Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास - पद्म स्वाध्याय सागर सर्वमंगल मांगल्यं संपादक पू. मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्यआशिष परम वंदनीय योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज सूर्य कीरण २२ मई दुपहर २.०७ मीनीट श्री महावीरस्वामी भगवान कोबातीर्थ, गांधीनगर दिव्यकूपा गुरुकृपा 7 गीतार्थ गच्छाधिपति राष्ट्रसंत आचार्य प्रवर श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व मंगल मांगल्यं (स्मरण, स्त्रोत्र, वास्तूपुजा) दिव्य आशिष यो.आ.श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजा दिव्य कृपा अजातशत्रु जीतार्थ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराजा गुरुकृपा श्रुतसगुद्धारक आवार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा . .. .-----..--- प्रेरक मुनि श्री प्रशांतसागरजी संपादक गुनि श्री पद्मरत्नसागरजी --- - ---------- संकलन गुनि श्री पुनीतपद्मसागरजी मुनि श्री पूर्णपद्मसागरजी For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व मंगल मांगल्यं प्रकाशन स्थल : सादडी (राणकपुर) भवन धर्मशाला-पालीताणा शुभनिमित्त : सं-2062 का (राणकपुर) भवन में पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के चातुर्मास के उपलक्ष्य में विमोचन : अपाठशुदी-10 ता. 6-7-2006 संरकरण : प्रथम प्रति : 1000 वीर सं. : 2007 : 2006 मूल्य : 22.00 सौजन्य __: धर्मानुरागी सुश्रावक परिवार परमगुरुभक्त की और से. आप्तिस्थान : श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (श्रुत शरिता तुक रटोल) .:: . Aj -र कोर:070 - 23276204.205,252 55721159 फक्रा 079 23276249 श्री विश्वमैत्री धाम जैन तीर्थ वि.सं. For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- मंगलम: सारस - (मुनि श्री मानसमा संकलित साहिल "fire in " (gen लि. R+ २५० रने यो14 सोल-ति-iwand सर) Pी ) नियम से है। ५२047 ) To Mद ५6नसे for निर्मलपन है मानसिल भी हो यर मंगलस्मरण- ५४ जीवन को मंगलमय बनादेवार | सजीवों की कस्य 49HI11प्राईम में सहायक बनती है। 218सित HEIR लि सिरसा में मानलाई परमार, २३-6-06 For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय... महाप्रभाविक स्मरण स्तोत्र यू. साधु साध्वीजी एवं श्रावक श्राविका वर्ग में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो, इस हेतु से 'सर्व मंगल मांगल्यं यह लघु पस्तिका के रूप में प्रकाशन हो, और पू. साधु साध्वीजी एवं श्रावक श्राविकाओं के निवेदन को ध्यान में रखकर, नित्य स्मरण स्तोत्र करने वाले भव्यात्मा के लिये, प्रकाशित हो, यह पूनीत अभिलाषा बहोत समय से थी, जो पूर्ण होने पर आत्मिक परमानन्द प्रगट कर रहे है। __ 'कैलास-पद्म स्वाध्याय सागर प्रथम भाग का संपूर्ण मेटर तथा 'मारो स्वाध्याय' पुस्तक में से बहमुल्य स्तोत्र में से कुछ स्तोत्र का संकलन किया है, एतदर्थ पूज्य श्री के हम आभारी है। 'सर्व मंगल मांगल्यं की पुनीत प्रेरणा मुनिश्री प्रशांतसागरजी ने की है तथा मुनि श्री पुनीतपद्मागरजी एवं मुनि श्री पूर्णपद्मसागरजी संकलन कार्य में सहयोगी बने है उनका स्मरण भी समुचित है। स्मरण स्तोत्र का क्रमायोजन, आ.श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर स्थित कार्यरत पं.श्री नविनभाई वि. जैन ने निःस्वार्थ भावना से किया है, एतदर्थ साधुवाद के पात्र है। "सवे मंगल मांगल्यं' का कंपोझ तथा बटर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र स्थित कम्प्यूटर विभाग में कार्यरत श्री केतन शाह एवं श्री संजय गुर्जर ने परिश्रम कर प्रस्तुत ग्रंथ को सुंदर बनाने में अमूल्य योगदान दिया है, एतदर्थ हार्दिक अभिनंदन के पात्र है। प्रस्तुत ग्रंथ में प्रफ शुद्धि को महत्त्व दिया है, फिरभी अशुद्धि तरफ ध्यान केन्द्रित करने वालों का सहर्ष स्वीकार किया जायेगा। पुस्तक में अनामी द्रव्य सहयोगी तथा मुद्रक बिजल ग्राफिक्स का सहयोग सदा स्मरण में अंकित रहेगा। संपादक मुनि पद्मरत्नसागर For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ......... अनुक्रमणिका आत्मरक्षा नवकार मंत्र ...... ............ नमस्म रण ................................. ............२ श्रीशान्तिनाथ स्तोत्र ..................... .......... श्रीजीरावला पार्श्वनाथ स्तोत्र. .............. श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्रम ...... श्रीमंत्राधिराजपार्श्वस्तोत्र ..... श्री पार्श्वनाथ विघ्नहर स्तोत्र ............. ........... महामंत्रमभित श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ स्तोत्रम् ....... श्रीमहावीर रवामी स्तोत्र नगरकारगंत्राधिराजस्तोत्रम् ......... .......... ऋषिमंडल रतोत्र ......... जिनपंजर स्तोत्र ................... ........... जयतिहअण स्तोत्र .. पंचपष्टि स्तोत्र.... ........ श्रीउवसग्गहरं (महाप्रभाविक) स्तोत्र ............ श्री चंद्रप्रभ विद्या स्तवः . श्री चंद्रप्रभ विद्या ........... हीकार विद्या स्तवन .... ॐकार विद्या स्तवन...... श्रीधर्मचक्र विद्या ........... सिद्धचक्रस्तोत्रम ...... .................. श्रीगौतम अष्टक ............. श्रीगौतमरवामीनो मंत्र .... श्रीगौतमस्वामीनो रास ... ........... ....... : : ............. For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . . १०३ १०६ ............. १११ सिरि गोयम थव ........ १०१ श्रीघंटाकर्ण स्तोत्र ......... ........ श्रीघंटाकर्ण मंत्र .......... .............. माणिभद्र मंत्र क्षेत्रपाल मंत्र ......... श्री गुरुपादुका स्तोत्र .......... १०३ षोडशनाम सरस्वती स्तोत्र .......... सरस्वती स्तोत्र ....... १०७ सरस्वती मंत्र ......... १०९ श्री त्रिभूवनस्वामिनी देवी स्तोत्रम् ................ ...११० श्रीदेवी स्तोत्रम् ....... श्री चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्रम ..... श्री पद्मावती स्तोत्रम् ............ ...... श्री अंबिकादेवी मंत्र युक्ताष्टक स्तोत्र ........... अंबिकादेवी मूलमंत्र ...... ११८ अंबिका स्तोत्र सूचना ........ श्रीग्रहशान्ति स्तोत्र सर्वकार्यसिद्धिदायक श्रीशान्तिधारा पाठः ......... शत्रुजय लघुकल्प.. ......... चिरन्तनाचार्यविरचितं पंच सूत्र ... १३३ पुण्यप्रकाश- स्तवन पद्मावती आराधना ...... १५१ चार शरण ............ १५५ वास्तुक पूजा विधि . ......... १५७ गुरु गुण स्तुति .......... ......... १६९ पपट ११९ १३० ......... ३७ ......... For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मरक्षा नवकार मंत्र ॐ परमेष्ठि नमस्कार, सारं नवपदात्मकम्; आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहम् ॐनमो अरिहंताणं, शिरस्कंसिरसि स्थितम्; ॐनमो सम्पसिद्धाणं, मुखे मुखपटंवरम् ॐनमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी; ॐनमो उवज्झायाणं, आयुधंहस्तयोर्दृढम् ॐनमोलोएसव्यसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे; एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज़मयी तले सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः; मंगलाणं च सव्वेसि, खादिरांगारला विका स्वाहान्तं च पदंज्ञेयं परमं हवई मंगलं; वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह-रक्षणे महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव नाशिनी; परमेष्टि-पदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा; तस्य न स्याद भयं व्याधि-राधि-श्चाऽपि कदाचन ८ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र - १ नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सवसाहूणं एसो पंच नमुक्कारो सध्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवई मंगलं - उवसग्गहरं स्तोत्र - २ उपसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं; विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं विसहर-फुलिंग-मंतं, कंटे धारेई जो सया मणुओ; तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठजरा जति उवणाम चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई: नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं or m x 5 w go १ २ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुह समते लद्धे, चिंतामणि-कप्पपायवब्भहिए; पाति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं इय संथुओ महायस! भत्तिभर-निब्भरण-हियएण; ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद! संतिकरं स्तोत्र - ३ संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जय सिरिई दायारं; समरामि भत्त-पालग-निव्वाणी-गरूड-कय सेवं ॐस नमो विष्पोसहि-पत्ताणं, संतिसामि-पायाणं; झौं-स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिव-दुरिअ-हरणाणं ॐ संति नमुक्कारो, खेलोसहिमाई-लद्धि-पत्ताणं; सौं ह्रीं नमो सव्वोसहि-पत्ताणं च देइसिरि वाणी तिहुअण-सामिणि, सिरिदेवी जक्खरायगणि पिडगा; गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ४ रखंतु गमं रोहिणी, पन्नती वज्जसिखला य सया; बज्जंकुरिस चक्के सरि, नरदत्ता काली महाकाली ५ गोरी तह गंधारी, मह जाला माणवि अ वईट्टा; अच्छुत्ता माणसिया, महामाणसियाउ देवीओ For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जक्खा गोमुह महजक्ख, तिमुह जक्खेस तुंबरू कुसुमो मायंग-विजय-अजिया, बंभां मणुओ सुरकुमारोअ छम्मुह पयाल किन्नर, गरूलो गंधव्व तहय जक्खिदो; कूबर वरुणो भिउडी, गोभेहो पास मायंगा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ For Private And Personal Use Only 4 देवीओ चक्केसरि, अजिया दुरिआरि काली महाकाली, अच्चुअ संता जाला, सुतारया-सोय सिरिवच्छा चंडाविजयंकुसि पन्नइत्ति निव्वाणि अच्चुआ धरणी; वईरूट्ट - छुत्त-गंधारि अंव पउमावई सिद्धा ईअतित्थ - रक्खणरया, अन्नेविसुरासुरी य चउहावि; वंतर जोईणि पमुहा, कुणंतु रक्खं राया अम्हं एवं सुदिट्ठि सुरगण, राहिओ संघस्स संति जिणचंदो; मज्झवि करेउ रक्खं, मुणिसुंदरसूरि थुअ-महिमा ईअ संतिनाह सम्म - दिट्ठि, रक्खं सरई तिकालं जो; सव्वोवद्दव - रहिओ, स लहई सुहसंपयं परमं तवगच्छ गयण - दिणयर, जुगवर - सिरिसोमसुंदर गुरूणं; सुपसाय-लद्ध-गणहर, विज्जासिद्धी भणई सीसो १३ ८ ९ १० ११ १२ १४ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिजयपहुत्त स्तोत्र - ४ तिजय-पहत्त-पयासय, अट्ठ-महापाडिहेर-जुत्ताणं; समयविरत:-लिआणं, सरेमिचक्कं-जिणिदाणं पणवीसा रा असीआ, पनरस पन्नास जिणवर समूहो; नाउ रायल-दुरिअ. भविआणं भत्ति-जुत्ताणं वीसा पणयाला विय, तीसा पन्नत्तरी जिणवरिंदा; गहभूअरक्खसाइणी-घोरुवसग्गं पणासंतु. सत्तरि पणतीसा विय, सट्ठी पंचव जिणगणो एसो: वाहिजलजलणहरि करि-चोरारिमहाभयं हरउ. ४ पणपन्ना य दसेव य, पन्त्री तह य येव चालीसा, रवलंतु गे सरीरं, देवासुर-पणमिया सिद्धा. ५ ॐ हरहरः सरसुंसः, हरहुंहः तह य चेव सरसुंसः; आलिहियनागगम, चक्कं किर सबओभदं. ६ ॐ रोहिणी पन्नत्ती, वज्जसिंखला तह य वज्जअंकुसिआ; चवकेसरी नरदता, कालि महाकालि तह गोरी. ७ गंधारी महजाला, माणवि वइट्ट तहय अच्छुत्ता : मागसि महगाणसिआ, विज्जादेवीओ रखतु. पंचदराकम्मभूमिसु, उपपन्नं सत्तरी जिणाण सयं; For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ विविहरयणाइवन्नो-वसोहिअं हरउ दुरिआई. चउतीस अइसयजुआ, अट्टमहापाडिहेरकयसोहा; तित्थयरा गयमोहा, झाएअयम पयतेणं. ॐवरकणयसंखविद्दम, मरगयघणसंनिहं विगयमोहं; सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइअं वंदे स्वाहा. ११ ॐभवणवईवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी अ; जे के वि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा. चंदणकप्पूरेणं, फलए लिहिउण खालिअं पीअं; एगंतराइगहभूअ-साइणीमुग्गं पणासेई. इअ सत्तरिस जंतं, सम्भं मंतं दुवारिपडिलिहिअं; दुरिआरिविजयवंतं, निब्भतं निच्चमच्चेह, नमिऊण स्तोत्र - ५ नमिऊण पणय-सुर-गण,-चूडा-मणि-किरण-रंजिअं मुणिणो, चलण-जुअलं महा-भय-पणासणं संथवं वुच्छं. सडिय-कर-चरण-नह-मुह-निबुड्ड-नासा विवन्न-लायन्ना; कुट्ठ-महारोगानल-फुलिंगनिद्दड्ढ-सव्वंगा. २ ते तुह चलणाराहण सलिलंजलि सेय बुढियच्छाया; वण-दव-दड्ढा गिरि-पायवब्व, पत्ता पुणो लच्छिं. For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुव्वाय-खुभिय-जल-निहि-उब्भड-कल्लोल-भीसणारावे; संभंत-भय-विसंतुल-निज्झामय-मुक्कवावारे. ४ अ-विदलिअ-जाण-वत्ता, खणेण पावंति इच्छिअं कूलं; पास जिण-चलण-जुअलं, निच्चं चिअ जे नमंति नरा. ५ खर-पवणुझुअ-वण-दव-जालावलि-मिलिय-सयल-दुम-गहणे; डझंत-मुद्ध-मय-बहु-भीसणरव-भीसम्मि वणे. ६ जग-गुरुणो कम-जुअलं, निव्वाविअ-सयलति-हुअणाभोअं; जे संभरंति मणुआ, न कुणइ जलणो भयं तेसिं. ७ विलसंत-भोग-भीसण-फुरिया-ऽरुण नयण-तरल-जीहालं; उग्ग-भुअंगं नवजलय-सत्थहं भीसणाऽऽयारं. ८ मन्नति कीड-सरिसं, दूर-परिच्छुढ-विसम-विसवेगा; तुह नामक्खर-फुड-सिद्ध-मंत-गुरुआ नरा लोए. ९ अडवीसु भिल्ल-तक्कर, पुलिंद सद्दुलसद्द-भीमासुः भय-विहुर-वुन-कायर-उल्लूरिअ-पहिअ-सत्थासु. १० अ-विलुत्त-विहव-सारा, तुह नाह! पणाम-मत्तवावारा; वक्गय-विग्घा सिग्घं, पत्ता हिय-इच्छियं ठाणं. ११ पज्जलिआनल-नयणं, दूर-वियारिय-मुहं महा-कायं; नह-कुलिस-घाय-विअलिअ-गइंद-कुंभत्थलाऽऽभोअं. १२ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पणय-ससंभम-पत्थिव-नह-मणि-माणिक्क-पडिअ-पडिमस्स; तुह वयण-पहरण-धरा, सीहं कुद्धपि न गणंति. १३ ससि-धवल-दंत-मूसलं, दीह-करुल्लाल-बुढि-उच्छाह; महु-पिंग-नयणजुअलं, स-सलिल-नवजल-हराऽऽरावं. १४ भीमं महा-गइंदं, अच्चा-ऽऽसन्नं पि ते नवि गणंति; जे तुम्ह चलण-जुअलं, मुणि-वई! तुंगं समल्लीणा. १५ समरम्भि तिक्ख-खग्गा-ऽभिग्घाय पविद्ध-उद्धय-कबंधे; कुंत-विणिभिन्न-करि-कलह-मुक्क-सिक्कार-पउरंमि. १६ निज्जिय दप्पुद्धर-रिउ-नरिंद-निवहा भडा जसं धवलं; पावंति पाव-पसमिण! पास-जिण! तुह प्पभावेण. १७ रोग-जल-जलण-विस-हर,-चोराऽरि-मइंद-गय-रण-भयाइं: पास-जिण-नाम-संकित्तणेण पसमंति सव्वाई. १८ एवं महा-भय-हरं, पास-जिणिंदस्स संथवमुआर; भविश्य गा-ऽऽणंद-यरं, कल्लाण परंपर-निहाणं. १९ समय जक्ख-रक्खस-कुसुमिण-दुस्सउण-रिक्ख पीडासु, संझासु दासु पंथे, उवसग्गे तह य रयणीसु. २० जो पढइ जो अ निसुणई, ताणं कइणो य गाणतुंगरस पासो पावं पसमेउ, सयल भुवणऽच्चिअ चलणो. २१ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org उवसग्गते कमठा ऽसुरम्मि, झाणाओ जो न संचलिओ; सुर नर - किन्नर - जुवइहिं, संथुओ जयउ पास जिणो. २२ एअरस मज्झयारे, अट्ठारस अक्खरेहिं जो मंतो; जो जाणई सो झायई, परम पयत्थं फुडं पासं. पासह समरण जो कुणइ, संतुट्ठे हियएण; अट्ठुत्तर सय वाहि भय, नासइ तरस दूरेण. अजितशांति स्तोत्र - ६ · .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ-जिअं जिअ - सव्व-भयं संतिं च पसंत - सव्व-गय-पावं, जय गुरु संति-गुण-करे, दोवि जिण-वरे पणिवयामि . गाहा. कित: हय धिई. मइ-पवत्तणं, तब मलम! संति! कित्तणं! मागहिआ. ववगय-मंगल-भावे, ते हं विउल-तव-निम्मल-सहावे; निरुवम-मह- प्पभावे, थोसामि सु-दिट्ठ-सबभावे. गाहा. २ सच्च- दुक्ख प्पसंतिणं, सव्व-पाव-प्पसंतिणं: राया अजिअ -संतीणं, नमो अ-जिअ - संतिणं. सिलोगो. ३ अ- जिरा - जिण! सुह-प्पवत्तणं, तव पुरिसुतम् ! नाम किविआ विहि- संचिअ - कम्म किलेस - विमुक्खयरं, ९ . २३ For Private And Personal Use Only २४ 9 ४ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अजिअ निचिअं च गुणेहिंमहामुणि- सिद्धिगयं; अजिअस्स य संति - महामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निव्वुइ - कारणयं च नमसणयं आलिंगणयं. ५ पुरिसा ! जई दुक्खवारणं, जइ अ विमग्गह सुक्खकारणं; अजिअं संतिं च भावओ अभयकरे सरणं पवज्जहा. मागहिआ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० अरइ-रइ-तिमिर-विरहिअमुवरय-जर-मरणं, सुर-असुर गरुल-भुयग-वइ- पयय-पणिवइअं अजिअमहमवि अ सुनय -नय- निउणमभयकरं, सरणमुवसरिअ भुविदिविजमहिअं सययमुवणमे, सगययं. ७ तं च जिणुत्तममुत्तम- नित्तम - सत्त-धरं, अज्जव - मद्दव - खंति - विमुत्ति-समाहि-निहिं : संतिकरं पणमामि दमुत्तम- तित्थयरं, 1 संति-भुणी मम संति- समाहि- वरं दिसउ सोवाणयं. सावत्थि - पुव्व-पत्थिवं च वर- हत्थि - मत्थय-पसत्थवित्थिन्न - संथिअं: थिर- सरिच्छ-वच्छं मय-गललीलायमाण- वरगंध-हत्थि- पत्थाण- पत्थियं संथवारिहं: हत्थि - हत्थ - बाहुं धंत - कणग-रुअग-निरुवहय-पिंजर, For Private And Personal Use Only ६ ८ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पवर-लक्खणोवचिअ-सोम-चारुरूवं; सुइ-सुह-मणा-ऽभिराम-परम-रमणिज्जवर-देव-दुंदुहि-निनाय-महुर-यर-सुह-गिरं. वेड्ढओ. ९ अ-जिअं जिआरिगणं, जिअ-सव्व-भयं भवोह-रिउं; पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं. रासालुद्धओ. १० कुरु-जण-वय-हत्थिणा-उर-नरीसरो पढम तओ महा-चक्कवट्टि-भोए मह-प्पभावो; जो बावत्तरि-पुर-वर-सहस्स-वर-नगर-निगम-जण-वय-वई, बत्तीसा-राय-वरसहस्सा-ऽणुयाय-मग्गो. चउ-दस वर-रयण-नव-महा-निहिचउ-सटिठ-सहस्स-पवर-जुवइण सुंदर-वई; चुलसी-हय-गय रह-सय-सहस्स-सामी, छन्नवइ-गामकोडि-सामी आसी जो भारहम्मि भयवं. वेड्ढओ. ११ तं संतिं संति-करं संतिण्णं सव्व-भया; संतिं थुणामि जिणं; संति विहेउ मे, रासाऽऽनंदिअयं. १२ इक्खाग! विदेह-नरीसर! नरवसहा! मुणि-वसहा!, ११ For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नव-सारय-ससि-सकलाणण! विगय-तमा विहुअ-रया अजिउत्तम-तेअ-गुणेहिं महामुणि, अ-मिअ-बला! विउल-कुला! पणमामि ते भव-भय-मूरण! जग-सरणा! मम सरणं. चित्तलेहा. १३ देवदाणविंद-चंद-सूर-वंद! हट्ठ-तुट्ठ-जिट्ठ-परमलट्ठ-रूव! धंत-रुप्य-पट्ट-सेअ-सुद्ध-निद्ध-धवल,-दंतपंति! संति! सत्ति-कित्ति-मुत्ति-जुत्ति-गुत्ति-पवर!, दित्ततेअ! वंद? धेय सब्द-लोअ-भाविअप्पभाव? अ? पइस मे समाहि. नारायओ. १४ विमल-ससि-कलाइरेअ-सोमं, वितिमिर-सूरकराइरेअ-तेअं तिअस-वई-गणाइरेअ-रूवं, धरणिधर-प्पवराइरेअ-सारं. कुसुमलया. १५ सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं; तव संजमे अ अजिअं, एस थुणागि जिणं अजिअं. मुअगपरि-रिंगिअं. सोम-गुणेहिं पावइ न तं नव-सरय- ससी, तेअ-गुणेहिं पावई न तं नव-सत्य-रवी; रूव-गुणेहिं पावइ न तं तिअस गण-वई, १२ १६ For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सार- गुणेहिं पावइ न तं धरणिधर-वई. खिज्जिअयं. १७ तित्थ - वर-पवत्तयं, तम रय-रहिअं, धीर - जणथुअच्चि चुअ-कलि-कलुसं; संति - सुहप्पवत्तयं, ति गरण- पयओ, संतिमहं महा- मुणि सरणमुवणमे. ललिअयं. विणओणय-सिर- रइअंजलिरिसि-गण-संथुअं थिमिअं, विबुहाहिव - धण - वइ-नर- वइ - थुअ-महि - अच्चिअं बहुसो; अइरुग्गय - सरय-दिवायर - समहिअ - सप्पभं तवसा, गयणंगण - वियरण - समुइअ - चारण- वंदिअं सिरसा. किसलयमाला. असुर-गरुल- परिवंदिअं, किन्नरोरग-नमंसिअं: देव - कोडि-सय-संथुअं समण संघ-परिवंदिअं सुमुहं. २० अभयं अणहं अरयं, अरुयं, - अजिअं अजिअं पयओ पणमे. विज्जुविलसिअं. आगया वर विमाण-दिव्व-कणग-रह- तुरय-पहकर-सएहिं हुलिअं स-संभमोअरण-खुभिअ- लुलिअ-चल-कुंडलंगयतिरीड- सोहंत-मउलि-माला. वेड्ढओ. जं सुर- रांधा सासुर - संधा, वेर - विउत्ता भत्ति-सु-जुत्ता, १३ For Private And Personal Use Only १८ १९ २१ २२ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ आयर-भूसिअ-संभम-पिडिअ-सुठु-सुविम्हिअ-सव्व-बलोघा; उत्तम-कंचण-रयण-परूविअ-भासुर-भूसण-भासुरिअंगा, गाय-समोणय-भत्ति-वसागय-पंजलीपेसिअ सीस-पणामा. रयणमाला. वंदिऊण थोऊण तो जिणं, ति-गुणमेव य पुणो पयाहिणं; पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइआ स-भवणाई तो गया. खित्तयं. २४ तं महा-मुणिमहंपि पंजली, राग-दोस-भय-मोह-वज्जिअं; देव-दाणव-नरिंद-वंदिअं, संति-मुत्तमं महा-तवं नमे. खित्तयं. २५ अंबरंतर-विआरणिआहिं ललिअ-हंस-बहु गामिणिआहिं; पीण-सोणि-थण-सालिणिआहिं, सकल-कमल-दललोअणिआहिं. दीवयं. २६ पीण-निरंतर-थण-भर-विणमिय-गायलयाहिं, मणि-कंचण-पसिढिलमेहल-सोहिअ-सोणितडाहिं; वर-खिखिणि-नेउर-स तिलय-वलयविभूसणिआहिं. रइ-कर-चउर-मणोहर-सुंदर-दंसणिआहिं. चित्तक्खरा.२७ देवसुंदरीहिं पायवंदिआहिं वंदिआ य जस्स ते सु १४ For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्कमा कमा, अप्पणो निडालएहिं मंडणोड्डणप्पगारएहि केहिं केहिं वि; अवंग-तिलय-पत्तलेह-नामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं, भत्ति-सन्निविट्ठ-वंदणागयाहिं हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो. नारायओ. २८ तमहं जिणचंदं, अ-जिअं जिअ-मोहं; धुअ-सब्व-किलेसं, पयओ पणमामि. नंदिअयं. थुअ-वंदिअयस्सा रिसि-गण-देव-गणेहिं, तो देव-बहुहिं पयओ पणमिअस्सा; जस्स जगुत्तम सासणअस्सा, भत्ति-वसागय-पिडिअयाहिं देव-वरच्छरसा बहुआहिं, सुर-वर-रइ-गुण पंडिअयाहिं. भासुरयं. ३० वंस-सद्द-तंति-ताल-मेलिए, ति-उक्खराभिराम-सद्द-मीसए कए अ; सुई-समाण-णे अ-सुद्ध-सज्ज-गीय-पाय-जालघंटिआहिं: वलय-मेहला-कलाव-नेउराभिराम-सद्द-मीसए कए अ, देव-नट्टिआहिं हाव-भाव-विब्मम-प्पगारएहिं नच्चिऊण अंग-हारएहिं वंदिआ य जस्स ते सु-विक्कमा कमा; तयं ति लोय-सब-सत्त-संतिकारयं, पसंत-सव्वपाव-दोसमेस हं नमामि संतिमुत्तमं जिणं. नारायओ. ३१ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छत्त-चामर-पडाग-जूअ-जव-मंडिआ, झय-वर-मगर-तुरय-सिरिवच्छ-सु-लंछणा; दीव-समुद्द-मंदर-दिसा-गय-सोहिआ, सत्थिअ-वसह-सीह-रह-चक्क-वरंकिया. ललिअयं. ३२ सहाव-लट्ठा सम-प्पइट्ठा, अ-दोस-दुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा, पसाय-सिट्ठा, तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्ठा रिसीहिं जुट्ठा. वाणवासिआ. ते तवेण धुअ-सब्ब-पावया, सव-लोअ-हिअ-मूल-पावयासंथुआ अ-जिय-संति-पायया, हुतु मे सिव-सुहाण दायया. अपरांतिका. एवं तव बल-विउलं; थुअं मए अजिअ-संति-जिण-जुअलं; ववगय-कम्म-रय-मलं, गई गयं सासयं विउलं. गाहा.३५ तं बहु-गुण-प्पसायं, मुक्ख-सुहेण परमेण अविसायं: नासेउ मे विसायं; कुणउ अ परिसा वि अप्पसायं. माहा. ३६ तं मोएउ अ नंदि, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि; परिसा वि अ सुह-नंदि, मम य दिसउ संजमे नंदि. गाहा.३७ पक्खिअ-चाउम्मासिअ-संवच्छरिए अवस्स-भणिअब्बो, सोअब्बो सव्वेहिं, उक्सग्ग-निवारणो एसो. १६ ३४ ३८ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जो पढई जो अ निसुणई, उमओ कालंपि अजिअ-संति-थयं; न हु हुंति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्ना वि णासंति. ३९ जइ इच्छह परम-पयं, अहवा कित्तिं सुवित्थडं भुवणे; ता ते-लुक्कुद्धरणे, जिण-वयणे आयरं कुणह. भक्तामर स्तोत्र - ७ भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा, मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्; सम्यक् प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा, -वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय-तत्त्व-बोधादुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुर-लोक-नाथैः; स्तोत्रैर्जगत्रितय-चित्तहरैरुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित-पादपीठ! स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम्: बालं विहाय जल-संस्थितमिन्दुबिम्ब, -मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्! वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशाङ्ककान्तान्, ૧૭ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या; कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं, को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्? सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश!, कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः; प्रीत्यात्म-वीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनाऽर्थम्, अल्प-श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरीकुरूते बलान्माम् यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरोति, तच्चारु-चूत-कलिका-निकरैकहेतुः त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम: आक्रान्त-लोकमलि-नीलमशेषमाशु, सूर्यांशु-भिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं भयेद, -मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात्; चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, १८ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुक्ताफल- द्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः आस्तां तव स्तवनमस्त- समस्त-दोषं, त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति; दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभांजि नात्यद्भुतं भुवनभूषण! भूत- नाथ!, भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः; तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा ?, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ? दृष्ट्वा भवन्तमनिमेष - विलोकनीयं, नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः; पीत्वा पयः शशि-करद्युति- दुग्ध-सिन्धोः, क्षारं जलं जल-निधेरशितुं क इच्छेत् ? यैः शान्त राग-रुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापितस्त्रिभुवनैक-ललाम-भूत!; तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति. वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र - हारि. १९ For Private And Personal Use Only P १० ११ १२ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निःशेषनिर्जित-जगत्तियोपमानम्?: बिम्बं कलंक-मलिनं क्व निशाकरस्य?, यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम्. संपूर्ण-मण्डल-शशांक-कला-कलापशुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयन्ति; ये संश्रितास्त्रिजगदीश्वर नाथमेकं, कस्तान्निवारयति संचरतो यथेष्टम्? चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभिनीतं मनागपि मनो न विकारमार्गम्?; कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन, किं मंदराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित्? निर्धूम-वर्तिपवर्जित-तैल-पूरः, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि; गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ! जगत्प्रकाशः नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति; नाम्भोधरोदरनिरुद्ध-महाप्रभावः, For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्यातिशायि-महिमासि मुनीन्द्र! लोके. नित्योदयं दलित-मोहमहान्धकारं, गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम्; विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति, विद्योतयज्जगदपूर्व-शशांक-बिम्बम्. किं शर्वरीषु शशिनाह्नि विवस्वता वा?, युष्मन्मुखेन्दु दलितेषु तमस्सु नाथ!, निष्पन्न-शालिवनशालिनि जीव लोके, कार्य कियज्जलधरैर्जलभार-ननैः? ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरि-हरादिषु नायकेषु; तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तुं काच-शकले किरणाकुलेऽपि. मन्ये वरं हरिहरादय एंव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति; किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नाऽन्यः; कश्चिन्मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि. स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, २१ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता: सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि, प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम्. त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात्; त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्युं, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः . त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनंगकेतुम्; योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति संतः बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित- बुद्धिबोधात्, त्वं शंकरोऽसि भुवन-त्रय - शंकरत्वात्, धाताऽसि धीर ! शिवमार्ग-विधेर्विधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि. तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्ति-हराय नाथ !, तुभ्यं नमः क्षितितलामल-भूषणाय !: तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय ! ; २२ For Private And Personal Use Only २२ २३ २४ २५ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय. को विस्मयोऽत्र? यदि नाम गुणैरशेषैस्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश!; दोषैरुपात्त-विविधाश्रय-जात-गर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि. उच्चैरशोक-तरु-संश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम्: स्पष्टोल्लसत्किरणमस्त-तमो-वितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्व-वर्ति. सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्: बिम्बं वियद्विलसदंशु-लता-वितानं, तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्र-रश्मे कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम्; उद्यच्छशांक-शुचिनिर्झर-वारि-धारमुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम्. छत्रत्रयं तव विभाति शशांककान्त, For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुच्चैः स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम्; मुक्ताफल-प्रकर-जाल-विवृद्ध-शोभं, प्रख्यापयत्रिजगतः परमेश्वरत्वम् . उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुंज-कान्ति, पर्युल्लसन्नख-मयूख-शिखाभिरामौ; पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति. इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र!, धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य; यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि? श्च्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल मूलमत्त-भ्रमद्-भ्रमर-नाद-विवृद्ध-कोपम्; ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम्. भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुज्ज्वल-शोणिताक्तमुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमि-भागः; बद्ध-क्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते. २४ For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कल्पान्त-काल- पवनोद्धत - वह्नि-कल्पं, दावानलं ज्वलितमुज्ज्वलमुत्फुलिंगम्; विश्वं जिघत्सुमिव संमुखमापतन्तं, त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्यशेषम्. रक्तेक्षणं समद - कोकिल-कण्ठ-नीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम्; आक्रामति क्रम-युगेन निरस्त-शंकस्त्वन्नाम - नागदमनी हृदि यस्य पुंसः वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित- भीम-नादमाजा बलं बलवतामपि भूपतीनाम्; उद्यद्दिवाकर - मयूख - शिखापविद्धं, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपैति कुन्ताग्र- भिन्न- गज- शोणित- वारिवाहवेगावतार-तरणातुर योध-भीमे; युद्धे जयं विजितदुर्जय-जेय-पक्षास्त्वत्पादपंकज-वनाश्रयिणो लभन्ते. अम्भोनिधौ क्षुमित-भीषण-नक्र-चक्रपाठीन-पीट-भय-दोल्बण-वाडवाग्नौ; २५ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ ३७ ३८ ३९ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंगत्तरंग-शिखर-स्थित-यानपात्रास्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद व्रजन्ति. उद्भूत भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः, शोच्यां दशामुपगताश्च्युत-जीविताशाः; त्वत्पाद-पंकज-रजोऽमृत-दिग्धदेहा, र्मत्या भवन्ति मकरध्वज-तुल्य रूपाः. आपादकण्ठमुरु शृंखल-वेष्टितांगा, गाढं बृहन्निगड-कोटि-निघृष्ट-जंघाः; त्वन्नाम मन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विगत-बन्ध-भया भवन्ति. मत्त-द्विपेन्द्र-मृग-राज-दवानलाहिसंग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम्; तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते. स्तोत्र-स्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिर-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम्; धत्ते जनो य इह कण्ठ-गतामजस्रं, तं मान-तुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः. २६ For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याण मंदिर स्तोत्र - ८ कल्याण-मंदिरमुदारमवद्य भेदि, भीताभय-प्रदमनिन्दितमध्रि-पद्मम्; संसार-सागर-निमज्जदशेष-जन्तुपोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य. यस्य स्वयं सुरगुरुर्गरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम्; तीर्थेश्वरस्य कमठ-स्मय-धूमकेतो, स्तस्याहमेष क्लि संस्तवनं करिष्ये (युग्मम्) सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश! भवन्त्यधीशा:?; धृष्टोऽपि कौशिक-शिशुर्यदिवा दिवान्धो, रूपं प्ररूपयति किं किल घर्मरश्मेः?. मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ! र्मत्यो, नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत; कल्पान्त-वान्त-पयसः प्रकटोऽपि यस्मान् मीयेत केन जलधेर्ननु रत्नराशिः?. अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ! जडाशयोऽपि, २७ For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्तुं स्तवं लसदसंख्य-गुणाकरस्य; बालोऽपि किं न निजबाहु-युगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्व-धियाम्बु-रार्शः?. ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश?, वक्तुं कथं भवति तेषु ममावकाशः?; जाता तदेवमसमीक्षित-कारितेयं, जल्पन्ति वा निज-गिरा ननु पक्षिणोऽपि. आस्तामचिन्त्य-महिमा-जिन संस्तवस्ते, नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति; तीव्रातपोपहत-पान्थ-जनान्निदाघे, प्रीणाति पद्मसरसः सरसोऽनिलोऽपि. हृद्वतिनि त्वयि विभो! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः क्षणेन निबिडा अपि कर्मबन्धाः; सद्यो भुजंगममया ईव मध्यभागमभ्यागते वन शिखण्डिनि चन्दनस्य. मुच्यन्त एव मनुजाः सहसा जिनेन्द्र!, रौद्रैरुपद्रव शतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि: गो-रवामिनि स्फुरित-तेजसि दृष्टमात्रे, २८ For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः. त्वं तारको जिन! कथं भविनां त एव, त्वामुद्वहन्ति हृदयेन यदुत्तरन्तः; यद्वा दृतिस्तरति यज्जलमेष नूनमन्तर्गतस्य मरुतः स किलानुभावा. यस्मिन् हर-प्रभृतयोऽपि हतप्रभावाः, सोऽपि त्वया रतिपतिः क्षपितः क्षणेन; विध्यापिता हुत-भुजः पयसाथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्द्धर-वाडवेन?. स्वामिन्ननल्प-गरिमाणमपि प्रपन्नास्त्वां जन्तवः कथमहो हृदये दधानाः?; जन्मोदधिं लघु तरन्त्यति-लाघवेन, चिन्त्यो न हन्त महतां यदि वा प्रभावः. क्रोधस्त्वया यदि विभो! प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा तब कथं किल कर्म-चौराः?; प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके; नीलद्रुमाणि विपिनानि न किं हिमानी?. त्वां योगिनो जिन! सदा परमात्म-रूप २९ For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्वेषयन्ति हृदयाम्बुज-कोश-देशे; पूतस्य निर्मल-रुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य संभवि पदं ननु कर्णिकाया? ध्यानाज्जिनेश! भवतो भविनः क्षणेन, देहं विहाय परमात्म-दशां व्रजन्ति; तीव्रानलादुपल-भावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातु-भेदाः, अंतः सदैव जिन! यस्य विभाव्यसे त्वं, भव्यैः कथं तदपि नाशयसे शरीरम्?; एतत्स्वरूपमथ मध्य-विवर्त्तिनो हि, यद्विग्रहं प्रशमयन्ति महानुभावाः; आत्मा मनीषिभिरयं त्वदभेद-बुद्ध्या; ध्यातो जिनेन्द्र भवतीह भवत्प्रभावः, पानीयमप्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विष-विकारमपाकरोति? त्वामेव वीत-तमसं परवादिनोऽपि, नूनं विभो! हरि-हरादि-धिया प्रपन्नाः; किं काच कामलिभिरीश! सितोऽपि शंखो, ३० For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नो गृह्यते विविध-वर्ण-विपर्ययेण? धर्मोपदेश-समये स-विधानुभावादास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः: अभ्युद्गते दिनपतौ स-महीरुहोऽपि, किंवा विबोधमुपयाति न जीव-लोकः. चित्रं विभो! कथमवाङ्मुख-वृन्तमेव, विष्वक् पतत्यविरला सुर-पुष्य-वृष्टिः? त्वद्गोचरे सु-मनसां यदि वा मुनीश? गच्छन्ति नूनमध एव हि बंधनानि. स्थाने गभीर-हृदयोदधि-संभवायाः, पीयुषतां तव गिरः समुदीरयंति; पीत्वा यतः परम-संमद-संग-भाजो; भव्या व्रजन्ति तरसाप्यजरामरत्वम्. स्वामिन्! सु-दूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुर-चामरौघाः, येऽस्मै नतिं विदधते मुनि पुंगवाय, ते नुनमूर्ध्व-गतयः खलु शुद्ध भावाः. श्यामं गभीर-गिरमुज्ज्वल-हेम-रत्न ३१ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar सिंहासन-स्थमिह भव्य-शिखण्डिनस्त्वाम् ; आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुच्चैश्चामीकराद्रि-शिरसीव नवाम्बुवाहम्. उद्गच्छता तव शिति-द्युति-मण्डलेन, लुप्तच्छदच्छविरशोक-तर्रुबभूव; सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग!, नीरागतां व्रजति को न सचेतनोऽपि. भो भो प्रभादमवधूय भजध्वमेन, मागत्य निर्वृति-पुरी प्रति सार्थवाहम्; एतन्निवेदयति देव! जगत्रयाय, मन्ये नदन्नभि-नभः सुर-दुंदुभिस्ते. उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ! तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः; मुक्ता-कलाप-कलितोच्छ्वसितातपत्र, व्याजात्रिधा धृत-तनुर्बुवमभ्युपेतः, स्वेन प्रपूरित-जगत्त्रय-पिण्डितेन, कान्ति-प्रताप-यशसामिव संचयेन; माणिक्य-हेम-रजत प्रविनिर्मितेन, ३२ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साल-त्रयेण भगवन्नभितो विभासि. दिव्य-स्रजो जिन! नमति-दशाधिपानामुत्सृज्य रत्न-रचितानपि मौलि-बन्धान्, पादौ श्रयन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्संगमे सुमनसो न रमन्त एव. त्वं नाथ! जन्म-जलधेर्विपराङ्मुखोऽपि, यत्तारयस्यसुमतो निज-पृष्ठ-लग्नान्; युक्तं हि पार्थिव-निपस्य सतस्तवैव, चित्रं विभो यदसि कर्म-विपाक-शून्यः. विश्वेश्वरोऽपि जन-पालक! दुर्गतस्त्वं, किं वाक्षर-प्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश!: अ-ज्ञानवत्यपि सदैव कथंचिदेव, ज्ञानं त्वयि स्फुरति विश्व-विकाश-हेतुः प्राग्भार-संभृतनभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि; छायापि तैस्तव न नाथ! हता हताशो, ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा. यद् गज्जदूर्जित-घनौघ-मदभ्र-भीमं, 33 For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्रश्यत्तडिन्मुसल-मांसल-घोर-धारम्; दैत्येन मुक्तमथ दुस्तर-वारि द ; तेनैव तस्य जिन! दुस्तरवारि-कृत्यम्. ध्वस्तोर्ध्व-केशविकृताकृति-मत्य-मुण्डप्रालम्ब-भृद्-भयद-वक्त्रविनिर्यदग्निः; प्रेत-व्रजः प्रतिभवन्तमपीरितो यः, सोऽस्याभवत्प्रतिभवं भव-दुःख-हेतुः. धन्यास्त एव भुवनाधिप! ये त्रि-सन्ध्यमाराधयन्ति विधिवद्विधूतान्य-कृत्याः; भक्त्योल्लसत्पुलक-पक्ष्मल-देह-देशाः, पाद-द्वयं तव विभो! भुवि जन्म-भाजः. अस्मिन्नपार-भव-वारि-निधौ मुनीश!, मन्ये न मे श्रवण-गोचरतां गतोऽसि; आकर्णिते तु तव गोत्र-पवित्र-मन्त्रे, किंवा विपद्विष-धरी स-विधं समेति?. जन्मान्तरेऽपि तव पाद-युगं न देव!, मन्ये मया महित-मीहित-दान-दक्षम्; तेनेह जन्मनि मुनीश! पराभवानां, ३४ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम्. नूनं न मोह-तिमिरावृत-लोचनेन, पूर्व विभो! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि; मर्माविधो विधुरयन्ति हि मामनर्थाः, प्रोद्यत्प्रबन्ध-गतयः कथमन्यथैते? आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, नूनं न चेतसि मया विधृतोऽसि भक्त्या; जातोऽस्मि तेन जनबान्धव! दुःख-पात्रं, यस्मात्क्रियाः प्रतिफलन्ति न भाव-शून्याः. त्वं नाथ! दुःखि-जन-वत्सल! हे शरण्य! कारुण्य-पुण्य-वसते! वशिनां वरेण्य!; भक्त्या नते मयि महेश दयां विधाय, दुःखांकुरोद्दलन-तत्परतां विधेहि. निःसंख्य-सार-शरणं शरणं शरण्यमासाद्य सादित-रिपु प्रथितावदातम् त्वत्पाद-पंकजमपि प्रणिधान-वन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद् भुवन-पावन! हा हतोऽस्मि. देवेन्द्र-वन्द्य! विदिताखिल-वस्तु-सार!, ३५ For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार-तारक! विभो! भुवनाधिनाथ!; त्रायस्व देव! करुणा-हृद! मां पुनीहि, सीदन्तमद्य भयद-व्यसनाम्बु-राशेः. यद्यस्ति नाथ! भवदंघ्रि-सरो-रुहाणां, भक्तेः फलं किमपि संतति-संचितायाः; तन्मे त्वदेक-शरणस्य शरण्य! भूयाः, स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि. इत्थं समाहित-धियो विधिवज्जिनेन्द्र!, सान्द्रोल्लसत्पुलक-कंचुकितांग-भागाः; त्वद्-बिम्ब-निर्मल-मुखाम्बुज-बद्ध-लक्ष्या, ये संस्तवं तव विभो! रचयन्ति भव्याः जन-नयन-कुमुद-चन्द्र!, प्रभा-स्वराः स्वर्ग-संपदो भुक्त्वा; ते विगलित-मल-निचया, अ-चिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते. युग्मम्. बृहच्छान्तिः - ९ भो भो भव्याः! शृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतद्, ये यात्रायां त्रि-भुवनगुरो-राऽऽर्हता! भक्तिभाज!; तेषां शान्तिर्भवतु ३६ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्ता-मर्हदादि-प्रभावा-दारोग्य-श्री-धृति-मति-करी क्लेशविध्वंस हेतुः. भो भो भव्य लोका! इह हि-भरतैरावत-विदेह-संभवानां, समस्त-तीर्थकृतां जन्मन्याऽऽसन-प्रकम्पा-नन्तरमवधिना विज्ञाय सौधर्माधिपतिः सुघोषा-घण्टा-चालनानन्तरं, सकल-सुरासुरेन्द्रैः सह समागत्य, सविनयमहद्भट्टारकं गृहीत्वा, गत्वा कनकाद्रिशृङ्गे विहितजन्माभिषेकः शान्तिमुद्घोषयति यथा ततोऽहम् 'कृतानुकारमिति' कृत्वा, ‘महाजनो येन गतः स पन्थाः' इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय शान्तिमुद्घोषयामि तत् पूजा-यात्रा-स्नात्रादि-महोत्सवा-नन्तरमिति कृत्वाकर्ण दत्त्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा. ॐ पुण्याहं पुण्याहं, प्रीयन्तां प्रीयन्ताम्, भगवन्तोऽर्हन्तः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिनस्त्रिलोकनाथास्त्रिलोकमहितास्त्रिलोकपूज्या-स्त्रिलोकेश्वरास्त्रिलोकोद्योतकराः, ॐ ऋषभ-अजित-संभव-अभिनन्दन-सुमति-पद्मप्रभसुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमलअनन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर-मल्लि-मुनिसुव्रत-नमि-नेमि ३७ For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्व-वर्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा. ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपु-विजय-दुर्भिक्ष-कान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा. ॐ ह्रीं श्रीं धृति-मति-कीर्ति-कान्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-मेधाविद्यासाधन-प्रवेश-निवेशनेषु सु-गृहीत-नामानो जयन्तु ते जिनेन्द्राः. ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृंखला-वज्रांकुशी-अप्रतिचक्रापुरुषदत्ता-काली-महाकाली-गौरी-गान्धारी-सर्वास्त्रा-महाज्वाला-मानवी-वैरोट्या-अच्छुप्ता-मानसी-महामानसी षोडश विद्यादेव्यो रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा. ॐ आचार्योपाध्याय-प्रभृति-चातुर्वर्णस्य श्री श्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु. ॐ ग्रहाश्चन्द्र-सूर्यांगारक-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनैश्चर-- राहु-केतु-सहिताः स-लोकपालाः सोम-यम-वरुण-कुबेरवासवादित्य-स्कन्द-विनायकोपेता ये चान्येऽपि ग्रामनगर-क्षेत्र-देवतादयस्ते सर्वे प्रीयन्तां प्रीयन्ताम्, अ-क्षीणकोश- कोष्ठागारा नरपतयश्च भवन्तु स्वाहा. ॐ पुत्र-मित्र-भ्रातृ-कलत्र-सुहृत-स्वजन-संबन्धि-बन्धु-वर्ग ३८ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहिताः नित्यं चामोद-प्रमोद-कारिणः अस्मिंश्च भूमण्डल आयतन-निवासि-साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाणां रोगोपसर्ग व्याधि-दुःख-दुर्भिक्ष-दौर्मनस्योपशमनाय शान्तिर्भवतु. ॐ तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि-मांगल्योत्सवाः, सदा प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यन्तु दुरितानि, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा. श्रीमते शान्ति-नाथाय, नमः शान्ति-विधायिने; त्रैलोक्यस्यामराधीश-मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये. शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्तिं दिशतु मे गुरु; शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिर्गृहे गृहे. उन्मृष्टरिष्टदुष्टग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि; संपादित-हित-संपन्नाम-ग्रहणं जयति शान्तेः. श्रीसंघजगज्जनपदराजाधिपराजसन्निवेशानाम: गोष्टिकपुरमुख्याणां, व्याहरणैर्व्याहरेच्छान्तिम्. श्री-श्रमण-संघस्य शान्तिर्भवतु. श्री-जनपदानां शान्तिर्भवतु. श्री-राजाधिपानां शान्तिर्भवतु. श्री-राजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु. ३९ For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री-गोष्टिकानां शान्तिर्भवतु. श्री-पौरमुख्याणां शान्तिर्भवतु. श्री-पौरजनस्य शान्तिर्भवतु. श्री-ब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु. ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा. एषा शान्तिः प्रतिष्ठा-यात्रा-स्नात्राद्यवसानेषु शान्तिकलशं गृहीत्वा कुंकुम-चन्दन-कर्पूरागरु-धुपवास-कुसुमांजलिसमेतः स्नात्र-चतुष्फिकायां श्रीसंघसमेतः शुचि-शुचि-वपुः. पुष्य-वस्त्र-चन्दना-भरणालंकृतः पुष्पमालां कण्ठे कृत्वा, शान्तिमुद्घोष-यित्वा, शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यमिति. नृत्यन्ति नृत्यं मणिपुष्पवर्ष, सृजन्ति गायन्ति च मंगलानि; स्तोत्राणि गोत्राणि पठन्ति मन्त्रान्, कल्याणभाजो हि जिनाभिषेके. शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः; । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः. २ अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्ह नयरनि-वासिनी; अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा. ३ For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपर्सग्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः; मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे. सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयति शासनम्. __ श्रीशान्तिनाथ स्तोत्र विश्वातिशायिमहिमा, ज्वलत्तेजो विराजितम्; शान्तिं शान्तिकरं स्तौमि, दुरितवातशान्तये षोडशविद्यादेव्योपि, चतुषष्टिसुरेश्वराः, ब्रह्मादयश्च सर्वेपि, यं सेवन्ति कृतादराः ॐ ह्रीं श्रीं जये विजये, ॐ अजये परैरपि, ॐ तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टि, कुरु कुरु शातिं महाजये! ३ न क्वापि व्याधयो देहे, न ज्वरा न भगंदरा: कासश्वासादयो नैव, बाधन्ते शान्तिसेवनात् यक्षभूतपिशाचाद्या, व्यंतरा दुष्ट मुद्गलाः, सर्वे शाम्यन्तु मे नाथ!, शान्तिनाथसुसेवया श्रीजीरावला पार्श्वनाथ स्तोत्र. ॐ नमो देवदेवाय, नित्यं भगवतेऽर्हते, ४१ For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar श्रीमते पार्श्वनाथाय, सर्वकल्याणकारिणे ह्रींरूपाय धरणेन्द्रः, पद्मावत्यर्चितांध्रये, शुद्धातिशयकोटिभिः, सहिताय महात्मने अट्टेमट्टे पुरो दृष्टे, विघट्टे वर्णपंक्तिवत्, दुष्टान् प्रेतपिशाचादीन्. प्रणाशयति तेऽभिधा स्तंभय स्तंभयस्वाहा, शतकोटि नमस्कृतः, अधिमथ कर्मणां दूरादापतन्ती विडंबनाम् नाभिदेशोद्भवन्नाले ब्रह्मरंध्रप्रतिष्ठिते, ध्यातमष्टदले पट्टे, तत्त्वमेतत्फलप्रदम् तत्त्वमत्र चतुर्वर्णी, चतुर्वर्णविमिश्रिता; पंचवर्ण क्रमध्याता, सर्वकार्यकरी भवेत् क्षिप ॐ स्वाहेति वर्णैः, कृतः पंचांगरक्षणः योऽभिध्यायेदिदं तत्त्वं वश्यास्तस्याखिलश्रियः पुरुषं बाधते बाढं तावत्कलेश परंपरा, यावन्न मंत्रराजोयं, हृदि जागर्ति मूर्तिमान् व्याधिबंधवधव्यालानलांभः संभवः भया; क्षयं प्रयाति श्रीपार्श्वनामस्मरणमात्रतः यथा नादमयो योगी, तथा चेत्तन्मयो भवेत्; ४२ For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्रुवम् १४ तथा न दुष्करं किंचित्. कथ्यतेऽनुभवादिदम् इति श्रीजीरिकापल्ली स्वामी पार्श्वजिनः स्तुतः श्रीमेरुतुंगसूरेः स्तात, सर्वसिद्धि प्रदायकः जीरापल्ली प्रभुं पाय, पार्श्वयक्षेण सेवितम्, अर्चितं धरणेन्द्रेण, पद्मावत्या प्रपूजितम् सर्वमंत्रमयं सर्व-कार्यसिद्धिकरं परम्; ध्यायामि हृदयांभोजे, भूतप्रेतप्रणाशकम् श्रीमेरुतुंगसूरीन्द्रः, श्रीमत्पार्श्वप्रभोः पुरः; ध्यानस्थितं हृदि ध्यायन्. सर्वसिद्धिं लभेद् ध्रुवम् श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्रम् किं कर्पूरमयं सुधारसमयं, किं चन्द्ररोचिर्मयम् । किं लावण्यमयं महामणिमयं, कारुण्यकेलिमयम् । विश्वानंदमयं महोदयमयं, शोभामयं चिन्मयम् । शुक्लध्यानमयं वपुर्जिनपतेर्भूयाद्भवालम्बनम् पातालं कलयन् धरां धवलयन्नाकाशमापूरयन्, दिक्चक्रं क्रमयन् सुरासुरनरश्रेणिं च विस्मापयन् | ब्रह्माण्डं सुखयन् जलानि जलधेः, फेणच्छलालोलयन्। श्री चिंतामणिपार्श्वसंभवयशो, हंसश्चिरं राजते ४३ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण्यानां विपणिस्तमोदिनमणिः, कामेभकुम्भश्रृणिः मोक्षेनिस्सरणिः सुरेन्द्रकरणी, ज्योति प्रभासारणिः । दाने देवमणिर्नतोत्तमजनश्रेणिः कृपासारिणि, विश्वानंदसुधाघृणिर्भवभिदे, श्रीपार्श्वचिन्तामणिः श्री चिंतामणिपार्श्वविश्वजनतासंजीवनस्त्वं मया, दृष्टस्तात ! ततः श्रियः समभवन्-नाशक्रमाचक्रिणम् मुक्तिः क्रीडति हस्तयोर्बहुविधं सिद्ध मनोवाञ्छितम्, दुर्दैवं दुरितं च दुर्गतिभयं, कष्टं प्रणष्टं मम यस्य प्रौढतमप्रतापतपनः, प्रोद्दामधामा जगज - जंघाला कलिकालकेलिदलनो, मोहान्धविध्वंसकः । नित्योद् द्योतपदं समस्तकमलाकेलिगृहं राजते, स श्रीपार्श्वजिनो जने हित कृते चिंतामणिः पातु माम् ५ विश्वव्यापितमो हिनस्ति तरणि-र्बालोऽपि कल्पांकुशो, दारिद्रयाणि गजावलिं हरिशिशुः काष्टानि वढेकणः । पीयूषस्य लवोऽपि रोगनि यद्वत् तथा ते विभो, मूर्तिः स्फूर्तिमती ती त्रिजगत्ति कष्टानि हर्तुं क्षमा ६ श्रीचिंतामणिमंत्रमोंकृतियुतं, ह्रींकारसाराश्रितं, श्रीमर्ह नमिऊणपासकलितं त्रैलोक्यवश्यावहम्, ४४ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वेधाभूतविषापहं विषहरं श्रेयःप्रभावाश्रयम्, सोल्लासं वसहांकितं जिनफुलिंगानंदनं देहिनाम् ह्रीं श्रींकारवरं ऩमोऽक्षरपरं ध्यायन्ति ये योगिनो, हृत्पद्मे विनिवेश्य पार्श्वमधिपं, चिंतामणीसंज्ञकम् । भाले वामभुजे च नाभिकरयो - भूयो भुजे दक्षिणे, पश्चादष्टदलेषु ते शिवपदं द्वित्रैर्भवैर्यान्त्यहो (र्भान्त्यहो ) ८ नो रोगा नैव शोका न कलहकलना नारिमारिप्रचाराः, नैवाधिर्नासमाधिर्न च दुरदुरिते, दुष्टदारिद्रयता नो । नो शाकिन्यो ग्रहा नो हरिकरिगणा, व्यालवैतालजाला, जायन्ते पार्श्वचिन्तामणिनतिवशतः प्राणिनां भक्तिभाजाम् ९ गीर्वाणद्रुमधेनु कुंभमणयस्तस्यांऽगणे रंगिणो, देवा दानवमानवा सविनयं तस्मै हितध्यायिनः । लक्ष्मीस्तस्य वशावशैव गुणीनां ब्रह्माण्डसंस्थायिनी, श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथमनिशं संस्तौति यो ध्यायते " 1 7 इति जिनपतिपार्श्वः पार्श्वपार्श्वाख्ययक्षः, प्रदलितदुरितौधः प्रीणितप्राणिसार्थः । त्रिभुवनजनवाञ्छा दानचिंतामणीकः, शिवपदतरुबीजं बोधिबीजं ददातु ४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ७ १० ११ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमंत्राधिराजपार्थस्तोत्र श्रीपार्श्वः पातु वो नित्यं, जिनः परमशंकर; नाथः परमशक्तिश्च, शरण्यः सर्वकामदः सर्व विघ्नहरः स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायकः; सर्वसत्त्वहितो योगी, श्रीकरः परमार्थदः देवदेवः स्वयंसिद्ध, श्चिदानन्दमयः शिवः, परमात्मा परब्रह्मा, परमः परमेश्वरः जगन्नाथः सुरज्येष्टो, भूतेशः पुरुषोत्तमः; सुरेन्द्रो नित्यधर्मश्च, श्रीनिवासः शुभार्णवः सर्वज्ञः सर्वदेवेशः, सर्वदः सर्वगोत्तमाः सर्वात्मा सर्वदर्शी च, सर्वव्यापी जगद्गुरुः तत्त्वमूर्तिः परादित्यः, परब्रह्मप्रकाशकः, परमन्दुः परप्राणः, परमामृतसिद्धिदः अजः सनातनः शम्भु-रीश्वरश्च सदाशिवः; विश्वेश्वरः प्रमोदात्मा, क्षेत्राधीशः शुभप्रदः साकारश्च निराकारः सकलो निष्कलोऽव्ययः; निर्ममो निर्विकारश्च निर्विकल्पो निरामयः अमरश्चाजरोऽनन्त, एकोऽनन्तः शिवात्मकः ४६ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अलक्ष्यश्चाप्रमेयश्च, ध्यानलक्ष्यो निरंजनः ॐकाराकृतिरव्यक्तो, व्यक्तरूपस्रयीमयः; ब्रह्मद्वयप्रकाशात्मा, निर्भयः परमाक्षरं दिव्यतेजोमयः शान्तः, परमामृतमयोऽच्युतः; आद्योऽनाद्यः परेशानः, परमेष्टी परस्पुमान् शुद्धस्फटिकसंकाशः, स्वयंभूः परमाच्युतः; व्योमाकारस्वरूपश्च, लोकाऽलोकावभासकः ज्ञानात्मा परमानन्दः, प्राणारूढो मनःस्थितिः: मनःसाध्यो मनोध्येयो, मनोदृश्य परापर सर्वतीर्थमयो नित्यः सर्वदेवमयः प्रभुः; भगवान् सर्वतत्त्वेशः, शिवश्रीसौख्यदायकः इति श्रीपार्श्वनाथस्य, सर्वज्ञस्य जगद्गुरोः, दिव्यमष्टोत्तरं नाम-शतमत्र प्रकीर्तितम् पवित्रं परमं ध्येयं, परमानन्ददायकम्। भुक्तिमुक्तिप्रदं नित्यं, पठतां मङ्गलप्रदम् श्रीमत्परमकल्याण-सिद्धिदः श्रेयसेऽस्तु वः पार्श्वनाथजिनः श्रीमान्, भगवान् परमः शिवः धरणेन्द्र-फणच्छत्रा-लंकृतो वः श्रियं प्रभुः; For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दद्यात्पद्मावतीदेव्या, समधिष्ठितशासना ध्यायेत्कमलमध्यस्थं श्रीपार्श्वजगदीश्वरम्; ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह समायुक्तं, केवलज्ञानभारकरम् पद्मावत्यान्वितं वामे, धरणेन्द्रेण दक्षिणे; परितोऽष्टदलस्थेन, मन्त्रराजेन संयुतम् अष्टपत्रस्थितैः पंचनमस्कारैस्तथा त्रिभिः ज्ञानाद्यैर्वेष्टितं नाथं, धर्मार्थकाममोक्षदम् शतषोडशदलारूढं, विद्यादेवीभिरन्वितम्, चतुर्विंशतिपत्रस्थं, जिनं मातृसमावृतम् मायावेष्ट्यं त्रयाग्रस्थं, क्रौंकारसहितं प्रभुम्; नवग्रहावृतं देवं, दिक्पालैर्दशभिर्वृतम् चतुष्कोणेषु मन्त्राद्यैश्चतुर्बीजान्वितैर्जिनैः; चतुरष्टदशद्वीति, द्विधांकसंज्ञकैर्युतम् दिक्षु क्षकारयुक्तेन, विदिक्षु लांकितेन च; चतुरस्रेण वज्रांक, क्षितितत्त्वे प्रतिष्ठितम् श्री पार्श्वनाथमित्येवं, यः समाराधयेज्जिनम् तं सर्वपापनिर्मुक्तं, भजते श्री शुभप्रदा जिनेशः पूजितो भक्त्या, संस्तुत; प्रस्तुतोऽथवा; ४८ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यातरत्वं यैः क्षणं वाऽपि, सिद्धिस्तेषां महोदया श्रीपार्श्वमन्त्रराजान्ते, चिन्तामणिगुणास्पदम्; शान्तिपुष्टिकरं नित्यं, क्षुद्रोपद्रवनाशनम् ऋद्धिसिद्धिमहाबुद्धि-धृतिश्रीकान्तिकीर्तिदम्; मृत्युंजयं शिवात्मानं, जपना न्दितो जनः सर्वकल्याणपूर्णः स्याज्जरा मृत्युविवर्जितः, अणिमादिमहासिद्धिं, लक्षजापेन चाप्नुयात् प्राणायाममनोमन्त्र, योगादमृतमात्मनि; त्वामात्मानं शिवंध्यात्वा, स्वामिन! सिध्यन्ति जन्तवः ३१ हर्षदः कामदश्चेति, रिपुघ्रः सर्वसौख्यदः; पातु वः परमानन्द-लक्षण: संस्मृतो जिनः तत्त्वरूपमिदं स्तोत्रं, सर्वमंगलसिद्धिम् ; त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं, नित्यं प्राप्नोति स श्रियम् ३३ श्री पार्श्वनाथ विघ्नहर स्तोत्र ॐजीतुं ॐजीतुं ॐजीतुं उपशमधरी, ओहाँ पार्श्व अक्षरजपंते भूतने प्रेत ज्योतीष व्यंतर सुरा, उपशमे वार एकवीरा गुणते, ॐजीतुं० For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir به به दुष्ट ग्रह रोग शोक जरा जंतुने, ताव एकांतरो दिन तपते गर्भ भंदनवारण सर्प वींछी विष, बालिका बाळनी व्याधि हंते, ॐजीतुं० शायणि डायणि रोहीणी, रांधणी, फोटीका मोटिका दुष्टहंती दाढ उदर तणी कौल नोला तणी, स्वान शियाल विकराल दंती ॐजीतुं० धरणी पदमावती समरी शोभवती, वाट अघाट अटवी अटन्ते; लक्ष्मी हुँदो मले सूजस वेला वळे सयल आशाफले मनहसंते, ॐजीतुं० अष्ट महाभय हरे कान पीडा टळे, उतरे शूल शीशक भणंते; वदति वर प्रीतश्युं प्रीति विमल प्रभो, पार्श्वजीन नाम अभिराम मंते ॐजीतुं० به تم For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महामंत्रगर्भित श्री कलिकुंड पार्धनाथ स्तोत्रम् श्रीमद् देवेन्द्रवृन्दामल मुकुटमणि ज्योतिषां चक्रवालैालीढं पादपीठं शठकमठकृतोपद्रवाऽ बाधितस्य । लोकालोकावभासिस्फुरदुरु विमलज्ञानसद्दीप्रदीपः, प्रध्वस्तध्वान्तजालः स वितरतु सुखं पार्श्वनाथोऽत्र नित्यम्. हॉ ह्रीं हैं ह्रौं विभास्वन्मरकतमणभा कांतमूर्ते हि बं मो हँ सँ तँबीजमन्त्रैः कृतसकल जगत्क्षेम रक्षोरुवक्षाः । क्षा क्षीं ा क्षौं समस्तक्षितितलमहित! ज्योतिरुद्योतिताशः, ह्रींकारे रेफयुक्तं र र र र र र रां देव! सं सं संयुक्तं ह्रीं क्लीं ब्लॅ द्रा समेतं वियदमलकलाक्रौंञ्चकोभासि हुँ धुं धुं धुं धुम्रवर्णैरखिलमिहजगन्मे विधेयानुकृष्णं, वौषड्मन्त्रं पठन्तस्त्रिजगदधिपते! पार्श्व मां रक्ष नित्यम्.३ आँ क्रौं ह्रीं सर्ववश्यं कुरु कुरु सरसं कार्मणं तिष्ठ तिष्ट, क्षं क्षं हं रक्ष रक्ष प्रबल बल महाभैरवाराति भीतेः । द्रां द्रीं दूं द्रावयन्ति द्रव हन हन तं फट् वषट् बन्ध बन्ध, स्वाहा मंत्रं पठन्तस्त्रिजगदधिपते! पार्श्व मां रक्ष नित्यम्.४ ५१ For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हँ हँ झाँ झाँ क्ष हंसः कुवलय कलितैरंचितांग! प्रमत्ते झाँ झाँ हं यक्ष हंसं हर हर हर हूँ पक्षि वः सत्क्षिकोपं वं झं हं सः सहसः वस सर सरसं सः सुधाबीजमंत्र स्त्रायस्वस्थावरादेः प्रबलविषमुख हारिभिः पार्श्वनाथः. ५ क्ष्माँ क्ष्मी यूँ मैं मरेतैरहपति वितनुमंत्रबीजैश्च नित्यं हाहाकारोग्रनादैर्ध्वलदनलशिखाकल्पदीोर्ध्वकेशः । पिंगाक्षर्लोलजिह्वैर्विषमविषधरालंकृतैस्तीक्ष्ण दण्डैभूतैः प्रेतैः पिशाचैर्धनदकृत महोपद्रवान् रक्ष रक्ष. ६ झी झौं झः शाकिनीनां सपदहरसदं भिन्धि शुद्धेद्धबुद्धेग्लौं क्ष्म ढं दिव्य जिह्वा गति मति कुपितः स्तंभनं संविधेहि। फट्फट् सर्वाधिरोगग्रहमरणभयोच्चाटनं चैव पार्श्व ! त्रायस्वाशेष दोषादमरनरवरैौर्तिपादारविन्दः. ७ इत्थं मंत्राक्षरोत्थं वचनमनुपमं पार्श्वनाथस्य नित्यं विद्वेषोच्चाटनं स्तंभन (वन १) जयवशं पापरोगापनोदैः। प्रोत्सर्पज्जंगमादिस्थविरविषमुखध्वसनं स्थायु दीर्घमारोग्यैश्वर्ययुक्ता भवति पठति यः स्तौति तस्येष्टसिद्धि.८ ५२ For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org श्रीमहावीर स्वामी स्तोत्र ॐ अर्ह श्रीमहावीर !, वर्धमान जिनेश्वर ! ; शान्तिं तुष्टिं महापुष्टिं कुरु स्वेष्टं द्रुतं प्रभो ! सर्व देवाधिदेवाय नमोवीराय तायिने, " ग्रहभूत महामारी, द्रुतं नाशय नाशय सर्वत्र कुरु मे रक्षां सर्वोपद्रवनाशतः; जयं च विजयं सिद्धिं कुरु शीघ्रं कृपानिधे! त्वन्नामस्मरणाद्देव, फलतु मे वांछितं सदा; दुरीभवन्तु पापानि, मोहं नाशय वेगतः ॐ ह्रीं अर्ह महावीर - मंत्रजापेन सर्वदा: बुद्धिसागरशक्तीनां प्रादुर्भावो भवेद् ध्रुवम् नमस्कारमंत्राधिराजस्तोत्रम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यः सर्वदुःख दलने किल कल्पवृक्षश्चिंतामणी शुभमनोरथ धूरणे सः कन्दर्पदर्पदलनैकविधौ दवाग्नि लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः. सर्वागमश्रुत समुद्र सुधेन्दु सारः ५३ For Private And Personal Use Only १ २ ३ ४ 9 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार दनवनं सदनं सुखानां कल्याण कुन्दनखनिर्दमनं दराणं, लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः. संसारसागरनिमज्जदपूर्वनौका सिद्धौषधिर्विविधरोगविनाशने च निःशेषलब्धिबलबोधतरोश्च बीजं लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः. सूर्यसहस्रकिरणैर्हरति तमांसि सिंहो यथा गजगणांश्च नखैर्निहन्ति, संसारवर्ति दुरितानि तथैव मंत्रो लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः. पद्माकरे रुचिररश्मिभिरौषधीशं शीघ्र-प्रबोधयति निद्रितकैरवाणि । अन्तः सुषुप्तगुणपद्मदलानि चैवं लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्र: भूमंडलेषु शुभवस्तु न विद्यते तत् ध्यानेन यस्य ननु यन्नहि साधनीयम् दुःखं न तद् भवति यस्य विनाशनं नो ५४ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोकत्रये विजयते परमेष्टिमंत्र: श्रीपालदेवधरणेन्द्रसुदर्शनाद्या पल्लिपतिश्च शिवकंबलशंबलाद्या: ध्यात्वा हि यं पद्मगुः परमं पवित्रं लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्रः भक्त्या दधाति हृदि यो ननु मंत्रराजं दिव्यां गतिं व्रजति नूतनमुक्तिमोदं चूर्णीकरोति भवसंचितकर्मशेलं लोकत्रये विजयते परमेष्ठिमंत्र: ऋषिमंडल स्तोत्र आद्यन्ताक्षरसंलक्ष्य-मक्षरं व्याप्य यत्स्थितम् अग्नि-ज्वालासमं नादबिंदुरेखासमन्वितम् अग्निज्वालासमाक्रान्तं, मनोमल-विशोधकम्; देदीप्यमानं हृत्पद्म, तत्पदं नौमि निर्मलम् अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म-वाचकं परमेष्ठिनः सिद्धचक्रादिमं बीजं, सर्वतः प्रणिदद्महे ॐ नमोऽर्हद्भ्य इशेभ्य; ॐ सिद्धेभ्यो नमो नमः; ॐ नमः सर्वसूरिभ्य, उपाध्यायेभ्य ॐ नमः For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ नमस्सर्वसाधुभ्य ॐ ज्ञानेभ्यो नमो नमः; ॐ नमस्तत्त्वदृष्टिभ्य-श्चारित्रेभ्यस्तु ॐ नमः श्रेयसेऽस्तु श्रियेस्त्वेत, दर्हदाद्यष्टकं शुभम्; स्थानेष्वष्टसु विन्यस्तं, पृथग्बीजसमन्वितम् आद्यपदं शिखां रक्षेत्, परं रक्षेत्तु मस्तकम् तृतीयं रक्षेन्नेत्रे द्वे. तुर्य रक्षेच्च नासिकाम् पंचमं तु मुखं रक्षेत्, षष्ठं रक्षेच्च घंटिकाम; सप्तमं रक्षेन्नाभ्यन्तं, रक्षेत् पादान्त-मष्टमम् पूर्वं प्रणवतः सान्तः, सरेफो द्वित्रिपञ्चषान्; सप्ताष्टदशसूर्याकान्, श्रितो बिन्दुस्वरान्पृथक् पूज्यनामाक्षरा आद्याः, पंचैते ज्ञानदर्शने; चारित्रेभ्यो नमो मध्ये, ह्रीं सान्तस्समलंकृतः ॐ ह्रां ह्रीं हुँ हूँ हें हैं ह्रौं हँ:, ॐ असिआउसा ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो ह्रीं नमः जम्बूवृक्षधरो द्वीपः, क्षारोदधिसमावृतः अर्हदाद्यष्टकैरष्ट, काष्ठाधिष्ठैरलंकृतः तन्मध्ये संगतो मेरुः, कूटलक्षैरलंकृतः उच्चैरूच्चैस्तरस्तार-तारामंडलमण्डितः For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्योपरि सकारान्तं, बीजमध्यास्य सर्वगम्: नमामि बिम्बमार्हन्त्यं, ललाटस्थं निरञ्जनम् अक्षयं निर्मलं शान्तं, बहुलं जाडयतोज्झितम् निरीहं निरहंकारं, सारं सारतरं घनम्. अनुद्धतं शुभं स्फीतं, सात्त्विकं राजसम्मतम्; तामसं चिरसंबुद्धं, तैजसं शर्वरीसमम्. साकारं च निराकारं, सरसं विरसं परम्; परापरं परातीतं, परंपरपरापरम्. एकवर्ण द्विवर्ण च, त्रिवर्ण तुर्यवर्णकम् पंचवर्णं, महावर्ण, सपरं च परापरम्. सकलं निष्कलं तुष्टं, निर्वृत्तं भान्तिवर्जितम; निरंजनं निराकारं, निर्लेपं वीतसंशयम्. इश्वरं ब्रह्मसम्बुद्धं, शुद्धं सिद्धं मतं गुरूम्: ज्योतीरूपं महादेवं, लोकालोकप्रकाशकम् . अर्हदाख्यस्तुवर्णान्तः, सरेफो बिन्दुमण्डितः; तुर्यस्वर-समायुक्तो, बहुधा नादमालितः अस्मिन् बीजे स्थितास्सर्वे, ऋषभाद्या जिनेश्वराः; वणैर्निजैनिजैर्युक्ता, ध्यातव्यास्तत्र संगताः ५७ For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नादश्चन्द्रसमाकारो, बिन्दुनोल समप्रभः; कलारूणसमासान्तः, स्वर्णाभः सर्वतोमुखः शिरः सॅल्लीन इकारो, विनीलो वर्णतः स्मृतः; वर्णानुस्वारसंलीनं, तीर्थकृन्मंडलं स्तुमा चंद्रप्रभ-पुष्पदन्तौ, नादस्थिति-समाश्रितौ; बिन्दुमध्यगतौ नेमि-सुव्रतौ जिन सत्तमौ. पद्मप्रभ-वासुपूज्यौ कलापदमधिष्ठितौ; शिरइ-स्थितिसंलीनौ, पार्श्वमल्ली जिनोत्तमौ. ऋषभं चाजितं वन्दे, संभवं चाभिनन्दनम् श्रीसुमतिं सुपार्श्व च, वन्दे श्रीशीतलं जिनम् . श्रेयांसं विमलं वंदे, ऽनन्तं श्रीधर्मनाथकम; शान्तिं कुन्थुमरार्हन्तं नमिं वीरं नमाम्यहम्. षोडशैवं जिनानेतान्, गाङ्गेयद्युतिसन्निभान्; त्रिकालं नौमि सद्भक्त्या, हराक्षरमधिष्ठितान्. शेषास्तीर्थकृतः सर्वे, हरस्थाने नियोजिताः; मायाबीजाक्षरं प्राप्ताश्चतुर्विंशतिरर्हताम् गतराग-द्वेष-मोहाः, सर्वपाप-विवर्जिताः सर्वदा सर्वकालेषु, ते भवन्तु जिनोत्तमाः ५८ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा; तयाच्छादित सर्वांगं मा मां हिंसन्तु पन्नगाः ३२ पक्षिण: ३३ शूकराः ३४ सिंहका: ३५ शृंगिणः ३६ गोनसाः ३७ दंष्ट्रिणः ३८ वृश्चिकाः ३९ चित्रका:४० हस्तिनः ४१ रेपला ४२ दानवाः ४३ खेचराः ४४ देवताः ४५ राक्षसाः ४६ मुद्गला ४७ कुग्रहाः ४८ व्यन्तराः ४९ तस्कराः ५० ग्रामिण: ५१ भूमिपाः ५२ दुर्जनाः ५३ पाप्मनः ५४ व्याधयः ५५ हिंसका: ५६ शत्रवः ५७ वह्नयः ५८ जृम्भिकाः ५९ तोयदाः ६० देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा; तयाच्छादित सर्वांग मामां हिनस्तु डाकिनी. गाथा ६१ थी ७६ सुधी उपरनी ज गाथा बोलवी परंतु तेमा रहेल डाकिनीनी बदले याकिनी आदि शब्दो बोलवा...१ याकिनी ६२ राकिनी ६३ लाकिनी ६४ काकिनी ६५ शाकिनी ६६ हाकिनी ६७ जाकिनी ६८ नागिनी ६९ जृम्भिणी ७० व्यंतरी ७१ मानवी ७२ किन्नरी ७३ दैवंही ७४ योगिनी ७५ भाकिनी ७६ देवदेवस्य यच्चक्रं, तस्य चक्रस्य या विभा: तयाच्छा-दितसर्वांगं, सा मां पातु सदैवहि ७७ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री गौतमस्य या मुद्रा, तस्या या भुवि लब्धयः ताभिरभ्यधिकज्योति-रर्हन् सर्वनिधीश्वरः पातालवासिनो देवा, देवा भूपीठवासिनः; स्वर्वासिनोपि ये देवाः, सर्वे रक्षन्तु मामितः ७९ येऽवधिलब्धयो ये तु, परमावधि लब्धयः: ते सर्वे मुनयो दिव्याः, मां संरक्षन्तु सर्वतः भवनेन्द्र व्यन्तरेन्द्र ज्योतिष्केन्द्र कल्पेन्द्रेभ्यो नमो नमः श्रतावधि देशावधि सर्वावधि परमावधि बुद्धि ऋद्धिप्राप्त सौषधर्द्धिप्राप्ता ऽनन्तबलर्द्धिप्राप्त तत्त्वर्द्धिप्राप्त रसद्धि प्राप्त वैक्रियर्द्धिप्राप्त क्षेत्रर्द्धिप्राप्त ऽक्षीण-महानसर्द्धिप्राप्तेभ्यो नमः, दुर्जना भूत-वेतालाः; पिशाचा मुद्गलास्तथा; ते सर्वेप्युपशाम्यन्तु, देवदेवप्रभावतः ॐ ह्रीं ह्रीश्रीधृतिर्लक्ष्मी, गौरी चंडी सरस्वती; जयाम्बा विजया क्लिन्ना, जिता नित्या मदद्रवा कामांगा कामबाणा च, सानंदा नंदमालिनी माया मायाविनी रौद्री, कला काली कलिप्रिया एतास्सर्वा महादेव्यो, वर्तन्ते या जगत्त्रये; मह्यं सर्वाः प्रयच्छन्तु, कान्तिं लक्ष्मी धृति मतिम् ८४ ६० For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra F www.kobatirth.org दिव्यो गोप्यः सुदुष्प्राप्यः, श्रीऋषिमंडलस्तवः; भाषितस्तीर्थनाथेन, जगत्त्राणकृतेऽनघः रणे राजकुले वनौ, जले दुर्गे गजे हरौ; स्मशाने विपिने धोरे स्मृतो रक्षति मानवम् राज्यभ्रष्टा निजं राज्यं, पदभ्रष्टा निजं पदम्; लक्ष्मीभ्रष्टा निजां लक्ष्मीं प्राप्नुवन्ति न संशयः भार्यार्थी लभते भार्यां सुतार्थी लभते सुतम्: 1 विद्यार्थी लभते विद्यां नरः स्मरणमात्रतः स्वर्णे रौप्ये पटे कांरये, लिखित्वा यस्तु पूजयेत्; तस्यैवाष्ट महासिद्धि-गृहे वसति शाश्वती भूर्जपत्रे लिखित्वेदं, गलके मूर्ध्नि वा भुजे; धारितं सर्वदा दिव्यं सर्वभीति-विनाशकम् भूतैः प्रेतैर्ग्रहैर्यक्षैः पिशाचैर्मुद्गलैर्मलैः, वातपित्तकफोद्रेकैर्मुच्यते नात्र संशयः ॐ भूर्भुवः स्वस्रयी- पीठ - वर्तिनः शाश्वता जिनाः; तैः स्तुतैर्वन्दितैर्दृष्टैर्यत्फलं तत्फलं स्मृतौ एतद् गोप्यं महास्तोत्रं न देयं यस्य कस्यचित्; मिथ्यात्ववासिने दत्ते, बालहत्या पदे पदे " t - ६१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ८५ ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ ९२ ९३ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचाम्लादि-तपः कृत्वा, पूजयित्वा जिनावलिम्; अष्टसाहस्त्रिको जापः, कार्यस्तत्सिद्धिहेतवे शतमष्टोत्तरं प्रात-र्ये पठन्ति दिने दिने, तेषां न व्याधयो देहे, प्रभवन्ति च संपदः अष्टमासावधिं यावत्, प्रातरुत्थाय यः पठेत्: स्तोत्रमेतन्महातेज, स्त्वर्हदि बबं स पश्यति दृष्टे सत्यार्हते बिंबे, भवे सप्तमके ध्रुवम्; पदं प्राप्नोति शुद्धात्मा, परमानंदनंदितः विश्ववंद्यो भवेद् ध्याता, कल्याणानि च सोऽश्नुते; गत्वा स्थानं परं सोपि, भूयस्तु न निवर्तते इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं, स्तुतीनामुत्तमं पदम् पठनात् स्मरणाज्जापाल्लभते पदमव्ययम् ऋषिमंडलनामैतत्, पुण्य पाप प्रणाशकम्; दिव्यतेजो महास्तोत्रं, स्मरणात्पठनाच्छुभम् विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति, आपदो नैव कर्हिचित्; ऋद्धय समृद्धयः सर्वाः, स्तोत्रस्यास्य प्रभावतः श्री वर्द्धमानशिष्येण, गणभृद् गौतमर्षिणा; ऋषिमंडलनामैतद्, भाषितं स्तोत्रमुत्तमम् ___१०१ १०२ For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनपंजर स्तोत्र ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं अर्हद्भ्यो नमो नमः ॐ ह्रीं श्रीं अहं सिद्धेभ्यो नमो नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह आचार्येभ्यो नमो नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह उपाध्यायेभ्यो नमो नमः ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं गौतमस्वामिप्रमुखसर्वसाधुभ्यो नमो नमः १ एष पंच नमस्कारः सर्व पापक्षयंकरः: ★ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगलानां च सर्वेषां प्रथमं भवति मंगलम् ॐ ह्रीं श्रीं जये विजये, अहं परमात्मने नमः कमलप्रभसूरीन्द्रो, भाषते जिनपंजरम् एक भक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदम्; मनोभिलषितं सर्वं, फलं स लभते ध्रुवम् भूशय्या - ब्रह्मचर्येण, क्रोध लोभ - विवर्जित:: देवताग्रे पवित्रात्मा षण्मासैर्लभते फलम् अर्हन्तं स्थापयेन्मूर्ध्नि, सिद्धं चक्षुर्ललाटके; आचार्य श्रोत्रयो मध्ये, उपाध्यायं तु घ्राणके साधुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनःशुद्धिं विधाय च; सूर्य-चन्द्रनिरोधेन, सुधीः सर्वार्थसिद्धये ६३ For Private And Personal Use Only २ ३ ४ ५ ६ g Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दक्षिणे मदनद्वेषी, वामपार्श्वे स्थितो जिनः; अंगसंधिषु सर्वज्ञः, परमेष्ठी शिवंकरर पूर्वाशां च जिनो रक्षे-दाग्नेयी विजितेन्द्रिय; दक्षिणाशां परं ब्रह्म नैऋतिं च त्रिकालवित पश्चिमाशां जगन्नाथो, वायवीं परमेश्वरः; उत्तरां तीर्थकृत्सर्वा-मीशानी च निरंजन: पातालं भगवानर्ह, -न्नाकाशं पुरूषोत्तमः; रोहिणीप्रमुखादेव्यो, रक्षन्तु सकलं कुलम् ऋषभो मरतकं रक्षे,-दजितोऽपि विलोचने संभवः कर्णयुगलं. नासिकां चाभिनंदनः ओष्ठौश्री सुमती रक्षेद्, दन्तान्पद्मप्रभो विभुः जिह्वां सुधार्श्वदेवोऽयं, तालु चन्द्रप्रभाभिधः कंठं श्रीसुविधी रक्षेद्, हृदयं श्रीसुशीतलः -श्रेयांसो बाहुयुगलं, वासुपूज्यः करद्वयम् अंगुलीविमलो रक्षे-दनन्तोऽसौ नखानपि: श्री धर्मोऽप्युदरास्थीनि, श्री शान्ति भिमंडलम् श्री कुंथुर्गुह्यकं रक्षे, दरो लोमकटीतटम्; मल्लि रूरु पृष्ठवंशं जंघे च मुनिसुव्रतः ६४ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पादांगुलीनमी रक्षे,-च्छ्रीनेमिश्चरणद्वयम्; श्री पार्श्वनाथः सर्वागं, वर्धमानश्चिदात्मकम् पृथिवीजलतेजस्क-बाय्वाकाशमयं जगत्, रक्षेदशेषपापेभ्यो, धीतरागो निरंजनः राजद्वारे श्मशाने च, संग्रामे शत्रुसंकटे: व्याघ्रचौराग्निसर्पादि-भूतप्रेतभयाऽऽश्रिते अकाले मरणे प्राप्ते, दारिद्र्यापत्समाश्रिते; अपुत्रत्वे महादुःखे, मूर्खत्वे रोगपीडिते डाकिनीशाकिनीग्रस्ते, महाग्रहगणार्दिते नद्युत्तारेऽध्ववैषम्ये, व्यसने चापदि स्मरेत् प्रातरेव समुत्थाय, यः स्मरेज्जिनपंजरम्, तस्य किंचिद्भयं नास्ति, लभते सुखसंपदा जिनपंजरनामेदं, यः स्मरेदनुवासरम्; कमलप्रभराजेन्द्र-श्रियं स लभते नरः प्रातः समुत्थाय पठेत्कृतज्ञो, यस्तोत्रमेतज्जिनपंजराख्यम्; आसादयेत् स कमलप्रभाख्यां, लक्ष्मी मनोवांछित पूरणाय For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीरुद्रयल्लीयवरेण्यगच्छे. देवप्रभाचार्यपदाब्जहंसः; वादीन्द्रचूडामणिरेष जैनो, जीयाद् गुरुः श्रीकमलप्रभाख्यः २५ जयतिहुअण स्तोत्र जयतिहुअण-वरकप्परुक्ख!, जय जिण! धन्वंतरि!, जयतिहुअण-कल्लाणकोस! दुरिअक्करिकेसरि!; तिहुअणजण-अविलंधिआण! भुवणत्तय-सामिय!, कुणसु सुहाई जिणेस! पास! थंभणयपुरठ्ठि! तह समरंत लहंति झत्ति वरपुत्तकलत्तइ, धण्णसुवण्णहिरणपुण्ण जण भुंजइ रज्जइ; पिक्खइ मुक्ख असंखसुक्खं तुह पास! पसाइण!. इअ तिहुअण-वरकप्परुक्ख! सुक्खइ कुण महजिण! २ जरजज्जर परिजुण्ण-कण्ण नठुट्ठ सुकु-ट्टिण. चक्खु-क्खीणखएणखुण्ण नर सल्लिय सूलिण; तुह जिण! सरणरसायणेण लहुहुंति पुणण्णव, जय धन्नंतरि! पास! महवि तुह रोगहरो भव विज्जा जोइस मंत तंत सिद्धिउ अपयत्तिण, ६६. For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवणऽब्र अट्टविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण; तुह नामिण अपवित्तओवि जणहोइ पवित्तउ, तं तिहुअणकल्लाणकोस! तुह पास ! निरुत्तउ खुद्द उत्तइ मंत तंत जंताइ विसुत्तइ, चर-थिर-गरल- गहुग्ग-खग्ग- रिउवग्ग विगंजइ दुत्थियसत्थ अणत्थघत्थ नित्थारइ - द करि, दुरियइ हरउ सपासदेउ ! दुरियक्करि केसरि ! तुह- आणा थंभेइ भीम दप्पुध्धुरसुरवर-, रक्खस जक्खफणिदविंद चोराऽनल जलहर; जलथरचारि रउद्दखुद्दपसुजोइणिजोइय इय तिहुअण- अविलंघिआण जयपास ! सुसामि ! य पत्थिय- अत्थ-अणत्थतत्थ भत्तिष्भर निब्भर, रोमं चंचिय- चारु कायकिन्नर - नर - सुरवर; जसु सेवहि कमल-मलजुयल पक्खालिय कलिमलु, सो भुवणत्तय - सामी पासमह - मद्दउ रिउबलु जयजोइय-मणकमल-भसल ! भय पंजरकुंजर !, तिहुअणजण आनंदचंद भुवणत्तय-दिणयर!; जयमइ-मेइणि-वारिवाह! जयजंतु पियामह!, ६७ " For Private And Personal Use Only ४ ५ ६ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थंभणयट्ठिय! पासनाह नाहत्तण कुणमह बहुविह वन्नु अवन्नु सुन्नु वन्निउ छप्पन्निहि, मुक्खधम्म-कामत्थकाम नर नियनिय सत्थिहि; जं ज्झायहि बहुदरिसणत्थ बहुनामपसिद्धउ, सो जोइयमणकमल- भसलसुहुपास पवद्धउ भयविब्भल- रणजणिरदसण थरहरिय- सरीरय, तरलिय- नयण विसुन्न गग्गारगिर करुणय, तइ सहसति - सरंत हुंतिनर नासियगुरुदर, मह विज्झविसिज्झसइ पास ! भयपंजरकुंजर ! पइं पासिवि वियसं तनित्तपत्तं तपवित्तिय, - बाहवाहपवूढ रूढ दुहदाह सुपुलइय; मन्नइ मन्नु सउन्नुपुन्नु अप्याणं सुरनर, इय तिहुअण- आनंदचंद ! जय पास !, जिणेसर ! तुह कल्ला - महेसु घंटटंकारव - पेल्लिय वल्लि रमल्ल महल्लभत्ति सुरवर गुंजुल्लिय: हलप्फलिय पवत्तयंति भुवणेवि महूसव, इय तिहुअण- आनंदचंद ! जय पास ! सुहुब्भव ! निम्मल केवल किरणनियर - विहुरिय-तमपहयर ! " ६८ For Private And Personal Use Only ८ १० ११ १२ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ १४ दंसिय-सयलपयत्थ सत्थ! वित्थरिय-पहाभर!; कलिकलुसिय जणधूय लोयलोयणह अगोयर!, तिमिरइ निरुहर पास! नाह! भुवणत्तय-दिणयर! तुह समरण-जलवरिस-सित्तमाणव-मइमेइणि, अवरावर-सुहुमत्थ-बोहकंदलदल रेहणि जाइय फलभर भरिय हरिय दुहदाह अणोवम, इय मइमेइणि-वारिवाह दिस पास मइंमम कयअविकल-कल्लाण वल्लि उल्लुरिय-दुहवणु, दावियसग्गऽपवग्गमग्ग दुग्गइ-गमवारणु; जयजं तुह जणएण तुल्ल जं जणिय हियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जयजंतुपियामडु भुवणारण्ण-निवास दरिय परदरिसण देवय, जोइणि पूअण खित्तवाल खुद्दासुर पसुक्य; तुह उत्तट्ट सुनट्ठ सुठु अविसंठुलु चिट्ठहि, इयति हुअणवणसीह! पास पावाइ पणासहि फणिफण-फारफुरंत रयण कररंजिय नहयल!, फलिणीकं दलदल-तमाल-नीलुप्पल-सामल!; कमठासुर उवसग्ग-वग्गसंसग्ग-अगंजिय!, ६९ १५ १६ For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ १८ १९ जय पच्चक्ख जिणेस! पास! थंभणय-पुरलिय! महमणु तरलु पमाणु नेय वाया वि विसंटुलु, नेय तणुरवि अविणय-सहावु अलसविह-लंथलु तुह माहप्पु पमाणुदेव! कारुण्ण-पवित्तउ, इय मइ मा अवहीरि पास! पालिहि विलवंतउ किं किं कप्पिउ नयकलुणु किं किं वन जंपिउ, क्विन चिट्ठिउ किट्ठदेव! दीणयमऽवलंबिउः कासु न किय निष्फल लल्लि अम्हेहि दुहत्तिहि, तहवि नपत्तउ ताणुकिंपि पइपहु! परिचत्तिहि तुहुसामिउ तुहुमाय बप्पु तुहुमित्त पियंकरु, तुहुगइ तुहु मइ तुहु जिताणु तुहु गुरु खेमंकरु; हउं दुहभर-भारिउ वराउ राउल निभग्गह लीणउ, तुह कमल-मलसरणु जिण! पालहि चंगह पइकिविक्य नीरोय लोय किवि पाविय-सुहसय, किवि मइमंत महंतकेवि किवि साहिय-सिवपय; किवि गंजिय-रिउवग्ग केवि जसधवलिय-भूयल, मइ अवहीरहिकेण पास! सरणागय-वच्छल! पच्चुवयार-निरीह! नाह! निप्पन्न-पओयण!, ७० २० २१ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुह जिणपास! परोवयार करणिक्क-परायण !; सत्तुमित्त - समचित्त वित्ति! नयनिंदय - सममण ! मा अवहीरियऽजुग्गउवि मइपास निरंजण! हउ बहुविह- दुहतत्तगतु तुह दुहनासणपरु, हउ सुयणह करुणिक्कट्ठाणु तुहु निरु करुणायरु; हउ जिणपास ! अ सामिसालु तुहु तिहुअण-सामिय, जं अवहीरहि मई झंखंत इय पास! न सोहिय जुग्गाऽजुग्गविभाग नाह! नहु जोयहितुह समा, भुवणुवयार-सहावभाव करुणारस सत्तम; समविसमई: किंघणु नियइभुवि दाह समंतउ ?, इय दुहिबंधव! पासनाह! मइपाल थुनंतर नय दीह दी यु मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोइ वि उवयार करहि उवयारसमुज्जयः दीणह दीणु निहीणु जेण तइ नाहिण चत्तउ तो जुग्गउ अहमेव पास पालहि मई, चंगउ अह अनुवि जुग्गय - विसेसु किवि, मन्नहि- दीणह, जं पासिवि उवयारु करइ तुहनाह समग्गह; सुरिचय किल कल्लाणु जेण जिण! तुम्ह पसीयह, ७१ For Private And Personal Use Only २२ २३ २४ २५ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किं अन्निण तं चेव देव! या मइ अवहीरह तुह पत्थण नहु होइ विहलु जिण जाणउ किंपुण, हउ दुक्खिय निरु सत्तचत्तदुक्खहु उस्सुयमण तं मन्नउ निमिसेण एउ एउवि जइ लभ, सच्चं जं भुक्खियवसेण किं उंबरु पच्चइ २७ तिहुअणसामि! पासनाह! मह अप्पु पयासिउ, किज्जउ जं नियरूवसरिसु नभुणउ बहु जंपिउं. अन्नुन जिणजगि तुहसमोवि दखिन्नु दयासउ जइ अवगनसि तुह जिअहह कहहोसु हयासउ २८ जइ तुह रूविण किणवि पेयपाइण-वेलवियउ, तुवि जाणउ. जिणपास तुम्हि हउं अंगकिरिउ, इयमह इच्छिउ तं न होइ सा तुह ओहावणु रक्खंतह नियकित्ति पेय जुज्जइ अवहीरणु २९ एव महारिय ज-त देव एहुन्हवणमहुसउ, जं अणलीअ-गुणगहण तुम्ह मुणिजण अणिसिद्धउ एम पसिह सुपासनाह! थंभणय-पुरट्ठिय! इय मुणिवरु सिरि-अभयदेउ विन्न वइ अणिंदिय ३० .७२ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचषष्टि स्तोत्र आदा नमिजिनं नौमि, संभवं सुविधि तथा; धर्मनाथं महादेवं, शान्ति शान्तिकरं सदा अनंतं सुव्रतं भक्त्या, नमिनाथं जिनोत्तमम्, अजितं जितकंदर्प, चंद्रं चंद्रसमं प्रभुम् आदिनाथं तथा देवं, सुपार्श्व विमलं जिनम् मल्लिनाथं गुणोपेतं, धनुषा पंचविंशतिम् अरनाथं महावीरं, सुमतिं च जगद्गुरुम् श्री पद्मप्रभनामानं, वासुपूज्यं सुरैर्नतम् शीतलं शीतलं लोके, श्रेयांस श्रेयसे सदा; श्रीकुंथुनाथं वामेयं, श्रीअभिनंदनं विभुम् जिनानां नामभिर्लब्धः पंचषष्टिसमुद्भवः, यंत्रोऽयं राजते यत्र, तत्र सौख्यं निरंतरम् यस्मिन् गृहे महाभक्त्या, यंत्रोऽयं पूज्यते बुधैः; भूतप्रेत-पिशाचादि-भयस्तत्र न विद्यते सकलगुणनिधानं यंत्रमेनं विशुद्धं, हृदयकमलकोशे, धीमतां ध्येयरूपम्, जयतिलकगुरुश्री सूरिराजस्य शिष्यः वदति सुखनिदानं, मोक्षलक्ष्मीनिवासम् ७३ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ach श्रीउवसग्गहरं (महाप्रभाविक) स्तोत्र उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं, विसहरविसनिन्नासं, मंगलकल्लाण आवासं विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ, तस्स गह रोगमारी, दुट्ठजरा जंति उवसामं २ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु फलो होइ; नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्च- ३ ॐ अमरतरु कामधेणु, चिंतामणिकामकुंभमाइया; सिरिपासनाहसेवा, गहाण सव्वे वि दासत्तम् ॐ ह्रीं श्रीं ऐं तुह दंसणेण सामिय, पणासेइ रोगसोगदुक्ख दोहरगं; कप्पतरुमिव जायइ, ॐ तुह दंसणेण सव्वफलहेउ स्याहा. ॐ ह्रीं नमिऊणविग्घनासय, मायाबीएण धरणनागिंदं; सिरिकामराज कलियं पासजिणिंदं नमसामि- ६ ॐ ह्रीं श्रीं सिरिपासविसहर-विज्जामंतेण झाणझाएज्झा; धरणपउमावइदेवी, ॐ ह्रीं क्ष्लव्यु स्वाहा ॐ जयउ धरणिंद- पउमावइ य नागिणी विज्जा; ७४ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " १० विमलझा - णसहियो, ॐ ह्रीं रक्ष्म्लव्युं स्वाहा ॐ थुणामि पासनाहं, ॐ ह्रीं पणमामि परमभत्तीए, अट्ठक्खर धरणेन्दो, पउमावइ पयडिया कित्ती जस्स पयकमलमज्झे, सया वसेइ पउमावइ य धरणिदो; तस्स नामइ सयलं, विसहरविसं नासेइ तुह समत्ते लद्धे, चिंतामणिकप्पपायव-ब्भहिए: पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॐनट्ठट्ठमयठाणं, पणट्ठकमट्ठसंसारे, परमट्ठानिट्ठिअट्ठे, अट्ठगुणाधिसरं वंदे ॐ गरुडो वनितापुत्रो, नागलक्ष्मी; महाबलः; तेणमुच्चंति मुसा, तेण मुच्चंति पन्नगाः म तुह नाम सुद्धमंतं, सम्मं जो जवेइ सुद्धभावेण; सो अयरामरं ठाणं पावइ नय दोग्गई, दुक्खं वा ॐ पंडुभगंदरदाहं, कासं सासं च सूलमाइणि, पासपहुपभावेण नासंति सयलरोगाइं ह्रीं स्वाहा ॐ विसहरदावानल - साइणि वेयालमारिआयंका; सिरिनिलकंठपासस्स, स्मरणमित्तेण नासंति पन्नास गोपीडां कुरग्रह, तुह दंसणं भयं काये; ७५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ११ १२ १३ १४ १५ १६ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवि न हुति र तह वि, तिसंझं जं गुणिज्जासो १७ पिंड जंत भगंदर खास, सास सूल तह निव्वाह; सिरिसा मलपास महत, नाम पउर पऊलेण १८ ॐ ह्रीं श्रीं पासधरणसंज्जुत्तं, विसहरविज्जं जवेइ सुद्धमणेणं, पावइ इच्छयं सुहं, ॐ ह्रीं श्रीं रलव्यु स्वाहा १९ ॐ रोग-जल-जलण-विसहर-चोरारि-मइंद-गय-रणभयाई; पासजिणनामसंकित्तेणेण, पसमंति सव्वाइं ह्रीं स्वाहा २० ॐ जयउ धरणिंद नमंसिय, पउमावइपमुह निसेविया पाया ॐ क्लीं ह्रीं महासिद्धिं, करेइ पास जगनाहो २१ ॐ ह्रीं श्रीं तं नमः पासनाहं, ॐ ह्रीं श्रीं धरणिंद नमंसियं दुहविणासं; ..... ह्रीं श्रीं जस्स पभावेण सया, ॐ ह्रीं श्रीं नासंति उवद्दवा बहुसो ॐ ह्रीं श्रीं पइं समरंताण मणे, ॐ ह्रीं श्रीं न होइ वाहि न तं महादुक्खं, ॐ ह्रीं श्रीं नामपि हि मंतसमं, ७६ For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ ह्रीं श्रीं पयडं नत्थीत्थ संदेहो ॐ ह्रीं श्रीं जलजलणभय तह सप्पसिंह, ॐ ह्रीं श्रीं चौरारिसंभवे खिप्पं, ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासपहुं, ॐ श्रीं क्लीं पहुविकयावि किं तस्स २४ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं इह लोगट्ठी परलोगट्ठी, ॐ ह्रीं श्रीं जो समरेइ पासनाहं, ॐ हाँ ह्रीं हुँ हँ गाँ गी गँ गँः माँ ग्रीं | ग्रः तं तह सिज्झइ खिप्पं इह नाह समरह भगवंत, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्राँ ग्री D ग्रः क्लीं क्लीं श्रीकलिकुंडस्वामिने नमः इअ संथुओ महायस!, भत्तिभरनिब्मरेण हियएण; ता देव दिज्ज बोहिं भवे भवे पासजिणचंद __ श्री चंद्रप्रभ विद्या स्तव: ॐ चंद्रप्रभ । प्रभाधीश। चंद्रशेखरचंद्रभूः । (१) चंद्रलक्ष्माङ्क। चंद्राङ्ग ! चंद्रबीज । नमोस्तुते. ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्री चंद्रप्रभ! ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा। ७७ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 इष्टसिद्धि-महासिद्धितुष्टिपुष्टिकरो भव. द्वादशसहस्रजप्तो वांछितार्थ फलप्रदः । महित्वा त्रिसंध्यं जापो, सर्वाधिव्याधिनाशनः सुरासुरेन्द्रमहितः, श्री पांडवनृपस्तुतः श्री चंद्रप्रभतीर्थेशः, श्रियं चंद्रोज्जवलां कुरु. श्री चंद्रप्रभविद्येयं स्मृता सद्यं फला मता । सर्वाधिव्याधिविध्वंसकारिणी मे वरप्रदा. श्री चंद्रप्रभ विद्या ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं चन्द्रप्रभ ह्रीं श्रीं कुरु कुरु स्वाहा ! ( सर्व कार्यमा साधक ज्वाला मालिनी मंत्र) ॐ ज्वालामालिनी क्षां क्षीं क्षं क्षै क्षौं क्षं क्षः हा दुष्ट क्ष्म्ल्व्यूँ ग्रहान् स्तंभय स्तंभय ठं ठं हां आ क्रौं क्षीं ज्वालामालिन्याज्ञापयति हुँ फट् घे घे । ॐकार विद्या स्तवन प्रणवस्त्वं! परब्रह्मन्! लोकनाथ! जिनेश्वर ! कामदस्त्वं मोक्षदस्त्वं, ॐकाराय नमो नमः. पीतवर्णः श्वेतवर्णो रक्तवर्णो हरिद्वः । ૭૮ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only N. CC ५ १ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णवर्णो मतो देवः, ॐकाराय नमो नमः. नमस्त्रिभुवनेशाय, रजोऽपोहाय भावतः। पञ्चदेवाय शुद्धाय, ॐकाराय नमो नमः. मायादये नमोऽन्ताय, प्रणवान्त मयाय च | बीजराजाय हे देव!, ॐकाराय नमो नमः. घनान्धकारनाशाय, चरते गगनेऽपि च। तालुरन्ध्रसमायाते, सप्रान्ताय नमोनमः. गर्जन्तं मुखरन्ध्रेण, ललाटान्तर संस्थितम् । पिधानं कर्णरन्ध्रेण, प्रणवं तं वयं नमः. श्वेते शान्तिकपुष्टयाख्याऽनवद्यादिकराय च | पीते लक्ष्मीकरायापि, ॐकाराय नमो नमः. रक्त वश्यकरायापि, कृष्णे शत्रुक्षयकृते। धूम्रवर्णे स्तम्भनाय, ॐकाराय नमो नमः. ब्रह्मा विष्णु शिवो देवो, गणेशो वासवस्तथा । सूर्यश्चन्द्रस्त्वमेवातः, ॐकाराय नमो नमः. न जपो न तपो दानं, न व्रतं संयमो न च । सर्वेषां मूलहेतुस्त्वं, ॐकाराय नमो नमः इति स्तोत्रं जपन् वाऽपि, पठन् विद्यामिमां परा। ७९ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh स्वर्गं मोक्षं पदं धत्ते, विद्येयं फलदायिनी. ११ करोति मानवं विज्ञमज्ञं, मानविवर्जितम्। समानं स्यात् पंचसुगुरोर्विद्यैका सुखदा परा १२ हींकार विद्या स्तवन सर्वण पार्श्व लय मध्यसिद्धमधीश्वरं भास्वरूप भासम् । खण्डेन्दु बिन्दु स्फुटनाद शोभ, त्वां शक्ति बीजं प्रमनाः प्रणौमि. ह्रींकारमेकाक्षरमादिरूपं, मायाक्षरं कामदमादिमन्त्रम्। त्रैलोक्यवर्णं परमेष्टिबीजं, विज्ञाः स्तुवन्तीश भवर्तामत्थम्. शिष्यः सुशिक्षा सुगुरोरवाप्य, शुर्चीवशी धीरमनाश्च मौनी। तदात्मबीजस्य तनोतु जापमुपांशु. नित्यं विधिना विधिज्ञः. त्वां चिन्तयन् श्वेतकरानुकारं, ज्योत्स्नामयीं पश्यति यस्त्रिलोकीं श्रयन्ति तं तत्क्षणतोऽनवद्यविद्या कलाशान्तिक पौष्टिकानि. श.. ८० For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वामेव बालारुणमण्डलाभ, स्मृत्वा जगत् त्वत्करजालदीप्रम् । विलोकते यः किल तस्य विश्वं, विश्वं भवेत् वश्यमवश्यमेव . यस्तप्त चामीकरचारु दीप्रं, पिङ्गः प्रभं त्वां कलयेत् समन्तात् सदा मुदा तस्य गृहे सहेलि. करोति केलिं कमला चलाऽपि. यः श्यामलं कज्जलमेचकाभ, त्वां वीक्षते वा तुषधूमधूम्रम्। त्रिपक्ष पक्षः खलुतस्य वाताहताऽभवद् यात्यचिरेण नाशम्. आधारकन्दोद्गततन्तु सूक्ष्म लक्ष्योद्भवं ब्रह्मसरोज वासम् । यो ध्यायति त्वां स्रवदिन्दुबिम्बा मृतं च स्यात् कविसार्वभौमः. षड्दर्शनी स्वस्वमतापलेपैः, स्वे दैवते तन्मय बीजमेव । ८१ For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यात्वा तदाराधन वैभवेन भवेदजेयः परवादि वृन्दैः. किं मन्त्रतन्त्रैर्विविधागमोक्तैः दुःसाध्य-संशीतिफलात्मलाभैः । सुसेव्यः सद्यः फलचिन्तितार्थाधिकप्रदश्वेदसि चेत्त्वमेकः. चौरारि-मारि ग्रह रोग लूता भूतादि दोषानल बन्धनोत्थाः। भियः प्रभावात् तव दूरमेव, नश्यन्ति पारीन्द्ररवादिवेभा. प्राप्नोत्यपुत्रः सुतमर्थहीनः, श्री दायते पत्तिरपीशतीह। दुःखी सुखी चाथ भवेन्न किं किं. तद्रुप चिंतामणि चिन्तनेन. पुष्पादि जापामृत होम पूजा, क्रियाधिकारः सकलोऽस्तु दूरे। य केवलं ध्यायति बीजमेव सौभाग्यलक्ष्मीर्वृणुते, स्वयं तम्. ८२ For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वतोऽपि लोका:सुकृतार्थकाम, मोक्षान् पुमर्थांश्चतुरांलभन्ते। यास्यन्ति याता अथ यान्ति ये ते, श्रेयःपदं त्वन्महिमालवः सः. विधाय यः प्राक्प्रणवं नमोऽन्ते, मध्ये कबीजं ननु जज्जपीति! तस्यैकवर्णां वितनोत्यवध्या कामार्जुनी कामितमेव विद्या. मालामिमां स्तुतिमयी, सुगुणां त्रिलोकी, बीजस्य यः स्वहृदये निधयेत् क्रमात् सः! अङ्केऽष्टसिद्धि रभसा लुटतीह तस्य, नित्यं महोत्सवपदं लभते क्रमात् सः. श्रीधर्मचक्र विद्या नमो भगवओ महई महावीर वद्धमाण सामिस्स जस्स वरधम्मचक्कं जलंतं गच्छेई आयासं पायालं लोयाणं. भूयाणं जुएवा, रणेवा, रायगणे वा, वारणे For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar बंधणे मोहणे थंभणे सव्वसत्ताणं अपराजिओ भवामि स्वाहा। सिद्धचक्रस्तोत्रम् ऊर्ध्वाधोरयुतं सबिन्दुसकलं ब्रह्मस्वरावेष्टितं, वर्गापूरितमष्टपत्रममलं सत्सन्धितत्त्वार्पितम् । अन्तः पत्रतटेष्वनाहतपदं ह्रींकारसंवेष्टितं, देवं ध्यायति यः पुमान् स भवति वैरीभकण्ठीरवः, १ यद्वार्गाष्टकपूरितं वरदलं सानाहतं नीरजं यध्रौंकारकलापबिन्दुकलितं मध्ये त्रिरेखाञ्चितम् यत्सर्वार्थकरं परं गुणवतां कालत्रये वर्तिनां तत्क्लेशौघविनाशनं भवतु नः श्रीसिद्धचक्रेश्वरम्. शब्दब्रह्मैकलीनं प्रबलबलयुतं सर्वतत्त्वप्रभावं, सानन्दं सर्वभद्रं गणधरवलयं दुःखपाशप्रणाशनम् । यन्नैमित्तं वरिष्ठविपदि हृदि धृतं सज्जनानां च नित्यं तद् दत्तं यस्य बाहौ रिपुकुलमथनं सिद्धचक्रं नमामि. ३ यच्छुद्धं व्योमबीजं ह्यध-उपरि रा(या)न्त सिद्धाक्षरेण, यत्सन्धौ तत्त्वयुक्तं स्वरपरमपदैर्वैष्टितं मध्यबीजम् ८४ For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि. यत्सीमन्तं निरतं विगतकलिमलं मायया वेष्टिताङ्ग जीयात् तत् सिद्धचक्रं विमलवरगुणं देवनागेन्द्रवन्द्यं. ४ यद् वश्यादिककारकं बहुविधं कामार्थिनां कामदम् । यल्लक्षाधिकजापसिद्धविमलं सत्संपदा दायकम् ।। यत् कुष्ठादिकदुष्टदोषदलनं दुःखाभिभूतात्मनाम् यत् तत्त्चैकफलप्रदं विजयतां श्रीसिद्धचक्रं भुवि. ऊर्ध्वाध्मेरेफयुक्तं गगनमुपहतं बिन्दुनाऽनाहतेन ह्रींकारेण प्रकृष्टं स्वरसुगुरुदैर्वेष्टितं बाह्यदेशे। पद्मं वर्गाष्टकाङ्क दलमुखविवरेऽनाहताढ्यं तदित्थं? ही कारेण त्रिवेष्टं कलशवलयितं सिद्धिदं सिद्धचक्रम्, ६ व्योमोर्ध्वाधारयुक्तं शिरसि च विलसन् नादबिन्द्वर्धचन्द्रम् स्वाहान्तौंकारपूर्वैर्गुरुभिरभिवृत सस्वरं चाष्टवर्गम् अन्तस्थानाहतश्रीगणधरवलयालङ्कृतं ध्यानसाध्यं वन्दे श्रीसिद्धचक्रं सुरगणमहितं मायया त्रिःपरीतम्. ७ यत् सर्वाङ्गिहितं मनुष्यमहितं सौख्यालयं धर्मिणाम् यद् दोषैः परिवर्जितम् सुगदितं ध्यानाधिरूढाङ्कितम् यत् कर्मक्षयकारकं सुधवलं मन्त्राधिपाधिष्ठितम् । तन्नः पातु वरं भवाब्धिशमनं श्री सिद्धचक्रं सदा, ८ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगौतम अष्टक श्रीइंद्रभूतिं वसुभूतिपुत्रं, पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम: स्तुवन्ति देवाः सुरमानवेन्द्राः स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे श्रीवर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य, मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन, . अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि. स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे श्रीवीरनाथेन पुरा प्रणीतं. मंत्रं महानंदसुखाय यस्य; ध्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृह्णन्ति भिक्षाभ्रमणस्य काले; मिष्टान्नपानाम्बरपूर्णकामाः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे 86 For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टापदाद्री गगने स्वशक्त्या, ययौ जिनानां पदवंदनाय; निशम्य तीर्थांतिशयं सुरेभ्यः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे त्रिपञ्चसंख्या शततापसानां, तपाकृशानामपुनर्भवाय: अक्षीणलब्ध्या परमान्नदाता, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे सदक्षिणं भोजनमेव देयं, साधर्मिकं संघसपर्ययेति; कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे शिवं गते भर्तरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैव मत्वा; पट्टाभिषेको विदधे सुरेन्द्रैः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, 87 For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सज्ञानबीजं जिनराजबीजं; यन्नाम चोक्तं विदधाति सिद्धिं, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे श्रीगौतमस्याष्टकमादरेण, प्रबोधकाले मुनिपुंगवा ये, पठन्ति ते सूरिपदं सदैवानन्दं लभन्ते सुतरां क्रमेण 10 श्रीगौतमस्वामीनो मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं अरिहंत उवज्झाय श्री गौतमस्वामीने नमो नमः श्रीगौतमस्वामीनो रास ढाल पहेली वीरजिणेसरचरणकमलकमलाकयवासो पणमवि पणिसु सामि, सार गोयमगुरु रासो, मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणो भो भविआ, जिम निवसे तुम देहगेह, गुणगण गहगहिआ 88 For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 जंबुदीव सिरिभरहखित्त, खोणी तलमंडण, मगधदेश सेणियनरेस, रिउदलबलखंडण; घणवरगुव्वरनाम गाम, जहि गुणगणसज्जा,. विप्प वसे वसुभूई तत्थ, तसु पुहवीमज्जा ताण पुत्त सिरिइंदभूइ, भूवलय प्रसिद्धो, चउदहविज्जा विविह रूव, नारीरस विद्धो; विनय विवेक विचार सार, गुमगणह मनोहर सातहाथ सुप्रमाण देह, रूपे रंभावर नयण वयण कर चरण जिणवि, पंकज जळे पाडिअ, तेजे तारा चंद सूर, आकाशे भमाडिअ; रूवे मयण अनंग करवि, मेल्हिओ निरधाडिअ, धीरमें-मेरू गंभीर सिंधु चंगिम चयचाडिअ पेखवि निरूवमरूव जास, जण जपे किंचिअ, एकाकी कलिभीते इत्थ, गुण मेहल्या संचिअ; अहवा निश्चे पुबजम्मे, जिणवर इणे अंचिअ, रंभा पउभा गौरि गंगा रति, हा विधि वंचिअ नहिबुध नहीगुरु कवि न कोइ, जसु आगळ रहिओ, पंचसयां गुणपात्र छात्र, हीडे परिवरिओ; For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करे निरंतर यज्ञकर्म, मिथ्यामतिमोहिअ, इणे छलि होसे चरणनाण, दंसण विसोहिअ वस्तु जंबुदीवह जंबुदीवह भरहवासंमि, भूमितलमंडण, मगधदेश सेणियनरेसर, धणवर, गुव्वरगाम तिहां, विप्प वसे वसुभूइ सुंदर; तसु भज्जापुहवी सयलगुणगण रूवनिहाण, ताण पुत्त विज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण७ भाषा (ढाळ बीजी) चरमजिणेसर केवळनाणी, चउंविहसंघ पइट्ठाजाणी; पावापुरी सामी संपत्तो, चउविहदेवनिकाये जुत्तो 8 देवे समवसरण तिहां कीजे, जिणदीठे मिथ्यामतिखीजे; त्रिभुवनगुरु सिंहासणे बेठा, ततखिण मोह दिगंते पेठा.९. क्रोध मान माया मदपुरा, जाए नाठा जिम दिन चौरा; देवदुंदुभि आकाशे वाजे, धर्मनरेसर आव्या गाजे 10 कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठईंद्र ज मागे सेवा; चामर छत्रशिरोवरि सोहे, रूपेजिणवर जग सहु मोहे 11 उपसमरसभर भरि वरसंता, योजनवाणीवखाण करतां; 90 For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणिअ वर्धमानजिन पाया, सुरनर किंनर आ राया 12 कांतिसमूहे झलहलकंता, गयण विमाणे रणरणकंता; पेखवि इंदभूई मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होवंते 13 तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पहुता गहगहता; तो अभिमाने गोयम जंपे, तिणे अवसरे कोपे तणुकंपे 14 मूढलोक अजाण्यो बोले, सुर जाणंता इम कांइ डोले; मू आगळ को जाण भणीजे, मेरू अवर किम ओपम दीजे 15 वस्तु वीरजिणवर वीरजिणवर, नाणसंपन्न, पावापुरी सुरमहिअ पत्तनाह संसारतारण, तिहिं देवे निम्मविअ समोवसरण बहुसुखकारण; जिणवर जगउज्जोअकरे, तेजे करी दिणकार, सिंहासणे सामी ठव्यो, हुओ सुजयजयकार 16 भाषा (ढाळ त्रीजी) तव चडिओ घणमाणगजे, इंदभूईभूदेव तो; हुंकारो करि संचरिअ, कवणसु जिणवरदेव तो 17 योजनभूमि समोसरण,पेखे प्रथमारंभतो; दहदिसि देखे विबुधवहु, आवंती सुररंभ तो 18 91 For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 20 मणिमयतोरण दंड धज, कोसीसे नव घाट तो; वयरविवर्जित जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो सुर नर किंनर असुरवर, इंद्र इंद्राणि राय तो, चित्ते चमक्किय चिंतवे ए, सेवंता प्रभुपाय तो सहस्रकिरण सम वीरजिण, पेखवि रूपविशाल तो: एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाळ तो तो बोलावे त्रिजगगुरु, इंदभूइनामेण तो; श्रीमुखे संशय सामि सेवे, फेडे वेदपएण तो मान मेल्ही मद ठेली करी, भक्तिए नामे शीष तो; पंचसयांशु व्रत लीओ ए गोयम पहेलो सीस तो तवबंधवसंजम सुणवि करी, अगनिभूई आवेय तो; नाम लेइ आभाष करे, ते पण प्रतिबोधेय तो इणे अनुक्रमे गणहररयण, थाप्या वीरे अग्यार तो; तव उपदेसे भुवनगुरु, संयमशुं व्रतबार तो बिहुउपवासे पारणुं ए, आपणपे विहरंत तो; गोयम संयम जगसयल, जयजयकार करंत तो वस्तु इंदभूइअ, इंदभूइअ, चडिअ बहुमाने, 26 For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुंकारो करि कंपतो समोसरणे पहोतो तुरंत, अह संसा सामि सवे; चरमनाह फेडे फुरंत, बोधिबीजसंजाय मने, गोयम भवहविरत्त, दिक्खलइ सिक्खा सहिअ, गणहरपयसंपत्त 27 भाषा (ढाळ चोथी) आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिम पुण्यभरो दीठा गोयम सामि, जो निअनयणे अमिय भरो 28 (सिरिगोयम गणधार, पंचसयां मुनिपरिवरिय; भुमिय करय विहार, भवियणने पडिबोह करे. समवसरण मझार, जे जे संशय उपजे ए, ते ते पर उपकार, कारणे पूछे मुनिपवरो जिहां जिहां दीजे दीक्ख तिहां तिहां केवळ उपजे ए; आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम गुरु उपरि गुरुभत्ति, सामी गोयम उपनीय; एणि छळ केवळनाण, रागज राखे रंगभरे जो अष्टापद सेल, वंदे चडी चउवीसजिण; आतमलब्धिवसेण, चरमशरीरी सोय मुनि 93 For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इयदेसण निसुणेवि, गोयमगणहर संचलिय; तापसपन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए तपसोसिय नियअंग, अम्ह सगति नवि उपजे ए; किम चढसे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए 34 गिरूओ एणे अभिमान, तापस जो मने चिंतवे ए: तो मुनि चडिओ वेग, आलंबवि दिनकरकिरण 35 कंचणमणिनिप्पन्न, दंड कलस धज वड सहिअ; पेखवि परमानंद, जिणहर भरतेसरविहिय निय निय कायप्रमाण, चउदिसि संठिअ जिणहबिंब; पणमवि मनउल्हास, गोयमगणहर तिहां वसिअ 37 वइरसामिनो जीव, तीर्यक्जुंभकदेव तिहां; प्रतिबोधे पुंडरीक, कंडरीक अध्ययन भणी वळता गोयमसामी, सवि तापस प्रतिबोधकरे, लेइ आपणे साथ, चाले जिम जूथाधिपति खीर खांड धृत आणी, अमिअवूठ अंगुट ठवि; गोयम एकणपात्र करावे पारणु सवि पंचसयां शुभभावि; उज्जळभरियो खीरमीसे, साचगुरुसंयोगे, कवळ ते केवळ रूप हुआ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचसयां जिणनाह, समवसरणे प्राकारत्रय; पेखवि केवळनाण, उपन्न उज्जायकरे जाणे जिण पियूष, गाजंती घण मेघ जिम, जिणवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसयां वस्तु इणे अणुक्रमे, इणे अणुक्रमे, नाणसंपन्न, पन्नरहसयपरिवरिय, हरिअदुरिअ, जिणनाह वंदइ, जगगुरुवयण तीहनाण अप्पाण-निंदइ, चरमजिणेसर तव भणे; गोयम करीस म खेउ, छेह जइ आपणे सही, होस्युं तुल्ला बेउ भाषा (ढाळ पांचमी) सामीओ ए, वीरजिणंद, पुनिमचंद उल्लसिय, विहरिओ ए, भरहवासंमि, वरसबहोत्तेरसंवसिअ; ठवतो ए कणय पउमेसु, पायकमळ संघहिसहिय, आविओ ए नयणानंद नयर पावापुरि सुरमहिय 45 पेखीओ ए गोयमसामी, देवसम्माप्रतिबोहकरे, आपणो ए त्रिशलादेवी नंदन पहोतो परमपए; 95 44 For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वळतां ए देव आकास पेखवि जाण्यो जिणसमे ए, तो सुणी ए मने विषवाद, नादभेद जिम उपनो ए ४६ कुणसमे ए सामिय देखी, आपकन्हे हुं टाळिओ ए, जाणतो ए तिहु अणनाह, लोक विवहार न पालिओए. अतिभलु ए कीधलुं सामी, जाण्यु केवळ मागशे ए, चिंतव्यु ए बाळक जेम, अहवा केर्डलागशे ए ४७ हुं किम ए वीरजिणंद, भगते भोळो भोळव्यो ए, आपणो ए अविहडनेह, नाह न संपे साचव्यो ए, साचो ए वीतराग, नेह न जेणे लालिओ ए, तिणसमे ए गोयम चित्त, राग विरागे वालिओ ए ४८ आवंतुं ए जे उलट, रहेतुं रागे साहियुं ए. केवळ ए नाणउपन्न, गोयम सहेजे उमाहियुं ए: त्रिभुवन ए जयजयकार, केवळमहिमा सुर करे ए, गणधरु ए करे वखाण, भवियण भव जिम निस्तरे ए ४९ वस्तु पढमगणहर पढमगणहर, वरिस पचास गिहवासे संवसिअ, तीस वरिस संजमविभूसिअ, सिरिकेवळनाण For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुण; बार वरस तिहुअण नमंसिअ, राजगृही नगरी ठव्यो बाणुवयवरसाउ सामीगोयम गुणनिलो, होस्ये सिवपुर ढाउ भाषा (ढाळ छट्ठी) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमह वने परिमळ बहेके, जिम चंदन सुगंधनिधि जिम गंगाजळ लहेरे लहेके, जिम कणचायळ तेजे झळके, तिम गोयम सोभागनिधि जिम मान सरोवर निवसे हंसा, सुरतरुवरकणयवतंसा, जिम महुयर राजीव वने जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुण केलिक्ने पुनिम निशि जिम ससहर सोहे, ९७ For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरतरु महिमा जिम जग गोहे, पूरव दिसे जिम सहसकरी पंचानन जिम गिरि वर राजे, नरवइघरे जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तम मुखे मधुरी भाषा, जिम वन केतकी महमहे ए जिम भूमिपति भूय बळ चमके, जिम जिणमंदिरघंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगहे ए चिंतामणि कर चढियुं आज, सुरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सवि वस हुआ ए कामगवी पूरे मन कामी, अष्ट महासिद्धि आवे धामी, सामी गोयम अणुसरो ए For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रणवाक्षर पहेलो पभणीजे. माया बीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमति शोभा संभवे ए देवह धुरि अरिहंत नमीजे. विनय पहु उवज्झाय थुणीजे, इणे मंत्रे गोयम नमो ए परघर वसतां कांइ करीजे देशदेशांतर कांइ भमीजे, कवणकाज आयास करो प्रह उठी गोयम समरी जे. काजसमग्गह ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे चउदहसे बारोत्तर वस्से, गोयम गणधर केवळ दीवसे. खंभनयर प्रभु पास पसाए.. कियो कवित उपगार परो आदिमंगळ एह भणीजे, For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परव महोत्सव पहिलो दीजे, रिद्धि वृद्धि कल्याण करो धन्यमाता जेणे उदरे धरीया, धन्यपिता जिणे कुल अवतरिया, धन्य सद्गुरु जिणे दीक्खियाए विनयवंत विद्याभंडार, जस गुण पुहवी न लभे पार, रिद्धि वृद्धि कल्याणकरो गौतमस्वामिनो रास भणीजे, चउविहसघ रलियायत कीजे, सयल संघ आणंद करो कुंकुम चंदन छडो देवरावो, माणेक मोतीना चोक पुरावो, रयणसिंहासन बेसणु ए सिंहा बेसी गुरू देशना देसे, भविकजीवनां कारज सरसे, उयवंतमुनि एम भणे ए १०० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ ६७ ६८ ६९ ७० ७१ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामितणो ए रास भणतां सुणतां लीलविलास सासयसुखनिधि संपजे ए ७२ एह रास जे भणे भणावे. वर मयगळ लच्छी घर आवे, मनवंछित आशा फले ए ७३ मंत्र - ॐ ह्रीं श्री अरिंहत उवज्झाय श्री गौतमस्वामिने नमः सिरि गोयम थव जय सिरिविलासभवणं, वीरजिणिदस्स पढम सीसवरं, सयलगुणलद्धिजलहिं, सिरि गोयमगणहरं वंदे. १ ॐ सह नमो भगवओ, जगगुरुणो गोयमस्स सिद्धस्स, बुद्धस्स, पारगस्स य, अक्खीणमहाणस्स सया. २ अवतर अवतर भगवन्, मम हृदये भास्करीश्रियं बिभृहि, ॐ ह्रीं श्री ज्ञानादि, वितरतु तुभ्यं नमः स्वाहा. ३ वसइ तुह नाममंतो, जस्स मणे सयल चिंतियं दितो, चिंतामणि सुरपायव, काम घडाइहिं पि किं तस्स. ४ १०१ For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिरि गोयम गणनायग, तिहुअणजणसरण, दुरियदुहहरण, भवतारण रिउवारण, होसु अणाहस्स मह नाहो. ५ मेरुसिरे सिंहासण, कणयमहाकमलसहस्सपत्तट्टियं सूरिगणभगणविसयं, ससिप्पहं गोयमं वंदे. सव्वसुहलद्धिदाया, सुमरिअमित्तोवि गोयमं भयवं, पइट्ठियगणहरमंतो, दिज्ज मह वंछियं सयलं. ७ इअ सिरि गोयम संथुअ ! मुणिसुंदर सूरि थुइपयं मएवि तुम्हं। देहि मह सिद्धिं सिवफलयं, भुवणकप्पतरुवरस्स. श्रीघंटाकर्ण स्तोत्र ॐ घंटाकर्ण ! महावीर !, सर्वव्याधिविनाशक !; विस्फोटकभये प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ! यत्रत्वं तिष्ठसे देव !: लिखितोऽक्षरपंक्तिभिः, रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात्तपित्तकफोद्भवाः तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम्; शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पण दृश्यते; ا ه ز بده १०२ For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्निचोरभयं नास्ति, नास्ति तस्याप्यरिभयम् ४ ॐ ह्रीं श्री घंटाकर्ण ! नमोस्तु ते ठः ठः ठः स्वाहा ___ श्रीघंटाकर्ण मंत्र ॐ क्रौं ब्लूँ ह्रीं महावीर ! घंटाकर्ण ! नमोस्तु ते ठः ठः ठः स्वाहा माणिभद्र मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्ली क्रॉ श्रीमाणिभद्रवीराय चतुर्भुजाय हस्तिवाहनाय मम कामार्थ सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा। क्षेत्रपाल मंत्र ॐ क्षाँ क्षी हूं क्ष क्षौं क्षः क्षेत्रपालाय नमः, ॐ ह्रीं क्षी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा।। श्री गुरुपादुका स्तोत्र अनन्तसंसार समुद्रतार, नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् । नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् । १०३ For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावाम्बुदमालिकाभ्याम् । दूरीकृता नम्र विपततिभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः । मुकाश्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् . नालीक नीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्याम् नमज्जनार्भीष्टतति प्रदाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. नृपालिमौलिव्रजरत्न कांति सरिद्विराजज्झषकन्यकाभ्याम् । नृपत्वदाभ्यां नतलोकपङ्कते: नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम् . १०४ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापान्धकारार्क परम्पराभ्यां तापत्रयाहीन्द्र खगेश्वराभ्याम् । जाड्याब्धि संशोषणवाडवाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्याम् रमाधवाध्रि स्थिर भक्तिदाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. स्वार्चापराणामखिलेष्टदाभ्यां स्वाहा सहायाक्ष धुरन्धराभ्यां स्वान्ताच्छ भावप्रद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. कामादि सर्प वज्र गारुडाभ्यां विवेक वैराग्य निधि प्रदाभ्याम् । बोध प्रदाम्यां द्रुतमोक्षदाभ्यां नमो नमः श्री गुरुपादुकाभ्याम्. १०५ For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोडशनाम सरस्वती स्तोत्र नमस्ते शारदे देवि !, काश्मीरपुरवासिनि । त्वामहं प्रार्थये मातः, विद्यादानं प्रदेहि मे प्रथमं भारतीनाम, द्वितीयं च सरस्वती तृतीयं शारदादेवी, चतुर्थं हंसगामिनी पंचमं विदुषां माता, षष्ठं वागीश्वरी तथा; कुमारी सप्तमं प्रोक्तं, अष्टमं ब्रह्मचारिणी नवमं त्रिपुरा देवी, दशमं ब्राह्मिणी तथा; एकादशं च ब्रह्माणि, द्वादशं ब्रह्मवादिनी वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशम्; पंचदशं श्रुतं देवी, षोडशं गौर्निगद्यते षोडशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् तस्य संतुष्यते देवी, शारदा वरदायिनी शारदासुप्रसादेन, काव्यंकुर्वन्ति मानवाः; तस्मानिश्चलभावेन, पूजनीया सरस्वती सरस्वती मया दृष्टा देवी कमललोचना; हंसयानसमारूढा, वीणापुस्तकधारिणी या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या श्वेतपद्मासना, १०६ For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या वीणावरदंडमंडितकरा, या शुभ्रवस्त्रावृता; या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभि, र्देवैः सदावन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती, निःशेषजाड्यापहा शुद्धां ब्रह्मविचारसापरमा माद्यांजगद्व्यापिनी, वीणापुस्तधारिणीमभयदां, जाड्यांधकारापहाम्; हस्तेरफाटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थितां, वन्दे तां परमेश्वरी भगवती, बुद्धिप्रदां शारदाम् १० सरस्वती स्तोत्र (सिद्धसारस्वताचार्य श्रीमद् बप्पभट्टिसूरि कृत) कलमरालविहङ्गमवाहना, सितदुकूलविभूषणलेपना; प्रणतभूमिरुहामृतसारिणी, प्रवरदेहविभाभरधारिणी अमृतपूर्णकमण्डलुहारिणी, त्रिदशदानवमानवसेविता: भगवती परमैव सरस्वती मम पुनातु सदा नयनाम्बुजम् २ जिनपतिप्रथिताखिलवाङ्मयी, गणधराननमण्डपनर्तकी; गुरुमुखाम्बुजखेलनहंसिका, विजयते जगति श्रुतदेवता ३ अमृतदीधितिबिम्बसमाननां, त्रिजगती जननिर्मितमाननाम्; नवरसामृतवीचिसरस्वती, प्रमुदितः प्रणमामि सरस्वतीम्४ १ पाचारणा १०७ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विततकेतकपत्रविलोचने! विहितसंसृतिदुष्कृतमोचने!; धवलपक्षविहङ्गम् लाञ्छिते; जय सरस्वति ! पूरितवाञ्छिते! भवदनुग्रहलेशतरङ्गिता-स्तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः; नृपसभासु यतः कमलाबला, कुचकलाललनानिवितन्वते 6 गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात्. कलितकोमलवाक्यसुधोर्मयः; चकितबालकुरङ्गविलोचना, जनमनांसि हरन्तितरां नराः७ करसरोरुहखेलनचञ्चला, तव विभाति वराजपमालिका; श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरोजज्वलतरङ्गकलाग्रहंसाग्रहा 8 द्विरदकेसरिमारिभुजङ्गमा-सहनतस्करराजरुजां भयम्; तव गुणावलिगानतरङ्गिणां, न भविनां भवति श्रुतदेवते!९ ॐ ह्रीं क्लीं ब्ली ततः श्रीं तदनु हस कल ह्रीं अथो ऐं नमोऽन्ते, लक्षं साक्षाजपेद्यः करसमविधिना सत्तपा ब्रह्माचरी; निर्यान्ती चन्द्रबिम्बात्कलयतिमनसा त्वां जगच्चन्द्रिकाभां, सोऽत्यर्थं वह्निकुण्डे विहितघृतहुतिः स्याद् दशांशेन 108 For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achar Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्वान् १० रे रे ! लक्षण-काव्य-नाटक-कथा चम्पू-समालोकने, क्वायासं वितनोषि बालिश ! मुधा किं नम्रवक्त्राम्बुजः!, भक्त्याऽऽराधय मंत्रराजमहसा-ऽऽनेनानिशं भारती येन त्वं कवितावितान-सविताऽद्वैतप्रबुद्धायसे ११ चञ्चच्चन्द्रमुखी प्रसिद्धमहिमा, स्वाच्छंद्यराज्यप्रदा ऽनायासेन सुरासुरेश्वरगणै-रभ्यर्चिता भक्तितः देवी संस्तुतवैभवा मलयजा लेपाङ्ग-रङ्ग-द्युतिः, सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्यसंजीवनी १२ स्तवनमेतदनेकगुणान्वितं, पठति यो भविकः प्रमनाः प्रगे; स सहसा मधुरैर्वचनामृतैर्नृपगणानयि रञ्जयति स्फुटम्१३ सरस्वती मंत्र ॐ ह्रीं वद वद वाग्वादिनि ! भगवति ! सरस्वति ! श्रुतदेवि ! मम जाड्यं हर हर श्रीभगवत्यैक ठः ठः ठः स्वाहा ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि ! सरस्वति ! मम जिह्वाग्रेवासं कुरु कुरु स्वाहा १०९ For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री त्रिभुवनस्वामिनी देवी स्तोत्रम् जय श्रीगणभृन्मन्त्रविद्यास्थानप्रतिष्ठिते। देवि त्रिभुवनस्वामिन्यनन्तमहिमद्युते. जिनराजपदाम्भोजविलासवरलानिभे। गौतमस्वामिपद्भक्ते सक्ते भक्तालिपालने. महापराक्रमोल्लासि सहस्रभुजराजिते । मानुषोत्तरशैलेन्द्रनिवासिनि जयोत्तमे. महादेवि सुरीवृन्दवन्द्यमानक्रमाम्बुजे । सुरासुरनराधीशप्रशस्यगुणवैभवे. शाकिनी-डाकिनी-भूत-प्रेतादिग्रहनाशिनि । सर्वद्वेषिगणोच्चाटन्यमेयबलशालिनि. नृतिर्यक्-देवताद्युत्थक्षुद्रोपद्रववारिणि । संस्मृतेरपि सर्वेष्टसुखकल्याणकारिणि. सर्वसूरिगुणस्तुत्ये द्विध (धा)वैरिजयश्रियम् । देहि मे शुद्धबोधिं च समाधानं च सर्वतः स्तूयमाने महानेकमुनिसुन्दरसंस्तवैः। स्तुते मयापि मेऽभीष्टं देहि त्रिभुवनेश्वरि, ।। इति श्री त्रिभुवन स्वामिनीदेवी स्तुतिः ।। ११० For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदेवी स्तोत्रम् सुरराजैः चतुःषष्ठ्या, स्तूयमानगुणप्रभे। जय श्रीदेवि विश्वैकमातराश्रितवत्सले. हिमवच्छिखरे पद्महदपद्मनिवासिनि । गौतमक्रमसेवैकरसिके विश्वमोहिनि. सूरिमन्त्रतृतीयोपविद्यापदनिवेशिते। सूरिराजहृदम्भोजविलासिनि चतुर्भुजे. श्रीचन्द्रप्रभभक्त्याऽतिपूते पद्माननेक्षणे। पद्महस्ते महारत्ननिधिराजिविराजिते. गजयानेऽप्सरः श्रेणिगीतनाट्यादिरञ्जिते । सदाशिरोधृतछत्रचलच्चामरभासिते. श्रीजैनशासनानन्तमहिमाम्बुधिचन्द्रिके। नानामन्त्रैः समाराध्ये सुरासुरनरर्षिभिः. विजया-जया-जयन्ती-नन्दा-भद्राद्युपासिते। स्मृतिस्तवनपूजाभिः सर्वविघ्नभयापहे. विश्वकल्पलते लक्ष्मि सर्वालङ्कृत्यलङ्कृते। शुद्धबोधिसमाधानसर्वसिद्धीः प्रयच्छ मे. स्तूयमाने महानेकमुनिसुन्दरसंस्तवैः ! १११ For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुते मयापि सर्वेष्टसिद्धिं श्रीदेवि देहि मे. ।। इति श्रीसूरिमन्त्रतृतीयपीठाधिष्ठात्र्याः श्री लक्ष्मीमहादेव्याः स्तुतिः ।। श्री चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्रम् जय श्रीमद्युगादीशपदपद्ममधुव्रते।। सुरेन्द्रादिसुरश्रेणिश्लाध्यसद्गुणविक्रमे. जय श्रीदेवदेवेन्द्रप्रशस्यगुणविक्रमे । श्रीयुगादिजगन्नाथक्रमाम्भोजमधुव्रते. चक्रवित्रासिताशेषरिपुचक्रपराक्रमे। चक्रेश्वरि सूरिवृन्दवन्धमानक्रमाम्बुजे. तीर्थप्रवृत्तिहेतुश्रीसूरिमन्त्रस्य पञ्चमे। मन्त्रराजाभिधे स्थाने सुप्रतिष्ठे महाबले. वरदेष्वरिपाशांकितापसव्यचतुर्भुजे। सत्त्वालादिनी हे चक्रांकुशसव्यचतुःशये, सुपर्णवाहने श्रीमद्गौतमोपास्तिलालसे। स्वर्णवर्णे सदोद्भासिसारालङ्कारराजिते. सूरिभिः सततं ध्येये तेषामिष्टप्रसाधिके। सर्वविघ्नावलीघातनिध्ने रक्षापरे सदा. ११२ For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्विधस्य संघस्य सर्वोपद्रवनाशिनि । समाधानं सुबोधिं च सदा देहीष्टदे मम. स्तूयमान महानेकमुनिसुन्दरसंस्तवैः। स्तुते मयाप्यभीष्टाप्ति चक्रेश्वरि विधेहि मे. |! इति चक्रेश्वरी देवी स्तोत्रम् ।। श्री पद्मावती स्तोत्रम् ॐ नमोऽनेकांत दुर्वारमतराद् वंश मानवे। जिनाय सकलाभिष्टदायिने, कामधेनवे. स्वस्ति श्री जिनराजमार्गकमले प्रद्योत सूर्यप्रभे। स्वस्ति श्री फणिनायिके!, सुरनराराध्ये जगन्मंगले। स्वस्ति श्री कनकाद्रिसन्निभ महासिंहासनालंकृते । विद्यानामधिदेवते!, प्रतिदिनं मां रक्ष पद्माम्बिके जय जय जगदम्बे! मत्तकुंभे। नितम्बे! हर हर दुरितं मे स्वस्ति मानाभिरामे। नय नय जिनमार्गे, दुष्टघोरोपसर्गे, भव भव शरणं मे, रक्ष मां देवि पने. ॐ ह्रीं बीजं प्रणवोपेतं, नमः स्वाहांतसंयुतम्। देदिप्यमानं हृत्पद्म, ध्यायेऽभिष्टफलप्रदम्. ११३ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तद बीजं देवताकारं, पंचानां कवचान्वितम् । गुरूपदेशतो ध्यायेत् पापदारिद्रभंजनम्. ॐ नमस्तेऽस्तु महादेवी कल्याणी भुवनेश्वरी । चंडी कात्यायनी गौरी, जिनधर्म परायणी. पंचब्रहामदाराध्या, पंचमंत्रोपदेशिनी । पंचव्रतगुणोपेता, पंचकल्याणदर्शनी. नम श्री स्तोतला नित्या, त्रिपुरा काम्यसाधिनी । मदोन्मालिनी विद्या महालक्ष्मी सरस्वती. सारस्वतगणाधीशा सर्वशास्त्रोपदेशिनी । सर्वेश्वरी महादुर्गा त्रिनेत्री फणिशेखरी. जटाबालेंदुमुगुटा कुर्कुटोरगवाहिनी । चतुर्मुखी महायशा, धनदेवी गुह्येश्वरी. नागराजमहापत्नी, नागिनी नागदेवता । नमः सिद्धांत संपन्ना द्वादशांग परायणी. चतुर्दश महाविद्या, अवधिज्ञानलोचना । वासंती वनदेवी च वनमाला महेश्वरी. महाघोरा महारौद्रा, वीतभीता Sभयंकरी । कंकाली कालरात्री च गंगा गांधर्वनायकी. · ११४ For Private And Personal Use Only ५ ६ ८ P १० ११ १२ १३ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यग् दर्शन संपन्ना, सम्यग् ज्ञानपरायणी । । सम्यग् चारित्र संपन्ना, नराणां उपकारिणी. अगण्य पुण्यसंपन्ना गणवी गणनायिकी । पातालवासिनी पद्मा, पद्मास्या पद्मलोचना. प्रज्ञप्ति रोहिणी जम्भा, स्तम्भिनी मोहिनी जया । योगिनी योगविज्ञानी, मृत्युदारिद्रयभंजिनी क्षमासंपन्नधरणी, सर्वपापनिवारणी । ज्वालामुखी महाज्वालामालिनी वज्रशृंखला. नागपाशघरा धौर्या श्रेणीताम्र फलान्विता । हस्ता प्रशस्ता विद्याऽऽर्या, हस्तिनी हस्तवाष्टगी. वसंतलक्ष्मी गीर्वाणी, शर्वाणी पद्मविष्टरा । बालार्कवर्णशंकाशा, शृंगाररसनायिकी. अनेकांतात्मतत्वज्ञा, चिंतितार्थफलप्रदा । चिंतामणिः कृपापूर्णा, पापारंभविमोचिनी कल्पवल्लीसमाकारा, कामधेनु शुभंकरी ! सधर्मवत्सला सर्वा, सद् धर्मोत्सववर्धिनी. सर्वपापोपशमनी, सर्वरोगनिवारिणी । गंभीरा मोहिनी सिद्धा, शेफालितरुवासिनी. ११५ For Private And Personal Use Only १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टोत्तरशतं स्तोत्ररत्ननामांक मालिकां । त्रिसंध्यं पठयेत् नित्यं, पापदारिद्यनाशनम्. दिनाष्टकं त्रिसन्ध्यं यो ध्यानपूजाजपान्वितम् । नामांकमालिकास्तोत्रं, पठते स वांछितं लभेत्. दिव्यं स्तोत्रमिदं महासुखकरं चारोग्य संपत्करं। भूत प्रेत पिशाच दुष्टहरणं पापौधसंहारकम् । अन्येनार्पित वांछितस्य निलयं सर्वापमृत्युंजयं । देव्या प्रीतिकरं कवित्वजनकं स्तोत्रं जगन्मंगलम्. २५ श्री अंबिकादेवी मंत्र युक्ताष्टक स्तोत्र ॐ महातीर्थ रैवतगिरि मंडने। जैनमार्गस्थिते विघ्नाभिखंडने।। नेमिनाथांघ्रिराजीव सेवापरे।। त्वं जय जगज्जंतु रक्षाकरे!. ह्रीं महामंत्ररूपे शिवे करे। देवि! वाचालं सत् किंकिणि नूपुरे।। तार हारावली राजितोरः स्थले। कर्णताटंक रूचि रम्य गंडस्थले ११६ For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंबिके! हाँ स्फूरद् बीजविधे स्वयं । ही समागच्छ मे देहि दुःखक्षयं ।। द्रां दुतं द्रावय द्राययोपद्रवं । द्रीं द्रुहि क्षुद्र सर्वेभा कंठीरवान्. क्ली प्रचंडे प्रसीद प्रसीदे क्षणे। ब्लु सदा सुप्रसन्ने विदेही रक्षणे ।। सः सत्ता । कल्याणमालोदये। ह्रः क्लीं नमस्तेऽम्बिके करस्थ पुत्रद्वये. इत्थमुद्भूत माहात्म्य मंत्रस्तुते । क्रौं समालीढ वर्तुल यंत्रस्थिते ।। ह्रीं युतांबे! मरुत् मंडलालंकृते। देहि मे दर्शनं ह्रीं त्रिरेखावृते. नाशिताशेषमिथ्यादृशां दुर्मदे । शांतिकीर्ति धृति स्वस्ति सिद्धि प्रदे।। दुष्टविद्यबालोच्छेदने प्रत्यले। नंद! नंदांबिके! निश्चले निर्मले. देवि! कौष्मांडि दिव्ये शुभे! भैरवे । दुःसहे! दुर्जये! तपाहेमच्छवे । ११७ For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाममंत्रेण नि शितोपद्रवे।। पाहि मां पाहि मां पीठस्थकंठीरवे. देवदेवीगणैः सेवितांघ्रिद्वये । जागरूकप्रभावैकलब्धिमये। पालिताशेष जिनेंद्र (जैनेंद्र) जिनालये। रक्ष मां रक्ष मां देवि! अंबालये. अंबिकाष्टकं चैतत् नित्यं पाठेन सौख्यदं अष्टोत्तरं मंत्रजापात् शान्तिसिद्धिकरं ध्रुवं. श्री संघाय श्रीगच्छाय कुटुम्बाय हितं श्रीदं अंबिकास्तोत्रमिदं धुर्यं प्रसन्नास्तु श्री अंबिका. गजेंदुखकर (२०१८) वर्ष अश्व युग कृष्ण चतुर्दशी शनी प्राचीनाल्लिखितं पुनः दर्शनविजयै दः अंबिकादेवी मूलमंत्र ॐ ह्रीं अंबिके? हाँ ह्रीं द्राँ ह्रीं क्लीं ब्लँः सः हा क्ली हौं नमः। ११८ For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंबिका स्तोत्र सूचना आ अंबिका स्तोत्र प्राचीन छे आमां शरुमा मूळ मंत्र पछी १ थी ४ श्लोकमां मंत्राक्षर गर्भित स्तोत्रने पांचमां श्लोकमां अंबिकादेवीनो यंत्र स्थापवानो विधि अने पछीना ६ थी ८ श्लोकमां अंबिका देवी माहात्म्य बताव्युं छे. संभव छे के कुंभारियानां अंबिकादेवीनी मूळ स्थापनामां अने गिरनारनी अंबिकादेवीनी मूळ गादीमां आ स्तोत्रना १ थी ५ श्लोकोमा बतावेल मंत्राक्षरो वाली यंत्र स्थापना होय। आ स्तोत्रनी मूळ नकल हती तेना आधारे मुनि महाराज साहेब दर्शनविजय महाराज साहेबे (त्रिपुटी) सं. २०१८ आसो वदी १४ शनिवारे अमदावादमां शुद्ध मंत्राक्षरो साथे शुद्ध स्तोत्रपाठ लख्यो छे. आ स्तोत्र हमेशां संध्या समये भणवू अथवा रात्रे भणदुं । मुळमंत्रनी हमेशां १ माळा फेरववी। आसो वदि १४ नी रात्रे वधु प्रमाणमा जाप करवो। बनी शके तो दर साल गिरनारतीर्थ के आबुतीर्थमां भगवान नेमिनाथ अने अंबिकानी यात्रा करवी. ११९ For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीग्रहशान्ति स्तोत्र जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरू-भाषितम्: ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि, भव्यानां सुखहेतवे जिनेन्द्रैः खेचरा ज्ञेयाः, पूजनीया विधिक्रमात; पुष्पैर्विलेपनैधूप, नैवेद्यैस्तुष्टिहेतवे . पद्मप्रभस्य मार्तंड-श्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च; वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, बुधस्याऽष्टौ जिनेश्वराः विमलानन्तधर्माऽराः, शान्तिः कुन्थुर्नमिस्तथा; वर्धमानो जिनेन्द्राणां, पादपो बुधो न्यसेत् ऋषभाजितसुपार्थ्या-श्चाभिनन्दनशीतलौ सुमतिः संभवस्वामी, श्रेयांसश्च बृहस्पतिः सुविधेः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्चरः, नेमिनाथस्य राहुः स्यात्, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः जन्मलग्ने च राशौ च, यदा पीडन्ति खेचराः; तदा संपूजयेद्धीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् पुष्पगंधादिभिधूपैर्नैवेद्यैः फलसंयुतैः, वर्णसदृशदानैश्च, वस्त्रैश्च दक्षिणान्वितैः (ॐ आदित्य सोम मंगल बुध गुरु शुक्र-शनैश्चरराहु केतु १२० For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सहिताः खेटा जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु.) जिनानामग्रतः स्थित्वा ग्रहाणां शान्तिहेतवेः 1 नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोत्तरं शतम् भद्रबाहुरुवाचैवं, पंचमः श्रुतकेवलीः विद्याप्रवादतः पूर्वाद् ग्रहशान्तिविधि श्रुतम् १. सूर्यपूजा - पद्मप्रभजिनेन्द्रस्य नामोच्चारेण भास्कर !; शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिं च रक्षां कुरु जयश्रियम् १० २. चंद्रपूजा - चंद्रप्रभजिनेन्द्रस्य नाम्ना तारागणाधिप प्रसन्नो भव शान्ति च रक्षां कुरु जयश्रियम् १ ३. भौमपूजा-सर्वदावासुपूज्यस्य नाम्ना शान्तिं जयश्रियम्; रक्षां कुरु धरासुत !; अशुभोपि शुभो भव ४. बुधपूजा - विमलानन्तधर्मारा, शान्तिः कुंथुर्नमिस्तथा; महावीरश्च तन्नाम्ना, शुभोभव सदा बुध ! ५. गुरुपूजा - ऋषभाजितसुपार्श्वाश्चाभिनंदनशीतलौ: सुमति संभवस्वामी, श्रेयांसश्च जिनोत्तमाः एतत्तीर्थकृतां नाम्ना पूज्या च शुभोभव !; शान्ति तुष्टिं च पुष्टिं च कुरु देवगणार्चित ! ६. शुक्रपूजा-पुष्पदन्तजिनेन्द्रस्य नाम्ना दैत्यगणार्चित !; २ १२१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir t For Private And Personal Use Only १ १ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ७. शनैश्चरपूजा-श्री-सुव्रतजिनेन्द्रस्य, नाम्ना सूर्यागसंभव!; प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ८. राहुपूजा-श्रीनेमिनाथतीर्थेश, नाम्ना त्वं सिंहिकासुत !; प्रसन्नो भव शान्तिं.च रक्षां कुरु जयस्त्रियम् १ ९. केतुपूजा-राहोः सप्तमराशिस्थ, कारणे दृश्यतेऽम्बरे; श्री मल्लीपार्श्वयो र्नाम्ना, केतो ! शान्तिं श्रियं कुरु १ इति भणित्वा स्वस्ववर्ण कुसुमांजलि प्रक्षेपेण जिनग्रहाणां पूजा कार्या, तेन सर्वपीडायाः शान्तिर्भवति. अथवा सर्वेषां ग्रहाणामेकदा पीडायामयं विधिः नवकोष्ठकमालेख्य, मंडलं च तुरस्रकम्, ग्रहास्तत्र प्रतिष्ठाप्याः वक्ष्यमाणः क्रमेणतु मध्ये हि भास्कर:स्थाप्यः, पूर्वदक्षिणतः शशी; दक्षिणस्यां धरासूनुर्बुधः पूर्वोत्तरेण च उत्तरस्यां सुराचार्यः, पूर्वस्यां भृगुनंदनः पश्चिमायां शनिः, स्थाप्यो राहुदक्षिणपश्चिमे पश्चिमोत्तरतः केतुरिति स्थाप्याः क्रमाद् ग्रहाः १२२ For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टस्थालेऽथवाग्नेय्यां, इशान्यां तु सदा बुधैः अथास्मिन् रिष्टग्रहे कस्य जिनस्य कयारीत्या पूजा-कार्या तदाडख्याति, १. रविपीडायां-रक्तपुष्पैः श्रीपद्मप्रभुपूजा कार्या, ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं, तस्य अष्टोत्तरशतजापः कार्यः २. चंद्रपीडायां-चंदनेन सेवन्ति पुष्पैः श्रीचन्द्रप्रभपूजा कार्या ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, तस्य अष्टोतरशतजापः कार्य: ३. भौमपीडायां-कुंकुमेन च रक्तपुष्पैः श्रीवासुपूज्यपूजा विधेया, ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं, तस्य अष्टोत्तरशतजापः कार्यः ४. बुधपीडायां-दुग्धस्नाननैवेद्यफलादितः श्रीशान्तिनाथपूजा कर्तव्या, ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, तस्य अष्टोत्तरशतजापःकार्यः | ५ गुरुपीडायां दधिभोजनेन जंबिरादिफलेन च चंदनादिविलेयनेन श्रीआदिनाथपूजा करणीया, ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, तस्य १०८ जापः कार्यः ६. शुक्रपीडायां-श्रीश्वेतपुष्पैश्चंदनादिना श्रीसुविधिनाथपूजा १२३ For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्या, चैत्ये घृतदानं कार्यं ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, तस्य १०८ जापः कार्यः ७. शनैश्चरपीडायां-नीलपुष्पैः श्रीमुनिसुव्रतपूजा कार्या, तैलस्नानदाने कर्तव्ये, ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं, तस्य १०८ जापा कार्य ८. राहुपीडायां-नीलयुष्यैः श्रीनेमिनाथपूजा, करणीया, ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं, तस्य १०८ जापः कार्यः ९. केतुपीडायां-दाडिमादिपुष्पैः श्रीपार्श्वनाथपूजा कार्या, ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं, तस्य १०८ जापः कार्य. सर्वग्रहपीडायां-श्रीसूर्यसोमांगारबुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहुकेतवः ! सर्वग्रहाः मम सानुग्रहाः भवन्तु स्वाहा, ॐ ह्रीं असिआउसाय नमः स्वाहा, तस्य १०८ जापः कार्यः, तेन नवग्रहपीडोपशान्तिः स्यात् । सर्वकार्यसिद्धिदायक श्रीशान्तिधारा पाठ: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं वं वं ममं हंहं संसं तंतं पंपं डंडं म्वी म्वी क्ष्वी क्ष्वी ट्राँ ट्राँ द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ॐ ह्रीं कौं मम पापं खण्डय खंडय हन हन दह दह पच पच पाचय पाचय सिद्धिं १२४ For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुरु कुरु. ॐ नमोर्ह हुँ म्वी क्ष्वी हं सं डं वं व्हः पः हः क्षाँ क्षी झू झै क्षौं क्षं क्षः ॐ हूँ हाँ हिं ह्रीं हुँ हूँ हैं हैं ह्रीं ह्रौं हूँ ह्रः असिआउसाय नमः मम पूजकस्य ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु स्वाहा. ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते डः डः डः मम श्रीरस्तु वृद्धिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु शान्तिरस्तु कान्तिरस्तु कल्याणमस्तु मम कार्यसिद्ध्यर्थं सर्वविघ्ननिवारणार्थ श्रीमद् भगवते सर्वो-तकृष्टत्रैलोक्यनाथार्चितपादपद्मअर्हत-परमेष्ठि-जिनेन्द्र-देवाधिदेवाय नमोनमः । मम श्री शान्तिदेव-पादपद्मप्रसादात् सधर्म-श्रीबलायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिरस्तु स्वस्तिरस्तु धनधान्यसमृद्धिरस्तु श्रीशांतिनाथो मां प्रति प्रसीदतु, श्री वीतरागदेवो मां प्रति प्रसीदतु, श्री जिनेन्द्रः परममांगल्यनामधेयो ममेहामुत्र च सिद्धिं तनोतु. ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथाय, तीर्थकराय रत्नत्रयरूपाय अनंतचतुष्टयसहिताय धरणेन्द्र-फणमौलिमण्डिताय समवसरण लक्ष्मीशोभिताय, १२५ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्र-धरणेन्द्रचक्रर्वत्यादिपूजितपादपद्माय केवलज्ञानलक्ष्मी-शोभिताय जिनराजमहादेवाष्टादशदोष-रहिताय षट्-चत्वारिंशद्गुणसंयुक्ताय परमगुरुपरमात्मने सिद्धाय बुद्धाय त्रैलोक्यपरमेश्वराय देवाय सर्वसत्त्वहितकराय धर्मचक्राधीश्वराय सर्वविद्यापरमेश्वराय त्रैलोक्यमोहनाय धरणेन्द्र-पद्मावतीसहिताय अतुलबलवीर्यपराक्रमाय अनेक दैत्य-दानवकोटिमुकुटघृष्टपादपीठाय ब्रह्माविष्णु-रुद्रनारद- खेचरपूजिताय सर्वभव्यजनानन्दकराय सर्वजीवविघ्न-निवारणसमर्थाय श्रीपार्श्वनाथदेवाधिदेवाय नमोऽस्तु ते श्रीजिनराजपूजनप्रसादाद् मम सेवकस्य सर्वदोषरोग-शोकभयपीडाविनाशनं कुरु कुरु सर्व शान्ति तुष्टिं पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा. ॐ नमो श्रीशान्तिदेवाय सर्वारिष्टशान्तिकराय हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रः असिआउसा मम सर्वविघ्नशान्तिं कुरु कुरु श्री संघस्य अमुकस्य. मम तुष्टिं पुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा श्री पार्श्वनाथ पूजनप्रासादाद् मम अशुभान् पापान् छिन्धि २, मम अशुभकर्मोपार्जितदुःखान् छिन्धि २, मम परदुष्टजनकृत मंत्र-तंत्र-दृष्टि-पुष्टि-छलच्छिद्रादि १२६ For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha दोषान् छिन्धि २, मम अग्नि-चोर-जल-सर्पव्याधि छिन्धि २, मारीकृतोपद्रवान् छिन्धि २, डाकिनी शाकिनी भूतभैरवादिकृतोपद्रवान् छिन्धि २, सर्वभैरवदेवदानववीरनरनार-सिंहयोगिनीकृतविघ्नान् छिन्धि २, अग्निकुमार कृतविघ्नान् छिन्धि २, उदधिकुमारसनत्कुमारकृतविघ्नान् छिन्धि २, दीपकुमारभयान् छिन्धि २, भिन्धि २, वातकुमारमेघकुमारकृतविघ्नान् छिन्धि २ भिन्धि २, इन्द्रादिदश दिक्पालदेवकृतविघ्नान् छिन्धि-२, जय-विजय-अपराजितमाणिभद्र पूर्णभद्रादिक्षेत्रपालकृतविघ्नान् छिन्धि..२ राक्षस वैताल दैत्य दानवयक्षादिकृतदोषान् छिन्धि २, नवग्रह कृतग्रामनगरपीडां छिन्धि २, सर्व अष्टकुल-नागजनित विषभयान् सर्वग्रामनगरदेशरोगान् छिन्धि...२ सर्वस्थावर जंगम वृश्चिकदृष्टिविषजाति-सप्पादिकृतविषदोषान छिन्धि २, सर्वसिंहाष्टापदव्याघ्र-व्यालवनचरजीवभयान् छिन्धि २ परशत्रुकृतमारणो-च्चाटनविद्वेषणमोहनवशीकरणादिदोषान् छिन्धि २ १२७ For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वगो-वृषभादि-तिर्यग्मारी छिन्धि २, सर्व-वृक्ष-फल-पुष्प-लता-मारी छिन्धिं २, ॐ नमो भगवति । चक्रेश्वरि ज्वालामालिनी पद्मावतीदेवी अस्मिन् जिनेन्द्रभुवने आगच्छ २, एहि २ तिष्ठ २ बलिं गृहाण २ मम धनधान्यसमृद्धिं कुरु २, सर्वभव्यजीवानन्दं कुरु २, सर्वदेश-ग्राम-पुर-मध्यक्षुद्रोपद्रव- सर्व-दोष-मृत्युपीडा विनाशनं कुरु..२।। सर्वपरचक्रभयनिवारणं कुरु .२. सर्वदेशग्रामपुरमध्यक्षुद्रोपद्रवसर्वदोषमृत्युपीडाविनाशनं कुरु २, सर्वदेशग्रामपुरमध्यसुभिक्षं कुरु २, सर्व विघ्नशांतिं कुरु २ स्वाहा ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं वृषभादिवर्धमानान्तचतुर्विंशतितीर्थंकरमहादेवाः प्रीयन्तां २ मम पापानि शाम्यन्तु, घोरोपसर्गाः सर्वविघ्नाः शाम्यन्तु. ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं रोहिण्यादिमहादेव्यः अत्र आगच्छन्तु २ सर्वदेवताः प्रीयन्तां २. ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं वर्धमानस्वामी-गौतमस्वामी-धर्मचक्रतीर्थाधिष्ठायिका देवदेव्यः, श्री पार्श्वपुरम्तीर्थाधिष्ठायिका दिव्यपद्मावतीदेवी वर्धमानविद्याधिष्ठायीन्यः जयाविजया १२८ For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयंताऽपराजितादेव्यः सूरिमंत्राधिष्ठायिकाः भगवती सरस्वती देवीत्रिभुवनुस्वामिनीदेवी - श्रीदेवी - यक्षराजगणीपिटक - चतुषष्ठीसुरेन्द्रा - षोडश-विद्यादेव्य चतुर्विंशतियक्षाः चतुर्विंशति यक्षिण्यः प्रियन्तां २, मम अज्ञान निवारणसारस्वत- रोगापहारिणीविषापहारिणीबंधमोक्षणी - श्रीलक्ष्मीसंपादनी - परमंत्रविद्याछेदिनी-दोषनाशिनी - अशिवोपशमनी-विद्यासिद्धिं कुर्वन्तु मम बाहुबलीविद्या- सौभाग्याविद्या- जयविजयादिस्वप्न- विद्यासिद्धिं कुरुत २. विजयाजया-जयंती नंदाभद्रादेव्यः सान्निध्यं कुर्वन्तु. २.. जैनशासन प्रत्यनीक निवारणं कुर्वन्तु २.. मम सर्वकार्यसिद्धिं कुर्वन्तु २ स्वाहा .. ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी ज्वालामालिनी पद्मावती महादेवी प्रीयन्तां २ ॐ आँ क्रौं ह्रीं श्रीं माणिभद्रादि यक्षकुमारदेवाः प्रीयन्ताम् २ सर्व जिनशासनरक्षकदेवाः प्रीयन्तां २ श्री आदित्य सोम मङ्गल बुध बृहस्पति शुक्र शनि राहु केतवः सर्वे नवग्रहाः प्रीयन्तां प्रसीदंतु देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शान्तिं भगवान् जिनेन्द्रः १२९ For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यत्सुखं त्रिषु लोकेषु, व्याधिव्यसनवर्जितम् । अभयं क्षेममारोग्यं स्वस्तिरस्तु च मे सदा यदर्थं क्रियते कर्म, सप्रीतिनित्यमुत्तमम् । शान्तिकं पौष्टिकं चैव, सर्वकार्येषु सिद्धिदम् शत्रुजय लघुकल्प अईमुत्तय केवलिणा, कहिअंसेत्तुंजतित्थमाहप्पं, नारयरिसिस्स पुरओ, तं निसुणह भावओ भविआ. १ सेत्तुंजे पुंडरिओ, सिद्धो मुणिकोडिपंचसंजुत्तो; चित्तस्स पुण्णिमाए, सो भण्णइ तेण पुंडरिओ. २ नमि विनमि रायाणो, सिद्धा कोडीहिंदोहिं साहूणं; तह दविडवालिखिल्ला, निव्वुआ दस य कोडीओ. ३ पज्जुन्न संबपमुहा, अद्भुट्ठाओ कुमारकोडीओ; तह पंडवा वि पंच य, सिद्धि गया नारयरिसी य. ४ थावच्चासुय सेलगा य, मुणिणो वि तह राममुणी; भरहो दसरहपुत्तो, सिद्धा वंदामि सेत्तुंजे. ५ अन्नेवि खवियमोहा, उसभाइ विसालवंससंभूआ; जे सिद्धा सेतुंजे, तं नमह मुणी असंखिज्जा. १३० For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नासजोयणाई, आसी सेत्तुंजवित्थरो मूले; दसजोयण सिहरतले, उच्चत्तं जोयणा अट्ठ. जं लहइ अन्नतित्थे, उग्गेण तवेण बंभचेरेण; तं लहइ पयत्तेणं, सेत्तुंजगिरिम्मि निवसंतो. जं कोडिए पुण्णं, कामिय आहारभोईया जे उ: तं लहइ तत्थ पुण्णं एगोववासेण सेत्तुंजे. जं किंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए; तं सबमेव दिलै, पुंडरिए वंदिए संते. पडिलाभंते संघ, दिट्टमदिढे य साहू सेत्तुंजे, कोडिगुणं च अदिढे, दिढे अ अणंतयं होइ. केवलनाणुप्पत्ती, निव्वाणं आसि जत्थ साहूणं; पुंडरिए वंदित्ता, सव्वे ते वंदिया तत्थ. अट्ठावयसम्मेए, पावा चंपाइ उज्जंतनगेय; वंदित्ता युण्णफलं, सयगुणं तंपि पुंडरिए. यूआकरणे पुण्णं, एगगुणं सयगुणं च पडिमाए; जिणभवणेण सहस्सं-णंतगुणं पालणे होइ. पडिमं चेइहरं वा. सित्तुंजगिरिस्स मत्थए कुणई; भुत्तूण भरहवासं, वसइ सग्गे निरुवसग्गे. १३१ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवकार पोरिसीए, पुरिमड्ढेगासणं च आयाम; पुंडरियं च सरंतो, फलकंखी कुणइ अभत्तटुं. छट्टमदसमदुवालसाणं, मासद्धमासखवणाणं; तिगरणसुद्धो लहई, सित्तुंजं संभरंतो अ. छट्टेणं भत्तेणं, अपाणेणं तु सत्त जत्ताई; जो कुणइ सेत्तुंजे, तइयभवे लहइ सो मुक्खं. अज्जवि दीसइ लोए, भत्तं चइऊण पुंडरियनगे; सग्गे सुहेण वच्चइ, सीलविहूणोवि होऊणं. छत्तं झयं पडागं, चामरभिंगारथालदाणेणं; विज्जाहरो अ हवइ, तह चक्की होइ रहदाणा. दस वीस तीस चत्ताल, पन्नासा पुष्फदामदाणेण; लहइ चउत्थछट्ठट्ठम-दसमदुवालसफलाइं. धूवे पक्खुववासो, मासक्खमणं कपूरधूवम्मि; कित्तिय मासक्खमणं, साहू पडिलाभिए लहइ. न वि तं सुवन्नभूमि-भूसणदाणेण अन्नतित्थेसु; जं पावइ पुण्णफलं. पूआन्हवणेण सित्तुंजे. कंतार चोर सावय-समुद्ददारिद्दरोगरिउरुद्दा; मुच्चंति अविग्घेणं, जे सेत्तुंजं धरन्ति मणे. १३२ For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सारावलीपयन्नग-गाहाओ सुअहरेण भणिआओ; जो पढाई गुणइ निसुणइ सो लहइ सित्तुंज्जत्तफलं . २५ पंच सूत्रस्य प्रथम सूत्र (चिरन्तनाचार्यविरचितं) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाप प्रतिघात - गुण बीजाधान णमो बीअरागाणं सव्वण्णूणं देविंदपूइयाणं जहट्ठिअवत्थुवाईणं तेलुक्कगुरूणं अरुहंताणं भगवंताणं. जे एवमाइक्खति इह खलु अणाई जीवे, अणाइजीवस्स भवे अणाइ-कम्मसंजोग - निवत्तिए, दुक्खरूवे, दुक्खफले, दुक्खाणुबंधे एअस्स णं वुच्छित्ती सुद्धधम्माओ, सुद्धधम्मसंपत्ती पावकम्मविगमाओ, पावकम्मविगमो तहाभवत्ताइभावओ. तस्स पुण विवागसाहणाणि १ चउसरणगमणं २ दुक्कडगरिहा ३ सुकडाण सेवणं, अओ कायव्वमिणं होउकामेणं सया सुप्पणिहाणं भुज्जो भुज्जो संकिलेसे तिकालमसंकिलेसे. जावज्जीवं मे भगवंतो परमतिलोगनाहा अणुत्तरपुण्णसंभारा खीणरागदोसमोहा, अचिंतचिंतामणी, भवजलहि १३३ For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोआ, एगंतसरणा अरहंता सरणं. तहा पहीणजरामरणा, अवेयकम्मकलंका, पणट्ठवाबाहा, केवलनाणदंसणा, सिद्धिपुरनिवासी, निरुवमसुहसंगया, सव्वहा कयकिच्चा, सिद्धा सरणं. तहा पसंतगंभीरासया, सावज्जजोगविरया, पंचविहायारजाणगा, परोवयारनिरया, पउमाइनिदंसणा, झाणज्झयणसंगया, विसुज्झमाणभावा साहू सरणं. तहा सुरासुरमनुअघूइओ, मोहतिमिरंसुमाली, रागद्दोस विसपरममंतो, हेऊ सयलकल्लाणाणं. कम्भवणविहावसू, सागो सिद्धभावरस, केवलिपण्णत्तो धम्मो जावज्जीवं मे भगवं सरणं, सरणमुवगओ अ एएसि गरिहामि दुक्कडं. जं णं अरहंतेसु वा सिद्धेसु वा आयरिएसु वा. · · उवज्झाएसु वा, साहूसु वा, साहुणीसु वा अन्नेसुवा, धम्मट्ठाणेसु माणणिज्जेसु पूअणिज्जेसु तहा, माईसु वा, पिइसु वा, बंधूसु वा, मित्तेसु वा उवयारीसु वा ओहेण वा जीवेसु, मग्गट्ठिएसु अमग्गट्ठिएसु मग्गसाहणेसु अमग्गसाहणेसु जं किंचि, वितहमायरिअं अणायरिअव्वं अणिच्छिअव्वं पावं पावाणुबंधि, सुहुमं वा, बायरं वा, १३४ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मणेण वा, वायाए वा, कायेण वा, कयं वा, काराविअं वा, अणुमोइअं वा. रागेण वा, दोसेण वा, मोहेण वा, इत्थ वा जम्मे जम्मंतरेसु वा, गरहिअमेअं दुक्कडमेअं उज्झिअव्वमेअं, विआणिअंमए, कल्लाणमित्तगुरुभगवंतवयणाओ, एवमेअं ति रोइअं, सद्धाए, अरिहंतसिद्धसमक्खं, गरिहामि अहमिणं दुक्कडमेअं उज्झियव्व-मेअं इत्थ मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं, मिच्छामि दुक्कडं. होउ मे एसा सम्म गरिहा, होउ मे अकरणनियमो, बहुमयं ममेअंति इच्छामो अणुसट्ठिं अरहंताणं भगवंताणं गुरूणं कल्लाणमित्ताणं ति. होउ मे एएहिं संजोगो, होउ मे एसा सुपत्थणा, होउ मे इत्थ बहुमाणो, होउ मे इओ मुक्खबीअंति. पत्तेसु एएसु अहं सेवारिहे सिआ, आणारिहे सिआ, पडिवत्तिजुत्ते सिआ, निरइआरपारगे सिआ. संविग्गो जहासत्तिए सेवेमि सुकडं, अणुमोएमि सव्वेसिं अरहताणं अणुट्ठाणं, सब्वेसिं सिद्धाणं सिद्धभावं, सलेसिं आयरियाणं आयारं, सव्वेसिं उवज्झायाणं सुत्तप्पयाणं, १३५ For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 7 सव्वेसि साहूणं साहुकिरिअं सव्वेसि सावगाणं मुक्खसाहणजोगे, सव्वेसि देवाणं, सव्वेसि जीवाणं होउकामाणं कल्लाणासयाणं मग्ग- साहणजोगे. होउ मे एसा अणुमोअणा, सम्मं विहिपुव्विआ, सम्म सुद्धासया, सम्मं पडिवत्तिरूवा सम्मं निरइयारा, परमगुण-जुत्तअरहंताइसामत्थओ, अचिन्तसत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो वीअरागा सव्वण्णू परमकल्लाणा, परमकल्लाणहेऊ सत्ताणं. मूढे अम्हि पावे, अणाइमोहवासिए, अणभिन्ने भावओ, हिआहिआणं अभिने सिआ, अहिअनिवित्ते सिआ, हिअपवित्ते सिआ, आराहगे सिआ, उचिअपडिवत्तीए सव्वसत्ताणं सहियं ति इच्छामि सुकडं इच्छामि सुकडं, इच्छामि सुकडं. एवमेअं सम्मं पढमाणस्स सुणमाणस्स अणुप्पेहमाणस्स सिढिलीभवंति परिहायंति खिज्जति असुहकम्माणुबंधा, निरणुबंधे वाऽसुहकम्मे भग्गसामत्थे सुहपरिणामेणं कडगबद्धे विअ विसे, अप्पफले सिआ, सुहावणिज्जे सिआ अपुणभावे सिआ. 1 १३६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहा आसगलिजंति परिपोसिज्जति निम्मविज्जंति सुहकम्माणुबंधा, साणुबंधं च सुहकम्मं, पगिट्ठ पगिट्ठभावज्जिअं नियमफलयं सुपउत्ते विअ महागए सुहफले सिआ, सुहपक्त्तगे सिआ, परमसुहसाहगे सिआ, अओ अपडिबंधमेअं असुह-भावनिरोहेणं सुहभावबीअंति, सुप्पणिहाणं सम्मं पढिअव्वं, सम्मं सोअव्वं, सम्म अणुप्पेहिअव्वं ति. नमो नमिअनमिआणं परमगुरुवीअरागाणं, नमो सेसनमुक्कारारिहाणं, जयउ सव्वण्णुसासणं, परमसंबोहीए सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, सुहिणो भवंतु जीवा, जीवा इति पावपडिघायगुणबीजाहाणसुत्तं समत्तं. १ पुण्यप्रकाशनुं स्तवन दुहा-सकलसिद्धिदायक सदा, चोवीशे जिनराय; सद्गुरु स्वामिनी सरस्वती, प्रेमे प्रणमुं पाय त्रिभुवनपति त्रिशलातणो, नंदन गुणगंभीर; शासननायक जग ज्यो, वर्धमान वडवीर एकदिन वीरजिणंदने, चरणे करी प्रणाम; १३७ For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , भविकजीवना हितभणी, पूछे गौतमस्वाम मुक्तिमारग आराधीए कहो किणपरे अरिहंत; सुधासरस तववचनरस भाखे श्रीभगवंत अतिचार आलोइए, व्रत धरीए गुरुसाख; जीव खमावो सयल जे, योनि चोराशीलाख विधिशुं वळी वोसिरावीए, पापस्थानक अढार; चारशरण नित्य अनुसरो, निंदो दुरितआचार शुभकरणी अनुमोदीए, भाव भलो मनआण; अणसण अवसर आदरी, नवपद जपो सुजाण शुभगति आराधनतणा, ए छे दश अधिकार; चित्त आणीने आदरो जेम पामो भवपार ढाळ पहेली · (कुमति - ए छिंडी कीहां राखी - ए देशी ) ज्ञान दरिसण चारित्र तप विरज, ए पांचे आचार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 १३८ For Private And Personal Use Only m ४ ५ ६ एह तणा इहभव परभवना आलोइए अतिचार रे.... प्राणी ज्ञान भणो गुणखाणी, वीरवदे एमवाणी रे गुरु ओळवीए नहिं गुरु विनये काळे धरी बहुमान, प्रा० १ ७ ८ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र अर्थ तदुभयकरी सुधां, भणीए वही उपधानरे प्रा० २ ज्ञानोपरगण पाटी पोथी ठवणी नवकारवाली; तेहतणी कीधी आशातना, ज्ञानभक्ति न संभाळी रे प्रा०३ इत्यादिक विपरीतपणाथी, ज्ञानविराध्यु जेह; आभव परभव वळी रे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा०४ समकित ल्यो शुद्धजाणी वीरवदे एमवाणी रे...प्रा० जिनवचने शंका नवि कीजे, नवि परमत अभिलाष; साधुतणी निंदा परिहरजो, फळ संदेह म राखरे प्रा० ५ मूढपणुंछंडो परशंसागुणवंतने आदरीए; साहम्मीने धर्मे करी स्थिरता, भक्ति प्रभावना करीएरे प्रा०६ संघ चैत्य प्रासादतणो जे, अवर्णवाद मन लेख्यो; द्रव्यदेवको जे विणसाडयो, विणसंता उवेख्योरे प्रा० ७ इत्यादिक विपरीतपणाथी, समकित खंडयु जेह; आभव परभव वळीरे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा० ८ चारित्र ल्यो चित्तआणी, वीरवदे एमवाणीरे...प्रा० १३९ For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पांचसमिति त्रणगुप्ति विराधी, आठे, प्रवचनमाय, साधुतणे धर्मे प्रमादे, अशुद्ध वचन मन कायरे प्रा० श्रावकधर्मे सामायिक, पोसहमां मनवाळी; जे जयणापूर्वक ए आठे प्रवनचन माय न पालीरे प्रा० १० इत्यादि विपरीतपणाथी, चारित्र डोहोल्युं जेह; आभव परभव वळीरे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा० ११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बारभेदे तप नवि कीधो, छते योगे निजशक्ते, धर्मे मनवचकायाविरज, नवि फोरवीयुं भगतेरे प्रा० १२ तप वीरज आचार एणी परे, विविध विराध्या जेह; आभव परभव वळी रे भवोभव मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा० १३ वळीय विशेष चारित्र केरा, अतिचार आलोइए, वीरजिणेसर वयण सुणीने, पाप मल सवि धोइएरे ढाळ बीजी (साहेलडीनी देशी ) पृथ्वी पाणी तेउ वाउ वनस्पति, १४० For Private And Personal Use Only ९ प्रा० १४ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए पांचे थावर कह्याए। करी करसण आरंभ, खेत्र जे खेडीयां, कुवा तलाव खणावीयाए घरआरंभ अनेक, टांका भोयरां, मेडीमाळ चणावीयांए; लीपणगुंपण काज, एणीपरे परे परे, पृथ्वीकाय विराधीआए धोयण नाहण पाणी, झीलण अपकाय, छोतीधोती करी दुहव्याए भाठीगर कुंभार, लोह सोवनगरा, भाडभुंजा लीहालागराए तापण शेकण, काज, वस्त्र, निखारण, रंगण रांधण रसवतीए: एणीपरे कर्मादान, परे परे केलवी, तेउ वाउ विराधीयाए वाडी वन आराम, वावी वनस्पति, पान फळ कुल चुंटीयांए, पोंक पापडी शाक, शेक्यां सुकव्यां, छेद्यां छुद्या आंथीयांए अळशीने एरंड, घाणी घालीने, १४१ For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घणा तिलादिक पीलीयाए, घाली कोलु मांहे, पीली सेलडी, कंदमूळ फळ वेचीयांए एम एकेद्रियजीव, हण्या हणावीया, हणतां जे अनुमोदियाए; आ भव परभव जेह, क्लीरे भवोभवे, ते मुज मिच्छामि दुक्कडं ए कृमी, करमीया कीडा गाडर गंडोला, इयल पोरा अलशीयांए: वाळा जळो चुडेल, विचलित रसतणा, वळी अथाणां प्रमुखनां ए एम बेइंद्रिय जीव, जे में दुहव्या, मुज ते मिच्छामि दुक्कडं ए, उधेही, जु लीख, मांकड़ मंकोडा चांचड कीडी कंथुआए गद्वैहिआं घीमेल, कानखजुरडा, गींगोडा धनेरीयांए एम तेइंद्रियजीव, जे में दुहव्या, तें मुज मिच्छा मि टुक्कडं ए मांखी मत्सर डांस, मसा पतंगीयां, १४२ For Private And Personal Use Only ६ ७ ८ ९ १० Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंसारी कोलियावडाए; ढींकण विंछु तीड, भमरा भमरीओ, कोता बग खडमांकडीए ११ एम चौरिंद्रियजीव जे में दुहव्या. ते मुज मिच्छा मि दुक्कडं ए: जळमां नाखी जाळ, जळचर दुहव्या, वनमा मृग संतापीयाए. पीड्या पंखीजीव, पाडी पासमां, पोपट घाल्या पांजरे ए; एम पंचेद्रियजीव, जे में दुहव्या ते मुज मिच्छा मि दुक्कडए ढाळ त्रीजी (वाणी वाणी हितकारीजी-ए देश) क्रोध लोभ भय हास्यथीजी, बोल्यां वचन असत्य, कूडकरी धन पारकांजी, लीधां जेह अदत्तरे; जिनजी, मिच्छा मि दुक्कडं आज, तुम साखे महाराजरे; जिनजी देइ सारूं काजरे, जिनजी मिच्छआ मि दुक्कडं आज १४३ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देव मनुष्य तिर्यंचनाजी, मैथुनसेव्यां जेह, विषयारसलंपटपणेजी, घjविडंब्यो देहरे जिनजी० २ परिग्रहनी ममता करीजी, भव भव मेली आथ, जे जीहांनी ते तिहां रहीजी, कोइ न आवे साथ रे जिनजी०३ रयणी भोजन जे कर्यां जी, कीधा भक्ष अभक्ष: रसना रसनी लालचेजी, पाप कर्यां प्रत्यक्षरे जिनजी० ४ व्रत लेइ विसारीयांजी, वळी भांग्या पच्चक्खाण: कपट हेतु किरिया करीजी, कीधां आप वखाण रे जिनजी०५ त्रण ढाल आठे दुहेजी, आलोयाअतिचार; शिवगति आराधनातणोजी, ए पहेलो अधिकार रे जिनजी०६ ढाळ चोथी (साहेलडीनी देशी) पंचमहाव्रत आदरो, साहेलडीरे, अथवा ल्यो व्रत बार तो; यथाशक्ति व्रतआदरी, सा० पाळो निरतिचार तो १ १४४ For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्रतलीधा संभारीए, सा० हैडे धरीए विचार तो; शिवगति आराधन तणो, सा० ए बीजो अधिकार तो २ जीव सर्वे खमावीए सा० योनि चोराशीलाख तो मनशुद्धे करि खांमणां सा० कोइ शुं रोष न राख तो ३ सर्वमित्रकरी चिंतवो सा० कोइ न जाणो शत्रु तो; रागद्वेष एम परिहरो, सा० कीजे जन्म पवित्र तो स्वामी संघ खमावीए, सा० जे उपनी अप्रीत तो; सज्जन कुटुंब करी खामणां सा० ए जिनशासनरीत तो५ खमीए ने खमावीए सा० एहज धर्मनो सार तो; शिवगतिआराधन तणो, सा० ए त्रींजोअधिकार तो मृषावाद हिंसा चोरी, सा० धन मूर्च्छा मैथुन तो; क्रोध मान माया, तृष्णा, सा० प्रेम द्वेष पैशुन्य तो निंदा कलह न कीजीए, सा० कूडां न दीजे आळ तो; रति अरति मिथ्या तजो सा० मायामोस जंजाळ तो त्रिविध त्रिविध वोसराविए, सा० पापस्थानअढार तो, शिवगति आराधन तणो, सा० ए चोथो अधिकार तो ढाळ पांचमी ९ ( हवे निसुणो इहां आवीया ए-ए देशी) १४५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ६ ८ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनम जरा मरणे करीए. आ संसार असार तो; कर्यां कर्म सहु अनुभवे ए, कोइ न राखणहार तो १ शरण एक अरिहंतनु ए, शरण सिद्धभगवंत तो; शरण धर्म श्रीजिननो ए, साधुशरण गुणवंततो २ अवर मोह सवि परिहरीए, चारशरण चित्तधार तो: शिवगति आराधनतणो ए. ए पांचमोअधिकार तो ३ आ भव परभव जे कर्यां ए, पापकर्म केइ लाख तो; आत्म साखे ते निंदीए ए, पडिक्कमिए गुरुसाख तो ४ मिथ्यामति वर्तावियाए, जे भाख्यां उत्सूत्र तो; कुमति कदाग्रहने विशे ए, जे उथायां सूत्र तो ५ घड्या घडाव्यां जे घणांए, घरंटी हळ हथीयार तो; भव भव मेली मूकीयां ए, करतां जीवसंहार तो . ६ पापकरीने पोषीया ए, जनम जनम परिवार तो; जनमांतर पोहोत्या पछी ए, कोइए न कीधी सार तो ७ आ भव पर भव जे कर्या ए, एम अधिकरण अनेक तो; त्रिविधे त्रिविधे वोसरावीए ए, आणी हृदयविवेक तो ८ दुष्कृतनिंदा एम करीए, पाप करो परिहार तो; शिवगति आराधनातणो ए, ए छट्ठो अधिकार तो ९ १४६ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar १ ढाळ छट्ठी (आधे तुं जोयने जीवडा-ए देशी) धनधन ते दिन माहरो, जीहां कीधो धर्म: दान शीयळ तप भावना, आळ्यां, दुष्कृतकर्म ध० शेवूजादिकतीर्थनी, जे कीधी जात्र; जुगते जिनवर पूजीया, वळी पोष्यां पात्र ध० पुस्तक ज्ञान लखावीयां, जिणहर जिनचैत्य; संघचतुर्विध साचव्या, ए साते क्षेत्र पडिक्कमणां सुपरे कर्या, अनुकंपादान, साधु सूरि उवज्झायने, दीधा बहुमान. ध०धर्मकाज अनुमोदिए, एम वारोवार; शिवगति आराधनातणो, ए सातमो अधिकार ध० भावभलो मन आणीए, चित्त आणी ठाम; समताभावे भाविए ए आतमराम ध० सुख दुःख कारण जीवने, कोइ अवर न होय; कर्म आप जे आचर्या, भोगवीए सोय धसमता विण जे अनुसरे, प्राणी पुन्यनुं काम; छार उपर ते लींपणुं झांखर चित्राम ध० १४७ For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ भाव भली परे भावीए, ए धर्मनो सार; शिवगति आराधनतणो, ए आठमो अधिकार ध० ढाळ ७ मी (रैवतगिरि हुआं, प्रभुना त्रणकल्याणक-ए देशी) हवे अवसर जाणी, करी संलेखन सार; अणसणआदरीये, पच्चक्खी चारे आहार; ललुता सवि मूकी, छांडी ममता अंग; ए आतम खेले, समता ज्ञान तरंग गति चारे कीधां, आहार अनंत निःशंक, पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लालचीयो रंक: दुलहो ए वळी, अणसणनो परिणाम, एहथी पामीजे, शिवपद सुरपद ठाम धन धन्ना शालिभद्र, खंधो मेघ कुमार अणसण आराधी, पाम्या भवनो पार; शिवमंदिर जाशे करी एक अवतार, आराधनकेरो, ए नवमो अधिकार दशमे अधिकारे, महामंत्रनवकार, मनथी नविभूको, शिवसुखफल सहकार; १४८ For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए जपतां जाये, दुर्गति दोष विकार, सुपरे ए समरो, चौद पुरवनोसार जनमांतरजाता, जो पामे नवकार, तो पातिकगाळी, पामे सुरअवतार; ए नवपद सरीखो, मंत्र न कोइ सार, आ भवे ने परभवे, सुखसंपत्ति दातार जुओ भीलभीलडी, राजाराणी थाय, नवपदमहिमाथी, राजसिंहमहाराय, राणीरत्नवती बेहु पाम्यां छे सुरभोग, एकभवपछीलेशे, शिववधूसंजोग श्रीमतीने ए वळी, मंत्रफळ्यो तत्काल, फणीधर फीटीने, प्रगट थइ फुलमाळ, शिवकुमरे जोगी, सोवनपुरिसो कीध, एम एणे मंत्रे, काज घणांना सिद्ध ए दशअधिकारे, वीरजिणेसर भाख्यो, आराधनकेरो विधि जेणे चित्तमांहि राख्यो; तेणे पापपखाळी, भवभय दूरे नाख्यो, जिन विनयकरंतां सुमति अमृतरस चाख्यो १४९ For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ढाळ ८ मी ( नमो भवि भावशुं ए-ए देशी ) सिद्धारथराय कुळतिलोए, त्रिशलामात मल्हार तो; अवनीतळे तमे अवतर्या ए. करवा अम उपगार. ज्यो जिनवीरजीए में अपराधकर्या घणा ए, कहेता न लहुं पार तो; तुमचरणे आव्या भणीए, जो तारे तो तार ज्यो० आशकरीने आवीयो ए, तुमचरणे महाराज तो; आव्याने उवेखशोए तो केमरहेशे लाज. ज्यो० करम अलुंजण आकरां ए, जन्म मरणजंजाळ तो; हुं छं एहथी उभग्यो ए, छोडाव देव दयाल ज्यो० आज मनोरथ मुज फळ्या ए. नाठां दुःखदंदोल तो; तुठ्यो जिन चोवीशमो ए प्रकट्यां पुन्यकल्लोल, ज्यो० ५ भव भवे विनय तुमारडो ए, भाव भक्ति तुम पाय तो; देव दयाकरी दीजीए ए, बोधि बीज सुपसाय, ज्यो० ६ १५० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कळश २ इहतरणतारण, सुगतिकारण, दुःखनिवारण, जगजयो: श्रीवीरजिनवरचरणथुणतां, अधिक मन उलट थयो श्रीविजय देव सूरींद पट्टधर तीरथजंगम एणी जगे; तपगच्छपति श्री विजयप्रभसूरि सूरितेजे झगमगे श्रीहीरविजयसूरिशिष्य वाचक, श्रीकीर्तिविजयसुरगुरु समो; तस शिष्य वाचकविनयविजये, थुण्यो जिन चोवीशमो ३ सयसत्तर सवंत ओगणत्रीशे, रही रांदेरचोमासए; विजयदशमी विजयकारण, कीयो गुण अभ्यास ए नरभवआराधन सिद्धिसाधन, सुकृत लीलविलास ए: निर्जराहेते स्तवनरचीयुं, नामे पुन्यप्रकाश ए पद्मावती आराधना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवे राणी पद्मावती, जीवराशिखमावे: जाणुपणुं जुगते भलुं, इणवेळा आवे ते मुज मिच्छामिदुक्कडं, अरिहंतनी साख; जे में जिवविराधीया, चउराशी लाख, ते मुज. सात लाख पृथिवीतणा, साते अप्काय; १५१ For Private And Personal Use Only १ ५ १ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातलाख तेउकायना, साते वळी वाय. दश प्रत्येक वनस्पति, चउदहसाधारण, बिति चउरिंदी जीवना, बे बे लाख विचार देवता तिर्यंच नारकी, चार चार प्रकाशी; चउदहलाखमनुष्यना, ए लाख चोराशी. इण भव परभवे सेवियां, जे पाप अढार, त्रिविध त्रिविध करी परिहरु, दुर्गतिनादातार. हिंसाकीधी जीवनी, बोल्या मृषावाद, दोष अदत्तादानना मैथुन उन्माद परिग्रह मेल्यो कारमो, कीधो क्रोध विशेष: मान माया लोभ में कीया, वळी राग ने द्वेष. कलह करी जीव दूहव्या, दीधां कूडां कलंक; निंदा कीधी पारकी, रति अरति निःशंक. चाडीकीधी चोतरे, कीधो थापण मोसो कुगुरु कुदेव कुधर्मनो, भलोआण्यो भरोसो खाटकीनेभवे में कीया, जीव नानाविध घात; चाडीमारभवे चरकलां मार्यां दिन रात. काजी मुल्लांने भवे, पढी मंत्रकठोर; १५२ For Private And Personal Use Only ते० ३ ते० ४ ते० ५ ते० ६ ले० ७ ते० ८ ते० ९ ते० १० ते० ११ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते० १२ ते० १३ ते० १४ ते० १५ ते० १६ जीव अनेक झब्बे कीया; कीधां पापअघोर. माछीने भवे माछलां झाल्यां जळवास; धीवर भील कोळी भवे, मृग पाड्या पास. कोटवाळनेभव में कीया, आकरा करदंड, बंदीवान मराविया, कोरडा छडीदंड. परमाधामीने भवे, दीधां नारकी दुःख; छेदनभेदन वेदना, ताडन अतितिक्ख कुंभारने भवे में कीया, नीभाड पचाव्या; तेलीभवे तिलपीलिया, पापे पिंड भराव्या. हालीभवे हळ खेडियां, फाड्यां पृथ्वी पेट; सूड निदान घणा कीयां, दीधा बाळक चपेट. माळीने भवे रोपियां नानाविध वृक्ष; मूळ पत्र फळ फूलना, लाग्यां पाप ते लक्ष. अधोवाइआने भवे, भर्या अधिकाभार; पोठी पूंठे कीडापड्या, दया नाणी लगार. छीपानेभवे छेतर्या, कीधा रंगण पास; अग्निआरंभ कीधा घणा, धातुवाद अभ्यास शूरपणे रण झूझतां, मार्या माणस वृंद; १५३ ते० १८ ते० १९ ते० २० For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ मदिरा मांस माखण भख्या, खांधा मूळने कंद ते० २१ खाण खणावी धातुनी, पाणी उलेच्या; आरंभ कीधा अति घणा, पोते पापज संच्यां ते० २२ कर्मअंगार कीयां वळी, धरमे दवदीधा; सम खाधा वीतरागना, कूडाक्रोशज कीधां. ते० २३ बील्लीभवे उंदर लीया, गीरोली हत्यारी; मूढ गमारतणे भवे, में जू-लीख मारी. ते० २४ भाडभुजातणे भवे, एकेंद्रियजीव; ज्वारी चणागहुं शेकिया, पाडता रीव. ते० २५ खांडण पीसण गारना, आरंभ अनेक; रांधण इंधण अग्निनां, कीधां पाप उद्रेक ते० २६ विकथा चारकीधी वळी, सेव्या पांच प्रमाद; इष्टवियोग पाड्या घणा, कीया रूदन विषवाद. ते० साधु अने श्रावकतणां, व्रतलइने भाग्या; मूळ अने उत्तरतणां, मुज दूषणलाग्यां ते० २८ साप वींछी सिंह चीवरा, शुकरा ने समळी, हिंसकजीवतणेभवे, हिंसाकीधी सबळी. ते० २९ सूवावडी दूषणघणां, वळी गर्भ गळाव्या, १५४ For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2 www.kobatirth.org · जीवाणी ढोळ्या घणां शीळव्रत भंजाव्यां. भवअनंत भमतां थकां कीधां देहसंबंध: त्रिविध त्रिविध करी वोसिरूं, तीणशुं प्रतिबंध. भवअनंत भमतां थकां कीधा परिग्रह संबंध: त्रिविध त्रिविध करी वोसिरू, तिणशुं प्रतिबंध. भवअनंत भमतां थकां कीधां कुटुंबसंबंध; त्रिविध त्रिविध करी वोसिरूं, तीणशुं प्रतिबंध इणि परे इहभव परभवे, कीधां पाप अखत्र; त्रिविध त्रिविध करी वोसिरूं करूं जन्मपवित्र ते० ३४ · एणविधे ए आराधना, भवि करशे जेह समय सुंदरकहे पापथी वळी छूटशे तेह राग वेराडी जे सुणे, एह त्रीजी ढाळ, समयसुंदर कहे पापथी, छुटे ततकाळ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ ते० ३० For Private And Personal Use Only ते० ३१ ते० ३२ ते० ३३ ते० ३५ चार शरण मुजने चारणशरणां होजो, अरिहंत सिद्ध सुसाधु जी; केवळीधर्म प्रकाशीओ, रत्न अमूलक लाधुंजी चिहुंगतितणां दुःखछेदवा, समरथ शरणां एहोजी; ते० ३६ १. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्व मुनिवर जे हुआ, तेणे कीधां शरणा एहोजी संसारमाहिं जीवने, समरथ शरणां चारोजी गणिसमयसुंदर इम कहे, कल्याणमंगल कारोजी ३ लाखचोराशी जीवखमावीए, मनधरी परमविवेकोजी; मिच्छामिदुक्कडं दीजीए, जिनवचने लहीए टेकोजी १ सात लाख भू दग तेउ वाउना, दश चौदे वननाभेदोजी; षट् विगल सुरतिरिनारिकी, चउ चउ चौदे नरना भेदोजीर मुज वैरनहि केहशुं, सर्वशुं मैत्रीभावोजी गणिसमयसुंदर इम कहे पामीए पुन्य प्रभावोजी ३ पाप अढारे जीव ! परिहरो, अरिहंत सिद्धनी साखेजी; आलोयां पाप छूटीए भगवंत इणीपरे भाखेजी १ आश्रय कषाय दोयबांधवा, वळी कलह अभ्याख्यानोजी; रति अरति पैशुन निंदना; मायामोस मिथ्यात्वजी २ मन वच कायाए जे कीया, मिच्छा मि दुक्कडं तेहोजी; गणिसमयसुंदर इम कहे जैनधर्मनो मर्म एहोजी ३ धनधन तेदिन मुज कदिहोशे, हुं पामीश संयम सुधोजी; पूर्व ऋषिपंथेचालशुं, गुरु वचने प्रतिबुद्धोजी १ अंतप्रान्तभिक्षागौचरी रणवने काउस्सग्ग ले| जी; १५६ For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समता शत्रुमित्रभावशू, संवेगसुधो धरशुंजी संसारना संकटथकी छूटीश जिनवचने अवधारोजी; धन्य समयसुंदर ते घडी, हुं पामीश भवनोपारोजी ३ ___ वास्तुक पूजा विधि (आचार्य महाराजश्री बुद्धिसागरसूरिजी कृत) हरेक वस्तु पांच पांच लेनी. अष्टप्रकारी पूजा का सामान लेना, आठ स्नात्रिया करना. एक कलश ग्रहण करे, दूसरा केशर की वाटकी ग्रहण करे, तीसरा फूल का हार वा छूटा फूल ग्रहण करे, चौथा धूप, पांचमा दीपक, छट्ठा रकाबी में अक्षत का स्वस्तिक ले करके खडे रहे, सातमे नैवेद्य ले करके खडे रहे, और आठवा फल ले करके खडे रहे, हरेक पूजा में अभिषेक पूजा करे. ५ कलश. ५ केशर वाटकी, ५ फूल का हार, १ धूपधाणं, ५ दीपक. ५ अक्षत का साथीआ, ५ नैवेद्य, ५ फल. वास्तुक पूजा जिस घर करे और जो प्रवेश करे वो भणावे, उसके घर ए पूजा भणावता आनंद मंगल हो, रोग, शोक-वहेम सर्वे नाश हो, कुंभ की स्थापना करके १५७ For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपक करे, नवस्मरण भणवां, शक्ति हो तो स्नात्रिया को खिलावे, कन्याओ इंद्राणि हो तो करनी. प्रथम पूजा दुहा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, त्रेवीशमा जिनराय, धरणेंद्र पद्मावती, पूजे जेहना पाय. पार्श्व यक्ष जस शोभतो, सेवा करे चित्त लाय, पुरिसादाणी पार्श्वनाथ, ध्यातां शिवसुख थाय. वास्तुक पूजा घर तणी, करतां सुख विशाल, ऋद्धि वृद्धि सुख संपजे, होवे मंगलमाळ. पंच पंच वस्तु थकी, शंखेश्वर प्रभु पास, पूजो भवि भावे करी, सफळ होवे मन आश. चिंतामणी सम पार्श्वनाथ पार्श्वमणि सम नाम, ध्यातां मातां प्राणीनां, सीझे सघळा काम. (मल्लिजिन वंदीए भवि भावे रे-ए देशी) शंखेश्वर पास प्रभु नित्य गावो रे, शाश्वत शिवकमळा पावो. शंखेश्वर० काशीदेश वाणारसी गाम रे, १५८ For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विश्वसेन राजा अभिराम रे, वामा माता सुख विश्राम. प्रभु माता कूखे जब आया रे, इंद्र चोसठ सूरगिरि लाया रे, १५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरासुर मनमां हरखाया. शंखेश्वर० २ एक लाखने साठ हजार रे, आठ जाति कळश मनोहार रे, प्रभु न्हवण करे जयकार. शंखेश्वर० ३ इंद्राणीयो हसती गाती रे, जिनदर्शन करी हरखाती रे, नाटक करी मनमां माती. शंखेश्वर० ४ एवा पार्श्वप्रभु घर लावो रे, शुभसिंहासन पधरावो रे, प्रभु न्हवण करी सुख पावो, शंखेश्वर० ५ रोग शोग सहु दूर नासे रे, प्रभुश्रद्धा मनमां वासे रे, शाश्वतपद बुद्धि भासे. शंखेश्वर० ६ मंत्र - ॐ नमो भगवते श्री शंखेश्वरनाथाय ह्रीं धरणेंद्रपद्मावतीसहिताय जन्मजरामृत्यु निवारणाय क्षुद्रोपद्रवशमनाय जलं, चंदनं, पुष्पं धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ।। For Private And Personal Use Only शंखेश्वर० १ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीय पूजा दुहा स्नात्र भणावी पार्श्वनु, पूजा कीजे सार, पूजक पूज्यनी पूजना, समजीजे सुखकार. बेउ पासे वींझीए, चामर चारु उमंग, दर्पण प्रभु आगळ धरो, होवे जय जयरंग. (सुतारीना बेटा तुने विनवू रे लोल-ए देशी) प्रभु पार्श्व जिनेश्वर गाईए रे लाल, श्री शंखेश्वर प्रभु नाम जो, तुज नामथी नवनिधि संपजे रे लोल, मन वंछित सीझे काम जो, नाम रूईं शंखेश्वर पासर्नु लोल, मिथ्यात्वदशा दूर थाय जो, शुद्ध श्रद्धा हृदय प्रगटाय जो. नाम रूकुं० १ पूजा वास्तुक दोय प्रकारनी रे लोल, शुभ अशुभ भेदे कहाय जो, द्रव्य वास्तुक पूजाना ए कह्या रे लोल, तेह हरखे कहुं चित्त लाय जो. नाम०२ १६० For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घर महेल करावी तेडिये रे लोल, ब्राह्मण होमादिक वास जो, वेद गायत्री मंत्र भणावीए रे लोल, ब्राह्मण जमाडीए खास जो. नाम०३ देवदेवी ब्रह्मादिक पूजीये रे लोल, पाडा बुद्धिए कोळु कपाय जो, मरी नरकतणां दुःख भोगवे रे लोल, मिथ्या वास्तुक पूजामां पाप जो. नाम०४ फल श्रीफल प्रमुखने होमतां रे लोल, पंचेद्रिय हिंसा थाय जो, अपमंगल एह खरूं कर्खा रे लोल, अशुभ वास्तुक पूजा कहाय जो. नाम० ५ शुभ वास्तुक पूजा वर्णदुं रे लोल, जेनुं रूडु विशाळ स्वरूप जो. बुद्धि शाश्वत संपदा पामीए रे लोल, पास नाम ते मंगलरूप जो. नाम०६ मंत्र - ॐ नमो भ० श्री जल० चंदनं० यजामहे स्वाहा।। १६१ For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृतीय पूजा दुहा शुभ वास्तुक पूजा कहुं, आणी अतिशय भाव, स्वर्गादिक सुख पामीए, होवे शिवसुख दाव. देव ते अरिहंत जाणीए, दोष रहित अढार, गुरु सुसाधु महाव्रती, पाळे पंचाचार. जिनवर भाषित सत्य छ, जैन धर्म जग जोय, सुखदुःख होवे कर्मथी, अवर न कर्ता कोय. (अनिहारे न्हवण करो जिनराजने रे-ए देशी) अनिहां रे वास्तुक पूजा शुभ कीजीए रे, तजी अवर देवनी आश, सुपात्रे दान दीजीए रे, सूत्र श्रवणरुचि अभिलाष. श्रीशंखेश्वर प्रभु पासजी रे. १ भवि भावे द्रव्यार्थिक नये करी रे, शाश्वत छे लोकालोक, कर्ता तेहनो को नहि रे, किम कर्ता मानिये फोक. __ श्रीशंखे० २ उर्ध्व अधो अने तिर्छालोकनी रे, स्थिति छ अनादि अनंत, कर्ता तेहनो को नहि रे, ईभ भाखे श्री भगवंत. १६२ For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीशंखे०३ नवतत्त्व षड्द्रव्य छे नित्य शाश्वतां रे, द्रव्य गुण पर्याय रूप, दो भेदे जीव दाखियो रे, तस लक्षण छे चिद्रुप. श्रीशंखे० ४ परिणामी पुद्गल जीव दो जाणीए रे, अनादि संबंध विचार, कर्ता कर्मनो आतमा रे, तेम भोक्ता हृदये धार.श्रीशंखे०५ शुभाशुभ कर्म ग्रही भोगी आतमा रे, वेदे शाता अशाता दोय, देव मनुज नारक तिरि रे, चउगतिमा भटके जोय. श्रीशंखे०६ जीवे कीधां पुण्य पाप ते भोगवे रे, पर पुद्गल संगे खास, राच्यो माच्यो पुद्गलमां वस्यो रे, बन्यो पुद्गलनो जीव दास. श्रीशंखे०७ प्रभु पूजा करतां प्राणिया सुख लहे रे नासे कर्माष्टक पास, सामिवच्छल नवकारशी रे, हेतु सुखनां दीसे खास. श्रीशंखे० ८ शुभ भावे नैवेद्य थाळमां मूकीने रे, प्रभु आगळ धरीए चंग, रत्नत्रयी कमळा वरे रे, बुद्धि शाश्वत पदरंग. श्रीशंखे० ९ मंत्र - ॐ नमो भ० श्री० पार्श्वनाथाय जलं० चंदनं० १६३ For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यजामहे स्वाहा।। चतुर्थ पूजा दुहा शरीर पुद्गलमां वस्यो, पुद्गल मानी गेह, परभव साथ न आवतुं, क्षणमां नाशी तेह. देह अनंता छंडिया, भटकी आ संसार, लाख चोराशी हुं भम्यो, तार तार प्रभु तार. (सांभळजो मुनि संयम रागे, उपशम श्रेणी चढीआ रे-ए देशी) श्री शंखेश्वर पार्श्व प्रभु नित्य, मन मंदिरमां धरीए रे, ध्यावी गावी पाप गुमावी, श्रद्धा समकित वरीए रे. श्री शंखे०१ यादवलोकनी जरा निवारी, षड्दर्शन विख्यात रे, वामानंदन जगजनवंदन, नमतां पावन गात्र रे. श्री शंखे०२ पर परिणतिथी अष्टकर्म ग्रही, परभोगी परकर्ता रे, अतुलबळी कर्म पिंजरमां, बसियो निज गुण धर्ता रे. श्री शंखे० ३ १६४ For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औदारिक वैक्रिय आहारक, तैजस कार्मण पंच रे, पंच शरीर घर मानी बसियो, करतो कर्मनो संच रे. __ श्री शंखे०४ सुरापानी बकतो फरे वळी, धत्तुर भक्षक जेम रे, अवळी परिणतिथी आ आतम, स्वरूप भूल्यो तेम रे. श्री शंखे० ५ भवमां भमतां पुण्योदयथी, सद्गुरु सहेजे मळीया रे, बुद्धि शिव सुख पामे अविचळ, सकल मनोरथ फळिया __ श्री शंखे०६ मंत्र • ॐ नमो भगवते श्री जलं० चंदनं० यजामहे स्वाहा ।। पंचम पूजा दुहा सद्गुरू पंच महाव्रती, पंच महाव्रत धार, भावथी वास्तुक पूजना, कहेवे अति सुखकार. १ पुद्गल द्रव्यथी भिन्न छे, अचल अमल गुणवान्, शुद्ध बुद्ध परमातमा, चिदानंद भगवान. घर आतमनुं ओळख्युं, जेनो रूडो महेल, वास खरो मुज एहमां, वसतां शिवसुख सहेल. १६५ For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (नमो रे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर-ए देशी) वास्तुक भाव पूजा निज भावे, चेतननी शुद्ध दाखी रे, वास बसे चेतन जे मध्ये, तेहनी पूजा भाखी रे. श्री शंखे०१ असंख्य प्रदेश आतमना जाणो, शुद्ध वास जीव जोय रे, गुणपर्याय स्वभाव अनंता, एकेक प्रदेशे जोय रे. श्री शंखे०२ ज्ञाता ज्ञेय ने ज्ञान त्रिभंगी, आतममांही समाय रे, अस्ति नास्ति समकाले साधे, एवो आतमराय रे. श्री शंखे०३ धर्म ने पुद्गलाकाश, तेह तणा प्रदेश रे, गुणपर्याय धर्म तस केरा, नहि एक जीव गुण लेश रे. __ श्री शंखे०४ शुद्ध बुद्ध परमात्म स्वरूप, अव्याबाध अभंग रे, अविनाशी अकलंक अभोगी, भोगी अयोगी असंग रे. श्री शंखे०५ नित्यानित्य ने एकानेक, सद्गतभाव विचार रे, वक्तव्यावक्तव्य ए आठ, पक्षतणो आधार रे. श्री शंखे० ६ १६६ For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्धस्वरूपी ज्ञानानंदी, चेतन वास कहाय रे, सुख अनंतुं चेतन घरमां, वचन अगोचर थाय रे. श्री शंखे०७ आत्मा थकी छूटे जब कर्म, तब पामे शिव स्थान रे, शाश्वत अमल अचलपद भावे, वास्तुकपूजा मान रे. श्री शंखे०८ एणीपेरे वास्तुक पूजा करशे, ते तरशे संसार रे, बुद्धिसागर क्षायिक समकित, पामी लहे भवपार रे. श्री शंखे० ९ अथ कलश गाई गाई रे ए वास्तुक पूजा गाई, अचल अमल अभंग महोदय, शुद्ध सत्ता निज ध्यायी, समकितदायक हेते पूजा, करतां हर्ष वधाई रे. ए वास्तुक पूजा गाई. १ मिथ्या परिणति नाशक तारक, आत्म स्वभावे सुहाई, परमातमपद प्राप्तिकारक, सुखकर समकित दाई रे. ए वास्तुक०२ धरणेद्र पद्मावती देवी, जेहनी सारे सेव, १६७ For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाइ, सुरपति यति तति भूपति पूजित, श्री शंखेश्वर देव रे. ए वास्तुक० ३ तास पसाये पूजा रचिये, हर्ष अति दिल लाई, जयजय मंगलमाळा कमळा, आतममां प्रगटाई रे, ए वास्तुक० ४ जन्मभूमि विजापुर गामे. मास कल्प करी सार, माघ शुकल बारस दिन रचतां, संघमां हर्ष अपार रे. ए वास्तुक० ५ विद्यादायक धर्म सहायक, गंभीर श्रद्धावंत, दोशी नथुभाई मंछाराम, हेते एह रचंत रे. ए वास्तुक०६ शेठ छगनलाल बेचर काजे, कीधी रचना भावे, संघ सकलमां आनंद मंगळ, ऋद्धि वृद्धि सुख थावे रे. ए वास्तुक० ७ तपगच्छ मंडन हीरविजयसूरि, जसगुण सुरनर गाया, तास शिष्य श्री सहेजसागरजी, उपाध्याय कहाया रे. ए वास्तुक० ८ पाटपरंपर नेमसागरजी, क्रियावंत महंत, तास शिष्य श्री रविसागरजी, वैरागी गुणवंत रे. ए १६८ For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वास्तुक० ९ संवेगी आतम गुण रंगी, सुखसागर गुरु राया, गामो गाम विहार करंता, विद्यापुरमां आया रे. ए वास्तुक० १० चढते भावे हर्ष उल्लासे, कीधी रचना एह, भव्यजीवने अमृत सम ए, चातकने जेम मेह रे. For Private And Personal Use Only ए वास्तुक० ११ शांति तुष्टि सुख संपदा थादे, रोग शोग दूर जाय, बुद्धिसागर शाश्वतपद लही, मुक्तिवधू सुख पाय रे. ए वास्तुक० १२ श्री शंखेश्वर पास प्रभुजी, गातां सुख विशाळ श्री विद्यापुर सकळ संघणां, होवे मंगळ माळ रे. ए वास्तुक० १३ मंत्र - ॐ नमो भगवते जलं० चंदनं० यजामहे स्वाहा । || इति श्री बुद्धिसागरसूरिजीकृत वास्तुक पूजा समाप्त ।। गुरु गुण स्तुति आत्मज्ञानी महानयोगी ज्ञानी ध्यानी अध्यात्मी अष्टोत्तरशत ग्रंथ प्रणेता ज्ञाननिधि ने गुणोदधि १६९ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ बुद्धिसागरसूरीश्वरजी गुरू भव्यजीवोना अंतरयामी श्री गुरू चरणे भावे वंदन करूं छु कोटी कोटी. कैलास जेवी धीरताने सागर जेवी गंभीरता गुणोथी हती महानताने रहेती सदाये प्रसन्नता जेना नयन नीचा, भाव ऊंचा हृदये हती कारूण्यता कैलाससागरसूरी गुरूने चरणे सौ कोई प्रणमता गुणवंत गच्छाधिपतीने चरणे कोटी वंदना. सिंह सम जेनी गर्जनाने वचनमांहि नीडरता हृदयमांही कोमलताने अद्भुत जेनी वात्सल्यता शासन प्रभावक जे कहाया गच्छाधिपतीपदे शोभता सागरसम सुबोधसागरसूरी गुरूने वंदना. पद्म जेवी सुवास जेहनी पद्म जेवी नीलेपता वाणी अमृतधार वहेती लागे सौने मधुरता राष्ट्रसंतनुं बीरूद जेहने शासनध्वज ल्हेरावता पद्मसागरसूरीश्वरचरणे भावे करूं हुं वंदना १७० For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ael IKANBUR PICASALM मापन सोमनाम पू. मुनिश्री पदमरलसागरजी द्वारा संपादीत पुस्तके For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत समुद्धारक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी 卐 एवं प्रशांतमूर्ति आचार्यदेव // श्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी आदिठाणा का सादडी (राणकपुर) भवन धर्मशाला में सं. 2062 - ई.स. 2006 का चातुर्मास के उपलक्ष्य में परम गुरुभक्त सुश्रावक सादडी( राणकपुर )मुंबई वालो की ओर से चातुर्मास आराधको को स्वाध्याय हेत सादर सप्रेम भेंट चातुर्मास-2006 पालीताणा पापा Concept: BIJAL CREATION: 079-22112392 For Private And Personal Use Only