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________________ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर * राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्थापित राजस्थान में प्राचीन साहित्य के संग्रह, संरक्षण, संशोधन और प्रकाशन कार्यका महत् प्रतिष्ठान राजस्थानका सुविशाल प्रदेश, अनेकानेक शताब्दियोंसे भारतका एक हृदयस्वरूप स्थान बना हुआ होनेसे विभिन्न जनपदीय संस्कृतियों का यह एक केन्द्रीय एवं समन्वय भूमि सा संस्थान बना हुआ है । प्राचीनतम आदिकालीन वनवासी भिल्लादि जातियों के साथ, इतिहासयुगीन आर्य जातिके भिन्न भिन्न जनसमूहों का यह प्रिय प्रदेश बना हुआ है। वैदिक, जैन, बौद्ध, शैव, भागवत एवं शाक्त आदि नाना प्रकार के धार्मिक तथा दार्शनिक संपदायक अनुयायी जनों का यहां स्वस्थ और सहिष्णुतापूर्ण सन्निवेश 'हुआ है। कालक्रमानुसार मौर्य, शक, क्षत्रप, गुप्त, हूण, प्रतिहार, गुहिलेत, परमार, चालुक्य, चाहमान, राष्ट्रकूट आदि भिन्न भिन्न राजवंशों की राज्यसत्ताएं इस प्रदेशमें स्थापित होती गईं और उनके शासनकालमें यहांकी जनसंस्कृति और राष्ट्र उम्पत्ति यथेष्ट रूप में विकसित और समुन्नत बनती रही। लोगोंकी सुख-समृद्धि के साथ विद्यावानोंकी विद्योपासना भी वैसी ही प्रगतिशील बनी रही, जिसके परिणाममें, समयानुसार, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देश्य भाषाओं में असंख्य ग्रन्थोंकी रचनारूप साहित्यिक समृद्धि भी इस प्रदेश में विपुल प्रमाण में निर्मित होती गई । Jain Education International इस प्रदेशमें रहनेवाली जनताका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुराग अदभुत रहा है, और इनके कारण राजस्थानके गांव-गांव में आज भी नाना प्रकारके पुरातन देवस्थानों और धर्मस्थानों का गौरवसादक अस्तित्व हमें दृष्टिगोचर हो रहा है। राजस्थानीय जनताके इस प्रकार के उत्तम सांस्कृतिक - आध्यात्मिक अनुरागके कारण विद्योपासक वर्गद्वारा स्थान-स्थान पर विद्यामठों, उपाश्रयों, आश्रमों और देवमन्दिरोंमें वायात्मक साहित्य के संग्रहरूप ज्ञानभण्डार - सरस्वती भण्डार भी यथेष्ट परिमाण में स्थापित थे। ऐतिहासिक उल्लेख आधारसे ज्ञात होता है कि राजस्थानके अनेकानेक प्राचीन नगर जैसे आघाट, शिमाल, जाबालिपुर, सत्यपुर, सीरोही, बाडमेर, नागौर, मेडता, जैसलमेर, सोजत, पाली फलोदी, जोधपुर, बीकानेर, सुजानगढ, भटिंडा, रणथंभोर मांडल, चितौड, अजमेर, नराना, आमेर, सांगानेर, किसनगढ़, चूम, फतेहपुर सीकर आदि सेंकडों स्थानोंमें, अच्छे अच्छे ग्रन्थभण्डार विद्यमान थे। इन भण्डारामं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और देय भाषाओं में रचे गये हजारों ग्रन्थोंकी हस्तलिखित, मूल्यवान पोथियां संगृहीन थीं। इनमें से अब केवल जैसलमेर जैसे कुछ एक स्थानोंके ग्रन्यभण्डार ही किसी प्रकार सुरक्षित रह पाये हैं । मुसलमानों और इंग्रेजों जैसे विदेशीय राज्यलोलुपोंके संहारात्मक आक्रमणों के कारण हमारी वह प्राचीन साहित्य-सम्पत्ति बहुत कुछ नष्ट हो गई। जो कुछ बची-खुची थी वह भी पिछले १००-१५० वर्षक अन्दर, राजस्थान से बहार - काशी, कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, बंगलोर, पूना, बडौदा, अहमदाबाद आदि स्थानोंमें स्थापित नूतन साहित्यिक संस्थाओंके संग्रहों में बडी तादाद में जाती रही है। और तदुपरान्त युरोप एवं अमेरिका के भिन्न भिन्न ग्रन्थालयों में भी हजारों ग्रन्थ राजस्थान से पहुंचते रहे हैं। इस प्रकार यद्यपि राजस्थानका प्राचीन साहित्य भण्डार एक प्रकार से अब खाली हो गया हैं; तथापि, खोज करने पर, अब भी हजारों ग्रन्थ यत्रतत्र उपलब्ध हो रहे हैं जो राजस्थान के लिये नितान्त अमूल्य निधि स्वरूप हो कर अत्यन्त ही सुरक्षणीय एवं संग्रहणीय हैं । * २] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003411
Book TitleUktiratnakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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