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देव मनुष्य तिर्यंचनाजी, मैथुनसेव्यां जेह, विषयारसलंपटपणेजी, घjविडंब्यो देहरे जिनजी० २ परिग्रहनी ममता करीजी, भव भव मेली आथ, जे जीहांनी ते तिहां रहीजी, कोइ न आवे साथ रे
जिनजी०३ रयणी भोजन जे कर्यां जी, कीधा भक्ष अभक्ष: रसना रसनी लालचेजी, पाप कर्यां प्रत्यक्षरे जिनजी० ४ व्रत लेइ विसारीयांजी, वळी भांग्या पच्चक्खाण: कपट हेतु किरिया करीजी, कीधां आप वखाण रे
जिनजी०५ त्रण ढाल आठे दुहेजी, आलोयाअतिचार; शिवगति आराधनातणोजी, ए पहेलो अधिकार रे
जिनजी०६ ढाळ चोथी (साहेलडीनी देशी) पंचमहाव्रत आदरो, साहेलडीरे, अथवा ल्यो व्रत बार तो; यथाशक्ति व्रतआदरी, सा० पाळो निरतिचार तो १
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