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तुह जिणपास! परोवयार करणिक्क-परायण !; सत्तुमित्त - समचित्त वित्ति! नयनिंदय - सममण ! मा अवहीरियऽजुग्गउवि मइपास निरंजण! हउ बहुविह- दुहतत्तगतु तुह दुहनासणपरु, हउ सुयणह करुणिक्कट्ठाणु तुहु निरु करुणायरु; हउ जिणपास ! अ सामिसालु तुहु तिहुअण-सामिय, जं अवहीरहि मई झंखंत इय पास! न सोहिय जुग्गाऽजुग्गविभाग नाह! नहु जोयहितुह समा, भुवणुवयार-सहावभाव करुणारस सत्तम; समविसमई: किंघणु नियइभुवि दाह समंतउ ?,
इय दुहिबंधव! पासनाह! मइपाल थुनंतर नय दीह दी यु मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोइ वि उवयार करहि उवयारसमुज्जयः दीणह दीणु निहीणु जेण तइ नाहिण चत्तउ तो जुग्गउ अहमेव पास पालहि मई, चंगउ अह अनुवि जुग्गय - विसेसु किवि, मन्नहि- दीणह, जं पासिवि उवयारु करइ तुहनाह समग्गह; सुरिचय किल कल्लाणु जेण जिण! तुम्ह पसीयह,
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