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________________ प्रस्तावना स्व-संपादित 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला में हमने एक 'उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण' नामक प्रन्थ प्रकाशित किया है, जिसकी भूमिकामें निम्न प्रकारका उल्लेख किया है --- "महात्मा गांधीजीके मुख्य नेतृत्व में स्थापित अहमदाबाद के राष्ट्रीय गुजरात विद्यापीठके 'पुरातत्त्व मन्दिर' नामक विशिष्ट विभागके आचार्यपद पर, सर्व प्रथम, जब मेरी विशिष्ट नियुक्ति हुई, तभीसे मैंने औक्तिक प्रकारके साहित्यका संकलन करना निश्चित किया था और यथाशक्य उसको प्रकाशमें लानेका प्रयत्न चलाया था। ई. स. १९२३-२४ के अरसेमें, मैं एक वार पाटण गया और वहाँसे कुछ अन्यान्य औक्तिक प्रकरणोंके प्राचीन आदर्श प्राप्त किये। उक्त गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर के तत्वावधानमें संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश आदि भारतीय प्राचीन भाषाओंके, उच्चकोटीय अध्ययनके साथ, गुजराती भाषाके प्राचीन इतिहास और साहित्यके अध्ययनकी भी विशेष व्यवस्था की गई थी। उसके पाठ्यक्रममें आवश्यक ऐसे एक सन्दर्भ ग्रन्थका संकलन करनेकी दृष्टिसे 'प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ' के नामसे एक संग्रहात्मक ग्रन्थ मैंने तैयार करना प्रारंभ किया, जिसमें वि. सं. १३०० से ले कर १६०० तकके ३०० वर्षों में लिखे गये, प्राचीन गुजराती ( अर्थात् पश्चिमी राजस्थानी) भाषाके चुने हुए उद्धरणोंका एक अच्छा प्रमाणभूत संग्रह संकलित करनेका उद्देश्य रखा था। इसके लिये मैंने बहुत कुछ आधारभूत सामग्री एकत्र करनी शुरू की। पाटण, अहमदाबाद आदिके भण्डारोंमें प्राप्त प्राचीन ताडपत्रीय एवं वैसी ही प्राचीन कागजीय पुस्तकोंमें, यत्र तत्र उपलब्ध फुटकल गद्य उद्धरणोंके साथ, कुछ स्वतंत्र प्रकरणरूप कृतियोंका भी मैंने संग्रह किया ।"-इत्यादि । इन प्रकरणरूप कृतियोंमें, प्रस्तुत 'उ क्ति र ना क र' भी एक थी, जो अब इस प्रकार, 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित हो रही है। इस ग्रन्थकी सर्वप्रथम प्रतिलिपि पाटणके भण्डारमेंसे प्राप्त प्राचीन पोथी परसे उसी समय कराई गई थी। इसका मुद्रण कार्य प्रारंभ करनेका निश्चय होने पर बीकानेरके जैन भण्डारमेंसे भी एक अन्य प्रति, श्रीयुत अगर चन्दजी नाहटा द्वारा प्राप्त हुई। अन्यान्य ग्रन्थसंग्रहोंमें भी इस ग्रन्थकी प्रतियां उपलब्ध होती हैं, अतः ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक प्रसिद्ध एवं पठनोपयोगी ग्रन्थ रहा है। इस ग्रन्थके कर्ता साधुसुन्दर नामक जैन यतिजन हैं जो बहुत करके राजस्थान निवासी थे। इनके गुरु साधुकीर्ति पाठक -पदधारी यतिवर्य थे जो बहुत बडे पण्डित और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। प्रस्तुत ग्रन्थकारने अपने गुरुके विषयमें, ग्रन्थान्तकी प्रशस्तिमें कहा है कि 'इनने यवनपति ( बादशाह अकबर ) की सभामें, अन्यान्य पन्थोंके पंडितोंके ___ 1 इस प्रतिके अन्तमें निम्न प्रकार लिपिकारका परिचायक उल्लेख किया हुआ है'संवत् १७५० वर्षे आषाढ सुदि ८ दिने बुधवारे पं. कनकवल्लभ लिपीकृतम् । शिष्य अमीचन्द शिष्य कृष्णानै लिपिकृत दत्तम् । श्रीरस्तु लेखकपाठकयोः।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003411
Book TitleUktiratnakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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