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तृतीय पूजा
दुहा शुभ वास्तुक पूजा कहुं, आणी अतिशय भाव, स्वर्गादिक सुख पामीए, होवे शिवसुख दाव. देव ते अरिहंत जाणीए, दोष रहित अढार, गुरु सुसाधु महाव्रती, पाळे पंचाचार. जिनवर भाषित सत्य छ, जैन धर्म जग जोय, सुखदुःख होवे कर्मथी, अवर न कर्ता कोय. (अनिहारे न्हवण करो जिनराजने रे-ए देशी) अनिहां रे वास्तुक पूजा शुभ कीजीए रे, तजी अवर देवनी आश, सुपात्रे दान दीजीए रे, सूत्र श्रवणरुचि अभिलाष.
श्रीशंखेश्वर प्रभु पासजी रे. १ भवि भावे द्रव्यार्थिक नये करी रे, शाश्वत छे लोकालोक, कर्ता तेहनो को नहि रे, किम कर्ता मानिये फोक.
__ श्रीशंखे० २ उर्ध्व अधो अने तिर्छालोकनी रे, स्थिति छ अनादि अनंत, कर्ता तेहनो को नहि रे, ईभ भाखे श्री भगवंत.
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