १ चोरिखुं ५४, १ चोरी ७, १ चोरु ७८, २ चोलवटउ २१, १ चोषा ७२, २ चौदसिं दीस राक्षसु ७८, १ च्हु परि ६३, १ व्यारइ ७३, १ च्यारि ५७, २ च्यारिवार ( प्र० ) ६३, १ च्युहु वहीयि गाडुं ७८, १ छ छ २८, १ छइ २०, २.४१, २.४७, २. छट्टउ ३०, २.५७, १ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम छट्ठीलिखित २४, २ छींडणि ६६,२ जणावइ ४७,१ छठि ३१, २ छींडी २१, २ जतियारउ २०,२ छतु (प्र०) ६०,३ छुरउ २४, २ जननइ समूहु ७६,२ छत्रीस २८,२ छूटइ ४३, २.४८, २. ७०, १ जनम १४, १ छपन २९, १ छेकइ ४४,२ जनोई १०,१ छप्पई १३," छेकडि ६६, २ जपइ ३८, २.८०,२ छमकारिउ ५१, २ छेतरियउ २६, २ जपमाली २१, १ छमकाव्यङ ६८,२ छेदइ १२, २. ४८, ९ जमवारउ १८," छयकारु ६७,२ छेदियउ १४, २ जमाई ६७, २ छयालीस २९, १ छेहि ७५, २ जमिवा वांछइ ८१, २ छ रितु ६,१ छेहिलू ५५, १ जयणा १८," छहत्तरि २९, २ छोडिउ ५०,२ जरिउ ५०,१ छाजइ ४०,२ छोति १५, २ जल ७८,१ छाजउ २२, १ छोह ३२, १ जलो १३, १ छाणउ १३, २ जव ३३, १ छाणावलि ६९,२ छ्यासी २९, २ जवखार १०,२ छात्र ७५, २ जस ३४,२ छानउ १९,१ जइ ५६, . जहियइ २७, १. ५५, २ छायइ ४२,२ जइ करत ३६ जहीइं (प्र०) ६२, ४ छार १०,१ जइ किमइ ६३, २ जहींय ६२,२ छालउ १३,२ जइ किम्हइ ३१,२ जं ६३, २ छालि १२, १ जइ कीजत ३६ जंभाआइ ४०,२ छाली ७१, २ जइ दीजत ३६ जाइ १२, २.७५, २.८०,१ छावडउ ६,२ जइ देत ३६ जाइफल ९,१ छावति ११,१ जइ लीजत ३६ जाइवउं ६२, १. ७२, छावीस २८, २ जइ लेत ३६ जाइवा (प्र०) ६१, १ छासठि २९, १ जई (प्र०) ६१, १ जाइवा वांछइ ८१, १ छांडइ ४१, २.८०, २. ४६,२ जईतउं ६०, २ जाई ६१, १ छांडिवा वांछइ ८१, १ जईतूं (प्र०) ६०, ४ जागइ ३७, १.४७, २.७०१. छांडिवू ५३, ११ जईयइ किमइ (प्र०) ६३, ४ जागीइ ७१,१ छांह १५, ५ जाग्यउ ४९,२ जउ ५५,२ छिछ (प?) इ ७०, १ जउणा २२, १ जाजरउ २२, छिन्नु ३०,१ जाडउ १७, १ जउराणउ ६,१ छिवइ ४०, २. ४३, २ जाण अहो पुरुष जगाडइ ४७,२ छीकउ १९, १ आपणि लहुडा जट्ट १५, १ थ्या[...वस्त्र ७८,२ छीकणी २५, २ जड १२,१ पहिरता छीडणि (प्र०) ६६, ४ जडपणउ २७, २ जाणइ ४१, १. ४७, १.७३, ५. छीतर २२, २ जडी १७, १ जाणउं ६२, २ छीपउ ६७,२ जणउ ३४,१ जाणतउ ६०,२ छींकइ ४४, २. ४७, २ जणाइ ४४,२ जाणनहारु ६१,२ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ जाणहार ( प्र० ) ६१, ३. जिमिकुं ५३, १ जाणहारु ६१, २ ५ जाणिउं ६०, जाणिव ६२, १ जाणिवा ६१, २ जाणिवा वांछइ ८२, २ जाणिव ५३, २ जाणवूं (प्र) ६२,१ जाणी ६१, १ जाणीत ६०, २ जाणीतूं ( प्र० ) ६०, ४ जाण्यउ ४९, २ जाण्यं ( प्र० ) ६०, १ जात ७८, २ जातउ ६०, १७३, १. जातु (प्र०) ६०, २ जानावासउ ६८, २ जानी ७, २ जानीवास २६, १ जानुत्र ६८, २ जामइ ३८, २ जाम ( य ? ) इ ७०, २ जालउर ११, १ जाली १९, २ जावेल २१, १ जास्युं ७८, २ जाहउ १४, १ जां २७,१.५६, १.६३, २. जु ५६, १.६३, २. जायइ २१, २.३७, १.४६, २. जुआ जुआ १५, २ जायड २४, २ जुआरि ३३, २ जांघ ८, २ जिणइ ४९, १ जिणचंद भट्टारक ६, २ जिणिसिह ३६ उत्तरत्नाकरादि अन्तर्गत जिण्यउ ५०, २ जिम २७,१.५५, १. जिमणउ ( प्र०) ६४, १ जिम ५६, २ जिमतउ ६०, २ जिमतु (प्र०) ६०, ३ जिमाडइ ४७, १ जिमिव्रं (प्र० ) ६२, १ जिमी (प्र०) ६१, २ जिमीतूं ( प्र० ) ६०, ४ जिम्युं ( प्र०) ६०, १ जिसउ २७, २.५५, २ जिहां २७,१५५, २ जिहांत ५५, १ जीण ७४, २.७४, २ जीणई ७४, २ जीणं ७४, २.७४, २. जीप ४१, १ जीपिवा वांछइ ८१, २ जीभ ८, १ जीमइ ३९, १.४६, २. जीमिउ ५०, १ जीरउ ७, २ जीवइ ३९, १४७, २. ७१, १. जीवापोता १९, २ जीविवा वांछइ ८१, २ जीवसि ३६ जु करत ७८, २ जु किमइ एयु गा मिन जात, चोरु बलद न लयेत जु किमइ हुं घरि जात, तु एयु मई गामि न मोकलत जु देत ७८, २ जुले ७८, २ जुवान २२, २ जुहारु ६८, १ जू १३, १ जूआरउ ७, २ जूंस ६९, २ जे क्रिमइ एयु [ गहुं ] तु द्राम न पडत जेठ ६, १ जेतला ७५, २ जेतला छात्र तेतला पोथां ७८, २ जूउ २७, ५.५७, १. जूउं ६३, १ जूझिवा वांछ ८१, २ जूपइ ४०, २ लेत, ७८, २ ७५, २ जेतलां खांडां तेतला राजपुत्र ७५, २ जेतलं २७, २.५५, २.६३, २. जेतलूं (प्र०) ६३, ३ जेवडर १५, २ जेह ठाम हुंत ५६, २ जेहनउं ७४, २.७५, १. जेहि ७४, २ जो ३५, २ जोअण १०, १ जोइउ ४९, २ जोडइ ३८, १४९, १. जोडउ २४, १ जोडि ५३, २ जोड्यउ ५१, १ जोतिषी ३४, २ ७८, २ जोत्र १०, १ जोत्रु ६९, २ जोयइ ४७, १ जोवन ७, १ जोहार ५७, १ ज्यार ६३, १ ज्वलइ ८०, १ जोइ ५२, २ जोगवटउ २१, १ झ झखइ ४०, २ झगडर १५, २.६७, १. झटकइ २७, १ झटकई ६३, १ झणझणइ ४३, २ झलझांषसउ ६४, २ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झंपावर ४४, १ झाकइ ४४, २ झाड १९, २ झामलउ २५, २ झालरि २२, १ झांप १४, २ झीणउ १५, १ झुझइ ३८, २ झूरइ ४०, २ ट टलइ ३९, १ टलवलइ ४३, २ टसर ३५, १ टंका २४, १ टार २४, २ टाली ७५, २ टांक १९, १ टांकुल १०, टीपणउ ३२, १ २ टीलउ ३२, १ टटोहडी १४, १ टोपरउ ३३, १ टोल ७६, १ ठ ठवणारी ५, १ ठवणी ३४, १ ठंभीजइ ४०, १ ठाई २६, २ ठाण २१, १ ठाणउ २०, २.२४, २ ठाणांग ६, २ ठाम ५६, २ ठालउं ५६, २ [ टिउ ] ४९, २ ड डर २४, २ डरइ ४०, २ डस्यउ ३४, २ डसइ ३९, २ डहर १७, १ डहरउ २२, २ उ०र० १३ शब्दानुक्रम डाकर १७, १ डाबउ ६३, २ डाबडं ५६, २ डाभ १३, १ डावर ( प्र०) ६३, ४ डांभई ७०, १ डांस १९, २ डेहली ३२, १ डोइलर १६, १ डोकरउ ३२, २ डोकरु ६६, २ डोडी २३, २ डोहलउ ७, २ ढ ढल २०, १ ढंढोलइ ४०, २ ढांक ४०, १४७, २. ढांकण ६७, २ ढांकि ५२, १ ढील ५६, २ टूकइ ४१, १ ส तइसउं बात करइ ७३, २ तई ५५, १ तई गामि जाइव ७२, १ तई भलई हुईइ ७१, १ तरं वयरी आणी बांधीव ७३, १ तर ५५, २. ५६, १. तक १८, २ तका १८, २ तज २१, १ टूकडउ ७४, १. हूकडी ७३, २ तहींय ६३, १ टूकडी गंगा जीणई देशि ७४, २ ते ६३, २ ढोक ४१, १ तंगोटी ३३, १ तडफडइ ४४, १ ततकाल ६, १ तन्तुअउ १४, १ तपइ ३८, २.४९, १ तपिउ ५१, २ तपरी २४, १ तमक २२, १ तम्हसरीषु ( प्र० ) ६४, २ तहंसरी ६४, १ तम्हारडं ६३, १ तम्हारुं (प्र०) ६३, ३ तम्हि कहउ कहउ आपणी वात ७८, २ तरइ ३७, २. ४७, १. ८०, २ तरवा वांछइ ८१, १ तरि ५३, २ तरी २०, २२४, २ तरुणउ ८०, १ तरूनउ समूह ७६, २ तर्जइ ३७, २ तयउ ४९, २ ७९, १. तहियइ २७, १.५५, २ तलाउ ३२, २ तलागु ६७, १ तलार १६, २ तलाव विचि देहर ७५, २ तस्करइ ४८, २ ९७ तंत्र ९, १ तंबोल बीड १९, १ तंबोरी थई ९, २ तंबोली १९, १ ताकइ ४१, १ ताठर ३४, २ ताड ३५, १ ताडइ ४९, १ ताडिउ ५०, २ ताण (प्र०) ६३,३ तापसरी २४, २ तारइ ४७, १ ताल २३, १ तालउ ११, १ ताली ८, २.३४, २ तालुयउ ८, २ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ तांगणी ६४, २ तांबउ ११, २ तिणउ ३२, २ ताहरउ ६३, २ ताहरु २७, २. ५५, १. ६३, १ तुहइ ५६, १ ताहरू (प्र०) ६३, ३ तां २७,१.५६, १.६३, २ तां ३१, २ तिलउ ३४, २ तिली ८, २ तिसउ २७, २६४, १ तिहां २७ १ ५५ २.६३, १ तिहांत ५५, १ तिहांन७८, १ तू पावइ ७४, १ तूरी ११, २ तिजह ३७, २ तूली २३, १ तिडक ७८, १ तूसइ ३९, २ तिडोत्तर सर ३०, १ अरि १२, २ तिम २७,१.५५, १६२, २ तूंसरीष २७, २. ६४, १ तिमइ ६३, १ तूंहइ ५५, १ तिरछउ ५६, १.६४, १ तिरिछउ ( प्र० ) ६४, १ तृणानु समूहु ७६, २ तृहुपरि ६३, १ तेजिउं ५२, १ तिर्यच १३, १ तिल २५, १ तेडइ ४७, २ तीज ३१, २ तीतिर १४, १ तीन्हउं ६९, २ तीमइ ४२, २ तीमण ७, १ तीरथ २४, २ तीर्थ७३, २ तु ५६, १.६३, २. ७८, २ तुणिवा वांछ ८२, १ तु पूठि ७३, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत तुम्हर १५, २ तुम्हनाई ५५, १ तुम्हसरीषउ २७, २ तुम्हारुं २७, २. ५५, १ तुम्हासित ५५, २ तुम्हि ५५, १.५५, १ तुम्हे ३५, २. ५५, १.५५, १ तुलाई ३२, २.६७, १ तुं ३५, २.५५, १ तू कहलि७४, १ तूठउ १८, २. ५१, १ तूणियउ १८, १ तलूं ( प्र०) ६३, ३ ते ते ७५, १.७५, २ तेत्रीस २८, २ तेर ५१, २ त्रीस २८, २ त्रीसमउ ५७, १ तेतला ७५, २ तेतलं २७, २.५५, २.६३, २ त्रुटी ६७, १ तेरह २०, १२९, १ तेरमउ ३०, २ तेरसि ३१, २ तेली १९, १ तेलु ७३, १ तेवडउ १५, २ तेह ठाम हुंत ५६, २ तोडइ ३८, १ तोलइ ४०, १.७०, २ त्यजिउ ५०, २ त्रउअउ ११, २ चडत्रडइ ४४, १ तालीस २९, १ चाकडीवेल १७, २ त्राकलउ १०, २ त्राठउ ५०, २ त्रापउ २२, २ त्रासइ ३९, २. ४६, १ त्रासवइ ४६, १ त्रिगडू ७, १ त्रिगुणु ६८, १ त्रिणउ १३, १ त्रिणि ५७, २ त्रिणि वार ( प्र० ) ६३, १ त्रिह २८, १ त्रिपणउ ३४, १ त्रिपन २९, १ त्रिमण ७७, २ त्रिवायड ३१, १ त्रिसियउ ७, १ त्रिहत्तर २९, २ त्रिहुं परि ५६, २ त्रीजर ३०, २.५६, २ त्रुटइ ३८, १ गति (डि ) २०, १ वीस २८, २ सठि २९, १ त्रोडिउ ५१, २ त्र्याणू ३०, १ व्यासी २९, २ 'थ थडउ २१, २ थण ३२, २ थली २२, ३ थवइ ४२, १ थाइवा ८१, १ थाकइ ४०, २.७०, २ थाकड ५१, १ थाकिवा ८१, ६ थापइ ४६, १ थाल २०, २ थाली २०, २. २४, २ थाहरइ ४३, २ थपणि १८, २ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम थांभइ ४१, १ थांभउ १९, २. २४, २ थिङ (प्र०) ६०,१ श्रीजइ ४२, १ थीणउ घी ३१, १ थुभ ३१, १ थूकइ ४४, २ थूणी १९, १ थूथउ १९, २. ३५, १ थूम २१, २ थूली २६, १ धुंकु ६७,७ थे ६१, १ थोडउ १४, २. ७९, १ थोडे दिहाडे आविउ ७८, थ्या ७८, २ थ्युङ ६०, दउढ २७, २ दक्खिण ६, १ दक्षिणदिशिउ ७८, १ दडड ३२, २ दडबडाइउ २६, २ दमइ ३९, १ दयामणउ २०,२ दर २४, २ दश ५७, २ दस २८, १ दसमउ ३०, २. ५७, १ दसमि ३१, २ . दसी ९, २ दसे आगलउ १८,१ दहइ ४०, १.८०,२ दहिवा वांछइ ८१, १ दही ७, १ दंडइ ७१, २ दंडाउंछणउ २०,२ दंतसूकट १६, १ दंतूसल १७, १ दंभइ ४३, २ दाखवइ ४०, १ दीधु ७८, १ दाझइ ४४, २ दीधुं ५०, १ दाडिमु नींकोलइ ७७, २ दीपइ ३८, २ दाढ८,१ दीरघइ कू ३१, १ दाढी ८, १ दीर्घन ७९,२ दाणउ १६, २ दीर्घ ७९, २ दाणमंडही १६,२ दीवउ ९, २ दात्रउ ३४,२ दीवटीउ ६९, २ दादर २२, १ दीवडी १९, २ दादुर १४, दीवमंदिर २३, २ दादुर वाजउ २५, १ दीवाकाणउ २१, २ दाधउ १४, २. ५०,१ दीवाली १८, २. ६७, १ दाबडउं ६८,२ दीवी २६, २ दाम १८, २ दीसइ ७३, २. ७७, २. ७८, १ दामण १३," दीसतउं ६०, २ दारीवाडउ ३३, ३ दीह २०, २ दासी बहू वत् मानइ ७९, १ दीहाडा ७३, १ दाहिणउ १५, २ दीहाडी ७३, २ दाहिण गमइ ७३, २ दीहाडे ७८, २ दांडी ३४, १ दुक्खइ १०, १ दांतिलउ ३३, २ दुःखि ७३, दि ७०, १. ७२, १.७२, १ दिइ ४७, १.७५, २ दुगुंछइ ४०, दियइ ३५ दुषमाअरउ ६,१ दिवरावइ ४७, १ दूघडउ २६, २ दिषा (खा) डइ ४७, १ दूध ७, १.७५, २ दिहाडउ ३१, १ दूधु ७२२, दिहाडे ७८, १ दूबलउ ३२, १ दीख १०, दूमइ ४०, १. ४२, १ दीखइ ४२१ दूर्वानउ समूहु ७६, २ दीजइ ३५, दूषइ ३७, ३. ४९, १ दीजउ ३५ दूहवइ ४६, १ दीजतउ ३६ दीजतउं ६०, २ देई ६१, १.६२, १ दीजतुं ६२, १ देउली ३३, १ दीजतूं (प्र०) ६०, ४ देखइ ४०,२ दीजिसिइ ३६ देखतउ ६०,२ दीठउ ४९, २ देखाविखि २७, १ दीठउं ६०, १ देखी ६१, १ दीघउ २१, १ ३६, पं. २४ देजे ३५ दीधङ ६०, १.६२, १ देणहार ३६, पं० २२ "ALAWal Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० देणहारु ६१, २. ६२, २ देणाहरु ३६, पं० ३३ देत ७८, २ देतउ ३६. ६०,१ देतु (प्र०) ६०,२ देतं ६२,१ देव आयतुं करइ ७७, २ देवउं ३६, पं० ३१ देवतणइ ७२, २ देवदत्त २१, २ देवदत्तु ७१, २ देचा ३६, पं० २८६१, १. ६२, १ देवालय कन्हलि । ७३, २ तीर्थै छइ । देवालय विडंगमे। वड दीसइ । । ७३, १ देवालयु ७५, २ देवालि १७, २ देवा वांछइ ८१, २ देवु ६१, २. ६२, २ देवू ५२, २ देषइ ८०, १ देषतु (प्र०) ६०,३ देषिवर्ड ६२, १ देषिवा ६१, २ देषिवा वांछइ ८१, १ देषिवू (प्र०) ६२, १ देषिव्युं ५२, २ देषी (प्र०) ६१, २ देशांतरी ६९, १ देशि ७४, २ देसानी ६७, २ देसिइ ३६ देहउ ३६ देहरइ २२, देहरइरउ २५, २ देहरङ ७५, २ देहरासरु ६८, १ दैत्य ७२, २ दो [गुं] छइ ४६, १ दोटी ३२,२ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत दोतडि १५, २ धरि ५२, २. ५३, २ दोरउ २२, २. ३२, २ धवलइ ४०, १ दोरी ७३, १ धाई ८, ५ दोसी ३३, २ धाईउ ५२, १ दोहइ ४०, १. ९०, २ धाडि ९, २ दोहडउ २५, १ धाणा ७, १ दोहणी १६, २ धाणी १९, २ दोहिलङ ६८, १ धातइ १५,२ दोहिलं ५७, १ घातस्वायु ६९, २ दोहिवा वांछइ ८१, २ धान २४, २ दोही ५१, १ धान घीरी : धामण १७, २ दोहीत्रउ ७,. धायउ ७, २.१८,२ द्रउडइ ४२, २ धावइ ३९,१ द्रमद्रमइ ४४, घाहडी १२, २. ३१, १ द्रम्मामु ६८,१ धीया न पुत्ता १८, १ धीरवइ ४१, १ द्रव्यु ७३, १ धींगउ २२, ५ द्रहद्रहवार ६४,२ धुलहडी ६७, १ द्राख १२,२ धूअउ १२, १ द्राम ७८, २ धूअरि १२, १ द्वि ५७, २ धूआ २३, १ धूणइ , धड २२, २ धूणियउ २५, २ धडहडइ ४४,२ धूपइ ३८, २.७०, १ धणिउ ६७, १ धूपधाणउ ६८,२ धणिय १७, १. २५, १ धूंसइ ४४१ धणीवउ २६, १ घेणू २१, १ धत्तूरउ १२, २ धेनुनउ समूहु ७६, २ धत्तूरियउ १६,१ धोअइ १२, १ धनागरउ १८," धोईड ५१, २. ५२, ३ धनु ७६, १ धोयण ३३, २ धनुष ९, २ धोरी १३, २ धमइ ३७, १ धोवणी १८, १ धमिउं ५२, १ ध्यायइ ३७,२ धरइ ३७, १.४७, १. ७०१ ध्रायइ ३७, २ धरणइ १६, १ ध्रायु ७२,१ धरती १०,२ ध्रुवउ १६,२ धरावइ ४१, १ धरिउ ५०, १ धेठउ ७, २ धरिवा वांछइ ८१, १. ८१, २ ध्रोब १३, १ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम १०१ नहीं तु ६२, २ निमित्ती ३४, २ न १८, १.७२, १. ७८, २ नहुतरिउ ५२, १ नियोजिवू ५३, २ नई ७३, १ नाक ८, १ निरखइ ४१, २ नइमाहि माछा हीडई ७५, २ नागरवेलि १२, २ निरभरछइ ३९,२ नउद ९, १ नाचइ ३८, १.४८, १.८०, १ निराकरइ ४४, २ नउल १४,१ नाचिउ ५१,१ निरोध १८,१ नखारउ १८, १ नाचिर्बु ५३, २ निर्धाटइ ४१, १ नगरनइं उत्तर गमई ७४, १ नाठउ ५०, १ निर्मलबुद्धि ७४, २ इकडउ पर्वतु । नाणउ २३, २ निर्मलां ७४, २ नगरु ७३, २ नाणिद्रउ ६७, २ निर्वाप ७५, २ नचावइ ४८,१ नातणउ ९, निलखणउ २६, २ नणदोई ६७,२ नात्रा १८,१ निलाड ८,१.६७, २ नणंद ८, १.६७, २ नाथइ ४४, १ निवडियउ २१,५ नदि ७४, २ नाथियउ १६, २ निवायड २४, १ नदी २५, २. ७४, १ नान्हउ ६५, २ निवारइ ४३, २. ४६, २ नदीनां जलु ७४, १ नामइ ८०,२ निवारिउ ४९, २ नमइ ३९, १.८०,२ नामु ७४, १ निवी ३१, १ नमस्करइ ४१, २. ४६, २ नारिंग रूंख २२, . [निवेदिQ] ५३, २ नमस्करिव्यु ५३, १ नालेर १२, २ निषेधइ ४६, २ नमिवा वांछइ ८१, २ नाच १०,१ निष्ठा २४,१ नमो १५, १ नावी १०,२ निसरावउ १७, १ नयडउ १४,२ नासइ ३९, २.४८,२ निसूग २०, २ नरनरइ ४२, १ नासिवा २६, १ निसेजा २१, १ नव २८, १.५७,२ नासिवू ५४, २ निसोत २१, १ नवकारवाली २१, १ नास्तिक टाली। निस्तयउ ४९,२ नवकारसही ३३, २ कुण पापीउ निदइ ३८, १.४६, १ नवमउ ३८, २. ५७, १ नाहर १७, १ नीक २३, १.६६, ३ नवमि ३१, २ नाहिवा वांछइ ८१, १ नीकउ २६, २ नवलउ १५, २ नाहिq ५४, १ नीकलइ ४६,२ नवाणू ३०, नांखइ ४२, नीकल्यउ ४९, २ . नवारसउ १७,२ नांगर २५, १ नीकोलइ ४६, २ नव्यासी २९, २ नांष (ख) इ ४७,२ नीखणियामउ २६, १ नस ९, १ नांषि (खि) उ ५२, १ नीचङ ५६, ३ नसावइ ४०, १ निउंजइ ४२, २ नीठ २४, १ नहरणी १८, १ निऊ २९, २ नीठइ ४३, १.७०, १ नहि तु (प्र०) ६२, ३ निकरउ २५, २ नीठि २३, १ नही ३३, २ निकोलिवा वांछइ ८१, २ । नीठियउ २५, २ नही करइ ३६ निजंत्रइ ३९, १ नीठुर १४,२ नही दियइ ३६ निद्वंधस २०,२ नीद्रालूखउ ६९, २ नही लियइ ३६ निद्रालखउ ३२, २ नीपजइ ३८, २ नहींत ५६,२ निबीजइ ७०, २ नीपजई ७५, २ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीमी १५, १ नीवडइ ४०,१ नीसरइ ४०, १ नीसरणी २०, १ नीसरिउ ४९, २ नीससइ ३९, २. ४६, २ नीसा २०, १ नीसाण १६, १ नींकोलइ ७७, २ नींगमइ ७३, नींद ६,२ नींपजावइ ७२, २ नींबू १९, १ नेउर ९,१ नेत्रउ २५, १ नोमाली ३४, १ नोहली ३१, १ न्युंछणउं ६९,२ न्युंजणउं ६९, २ न्हवारइ ४७, २ न्हाइ ४७, २ न्हाउ ५०, १ न्हायइ ३७, १ पढ़च ६४, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत पच्छिम कि ३१, १ पढइ ४२, १. ७७, १.८०,१ पच्छोकड ६९, १ पढणहारु ७२, १ पछइ १८, २.३०, २.५५,१ पढतउ ६०,२ पछेवडइ ९,१ पढमाली २०, १ पछेवडी २१,१ पढिउं ६०, १. ६२, १ पछोकडउ २६, १ पढिवा ६१, १ पजूसण ३३, २ पढिवा वांछइ ८१, १ पटउ २३, १ पढिवू ५३, १ पटांतरं ६६, २ पढिवू (प्र०) ६२, २ पटांतलं (प्र०) ६६, ४ पढी ६१, १ पठणहार (प्र०)६१,४ पढीतउं ६०, २.. पठणहारु ६१, २ पढीतूं (प्र०) ६०, ४ पठतु (प्र०) ६०, २ पढी सकङ ३६, पं० २९ पठावियउ १४,२ पढी सकुं ६२, २ पडइ ३८, १. ४८, १. ८०, २ पढ़ ६४, २ पडखइ ४१,२ पडघउ २१, १ पढ़चूं (प्र०) ६४, ४ पडजीभी २०, २ पढ्यउं (प्र०) ६०, १ पडत ७८,२ पणीहारि ७,२ पडल २३, २ पतीजइ ४३, १७०, २ पडलउ ३४, १ पतंग १७, २ पडली २५, २ पथरणउं ६७, २ पडवास ९,१ पडसाल ३२,१ पद ७७, १ पधारउ ४१,१ पडहउ ६, २ पनर २८,१ पडहू १०,१ पडाई २६, २ पनरइ ५७, २ पनरमउ ३०,२ पडिउ ५०, १ पडिकमणउ ३३, २ पमार २१,२ पडिगरिउ ५२, १ पमावइ ४१,१ पडिलेहण ३३, २ पमोडी १७, १ पडिवा ३१, ३ पयलु ६४,२ पडिवा वांछइ ८१, २ पयंतरउ ३२, २ पडिवू ५३, १ परखइ ४१,२ पडीआर २५, २ परचूरणि २५, २ पडीगइ ४१, २ परत २६, २. ६६, २ पडीगरइ ४६, १ परतइ ४४, १ पडीसारउ ६८,२ परताति १९, १ पडूछइ ४४, ५ परनालि १२, १ पडूंचउ ३१,२ परम २७, १. ६२,२ पडोसु ६९, १ परमइ ५५, २ पइठउ ४९, २ पइलउ (प्र०) ६१, ४ पइसइ ३९, २ पइसिवा वांछइ ८१, ५ पइंत्रीस २८, २ पइंसटि २९, १ पउंजणी ३४, १ पखालइ ४२, १ पग ३२,२ पचइ ३७, २. ४९, १.८०, पचखाण ३३, २ पचतालीस २९, १ पचारइ ४३, २ पचास २९, १ पचिवा वांछइ ८१, १ पच्छिम ६, १ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम पाचइ ४४, २ पाछइ १५, २ पाछलि ७५, १ पाछिलउ ३१, २, ६४, १ पाछिलु ६४, ५ पाछिलु ५५, १ पाछेवाणु ६६, २ पाछेवाणूं (प्र०) ६६, २ पाज २३, १ पाजणी २६, १ पाटउ २३, १. २४, १ पाटण टाली। किहां वसीड। ७५, २ परमूणउं ६७,२ परलउ ३२, १ परव ११, १.६८,२ परवारइ ४३, २ परवाली ११, २ परसु १८, परहउ २७, २. ५६, १ परहु ६४, २ पराणी १०, १ परायउ ३१, २. ५५, १ परालु ६९, २ परि ५५, २ ७७, २ परिचउ १५, १ परिणइ ४१, २. ४७,२ परिणवू ५४, १ परिणावइ ४८, २ परिण्यउ ५१, १ परिधान २५, १ परिवारिङ ५७, १ परिवान्यु ६८, परिसीजइ ४६, १ परिसीनउ ५१, २ परीछइ ४१, १ परीयच्छि ६९, १ परीयटु ६७, २ परीषि (खि)बुं ५३, १ परीसइ ४३, १ परीसिउ ५१, २ परीसिव्युं ५२, २ परूवइ ३७, ५. पर्वतनइ अहिनाणि । गामु वसइ । पर्वतु ७४, १ पलवटि ६९, १ पलाण १३, २ पलाणइ ४१, १. ४४, १ पली ," पलीवणउ २१, १, ३४, १ पलेवल ६९, २ पलोटइ ४०, २ पल्हालइ ४३, २. ७०, १ पवित्रइ ७०," पवित्री १७, २ पवित्रु करवा वांछइ ८२, १ पवीत्रइ ४३, १ पश्चिमीउ ७८, १ पसवइ ३२, १ पसीअइ ४२, २ पसीजइ ४२, २ पह २२, २ पहर २०, १ पहिरइ ४२, २, ४८, १ पहिरणउ ३२, १ पहिरता ७८,२ पहिरवू ५२, २ पहिरावइ ४८, पहिराविउ ५२, १ पहिरिउ ५२, १ पहिस्खउ २६, १ १८, २, ५६,२ पहिलं ५५, १ पही ३९, पहुरइ १६, १ पहूआ १९, १ पहेली ६, २ पंखी १४, १ पंचवीस २८, २ पंचहत्तरि २९,२ पंचाणू ३०, १ पंचावन २९, 1 पंचासी २९,२ पंड्यांस ३४, १ पाइक ३२, २ पाइणि १७, १ पाइली १७, २ पाउल ३३, १ पाउंछणउ २१,१ पाखइ ६२, २ पाखखमण ३३, २ पाखर १३, १ पाखलि ६४, २ पाटलउ ६८, १ पाटी ३२, १ पाटू २६, २ पाटूआली २६, २. ६७, २ पाठवइ ४४, १ [पाडइ] ४८, १ पाडउ २५, १ पाडिहारू ३१, १ पाड्यउ २२, २ पाढ ३५, १ पाण १७,१ पाणी १७, १. ७४, २. ७७, १ पाणीनइ छेहि वृक्षु ७५, २ पाणीनइ पारि देवालयु ७५, २ पाणी भरिडं सरोवर ७२, १ पातली १९, १ पात्र ७७, १ पात्रउ १८, १ पात्रांरउ १८,२ पाथउ ३४,२ पाथर ११, २ पादइ ३८, १४९, १ पादरियउ २५, २ पाद्र २२,२ पाधरु ६४, १ पान १२, १ पान्हउ १७, २ पान्ही ८,२ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत पापड २२, २ पांख १४, १ पापीउ ७५, २ पांगुरइ ४४, ५ पामइ ४१,२ पांगुरणउ ३२, १ पामिउ ५०, १ पांगुन्यउ ५२, १ पामिवा वांछइ ८१, २ पांगुरावइ ४८, १ पामिवू ५४, १ पांगुरिवू ५२,२ पामी विद्या जेहि पुरुषि ७४, २ पांच २८, १. ५७, २ पायइ ४१, १ पांचमउ ३०, २. ५७, १ पायकेसरी ३४, १ पांचमि ३१, २ पायठवणउ ३४,१ पांजरउ २२, २ पारउ ११, २ पांडरउ १४, २ पारस पाहाण २२, १ पांति १४, २ पारि ७५, २ पांभडी ३४,२ पारेवउ १४, १ पांसुली ९, १ पालइ ४१, १ पिण्डखजूर २४, २ पालउ १२, १५७, १ पितर ८, १ पालटइ ४३, १ पियइ ३७, १ पालटउ ६८,१ पिराणउ ६९, १ पालटिउ ५६, २. ६८, १ पिहुलउ ३३, २ पालणउ २५, २ पिंगाणी २३, २ पालथी ९, १ पीई ७५, २ पालवइ ४३, २ पीजहलउ २६, २ पालि २३, १ पीजहलु ६९, . पालिउ ५०, २ पीटणउ २१, २ पालिवू ५४, १ पीठ १५, १ पालुइ ७०, १ पीठी १६, १ पावइ ४१, २ पीडइ ३८, १ पावटउ १७, १ पीढी २२, १ पाव (ख१) रिउ ६८, २ पीतरियउ ७,२ पाषइ ६२, ४. ७४, १७५, १ पीतल ११, २ पाषलि (प्र०)६४, ३ पीत्राणी ६०, १ पाष (ख) ह ५५, २ पीत्रीयु ६९, १ पासउ ७, २.८, २. २५,७ पीधुं ५०, १ पासाकेवली २३, २ पीपल १२, १ पासि ५६, २ पीपलरी २६, १ पासी १०,२ पीपलि ७, १ पाहणि पीस्या सातू ७८, १ पीपलीमूल ३४, २ पाहरी ६९, २ पीपी २६, १ पाहरी जागीइ ७१,१ पीयइ ४६, २ पाहरू १६,१ पीलउ १५, २ पाहाण ११,२ पीलू ३५, ५ पील्या २५,१ पीचा वांछइ ८१, २ पीवू ५२,२ पीसइ ४४, १.४६, १ पीसती २०, २ पीस्या ७८,१ पीहर १५, १ पींगाणउ २३, २ पींछ १४, १ पीजइ ३७, २ पीजणउ १०, २ पींजती २०, २ पीडार २२, २ पीडी ८, २ पुकारइ ४४,२ पुडउ १६, २. २३, २ पुण पुण ५७, १ पुत्रसिउं यमइ ७५, २ पुत्रि २१, २ पुप्फपडली २५, २ पुरअहे दीहाडे । ७८,२ मिष्टान्न यमता पुरस ८,२ पुरु ५५, २ पुरुष ७८, २ पुरुषतणउ समूहु ७६, १ पुरुषतणुं समवायु ७६, १ पुरुषनउं वृंदु ७६, १ पुरुषभणी ७३, १ पुरुषि ७४, २ पुरुषु राजांनी परि। दीस पुरोकडं ६७, २ पुहुर ७३, १ पुहुलउ ७९, १ पुहुंक १९, १ पुंआड ३३, १ पुखियउ २४, १ पुंजउ (प्र०) ६४,४ पूअरअ ३३, २ पूगीफाड २१, २ ७७, २ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ प्रेरइ ४२, २. ४६, २, ८०, २ प्ररिउ ५१,२ प्रोअइ ४२,२ लीह ८, २ फ फडफडइ ४३, २. ७०,२ फरलउ २१,२ फरसइ ३९, २ फरिस्थड ५०, १ शब्दानुक्रम पूछ १३, १ पोटली १६, १ पूछइ ३७, २. ४८, १. ८०, १ पोठीउ ६७, २ पूछणहार (प्र०) ६१, ४ पोठीयउ १३, २ पूछणहारु ६१,२ पोत्रउ ७,२ पूछतउ ६०, २ पोथउ २२, २ पूछतु (प्र०) ६०,३ पोथउं ७३, १ पूछिउ ४९, २ पोथां ७५, २ पूछिडं ६०,१ पोथी ३२, १ पूछिवउं ६२, १ पोरवाड २१,२ पूछिवा ६१,२ पोरसी ३३, २ पूछिवा वांछइ ८१, १ पोली २०, १. ३३, १ पूछियूँ ५३, २ पोषणु ७२, १ पूछियूँ (प्र०) ६२, २ पोष्यवर्गरहिं ७२, १ पूछी ६१, १ पोस ६,१ पूछीतउं ६०, २ पोसइ ३९,२ पूछीतूं (प्र०) ६०, ४ पोसहथउ २६, १ पूछ्युं (प्र०) ६०,२ पोसाल १८,२ पूजइ ४१, २. ४६, २ प्रकासह ४०, १.४७,१ पूजिवा वांछइ ८१, २ प्रजूंजिउ ५१, १ पूजिवू ५३, १ प्रति ७३, २ पूठउ ,२ प्रतीठ २३, १ पूठि ६३, ४. ७३, २ प्रधान रहि ७२, १ पूर्टि ६३, २ प्रयाणउ ९,२ पूडा २०, १ प्रयुंजइ ४८, २ पूणीं ६७,१ प्रयोग ७२, २ पूत ७, २ २४, २ प्रवर्तइ ७५, ५ पूतली ११, प्रवाली ११, २ पूलउ १६, २ प्रशस्यु १९, १. १९, २ पूनिम ३१, २.७६, १ प्रसवइ ४९,१ पूरइ ३९, १. ४३, २ प्रसविउ ५१, २ प्रसंसइ ३९,२ पूरव दिश६, . प्रसाद रा २४, २ पूरिसइ २१, २ प्राणीया ७२, २ पूर्वीयु ७८, प्राणीयां तु मति-1 पूलउ १६, २ जीवी भला । । ७२, २ पूंजइ ४०, २ प्रासाद योग्य । पूंजउ ६४, २ पूंद ,२ पाहुणउ ३३, २ पेलावेलि २६, २ प्रियु ७९,२ पोईस्त १९, १ प्रीणइ ४७,२ पोटलिया १६, १ प्रेयर्नु ७९, २ उ०र०१४ फलहउ १९, २ फली 16, फंदइ ४०, २ फागुण ६, १ फागुणमास । तणी पूनिम । फाटउ १६, २ फाडइ ४०, १.४९ १ फाडियउ १४, २ फाडिवा वांछइ ८१, २.८२, १ फाडी ६६, २ फाड्यउ ५१,२ फाल २५, १ फालरउ २५, १ फिरइ ४६, २ फिरक ६७,२ फिरिवा वांछइ ८१, १ फीटइ ४०, २. ४३, १ फीण १२, १ फुई ३२, २. ६९, १ फुईहाई २६, १.६९, १ फूटइ ३८, १. ४८, २. ७०, २ फूटउ ५१, १ फूटरउ २६, १ फूटी २३, १ फूरइ ३९, १ फूलपत्री ७२, २ फुलिंग ३५, १ हितूई ईट । ७७, २ फेडइ ४२, २ फोडी २०,२ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ फोड ३८, ६ फोड ७, २ फोफल ३४, १ व बइठउ १९, २. ४९, २ बइरी ९, २ बइसइ ४४, १४७, २ बसई ७५, २ बकोर १८, १ बगलउ १४, १ बगाई ६७, १ बजरइ ४०, १ बडबडइ ४०, २ बीस २८, २ बयालीस २९, १ बलइ ४१, २ बलद १३, २. ७८, २ बलबलीउ ६९, १ बलहि ६८, २ बलिउ ५२, १ बलिवा वांछइ ८१, १ बसवसइ ४३, १ बहिणि ८, १ बाउलउ २६, २ बाउलु ६९, १ बाकरउ १३, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत बाणि ७७, २ बाणू ३०, १ बाप ८, १.२६, २.६६, २ बापड़ १८, २ वापडउ ५६, २.६८, १ बापसरीषउ ६६, २ बाफ ३३, १ बाबीहउ १४, १ बार ११, १. ५७, २ बारइ २८, १ बारमउ ३०, २ बारघट ३२, १ बारसि ३१, २ बालइ ४२, १ बालउ १२, २ बालक ३९, १ बावन २९, १ बावनउ चंदन २५, २ बावीस २८, २ बहिन ६९, १ बहिर २६, १ बहुरखउ ३२, १ बहुलु ७९, २ बहेडउ १२, २.१७, २. ३२, २ बांभणायतुं ७७, २ बंग ३४, २ बांभणी १३, १ बंधुन समूहु ७६, २ बाउची १९, १ बाउल २२, २ बासठि २९, १ बाहिरल्युं ५५, १ बाहिरहुंत ५६, १ बाहिरि २७, २ बांध ३८, २. ४८, २ बांधिउ ५०, २ बांधीव ७३, १ बांभण ३४, २.७४, २.७५, २ बांभणनउ अभाव ७५, १ बांभणउं घरु ७२, २ भ७४, २ बाण १९, २ arrरहिं हितू शरकड ७७, १ विमात्र कै ३१, १ बि २७, २ बिउणउ ३२, २ विडोत्तर सउ ३०, १ बिमणइ ७७, २ बिमण ६७, २ fararacter at ३१, २ बिलाड ३५, १ बिवार ( प्र०) ६३, १ वित्तरि २९, २ विहु परि ( प्र०) ६३, २ बिहुँ ७४, १ विहुं गमे ७३, २ बिहुँ परि २७, २.७६, २ बीकानयर ११, १ बीज ३१, २ बीजउ ५६, २ बीज ३०, २ बीजली १२, १ बीजावोल १७, २ बूडइ ३८, १ बूढउ ७, १ बूंब १६, १ बाभणना ७२, २ वांण पाछलि शिष्य ७५, १ बेडी १०, १ बेल १७, २ बेहडउं ६६, १ बेहडूं (प्र०) ६६, १ बोर ३४, १ बोरि १२, १ बोलइ १९, १.४१, १.७३, २ बोलणहार ( प्र० ) ६१, ४ बोलणहारु ६१, २ बोलत ६०, २ वोलतु (प्र०) ६०, २ बोलिव ६२, १ वोलिवा ६१, २ बोलिवा वांछइ ८१, १ बोलिवु ५३, २.. बीजी भूमि २५, १ बीजोरउ १२, २ बीयर १७, १ बील १२, १ बीह १६, २ बीes ४१, २. ४६, २ बहाव ४१, २. ४९, १ बहाव ५०, २ बीहिल ५०, २ बीहिवा वांछ ८१, २ बुद्धि ७४, २ बुहारी ११, १ बूझइ ३८, २. ४८, २ बूझिउं ५३, २ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम भांज ३७, २.४८, १ २ भरइ ३७, १.४९, १ भरणी २५, २ भरण पोषणु ७२, १ भरिउ ५०, १७२, १ भरिउं ५६, २.७२, १ भांजिबुं ५३, १ भांड २२, १ भांडइ ३७, २ भिउडी ८, १ भिंगार १५, १ १ 9 भरि ५३, २ भरुअच्छ ११, १ भस्यउ १४, २ भलई ७१, १ भला ७२, २ भलिसुं ४१, १ २ भली २४, १ भीखइ ३९, २ भीखारी ३३, २ भीतरउ ३२, १ भीति ३२, ३ भील १०, २ ७३, १ भ भइरव ६, २३३, २ भइस७२, ६ भउजाई ३२, २ भक्ति ७३, २ भखइ ३९, २ भजइ ४९, १ भडह (भ) डइ ४४, २ 7 भई ३९, २ मध्य (ख्य ) उ५०, १ भसम १५, २ भस्मसूत २५, १ भंजवाड २६, २ भंडार २०, १ भंडारु ६८, २ भाई ७, २ भाऊ बीज १८, २ भागउ ४९, २ भाजइ ३७, २ भुइफोड ३५, २ भुजाई ६९, १ भुलइ ४०, २ भुवनि ७४, २ भुंजइ ४६, २ भुंडउ ७४, १ भूइ १०, २ भूख ७, १ भूखिय ७, १ भूतंतर प्राणीया भला ७२, २ भूहिरउ ३२, २ भेटिड ५१, २ भेदइ ४३, १ भाट २१, २ भडिथ १७, १ भणइ ४२, १४८, १८०, १ भाठ ११, १ भेदिउ ५१, २ भाडउ २४, १ भेदिव्यं ५३, १ भणावइ ४८, १ भणाव्यउ ५०, २ भणिवा वांछइ ८१, १ भाणउ २०, २ भाणा योग्य सहित उं } भेलइ ४६, २ भोगल २७, १ भोलउ ६९, २ ७७, २ भणि ५३, १ भणी १५, १७३, १ म भाणेज ७, २ भात ७, १ भात्रीजउ ७, २ मद्द घरि रहिव ७२, १ भाथडी ३३, १ मइलउ १५, २ मई ५५, १.७८, २ म रहीइ ७१, १ भाद्रवउ ६, १ भारउट ३२, १ भारी ५६, २ भारु ७१, २ भालि २३, १ भाषइ ३९, २ भांखडी १७, २ मई १०, १.२३, १ मउठ १२, २ मउड ९, १ मउडई ५७, १ मणि ११, २ मउर १५, १ भांगर १९, २ मउरा १८, २ बोलिवूं (प्र०) ६२, १ बोली ६१, १ बोलीत ६०, बोलीतू (प्र०) ६०, ४ बोल्य ६०, बोल्या ७२, २ बोल्युं (प्र०) ६०, ब्यासणउ ३१, १ ब्यासी २९, २ ब्राह्मण ७२, २ ब्राह्मण प्रति ७३, २ ब्राह्मण यमिसिं यमिसिं ७८, ब्राह्मणसिउं जाइ ७५, २ ब्राह्मण शिष्य पाहिं } भण्यउ ५०, २ भत्रीजउ ६७, २ भथायि ६७, १ भमइ ३९, १ भमती ३३, १ भमरउ १३ १ भमरडउ १६, २ भमलि २३, १ भमाडइ ४०, १ भभिउ ५१, १ भमतउ ७३, १ १०७ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ मऊ (प्र०) ६६, ३ मकनउ २५, १ म करि ३६ म करिस ३६ म कीधु ३६. ७८, १ कोड ३१, १ मगसिर नपत्र ५, २ मजीठ २३, १ मजीठ राती साडी ७६, १ मंडउ ८, १ मडि ६७, १ मढ ११, १ मढी १६, २ मणमणउ २२, १ मणसिल १५, १ मणिआर १९, २ मणिय १८, २ मतवारणउ ११, १ मतिजीवी ७२, २ मथइ ३८, १ मद १०, १ म दीधु ३६. ७८, १ म देइ ३६ म देसि ३६ मनावइ ४२, २. ४८, २ मनावि ५३, २. ५४, १ मनाव्यउ ५०, १ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत म लघु ३६. ७८, १ मलेइ ३६. मलेसि ३६ मरूअउ १७, २ मर्दइ ३८, २. ७०, १ म लहू ४०, २ मवइ ४८, २ मविउ ५१, १ मसउ १५, २. ३४, २ मसवाडा ७३, १ मसाण ११, १ मसाहणी ६९, १ मसि ७, २ मामउ २६, २ मसि [भा ? ] जण ३४, १ मामी २६, २ मस्तक मढइ के ३१, २ मायइ ४२, १ मायउ २२, १ मंजूस ११, १ मंडइ ४७, २ मंत्रइ ३९, १ मंत्रासरू ६८, २ मथाणउ ११, २ मनुष्यनउ समूहु ७६, १ मनुष्यमाहि ब्राह्मण श्रेष्ठ ७२, २ भाउलउ ८, १.६९, १ मयगल ३४, १ मा [?] लाही ६९, १ माइ ८, १ माई [हा] ६९, १ महतउ ९, २ महमहइ मालती ४०, १ मारइ ४४, १४८, १.७२, २ महिषु बाणि आहण ७७, २ मारणहार ( प्र० ) ६१, ४ महुआल १७, १ मारणहारु ६१, २ महुरउ १४, २ महुलेठी १९, २ महूअउ १२, १ मंगलेवर १६, १ मंजार ३५, १ मयण १३, १ मयणहल २५, २ मरइ ३७, १४७, १.७०, २. मागइ ३७, २.४४, २ मरमर सबद २२, १ मागिउ ५२, १ माचइ ४२, १ माकण १३, १ माखी १३, १ मरहठ ३४, २ मरावइ ४८, १ माछलउ १४, १ मरिवा वांछह ८१, २.८२, १ माछा ७५, २ मरीइ ७१, १ माजणउ २२, २ माणी २३, १ मातउ ३३, २ मात्रा विना १८, १ माझ १४, २ माटी ३४, १ माणसामउ ५६, १ माथइ २५, १ माथइ भमरउ ८, १ मादल २२, २ मान ७५, १ मानइ ३८, २. ४२, २.४८, २. मा नई ३९, १ मारतउ ६०, २ मारतु ( प्र० ) ६०, ३ मारिउ ५१, १ मारिउं ६०, १ मारिव ६२, १ मारिया ६१, २ मारिवा वांछइ ८१, १ मारिखूं (प्र०) ६२, १ मारी ६१, १ " ( प्र० ) मारीत ६०, २ मारीतूं (प्र०) ६०, ४ "" मारू ३५, १ मालती ४०, १ मालवउ ३४, २ माली १०, १ माषीनउ अभावु ७५, १ मासउ १९, १ मासतणी ७६, १ मासमउ दिहाड ३१, १ मासिहाई २६, २ मासी ३२, २.६९, १ मास्याही ६९, १ माह ६, १ माहरउ ६३, २ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम माहरङ ३३, १ मुस्यउ ५०, २ माहरु २७, २. ५५, १. ६३, ३ मुहछण १७, २ माहि ५६, २ मुहडउ ८, १ माहिल्युं ५५, १ मुहपती १८,२ मांकुण ६७,१ मुहषायी ६६, २ मांखण ५, 1 मुहिया २७, १ मांचउ ९,२ मुहिओं (प्र०) ६२, ४ मांचइरी २४, १ मुहीयां ६२,२ मांची ३३, २ मुहुखाई (प्र०) ६६, ४ मांजइ ३७, २.७०, । मुहूरत ६, १ मांजरि १२, १ मुंड ८, १ मांड ७,५ मुंडउ २१,२ मांडइ ३८, १ मुंदडी ३२, १ मांडणउ ९, १ मूउ ५१, १ मांडहिय ६८, १ मूकइ ११, १.८०,२ [मूकइ] ४८, १ मांडा ३३,१ मूकिवू ५३, १ मांडी १५,२ मूझइ ४०, मांदउ २४, २ मूठउ १८,२ मांसु ७७, १ मूठि ८, २ मिठाई १९, १ मूत्रइ ३७, १ मित्राई ९, २ मूल १०, मिलइ ७०,१ मूलउ १३, १ मिलायइ ४०,१ मूली १६, २ मिष्टान्न ७८,२ मूस १९, २ मीचइ ४२, २ मूसउ १३, २ मीठउ १४, २ मूसल ११,१ मीठी १८, २ मूंकिउं ५०,२ मीढी (प्र०) ६६, ३ मूंग १२, २ मींजी ९, १ मूंछ ८, १ मींढइ ३१, २ . मुंडि उ ५२, १ मींढउ १३, २ मूंदडी २०, २ मीढी ६६, २ मूं पाषइ ७४, १ मुखामुखि २६, २ २७, २.६४,१ मुखास १७, १ मूंहइ ५५, ५ मुग ७२, २. ७८, १ मृगतणउं मांसु ७७, १ मुगउ ५६, २ मृगु विंधइ ७७, २ मुजल १७,१ मेघु ७८, १ मुडई ६८, १ मेढी १०, १ मु (माउ ? ) लाणि ६९, १ मेथी रा लाडू २६, १ मुसह ३९,२ मेराईउ २६, १ मेरायीयुं १९, १ मेलइ ७२,२ मेलउ १४,२ मेलवइ ४०,१ मेलिउ ५१, २ मेलिहवा वांछइ ८१, मेह ६, मेहरू २७, १ मोकलउ ३३, २ मोकलत ७८, २ मोकलावर ४४,१ मोगर ९, २ मोगरउ २३, २ मोटउ ६८, १.७९, १ मोडइ ३८, १ मोती ११,२ मोथ १३, १ मोर १४, १ मोरसिखा १९, २ मोलइ ४२, १ मोलीउ ६७,२ मोसंधीयु ६७, २ मौ ६६, २ यमइ ७५, २ यमणुं ६४, १ यमता ७८,२ यमिङ ६०, १ यमिव ६२, १ यमिवा ६१, २. ७५, २ यमिसिं ७८, २ यमी ६१, १ यमीत ६०,२ यसउ ६४, १ यहां ६३, १ यहांनउ ७८, ५ याचइ ४४,२ याण (प्र०) ६३, ३ यावजी ७२, यिम ६२, २ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये ये वडा ते ते । ७५, १ । उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत ये ये लहुडा ते ते ...राइणि १९, १ यमिवा बससई । राइतउ ३१, १ राई ७, १. २४, मान लहई । राड ७२, २ यो ५५, २ राउत ६८,१ योग्य ७७, १. ७७, २ राउताई ६८,१ योग्यु ७७,२ राउ बांभणना। _क्यरि मार रखवालउ २०, २ राउलड २३, २ रचइ ३७, १ राउ लोकापाहिं । । रतांजणी १७, २ करसणु करावा रती १७, १ राक्षसु ७८, १ रत्न ७५, २ राख १०, १ रथु ७८,१ राख ३९, २ रमइ ३९, १. ४६, २. ८०, २ राखडी १८,२ रमिउ ४९, २ राचइ ४४, २ रमिवा वांछइ ८१,१ राजगुल ६७, २ रमियूँ ५४, २ राजपुत्र ७५, २ रयताणउ ३४,३ राजभुवनि ७४, २ रलियाम[ ५७, १ राजवी २१, १ रलीयामणउ ३२, १ राजा गामु बांभ-1 । ७७, २ रवऊ २६,१ __णायतुं करइ । रसोई १९, २ राजान २२, १ रसोयि ६८, २ राजानी परि ७७, २ रहइ ४४, २.८०,१ राजा पाछलि सेना ७५, १ रहतउ ६०,२ राजारउ २३,. रहाविउ ४९, २ राठऊड २१,१ रहिउ ४९,२ राडि ९,२ रहि ५२, २. ६०, १ रातउ २४, २. ७६, १ रहित ६०, २ राति २०, २ रहितु (प्र०) ६०,३ राति ७३, १ रहिव ६२, १. ७२, १ राती ७६, १ रहिवा थाकिवा, रान ३३, १ थाइवा[वांछ राब १६, १ रहिवू (प्र०) ६२, १ रायतणउ समूहु ७६, १ रही ६१,१ रावटउ ११, २ रहीइ ७१,१ राष (ख) इ ४८, २ रहीतूं (प्र०) ६०, ४ राषि (खि) उ ५०,२ रहीवा ६१,२ राषि (खि) ५४, १ रंग्यउ ५०,२ राह ५, २ रंजइ ४३, २ रांक २४, १ गंधइ ३८, २ रांधउ २४, २ रांधणउ २०, २ रांधिवउँ ५२, २ रांध्यउ ७, १ रांपी २२, २ रिजइ ४०,२ रिणउ १५,१ रीछ १३, २ रीसालू ७, १ रुचद ४९, १ रुलियउ २५, २ रुलीयामण ६८, १ सलीयायित कीधा । जीणं बांभण । रुधिर ५१,२ रूखउ २५, १ रूठउ १८,२ रूतउ २१,२ रूपउ ११,२ रूपानां पात्र ७७, १ रूपु ७८, ५ रूसइ ३९,२ रूं ३२,२ रूंख २१, २ रुंधइ ३८, २. ४९, १ रोइ ४९, १ रोइउ ५१,१ रोझ १७, १ रोयइ ३८,२ रोयिवा वांछइ ८२, १ रोहीडउ २२, रोहीस १३, १ लउडउ २२, लउंकडी १३, २ लउंग ९, १ लखइ ३९,२ लखमी ६, २ लगइ ५६, १.६२, २ लगाडइ ७८,१ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम १११ लगाडिउ ६८, १ लांबउ ६४, ५ लूणिर्बु ५४,२ लज्जालु ७९, २ लि ७०, १ लेइ ३५. ४७,१ लट्ट १७, १ लिइ ७१, २. ८०, १ लेइउ ३६ लयेत ७८, २ लिखइ ३७. २. ४७, २. ८०, २ लेई ६१, १.६२, १ लहइ ३९, १.७३, २ लिखावइ ७३, १ लेखउ २५, २ लहई ७५, १ लिखिवा वांछइ ८१, १ लेखणि ३४, १ लहिवा वांछइ ८१,२ लिखिवू ५३, २ लेजे ३५ लहिवू ५४, १ लिधुं ६०,१ लेटइ ४४, १ लहुडइ कु ३१, १ लिपसण ६६, २ लेणहार ३६, पं० २२. ६१, ३ लहुडउ ७९, १. ७९, २ लिपस' (प्र०) ६६, ४ लेणहारु ६१, २. ६२, २ । लहुडा ७५, २. ७८, २ लियइ ३५. ३७, १ लेणाहरु ३६ लिवरावइ ४७, १ लेत ७८, २ लाइ ८०,२ लिषा (खा) वइ ४७, २ लेतउ ३६ लाई ५७, १ लिषि (खि) उ ५२,१ लेतु ६०, १ लाकडउं ७७, १ लीख १३, १ लेतुं ६२, १ लाख ९, २. ३०,२ लीजइ ३५ लेव २१, २ लाखमउ ३१,१ लीजउ ३५ लेवळ ३६. ६१, २ लागउ ५०, १ लीजतउ ३६ . लेवा ३६. ६१, १. ६२, १ लागु ६८, १ लीजतउं ६०, २ लेवा वांछइ ८', १. ८१, २ लाज ३३, २ लीजतुं ६२, १ लेवू ६२, २ लाजइ ३८,१ लीजतूं (प्र०) ६०,३ लेवू ५२, २. ६१, ४ लाजिवा वांछइ ८१,२ लीजिसिह ३६ लेसाल १८, २ लाजीइ ७१,१ लीधउ ३६.७३, १.३६,पं० २४ लेसिह ३६ लाज्यउ ४९,२ लीधङ ६२,१ लेसूडउ १७,२ लाठि ३४,१ लीधी ५१, १ लेहउ ७, २ लाडइ ४२,२ लीधु ७८, १ लोकपाहिं ७३, १ लाडू २०, १. २६, १.७४, २ ली, ५०, १ लोक विक्रमादित्यु, ७२, २ लात १७,१ लीह ३२, २ राउ स्मरई । लाधउ १४, २. ५०, १ . लींडी १७, १ लोकांरी २४, २ लापसी १५,२ लीपइ ३८, २ लोटइ ४०, २. ४४, १ लाभइ ४७, १ लुका ४०, १ लोढउ २०, लाल ९, ५ लुठइ ३८, १ लोपइ ३८, २ लालइ ४१, १ लुणइ ४२, २.४८, २ लोवडी १९, १ लालि १६,१ लुणाइ ४४, २ लोहडउं ७७, २ लाष रातउ कांबलउ ७६, १ लुणावइ ४८, २ लोहy ५७, १ लाषिवा वांछइ ८१, लुणिउ ५०, २ लोहार १०, २ लाहउर ११, १ . .... लुकडि ६.७, ३ लोही ८, २ लाहणउ २५,२ हुँचइ ३७, २ लहसण १९, २ . लांघइ ३७, २. लुटिउ ५०, २ लांच ९, २.७२, १.. .... लूटइ ३८,.. . बहरी ३६ लांप ६९, २ ... लूण कयरा ३१, १ . .. वइसाख ६, .. .. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ वगणु ३३, २ चखाण ३४, १ वखाणइ ४३, २ वखाणि ५३, १ वघारइ ४३, २ वच्छनाग १३, १ वछयायित (प्र०) ६६, ३ वज २१, १ वटवालनुं ६६, १ वड १२, १. ७३, २ वडउ ५६, २. ७९, १ वडपण ७, १ वडा २०, १. ७५, १ वडा ७६, १ वडी १७,१.२०,१.२४, १.३४, २ वडी वार लगाइ ७८, १ वड्डु ७५, २.८०, १ वणइ ४२, २ वणवउ २६, १ व ( च ? ) णहडीउ ६७, १ ३४, १ परि वणिज १०, १ वणी २४, २ वणीमग ७, १ वत्सनु समूहु ७६, १ वत्सरहिं हितूउ ७७, २ वथूअउ १२, २ वधाअइ ४४, २ वधामणउ २१, २ वधारइ ४९, २ वधावइ ४४, २ वधूवर २४, १ वमइ ३९, १ वमिङ ५१, १ वयगरणु ६८, २ वयरि ७२, २ वयरी ७३, १ वयरी मरीइ ७१, १ वरइ ३७, १. ४७, १ वरगडु ६८, २ वरतर काटिवउ १५, २ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत वरता १०, २ वर पाछलि गीत गाती स्त्री वरस ६, १ चरसह ३९, २. ४८, २.८०, १ वरसवियारण (प्र० ) ६६, ४ वरसात २०, २ वरसालउ ६, १ वरसोला १८, २ वरहलि ( प्र० ) ६६, ४ वरसीय ७०, २ वरांसउ ६८, २ वरांसि ६८, २ वरांसिवय २१, १ वरांसीयइ ४३, २ वरुआती कन्या संपजइ वर्णवर ३७, १ वर्तइ ४९, १ वर्तिवउ ५१, २ वर्षशत ३६ वर्षाकालन मेघु ७८, १ चलइ ४२, २ चलउ २२, १ वलतउ २५, २ ७५, १ वसइ ७३, २ वसीइ ७५, २ वस्तु री २४, २ ७७, २ चला २५, १ वलि २३, २ वली ६३, १ वली वली ६८, १८०, १ वषा (खा ) णइ ४८, १.७०, १ वषा (खा ) णिउ ५१, १ वही १७, २ वही ि७८, १ वहू ७, २ वहूवत् ७९, १ वंचइ ३७, २.४७, वंचि ५४, १ वंच्यउ ५०, १ वंछिउं ५०, २ वंदिउ ५१, २ वाअइ ४२, २ वाइ ४८, १ वाइलउ १८, २ वाइवुं ५३, २ वाउ १२, १ वाउल २३, १ वाउलि २१, १ वाग १३, २ वागुर १०, २ वागुरी १०, २ वागुलि १४, १ वाघ १३, २. १५, २ वाघ तणां पद ७७, १ वाचर ३७, २ वाचणाहरु ७२, १ वाचि ५३, २ वाछडउ १८, २ वाछडा २४, २ वाछरू २४, २ वाजइ ४४, २.४८, १ वाजउ ६, २२५, १ वाजित्र ६, २ 身 वाटइ ४४, १ वाटभोजन २४, १ वाटली २३, २ वाटवालं ( प्र० ) ६६, १ वस्त्र ७, १.७८, २ वस्त्रगांठ २४, २ वहइ ४०, १४८, १७३, १ वाटि २३, २ वहलि ६६, २ वहिउ ५१, २ वहिलउ १५, २. ७९, २ वहिवूं ५२, २ वाडि २४, १.७३, २ वाडी १२, १.२१, २.७३, २ वाणही २०, १ वाणारसी १०, २ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम वाणि २४,२ वांटइ ३७," वात ७३, २. ७८,२ वांदह ३८, २.४६, २ वातचीत ६, २ वांदणउ ३३, २ वादलउ २६,१ वांदिवू ५३, १ वाधइ ४२, १.४३,२. ४९, २. वांस १२, २ ७०, २. ७१, यांसोली १०,२ वाधीउ ५१, २ विआरइ ४३, १ वान १५, विकस्यउ १२, १ वानगी २१, विकुर्वइ ४१, १ वानी २१, १ विक्रमादित्यु ७२,२ वापरब ४१, २ ४७, २. विगूयइ ४२, १ वापरिउ ४९,२ विगोवइ ४२, १ वाम ८,२ विघन १५, १ वायइ ३७, १ विचारइ ३९, १.४७, वायिवा वांछइ.८१,२ विचारिउ ५०, ५ वायु ७८, १ विचारि ५४, १ वार ७८, विचालउ १४, २ वार ४३, २. ४६, २, ४८, १ विचि ७४, १.७५, २ विचालुं ५६, २ वारि ५३,१ विजाहरी ६६,२ वाल १२,२ विद्यालइ ४१,७ वालरकाकडी २५, २ विडलूण १०, २ वालहली ३३, १ विढइ ४२, १ वाली ९, विढवइ ४०,२ यावह ४३, २. ७०, १ विणइ ८०,२ यावह ४७, २ विणसह १९,२ वावि ६७,१ विणा ५५, २ धान्यां ७३,२ वीणिवा वांछह ८२, २ वासइ ४२, २७३, २. विदाणउ ६९, २ घासउ २०, २' विदारिउ ५२, १ [वासिउ] ५०,२ विदिस ६, १ बाहा ४८, विदेशि ७३, १ बाहर २५,२ विद्या ७४, २ बाहरू १६, १.२५,२ विन्यानी , वांकउ १५, १. ६४, १ विपराविवू ५४,२ पांकु (प्र०) ६४, १ विप्र ७१,२ वांछा ३७, २. ४६, २.८१, १. विमासह ४३, २.४७, १ ८१, २. ८२, १.८२,२ विमासउ ५०," यांछि५४, २ विमासिबउ ३४,२ वांझ गाइ १३, २ . विमासिवू ५३, २ उ.र. १५ वियारियउ २६, २ विरचइ ३७, १ विरतउ २४, २ विराध्यउ ५१, २ विरासिउ ५२, १ विरूयउ १८, २ विरोलइ ४०,२ विलखउ ७, २.५७, १.६४, २ विलवइ ४९, १ विलंबइ ३९, १ विलोइउ ५१,१ विषे (खे) रिउ ५२, १ विस १३, १ विसनररहिं हितूउं। काष्ठ विसनरु ७२, १ विसनर काष्टिन भ्रायु ७२, २ विसहर १४, १ विसंतुल ३४, १ विसाहइ ४७, १ विसाहिउ ५०, १ विसाहिवू ५४, १ विसिमिसि ५६, १ विसूए ४०, २ विसोआ १६, २ विहडर ४२, २ विहथि ८,२ विहरइ ४८, २ विहरउ ६८, १ विहसइ ४६,२ विहासिउ ५१, १ विहाइ ४४, १ विहाणउ २६, . विहूणउ १५, १ विधइ ७७, २ विहचइ ४३,१ वीकइ ४३, १.७०,७ वीखरइ ४१,२ वीच १५,२ वी १३, १ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीझणउ ९,२ वीझाइ १८, २ वीझायइ ४२, १ वीझावइ ४२, १ वीठ ९,१ वीणि ६८,१ वीधइ ३८, २ वीध्यउ १४, २ वीनति १५, २ वीनवइ ४१, २. ४८, १. वीनवियूँ ५३, २ वीनव्यउ ५०,२ वीवाहइ ४१,२ वीवाहपगरण २०, १ वीस २८, २ वीसमइ ४३, १ वीसमड ३०, २.५७, १ वीसमी ३१, १ वीसरइ ४०, १ वीसरिउ ५१, २ वीससह ४४, १. ४६, २ वीट १५, १.२०,२ वीटइ ४३, १ वींटणउ २१, १ वीट्यउ १४, २ वुहरउ ३२, २ वूठउ ५१,१ दूसट (प्र०) ६६, २ वृक्ष कन्हलि घरु ७५, ५ वृक्ष सामहुं आभउं ७३, २ वृक्षु ७४, २. ७५, १ वृद्ध ७९,२ वृषभनउ समूहु ७६, ३ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत वेचा ४७,१ शोभइ ४९, १ वेचावइ ४७, १ शोभिउ ५१,२ वेचिर्बु ५४, १ श्राद्धतणइ ७२, २ वेच्यउ ५०,१ श्रीगरणु ६८,२ वेझ ९, २ श्रीवच्छ ६, २ वेठि २३, २ श्रीवासुदेव दैत्य मारइ ७२, २ वेढिमी २२, २ श्रेष्ठ ७२, २ वेद ७२, १ श्लाघइ ४७, १ [श्लाघिउ] ५२, १ वेयइ ३०,२ श्लाधिवू ५३, १ वेरा १२, १ श्लोक ७२, २ .. वेलि १२, १ वेलू ३५, १ वेस ९, १ ष (ख) ईइ ४९,१ वेसर (प्र०) ६६, १ ष (ख) मइ ४६, ७ षा (खा) इ ७७, १ वेसरु ६६,२ षा (खा) णीकणउं ६७, २ वेसवार ७,१ षा (खा) धुं ५०, १ वेसावाडउ २०, २ षा (खा) वडं "२, २ वेहणउ ३४, १ वैद्य ७४, २ षा (खा) सइ ४६, १ षां (खां) ड योग्य वैष्णवु रातिं च्यारइ । पुहुर जागइ । षां (खां) ड्या ७८, १ व्यहु परि ६३, १ षि (खि) सह ८०,२ व्याऊ ७,२ षि (खि)सरहिडी (प्र०) ६६, १ व्याकरणु ७७, १ षी (खी) लउ ७३, १ व्यारीउ ७३, ५ षी (खी)लायोग्य १७७,१ व्यासन उं ग्रामु ७२, २ हितूउं लाकडउं । व्रणरउ २४, षी (खीख) ष नही (प्र०) ६४,३ श धू (खू) दइ ४६, ७ शपइ ७०,२ थे (खे) डइ ४७, २ शब्दु ७८, . शमिउ ५१,२ सहतालीस २९, १ शरकड ७७, १ सइंत्रीस २८, २ शरत्कालनउ तिडकउ ७८,सउ ३०, १.७१, २ शलाटु ६७,१ सउगडउ., शापइ ४८,२ सउडि ३२, २. ६६, २ शास्त्र ७२, १ सउण १४, शिष्य ७५, १ सउणी १६,२ शिष्यपाहि ७३, १ . सउमउ ३१,. शोचइ ४९, १ सउ वार (प्र०), ७७, २ ७E हतूई सेलडी वेउल ३३, १ वेगउ १६, १ वेगड ३२, २. वेगडि ६६, २ वेगडी (प्र०) ६६, ३ वेगलड ७९,२ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुक्रम सकइ ४३, २ सकुँ ६२, २ सगउ ८,१ सगलइ २७, १ सघलइ (प्र०) ६३,२ सघले ६३,१ सज्झाय ६,२ सड्यउ १५,२ स (सु) णउं ६८, १ सतर २८, १.२७, २ सतरमउ ३०, २ सतसठि २९, २ सतहत्तरि २९, २ सताणू ३०, १ सत्तरि २९, २ सत्तावन २९, १ सत्तावीस २८, २ सत्यासी २९, २ सदा ५६, १ सदाचार बाभ७४, २ समेटइ ४३, १ संखाहोली ३५, २ सयणाचार ८,१ संचकार १०, १ सयर ८,१ संचकारु ७८,१ सयरइ २३, २ संतोषिउ ५१, १ सरइ ४४, २ संथारउ १८, २ सरजइ ३८,१ संद १७, २ सरतकाल ६, संदिसइ ४८, ५ सरलउ ६७, २ संदिसवु ५३, २ सरवइ ४३, १ संदेसउ १८, २ सरसउ पाटण ११, १ संधियउ १९, २ सरसती ६, २ संधूखइ ४२, १ सरसवेल २०,२ संधूखण २३, २ सरस्वती ७५, १ संधूख्यउ १६, १ सराध ९,२ संपजइ ३८, २. ७७, २ सरिसव १२, २ संपन्नउ ५०, १ सरीखउ २६, २ संवाहइ ४१, १ सरीषउ ६४, १.६६, २. संभलावइ ४७, १ सरीषउं गोत्र जेहन ७५, १ संभारतउ ७२, २ सरीषउं नामु जेहनउं ७४,१ संभालइ ४१, १ सरीषु (प्र०) ६४, १ संवरइ ४०,१ सरोवर ७२, १ साइणि ३५, २ सजेइ ४७, १ साकर १८, २ सर्व परि ५६, २ साकर सिं दूध पीई ७५, २ सवासरु ६८,१ साकुली ३३, १ सलाह १५, २ साखी १०, १ सवइवार २७,१ साग २४, १ सवईवार ६३, १ सागडी ३२,२ सवाडूड ६८,२ . साच ६,२ सवार ६७, १ साचउर ११, १ सविहुं गमा ७३, २ साजउ ५०, १ ससइ ४४, १. ४६, २. साजी १०, २ ससूग २०,२ साठि २९, १ सहइ ४३, २.७०, २. साठी १२, २ सहस ३०, २ साडी ९, १.७६, १ सहसमउ ३१,१ साढापांच ३२, १ सहायीयांनउ समूहु ७६, २ सात २८, १. ५७, २ सहिउ ५१, २ . सातपरिया १७, २ संकइ ३७,२ सातमउ ३०, २. ५७, १ संकुचइ ३७, २ सात मसवाडानइ०७३, संक्षेपइ ४७, २ . सातमि ३१, २ जीणइं गामि। सद्दहइ ४०, १ सहहियउ १५, १ सनीचर ५, २ सन्यासी ३४,२ सपइ ४३, २ सभा ७६,१ समधात १५, २ समरइ ४१,२ समवायु ७६,१ समा ७७,१ समाणइ ४०, २ समारइ ४०,१ समारिवउ १८, समि कियउ २५, २ समी ७७, १ समीपि ७५, १ समुद्रमाहि रत्न०७५, २ समुं ७७, १ समूह ७६, १. ७७, १ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ सातू १९, २. ७८, १ साथ २२, २ साथरउ ३३, १ साथलि ८, २ साथियउ २५, १ सादूल १३, २ साध ५, १ साध ( साधइ ३८, २ साधु ? ) ६९, २ ५७, १ साधुसंघाडउ २०, सापरउ २४, २ सापु भणी ७३, १ साभरमती २२, १ सामउ १२, २ सामलउ १४, २ सामहु ६३, २ सामहुं ७३, २ सामाई ३१, १ सामुहु ५६, १ साम्हउ ३१, २ साम्हु ७३, २ सार १६, १ सारद ६, २ सारी १४, १ सारीख १४, २ साल १६, २ सालउ ८, १ सालणउ ३२, १ सालवाहन ३४, १ सालवी २३, २ साली ८, १ सावण ६, १ सास १४, २ सासतउ १४, २ सासू ८, १६९, १ साहइ ४१, १. ७८, १ सांकडउ १४, २ साहरइ ४०, १ सांकल १५, १ 9 उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत सांकली २०, २ सांखडि २०, १ सांचइ ४२, १ सांज १८, १ सांझ ३१, २ सांझ ७८, १ सांड १३, २ सांडसउ १९, २.३२, २ सांधइ ४१, १ सांन २४, १ सांप्रत १५, १ सांबलउ ३३, २ सांभरइ ४१, १ सांभलइ ४७, १ सांभलिवा वांछइ ८१, १ सांभलीय ७८, १ सांभलेव्युं ५२, २ सांभल्य ५०, 9 सिघ २४, १ सिढिल १५, १ सिणमिणइ ४२, २ सिमकिय २५, २ सिमथर ८, १ सिलापट २४, १ सिलावट १७, १ सिर १९, १ सिरीस २६, १ सिसलउ १३, २ सिंगार १५, १ सिंघाण ११, २ सिंचाइ ८०, २ सीअल १७, १ सीकारा १९, १ सीख २४, २३४, २ सीखइ ३९, २ सीख्यउ ७, १ सीचिवा वांछह ८१, १ सीझ ३८, २ २ सीथ २२, सीदाइ ४३, १ सीधउ ७, १ सीप १५, २ सीयालउ २०, १ सीर २२, २ सीरख ३२, २ सीरवी १७, १ सीरप ६७, १ सीरामण ३२, २ सीराम ६६, २ सीलउ १८, २ सिली ३२, १ सीवइ ३९, २. ४९, १ सीविवउ १९, २ सीव्यउ ५१, १ सीह १३, २ सीहदार ११, १ सीहरी २५, १ सींग १३, २ सींग १६, २ सींगडी १६, २ सींच ३७, २.४८, २ सींधव १०, २ सभ ३४, २ सु ३५, २.५६, १ सुआसणी ७, २ सुई १०, १ सुई १०, १ सुकिवा वांछइ ८१, २ सुखिर्हि ७३, १ सुण ६८, १ सुणइ ४२, १ सुभट ७४, २ सुमिणउ १५, १ सुरंग ११, १ सुवर्णनां आभरण ७७, १ सुषमा अरउ ६, १ सुसइ ३९, २ सुसरउ ८, १ सुहगुरु ५, १ सुहायइ ४२, १ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुंक ९, २ सुंघिवा वांछइ ८१, २ सुंचल ३४, २ सूअइ ४२, २ सूअर १३, २ सूआ २५, १ आडि ६९, २ सूआर १९, २ सइ ४, २ सूकइ ४३, १४९, १.८०, २ सूकउ ५१, २ सूग २४, १ सूगडांग ६, २ सूगामणउ ३१, २ सुगामणउं ६४, २ सूजइ ४४, १ सूजवइ ४४, १ सूझइ ३८, २४६, १ सूझवइ ४६, १ सूडउ १४, १ सूणहर ३३, १ सूणहरउं ६७, २ सूतउ २०, १४९, २ सूत्रहार (सुधार) १०, २ सूत्रु पढइ जाणइ ७७, १ सूपडउ २०, १ सूयिवा वांछ ८१, २ सूली १६, २ सूहव ६४, २ सूरिज५, २ आलउ १४, २ खडी १९, १ सूंघइ ४१, २.४७, १ सूंघवुं ५२, २ सूंध्य ५०, १ सूंड १३, १ सुंबरी वडी ३४, २ सूंहाली १८, १ सेई २१, २ शब्दानुक्रम सेकिवा वांछइ ८१, २ सेजगंडूआ २५, १ सेठि ७, २ सेज ११, २ सेरी १७, १ सेना ७५, १ सेल १६, २ सेलडी ७, २ सेवइ ३९, २ सेवंती ३३, १ सेस २३, १ सेहरउ ९, १ सोई २४, २ सोचाइ ३७, २ सोनउ २५, १ सोनागेरू ११, २ सोनार १८, २ सोनार १९, २ सोभई ३९, १ सोरठी ११, २ सोल २८, १.५७, २ सोलम ३०, २ सोलंकी २१, २ सोवनगिरि ११, २ सोवा ३५, २ सोहामणउ ३२, १ सोहिलउं ६८, १ सोहि ५७, १ स्तवइ ४७, १ स्तविउ ५०, २ विवा वांछ ८२, १ स्त्री ७५, १ स्त्रीतणउ समूहु ७६, १ स्त्रीनी सभा ७६, १ स्त्रीनुं धनु ७६, १ स्थिरु ७९, २ स्पर्द्धइ ४६, १ स्मरइ ७२, २ स्मारिवा वांछइ ८२, २ स्याल १३, २ स्वस्थपणउ ६, २ ह हकारि ५०, २ हगइ ३८, २. ४९, १ हडहडइ ४३, १ हणइ ३८, २ हणिउ ५२, १ हणि ५३, १ हथसाल ६८, २ हथिणार ११, हथीयार २६, २ १ हरइ ३७, १. ७२, २ हरडइ १२, २ हरषइ ३९, २ हरपी (प) इ ४९, १ हराविउ ६९, २ हरिणनउं चांबडउं ७७, १ हरियाल ११, २ हरी २४, १ हलद ३३, २ हाउ ५०, १ हलr asi ७६, १ हलरी ईस १०, १ हलुअउ १५, २ ११७ हवद्द १८, २. ३५. ३७, १ हवडां ६२, २ हवडांनुं ६२, २ हडवडांनूंं (प्र०) ६२, ३ हवं ६३, २ हसइ ४३, २. ४८, २.८०, १ हसावर ४८, २ हसिउ ५१, १ हसिवा वांछइ ८१, १. हा (प्र०) ६३, ४ हाक १७, २ हाकइ ४०, २. ४४, २ हाटडी २५, १ हाड ९, १ हाडटि २५, २ हाथ ८, २. ३४, २ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्तिरनाकरादि अन्तर्गत हाथी १३, १. २५, . हीलइ ३९, १ हाथी गुलगुलायइ ४१, .. हीसइ ३९, २ हाथीयांनउ समूहु ७६, २ हींग ७, २ हालइ ३९, १ हींगलू ११, २ हा वलि ६३, २ हींगवणि २३, १ हासी १७, २ हीडइ ४३, २ हांडी १९, २ हीडई ७५, २ हिडकी ७, २ हीडि २२, २ हितूई ७७,२ हींडिया २३, २ हितूउ ७७, १. ७७,२ हीडोलइ ३७, १ हितूउं ७७, १.७७, २ हिमालउ ११,२ हुइ ४७, २. १७, २. ८०," हियाविङ २६, १ हुइवा वांछइ ८१, १ हिवडा २७, १ हिवडांनुं २७, १ हुडुक २३, २ हिविडां ५५, २ हुयिवङ ७९, २ हीअउ ३२, २ हुयितुं ७९, २ हीकइ ३७, २ हुँ ३५, २. ५५, १.७८,२ हीम १२, १ हुँ छउ ३४,२ हीरउ ३५, १ हुंतउ ५६, २ हेजु करइ ४८, १ हेठ १५,२ हेठलि हेठलि नगरु ७३, २ हेठि ६४, हेठिलुं ५६, . हेडाऊ १६, ७ हेरइ ४१, १ हेरू ९, २ हेवउ १९,१ हैमंतनु वायु ७८, होउ ६३, २. ८२, २ होठ , होमइ ७०,१ होमिउ ५०, २ [होमिउ] ५१, २ होमियूँ ५४, २ होली १८, २ * * Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर कार्य प्रवृत्ति 1. राजस्थानमें और राजस्थानसे संलग्न प्रदेशोंमें प्राचीन साहित्यकी, अर्थात् संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और राजस्थानी आदि भाषाओं में प्रथित वाङ्मयकी शोध करना और उसको प्रकाशमें लाना। 2. राजस्थानकी प्राचीन संस्कृतिकी आधारभूत स्थापत्य, चित्र, शिल्प, शिलालेख, ताम्रपत्र, सिके, दस्तावेज आदि साधनसामग्रीका संग्रह, संरक्षण, संकलन एवं पर्यवेक्षण आदि करना। 3. प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोंका संग्रह करना, उनकी प्रति लिपियां करवाना, फोटो, माइक्रोफिल्म आदि बनवाना / 4. राजस्थानकी प्राचीन संस्कृतिके अध्ययन, अन्वेषण, संशोधन आदि कार्य में अत्यावश्यक उत्तम प्रकारका पुस्तकभण्डार (ग्रन्थालय) स्थापित करना और उसमें देश-विदेशमें मुद्रित अलभ्य-दुलेभ्य ग्रन्थोंका संग्रह करना। 5. राजस्थानके लोकजीवन पर प्रकाश डालने वाले विविध विषयक लोकगीत, सांप्रदायिक भजन-पदादि स्वरूप भक्तिसाहित्य एवं सामाजिक संस्कार, धार्मिक व्यवहार और लौकिक आचार-विचार आदि से संबन्धित सर्व प्रकारकी सामग्रीकी खोज करना और उस पर प्रकाश डालना / प्रकाशक -देवराज उपाध्याय, उपसंचालक-राजस्थानपुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर (राजस्थान) मुद्रक - लक्ष्मीबाई नारायण चौधरी, निर्णयसागर प्रेस, 26 / 28, कोलभाट स्ट्रीट, बम्बई नं. 2