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जय पच्चक्ख जिणेस! पास! थंभणय-पुरलिय! महमणु तरलु पमाणु नेय वाया वि विसंटुलु, नेय तणुरवि अविणय-सहावु अलसविह-लंथलु तुह माहप्पु पमाणुदेव! कारुण्ण-पवित्तउ, इय मइ मा अवहीरि पास! पालिहि विलवंतउ किं किं कप्पिउ नयकलुणु किं किं वन जंपिउ, क्विन चिट्ठिउ किट्ठदेव! दीणयमऽवलंबिउः कासु न किय निष्फल लल्लि अम्हेहि दुहत्तिहि, तहवि नपत्तउ ताणुकिंपि पइपहु! परिचत्तिहि तुहुसामिउ तुहुमाय बप्पु तुहुमित्त पियंकरु, तुहुगइ तुहु मइ तुहु जिताणु तुहु गुरु खेमंकरु; हउं दुहभर-भारिउ वराउ राउल निभग्गह लीणउ, तुह कमल-मलसरणु जिण! पालहि चंगह पइकिविक्य नीरोय लोय किवि पाविय-सुहसय, किवि मइमंत महंतकेवि किवि साहिय-सिवपय; किवि गंजिय-रिउवग्ग केवि जसधवलिय-भूयल, मइ अवहीरहिकेण पास! सरणागय-वच्छल! पच्चुवयार-निरीह! नाह! निप्पन्न-पओयण!,
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