Book Title: Khartargacchacharya Jinmaniprabhsuriji Ko Pratyuttar
Author(s): Tejas Shah, Harsh Shah, Tap Shah
Publisher: Shwetambar Murtipujak Tapagaccha Yuvak Parishad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (तपागच्छ श्रमण संमेलन के समय किए गए आक्षेपों का खंडन एवं अवन्ति पार्श्वनाथ जैन तीर्थ पर किए गए अतिक्रमण का उन्मूलन) खरतरगच्छाचार्य जिनमणिप्रभसूरिजी को प्रायतर आज्ञा एवं आशीर्वाद जैन शासन के प्रतिनिधि "तपागच्छीय प्रवर समिति" एवं समस्त श्री तपागच्छ संघ संपादक डॉ. तेजस शाह * हर्ष शाह * तप शाह प्रकाशक श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक तपागच्छ युवक परिषद Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ceroo समर्पणम् ...... प्रभुवीर की अखंड श्रमण परंपरा के संवाहक, पंचकल्याणक समर्थक * चांद्रकुलीन, नाकोडा तीर्थ स्थापक आ. स्थूलभद्रसूरिजी म.सा. * ओसवाल वंश स्थापक आ. रत्नप्रभसूरिजी म.सा. * श्री निग्रंथ-कोटि-चांद्र-वनवासी-वड गच्छीय नामांतरे तपागच्छीय * षण्मासी अमारि प्रवर्तक, शत्रुजय कथादि मोचक, 1444 ग्रंथ कर्ता आ. हरिभद्रसूरिजी म.सा. * नवांगी टीकाकार आ. अभयदेवसूरिजी म.सा. * चांद्रकुलीन,संवेगरंगशाला कर्ता आ. जिनचंद्रसूरिजी म.सा. * अकबर प्रतिबोधक, जगद्गुरु आ. हीरविजयसूरिजी म.सा. * खरतरमद भंजक महोपाध्याय धर्मसागरजी म.सा. * नाकोडा तीर्थोद्धारक एवं नाकोडा भैरवजी को प्रत्यक्ष करके उनको सम्यग् दर्शन दिलानेवाले आ. हिमाचलसूरिजी म.सा. * इतिहास प्रेमी मुनि ज्ञानसुंदरजी म.सा. * इतिहास वेत्ता पं. कल्याण विजयजी म.सा. * प्रवर समिति के आदेश से शासन एवं इतिहास की रक्षा हेतु उग्र विहार द्वारा उज्जैन पधारने वाले अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ के मुख्य प्रतिष्ठाचार्य आ. भ. श्री हेमचंद्रसागरजी म.सा. (बंधु बेलडी) को सादर समर्पित Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sexoose प्रस्तावना न् प्रभुवीर से चली आ रही पवित्र धर्मधारा का वर्तमान में अस्तित्व का मूल कारण है-शासनरक्षक, शासनप्रेमी आचार्य भगवंत, साधु, साध्वीजी एवं श्रावकगण / इन अजोड शासन सेवकों के योगदान से प्रभुवीर का शासन 21000 वर्ष तक जीवंत रहेगा। ___ याद रखें कि यह प्रभुवीर का शासन है, किसी गुरु या गच्छ का नहीं / फिर भी गच्छराग के रोग से पीडित कुछ आचार्य भगवंत एवं साधुसाध्वी इस जिनशासन को अपना गच्छशासन बनाना चाहते है। "अपना गच्छ नामशेष हो जायेगा तो मान लो कि जिनशासन का सर्वनाश हो जायेगा / " इस पागलपन भरे विचारों से प्रेरित होकर भारतभर के संधो में विचरण करके श्रावकों से संपर्क कर "हमारे गच्छ के आचार्य द्वारा आपके गौत्र की स्थापना की गई है" ऐसा उटपटांग झूठ बोलकर श्रावकों को भी अपने गच्छराग का चेप (Infection) लगा रहे हैं। ___ प्राचीन तीर्थों में जीर्णोद्धार के बहाने से अपने नामोल्लेख वाली प्रतिमाएँ एवं अपने गुरुओं की मूर्तियाँ बिठाकर तीर्थ पर अपना वर्चस्व जमाने की तुच्छ प्रवृत्ति के द्वारा श्री संघ की शांति का नाश कर संक्लेशमय वातावरण खडा करके अपनी जीत का एहसास कर रहे हैं। उसका जीता-जागता उदाहरण है श्री उज्जैन जैन संघ में हाल ही बीता हुआ प्रतिष्ठा महोत्सव / सारे भारत ने देखा है कि गच्छराग के नशे में / साथ छल-कपट करके अपने गच्छ का प्रभुत्व जमाने की कुचेष्ठा हुई है। अन्य संघों में भी जहाँ एक ही गच्छ के श्रावकों के घर थे वहां विचरण करके मात्र 25 वर्षों में ही भेदनीति से दो गच्छों के श्रावकों का निर्माण हुआ एवं संघ की एकता और शांतिमय आराधना का संकलेश में रुपांतर हुआ। इसलिए भारत के सभी जैन संधों का जागृत होना आवश्यक है / Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभी तीर्थों के ट्रस्टीगण को सजाग होना अनिवार्य है कि किसी भी आचार्य भगवंत, साधु-साध्वी भगवंत द्वारा इस तरह के गच्छराग का Virus फैलाकर जैनशासन की शांति एवं एकता का भंग तो नहीं किया जा रहा है ? अगर जिनशासन के विविध संघों की शांतिमय आराधना बरकरार रखनी हो तो जो संघ जिस आचार्य भगवंतों के मार्गदर्शन से स्थापित हुआ एवं आराधना कर रहा हो, वह संघ उन्हीं आचार्य भगवंत एवं उनके ही गच्छ के दूसरे आचार्य भगवंतों का मार्गदर्शन लें, दूसरे किसी गच्छ के आचार्य भगवंत का हस्तक्षेप न होने दें एवं जो तीर्थ जिस आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठित हुआ हो अथवा जीर्णोद्धार हुआ हो उस तीर्थ के विकास आदि कार्य हेतु उन्हीं आचार्य भगवंत एवं उनके गच्छ के ही अन्य आचार्य भगवंत से मार्गदर्शन आदि लें, जिससे जिनशासन के संघों की शांति बरकरार रहे, जैन तीर्थों का गौरव बढे, क्लेश का स्थान न बने एवं सभी गच्छों के आचार्य भगवंत अपनी-अपनी अवग्रह मर्यादा में रहकर शास्त्रीय रीति का पालन कर अपने सुसाधुपने की सीमा धारण करें / तपागच्छ की शालीनता का यह ज्वलंत उदाहरण है कि किसी भी तपागच्छ के साधु-साध्वी भगवंतों ने किसी भी संघ में अन्य गच्छ के अनुयायी श्रावकों को तपागच्छ के नाम की माला पहनाकर संघ भेद का घोर पाप नहीं किया एवं संघ में संकलेश का वातावरण खडा नहीं किया / डॉ. तेजस शाह CA. हर्ष शाह CA. तप शाह Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ core अनुक्रमणिका ......... ....... 1. भूमिका 2. अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास... 3. अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ विषयक प्रत्युत्तर .... 4. अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ पुनः प्रतिष्ठा विषयक भ्रम का खंडन .......... 5. श्रमण संमेलन विषयक जवाब . 6. परिशिष्ट 1 श्रमण संमेलन के समय आ. मणिप्रभसूरिजी द्वारा लीखा गया पत्र एवं पत्रिका में दीया गया दुःखद लेख. .............. 41 परिशिष्ट 2 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा के समय श्री तपागच्छीय प्रवर समिति के पत्र परिशिष्ट 3 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक तीर्थ ट्रस्ट द्वारा जवाब............... परिशिष्ट 4 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी का पत्र.. ............ 51 10. परिशिष्ट 5 गच्छाधिपति दोलतसागरसूरिजी की आज्ञा........... 11. परिशिष्ट 6 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक कार्यवाही.. 12. परिशिष्ट 7 खरतरगच्छ श्रमण संम्मेलन गीत 13. परिशिष्ट 8 अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ विषयक पत्रीका में गलत वर्णन................ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. परिशिष्ट 9 ____ तीर्थ ट्रस्ट द्वारा पारित प्रस्ताव की कोपी... 15. परिशिष्ट 10 उवसग्गहरं तीर्थ ट्रस्ट से आए पैसे का भी गच्छीकरण............... 16. परिशिष्ट 11 __ सम्मेतशिखर में कीया एक और विखवाद.. 17. परिशिष्ट 12 आ. मणिप्रभसूरिजी द्वारा तपागच्छाचार्यों का घोर अपमान............ 18. परिशिष्ट 13 तपागच्छाचार्य आ. राजयशसूरिजी का वर्णन....................... 19. उपसंहार.. ...... Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ corporon भूमिका न् श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय में भगवान महावीर द्वारा प्रतिष्ठित श्रमण संघ आज तपागच्छ के नाम से पहचाना जाता है... भगवान महावीर की श्रमण परंपरा के कुछ नामांतर इस प्रकार है... निग्रंथ गच्छ - सुधर्मा स्वामीजी से। कोटिक गच्छ - आ. आर्यसुहस्ति सू. के शिष्यो ने कोटी बार उदयगिरि पर जाप किया उससे / चांद्र गच्छ - आ. चंद्रसूरिजी से। वनवासी गच्छ - आ. समंतभद्र सूरिजी से। वड गच्छ - आ. उद्योतन सूरिजी द्वारा आबु के पास टेली गांव में तपा गच्छ प्रस्तुत तपागच्छ वो गच्छ है जो मूलपरंपरा का अंश है / यह गच्छ कोई शास्त्र विरुद्ध नूतन प्रणालिका को लेकर अलग नहीं हुआ ना ही कोइ नया मत गच्छ के रुप में स्थापिष्ट किया गया है / यह परमात्मा महावीर की वो गौरवशाली परंपरा है जो "सवि जीव करु शासन रसी' के पद द्वारा जीवराशी मात्र के लिए परोपकार का कार्य कर रही है। प्रस्तुत भगवान की श्रमण परंपरा ने समय-समय पर अनेक शासन प्रभावना एवं शासन रक्षा के कार्य किये है। कहते है आराधना से प्रभावना का विशेष महत्व है और प्रभावना से रक्षा का.. जब जब भी भगवान के शासन पर आक्रमण हुए तब-तब भगवान की मूल श्रमण परंपरा ने (तपागच्छ ने) अपने प्राणों की आहुती देकर शासन को सम्हाला है। इसी क्रम में जब मुगलशासन की बात हो तब तपागच्छ सूर्य, अकबर प्रतिबोधक आ. हीरविजयसूरिजी महाराजा, आ. सेनसूरिजी. म. आदि ने अकबर जैसे क्रूर बादशाह पर प्रभाव डालकर शत्रुजयादि अनेक तीर्थो की रक्षा की... अनेक फरमान बादशाहो से ले आए। वैसे ही तपागच्छ के शांतिदास Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झवेरी, भामाशाह इत्यादि श्रावक वर्ग ने भी शासन रक्षा के कई कार्य किये : है... अगर सिर्फ नाम लिखे तो एक अलग ग्रंथ का निर्माण हो जाता है। इसी श्रेणि में खरतरगच्छ के श्रावको द्वारा निर्मित मंदिर वगैरह जब खरतरगच्छ के यति व साधु सम्हाल न पाए तब जैन शासन का ही अंग मानते हुए तपागच्छ ने इन्हें प्राण से भी ज्यादा संभाला है / वो समय था जब खरतरगच्छ का प्रभाव बहुत कम हो गया था साधु की संख्या ना के बराबर बची थी और खरतरगच्छ के श्रावको द्वारा बनाए गए मन्दिरो पर विधर्मीओ का कब्जा हो रहा था या उक्त मन्दिरो को मस्जिद, हिन्दु मन्दिरादि में परिवर्तित किया जा रहा था... कई स्थान तो एसे है जहाँ खरतरगच्छ के श्रावक भी मन्दिर मार्ग को छोडकर स्थानकवासी या तेरापंथी बन गए थे...जैसे स्थली प्रदेश.. अब इस समय में मन्दिर-उपाश्रय व श्रावको को सम्भालने का कार्य तपागच्छ ने किया तो क्या बुरा किया ? आखिर रक्षा ही तो की है और तपागच्छ की शुद्ध नीति के अनुसार कहीं भी कोई भी शिलालेख में प्रक्षेप नहीं किया... ना ही कहीं दूसरों की तरह अपने आचार्यो के मूर्ति-चरण बिठाए है। इसी कारण महामहोपाध्याय यशोविजयजी कहते है ..... गोत्र एवं गच्छ : भगवान महावीर का श्रावक संघ समयांतर पर विविध गोत्रो में बटा... उपकेशगच्छीय आ.रत्नप्रभसूरिजी महाराजा ने ओसवालो को जिनधर्मी बनाया तो आ. स्वयंप्रभसूरिजी ने श्रीमालो को, यह बात इसा के पूर्व की है... इतिहास वेत्ता परमविद्वान पं.प्र. कल्याण विजयजी लिखते है की विक्रम की 12 वीं शताब्दी के बाद नए जैन बनाना एक दंतकथा मात्र है / क्योंकि एक तरफ मुगलो का आक्रमण था तो दूसरी तरफ शंकराचार्यो का यह वो समय था जब सेंकडो जैनो का धर्मांतर करवाया गया और दिन ब दिन जैनो की संख्या कम होती गइ / अब इस समय में कोई नए जैन बनाने की बात करता है तो वह गप्प के अलावा कुछ भी नहीं है। हमने देखा है कि... कोई भी श्रावक आ जाए.. खरतरगच्छ के साधुसाध्वीजी पूछते है कि कौन से गोत्र के ? ___ लोग कहेंगे.. जिन्दाणी-गोलेच्छा-ढढ्ढा इत्यादि / 888888888888 2 1888888888888888888 OOOOOOOOOOOOOOOOOOO cooooooooooooooooooo 200OOOOOOOOOOK OOOOOOOOOOO Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरंत जवाब देंगे... अरे ! आप तो खरतरगच्छ के हो... जैसे इन लोगो पर खरतरगच्छ की महोर लगी हो, वैसे बात तो यह है कि अगर वे खरतरगच्छ के थे तो इतने साल खरतरगच्छ के साधु-साध्वीजी ने उन्हे क्यों नहीं सम्भाला.. दूसरा इस बात का कोई भी एतिहासिक तथ्य या उल्लेख दिखा देवे की फलाणे-फलाणे गोत्र को खरतरगच्छाचार्यो ने जैन बनाया था / इस प्रकार गोत्र के नाम से किसी भी व्यक्ति को अपने गच्छ का बनाना एक धूर्तता ही है... और कुछ नही / कइ बार तो विचार आता है की साधुसाध्वीजी अपनी साधना को छोडकर वहीवंचा का "कार्य" करने लग गए है... भगवान सन्मति दे। इस विषय में सत्य जानने वाले जिज्ञासु जन पू. ज्ञानसुंदरजी द्वारा लिखित जैन जाति महोदय इत्यादी पुस्तको का अवलोकन करें / चमत्कारों का तथ्य : अब जब गोत्रो पर बात नहीं जमी तो एक और रास्ता निकाला गया... अलग अलग चमत्कारो को एक कल्पना के अनुसार बताया गया... स्थानस्थान पर चित्रपट लगवाए गए और लोगो को भ्रमित करने का नया तरीका ढुंढ निकाला गया.. इतना ही नहीं इकतीसा के रुप में एक नया भजन बनाया गया जो हनुमान चालीसा का खरतर रूपांतर मात्र है। जैसे...लक्ष्मी लीला करती आवें.... पुत्र-पौत्र बहुं संपत्ती पावे... हो प्रसन्न दीने वरदाना... इत्यादि... यह बाते हनुमान चालीसा के बराबर है... कोई भी सम्यकत्वी जैनाचार्य लोगो को पुत्र-पौत्र पैदा करने में सहायता करेंगे क्या ? प्रसन्न होकर वरदान और अप्रसन्नत हो तो श्राप देंगे? ये कहाँ का न्याय है ? ___ आगे लिखते है पांच पीर साधे बलकारी... पंजाब में पांच पीर की 3 साधना की और उनको वश किया अतः उन पांच पीरों को खरतरगच्छ के अधिष्ठायक मानने में कोई दिक्कत नहीं होगी..शायद प्राचीन दादाबाडी...अजमेर-बीलाडा व देराउर पर म्लेच्छो का कब्जा इसका ही परिणाम है व पीछले कुछ सालो में सभी दादाबाडी के आसपास बसी मुस्लिम बस्ती इसका नतीजा है। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बात की हद तो तब आ गई जब ईन्हो ने पुरा भारत फिरंगीओ को वरदान में दे दिया और इसके कारण भारत की आजादी की लडाई (1857 की) निष्फल हुई... देखे दादा की बडी पूजा का पद... खरतरगच्छ को जीम्मेदार कहेंगे ? कहीं कहते है खरतरगच्छ में दीक्षा लेने वाली स्त्री ऋतुवंत नही होती... कैसी हास्यास्पद व बीभत्स बात है ये ? दादा की बात को स्वीकार न करने वाले अंबड श्रावक को श्राप देकर भिखारी बना दिया... वाह ! दादाबाडी पर दादागिरि : अभी-अभी जिनमणिप्रभसूरिजी ने बीकानेर चातुर्मास के समय दादाबाडी शब्द का रजीस्ट्रेशन करवा लिया... इस समाचार से मूर्तिपूजक अन्य समुदाय जैसे तपागच्छ-अंचलगच्छ-त्रिस्तुतिकगच्छ -पायचंदगच्छ में माहोल गरमाया हुआ है.... वैसे तो रजीस्ट्रेशन केवल धंधाकीय फर्म का ही होता है... 8. हो सकता है भविष्य में आप सब कोई बीजनेस चालु करने का विचार कर रहे हो / इस विषय में सन 1993 में आ. जिनमणिप्रभसूरि द्वारा अगस्त के "जिनेश्वर" में प्रकाशित "दादा सम्बोधन का व्यामोह" नामक लेख जो अत्यंत हास्यास्पद है वह पढने में आया / इसमें लिखा है की... "दादा गुरुदेव नामक चार ही आचार्य इतिहास में लिपिबद्ध है / " यह मान्यता केवल आपकी व्यक्तिगत हो सकती है, सकल संघ की नहीं। दादाबाडी सेंकडो सालो से तपागच्छ में भी है... जैसे आग्रा दादाबाडी, बीकानेर दादाबाडी, दहेगाम (गुजरात) दादाबाडी इत्यादि.. इसी तरह अन्य गच्छो की भी दादाबाडीया अस्तित्व में है / वैसे तो मेरे गाँव में मेरी पर्सनल दादाबाडी भी है... जैसे मेरे पापा के पापा को दादा कहते है और उन्हों ने खरीदी हुई बाडी अर्थात् दादाबाडी शब्द किसी की बपौती नही है....उसका पूर्व में प्रयोग होता था... आज होता है और भविष्य में हम सब करते रहेंगे। अंचलगच्छ के आ. महेन्द्रसूरि रचित शतपदी ग्रंथानुसार जगह-जगह पर खरतरगच्छीय साधु भगवंत अपने गुरुओं के चरण या मूर्ति बीठा देते थे / बस इसी नीति पर प्राचीन तीर्थो पर और गाँव गाँव में दादाबाडी बन गई है। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थात् जहां पर दादावाडी या पगलिये हो वे सब तीर्थ खरतरगच्छ के ही थे / ऐसे भ्रम में रहने की जरुरत नही है। ओसियांजी, बलसाणाजी, अवन्तिजी(उज्जैन) आदि कई तीर्थों में दादाबाडी के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है / ये परापूर्व से ही श्वे.मू.पू. तपागच्छ संघ के है। भगवान महावीर की अखंड श्रमण परंपरा का वारसदार तपागच्छ ही है.. इसका मतलब की भगवान महावीर से चली आ रही स्थावर व जंगम मिलकत का वारसदार सिर्फ और सिर्फ तपागच्छ ही है अन्य कोई नहीं / वर्तमान स्थिति और तपागच्छ वर्तमान में खरतरगच्छ द्वारा बारंबार तपागच्छ पर आक्रमण किया जाता रहा है.. जैसे की... . श्री अवन्ति पार्श्वनाथ मन्दिर का विवाद * श्री चैन्नई दादाबाडी का विवाद श्री अजमेर दादाबाडी का विवाद * श्री आग्रा दादाबाडी का विवाद श्री सम्मेतशिखरजी तलहटी मन्दिर प्रतिष्ठा का विवाद * तपागच्छ श्रमण संमेलन पर आक्षेप * पालीताणा दादा की टोंक में पगलीए का विवाद नाकोडा तीर्थ पर कब्जे का विवाद श्री उवसग्गहरं तीर्थ का विवाद अकबर प्रतिबोधक विषयक विवाद बलसाणा तीर्थ का विवाद श्री वाराणसी का विवाद इत्यादि काफी विवाद वर्तमान के खरतरगच्छाचार्यों ने किये है। अगर आपको इनकी भावना जाननी हो तो खरतरगच्छाधिपति आ.मणिप्रभसूरिजी द्वारा लिखीत "विहार डायरी" पुस्तक को पढ लेवे... सब पता लग जाएगा। गलत आक्षेपो एवं स्वच्छंदता का कोई जवाब नहीं होता... तपागच्छ . Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक विशाल गच्छ है... सर्वाधिक संख्यावाला संघ है। वो किसी भी व्यक्ति को जवाब देकर अपनी बेइज्जती नही कराएगा। बडे जवाब नहीं देते बच्चो को : दुनिया में न्याय है कि जब भी बच्चे उछल-कुद करते है, नादानी भरी बाते करते है तब बडे विशाल हृदयको धारण करके मौन रहते है / कोई इस मौन का मतलब अन्यथा न ले / अगर आप मौन को कायरता समझते हो तो यह आपकी सबसे वडी भूल होगी कि यह जवाब क्यों दिया गया है। "लडथडतु पण गजवर बच्चु गाजे गयवर साथे" न्याय से बडो की आज्ञा एवं आशीर्वाद शिर पर रखकर हमारे गच्छ के भविष्य के लिये जिनमणिप्रभसूरिजी को जवाब देना उचित लग रहा है / हमें कोइ इस तरह कायर ना समझे... हम शांतिप्रिय है व शान्ति रखना चाहते है लेकिन गलत आक्षेपों का जवाब देना हमें अच्छी तरह आता है। जिनशासन सदा जयवंत रहे.... आज के समय में सबसे बडी जरुरत एकता की है... जैनशासन के सभी गच्छ को एक होना आवश्यक है। बिना मतलब के विखवाद को शांत करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए खरतरगच्छ के आचार्यादि भगवंतो से विनंति है की शासन में शांति रहने दे / विखवाद से दूर रहे / जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखा हो तो क्षमापना / 000000908868 DOORAKOOOOOOOL 00000000000000000 600000000000000 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास अवन्ति के नाथ-श्री अवन्तिका पार्श्वनाथ तीर्थ त्रिखण्डीय-त्रिशिखरीय 44 देहरियों से युक्त 81 फीट उंचा जिनालय श्यामवर्ण के प्राचीन श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु के दांयी और श्री आदिनाथ प्रभु की श्वेत वर्ण की वि.सं.१५४८ की प्रतिमाजी विराजित है, तथा मूलनायक प्रभु के बांयी और श्री गौडी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमाजी विराजित है, जो आदिनाथ प्रभु के समकालीन है / उक्त प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा तथा जीर्णोद्धार वि.सं. 1684 के लगभग जगद्गुरु तपागच्छाधिराज, सम्राट अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री विजय हीरसूरिजी के पट्टधर श्री विजयसेनसूरिजी के आदेश अनुसार उनके शिष्य द्वारा सम्पन्न हुआ है / वि.सं. 1692 में जगद्गुरु श्री विजयहीरसूरिजी की पादुका की प्रतिष्ठा तथा छत्री का निर्माण शास्त्रीनगर-अलखधाम में हुआ था, जो वर्तमान में अपूजित है / कहा जाता है कि मध्यकाल में पुनः श्रीसंघ द्वारा अवन्ति पार्श्वनाथ जिनालय का समूल जीर्णोद्धार कर नूतन शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण करवाया गया / जहां प्रतिष्ठा के पहले रात्रि में शैवों द्वार शिवलिंग स्थापित कर उसे जबरेश्वर / महादेव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया. जिन्हें राजा का पीठ बल प्राप्त था / तब से प्रभु की प्रतिमा भोयरे के रुप मे बने घूमटबंध जिनालय मे प्रतिष्ठित थी, जिनालय में वि.सं. 1384 की धातु की चौबीसी विराजित है। वि. सं. 1509 में तपागच्छ के आ.श्री जयचंद्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित पंचतीर्थी तथा वि.सं. 1518 में तपागच्छेश आचार्य श्री. रत्नसिंहसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित पंचतीर्थी प्रतिमा जिनालय में विराजित है। विक्रम की 17-18 वीं सदी में मराठाकाल में यहां जीर्णोद्धार का उल्लेख 3 मिलता है / वि. सं. 1964 में यहां धर्मशाला का निर्माण तथा वि.सं. 1976 में आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी के बिम्ब की प्रतिष्ठा तपागच्छीय मुनिराजश्री हंसविजयजी की प्रेरणा से श्रेष्ठी घमडसी जुहारमल द्वारा की गई। फाल्गुन वदी-७ वि.सं. 1995 में तपागच्छीय आचार्यश्री लक्ष्मणसूरिजी की निश्रा में श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन श्वे.मू.पू. मारवाडी समाज कमेटी का निर्माण Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुआ / पश्चात सन् 1976-77 को ट्रस्ट बनाया गया / घमडसी जुहारमल फर्म जो लगभग शताधिक वर्षों से उक्त तीर्थ का वहीवट कर रही थी, उसने दिनांक 31 अगस्त 1980 के दिन तीर्थ का संचालन श्री अवंति पार्श्वनाथ तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाडी समाज ट्रस्ट को सौंप दिया / इस ट्रस्ट से सभी गच्छ-समुदाय के 98 परिवार जुडे है। वर्तमान में मूलनायक परमात्मा का उत्थापन किये बिना पुनः जीर्णोद्धार किया जा रहा है / जिनालय कलशध्वजा तथा अन्य जिन बिम्बों, तपागच्छ अधिष्ठायक श्री माणिभद्रजी के प्राचीन बिम्ब आदि की प्रतिष्ठा वि.सं. 2075 माघ सुदी-१४ के दिन हुई है। तीर्थ 2 परिसर में विशाल नूतन धर्मशाला में 48 कक्ष, सुन्दर भोजनशाला है। अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ के मुख्य प्रतिष्ठाचार्य तपागच्छीय बंधु बेलडी पू. आ. श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी थे व तपागच्छ के पू. आ. विश्वरत्नसागरसूरिजी, आ. अभयसेनसूरिजी, तीर्थ जीर्णोद्धार के मार्गदर्शक खरतरगच्छीय आ. मणिप्रभसागरजी भी पधारे थे / तथा तपागच्छीय सा. इन्दुश्रीजी आदि विशाल परिवार के साथ पधारे थे / HINDI PRODOOOOOOOOOOOX 6666666666666666660 0000000000000000000 600000000000000 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवन्ति पार्श्वनाथ विषयक प्रत्युत्तर न् समस्त जैन श्वे. मूर्ति तपागच्छ श्री संघ / समस्त श्वे. मूर्ति. तपागच्छ प्रवर समिति / 2 विषय :- अवन्ति पार्श्वनाथ जैन मंदिर उज्जैन में आयोजित प्रतिष्ठा समारोह में ट्रस्ट एवं खरतरगच्छ द्वारा मनमानी के संदर्भ में। 1. विशेष में उज्जैन नगर में श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन मंदिर जो कि 2000 वर्ष प्राचीन है और इस मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार आदि तपागच्छीय आचार्य भगवंतो द्वारा होता रहा है / उस के अनेक प्रमाण एवं शिलालेख वर्तमान में भी मोजुद है एवं कई ग्रंथो में प्रकाशित है। 2. वर्तमान में उस मंदिर का जीर्णोद्धार एवं पुनःप्रतिष्ठा खरतरगच्छ के आचार्य द्वारा करवाइ जा रही है जिनका तीर्थ से पूर्व कोई भी संबंध या इतिहास जुडा हुआ नही है। 3. इस तीर्थ के वर्तमान संचालक श्री अवंति पार्श्वनाथ मारवाडी जैन समाज ट्रस्ट द्वारा अनेक नियमो के साथ 21-1-2001 को खरतरगच्छाचार्य श्री मणिप्रभसागरजी को जीर्णोद्धार करने की स्वीकृति दी गई / जिनमें मुख्य नियम थे (इसकी प्रतिलिपि हमारे पास सुरक्षित है) - नीचे के गर्भगृह में सभी प्रतिमाएँ यथावत रहेगी। - मंदिर में किसी भी साधु या व्यक्ति का नाम नहीं आएगा। - मंदिर में कोई भी नई मूर्ति या गुरु मूर्ति नहीं लगेगी / लेकीन मौके __ पर वहाँ देखने पर सभी बातो का सरे आम उल्लंघन पाया गया। इस प्रकार के निवेदन द्वारा तपागच्छीय प्रवर समिति एवं शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी को भी भ्रमित किया गया / 1. नीचे के गर्भगृह में तपागच्छीय प्राचीन प्रतिमाओं को उठा दिया / S गया। 2. मंदिर में कोई जगह पर साधु और श्रावको के लेख लगाए हुए गया। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाए गए। 3. मंदिर की प्राचीनता को नष्ट करते हुए मंदिर में कई नई मूर्तियो को / बिठाई जा रही है। 4. इसके साथ तपागच्छ एवं जैन शासन के इतिहास को भ्रमित करते हुए मूर्तियों पर खरतर सहस्राब्दी गौरव वर्ष लिखा गया है / इससे समस्त खरतरगच्छ कलंकित हुआ है। इस प्रकार मारवाडी समाज ट्रस्ट एवं खरतरगच्छाचार्य श्री मणिप्रभसागरजी द्वारा जिनशासन एवं तपागच्छ के साथ विश्वासघात हुआ है। परिस्थिति को देखते हुए तपागच्छ प्रवर समिति द्वारा इस कार्य के विषय में इस क्षेत्र में बिराजमान अवंति पार्श्वनाथ के प्रमुख प्रतिष्ठाचार्य आ.श्री हेमचन्द्रसागरसूरि म.सा. एवं तपागच्छीय श्रावक भूषणभाई शाह को इस कार्य को संभालने की जिम्मेदारी दी गई जिस के अनुसंधान में पूज्यश्री रोज के 40-45 कि. मी. के विहार करते हुए अवंति पधारे और मौके पर पहुंचने के बाद निम्न प्रयत्न किए गए। 1. मंदिर के सभी प्राचीन शिलालेख आदि की जानकारी इकट्ठी की गई। 2. मंदिर में बिराजमान होनेवाले मूर्ति, गुरुमूर्ति एवं चरणपादुका आदि के नवीन लेखो का एकत्रीकरण एवं निरिक्षण किया गया। 3. अनेक ट्रस्ट मंडल की बेठक बुलाई गई। 4. संदर्भित अलग-अलग व्यक्तिओं को बुलवाकर जाँच करवाई गई। 5. कलेक्टर को एवं एस.डी.एम. को ज्ञापन सौंपा गया / अपना पक्ष संपूर्ण संतोषप्रद तरीके से रखा गया / 6. अनेक अपमान-अव्यवस्था को सहनकर कार्य को आगे बढाया गया। 7. खरतरगच्छाचार्य मणिप्रभसागरजी से चर्चा-विचारणा की गई जिसमें अवन्ति पार्श्वनाथ जैन मारवाडी समाज ट्रस्ट द्वारा तपागच्छीय प्रवर समिति को पत्र द्वारा जो विश्वास दिया गया था, उसको सुदृढ हुए-निम्न मुद्दो - पर उनसे सहमति ली. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. मंदिर में कोई भी नई पूजनीय मूर्ति नही बिठाई जाएगी। 2. मंदिर में कोई भी खरतरगच्छीय गुरु मूर्ति नहीं बिठाई जाएगी। 3. मंदिर में तपागच्छीय आचार्यो ने जो-जो योगदान दिया है उनका उचित उल्लेख किया जाएगा एवं प्रतिष्ठा प्रसंग पर पधारे तपागच्छीय सभी आचार्यादि का नाम शिलालेख पर लिखा जाएगा। 4. तपागच्छीय अधिष्ठायक उज्जैन के सुश्रावक और अवन्ति पार्श्वनाथ की नित्य पूजा करनेवाले मणिभद्र यक्षराज को रंगमंडप में प्रतिष्ठित किया जाएगा। 5. तपागच्छाचार्य द्वारा प्रतिष्ठित तमाम प्रतिमाओं को रंगमंडपादि में योग्य स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाएगा। 6. तपागच्छीय पू. हंसविजयजी द्वारा प्रतिष्ठित श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी म.सा. की प्रतिमा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ के सन्मुख रंगमंडप में प्रतिष्ठित की जाएगी। इस प्रकार मौखिक स्पष्टता खरतरगच्छाचार्य श्री मणिप्रभ सागरजी द्वारा दी गई / जिस चर्चा में आ. श्री हेमचन्द्रसागरसूरि म.सा., आ.श्री विश्वरत्न सागरसूरि म.सा., पं.श्री विरागचन्द्रसागरजी म.सा., गणि श्री पद्मचन्द्र सागरजी म.सा., मुनि श्री निरागचन्द्र सागरजी म.सा. एवं मेहुलप्रभा सागरजी म.सा. आदि अन्य खरतरगच्छीय मुनि भी उपस्थित थे। इस प्रकार तपागच्छ का गौरव बढाते हुए कार्य किया गया और इस कार्य में दूर रहते हुए भी तपागच्छ समिति के कार्यवाहक आ.श्री अभयदेव सूरि म., ज्योतिषसम्राट आ.श्री ऋषभचन्द्रसूरि म., आ.श्री अजयसागरसूरि म., आ. श्री विमलसागरसूरि म., आ श्री पुण्यरत्न सूरिजी म., आ. श्री अभयसेन सूरि म. एवं उज्जैन के सकल श्री संघो का महत्वपूर्ण सहयोग रहा / प्रभु वीर की अक्षुण्ण श्रमण परंपरा तपागच्छ सदा जयवंत रहे PoppODOp909009 6666666666666666660 mOODOOOOOOOOOOOK 600000000000000 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अवन्ति पार्श्वनाथ पुनः प्रतिष्ठा विषयक भ्रम का खंडन हाल ही में, जिनमणिप्रभसूरिजी ने अपने प्रवचन (विडियो क्लिप) में बताया है कि "श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की पुनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी के हाथों से हुई थी।" तथा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ की प्रतिष्ठा की आमंत्रण पत्रिका में "उदभव.... प्रभु अवंति पार्श्व का" के पेज नं.२ में एक ऐतिहासिक उल्लेख के रूप में एक स्तवन दिया गया है। एवं लिखा है कि "इस स्तवन के द्वारा एक नये तथ्य की जानकारी मिलती है कि जब यवनों का आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गया था और यवन सेना बडी संख्या में मालब प्रदेश में आ रही थी। उस सेना का उद्देश्य था-मंदिरो को नष्ट करना... प्रतिमाओं को खंडित करना। ऐसी स्थिति में उस समय उज्जैन के संघ ने गंभीर विचार कर परमात्मा अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को भंडार कर दिया था / भंडार करने का अर्थ है - भोयरे में रखकर उस कक्ष को पूर्ण रूप से बंद कर देना / खरतरगच्छ नायक आचार्य श्री जिनरधसूरि के पट्टनर आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ने इस स्तवन में, लिखा है कि वि.सं.१७६१ मं अवन्ति पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा को पुनः प्रगट किया गया / अर्थात् भंडार खोलकर बाहर लाया गया ब मंदिर में बिराजमान किया गया / परमात्मा का प्राकट्य महोत्सव व पुनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के आचार्य जिनरत्नसूरि के शिष्य आचार्य श्री जिनचंद्रसूरि की पावन निश्रा में उनके मंत्रोच्चारणो से किया गया था / इस प्राकट्य महोत्सव के समय ही इस स्तवन की रचना हुई होगी।" इस प्रकार लिखने के बाद प्रमाण के रुप में उस स्तवन की ५वीं से ८वीं तक की कडीयां दी है / तथा यह भी बताया है कि इस स्तवन की शोध मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी ने की है। एवं कोबा से इसकी हस्तप्रत प्राप्त हुई हैं। एक ऐतिहासिक उल्लेख के रूप में जिस स्तवन को शोध करके पेश किया गया है, उसको ध्यान से पढने पर स्पष्ट पता चल जाता है कि Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनमणिप्रभसूरिजी जो इतिहास बता रहे है, वह कुछ और है, और हकीकत / / कुछ और ही है। देखिये इस स्तवन की प्रथम कडी जो कि आमंत्रण पत्रिका में नहीं छपी है, परंतु हस्तप्रत में से पढी जा सकती है, वह इस प्रकार है : आज सफल अवतार फली सहु आसजी, परतिख देव जुहार्या जिणवर पासजी / घर धन धुनो जुनो तीरथ ए धरा, परसिध सुणीए एहनी एम परंपरा // 1 // यानि स्तवनकार जिनचंद्रसूरिजी स्वयं कह रहे है कि "आज प्रभु के दर्शन करके सभी आशाएं पूरी हुई है। इस उल्लेख से ही पता चलता है कि जिनचंद्रसूरिजी के आगमन पूर्व ही उज्जैन में श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु प्रगट हो चुके थे एवं बिराजमान थे।" ___ "परसिध सुणीए एहनी एम परंपरा कहकर इस तीर्थ के इतिहास के विषय में जो परंपरा प्रसिद्ध थी उसका वर्णन किया है। जिसमें - 1. अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा का उद्भव, एवं शिवलिंग में परिवर्तन / 2. सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी द्वारा कल्याणमंदिर स्तोत्र की रचना से शिवलिंग में से प्रभु का प्रगटीकरण / 3. यवनों के भय से प्रतिमा का भंडारा जाना (भोयरे में रखना)। 4. वि.सं.१७६१ में पुनः प्रगट होना / ये सभी बातें उन्होंने इतिहास के रूप में बतायी हैं / अतः अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु जिनचंद्रसूरिजी के आगमन के पूर्व ही (निकट के काल में) प्रगट हो चुके थे, ऐसा स्वयं उनके शब्दों से ही सिद्ध हो जाता है। यह तो हुआ प्रथम कडी का फलितार्थ, अब देखियें स्तवन की अंतिम कड़ियों को वे इस प्रकार है : हिव सतरै सै संवत वरसैं इगस, प्रगट थया प्रभु पासजी वंद्या सारी पढे // 7 // उदय सकल सुख लखमी धन जीवित थयौ, भेट्या श्री भगवंत दुख दुरै गयौ / लाख भांति श्री खरतरगच्छ सोभा कही, गणधर जिनचंन्दसूरि जुहार्या गहगही // 8 // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसमें प्रगट थया प्रभु पासजी से यह अर्थ निकलता है कि श्री संघ को भी पता नहीं था कि भगवान भंडारे हुए है, एवं अचानक भाग्य से खुदाई आदि करते समय या अन्य किसी आकस्मिक घटना से पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्राप्त हुई / स्वयं स्तवनकार लिख रहे हैं कि पार्श्वनाथ प्रभु प्रगट हुए, फिर भी उनके शब्दों के, अर्थ में घाल मेल करके आमंत्रण पत्रिका में लिखा है कि "श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने इस स्तवन में लिखा हैं कि वि.सं.१७६१ में अवन्ति पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा को पुनः प्रकट किया गया / " आगे की कडीयों में भी "भेट्या" एवं “जुहार्या" शब्द लिखे हैं, अर्थात् जिनचंद्रसूरिजी ने परमात्मा के दर्शन करते हुए स्तवन की रचना की थी / इस पूरे स्तवन में कहीं पर भी ऐसा उल्लेख ही नहीं है कि जिनचंद्रसूरिजी ने अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु को प्रगट किये एवं उन्हें पुनः प्रतिष्ठित किये। दूसरी बात, आमंत्रण पत्रिका में यूं बढे .... जिर्णोद्धार के कदम.. वाले पन्ने पर इस प्रकार लिखा है "पूज्यश्री ने (गाणिवर मणिप्रभसागरजी) फरमाया मूलनायक परमात्मा महान आचार्य सिद्धसेनदिवाकरसूरि के करकमलों द्वारा दो हजार से अधिक वर्ष पूर्व प्रतिष्ठत हैं। इनका उत्थापन किये बिना जिर्णोद्धार का परम शुभ कार्य करना है।" इस कथन के अनुसार मणिप्रभसागरजी ने माना है कि मूलनायक परमात्मा की प्रतिष्ठा दो हजार वर्ष पूर्व हुई थी एवं बीच में कभी भी उत्थापन एवं पुनःप्रतिष्ठा का प्रसंग नहीं बना / जबकि पीछे बताये अनुसार वे तो वि.सं. 1761 में जिनचंद्रसूरिजी के हाथों से पुनःप्रतिष्ठित हुई, ऐसा बता रहे हैं / दोनों परस्पर विरुद्ध बाते हैं। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि, वि.सं. 1761 में भी जिनचंद्रसूरिजी ने मूलनायक प्रभु को प्रगट एवं प्रतिष्ठित किये होते तो इन बातों का उल्लेख खरतरगच्छ की पट्टावलीयों एवं इतिहास में अवश्य होता तथा : अवंति पार्श्वनाथ प्रभु के मंदिर में कहीं पर तो जिनचंद्रसूरिजी आदि का नाम मिलता, परंतु ऐसा नहीं है। तीसरे एवं अत्यंत महत्वपूर्ण प्रमाण से अब सिद्ध किया जायेगा कि अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की पुनःप्रतिष्ठा खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरिजी के हाथों से नहीं हुई थी, परंतु तपागच्छीय गुरुभगवंतों के हाथों से हुई थी / वह अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रमाण स्वयं मूलनायक श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गादी में लिखा हुआ लेख हैं / उसकी प्रतिलिपि "मालवांचल के लेख संग्रह " (संग्रहकर्ता एवं लेखक स्व.श्री नन्दलालजी लोढा, प्रकाशक-श्री कावेरी शोध संस्थान, उज्जैन) में पृ. 41 लेख नं.७३ में इस प्रकार दी है। सं 1788 शाके 1653 प्रवर्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे 13 तिथौ सोमवासरे श्री... अवन्तिय पार्श्वनाथस्य प्रतिष्ठिता... बिंबं.. स्य तपापक्षे श्री 108 विमलदेवसूरि राज्ये पं.श्री उत्तमविमलगणि उपदेशात् श्री अवन्ती वास्तव्य..... इसके सिवाय भी तपागच्छीय आचार्यों के लेखवाली अनेक जिनप्रतिमाएं श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में बिराजमान हैं, जिससे स्पष्ट जाहिर हो जाता है कि भूतकाल में भी इस तीर्थ के जीर्णोद्धार निर्माण कार्य, प्रतिष्ठा, देख रेख वगैरह तपागच्छीय साधु भगवंतों के उपदेश से हुए थे। पिछले 100 साल की बात देखे तो “वि.सं.१९६४ में यहाँ धर्मशाला का निर्माण तथा वि.सं. 1976 में आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी के बिम्ब की प्रतिष्ठा तपागच्छीय मुनिराज श्री हंसविजयजी की प्रेरणा से श्रेष्ठी घमडसी जुहारमल द्वारा की गई / फाल्गुन वदी-७ वि. सं. 1995 के दिन तपागच्छीय आचार्यश्री लक्ष्मणसूरिजी की निश्रा में श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन श्वे.मू.पू. मारवाडी समाज कमेटी का निर्माण हुआ / पश्चात् सन् 1976-77 को ट्रस्ट बनाया गया / घमडसी जुहारमल फर्म, जो लगभग शताधिक वर्षों से उक्त तीर्थ का देख-रेख कर रही थी, उसने दिनांक 31 अगस्त 1980 के दिन तीर्थ का संचालन श्री अवंति पार्श्वनाथ तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाडी समाज ट्रस्ट को सौंप दिया / " ऐसा होते हए भी जब सन् 1995 में मणिप्रभसागरजी की प्रेरणा से जीर्णोद्धार कराने का निर्णय हुआ तब उन्हों ने "मूलनायक प्रभु सिद्धसेनदिवाकर सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हुए हैं, अतः उत्थापन किये बिना जीर्णोद्धार होना चाहिए।" यह बात रखी थी, ऐसा आमंत्रण पत्रिका में लिखा है। कहा जाता है कि मध्यकाल में पुनः श्रीसंघ द्वारा अवन्ति पार्श्वनाथ जिनालय का समूल जीर्णोद्धार कर नूतन शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण करवाया गया / जहाँ प्रतिष्ठा के पहले रात्रि में शैवों द्वारा शिवलिंग स्थापित कर उसे जबरेश्वर महादेव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया, जिन्हें राजा का पीठ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बल प्राप्त था / तबसे प्रभु की प्रतिमा भोयरे के रूप में बने घुमटबंध जिनालय में प्रतिष्ठित थी। ___ मणिप्रभसागरजी ने इतिहास के साथ सर्वप्रथम खिलवाड तो सन् 1995 में ही कर दिया था। उनमें तपागच्छीय आचार्यों के योगदान को उन्होंने दबा ही दिये हैं, क्योंकि उनका कहना था कि “मूलनायक प्रभु सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित किये गये हैं, अतः उत्थापन नहीं करने है।" तपागच्छीय आचार्यों की बात निकालने के बाद खरतरगच्छीय आचार्यों का इस तीर्थ पर उपकार है, यह बताने हेतु उन्हें पुनः नया इतिहास ढूंढना (रचना) पडा / यानि कि जो इतिहास था उसे उडाकर नया इतिहास बताया जावें जिससे ऐसा भ्रम फैले कि खरतरगच्छ के आचार्यों के योगदान से ही यह तीर्थ भूतकाल एवं वर्तमान में देदीप्यमान है। भूतकाल में इस तीर्थ को खरतरगच्छ के आचार्य ने प्रगट किया, पुनः प्रतिष्ठित किया था, ऐसी गलत भ्रमणा फैलाने हेतु किसी पट्टावली या शिलालेख या चरित्रग्रंथ का कोई उल्लेख न मिलने पर एक स्तवन की कडीओं का आश्रय लेकर अपनी इच्छा को सिद्ध करने के लिए आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी तत्पर हो गये हैं / आचार्य श्री ने यह भी नहीं विचारा कि इसमें स्वयं के ही विधानों का पूर्वापर विरोध आ रहा है (सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी द्वारा उत्थापन नहीं करने के पीछे) 2000 वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित होने की बात और सं.१७६१ में जिनचंद्रसूरिजी द्वारा पुनः प्रतिष्ठित होने की बात में पूर्वापर विरोध हैं। तथा इस स्तवन की कडीओं में जैसे स्पष्ट कर दिया गया है कि उसमें कहीं पर भी पार्श्वनाथ प्रभु को जिनचंद्रसूरिजी ने प्रकट किये या प्रतिष्ठित किये / ऐसा लिखा ही नहीं है, परंतु स्तवनकार जिनचंद्रसूरिजी ने तो प्रभु के दर्शन द्वारा जीवन-अवतार को सफल बनाने की बात लिखी है, अर्थात् तीर्थयात्रा करके जीवन धन्य बनाने की बात लिखी है। जिससे स्पष्ट फलित होता है कि मूलनायक श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु पहले से ही मंदिर में बिराजमान थे / अतः सं.१७६१ में खरतरगच्छाचार्य जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी के द्वारा अवंति पार्श्वनाथ प्रभु को प्रकट करने एवं पुनः प्रतिष्ठित करने की बात केवल भ्रमणा मात्र है। यह सब आखिर क्यों किया जा रहा है ? Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने गच्छ की महिमा बढाना, बताना बुरी बात नहीं है, परंतु इतिहास को छुपाना, उसे गलत ढंग से पेश करना, अन्य गच्छ की गौख गाथा को छुपाना यह सब न्यायप्रिय, तटस्थ, आत्मार्थी श्रमण परंपरा को शोभा नहीं देता है। जान-बुझकर गलत भ्रमणा फैलाने से भवभ्रमण भी बढता है। अतः सभी से अनुरोध है कि सही इतिहास को जानकर, भ्रमणा से मुक्त बने एवं अन्यों को भी भ्रमणा से मुक्त करें। ता.क. - खरतरगच्छ का विस्तृत इतिहास जिन्होंने लिखा है, ऐसे इतिहासज्ञ महो. विनयसागरजी ने "खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास" पुस्तक में अब तक के हुए आचार्यों के चरित्र, खरतरगच्छ की पट्टावली आदि ऐतिहासिक सामग्रीओं के आधार से लिखे हैं। उसमें जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर आ.श्री जिनचन्द्रसूरिजी का चरित्र इस प्रकार दिया है : आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि उनके बाद आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि उनके पट्ट पर आसीन हुए / आपका जन्म बीकानेर निवासी चोपडा गोत्रीय साह सहसकरण (मल) की पत्नी सुपियारदे की कोख से सं. 1693 में हुआ था / आपका जन्म नाम हेमराज था / स. 1707 (5 ?) मिती मिगसर सुदि 12 को जैसलमेर में दीक्षा हुई और दीक्षा नाम हर्षलाभ रखा गया / उस समय आप बारह वर्ष के थे / सं. 1711 में श्री जिनरत्नसूरिजी का आगरे में स्वर्गवास हुआ, तब आप राजनगर में थे। उनकी आज्ञानुसार भाद्रपद कुष्णा सप्तमी को राजनगर में नाहटा गोत्रीय साह जयमल्ल, तेजसी की माता कस्तूर बाई कृत महोत्सव द्वारा आपकी पदस्थापना हुई / आप त्यागी, वैराग्यवान् और संयम मार्ग में दृढ थे / गच्छवासी यतिजनों में प्रविष्ट होती शिथिलता को दुर करने के लिए आपने सं.१७१७ मिती आसोज सुदि 10 को बीकानेर में व्यवस्था पत्र जाहिर किया, जिससे शैथिल्य का परिहार हुआ / सं. 1735 आषाढ शुक्ल 8 को खंभात में आपने बीस स्थानक तप करना प्रारम्भ किया / आपने अनेक देशों में विहार करते हुए सिन्ध में जाकर पंच नदी की साधना की / जोधपुर निवासी शाह मनोहरदास द्वारा कारित संघ के साथ श्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की और मंडोवर नगर में संघपति मनोहरदास द्वारा कारित चैत्य के श्रृंगारतुल्य श्री / ऋषभदेवादि चौबीस तीर्थंकरोंकी प्रतिष्ठा की। 3888888888888888888 | 23 ] 888888888888888888 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपने अपने शासन काल में बहुत सी दिक्षाएँ दी और उनके स्थानों में विचरते हुए सं.१७६२ में सूरत बंदर पधारे / आषाढ सुदि 11 को स्वयं सकल संघ समक्ष अपने पट्ट पर श्री जिनसुखसूरिजी को स्थापित किया / पारख सामीदास, सूरदास ने पद महोत्सव बडे धूमधाम से किया / सं.१७६३ में आपश्री सूरत में स्वर्गवासी हुए। खरतरगच्छ के इतिहासकार महो. विनयसागरजी के दिये हए इतिहास में भी शत्रुजय का संघ निकालने की बात तथा मंडोवर में गृहमंदिर प्रतिष्ठा करने की ही बातें लिखी हैं परंतु अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु के प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठा जैसी महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख नहीं किया हैं / यही बताता है - कि उनके जीवन में ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं थी अन्यथा उसका उल्लेख किया होता ही। अतः खरतरगच्छ के इतिहास ग्रन्थ से भी सिद्ध होता है कि अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु का प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठा श्री जिनचंद्रसूरिजी द्वारा नहीं हुई। हैं। In Short श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में पूर्वकालीन किसी भी खरतराचार्यों का शिलालेख या लेख मौजूद नहीं हैं। अगर पूर्व में जिनचन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठा करवायी होती तो जरुर कुछ ऐतिहासिक लेख या गुरुमूर्ति-गुरुपादुकाएँ प्राप्त होती / तथा एक उल्लेखनीय बात यह है कि 800 वर्ष प्राचीन शतपदीग्रंथ के द्वारा सिद्ध खरतरगच्छ की यह प्राचीन परंपरा रही है कि जगह-जगह पर दादागुरु आदि की पादुका वगैरह स्थापित करनी और इसी परंपरा को वर्तमान गणाधिपति श्री भी निभा रहे है। जबकि यहाँ तो ऐसा कुछ भी पुख्ता प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। अतः खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरिजी द्वारा अवन्ति की प्रतिष्ठा की जाने की बात गप्प - गोला मात्र है। In Short उल्टा चोर चोरी करके सीनाजोरी कर रहा हैं। सत्य किसके लिए कटु होता है ? * उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ जिनमंदिर संबंधित कुछ सत्य एवं तथ्य बातें : POORRO998888888 6666666666666666660 DOOOOOOOC DOOOO 0000000000000 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * प्राचीन इतिहास के रुप में, श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी महाराजा द्वारा श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा की गई थी। * 17 वी शताब्दी में तपागच्छीय श्री उत्तमविमलगणि के उपदेश द्वारा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा की गई थी। * क्षिप्रातट पर स्थित इस ऐतिहासिक अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर में अभी अभी कुछ अनधिकृत चेष्टाए की गई तथा इस प्राचीन तीर्थ को स्वगच्छ का स्वतंत्र बनाने हेतु की हुई चेष्टाओं को लोगों ने अपनी नजरों से देखा है। जैसे कि - * इस प्राचीन जिनमंदिर में नवीन प्रतिमा नही बिठाई जावेगी यह कलम तोडते हुए अनेक नवीन प्रतिमाओं को अपने नाम के शिलालेख सहित मंदिर में स्थापित करवाने का प्लानिंग / * अपने दादागुरुओं की प्रतिमा स्थापित करवाकर नया इतिहास सर्जन करने का जो सपना संजोया था कि हमारे दादागुरुओं द्वारा इस तीर्थ का विकास एवं उद्धार हुआ है यह लोगों के आंखो में धुल डालने सा था। * प्राचीन, वर्षो से बिराजित तपागच्छीय यक्षराज श्री मणीभद्रवीर देव की प्रतिमा के साथ क्या हुआ और कैसे हुआ / यह सब बाते तो शासनप्रभावक तीर्थ उद्धारक? सूरिभगवंत जानते ही होंगे? * हद की सीमा तो तब हो गई कि जब प्राचीन पूर्वाचार्यो द्वारा स्थापित प्रतिमाओं को भी प्रस्ताव की कलम तोडकर उत्थापित किया गया / और अब तपागच्छीय आचार्य भगवंतो से प्रत्युत्तर मांगा जा रहा है कि हमारे तीर्थो को आप अतिक्रमण कर रहे हो... वास्तव में तो अतिक्रमण कौन कर रहा है यह पूरी दुनिया देख ही रही है / तपागच्छीय गुरुभगवंतो की यह उदारता है कि अभी तक शांत बैठे है। सत्य को छिपाया जा सकता है मिटाया नहि जा सकता। GOOD PRODOOOOOOOOOOOOO 00000000000000000000 DOOOOOOOOOOOO Coooooooo Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण संमेलन विषयक जवाब 700 (सं. 2073 में श्री तपागच्छीय श्रमण संमेलन के समय तपागच्छ पर किए गए आक्षेपों का निराकरण) खरतरगच्छाचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी, वंदना-अनुवंदना, सुखशाता-पृच्छा. आपका दिनांक 31 मार्च 2016 का प्रवर समिति के नाम लिखा पत्र यथा समय प्राप्त हो गया था / परंतु हमने ऐसे अपरिपस्वता भरे पत्र का जवाब देना उचित नहीं समझा था और उपेक्षा कर दी थी। आशा थी कि आपको (तपागच्छीय हमारे आचार्य द्वारा ही दिए गये ) आचार्य पद की गरीमा के चलते आपको स्वतः ही आप की इस अपरिपक्वता का ख्याल आ जाएगा एवं आप आपके औचित्य को स्वयं ही समज जाओगे / दुर्भाग्य है कि अभी तक भी आपको सौभाग्य से मिले इस पद की गरीमा का अहसास नहीं हो पाया है। तपागच्छ पर वार करने की स्व-उपार्जित एवं पोषित ऐसी एक तरफी द्वेष वृत्ति से प्रेरित हो कर, मानो जिसकी आप हमेशा फिराक में ही थे ऐसा कोई मौका हाथ आया जानकर आपने सारे शिष्टाचार, औचित्य व गरिमा को ताक पर रखते हुए हमारे नाम लिखे आपके इस पत्र को अधिकृत रूप से सोशियल मीडिया पर उछाल दिया / साथ ही आपके पिठु समाचार पत्रों में / भी अन्य संप्रदायों को उकसाते हुए बडी ही निम्न मनोवृत्तियों का प्रदर्शन करता यह मुद्दा उछलवा दिया / यह करके आपने तो अपरिपक्व, अबुध, नादान, गुमराह, धर्म-द्वेषी व मलीन आशय बाले लोगों को शासन हीलना का खुला मैदान ही जानबुझ के उपलब्ध करवा दिया / जिनशासन के हितों को सर्वथा भूल कर और मात्र अपने गच्छ के आत्यंतिक संकीर्ण फायदे (?) को ही ध्यान में रखते हुए आपने एक नितांत ही अनधिकृत दस्तावेज के आधार पर यह कुचेष्टा की है / और अब तक निरंतर आपके द्वारा पिलाए गए दृष्टि-द्वेष के जहर को पी-पी कर मत्त व अंधे बने लोगों के द्वारा भारत भर में विभिन्न माध्यमों से सुधर्मास्वामीजी की अविच्छन्न पाटपरंपरा व सामाचारी को धरानेवाले तपागच्छ एवं उसकी प्रवर . समिति पर अनर्गल व घटीया इल्जामों की परंपरा जारी की जारी रखी थी / Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिर भी हमने समता बनाये रखी थी, परंतु अभी वर्तमान में उज्जैन में श्री . अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में आपने स्वयं नियमों को तोडते हुए गुरुमूर्तियाँ, नयी प्रतिमाएं वगैरह लाई थी, जिन्हें वहा के जिल्लाधीश ने सील करवा दी थी। आपने नयी प्रतिमाएं नहीं बैठायी जाएगी, प्राचीन प्रतिमाओं का उत्थापन नहीं करेंगे एवं दूसरी मंजिल पर श्री महावीर स्वामी और गौतमस्वामीजी की प्रतिमा स्थापित करेंगे, इन सब नियमों को तोडा हैं तथा अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में प्राचीन कोई भी शिलालेख, प्रतिमा लेख, ऐतिहासिक ग्रन्थ यावत् खरतर के इतिहास में भी कोई उल्लेख नहीं होने पर भी खरतरगच्छाचार्य श्री जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि द्वारा श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की / प्रतिमा का प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठापन की गयी थी एवं तब से अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ जन-जन की आस्था का केन्द्र बना है। इस प्रकार का गलत इतिहास एक स्तवन का गलत अर्थघटन करते हुए प्रचारित किया है। जिसका पूरा जवाब पत्र के अन्त में परिशिष्ट में दिया है। ___ खरतरगच्छ के एक बहोत बडे वर्ग की ओर से अन्य गच्छों या मूर्तिपूजक समुदाय के सर्व गच्छों के समान रूप से पूज्य स्थानों पर दादागुरुदेवों के पगलिए, मूर्ति बैठाने आदि के माध्यम से उन स्थानों पर प्रत्यक्ष-परोक्ष अधिकार जमाने की एवं स्थानीय संघों में अब तक की एकता व प्रेमभाव में परस्पर फूट व नफरत, वैमनस्य एवं कोर्ट कचहरी तक के झगडों को खडा करने की प्रवृत्ति काफी लंबे समय से चल रही है, यह तो जगजाहिर बात है। बल्कि इस प्रवृत्ति को बहुत बडा वेग भारत भर के अनेक स्थानों पर घुम-घुम कर आपने खुद ने दिया है, यह तो और भी जगजाहिर बात है / बरसों से आपसी सौहार्द पूर्वक रह रहे तपागच्छ व खरतरगच्छ में (एवं पराकाष्ठा के रूप में खुद खरतरगच्छ में भी / ) भेद खडे करवाकर मंदिरों व तीर्थों आदि पर अनधिकृत वर्चस्व एवं कब्जा जमाने हेतु जगह-जगह संघों में मन को असह्य पीडा व महाव्यथा से भर देनेवाले अनेक-अनेक कार्य आपके एवं आपके पक्ष की ओर से हुए ही है और अब भी जारी है यह किस से छीपा है ? ऐसे एक नहीं ढेरों दुखद प्रसंगो को हम गिना सकते है, और उनके भरपूर सबूत भी दे सकते है। श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ तो स्वयं इस बात का जगजाहिर उदाहरण है कि आप किस तरह अनधिकृत चेष्टा एवं राजनीतिपूर्वक अन्य गच्छों के इतिहास को ढंककर अपने गच्छ की महिमा (?) बढाने की कोशिश में लगे हैं। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसे में श्री जिनशासन व तपागच्छ दोनों के ही हितों को ध्यान में रखते हुए आपके 31 मार्च 2016 वाले पत्र का प्रतिभाव देना अब अवसर प्राप्त बन गया है। आपने लिखा था कि "हमारे पास इस सम्मेलन में चर्चा करने के लिए जो 50 मुद्दे तय किये, उसकी प्रतिलिपि आई है"। सर्व प्रथम हम आपसे यह स्पष्टता चाहेंगे कि यह प्रतिलिपि आपके पास कहां से आई थी, उसका अधिकृत स्त्रोत क्या था ? यह तय है कि प्रवरसमिति ने तो ऐसी कोई प्रतिलिपि आपको नहीं भेजी थी।" आप के पत्र की भाषा से यह प्रतीत होता है कि जैसे "यह प्रतिलिपि तपागच्छीय प्रवर समिति ने आपके साथ-साथ संपूर्ण भारत के खरतरगच्छ संघ एवं युवा समाज को भी भेजी है और इसके चलते आपको हमें पत्र लिखने हेतु बाध्य होना पडा है।" जबकि सच्चाई यह है कि इसकी प्रतिलिपि मात्र तपागच्छ के सभी 2 समुदायों के प्रमुख आचार्यों को ही भेजी गई थी। यहा तक कि तपागच्छ के - संघों तक को भी यह प्रतिलिपि नहीं भेजी गई थी। अतः अन्य गच्छ वालों को यह प्रतिलिपि हमारी ओर से भेजने का सवाल ही नहीं उठता / ऐसे में आपका संपूर्ण भारत के खरतरगच्छ संघ एवं युवा समाज का मन "अतीव / पीडा व आक्रोश से भर उठा है" वह आप के द्वारा एक सर्वथा गलत तरीके से प्राप्त अनधिकृत दस्तावेज के कारण से हुआ है / अतः इस पीडा के जिम्मेदार हम नहीं किंतु एक मात्र रूप से आप खुद हो, इस सच्चाई का आप स्वीकार करें। आप में तपागच्छ के प्रति आत्यंतिक तेजोद्वेष का अंधत्व इस कदर आया हुआ है कि आपका पत्र सोशियल मिडीया पर रखते हुए एवं समाचार पत्रों को देते हुए आपको यह भी ध्यान नहीं रहा कि आपके द्वारा बिना विचारे यथावत उद्धृत 28 नंबर के मुद्दे में तपागच्छ, खरतरगच्छ आदि समस्त मूर्तिपूजक संघ के लिए तरह-तरह से नुकसानकर्ता ऐसे स्थानकवासी, तेरापंथी S एवं खास तो सम्मेतशिखर आदि तीर्थों में महापरेशानी का कारण बने हुए दिगंबरो का भी स्पष्ट रुप से नाम है। क्या सम्मेतशिखर, अंतरिक्षजी, मक्षीजी आदि अनेक तीर्थों से आपका एवं आपके आज्ञानुवर्ती खरतरगच्छ का कोई नाता रिश्ता नहीं है ? Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेवाड आदि विविध क्षेत्रों में अनेक मंदिर आदि स्थानकवासी एवं तेरापंथीयों के कब्जे में है / क्या इन मंदिरों में आपने खरतरगच्छ वालों के लिए दर्शन-पूजन आदि की निषेधाज्ञा फरमा रखी है ? क्या आपने आपकी इस द्वेषांध चेष्टा के माध्यम से खरतरगच्छ सहित समग्र मूर्तिपूजक श्रीसंघ के साथ द्रोह नहीं किया है ? समग्र मूर्तिपूजक श्री संघ के हितों को गंभीर नुकशान नहीं पहोंचाया है? आपने जहाँ से भी पाई है और पोषी है, आपके हृदय में तपागच्छ के प्रति एकतरफा रूप से रही इस द्वेष की महाकालिमा को आप दूर करें / यह श्रमणोचित होगा। हमारी अंतरंग चर्चा के संभावित विषयों के एक अनधिकृत कच्चे प्रारुप में आपकी इन प्रवृत्तियों पर विमर्श की भनक मात्र पर आपकी इतनी तीव्र प्रतिक्रिया ही यह स्पष्ट कर दे रही है कि आपके पत्र के माध्यम से "कौन" “किसे" "क्युं" "डांट" रहा है / सामान्य व्यवहार का एक जरा भी जानकार व्यत्ति हमारे सम्मेलन में हए निर्णयों की अधिकृत घोषणा को देखता फिर उसके उपर से अपने प्रतिभाव देता / क्या आप में इतनी भी परिपक्वता नही आई है? अब यह भी आपकी ही जिम्मेदारी बनती है कि आप श्रीसंघ में लंबे समय तक संक्लेश एवं संघर्ष का बीजारोपण व पोषण हो ऐसी आपके पक्ष द्वारा हो रही सारी प्रवृत्तियां अविलंब बंद करवाएं एवं पुनः सौहार्द का वातावरण खडा करवा कर आपकी सदाशयता का परिचय दें। हम जानते हैं कि अनेक प्रसंगों पर अनेक स्त्रोतों द्वारा स्पष्ट रूप से आप की एवं खरतरगच्छ के एक वर्ग की ओर से चल रही इन अनुचित एवं . विघातक प्रवृत्तियों की बातें आप के ध्यान पर लाई जाती रही है और उनके सामने आप निरुत्तर भी हुए है, फिर भी यदि आपको यह लग रहा है कि खरतरगच्छ की इन प्रवृत्तियों से आप सर्वथा अनजान ही है तो कृपया हमें ज्ञात करावें, हम आपको आपकी ओर से हो रही इन प्रवृत्तियों की सूचनाएं सप्रमाण भिजवाने का प्रारंभ कर सकेंगे। __आपने अपने पत्र में लिखा था कि "खरतरगच्छ के कितने ही तीर्थ तपागच्छ के अधीन है।" Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाँ, अमुक तीर्थ तपागच्छ के आधीन है तो यह भी स्पष्ट है कि वे आपकी तरह षडयंत्रो के माध्यम से तपागच्छ के आधीन हरगिज नहीं आए है बल्कि उसके पीछे का परम सत्य यह है कि... (1) तपागच्छ ने इन तीर्थों को जिनशासन की धरोहर समझ कर नाश होने से बचाया है। वजह थी कि खरतरगच्छ की ओर से उस क्षेत्र में उस तीर्थ को सम्हाल सकें ऐसे कोई नहीं बचे थे / जैसा कि खरतरगच्छ वाले अनेक स्थलों पर कर रहे है वैसी मलीन रीत रसमों को आजमा कर तपागच्छ ने तीर्थों की कब्जेदारी हरगीज नही की है। तपागच्छ ने आपदा के समय उन तीर्थों को सम्हाला, लाखो नहीं परंतु करोडों-करोडों रुपए खर्च कर के उन तीर्थों का जीर्णोद्धार, विस्तार, विकास आदि किया है। उन तीर्थों को बहोत ही अच्छी तरह से सुरक्षित रखा है और उनकी जाहोजलाली करवाई है / खरतरगच्छ सहित सारा मूर्तिपूजक श्रीसंघ बडे उल्लास से उन तीर्थो की आराधना कर रहा है। (2) या तो उन तीर्थों के निर्माण या संचालन में प्रारंभ से ही तपागच्छ वालों का साथ-सहकार व भागीदारी रही है एवं बडे ही सद्भाव व सहयोग पूर्वक दोनों ही गच्छ वालों ने साथ रह कर तीर्थों का निर्वाह किया है। ऐसे तीर्थों के निर्माण के बाद एवं निर्वाह व आय वृद्धि में बहुधा तपागच्छ का ही स्वाभाविक रूप से कुल मिलाकर सब से ज्यादा योगदान रहा है। फिर क्रमशः अन्य कोई विकल्प न होने से क्वचित् सारा संचालन तपागच्छ का हो गया हो ऐसा हो सकता है। __ तपागच्छ भी अपनी उदार गरिमामय परंपरा का निर्वाह करता हुआ जिनशासन की इन धरोहरों को भी सम्हाल रहा है / इसका तपागच्छ को परम संतोष है। क्या यह सच्चाई आपके ध्यान में नहीं है कि जहाँ तपागच्छ वाले नहीं थे वहा खरतरगच्छ की क्या हालत हुई है ? क्या वे क्षेत्र स्थानकवासी व तेरापंथी नहीं बने ? वहां के धर्म स्थानों की क्या हालात है ? वे धर्मस्थान उनके कब्जे में है और उपेक्षित हालत में है / जर्जरित-खंडहर हो रहे है या कोई अन्य ही अपयोग हो रहा है / उनकी पूजा करने वाला या ध्यान तक रखने वाला कोई नहीं है। फिर भी जो ध्यान रख रहे है वे दूर-दराज से जा कर भी तपागच्छ वाले ही बहुधा रख रहे है। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ की इस शासन निष्ठा की सराहना-अनुमोदना करना तो दूर, तपागच्छ पर सरेआम ऐसे निम्न कक्षा के आरोप लगा कर आपने अपनी किस मानसिकता का परिचय दिया है ? कोई भी कृतज्ञता गुण-संपन्न ऐसी हरकत करने की सोच भी सकता है क्या? गच्छ-कदाग्रह एवं लघुताग्रंथी से जन्मे तेजोद्वेष की मानसिकता क्या यह इस से प्रकट नहीं हो रही है ? शासन समन्वय और पारस्परिक प्रेम पर कुठाराघात कौन कर रहा है वह आप के इस पत्र की शैली से ही स्पष्ट नहीं हो रहा ? कृपया अतीव शांत चित्त से आत्म विलोकन करें / गौतमस्वामी रास के विषय में हम इतना ही निवेदन करना चाहेंगे कि यह अब जरूरी लगता है कि आप प्राचीन साहित्य के विषय में अपना ज्ञान पर्याप्त मात्रा में समृद्ध करें / देश और काल के व्यापक फलक में प्राचीन साहित्य के क्षेत्र में अनेकानेक वजहों से बहोत कुछ घटित हुआ है / यहाँ आपको यह बता दें कि गौतमस्वामी रास के कर्ता के रुप में विनयप्रभ के अलावा मात्र उदयवंत ही नहीं परंतु विजयभद्रसूरि आदि और भी अनेक विद्वानों के नाम सेंकडो वर्ष प्राचीन हस्तलिखित प्रतों में मिल रहे है। आप जिन विनयप्रभ की बात कर रहे हो वे खरतरगच्छ के ही थे उसका विश्वसनीय पुख्ता प्रमाण भी साथ में पेश करते तो अच्छा रहता / और श्री विनयप्रभ खरतरगच्छ के सिवाय के अन्य भी तो हो सकते है। एक ही काल में एक ही नाम के साधु विभिन्न गच्छों में हुए होने के अनेक प्रमाण मिलते है / कृति में उन्होनें कहा अपने गच्छ या गुरु परंपरा का कहीं उल्लेख किया है ? बाह्य प्रमाणों को प्रमाणभूत मानने से पहले उनकी विश्वसनीयता परखनी कई बार बडी जरुरी हो जाती है। कर्ता के नामों में फेरबदल की तरह अनेक ऐतिहासिक फर्जी प्रमाणों को खडे करने के प्रयासों में एक खास गच्छ के लोगों की सदियों से माहिरात रही है / वैसे आप यह बता पाएंगे कि खरतरगच्छ के अनुसार त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र के कर्ता कौन थे ? पूर्णतल्लगच्छीय कलिकालसर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी या फिर खरतरगच्छ के कोई आचार्य ? क्या जिनवल्लभ और जिनदत्तसूरि ये दोनों एक ही विद्वान के नाम है ? हम आप से Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह पूछ रहे है तो कुछ खास वजह से ही पूछ रहे है। परस्पर सौहार्द एवं उदारता के कुछ नमुने... 1. खरतरगच्छ के आचार्य श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा तपागच्छ के आचार्य श्री सोमतिलकसूरिजी का सामने से संपर्क कर के तपागच्छ यह जिनशासन की मुख्यधारा का ही गच्छ होने की प्रतीति कर लेने के बाद अपने ग्रंथों को भावी सम्हाल हेतु उन्हें (यानि तपागच्छ को) सुपर्द करने की प्राचीन घटना में समूचे खरतरगच्छ के लिए कई बोध संकेत निहित है / कदाग्रह-मुक्त चित ही इन संकेतो को अच्छी तरह समझ पाएगा। 2. खरतरगच्छ के मूर्धन्य विद्वान श्री जिनहर्षने अपना अंतिम समय तपागच्छ के साधुओं के साथ बिताया था / तपागच्छ में आज भी उनके स्तवनादि बडे भाव से बोले जाते है। 3. खरतरगच्छ के श्रीमद् देवचन्द्रजी के विरल कृतित्व और व्यक्तित्व को दो बडे भागों में सर्व प्रथम श्रीसंघ के समक्ष लाने वाले तपागच्छ के आचार्य योगनिष्ठ बुद्धिसागरसूरीश्वरजी थे। 4. खरतरगच्छ के अध्यात्म अवधूत श्री ज्ञानसारजी ने तपागच्छ के महा- महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी के ज्ञानसारग्रंथ के रहस्यों को उजागर करती टीका रची है / उनका अपना नाम ही ज्ञानसारजी होना क्या कम सांकेतिक है? 5. खरतरगच्छ के श्रीमद् देवचंद्रजी की चौबीसी पर विवेचना लिखी है तपागच्छ के अध्यात्मनिष्ठ आचार्य देव श्री कलापूर्णसूरीश्वरजी ने और बेनमून विराट कलाकृति सा सजा कर छपवाया है तपागच्छ के श्री प्रेमलभाई कापडीयाने / 6. वर्तमान में इसी चौबीसी पर तपागच्छ के "यशोविजयसूरि" इस - समान नामधारी दो दो तपागच्छीय आचार्यों ने अपनी संवेदनात्मक विवेचना लिखी है एवं प्रवचनों तथा वाचनाओं में सभाओं को भावित की है। 7. खरतरगच्छ के एक साध्वीजी ने तपागच्छ के उपा. श्री विनयविजयजी विरचित शांतसुधारस पर पी.एच.डी. निबंध लिख कर दो भागों में छपवाया है। 8. अनेक प्राचीन खरतरगच्छीय विद्वानों की कृतियों का संपादन Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संशोधन कर सर्वप्रथम प्रकाश में लाने वाले है तपागच्छीय श्रमणगण / क्या आप इस सद्भाव को आगे हमेशा के लिए मिटा देना चाहते हो? आपके पत्र से ऐसा लगा कि आप का दावा है कि आप इतिहास के गहरे और प्रामाणिक अध्येता है। यदि आप सच ही इतिहास का यथार्थ ज्ञान रखते है तो हमारा आपसे निवेदन है कि 1. आप अब से स्वयं खरतरगच्छ को सबसे प्राचीन गच्छ के रूप में बतलाना व प्रासारित करना तात्कालिक रूप से सर्वथा बंद कर दे एवं खरतरगच्छ के और लोगों से भी बंद करवा दे / कोई भी राजा अपनी मृत्यु के वर्षों बाद किसी को पदवी दे, यह बात करना किसी सच्चे इतिहासज्ञ के लिए उचित है ? इतिहास के साक्ष्य गच्छ के रूप में खरतर शब्द का प्रयोग ही विक्रम की चौदहवीं सदी जितने लंबे अंतराल के बाद का बताते है / हाँ, आचार्य श्री जिनदत्तसूरि के साथ गच्छाभिधान से भिन्न अन्य ही एक खास अर्थ में "खरतर" शब्द जुडा होने के ऐतिहासिक प्रमाण जरुर उपलब्ध है। 2. इसी तरह आप नवांगी टीकाकार श्रीमद् अभयदेवसूरीश्वरजी को भी खरतरगच्छीय बताने व प्रसारित करने का शीघ्रतया बंद करें एवं आपके लोगों से भी बंद करवाएँ / यह स्पष्ट है कि पू. अभयदेवसूरिजी मात्र पांच कल्याणकों को ही मानते थे, जबकि छ: कल्याणकों की मान्यता के बिना कोई "खरतर" हो ही नहीं सकता। 3. स्तम्भन तीर्थ नवाड्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी द्वारा प्रगट हुआ था / जब अभयदेवसूरिजी ही खरतरगच्छ के नहीं थे, तो स्तम्भन तीर्थ खरतरगच्छ का कैसे? 4. धनपाल कवि ने स्वयं तिलकमंजरी में अपने गुरु का नाम महेन्द्रसूरि लिखा है, तो उन्हें वर्धमानसूरि या जिनेश्वरसूरिजी के शिष्य बताकर, धनपाल कवि एवं शोभनमुनि को खरतरगच्छीय सिद्ध करना कहाँ तक उचित - 5. आयड तीर्थ तो तपागच्छ के नामकरण से संबद्ध है, अतः 800 साल से वह तपागच्छ से जुड़ा हुआ है एवं मेवाड के राणाओं का तपागच्छ के साथ घनिष्ठ संबंध था / अत एव मेवाड में प्रायः तपागच्छ के श्रावक एवं मंदिर मिलते है। 6. देवकुल पाटक का एक 52 जिनालय अगर खरतरगच्छीय आचार्य Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वारा प्रतिष्ठित किया गया हो, तो इतने मात्र से क्या पूरा तीर्थ खरतरगच्छ का हो गया? शाबाश ! इतने दिनों तक देवकुल पाटक तीर्थ की सार-संभाल तो ली नहीं और जब तपागच्छीय आचार्य ने तत्रस्थ स्थानकवासी बने हुए पुरे गाँव को अथाग प्रयासों के द्वारा समझाया एवं लाखों रुपयों का व्यय करवाकर एवं समय देकर जीर्णोद्धार एवं तत्रस्थ श्रावकों का उद्धार कार्य सफलता पूर्वक किया / तब पीछे से यह तो खरतरगच्छ का है, ऐसा कहना किस कल्याणकारी मानसिकता का परिचायक है ? 7. इसी तरह अन्य तीर्थों के विषय में समझ सकते हैं, क्योंकि हस्तिनापुर, कंपिलपुर वगैरह तीर्थ तो कल्याणक भूमियाँ है, अतः वहाँ पर तो प्राचीन काल से मंदिर आदि रहे ही थे / कालक्रम से वहा पर किसी खरतरगच्छीय आचार्य ने जीर्णोद्धार आदी कराये होंगे अथवा कोई पगलिये बिठाये होंगे / परंतु इतने मात्र से वे कल्याणक भूमियों के तीर्थ खरतरगच्छ के नहीं हो जाते / वे तो सकल संघ के ही थे और रहेंगे / वहीवट की डोर कभी खरतरगच्छ की प्रमुखता में थी और आज तपागच्छ यह कर्तव्य सुचारुरूप से निर्वाहकर रहा है / इसमें हडपने की बात कहाँ आई ? 8. मूल बात तो यह है कि "शतपदी ग्रन्थ जो सं. 1219 में अञ्चलगच्छीय आचार्य ने बनाया है, उसमें उन्होने खरतरगच्छीय आचार्य के द्वारा अपने पास में एक पेटी रखना एवं उसमें प्राप्त हुए गुरुपूजन के दान द्वारा कालधर्म के बाद अपने गुरुओं के पगलिये बनवाकर जगह-जगह स्थापित करने की प्रवृत्ति शुरु की गई थी, यह बताया है।" इससे समझ सकते है कि किन्हीं प्राचीन तीर्थों में अगर कोई खरतरगच्छीय प्राचीन पगलिये आदि मिल भी जावें तो भी उतने मात्र से यह कहना बडी भूल होगी कि वह खरतरगच्छीय तीर्थ ही है या था / इसी तरह और भी अनेक अन्य प्राचीन गच्छों, आचार्यों और उनके ग्रंथों को खरतरगच्छ का बताने की व प्रस्थापित-प्रसारीत करने की कुटिल नीति भी पूरी तरह से बंद करें / 9. खरतरगच्छ द्वारा सम्राट अकबर प्रतिबोधक के रूपमें जगदगुरु विजय हीरसूरीश्वरजी ही होने के तथ्य को छुपाकर व निषिद्ध कर के खरतरगच्छीय आचार्य जिनचंद्रसूरीश्वरजी को ही प्रचारित करने की और इस / Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - बात में भी तपागच्छ पर सरासर झूठे इल्जाम लगाने की जोरशोर से चल रही गुमराह करने वाली द्वेषभरी मलिन प्रवृत्ति बंद करवाएँ इतिहास के पुख्ता प्रमाण व साक्ष्य है कि अकबर पर जिनचंद्रसूरिजी का प्रभाव बिल्कुल सीमित ही रहा था / बल्कि उन्होंने तो अपना निवेदन मनवाने के लिए अकबर को विजयहीरसूरीश्वरजी की दुहाई दी थी / अकबर पर मुख्य व ऐतिहासिक प्रभाव तपागच्छ के आचार्य विजय हीरसूरीश्वरजी एवं उनके शिष्यों का ही रहा था / जिनशासन की इस गौरव गाथा का आप भी सर्वत्र यथार्थ प्रचार करें एवं खास तो आपके गच्छ में जो गलतफहमियाँ पिछले कुछ दशकों से जानबुझ कर खडी की गई है उनको दूर कर के सही हकीकत बतलावें / साथ ही जैन, जैनेतर सभी इतिहासकारों द्वारा सिद्ध इस ऐतिहासिक तथ्य को झुठलाकर अकबर प्रतिबोधक के रूप में जिनचंद्रसूरिजी को दर्शाने वाले जो भी भ्रामक शिलापट्ट आदि खरतरगच्छ की ओर से जहा भी बने है एवं बन रहे है उनका तात्कालिक निवारण एवं निराकरण करवाएँ / 10. खरतरगच्छ के मंदिरों को में नीचे दादा गुरुदेवों की बडी मूर्तियां एवं उपर की बालकनी में श्री जिनेश्वर प्रभु की गौण मूर्ति की स्थापना का जो प्रचलन खडा करके जिनेश्वर परमात्मा के महत्व को घटाया जा रहा है यह एक अतीव निंदनीय जघन्य अपराध है उसे तात्कालिक रोका जाए एवं बन चुके स्थलों को सुधारा जाए। 11. भोले भक्तों और श्रीसंघ समक्ष दादा साहेबों को जोर-शोर से गुरु गौतमस्वामी से भी एक तरह से ज्यादा बडा एवं पूज्य बताना आप बंद करें / यह प्रथम गणधर गुरुगौतमस्वामी की खरतरगच्छ द्वारा अभिनिवेश में आ कर की जा रही निकृष्ट कोटी की आशातना व अवहेलना है। 12. “दादा वाडी" या "दादा साहेब" ये शब्द श्रीसंघ में सभी गच्छों द्वारा अपने-अपने स्थानों हेतु लंबे समय से रुढ है एवं प्रचलन में है। इन शब्दों पर खरतरगच्छ का एकाधिकार बता कर अन्य गच्छों को अपने पूज्यों के स्थानों हेतु उन्हें उपयोग में लेने से रोकने की कुचेष्टा आप सर्वथा बंद करें एवं इस शब्द का करवाया गया हास्यास्पद सरकारी पंजीकरण तुरंत ही रद्द करवाएं। 13. जैन इतिहास के साथ अनधिकृत छेडछाड बंद करवें / खास कर ओसवालों के इतिहास को ले कर समाज को भ्रमित करना बंद करे / एवं उपकेश गच्छीय पूज्य रत्नप्रभसूरीश्वरजी के महान उपकारों को गुमनामी में धकेलने के हीन प्रयास बंद करें / Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. इसी तरह की दूषित मानसिकता के चलते आपके एवं आपके गच्छ द्वारा ऐसी अन्य भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिनशासन के लिए जो भी अहितकर प्रवृत्तियों की जा रही है वे भी तात्कालिक रूप से अटकावें। एक वरिष्ठ तपागच्छीय आचार्य के हाथों एवं अनेक तपागच्छीय आचार्यों आदि की सौहार्दपूर्ण उपस्थिति में हुई आपकी आचार्य पदवी के तुरंत ही कुछ दिनों बाद आप की ओर से तपागच्छ पर इस तरह सरे आम बेतुके व जघन्य इल्जाम लगा कर आपने किस शालीन व गौरवशाली परंपरा का निर्वाह किया है ? एक शांत, सद्भावपूर्ण व सौम्य माहौल को इस तरह दूषित करने के क्या अंजाम आ सकते है उस पर आप परिपक्व मति को आहूत कर विचार कर लें। __आप को सद्भावना भरे हृदय से हमारा निवेदन है। कि "आप अपने गच्छ के एक धडे के एक अंश की ही सीमित सोच से बाहर आएँ ।"आप जरा समग्र श्रीसंघ एवं जिनशासन के हितों की भी सोचें, उन पर भी ध्यान दें / वर्तमान में अंदर-बाहर जो परिस्थितियाँ आकार ले रही है और जिन भयावह परिस्थितियों ने जिनशासन को घेरकर रखा है, उनके चलते समग्र जैन समाज व श्रीसंघ का अस्तित्व ही निरंतर खतरे की ओर बढ़ रहा है। जब समग्र जैन श्रीसंघ की ही बडे पैमाने पर दुर्दशा खडी होने के स्पष्ट आसार है, तब खरतरगच्छ कोई जिनशासन से बढकर नहीं है कि उसका अस्तित्व बच जाएगा / जब दादावाडीयों आदि को पूजने, सम्हालने वाले किसी भी गच्छसम्प्रदाय के जैन ही मिलने दुर्लभ हो जाएगे उस वक्त आपकी प्रियतम दादावाडियों आदि के क्या हाल होंगे वह भी सोचें / यह कोई मुद्दे को अन्यत्र ले जाने का प्रयास नहीं है, बल्कि एक खुब ही जिम्मेदार गच्छ की ओर से आपको भी आपकी जिम्मेदारी का अहसास करवाने का प्रयास मात्र है। आशा है कि अब आगे से आप सकारात्मक व परिपक्व प्रतिभाव देने की शालीन परंपरा को अपनाएंगे, ताकि सार्थक सुसंवाद हो सकें। 000000000DPOORope 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK 600000000000000 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरतरगच्छीयों के कतिपय पराक्रमों की सूचि सबूत के रुप में यहां पर दी है, शांत चित्त से पढे व शासन हित के लिए तत्पर बनें / 7deg 1. सांगानेर (जयपुर के पास) तीनों मंदिरों में भगवान की मूर्तियों पर तपागच्छीय आचार्यो के शिलालेख है / विजय हीरसूरि, विजयसेनसूरि, विजयसिंहसूरि व विजयप्रभसूरि के लेख वाले पगले की देरीयाँ है / फिर भी वहा पर खरतरगच्छ दादावाडी का बोर्ड लगा दीया गया है एवं अभी कुछ बरसों पहले ही मणिप्रभसागरजीने खरतरगच्छीय गुरुमूर्तियाँ भी बैठा दी है। 2. आगरा रोशन मोहल्ला : विजयहीरसूरीश्वरजी के समय के तपागच्छीय मंदिरो में अभी कुछ बरसों पहले खरतरगच्छीय गुरुओं की मूर्तियाँ व पगले बैठा दिये गए है। 3. आगरा विजय हीरसूरीश्वरजी दादावाडी में खरतरगच्छीयों ने अपने गुरुओं के पगले बैठा दिये है / जब तपागच्छवालों ने विजयहीरसूरीश्वरजी की मूर्ति बैठानी चाही तो खरतरगच्छ वालों ने बैठाने नहीं दी / तपागच्छवालों को उनकी खुद की दादावाडी में उनकी मनपसंद जगह पर मंदिर न बनाने देकर अन्य जगह बांधने लिए मजबूर किया / माणिभद्रजी की प्रतिमा को काला भैरव में परिवर्तित कर दिया। 4. श्री ओसियाजी तीर्थ में मंदिर के पिछले भाग की प्राचीन खाली देरीयों में अभी कुछ वर्षों पहले ही नई खरतर-गच्छीय गुरुमूर्तियाँ बैठा दी है। 5. दिल्ली छोटी दादावाडी के मंदिर में भगवान अंचलगच्छीय आचार्यों के प्रतिष्ठित है एवं वहाँ पगलिए भी उनके ही गुरुओं के, थे उन पगलियों को हटा कर बगीचे में रखवा दिया गया है और देरियों में खरतरगच्छीय गुरुओं के नए पगले प्रतिष्ठित किए गए है।। 6. सांचोर में संघ की भलमनसाई का दुरुपयोग करते हुए अन्न जल त्याग की धमकी दे कर खरतरगच्छ के साध्वीने दादावाडी बनवाई। 7. शौरीपुरी तीर्थ में च्यवन कल्याणक व जन्म कल्याणक मंदिर के बीच वि.सं. 2010 में खरतर गुरुओं के पगलिए बैठा दिये / / 8. उदयपुर में खरतरगच्छीयों का अस्तित्व नहींवत् था / वहाँ के Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोगों के घर में रहे कुलदेवता के पगलियों को दादागुरुओं के पगलिए बता- . बता कर वहाँ पूरा खरतरगच्छ संघ खडा कर दिया / 9. बलसाणा तीर्थ तो पूर्णतः तपागच्छ के आचार्य श्री विद्यानंदसूरिजी की प्रेरणा से ही बना है, वहाँ पास में छोटी दादावाडी बनायी / मंदिर में से सीधे जा सके इस लिए दीवाल तोडकर दरवाजा दिया है। स्वाभाविक है कि भविष्य में खरतरगच्छ वालों के लिए मंदिर के उपर कब्जा जमाने का रस्ता खुल गया / आगे जा कर कहेंगे कि हमारी दादावाडी है तो मंदिर भी हमारा है। वैसे भी प्राचीन होने की वजह से मूर्ति पर तो कोई लेख आदि है नहीं। 10. अजमेर दादावाडी में खरतरगच्छ ने प्रश्न खडे कर रखे थे, उनके केस चल रहे थे, जो अभी अभी तपागच्छवालों ने जीते है। फिर भी खरतरगच्छ वाले तपागच्छ वालों को चैन से नहीं बैठने दे रहै हैं। 11. अजमेर दादावाडी का व्यवस्थापन वहाँ के जुना मंदिर ट्रस्ट का खरतरगच्छ, तपागच्छ का संयुक्त ट्रस्टमंडल 100 से ज्यादा बरसों से कर रहा है। उसी ट्रस्ट के तत्वावधान में रही विशाल दादावाडी में मणिप्रभसागरजी के उकसावे से खरतरगच्छ वालों ने बड़ी समस्याएं खडी की हुई है / केस चल रहा है / खरतरगच्छ वालों ने सरकारी दस्तावेजों में फर्जीवाडा भी किया था जो पकडा गया / नया बनाने के नाम पर मंदिर उतार दिया गया है और अब काम प्रारंभ करवाने में खरतरगच्छ वालों ने रोडे डाल कर काम अटका रखा है। 12. पूना तपागच्छीय दादावाडी में भी खरतरगच्छ वालों ने गुरुमूर्तियाँ बिठाई है। काफी घर्षण हुआ था। 13. नागोर हीरावाडी आदिनाथ मंदिर सर्व गच्छीय है / उस में खरतरों ने तपागच्छ वाले जब संवत्सरी प्रतिक्रमण कर रहे थे तब चोरी से दादागुरुओं के पगलियों की प्रतिष्ठा कर दी. जो बडे मन दुख के बाद आज भी मौजुद है / 40 वर्ष से उपर हुए होंगे। 14. जोधपुर भैरुबागमंदिर में मणिप्रभसागरजी ने दादागुरु की प्रतिष्ठा का बहोत प्रयत्न किया था। 15. हैद्राबाद आदिनाथ संघ मंदिर का कब्जा खरतरगच्छ वालों ने कुटिल तरीकों से कर लिया / घोर शासन हीलना करवाते थे, अतः तपागच्छ वालों को छोड देना पडा. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 16. हेद्राबाद मंदिर की प्रतिष्ठा के समय मंदिर के बाहर जो पगले थे वो आचार्य कलापूर्णसूरि महाराज की हाजरी में झगडा करके मंदिर के अंदर बैठा दिए। 17. हैद्राबाद में तपागच्छ वालों को वहाँ के नवाब ने विजयहीरसूरि की दादावाडी के लिए जगह दी थी / क्या वह दादावाडी कि जगह आज तपागच्छ के पास है ? 18. तपागच्छ वालों की उपज के तो भरपूर पैसे खरतरगच्छीय मंदिरों (यानी कि दादावाडीयों / गुरुमंदिरों) आदि हेतु जाते है / परंतु उनके खुद के पैसे प्रायः प्रायः खरतरगच्छ की दादावाडीयों आदि हेतु ही लगते है / अन्य गच्छ या शासन के कार्यों में भाग्य से ही लगते होंगे। 19. गुजरात मांगरोल के मंदिर में लेख विहीन पगलीयों को दादा साहब के पगलिए बताना। 20. ब्यावर संघ में पूर्व काल से चली आती श्वेतांबर जैन समाज की यानि मूर्ति पूजक-स्थानकवासी-तेरापंथी तीनों की शामिल दादावाडी की विशाल जगह को खरतरगच्छ ने हडपा हैं / 21. नंदुरबार में खरतरगच्छ का नामोनिशान नहीं था, सालों से सभी तपागच्छ की क्रियाएं करते थे, संघ में एकता थी-सौहार्द भरा वातावरण था / कुछ खरतरगच्छीय साध्वियों के चातुर्मास, उसके बाद मणिप्रभसागरजी के चातुर्मास के बाद संघ में वैमनस्य हुआ और दो विभाग पडने की नौबत पर थे। 22. जोधपुर शहर के अनेक जैन मंदिर शुरु से जिनका अधिकार तपागच्छ का था, अभी वे खरतरगच्छ ने हस्तगत किए हैं। 23. दुठारिया गांव में कोई खरतरगच्छ को जानते भी नहीं थे / / तपागच्छ के आचार्य न मिलने से गांव वालोंने मणिप्रभसागरजी को प्रतिष्ठा हेतु - बुलाया था। उन्होंने पूरे गांव को गोत्र का बहाना निकाल कर तपागच्छ में से खरतरगच्छ में परिवर्तित कराया। 24. अवन्ति पार्श्वनाथ में एक भी प्रतिमा खरतरगच्छ की न होते हुए भी खरतर द्वारा कब्जा किया गया / 25. बीकानेर में आ. हीरसूरिजी की प्राचीन प्रतिमाजी पर खरतरगच्छ के आचार्य द्वारा लेख मिटाया गया है। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26. नाकोडा भैरवजी के प्रतिष्ठा कर्ता एवं उनको जाग्रत कर्ता तपागच्छ के आचार्य हिमाचलसूरि होते हुए भी वो खरतरगच्छ के अधिष्ठायक कैसे बन गए ? 27. खरतरगच्छ के अधिष्ठायक काला गोरा भेरु है। जबकि नाकोडा भेरुजी लाल है। वो राता भैरुजी है। 28. जहाँ-तहाँ तपागच्छ के स्थानों में दादावाडी व पगले बिठाना खरतरगच्छ की प्राचीन परंपरा है और उसके बाद वो स्थान अपने नाम कर लेना यह कुटनीति है। यह तो केवल जानकारी में आए उदाहरण हैं, इसके अलावा अज्ञात कई उदाहरण हैं। Poppopopomp9909 6666666666666666660 00000000000000000 600000000000000 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 1 श्रमण संमेलन के समय आ. मणिप्रभसूरिजी द्वारा लीखा गया पत्र एवं पत्रिका में दीया गया दुःखद लेख गच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरि पालीताना 31 मार्च 2016 पूज्य आचार्य भगवंत तपागच्छाधिपति श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी म., पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री विजयहेमचन्द्रसूरीश्वरजी म., पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री विजयजयघोषसूरीश्वरजी म., पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री विजयअभयदेवसूरीश्वरजी म., पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागरसूरीश्वरजी म. आदि समस्त आचार्य प्रवरों के श्रीचरणों में वंदना स्वीकार करावें। श्री सिद्धाचल महातीर्थ की पावन भूमि पर 1 मार्च से 12 मार्च 2016 तक वर्तमान समस्त गच्छों में प्राचीन खरतरगच्छ का महासम्मेलन विराट् आयोजन के साथ संपन्न हुआ। इस सम्मेलन के पश्चात् तपागच्छीय साधु सम्मेलन संपन्न हो रहा है। इस सम्मेलन पर संपूर्ण विश्व के जैन संघों की आशाभरी नजरें टिकी हैं। हम सभी जिनशासन रूपी विशाल वटवृक्ष की शाखाएं हैं। खरतरगच्छ, तपागच्छ, अचलगच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ, त्रिस्तुतिक सभी परम्पराएं जिनशासन का अंग हैं। हमारे पास इस सम्मेलन में चर्चा करने के लिये जो 50 मुद्दे तय किये, उनकी प्रतिलिपि आई है। इस प्रतिलिपि पर आपश्री पांचों के हस्ताक्षर है, जो इन 50 मुद्दों की प्रामाणिकता को व्यक्त कर रहे हैं। हमने मुद्दे पढ़े। अच्छे, आवश्यक व उपयोगी लगे। पर ज्योंहि २वां मुद्दा पढ़ा, हमारा, संपूर्ण भारत के खरतरगच्छ संघ एवं युवा समाज का मन अतीव पीड़ा व आक्रोश से भर उठा। हम सोच भी नहीं सकते कि जिनशासन की एक विशाल शाखा के संचालक आचार्य भगवंतों द्वारा शासन की ही दूसरी शाखा पर ऐसा सर्वथा असत्य आरोप लगाया जा सकता है! मुद्वा नं. 28- अभ्यंतर आक्रमण बाबत खरतरगच्छ, स्थानकवासी, तेरापंथ, दिगम्बर आदि तरफ थी आपणा तीर्थों उपर, आपणा श्रावको उपर, आपणी प्राचीन नूतन संस्थाओ उपर भयंकर रीते आक्रमण थइ रहयुं छे. अत्यार सुधी अनेक तीर्थो संस्थाओ ज्यां आपणु विचरण-प्रभाव ओछो छे त्या खास] तेओ कबजे करी चूक्या छे तो आ बाबत मां रक्षण नां उपायो आपश्री ने लिखा हैं कि खरतरगच्छ ने भयंकर आक्रमण करके हमारे अर्थात् तपागच्छ के अनेक तीर्थों, संस्थाओं व श्रावकों को हड़प लिया है। आपका यह लिखना 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' वाली कहावत चरितार्थ करता है। जबकि इतिहास साक्षी है कि आज तक आक्रमण किसने किस पर किये हैं? यदि आप एक भी ऐसे तीर्थ का उदाहरण प्रमाण सहित हमारे सामने उपस्थित करते हैं, जो तपागच्छ का था और उसे खरतरगच्छ वालों ने आक्रमण करके हडप लिया तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि उसे तपागच्छ को सौंप दिया जायेगा। पर साथ ही आपको संकल्प-पूर्वक अपने संघ को आदेश देना होगा कि जो तीर्थ, संस्थाएं 99QROOPOST 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK Booooooooo Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व ज्ञान भंडार आदि खरतरगच्छ की ही धरोहर थी, जिनका निर्माण खरतरगच्छ के गुरु भगवंतों की प्रेरणा से खरतरगच्छ के अनुयायी श्रावकों द्वारा हुआ, उनकी सप्रमाण सूची हमारे द्वारा दिये जाने पर वे तीर्थ व संस्थाएं खरतरगच्छ संघ को सुपुर्द कर दी जायेगी। हमारा समस्त खरतरगच्छ संघ अतीव शांतिप्रिय है। कषाय न करता है, न करवाता है, न चाहता है। अन्यथा एक नहीं, ऐसे अनेक तीर्थों व संस्थाओं के नाम आपको अर्पण किये जा सकते हैं जिनके निर्माण का संपूर्ण श्रेय खरतरगच्छ के गुरु भगवंतों को अथवा उनके आज्ञानुवर्ती श्रावकों को हैं और आज उन पर तपागच्छ का कब्जा है। यह सच्चाई है कि तपागच्छ का कोई भी तीर्थ, मंदिर खरतरगच्छ वालों के पास नहीं हैं। फिर भी दीर्घसंयमी, विद्वद्वरेण्य आपश्री द्वारा गलत आक्षेप लगाते हुए उसे प्रचारित करना, गच्छ-कदाग्रह की मानसिकता को प्रकट करता है। यह शासन-समन्वय और पारस्परिक प्रेम पर आघात करने वाला है। इतिहास के पृष्ठ स्पष्टतः यह सच्चाई बयां करते हैं कि खरतरगच्छ के कितने ही तीर्थ तपागच्छ के अधीन है। मैं आपको कितने उदाहरण दूं- भावनगर का दादा साहब परिसर, कापरडा तीर्थ, खंभात का स्तंभन पार्श्वनाथ तीर्थ, पाटण का बाडी पार्श्वनाथ तीर्थ, कम्पिल तीर्थ, हस्तिनापुर तीर्थ, आयड तीर्थ, उदयपुर का पद्मनाभ स्वामी तीर्थ, देवकुलपाटक तीर्थ, मुंबई का भायखला मंदिर, मुंबई का लालबाग आदि खरतरगच्छ के ही श्रावकों द्वारा निर्मित हैं और खरतरगच्छ के आचार्यों द्वारा ही प्रतिष्ठित है। खरतरगच्छीय कितनी ही रचनाओं में भी मूल रचनाकार का नाम बदल दिया गया है। सुप्रसिद्ध श्री गौतम स्वामी के रास की रचना दादा श्री जिनकुशलसूरि के शिष्य उपाध्याय विनयप्रभ ने की है। इसका स्पष्टीकरण जैन गुर्जर कवियो नामक ग्रन्थ में इसके संपादक सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री मोहनलालजी दलीचंदजी देसाई ने किया है जो स्वयं तपागच्छ की परम्परा के अनुयायी थे। पर तपागच्छीयों ने नाम बदल कर दो तीन और दोहे जोड कर उदयवंत मुनि को रचनाकार के रूप में स्थापित कर दिया है जो कि इतिहास से अप्रमाणित है। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं। हम आपश्री से नम्र निवेदन करना चाहते हैं कि आपने अपने मुद्दों वाले परिपत्र में खरतरगच्छ के प्रति जो झूठा आक्षेप लगाया है, उसका सप्रमाण उत्तर प्रदान करावें। हम नहीं चाहते कि हमारे संघ को किसी भी प्रकार की विरोधात्मक कार्यवाही करने के लिये बाध्य होना पड़े। आशा है, आपश्री इसे गंभीरता से लेते हुए उचित कार्यवाही करेंगे। जिनाज्ञा विरूद्ध कुछ लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडम्। खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरि श्री जिनहरिविहार धर्मशाला, तलेटी रोड पालीताना-३६४२७० गुजरात 99QROOPOST 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK woooooo5600 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000000000000000000000 अगर हमारे पास आपके तीर्थ हैं तो अपने तीर्थ ले सकते हैं, मगर, हमारे तीर्थ भी हमें दीजिए: जिनमणिप्रभ सागर सूरि पालीताणा तपागच्छ साधु सम्मेलन में दिवाम्बर, स्थानकवासी, रखरतरगच्छ, तेरापंथ समुदाय पर लगाए तीर्थों पर कब्जे का झूठा आरोप, स्थानकवासी एवं तेरापंथ समुदाय में तीर्थ या मंदिर होते ही नहीं तो फिर कब्जा कैसा? इधर, मंदिरमार्गी समुदाय के रखरतरगच्छाचार्य जिनमणिप्रभ सागर मूरि जी ने दिया करारा जवाब, कहा, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, तपागच्छ आचार्यों की बोलती बंद, मणिप्रभ सागर जी के नाम से फर्जी पत्र के नाम पर पालीताणा में तपागच्छीय आचार्यों एवं साधुओं को होना पड़ा झूठा साबित, प्रस्तुत नहीं कर पाए आचार्य मणिप्रभ सागर जी के रिवलाफ एक भी सबूत पालीताणा। मर्तिपूजक श्वेताम्बर तपागच्छ समुदाय के साधु सम्मेलन का कय आगाज हुआ, कब समापन पता ही पालीताणा। खरतरगच्छ के श्री मणिप्रभ सागर जी के नाम से जारी एक फर्जी कविता नहीं चला। महासम्मेलन का आयोजन पालीताणा में हुआ जिसमें मुख्य गच्छाधिपतियों,आचार्यों अथवा उनके द्वारा पत्र प्रकरण की भी सम्मेलन में गूंज सुनाई दी लेकिन तपागच्छ समुदाय के कोई भी अधिकत संतों को ही प्रवेश दिया गया। साधु सम्मेलन में साध्वियों की कहीं कोई जरूरत नहीं समझी गई। उन्हें केवल आचार्य या संत इसे प्रमाणित नहीं कर पाए। हालांकि खरतरगच्छ के गणिवर्य श्री साधओं को वंदन करने के लिए ही सम्मेलन स्थल पर आने की इजाजत थी। इस महासम्मेलन में जिनशासन के मणिरत्न सागर जी के प्रयासों से मणिप्रभ सागर जी म.सा. ने इस पर का खंडन कर चर्विध संघ के एक पक्ष यानी साध्वी भगवतों को सम्मेलन में चर्चा का कोई अधिकार नहीं था। बड़े-बड़े संत जो तपागच्छ संता कोद दिया। दूसरी और सम्मेलन में दिगम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी.। मां के जीवन पर बडे-बड़े प्रवचन देते हैं, उसके सम्मान की बात करते हैं, आज वही मां इन संतों को सलाम करने खरतरगच्छ आदि समुदायों पर तपागच्छ समुदाय के तीर्थ हड़पने का आरोप लगाया तक सीमित रही। मां का सम्मान केवल बेटों को वंदन करने यानी सलाम ठोकने तक ही सीमित था। गरु भगवंत जब जिसका खरतरगच्छाचार्य ने जवाब दे दिया है। मणिप्रभ सागर सरि जी म.सा. ने सम्मेलन स्थल पर आते तो साध्वियां एक कतार में खड़े होकर साधुओं को अक्षत और गीतों से बधार्ती साध आते तपागच्छाचार्यों को दो टक शब्दों में कहा कि यह आरोप बिल्कुल ऐसा है जैसे उल्टा और साध्वियों की वंदना का जवाब दिए बिना ही आगे बढ़ते जाते / क्या यही है तपागच्छ समदाय में साध्वियों की चोर कोतवाल को डाटे / मणिप्रभसागर जी ने स्पष्ट किया कि अगर तपागच्छ समाज औकात? हालांकि एकाध बार सम्मेलन में साध-साध्वियां. श्रावक-श्राविकाएं भी उपस्थित हए लेकिन यह घटनाक्रम इस बात का प्रमाण दे कि उनके तीर्थ खरतरगच्छ के कब्जे में हैं तो तो हम अभी वे 1 अप्रैल, 2016 का है। इस दिन आदिनाथ भगवान का जन्म-दीक्षा कल्याणक होने के कारण अनेक साधु भगवंत तीर्थ आपको सौंपने के लिए तैयार हैं लेकिन इससे पहले आपको (तपागच्छ हार आदिनाथ भगवान के दर्शन करने गए। इस कारण इस दिन सम्मेलन विलम्ब से प्रारम्भ हआ। लेकिन समुदाय) को भी खरतरगच्छ के ताथ हम सापन होग जिन पर आपक समुदाय का सभा साथ भगवंतों के स्वागत एवं बधाइयां देने के लिए साध्वियों को कतार में ही सडा होना पडा। जिस मां ने जन्म कब्जा है। यह पत्र मणिप्रभ सागर जी ने तपागच्छाचार्यों को प्रेषित कर खरतरगच्छ दिया, वही मा अपने बेटे को वंदन कर रही थी. बधाइयां दे रही थी. लेकिन इस मां को सम्मेलन स्थल में अपने की ओर से अपना जवाब दे दिया है। दिगम्बर, स्थानकवासी एवं तेरापथ वाला का। विचार व्यक्त करने का अधिकार नहीं था। जानकारी में तो यह भी आया है कि कह संतों को सम्मेलन स्थल में प्रवेश पता नहीं। वैसे भी स्थानकवासी एवं तेरापंथ समुदाय के काइ ताय या मादरावत नहादिया करन दिया गया तो मारपीट की स्थिति बन गई तब उपस्थित लोगों ने बीच बचाव कर मामला शांत किया। नहीं तो फिर कब्जा करने की बात कहां से आई. यह पूर्णतः आववकपूर्णआराप। 00000 1000000 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 2 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा के समय श्री तपागच्छीय प्रवर समिति के पत्र ॥श्रीवीतरामाय नमः॥ तपागरछीय प्रवरसभिति * તપાગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી મનોહરકીર્તિ * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજય હેમચંદ્રસૂરિજી * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયજયઘોષસૂરિજી * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયઅભયદેવસૂરિજી (કાર્યવાહક) * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી દોલતસાગરસૂરિજી .. . . . . .. . . . .. सं. 2075, महासुद-५, ता. 10-2-2019 अध्यक्षश्री-ट्रस्टीगण श्री अवन्ती पार्श्वनाथ जैन श्वे.मू.पू मारवाडी समाज ट्रस्ट तथा श्री अवन्ती पार्श्वनाथ तीर्थ प्रतिष्टा महोत्सव समिति ( उज्जैन-म.प्र.) धर्मलाभ वि. वर्तमान में 108 पार्श्वनाथ में से एक अवन्तीका पार्श्वनाथ भगवान जो कल्याण मंन्दिर स्तोत्र द्वारा सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी से प्रतिष्ठित है / उस मूल मन्दिर का आमूलचूल जिर्णोद्वार हो रहा है। प्रस्तुत मन्दिर का जीर्णोद्वार तपागच्छीय आ. सेनसूरिजी म. के करकमलो से हुआ था / परंतु यह मन्दिर सर्वगच्छीय होने से सभी गच्छो के द्वारा छोटे बड़े काम करवायें गए थे। मन्दिर जीर्णोद्वार हेतु ता.२१-१-२००१ को ट्रस्ट की एक बेठक हुई थी उसमें स्पष्टनिर्णय था की अवन्ती पार्श्वनाथ के आसपास 2 प्राचीन प्रतिमाजी (जो तपा. सेनसूरिजी म.के हाथ प्रतिष्ठित है वर्तमान में भी प्रतिमाजी पर उनका नाम है) का उत्थापन नहीं करना। नवीन प्रतिमाजी स्थापित न करना। मन्दिर में कोई भी आचार्य की मूर्ति न बीठाना। . पीछले दीनो से हमें हमारे श्री संघोसे ज्ञात हुआ की तपागच्छीयों के हाथो से प्रतिष्ठत हुए दो परमात्मा एवं तपागच्छी अधिष्ठायक श्री माणीभद्रवीर एवं तपागच्छीय जगदगुरु हीरसूरीश्वरजी म.सा.की प्रतिमा जो स्थान पर थी वहीं से उत्थापन कीया है। तो हमारी तरफ से श्री संध-ट्रस्ट-और समिति को ज्ञात कीया जाता है की उपरोक्त प्रतिमा मंदिरजी में जिस स्थान पर प्रतिष्ठित थी वहीं जगह पे प्रतिष्ठित कर केंरखें। -U પત્ર વ્યવહાર સંપર્ક : પ. પૂ. ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય ભગવંત શ્રી વિજય અભયદેવસૂરીશ્વરજી મ. સા. BHARAT GRAPHICS: 7, New Market, Panjarapole, Relief Road, Ahmmedabad - 1. Tushar Shah Mo. 095107 52602, E-mail: abhayfoundation la gmail.com विहार संपर्क: 9737042431, वोदय dion: 9737042432 TUT) 250 888888888888888888888888| 44 888888888888888888888 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી વીતરાગાય નમઃ || તપાગચ્છીય પ્રવરસમિતિ * તપાગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી મનોહરકીર્તિસાગરસૂરિજી * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજય હેમચંદ્રસૂરિજી * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયજયઘોષસૂરિજી * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયઅભયદેવસૂરિજી (કાર્યવાહક) * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી દોલતસાગરસૂરિજી સં. 2071, મહાસુ-૧, તા. 20-2-2016 स्थान का फेरफार कर तपागच्छ के इतिहास का छेडछाड न करें ।इश कार्य अलग रुप से आप करेंगे तो सही नहीं है। उसका परीणाम गलत होगा / इस लिये जहां प्रतिमा थी वहां ही प्रतिष्ठित करें और वहां नजदीक में हमारे तपागच्छीय जो भी आचार्यश्री-साधु-साध्वीगण हैं सभी को इस प्रतिष्ठा प्रसंग में हाजर रखे उनकी निश्राले। कोपी रवाना :- आणंदजी कल्याणजी पेढी-अमदावाद -ડ૨ સ પ્રવસમિતિના પૂજયશ્રીઓ સહી •તપાગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી મનોહરકીર્તિસાગરસૂરિજી મ મોરી •ગણાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયહેમચંદ્રસૂરિજી વિનમ મ મ 1 * ગયછાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયજયઘોષસૂરિજી . વિજય અભયસ્વપૂર * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયઅભયદેવસૂરિજી (કાર્યવાક્ક) - જિયજયો4િ દહતસારુ * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી દોલતસાગજીિ kris પત્ર વ્યવહાર સંપર્ક: પ. પૂ. ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય ભગવંત શ્રી વિજય અભયદેવસૂરીશ્વરજી મ. સા. BHARAT GRAPHICS : 7, New Market, Panjarapole, Relief Road, Ahmmedabad -1. Tushar Shah Mo. 095107 52602, E-mail: abhayfoundationl@gmail.com વિહાર સંપર્ક: 97370 42431, વોટ્સપ નંબર : 97370 42432 E 999999999999999 googgggggggs Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरजन्ययन // श्री वीतरागाय नमः // तपागरीय प्रवरसभिति | તપાગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી મનોહરકીર્તિસાગરસૂરિજી ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયહેમચંદ્રસૂરિજી | ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયજયઘોષસૂરિજી 0 ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયઅભયદેવસૂરિજી (કાર્યવાહક). 0 ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી દોલતસાગરસૂરિજી अवन्तीपायनायबीने श्यताम्बर शिजक ता.१४/२)२०१८ मारवाडी समाज ट्रस्ट ल्य प्रतिष्ठाभरासायसमिति अध्यक्ष- इस्टीमण स२०७४... उजेग-(म.प्र.) भYधर्मराम मन दि. 10/2/2015 को अनन्ती पानाधजिनालय प्रतिष्ठाडोत्सव के ब्य जिनालय के संबधित विविध मुद्राओंको लेकर पालियाधा उनका आपको प्रस्ट औजाना दि. 12/2/2013 को आरदिया जिनका वाशप राकशजीभारयाडीद्रारारा हमको भिाणा उससे हम पूर्ण संतोषनडी।स्मंडाण ने भारी सभीधाराका सार दियानरी और आजहमारे तपच्छके आचार्य श्री बरी। पईच उनकोलिय श्री सर बराबर टीयागरी हसासमाचाररे। इमार तपगच्छ में तीन लोगोमे उनकाभा असतो। वि-तपागच्छ र यवीर समिति की आचार्य चंद्रसागरसूरीजी (हवं अन्य आचार्यगण - साधु-साध्वीम)) 3जम खासपरचर इअमीवीर राईस्टमंडल इमारीलपगच्छ कीसभी बाधोका पूर्णतया संतोवहा सारी र अवन्तीपाश्चगाथतीर्थ कीअनीकी सभीवाद के लिये आचार्थमआईभचंद्रश्नागरसारिजीकाअरजन्सर्यक कर) यरपत्र प्रवर समिति के पांच आचार्यानी स्थापना भवंद्रना।२२२रिजी मारु लिखवारे कार्यपारक .......... आणंदजी काजीपेटली प्रवर सामाजिक ..........विजय ययगर પત્ર વ્યવહાર સંપર્ક : પ.પૂ. ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય ભગવંત શ્રી વિજય અભયદેવસૂરીશ્વરજી મ. સા. BHARAT GRAPHICS :7, New Market. Panjarapole. Relief Road. Ahmmedabad - 1. Tushar Shah Mo. 095107 52602, E-mail: abhayfoundation@gmail.com विहार संपर्क : 9737042431, बोदशप ionR : 9737042432 00000000000000005 66ocadobabooloodoot DOOwood Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // श्री वीतरागाय नमः // तपागच्छीय प्रवरसभिति 0 તપાગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી મનોહરકીર્તિસાગરસૂરિજી 0 ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજય હેમચંદ્રસૂરિજી ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયજયઘોષસૂરિજી ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી વિજયઅભયદેવસૂરિજી (કાર્યવાહક) * ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય શ્રી દોલતસાગરસૂરિજી ता. सं.२०७५, महा सुद 12/13, दि.17/02/2019 श्री अवती पार्श्वनाथ तीर्थ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट, अध्यक्षश्री. ट्रस्टीगण, एवं-प्रतिष्ठा महोत्सव समिति, धर्मलाम. वि- हमारी ओर से दि.10.14&16 फरवरी 2019 के तीन पत्र आपको प्रेषित किये गए है. यह चौथा पत्र है। श्री अवती पार्श्वनाथ जैन तीर्थ उज्जैन में अभी वर्तमान में प्रतिष्ठा और नवीन मूर्ति आदि के लेखोंको लेकर के जो प्रश्न खड़ा हुआ है, उस विषय में किसी के भी साथ किसी भी प्रकार के संवाद, कार्यवाही और निर्णय हेतु विचार विमर्श के लिए तपागच्छीय प्रवर समिति की ओर से हमने उज्जैन में विराजित आचार्य श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी एवं त्रिस्तुतिक वृहद सौधर्म तपागच्छीय आचार्य श्री ऋषभचंद्रसूरिजी एवं सुश्रावक संजयभाई कोठारी- रतलाम, भुषणभाई शाह - अमदावाद की नियुक्ति की है। वह लोग जिस किसी भी कार्यवाही में तपागच्छ श्रीसंघ की ओर से प्रतिनिधित्व करके हस्ताक्षर आदि करेंगे वो हमारा गच्छ और हम मान्य करेंगे। MALAIME नकाल रवाना.. * आचार्य श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी, * आचार्य श्री ऋषभचंद्रसूरिजी * प्रान्त ऑफिसर - उज्जैन * शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी -अमदावाद, * तपागच्छीय प्रवरसमिति के मुख्य श्रावक गण * संजयभाई कोठारी.. रतलाम, * भुषणभाई शाह- अमदावाद પારસમિમિના પૂવથીરનો * પાપ છાપતિ આચાર્ય ધી મતોલરકીર્કિંસા પર સરળ * ગયડાપરિd આરાને કઢી ધિviડૅમરસૂતિ CAn5 226 22128 * ગયાuિપતિ સમાચારમાં શ્રી વિજ રાજયપોmળિ मलयपER * पनि सायाश्री HिARoबधि (504165) * ગ791[ittપતિ આચાર્ય કરી દોઢસાગરસૂરિજી પત્ર વાવહાર સંપર્ક : પ. પૂ. ગચ્છાધિપતિ આચાર્ય ભગવંત શ્રી વિજય અભયદેવસૂરીશ્વરજી મ. સા. BHARAT GRAPHICS: 7, New Market. Panjarapole, Relief Road, Ahmmedabad -1. Tushar Shah Mo. 095107 52602, E-mail: abhayfoundation@gmail.com विकार संपर्क: 9737042431, पोटशपOR : 9737042432 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 3 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक तीर्थ ट्रस्ट द्वारा जवाब अलि पानाखाय नम रजिन, 24/77 श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट कालिय। 7. शांतिलाबजी मंदिर की गली, मोटा सराफा, उज्जैन (म.प्र.) फोन-0734-2555553,2585854 ट्रस्ट के अंतर्गत दिनांक : 122130 2019 श्री अति पाश्र्वनाथ तीर्य फोन-0734-2585854 पूज्य तपागच्छाधिपति आचार्य श्री मनोहरकीर्तिसागररिजी म. पूज्य गाविपत्ति आचार्य श्री विजयहेमचन्द्रसूरिजी म. पूज्य गामधिपति आचार्य श्री विजयजयघोषमुरिजी मपूज्य गणाधिपति आचार्य श्री विजयामयदेवरारिजी मपूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागररिजी म. विषय- अवन्ति तीर्थ के संदर्भ में संकाओं का निराकरण श्रीशांतिनाथजी मंदिर छोटासराफा फोन-2555553 श्री अजितनाबजी मंदिर छोटा सराफा श्री आदिश्वरजी सीर्थ एवं सिद्धाचल पड़ भद्रबाहु मार्ग, बड़नगर रोड श्रीखरतरगच्छाचार्य जिनदत्तकुशलसूरि दादावाड़ी छोटा सराफा लिखी उज्जैन से श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाडी समाज ट्रस्ट का विधिसहित वंदना स्वीकार करे। आपत्री का ता. 10 फरवरी 2019 का पत्र श्रीमान् राकेशजी मारवाडी द्वारा हमें मिला। निश्चित ही कुछ लोगों द्वारा व्यर्थ ही अत्यन्त झूठी व तथ्यहीन खबरें आपनी को दी गई है। आप द्वारा लिखे गये समस्त बिन्दुओं पर श्री राकेशजी मारवाडी आदि तपागच्छ संघ के आगेवान आवकों के साथ प्रत्यक्ष में विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने जिनमंदिर का पूरा अवलोकन किया। उन्होंने अपनी पूर्ण संतुष्टि जाहिर की। 1. आपने अपने पत्र में लिखा है कि दोनों प्रतिमाएँ तपा. आ. सेनरारिजी द्वारा प्रतिष्ठित है व प्रतिमाओं पर उनका नाम है। हम आपत्री से निवेदन करना चाहते है कि प्रतिमाजी पर वि.सं. 1486 का शिलालेख है। यह काल आचार्य सेनसूरिजी म. से पूर्व का है। इन प्रतिमाओं पर अंकित शिलालेख के संदर्भ में निवेदन है कि आपश्री अपने विश्वस्त प्रतिनिधि को भिजवावे व पूरी जांच कराये। 2. आपश्री की जानकारी के लिये हम निवेदन करना चाहते हैं कि श्री अवन्ति तीर्थ की व्यवस्था वर्षों से हमारा मारवाडी समाज ट्रस्ट सुव्यवस्थित शास्त्रप्रणालिका के अनुसार करता आया है। यह ट्रस्ट सन् 1977 में पंजीकृत है। यह ट्रस्ट किसी एक गच्छ का नहीं है। इसमें खरतरगच्छ, तपागच्छ, त्रिस्तुतिक और स्थानकवासी मान्यता वाले शामिल हैं। __3. इस तीर्थ का संपूर्ण जीर्णोद्धार पूज्य गुरुदेव वर्तमान गच्छाधिपति कराने का निर्णय ट्रस्ट की साधारण सभा में लिया गया था। तदनुसार पिछले 11 वर्षों से उनके शास्त्रशुद्ध मार्गदर्शन के अनुसार कार्य गतिमान है, जिसकी जानकारी यहाँ के प्रत्येक श्रावक को है। श्री चरणापादुका छत्री नीलगंगा भी जिनकुशलसूरि दादावाड़ी एवं घण्टाकर्ण महावीर मंदिर नीगेट PRODOOOOOOOOOOOOO 6666666666666666660 0000000000000000 600000000000000 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अवन्ति पाश्र्वनाथ तीर्थ जैन श्वेताम्बर मर्तिपूजकमारवाड़ी समाज टस्ट ति..तिनामीजनिकीतापातासाफाकालमा ज-0734-25555E RH (म.प्र.) ट्रस्ट के अंतर्गत मा अति पानाय तीर्थ कालीगेट होन-0734-2585854 की शांतिनाथजी मंदिर मिटा सराफा होन-2555553 की अजितनाथजी मंदिर टा सराफा 4. यदि आपनी कासार मे पधारनामा, तो आपत्री को यह विदित जागा किमी अचान्त पार्वनाम की प्रतिमा जीये नागरे स्थित हाल म बनी एक वादका पर विराजमान थी। उस वेदिका पर चार प्रतिमाजी विराजित बामय नइच के अवन्ति पावनत्यप्र केबारी ओर उसी समान गादी पर नइच के मोती पार्शनाय प्रण की प्रतिमा, प्रभु के दावी ओर उसी समान मादी पर 34इंच के आदिनाथ एवं आदिनाथ प्रभु के पीछे 10 इच कनेमिनाथ की प्रतिमा विराजित थी।ये प्रतिमाएं एकहीतरी विराजमान थी। . नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा पी० होने के कारण दृष्टिगोचर भी नहीं होती थी। साथ ही गोटी पार्श्वनाथ प्रम की प्रतिमा मूलनायक से ची होने व आदिनाथ प्रभु की प्रतिमा नीचे होने के कारण संपूर्ण रूप से दृष्टि दोष था। तीनों ही प्रतिमा एक दूसरे से प्रायः सटी हुई थी। बीच में मात्र 4-4ईच की दूरी थी। पूज्यश्री ने फरमाया-वर्तमान में परमात्मा रिद अवरचा है। परिकार से परमात्मा की तीर्थ की शोभा में अतिशय गृद्धि होगी, अतः परिकर स्थापित करना चाहिये। 7. पूज्य आचार्यश्री का पवारना हुआ तब ट्रस्ट मंडल के सामने फरमाया कि दृष्टि दोष का निवारण अनिवार्य है। इसके लिये मूलनायक के सिवाय अन्य तीन प्रतिमाओं का उत्थापन करना चाहिए। साथ ही नेमिनाथ प्रमु की प्रतिमा को व्यवस्थित रूप से विराजमान करना चाहिए। ट्रस्ट मंडल का विचार रहा कि चकि साधारण सभा में उत्थापन न करने का निर्णय लिया। गया था, अतः उत्थापन के निर्णय पर पुनर्विचार भी साधारण सभा नही होगा। 8. हमने साधारण सभा की बैठक की। उसमें उत्थापन का प्रस्ताव रखा गया। उस सभा में उपस्थित सभी सदस्यों ने कहा-तीन दिन बाद पुनः बैठक का आयोजन हो। सदस्यों के इस प्रस्ताव पर तीन दिन बाद बैठक बुलाई गई। उपस्थित सभी सदस्यों के विचार-विमर्श के उपरात सर्वसम्मति से यह निर्णय किया गया कि मूलनायक के सिवाय अन्य तीन प्रतिमाओं का उत्थापन करवाया जाये। शुभ मुहूर्त में श्रीसंघ की उपस्थिति में ता 10 दिसम्बर 2018 को उत्थापन विधान करवाया गया। आदिश्वरजी तीर्थ एवं सिद्धाचल पत्र द्रबाहुमार्ण,बड़नगर रोड़ स्वरतरगच्छाचार्य जनदत्तकुशलसूरिदादावाड़ी टिा सराफा चिरणापादुका छत्री लिगंगा | जिनकुशलसूरि दादावाड़ी घण्टाकर्ण महावीर मंदिर नीगेट 900090009090920px 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK Gooooooooo Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबन्ति पाश्र्वनाथ तीर्थ जैनवेना मतिपजकमारवाड़ा समाज टस्ट कार्यालय..शातिनाथमा मदिर कागला.पाटासराव.सनमा फोन-0734-2555553,2585854 ट्रस्ट के अंतर्गत दिनांक: अवंति पार्श्वनाथ तीर्थ नीगेट होन-0734-2585854 श्री शांतिनाथजी मंदिर छोटा सराफा फोन-2555553 साथ ही साधारण सभा में ही यह निर्णय भी किया गया कि इन दोनों प्रतिमाओं को मूल गर्भगृह के अन्दर ही नई देवकुलिकाओं का निर्माण कर विराजमान किया जाये। तथा नेमिनाथ प्रण को मूल गर्भगृह के पास कोली मंडप में विराजमान किया जाये। तदनुसार ही विराजमान किया जा रहा है। 10. हमारे ट्रस्ट द्वारा यह निर्णय पूर्व में ही किया जा चुका है कि यहाँ पूर्व प्रतिष्ठित समस्त प्रतिमाओं को समुचित देवकालिकाओं में विराजमान किया जायेगा। तथा कोई नई प्रतिमाजी प्रतिष्ठित नहीं होगी। 11. हमारे यहाँ एक मात्र आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकर सूरि की प्रतिमाजी है, और आ. श्री हीरसूरिजी या अन्य आचार्य की कोई प्रतिमाजी इस मंदिर में नहीं है. न पूर्व में भी। 12. कुछ लोगों द्वारा जो प्रान्तियाँ फैलायी जा रही है, वे सब सर्वव्या असत्य से परिपूर्ण है। आशा है आप द्वारा प्रस्तुत शकाजों का निराकरण होगा। तथा आपली का आशीर्वाद संघ व ट्रस्ट को प्राप्त होगा। श्री जयन्ति पानाथ तीर्थ जैन श्वे. श्री अजितनाथजी मंदिर छोटा सराफा म.प्र.ना. समाज ट्रस्ट करजेन श्री आदिश्वरजी तीर्थ एवं सिद्धाचल पट्ट भद्रबाहु मार्ग, बड़नगर रोड़ 1. प्रतिलिपि-आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी-अहमदाबाद श्री स्वरतरगच्छाचार्य जिनदत्तकुशलसूरि दादावाड़ी छोटा सराफा श्री चरणापादुका घबी नीलगंगा श्री जिनकुशलसूरि दादावाड़ी एवं घण्टाकर्ण महावीर मंदिर दानीगेट PRODOOOOOOOOOOOOO 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOOOO doodoodoodoot Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 4 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी का पत्र SHETH ANANDJI KALYANJI (A Religious Charitable Trust) Representative of all India Jain Shwetamber Murtipujak Shree Sangh Regn. No. A 1299/Ahmedabad શેઠ આણંદજી કલ્યાણજી (ધાર્મિક ધર્માદા ટ્રસ્ટ) અખીલ ભારતીય જૈન શ્વેતાંબર મૂર્તિપૂજક શ્રી સંઘના પ્રતિનિધિ ६२८२७.नं./१२८८/मह1416. .1.10324 ता.१२/०२/२०१९ प्रति श्री, श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ, दानी गेट, उज्जैन अध्यक्ष महोदय एवं ट्रस्टीगण, आप सब कुशेल होंगे। श्री अवन्तीजी तीर्थ में प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए आप सबको मेरे हृदय से बधाई और अनुमोदना। मुझे कई आचार्य भगवंतो और श्रावकगण ने बताया है की प्राचीन जिनबिंबो का उत्थापन किया गया है और उनकी नए जिनबिंबो के साथ प्रतिष्ठा की जाएगी। यह बारे में तपागच्छीय प्रवर समिति के आचार्यो ने भी आपको पत्र लिखा है जिसकी नकल मुझे भी मिली है। आप यह बात का योग्य खुलासा आचार्य भगवंतो को देवे। भवदीय, लालमार संवेग लालभाई प्रमुख Head Office : Shreshthi Laibhai Dalpatbhai Bhavan" 25, Vasantkunj, New Sharda Mandir Road, Paldi, Ahmedabad - 380007. Ph. : 079-26644502,26845430 Tele. Fax: 079-26608244,25608255 E-mail: shree_sangh@yahoo.com Office: Patni's Khadki, Zaveriwad, Ahmedabad - 380 001.Phone : 079-25356319 હેડ ઓફીસ : “શ્રેષ્ઠી લાલભાઈ દલપતભાઈ ભવન” 25, संत, 14 URE महिर रोड, पावडी, मह1416 - 360009. 1:078-26644502, 29945430 देबीस:0७८२९६०८२४४, 26608255 मोझेस: पटीन 24A, अवेरी45 . ममहा416 - 300001.01:096-25356319 OoOOOOOOOOOOOOOOOG omoODOOOOOOOOOOO OOOOOOOOOODOOD Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ परिशिष्ट 5 गच्छाधिपति दोलतसागरसूरिजी की आज्ञा *'/ નૈમુલ્થળ સTગર 17વો પડાવીરસTI""""" | રોચ નંદ્ર-મા0િાવા-વંદ્ર-en-વેન્દ્ર-વિદ્વાનંદ્ર-ન-રજૂર્વોતરનાર સૂરિવરેગો નમ: || गच्छाधिपति आचार्य दौलतसागर सूरि પાલીતાણ !! રાવતનપ્રભાવક જ્ઞા. શ્રી જિન હેમચંદુસારગ્સ રિજી - પ્તા. 8 જિન - જીત- સંતાન 52 રૂરિજી તા. શ્રી વિશ્વત્ન સાગર સૂરિજી મ દ્રિ તનવંદના - 2 નામ હુશો ? વિશેષ સન. અવંતિકા પાનાથ જિનાલય ખંજન - પ્રતિષ્ઠા ના પાવન પૂરૂં તો સેને વિનં ન ખાવેલ છે સમતાસનના પાલક ખા તીર્ષની પ્રતિષ્ઠામાં નાપો સાત સાગર સમુદાય ઉપરિશ્વત છે તેથી મારી ભાવના છે, તો સે નાસાયે ભાવ નો સરવા ? | મા લધામ ઉપયત સે સાબીજી મા વં તો ૨ાન તજ તપાતુ ની મહત્વતા અને ભાવિ ઇતિહાસ ને ટકા રાખે મારી ભાવનાનુસાર તો સે સમયસર પંહોચી જશો . રાધનામાં આગળ વધશો . Aની માતાજી પંદન' पत्र व्यवहार हेतु स्थाई पता : निरवभाई कीरीटकुमार शाह, 5 परित्याग सोसायटी, पी.टी. कॉलेज रोड, पालडी, अहमदाबाद-380007 સપૂર્વ સુa : 93705-04141, 98915-16883, 74770-25762 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 6 अवन्ति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा विषयक कार्यवाही IRSTAN प्रति दिनांक 07/02/2019 6102.83310 कलेक्टर महोदय जिला-उज्जैन (ANIRe 12 22011 विषय :- श्री अवंति पार्श्वनाथ मंदिर में प्राचीनतम धरोहर के स्वरूप से छेड़छाड़ विषयक। महोदय, पूर्व में आपकी जानकारी में श्री अवंति पार्श्वनाथ मंदिर के संबंध में विभिन्न विषयों पर शिकायत की गई है। इस संबंध में आपने संज्ञान लेकर अधिकारीगणों से विवादित स्थल का मौका मुआयना कराया है। इसकी जानकारी का समाचार (संलग्न) 7 फरवरी 2019 को प्रमुख अखबारों में प्रकाशित हुआ है। निवेदन है कि धार्मिक, सामाजिक मुद्दा होने से निम्नांकित बिंदुओं पर जांच की जाए : 1. जीर्णोद्धार पूर्व दिनांक 21.01.2001 को ट्रस्ट मंडल की मीटिंग में सर्वानुमति से पारित प्रस्ताव एवं अनुमोदित प्रस्ताव अनुसार ही कार्य हो, जिसमें उल्लेख किया गया है कि मूल मंदिर के गंभारे में प्रतिमाजी को छेड़छाड़ नहीं करेंगे ओर किसी प्रकार का शिलालेख भी नहीं लिखेंगे। ऐंसा निर्णय अंतिम हुआ था। 2. जैन सिद्धांत और मान्यताओं अनुरूप तपागच्छीय परंपरा प्राचीन है बाद में अन्य मत, पंथ संप्रदाय का उदगम हुआ। साथ ही श्री अवंति पार्श्वनाथ मंदिर तपागच्छीय परंपरा की मान्यताओं के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महाकाल मंदिर के समकालीन ^निर्माण के प्रमाण है। 2000000000000000000 000000000000000000 PORoad OODOO Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3. तपागच्छीय श्रीसंघ और पूर्व में गच्छाधिपति आचार्य गगरांत के प्रास्त्रीय अनुसार प्रतिष्ठित विराजमान प्रतिमाजी के साथ छेड़छाड़ की गई है, जिसके विसता श्रीसंथ के द्वारा तपागच्छीय गच्छाधिपति आचार्य भगवंतों, साधु-साध्वी भगवंतों के समक्ष जानकारी दी गई। इसके बाद तत्काल प्रभाव से एक मीटिंग का आयोजन दिनांक फरवरी 2019 रविवार को श्री ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी खाराकुआं पर हुआ। उसमें आचार्य भगवंत ओर श्रीसंघ ने प्रस्ताव पास कर ट्रस्ट मंडल को विरोध की जानकारी देते हुए फरवरी 2019 तक की समयावधि देकर विचार करने के लिए पर्याप्त समय दिया, किंतु आज दिनांक तक कोई ठोस निर्णय या पहल नहीं हुई। 4. ट्रस्ट मंडल हठधर्मिता, असहयोग के चलते श्रीसंघ की भावनाओं को दरकिनार करते हुए मनमाने गुपचुप तरीके से प्रतिष्ठा प्रसंग को संपादन करना चाहते है। अतः श्रीमान के समक्ष प्रस्तुत उक्त बिंदूओं की गहनता से तत्काल जांच कर तत्काल प्रभाव से दोषीयों के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही की जाए और प्राचीन स्वरूप वापिस आ सके। किसी भी प्रकार का परिवर्तन अस्वीकार है। संलग्न छायाप्रति:1. ट्रस्ट मंडल की मीटिंग में सर्वानुमति से पारित प्रस्ताव की प्रति। 2. दैनिक अखबारों में प्रकाशित जानकारी की प्रति। 3. तपागच्छीय आचार्य एवं श्रीसंघ का विरोध पत्र। 4. प्राचीनतम इतिहास की प्रतिलिपी। संजय कोठारी 01, गहू रोड रतलाम संपर्क:- 98260-30583 90000000pmpomp9Q9x 00000000000000000000 omoODOOOOOOOOOO 000000000000 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6666666666666666660 900090009090920px आयोजन स्थल पर बन रहे पंडाल पर भी प्रशासन की नजर प्रतिष्ठा महोत्सव से पहले जैन मंदिर से हटी दो मूर्तियां... अफसर मौके पर पहुंचे 600000000000000 000000000000000000000 उज्जैन। नईदुनिया प्रतिनिधि निगम के सहायक आयुक्त सुबोध जैन मंदिर पहुंचे और मूर्तियों का अक्लोकन शहर के अति प्राचीन श्री अवंति किया। बहरहाल, प्रशासन ने इस मामले पार्शवनाथ तीर्थ (मंदिर) में आयोजित में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है न कोई होने वाले प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव से पहले दिशा निर्देश जारी किया है। सामाजिक मंदिर की तीन मूर्तियों में से दो हटाने के मामला होने के कारण प्रशासन ने अभी मामले में प्रशासनके दो अफसर भी मंदिर दूरी बना रखी है। महोत्सव के अंतर्गत पहुंचे और मूर्ति को लेकर जानकारी कार्तिक मेला मैदान पर बड़ा आयोजन ली। हालांकि सामाजिक मामला होने के होने जा रहा है। इसके लिए आयोजन कारण प्रशासन ने अभी कोई हस्तक्षेप नहीं है। मंदिर में श्री अवंति पार्शवनाथजी के स्थल पर भव्य पंडाल बनाया जा रहा है। किया है। महोत्सव के लिए थर्माकोल से आसपास कोई 500 साल पुरानी श्री पंडाल के सामने हाईटेंशन लाइन होने के बनरहे शानदार पंडाल पर भी प्रशासन की गौड़ी पार्श्वनाथ और श्री आदिनाथ व श्री कारण प्रशासन ने आयोजकों को नोटिस नजरहै। नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमाएं थीं। मंदिर के जारी कर सुरक्षा के उपाय करने को कहा अवंति पार्श्वनाथ मंदिर देशभर जीर्णोद्धार के बाद दो मूर्तियों को हटाने है। साथ ही प्रशासन के स्तर पर टीम में ख्यात है, लेकिन इन दिनों यह दो का मामला प्रशासन के पास भी पहुंचा है। बनाकर सुरक्षा की जांच भी कराई है। मूर्तियों को हटाने को लेकर सुर्खियों में बुधवार को एडीएम जीएस डावर व नगर इससे भी यह आयोजन चर्चा में है। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमान न्याधीपती महोदय उच्चतम न्यायालय इन्दौर खण्डपीठ धारा 426 के अन्तर्गत जनहीत याचीका प्रस्तुत है / वादी1. श्री भुषण पिता नवीन चन्द्र शाह आदिनाथ कॉलोनी गटलोधीया अहमदाबाद घंधा- व्यापार मो. नं.: 9601529519 2. श्री संजय पिता फतेहलाल कोठारी 1. मह रोड रतलाम घंघा- व्यापार मो. नं.: 9826030583 प्रतिवादी1. श्रीमान जिलाधीश महोदय उज्जैन श्रीमान उपसंचालक महोदय (पुरातत्व विभाग उज्जैन) श्रीमान हीरालाल जी छाजेड अध्यक्ष श्रीमान निर्मल कुमार जी सकलेचा उपाध्यक्ष 5. श्रीमान चन्द्रशेखर जी डागा सचिव 6. श्रीमान ललीत कुमार जी बाफना कोषाध्यक्ष आदि ट्रस्टीगण अवन्तिका पार्श्वनाथ मंदिर दानीगेट उज्जैन / अवन्तिका पार्श्वनाथ संक्षिप्त इतिहास श्यामवर्ण के प्राचीन अवन्तिका पार्श्वनाथ प्रभु के दायी और आदिनाथ प्रभु श्वेतवर्ण संवत 1485 की प्रतिमा विराजीत है जो आदिनाथ प्रभु की समकालीन है उक्त प्रतिमा की प्रतिष्ठा तथा जीर्णोद्धार विक्रम सम्वत 1684 के लगभग विजयसेन सुरीश्वर जी के अनुसार हुआ विक्रम सम्वत 1692 वीर विजय हिर सुरीजी की पादुका प्रतिष्ठा एवं छतरी का निर्माण हुआ तपागच्क्षीय आचार्य जयचन्द्र सुरीजी द्वारा विक्रम संवत 1384, 1509 में धातु की पंचतिर्थी की प्रतिष्ठा की गई विक्रम संवत 1518 के तपागच्क्षीय आचार्य द्वारा प्रतिष्ठीत पंचतिर्थी प्रतिमा जीनालय में विराजीत है विक्रम सम्वत 17 एवं 18वी शताब्दी का जीर्णोद्धार का उल्लेख मिलता है उक्त प्रमाण शास्त्रो अनुसार / / नमो तित्थस्य / / नामक पुस्तक से संकलीत किया गया है अतः यह मन्दिर प्राचीन एवं पुराना है Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनांक 12.02.2019 को पर्व उज्जैन के नई दुनिया दैनिक भास्कर पत्रिका आदि अखबारों में प्रतिमाजी उत्थापन एवं नई प्रतिमाजी की स्थापना ना करने का आश्वासन ट्रस्ट मण्डल देता रहा / दिनांक 16/17.02.2019 को संजय कोठारी एवं भुषण भाई शाह द्वारा ए.डी.एम. श्री डावर साहब एवं ट्रस्ट मण्डल के ट्रस्टी के समक्ष महाकाल मंदिर धर्मशाला में पुनः 21.01. 2001 के निर्णय को स्वीकार करते हुए आचार्य मणीप्रभ सागर जी, आचार्य विश्वरत्न सागर जी, आचार्य हेमचन्द्र सागर जी के मध्य मंदिर परिसर में चर्चा में पुनः स्वीकार किया कि पूर्व के निर्णय को मानते हुए किसी भी प्रकार परिवर्तन नही करेंगे। दिनांक 17.02.2019 को प्रातः जुलुस में ट्रस्ट मण्डल द्वारा बाउंसर (पहलवान) को बुलाकर श्रावक श्रावीक के साथ मारपीट एवं अभद्र अशोभनीय कृत्य किया जो कि ट्रस्ट मण्डल एवं आचार्य मणीप्रभ सागर जी महाराज सा. की उपस्थिती में हुआ (1-K) दिनांक 18.02.2019 को प्रतिमा प्रतिष्ठा महर्त में नवीन प्रतिमाजी का गोपनीय एवं दुर्भावना पूर्वक नवीन प्रतिमाजी का प्रतिष्ठा मंदिर परिसर की द्वितीय तल पर प्रतिष्ठा कर उक्त प्रतिमा जी पर आचार्य जीनमणी प्रभ सागर जी के नाम के शीलालेख दर्ज कराकर पूर्व के आश्वासन को दरकिनार करते हुए प्रतिष्ठा मनमाने तरीके से कर दी जिससे सम्पूर्ण समाज आहत है दिनांक 28.01.2019 को रूबरू ने ट्रस्ट मण्डल को संजय जी कोठारी द्वारा नोटिस आपसी व्यवहार में ट्रस्ट मण्डल को सौपा था जिसके अभिभाषक राजेश बाथम का नाम दर्ज है / (1-L) श्रीमान 1. नवीन प्रतिमाओं को तत्काल प्रभाव से हटाया जावे / 2. जिर्णोधार में लगभग 100 करोड रूपये का दान प्राप्त हुआ जैन सिद्धात के अनुरूप देवद्रव्य की राशी ही स्वीकार की जाती है और उसीके द्वारा जिनालाय का निर्माण किया जाता है प्राप्त आय का दान दाताओ सहित नाम एवं हिसाब सार्वजनीक प्रस्तुत किया जावे प्राप्त आय से अन्यत्र उपयोग खर्च नही किया जाता है जैन शास्त्र विधान अनुसार शास्त्र सम्मत होकर मान्य है / जैसे सोश्यल प्रिन्ट इलेक्ट्रानिक मिडीया टेन्ट लाईट डेकोरेशन भोजन संगीत विधीकारक केटर्स वेटर्स बिजली यातायात भाडा बहुमान सामग्री प्रतीक चिन्ह वाहन आदि व्यय प्राप्त दान से एवं बोलियो द्वारा नही कर सकते है अतः यह खर्च भी नही किया जा सकता है / प्राचीन प्रतिमा मूल नायक भगवान के दाये बाये में ही पूनः प्रतिष्ठीत कि जावे एवं नई प्रतिमाजी को हटायी जावे प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1901 1. 2000000000009090090 000000000000000000000 00000000000000000 600000000000000 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संलग्न इतिहास 1-A. 1-B, 1-C से प्राप्त किया है 1-D जिसमें प्राचीन प्रतिमाओं का स्वरूप है। दिनांक 28.01.2019 को शासन को 1-E द्वारा शिकायत दर्ज की गई तत्पश्चात 07.02.2019 को पुनः संजय कोठारी द्वारा I-F द्वारा शिकायत दर्ज की गई। दिनांक 10.02.2019 को राकेश जी मारवाड़ी द्वारा शिकायत दर्ज की गई। दिनांक 12.02.2019 को अवन्तिका पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट रजिस्टर्ड नं. 24/77 पत्र क्रमांक 2019/108 में ट्रस्ट मण्डल द्वारा शिकायत पर आश्वासन पत्र दिया गया जिसमें पैरा क्रमांक 1 में प्रतिमा विराजमान विक्रम सम्वत 1485 का उल्लेख होना स्वीकार कीया गया है / पैरा क्रमांक 4 में चारो प्रतिमाओं जी का एक छत्री में विराजमान होना स्वीकार किया गया है पैरा क्रमांक 7 में तीनों प्रतिमाओं जी का उत्थापन (हटाना) स्वीकार किया गया / पैरा क्रमांक 8 में साधारण सभा का हवाला देकर स्वीकृति ली गई लेकिन 21.01.2001 के ट्रस्ट मण्डल की मिटिंग में उत्थापन (हटाने) ना हटाने का निर्णय लिया गया था एवं नवीन प्रतीमा विराजमान नहीं करने का निर्णय लिया गया। पैरा क्रमांक 10 में ट्रस्ट मण्डल ने ट्रस्ट के पूर्व निर्णय 21.01.2001 के अनुसार कोई नई प्रतिमा विराजमान नही करेंगे ऐसा स्वीकार किया है / (1-G) ट्रस्ट बोर्ड की मिटिंग 21.01.2001 रविवार शाम 05:00 बजे पारित प्रस्ताव की प्रोसेडिंग अनुसार बिन्दु क्रमांक 1 में प्रतिमा जी उत्थापन (हटाना) एवं शिखरबन्द मंदिर बनाना है जिसमें प्रतिमा जी को नही हटाना दर्शाया गया है / बिन्दु क्रमांक 2 में कोई नई प्रतिमा नही विराजीत करना दर्शाया गया है / बिन्दु क्रमांक 3 में किसी भी साधु सन्त आचार्य का नाम या शिलालेख नही लगाना दर्शाया गया है बिन्दु क्रमांक 4 द्वितीय तल पर प्राचीन प्रतिमा श्री महावीर स्वामी जी. श्री गौतम स्वामी जी आदि प्रतिमाओं को ही विराजमाना करना है। अन्य नवीन प्रतिमाओ को विराजमान नही करना दर्शाया गया है (1H) 1. आचार्य हेमसागर, जिनचन्द्र सागर जी के द्वारा अपनी आपत्ति दिनांक 02.02.2019 को दर्ज कि गई / 2. तपागच्क्षीय प्रवर समिति द्वारा दिनांक 10.02.2019 को आपत्ति दर्ज कि गई / 3. आचार्य विजय ऋषभचन्द्र सुरीजी द्वारा दिनांक 02.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई / 4. आचार्य मुक्तिसागर सुरीजी द्वारा दिनांक 02.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई / Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. आचार्य विश्वरत्न सागर जी दिनांक 02.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई। 6. आचार्य विजयरत्न सुन्दर सूरीजी द्वारा दिनांक 02.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई / 7. आचार्य विजयअभय देव सूरीजी महाराज साहब दिनांक 03.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई। 8. आचार्य दौलतसागर सूरी जी दिनांक 10.02.2019 को आपत्ति दर्ज की गई। 9. आचार्य वीररत्न विजय जी दिनांक 04.02.2019 को आपत्ति दर्ज की 10. दिनांक 17.02.2019 को पुनः आपत्ति दर्ज की गई / 11. दिनांक 18.02.2019 को प्रतिष्ठा के तत्काल बाद संजय कोठारी एवं भुषण भाई द्वारा शिकायत दर्ज की गई। 12. दिनांक 03.02.2019 को पुनः शिकायत दर्ज की गई। 13. दिनांक 17.02.2019 को तपागच्छीय प्रवर समिति द्वार उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा जिसमें आचार्य ऋषभचन्द्र सुरीजी, संजय जी कोठारी, मुषण भाई शाह को अधिकृत किया गया था संजय कोठारी भुषण भाई शाह द्वारा प्रशासनीक अधिकारी एवं ट्रस्ट मण्डल को अपनी सख्त आपत्ति दर्ज कि थी ट्रस्ट मण्डल ने पुनः यह आश्वासन दिया कि 21.01.2001 के निर्णय अनुसार ही प्रतिष्ठा होगी आप निश्चीत रहे किसी नवीन प्रतिष्ठा का प्रवेश, ना ही किसी आचार्य का शिलालेख व नाम नही लिखा जावेगा कलश एवं ध्वज दण्ड पर भी कोई नाम अंकित किया जावेगा और तीर्थ परिसर में खडे होकर प्रभु के समक्ष हाथ उपर कर कहाँ था कि पूर्व के निर्णय दिनांक 21.01.2001 के अनुसार ही कार्य करेंगे आप निश्चीत रहो / (1-M) दिनांक 17.02.19 को भी आपत्ति दर्ज की गई / (1-N) दिनांक 15.02.2019 को भी आपत्ति दर्ज की गई / (1-0) दिनांक 05.02.2009 में दैनिक भास्कर के माध्यम से प्रकाशीत समाचार में ट्रस्ट मण्डल ने सहमती 21.01.2001 के निर्णय अनुसार करने का आश्वासन दिया दैनिक नई दुनिया 04.02. दिनांक 03 फरवरी को उज्जैन स्थित 22 श्री संघो के प्रतिनिधी एवं रतलाम, मन्दसौर, जावरा, निमच, नागदा, इन्दौर, राजगढ़, बदनावर, बडनगर आदि श्रीसंघ की उपस्थिती में दिनांक 21.01. 2001 के निर्णय को यथावत रखते हुए सौहार्दपूर्ण बातचीत कर ट्रस्ट मण्डल ने श्रीसंघ के सदस्यों को आश्वासन दिया कि पूर्व निर्णय अनुसार ही प्रतिष्ठा की जावेगी जो 04 फरवरी के अखबार नई दुनिया में है (1J) Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 09POORo06068000 www.naidunia.comb STU नईदुनिया इंदौर. सोमवार 4 फरवरी 2019 उज्जैन / नईदुनिया 03 अवंति पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा समारोह के स्वरूप पर संतों ने जताई आपत्ति स्थानीय समाजजनों ने ताबड़तोड़ बुलाई बैठक, ट्रस्टियों से की चर्चा, कई बिंदुओं पर बनी सहमति, ज्योतिष सम्राट ऋषभचंद्र सूरि ने 5 फरवरी तक लिखित में मांगा जवाब का भी उपलेख मंदिर के शिलालेख उज्जैन। नईदुनिया प्रतिनिधि परकियाजाएगा। पूरे देश में यात अति प्राचीन श्री अतिश्री अति पावनाय तीर्थ मे समूचे पारवनाथ तीर्थ के प्रतिष्ता महोत्सव को जैन समाज के सब विभिन समदाय के लेकर भय तैयारियां चल सी है। झा संतों की भावनाएं उड़ी हुई है। समयबीच महोत्सव के स्वरूप को लेकर कुछ समय इस मंत्रि में मुए जगदंड संगो नेपा लियर आपत्ति जताई समारोह, मूर्ति उत्थापन, नेकी पाने श्री है। इसके बाद स्थानीय समाजजन जटे आदिनाथ प्रभु की प्रतिप्ता समेत अनेक और बाद में तीर्थ के सर मेडल से चर्चा आयोजनों में इन संतों की भूमिका रही की गई। अझ बिंदुओं पर सहमति काम है। प्रतिष्ठा महोत्सव समिति ने शायर गई है। ट्रस्टियों ने कहा कि संतों की के प्रमुख सतों को आमंत्रित किय पर, भावनाओं का पूरा ख्याल रखा जाएगा। मून कार में स्थित श्री अति पावनाब राधी को सामान आगजित किया गया के आरपास विराजित 500 वर्ष पुरानी है। मंदिर के इतिहास में समय-समय श्री गौडी पारवनाथ व आतिनाथ एवं पर योगदान देने वाले संतों के नाम श्री नेमिनावप्रधुनी प्रतिमाहटाने पर संत 000000000 6000000000 DDODY समाज दलित हो गय पिछले वे किनमें निर्णय लिया संतों कीभावना गरि में लाने वाले शिलालेख पर उनके रमेशचंद्र बाठिया, रजत कुमार मेहता यह मुद्दा गरमा गया। से ट्रस्ट को अवगत कराएंगे नाम का उल्लेख किया जाएगा। प्रतिष्ठा के अलावा प्रमुख रूप से सामा मराज महोत्सव में उपस्थित होने वाले प्रत्येक जैन, सुजनमल जैन, गीतमपंद पांग, हर्ष समरसूरिश्वरजी, न्योतिष स्वाट संतों के पा मिलने पर रविवार को आचार्यश्री, गणिवयं आदि का नाम जयंतीलाल तेलबाना, सुशील गिरिया, आचार्य श्री क पधचंत विजयजी, स्थानीय मूर्तिपूजक समृताय के लोग थे भी अंकित होगा। चर्चा उपरांत झाको अभय मेहता, बालाल बिजलीवाले, आचार्यश्री जिननंदसागरजी, आचार्यको सपा पेही खाराकुआं पर जुड़े और जानकारी अन्य समाजजनों को दी गई, अशोक सारी.सुभाष जैन, संजय मुक्तिसागर सूरिश्वरजी, आचार्ययी पीने निर्णय लिया कि संतों की भावना जिहोंने संतोष जताया। जैन मोटर्स, विमल पगारिया, नरेश विश्वरम सागरजी सहित अनेक संतों से ट्रस्ट मलको अवगत कराया जाए। घोषणा करते समय यह खरी, मनीष कोठारी, राल कटारिया, व श्रीसंघ ने पा भेज हटाई गई मूर्ति को अति तीर्थ पहुंचकर चुनिता समाजजनों जयंतीलाल फाफरिया, राजेंद्र बाठियां, कहीं स्थापित करने के अलावा संतों को मै ट्रस्ट मंडल से पर्चा की। पचा उपरांत समाजजनथे उपस्थित ससम्मान आमाण करने, इतिहास में ट्रस्ट मंडल ने आश्वस्त किया कि संती महोत्सव समिति अध्यक्ष विषाक प्रमाण पामेवा, डॉ.संजीव जैन, संजय योगटान करने वाले संतों का उल्लेख की भावनाओं का स्याल रखा जाएगा। पारसल, महोत्सव समिति उपाध्यक्ष क्लीकाना, राजेश कटारिया एवं करने जैसे बिदुभी उठाए। ज्योतिषबाट जो रात आसपास के क्षेत्र में विराजित है, पुखराज चोपड़ा, अति ट्रस्ट की और बतनावर, राजगड, शाबुना, भोपाल मे ट्रस्ट मंडलसे 5 फरीतक लिखित में भी सम्मान आमंत्रित किया जाएगा। से अध्यक्ष हीराचा ग्राजेड, सचिव तीर्थ, गोहनखेडा तीर्थ पताधिकारी में जवाब मांगा है। इतिहास में जिनसंतों का योगदान कार्ड, चंद्रशेखर अगा, ललित बाफना, उपस्थित थे। कोत्सव को लेकरच्या करते हुए समजजन। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवंति पार्श्वनाथ के गर्भगृह से प्रतिमा हटाई तोझरी अमी मूलनायक को छोड़ आदिनाथ, नेमिनाथ ओरगौड़ीपार्श्वनाथ की प्रतिमा का किया उत्थापन उज्जैना नईदुनिया प्रतिनिधि समित्वभाव रखताबर जैन तीर्थ पर गर्भगृह में विराजित मूल नायक के अलावा तीन प्रतिमाओं का सोमवार को विधि विधान के साथ उत्थापन (स्थानांतरण) किया गया। इस दौरान गौडी पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा से अमी (अमृत तुल्य तरल पदार्थ) झरने लगी। उपस्थित श्रद्धालुओं ने इसे शुभ संकेत मनते हुएहतिरेक मेजयपोषकिया। उत्थापन के पूर्व भी अवतिपानाच, पीआदिनम और श्री गौडी पाश्वनाम। दानी गेट स्थिा इस प्राचीन तीर्थ के गर्भगृह में विराजित सभी प्रतिमाओं का उत्थापन किए बिना जीर्णोद्वार होकर शिखरबद्ध मंदिर का निर्माण हो चुका है तथा 15 फरवरी 2010 को प्रतिष्ठा समारोह आयेजित होगा। पिछले दिनों ट्रस्ट व उससे जुड़े समाजजनों के निर्णय के उपरांत मूलनायक श्री अबति पारवनाथजी कीप्रतिमकेसाथविराजित वे आझिाथ, श्री नेमिनाथ व श्री गौरी पारवनाथप्रभुकी प्रतिमा के उत्थापनका निर्णय लिया गया। बताया गया कि यह उत्थान के बाद विराजित मनु आदिनाथ। प्रतिमाएं मूलनायक से ऊंची विराजित होने से उत्थापन जिनवाना आवश्यक नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा अपने प्रतिष्ठित प्रभुकी प्रतिमा का उत्थापन कर प्रतिष्ठा है। हालांकि समाज के कुछ लोग इन मन स्थान से बाहर आ गई। इसके बाद तक गर्भगृह मेंहीअन्यस्थान पर विराजित प्रतिमाओं के उत्थापन से सहमत नहीं गौडी पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के किया गया है तब न दोनों प्रभु को थे। निर्णय के बाद सोमवार सुबह 9.30 उत्थापनकी क्रिया प्रारंभ की गई। भारी- गर्भगृह के भीतर ही आसपासकी दीवारों जानेमालामणिमसारतश्विरना भरकम इस प्रतिमा के उत्थापन के लिए पर बने गंभारे मेंतथा श्री नेमिनाथप्रभुको मसा एवं साध्वी मंडल के सानिध्य में थेडी मशक्कत करना पड़ी। आखिरकार गर्भगर के पास प्रतिष्ठित किया जाएगा मंत्रोच्चार के साथ विधान शुरूहआ और इस प्रतिमा को भी मूल स्थान से बाहर तथा मूलनायकजी के पीछे आकर्षक कारीगरों ने प्रतिमा के उत्थापन का काम निकालने मेंसफलतामिण गई। परिकरभी बनेगा। रितेश जैन ने बताया कि शुरू कर दिया। वहुत आसानी के सथ गर्भगृह में ही होगी विराजित मंगलवार सुबह 9.30 बजे से आचार्यश्री ठीक 10 बजकर 17 मिनट पर मूल के प्रवचन होंगे तथ दोपहर उपरांत वे गर्भगृह में विराजित श्री आदिनाथ और श्री श्र आदिनाथ और श्री गौड़ी पार्श्वनाथ महिदपुर की ओर प्रस्थान करेंगे। PRODOOOOOOOOOOOOO 6666666666666666660 00000000000000000 COOOOOOOOOOOOO Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 आयोजन स्थल पर बन रहे पंडाल पर भी प्रशासन की नजर प्रतिष्ठा महोत्सव से पहले जैन मंदिर से हटी दो मूर्तियां... अफसर मौके पर पहुंचे उज्जैन। नईदुनिया प्रतिनिधि निगम के सहायक आयुक्त सुबोध जैन मंदिर पहुंचे और मूर्तियों का अक्लोकन शहर के अति प्राचीन श्री अवंति किया। बहरहाल, प्रशासन ने इस मामले पाश्वनाथ तीर्थ (मंदिर) में आयोजित में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है न कोई होने वाले प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव से पहले दिशा निर्देश जारी किया है। सामाजिक मंदिर की तीन मूर्तियों में से दो हटाने के मामला होने के कारण प्रशासन ने अभी मामले में प्रशासनके दो अफसर भी मंदिर दूरी बना रखी है। महोत्सव के अंतर्गत पहुंचे और मूर्ति को लेकर जानकारी कार्तिक मेला मैदान पर बड़ा आयोजन ली। हालांकि सामाजिक मामला होने के होने जा रहा है। इसके लिए आयोजन कारण प्रशासन ने अभी कोई हस्तक्षेप नहीं है। मंदिर में श्री अवंति पार्शवनाथजी के स्थल पर भव्य पंडाल बनाया जा रहा है। किया है। महोत्सव के लिए थर्माकोल से आसपास कोई 500 साल पुरानी श्री पंडाल के सामने हाईटेंशन लाइनहोने के बनरहे शानदार पंडालपर भी प्रशासनकी गौड़ी पार्श्वनाथ और श्री आदिनाथ व श्री कारण प्रशासन ने आयोजकों को नोटिस नजर है। नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमाएं थीं। मंदिर के जारी कर सुरक्षा के उपाय करने को कहा अवंति पार्श्वनाथ मंदिर देशभर जीर्णोद्धार के बाद दो मूर्तियों को हटाने है। साथ ही प्रशासन के स्तर पर टीम में ख्यात है, लेकिन झदिनों यह दो का मामला प्रशासनके पासभी पहुंचा है। बनाकर सुरक्षा की जांच भी कराई है। मूर्तियों को हटाने को लेकर सुर्खियों में बुधवार को एडीएम जीएस डावर व नगर इससे भी यह आयोजन चर्चा मेंहै। 99QROOPOST 6666666666666666660 0000000000000000 600000000000000 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रिका 6666666666666666660 900090009090920POX | 4/24 PO प्रतिमाएं हटाने को लेकर उपजा विरोध, जैनाचार्यों ने प्रतिष्ठा समिति को भेजे पत्र अवंतिपार्श्वनाथ जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा से पहले जैन समाज में तकरार, विभिन्न ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने समिति के सामने रखी मांग व सुझाव पत्रिका न्यूज नेटवर्क 600000000000000 000000000000000000000 प्रतिष्ठा समिति को अपने सुझाव आचार्य हेमचंद्र सागर, मोहनखेड़ा की बैठक भी हुई। patrika.com मांग पत्र दिए। पहले खाराकुआं के आचार्य ऋषभचंद सूरी सहित फरवरी तक उज्जैन. दानीगेट स्थित श्री स्थित श्री ऋषभदेव छगनीराम पेढ़ी अन्य संतों ने इसको लेकर आपत्ति अवंतिपार्श्वनाथ तीर्थ जीर्णोद्धार मंदिर में सभी संघों की बैठक हुई। दर्ज कराई है। साथ ही मंदिर के मागा जवाब प्रतिष्ठा समारोह से पहले कुछ इसमें पारित प्रस्तावों को मांग पत्र के प्राचीन इतिहास से छेड़छाड़ व नए निर्णयों व मंदिर में हटाई गई दो रूप में अवंतिपार्श्वनाथ मारवाड़ी शिलालेख लगाने आदि को लेकर जैनाचार्य व श्री संघों की ओर से दिए प्राचीन प्रतिमाओं को लेकर विरोध समाज ट्रस्ट मंडल को सौंपा गया। अपनी राय प्रकट की है। चूंकि मंदिर सुझाववमांग पत्रों में उल्लेख है कि शुरू हो गया है। रविवार को विभिन्न प्रमुख रूप से मंदिर में 500 से काजीर्णोद्धार हुआ है और यहां कुछ प्रतिष्ठा समारोह समिति 5 फरवरी जैनाचार्यों ने सभी संघ से सलाह अधिक वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित आदिश्वर बदलाव किए जा रहे हैं इसको तक हमें लिए गए निर्णयों से अवगत किए बगैर मूर्तियां हटाने, प्राचीनता प्रभु व गौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा लेकर विभिन्न ट्रस्टों में भी रोष है। कराएं। बता दें, मंदिर जीर्णोद्धार के खत्म करने व नए शिलालेख लगाने हटाने को लेकर विरोध है। मामले को लेकर रविवार दोपहर 3 बाद 13 से 18 फरवरी के बीच वृहद् संबंधी बातों को लेकर अपने पत्र जैनाचार्य गच्छाधिपति दौलतसागर बजे मंदिर कार्यालय में प्रतिष्ठा प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया भेजे। उज्जैन सहित, राजगढ़, धार, सूरी, हर्षसागर सूरी, आचार्य मुक्ति समारोह समिति पारस जैन की जा रहा है। कार्तिक मेला मैदान पर इंदौर, झाबुआ, रतलाम के विभिन्न सागर सूरी, आचार्य विश्वरत्न मौजूदगी में मारवाड़ी समाज ट्रस्ट व इसके लिए राजमहल नुमा पांडाल ट्रस्ट व श्री संघों ने इन पत्रों के साथ सागर, आचार्य जिनचंद सागर, विभिन्न ट्रस्ट वसंघ के प्रतिनिधियों तैयार किए जा रहे हैं। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tदैनिक लोक लक्ष्य उज्जैन, दिनांक, बुधवार 27 फरवरी 2019 ladakels arelimal.om मंदिर के प्राचीन इतिहास को मिटाया, नई प्रतिमाएं लगाकर समाज से किया धोखा तपणडपारसमितिकैपतिनिधि केरूपमॅपधारे प्राचार्यश्री मटकारस्तीकसने स्वप्रतावसतिष उपारिन अतिपार्शवनावमदिरमॅटरदराजनाप्रपनेउप्राधान काउल्लंघन करनेसेदानवतास्वरिष्ठअचर्यनाखुश, तपागच्छापरंपरा:मंदिरपरजीर्णोद्धार के नाममनमानीसेयजाअसंतोष, खतरगळगडाके प्राचार्यनेकी आस्थाकोपहुचाईटेस उज्जै न। किसी साधु-संत आदी के नाम के शिलालेख नहीं लगेंगे साथ ही मूल अति प्राचीन प्रभू व आसपास की प्रतिमाएं मल स्थान पर ही रहेगी। लेकिन प्रतिष्ठा अवंतिपार्श्वनाथ दौरान इन प्रावधानों के साथ अन्य अनिवार्य तीर्थ नियमों का खला मंदिर जो देश के उल्लंघन हुआ है। खुद मंदिर ट्रस्ट ने ही अपनी प्रोसिडिंग को नहीं माना विख्यात 108 ओर खतरगच्छ समुदाय के आचार्य जिन मणीप्रभ सागर सूरी के इशारें पार्श्वनाथ मंदिर में तीर्थ की प्राचीनता को मिटा दिया। जबकी वरिष्ठ जैनाचार्य द्वारा ट्रस्ट में विद्यमान है। से पारित प्रस्ताव व तीर्थ नियमों के पालन की लिखित सूचना पूर्व में यहां जीर्णोद्धार ही दी जा चुकी थीं। इस धोखाधड़ी को लेकर तपागच्छ प्रवर समिति के व पुनः प्रतिष्ठा आचार्यों में रोष है और वे अब वे श्रीसंघ के जरीए वैधानिक कार्रवाई दौरान हुए कार्यों की तैयारी कर रहे है। ने श्वेतांबर जैन जो नियम बनाकर दान लिया, उसे बाद में तोड़ासमाज में विवाद अवंतिपार्श्वनाथ ट्रस्ट ने मंदिर जीर्णोद्धार को लेकर 2001 में प्रस्ताव की स्थिति पैदा पारित कर 5 बिंदु तय किए थे। इसी आधार पर देश के नामी ट्रस्ट व कर दी है। दानदाताओं से मंदिर निर्माण में राशि ली गई। ये सब कुछ होने व भरोसे मूलनायक प्रभू में लेने के बाद प्रतिष्ठा से कुछ माह पहले तीन प्रतिमाएं हटाकर के आसपास की अन्यत्र विराजित की। ये प्रतिमाएं तपागच्छ संतों द्वारा प्रतिष्ठित थीं। तीन प्रतिमाओं साथ ही नइ प्रतिमा नहीं लगाने का निर्णय हुआ था, जिसका खुला का उत्पाथन व इसके बाद अवंति पाश्वनाथ के प्राचीन उल्लंघन पर 20 से अधिक प्रतिमाएं व उनके नीचे नाम लिखकर इतिहास को धूमिल करते हए यहां नई प्रतिमाएं व चरण पादुका स्थापित कर दी गई। कल्याण मंदिर की 44देहरियों पर 44 चरण लगाने सहित अन्य कई मामलों को लेकर आचार्य श्री पादुकाएं लगाकर सभी पर खतरगच्छ के आचार्य ने अपने व हेमचंद्रसागर सूरीश्वर बंधु बलेडी, आचार्य विश्व रत्न सागर सूरी, श्रावकों के नाम अंकित करा दिए।मूर्ति ओर पादुकाओं के शिला ज्योतिष सम्राट आचार्य श्री ऋषभ चंद्र सुरीश्वरजी ने कड़ा लेख में लिखा गया +खतरगच्छ सहस्त्राब्दी’ गौरव वर्ष वाक्य से एतराज लिया है। तपागच्छीय प्रवर समिति के जरीए मंदिर जिनशाशन के प्रमाणित इतिहास के साथ भी छेड़खानी की गई व्यवस्थापक अवंतिपार्श्वनाथ तीर्थ मारवाड़ी समाज ट्रस्ट को है जबकी मंदिर परिसर में साधु-संत के नाम लिखने की मनाही पहले ही आगाह किया गया था, लेकिन फिर भी एनवक्त पर ट्रस्ट ने खुद तय की थी। जो नियम बनाकर ट्रस्ट ने देशभर के प्रतिष्ठा समिति व टस्ट प्रबंधन ने मनमानी की। लिहाजा अब ये दानदाता व स्थानीय समाजजनों ने जो राशि ली उसमें धोखाधड़ी मामला उन दानदाता ट्रस्टों तक पहुंचा है, जहां से मंदिर की गई। प्रतिष्ठा पूर्व ही मालवा तपागच्छ मुर्तिपूजक श्रीसंघ ने जीर्णोद्धार के करोड़ों रुपए दिए गए है। अपने आपत्ति पत्र दे दिए थे। जिला कलेक्टर से भी इसकी प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने आए आचार्य हेमचंद्र सागरसूरी ने शिकायत की जा चुकी थी, जिस पर एडीएम ने मौका मुआयना इन मनमानियों को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट की है। उनके अनुसार भी किया था। प्रतिष्ठा महोत्सव में तपागच्छ के वरिष्ठ आचार्यों के साथ श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक परंपरा के दो गच्छ, एक तपागच्छाव दूसरा समान एवम व्यवस्था को लेकर जो अनुचित ओर अयोग्य व्यवहार खतरगच्छ। अवंतिपार्श्वनाथ मंदिर का इतिहास तपागच्छ परंपरा के साथ हुआ , उससे पूरा जैन संघ आहत है। बावजूद मनमानी की जाकर जड़ा है। 21 जनवरी 2001 में मंदिर ट्रस्ट ने प्रस्ताव पारित किए थे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई। उक्त जानकारी मालवा महासंघ की जीर्णोद्धार दौरान मंदिर परिसर में कोई नई प्रतिमाएं नहीं लगेगी, के विधि सलाहकार महेंद्र सुंदेचा एडवोकेट ने दी। DOORAKOOOOOOOL R8888888888888| 64 1888888888888888888 0000000000000000000 600000000000000 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जपत्रिका | 8/29 PD 8/29 अवंतिपार्श्वनाथ तीर्थ में हुए कार्यों को लेकर जैन संतों में उभरा असंतोष प्राचीन इतिहास मिटाने व ट्रस्ट द्वारा अपने ही नियमों को तोड़कर धोखा करने के आरोप कई जैनाचार्यों ने ट्रस्ट पारित प्रस्तावों पर अमल नहीं करने का आरोप लेकिन खरतरगच्छ के आचार्य व प्रतिष्ठा समिति पर मणिप्रभसागर सूरी ने यहां मनमाने एडवोकेट सुंदेचा ने बताया 21 जनवरी 2001 में मंदिर ट्रस्ट ने प्रस्ताव पारित कार्य कराकर समाज की धार्मिक उठाए सवाल किए थे, जिसमें तय हुआ था कि जीर्णोद्धार दौरान मंदिर परिसर में कोई नई भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। इस प्रतिमाएं नहीं लगेंगी, किसी साधु-संत आदि के नाम के शिलालेख नहीं लगेंगे, संबंध में समय रहते जिला प्रशासन मंदिर जीणटार के नाम साथ ही मूलनायक प्रभु व आसपास की प्रतिमाएं मूल स्थान पर ही रहेंगी, से भी शिकायत की गई थी. बावजद मनमानी व प्राचीनता लेकिन प्रतिष्ठा दौरान इन प्रावधानों के साथ अन्य अनिवार्य तीर्थ नियमों का मनमानी की गई। खुला उल्लंघन हुआ है। खुद मंदिर ट्रस्ट ने अपनी ही प्रोसिडिंग के विरुद्ध का उड़ा मखौल 44 देहरियों पर चरण जाकर मनमाना कार्य किया और तीर्थ की प्राचीनता को मिटाया। इसको लेकर तपागच्छ प्रवर समिति व विभिन्न श्रीसंघों के जरिए वैधानिक कार्रवाई पादुका व नाम पत्रिका न्यूज नेटवर्क की तैयारी की जा रही है। मंदिर परिसर मेंकल्याण मंदिर स्त्रोत patrika.com की गाथा लिखने 44 देहरिया निर्मित उज्जैन अतिप्राचीन अवतिपार्श्वनाथ सागर सूरी, ज्योतिष सम्राट आचार्य ही आगाह किया गया था, लेकिन हुई है। इन पर 44 चरण पादुकाएं मंदिर जो देश के विख्यात 108 ऋषभचंद्र सूरी मोहनखेड़ा ने कड़ा फिर भी 18 व 19 फरवरी को हुए लगाकर सभी पर खतरगच्छ के पार्श्वनाथ मंदिर में विद्यमान है। यहां एतराज लिया है। समाज में उपजा प्रतिष्ठा कार्यक्रम में समिति व ट्रस्ट आचार्य ने अपने व श्राक्कों के नाम जीर्णोद्धार व पुनः प्रतिष्ठा दौरान हुए असंतोष मंदिर निर्माण के लिए करोड़ों प्रबंधन ने मनमानी की। प्रतिष्ठा में अकित किए है। अन्य जैनाचार्य को कायों ने श्वेतांबर जैन समाज में विवाद का दान देने वाले बड़े तीर्थ व ट्रस्टों शामिल होने आए आचार्य हेमचंद्र एतराज यह है कि जब ट्रस्टने किसी की स्थिति पैदा कर दी है। मूलनायक तक भी पहुंचा है। सागरसूरी ने इन मनमानियों को भी साधु-संत के नाम नहीं लिखना प्रभु के आसपास की तीन प्रतिमाओं श्वेतांबर जैन मालवा महासंघ लेकर अपनी नाराजगी प्रकट की है। तय किया था तो फिर ये उल्लंघन का उत्पाथन, प्राचीन इतिहासमिटाकर के एडवोकेट महेंद्र सुंदेचा के उनके अनुसार श्वेतांबर जैन क्यों हुआ। जो नियम बनाकर ट्रस्ट नई प्रतिमाएं व चरण पादुका लगाने अनुसार तपागच्छीय प्रवर समिति ने मूर्तिपूजक परंपरा केदो गच्छ होते हैं। ने देशभर के दानदाता व स्थानीय को लेकर आचार्य हेमचंद्रसागर मंदिर व्यवस्थापक अवतिपार्श्वनाथ अवतिपार्श्वनाथ मंदिर का इतिहास समाजजनों ने जो राशि ली यह उनसे सूरीश्वर बंधु बलेडी, आचार्य विश्वरत्न तीर्थ मारवाड़ी समाज ट्रस्ट को पहले तपागच्छ परंपरा के साथ जड़ा है। घोखा है। PoppODOp909009 6666666666666666660 600000000000000 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 7 खरतरगच्छ श्रमण संम्मेलन गीत तर्ज :- प्रभु तारुं गीत मारे गांवु छे पालीताणा हमें आना है, सम्मेलन सफल कराना है ना कारण है ना बहाना है,गुरुदेव का कर्ज चुकाना है। पालीताणा.... युवाओं को जुट जाना है, वृद्ध अनुभव का लाभ उठाना है अमूल्य अवसर यह हथियाना है,पालीताणा हमें आना है | गौतम खरतर सुधर्मा खरतर,वीर की मूल परम्परा खरतर, इस सत्य का डंका बजाना है,पालीताणा हमें आना है। सम्मेदशिखर गढ़ गिरनारी पर,शत्रुजय गिरिराज के उपर, खरतर ध्वज लहराना है,पालीताणा हमें आना है। तारंगा शंखेश्वर हो अपना, कांति गुरुवर का था सपना, राणकपुर आबू पांव जमाना है, पालीताणा हमें आना है। खरतरगच्छ के थे सब तीरथ,वापिस पाने का प्रबल मनोरथ, दृढ़ निश्चय मन में ठाना है, पालीताणा हमें आना है। दादा पद है सिर्फ खरतर का,अचल पायचंद नहीं तपा का, सब नकल को अब निपटाना है, पालीताणा हमें आना है। इतने पंहुचो यहां पर यात्रु,भयभीत थर्रावे शत्रु, खरतर सैलाब को लाना है,पालीताणा हमें आना है। पांच पीर चौसठ जोगणियां,बावन वीर सब खरतर मणियाँ, फिर से इन्हें जगाना है, पालीताणा हमें आना है। काला भैरव गोरा भैरव, अम्बे मां का अदभुत वैभव, 'कांति मणि' लोहा मनवाना है,पालीताणा हमें आना है। 6666666666666666660 600000000000000 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00000000000000000000 000000000000000000000 8 एक ऐतिहासिक उल्लेख अवंति पार्श्वनाथ परमात्मा के संदर्भ में एक ऐतिहासिक स्तवन, जो मुनि श्री मेहुलप्रभसागरजी म. को शोध से प्राप्त हुआ है। इस 06 स्तवन में अवंतिसुकुमाल की कथा का वर्णन करते हुए उनके सुपुत्र महाकाल द्वारा प्रतिमा निर्माण व प्रतिष्ठा, प्रतिमा की शिवलिंग के रूप में पूजा, 89 आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरि द्वारा कल्याण मंदिर स्तोत्र की रचना से प्रतिमा के प्राकट्य का वर्णन इस स्तवन की गाथाओं में पढ़ने को प्राप्त होता है। इस स्तवन के द्वारा एक नये तथ्य की जानकारी मिलती है कि जब यवनों का आक्रमण बहुत ज्यादा बढ़ गया था और यवन सेना बड़ा संख्या में मालव प्रदेश में आ रही थी। उस सेना का उद्देश्य था-मंदिरों को नष्ट करना...प्रतिमाओं को खंडित करना! ऐसी स्थिति में उस समय उज्जैन के संघ ने गंभीर विचार कर परमात्मा अवंति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा को भंडार कर दिया था। भंडार करने का अर्थ है- भोयरे में रखकर उस कक्ष को पूर्ण रूप से बंद कर देना। खरतरगच्छ नायक आचार्य श्री जिनरत्नसूरिकेपट्टधर आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि ने इस स्तवन में लिखा है कि वि.सं.1761 में अवंति पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिमा को पूनः प्रकट किया गया अर्थात् भडार खोलकर बाहर लाया गया व मंदिर में बिराजमान किया गया। परमात्मा का प्राकट्य महोत्सव व पूनः प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के आचार्य जिनरत्नसूरि के शिष्य आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि की पावन निश्रा में उनके मंत्रोच्चारणों से किया गया था। इस प्राकट्य महोत्सव के समय ही इस स्तवन की रचना हुई होगी। गरूओ जस अधिकार सुंणी जिनगेह रो, सिवमतीये पिंडी थाप कीयौ सिवदेहरो।।5।। कल्याणमंदिर काव्य कुमदचंदै कीयौ, पिंडी विकसी पास जिणेसर प्रगटीयो। वारै विक्रम राय वड़ी सोभा वणी, घणौं काल जिनधर्म प्रसिद्धि हुई घणी / / 6 / / यवन जोर तिहां बिंब भंडार्या जतन सुं, रागी कुंण कुंण राग करै नही रतनसुं। हिव सतरैसै संवत वरसैं इगस, प्रगट थया प्रभु पासजी वंद्या सारी पठे।।7।। उदय सकल सुख लखमी धन जीवित थयौ, भेट्या श्री भगवंत दुख दुरै गयौ। लाख भांति श्री खरतरगच्छ सोभा कही, गणधर जिणचंदसूरि जुहार्या गहगही / / 8 / / इति / / उपरोक्त ऐतिहासिक स्तवन आचार्य कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा की प्रति संख्या 68004 पृष्ठ सं.19 से साभार प्राप्त हुआ है। अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ विषयक पत्रीका में गलत वर्णन परिशिष्ट 8 000000000000000000 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 9 तीर्थ ट्रस्ट द्वारा पारित प्रस्ताव की कोपी नहरदोडे मिटा दिार, शाप दिक्षारक सामन हर बादाम नरवी राइजिमा निकसहानी उपती रही - 3 एकजना रमनपदनोप एकाविना नामवली साहीवायलिउतरा जी की पाठीमार कर लिया। कम्बल्टनम जी कशी उधार मान्य मागीमामा शगद पटना मीसागोयामा कालानिया टोना- जत्नपा कर्मयनिक मुलायाजाळला नह उमाजी दीलीम शहरमय। सन्तरामा प्यरोईनवी रियासळलव सहोरे यस्को की ठाम सहरुकन्या रजा लाल कोखनही कगामा शिमक छ। तोच रासायको समीपा सेमा स्वरूपपना रह नदी निकोण परत साम बहरी गंजणकर सानिमय जरमा उकालोनी महावीर स्वाही व गोलारयागरवी मलिका SHOT ON MI A1 MI DUAL CAMERA OOOOOO YOOOOO Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उमा उनी योती म थिरामक मन्टडामा इनवीन जतिका सरिता सागपात्रामाशा खनही मानिसहरु तोच रासाईकोरसमी है सेमा चरुपनारह नवी निर्माण वर सका इहरी मनोक पर मिया उरमा उकरूमानी महावीर स्वाही लगोलाचाली झालिका किसान का जिला मुख DO SHOU CHIATEAMEERकिदिश मरहम SHOT ON MI A1 MI DUAL CAMERA सामTIO PRODOOOOOOOOOOOOO 6666666666666666660 OOOOOOOOOOOOOOD 600000000000000 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 10 उवसग्गहरं तीर्थ ट्रस्ट से आए पैसे का भी गच्छीकरण ॥उवसमहरं पासं पास बंदामि॥ श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ पारसनगर, नगपुरा जिला-दुर्ग (छ.ग.) फोन नं.-0788-2621201,9131836155 फैक्स-2621207, Email-nagpurau.tirth@gmail.com क्रमांक 9/22/2.. दिनांक-11 -2019 श्रीमान अध्यक्ष महोदय/टस्टीगण Whatshop श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ Email जैन श्वे.मू.पू. मारवाड़ी समाज ट्रस्ट दानीगेट उज्जैन 456006 (म.प्र.) सादर जयजिनेन्द्र * अवगत हो कि श्री उवसम्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा द्वारा देवव्रत्य खाते से 777777/-रुपै का सहयोग प्रदानकर देहरी का लाभ लिया है। आपके पत्र दि. 30/9/18 के तारतम्य में तीर्थ कार्यालय से पत्रिका एवं शिलालेख हेतु पत्र क्र. टूस्ट 16/2018 दि. 4/10/2018 को रजिस्टर्ड पत्र से सूचित किया गया था तद् अनुसार पू.आचार्य श्रीमद् विजय राजयश सूरीश्वर जी म.सा. के सदुपदेश से श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ पारसनगर नगपुरा जि. दुर्ग छत्तीसगढ़ अंकित किये जाने की सूचना दी गई थी। अवलोकन हेतु हमारे पत्र की छायाप्रति संलग्न है। * अत्यंत ही खेद है कि आपके ट्रस्ट मंडल द्वारा प्रतिष्ठा महोत्सव की पत्रिका आज दिनांक तक हमारे तीर्थ ट्रस्ट को नहीं भेजा गया क्षोभपूर्वक आपको अवगत कराते हुए सूचना है कि एक भाग्यशाली के पास अवन्ति तीर्थ प्रतिष्ठा की पत्रिका अवलोकन करने पर ज्ञात हुआ कि आपके ट्रस्ट मंडल ने हमारे द्वारा दिए गए नाम को जान बूझकर विलोपित कर अपने तरीके से आचार्य श्री के नाम के स्थान पर साध्वी प्रमोदश्री जी एवं साध्वी रत्नमाला श्री जी का नाम जोड़कर पत्रिका में हमारे तीर्थ का नाम प्रकाशित किया है जो कि घोर आपत्तिजनक है एवं हमारे ट्रस्ट मंडल का अपमान भी है। इस पत्र के माध्यम से आपको सूचित करते हुए इस संदर्भ में स्पष्टीकरण प्रेषित करने के साथ ही शिलालेख में ट्रस्ट मंडल द्वारा प्रेषित नाम पू.आचार्य श्रीमद् विजय राजयश सुरीश्वर जी म.सा. के सदुपदेश से श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ पारसनगर नगपरा जि. दर्ग छत्तीसगढ़ ही अंकित किया जावेगा इसका निश्चय के साथ वचन पत्र तत्काल भिजवायें अन्यथा किसी भी प्रकार के कार्यवाही हेत आप जिम्मेदार होंगे। प्रतिलिपि*प.पू. आ. श्रीमद् विजय राजयश सूरीश्वर जी म.सा. को सूचनार्थ * सेठ आणंद जी कल्याण जी पेढ़ी अहमदाबाद को सूचनार्थ * श्री पारसचंद जैन अध्यक्ष प्रतिष्ठा महोत्सव सादर वास्ते श्री उवसम्मेहरं पार्वतीर्थ नगपुरा-दुर्ग-छत्तीसगढ़ 491001 पू. प्रवर्तिनी श्री प्रमोद श्रीजी म.सा. की शिष्या पू. माताजी म. श्री रतनमाला श्रीजी म.सा. की प्रेरणा से श्री उवसग्गहरं पावं तीर्थ, नगपुरा जिला दर्ग (छ.ग.) हस्ते श्री रावलमलजी जैन "मणि" पू. मुनि श्री मनितप्रभसागरजी म.सा. एवं प. साणी डॉ. श्री नीलांजना श्रीजी / दादाजी स्व. श्री रूपचंदजी-दादीसा रंगुदेवी, पिताश्री रीखपचंदजी, मातुश्री सूर पत्र-पुत्रवधूः श्री मदनलालजी-मथदेवी राजेन्टकमालीकि 000000000000000000000000 | 000000000000000000 6660036bbaboolobal6656 doodoodoodoot Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री अवन्ति पार्श्वनाथाय नमः॥ जि., 24/17 'अवन्ति श्री अवन्ति पार्श्वनाथानीय/जिना श्वेताम्बरमूर्तिपूजकामारवाड़ी समाजास्ट पाश्वनाथ के अंर्तगत श्री अति पार्श्वनाथ तीर्थ प्रतिष्ठा महोत्सव समिति, उज्जैन श्री अवंति पार्श्वनाथ तीर्थ, दानीगेट, उज्जैन (म.प्र.) फोन-2555553,25858 तीर्थ अध्यक्ष प्रतिष्ठा महोत्सव पारसचन्द जैन मंत्री म.प्र. शासन 09425091497 उपाध्यक्ष प्रतिष्ठा महोत्सव पुखराज चोपड़ा उज्जैन 09425195874 संयोजक प्रतिष्ठा महोत्सव संघबी कुशलराज गुलेच्छा बैंगलोर 09844068064 ट्रस्ट मंडल दिनांक : 3010112 - अध्यक्ष हीराचन्द छाजेड़ 9406850603 अनुमोदना - पन्न श्री saerभापती *उपाध्यक्ष निर्मल कुमार सकलेचा 9407130220 + सचिव चन्द्रशेस्थर डागा 9425091340 * कोषाध्यक्ष, ललित कुमार बाफना 9425379310 सादर सबहुमान जय जिनेन्द्र स्वीकार करें। आलवा के अटिा प्राचीन महाचमत्कारी श्री अवविटा पार्श्वनाथ तीर्थ का शास्त्रशुद्ध जिर्णोद्वारपज्य मारूदेव वाच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा से चल रहा है। इस तीर्थ की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा आगामी माघ सुदी 14 टा. 18 फरवरी 2018 सोमवार सम्पन्न होने जा रही है। इस तीर्थ कजिर्णोद्धार/प्रतिष्ठा में आपने MAR. दि............... का लाभ लेकर अनुमोदनीय कार्य किया। है हम आपके इस योगादान की भूरि-भूरि अनुमोदना करटो हैं। आपसे आवाह भरा अनुरोध है कि प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर आप सभी इष्ट मित्रों सहित अवश्यमेवपधारें। रमेशचन्द बांठिया 9981982509 विजयचन्द कोठारी 9425430903 महेन्द्र कुमार गादिया 9425092595 नरेन्द्र कुमार धाकड़ 9827381975 भवदीय हीराचन्द छाजेड़ अध्यक्ष-अ.पा. ट्रस्ट रजत कुमार मेहता 9425052300 प्रधारी. वात 8888888888888888888888| 71 888888888888888888 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री 30 (10,3297103.फक्त 2621207 speed Post क्र. ट्रस्ट 16/2018 दिनांक - 04/10/2018 What shop Dagan 11/12 श्रीमार अध्यक्ष महोदय दृस्टीगण श्री जवन्ति पारवनाथ तीर्थ जैन श्वे. मूर्तिपूरक मारवाड़ी समाज ट्रस्ट अति पाश्र्वनाथ चौक दानीगेट उज्जैन 456006 (म.प्र.) विषय-शिलालेख नामांकन बावत् संदर्भ-आपका पत्र दि. 30/09/2018 सादर उपजिरेन, -अवन्ति पारवनाथ तीर्थ के जीर्णोद्धार अंतर्गत श्री उवसागहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा को श्री कल्याण स्तोत्र मंदिर देहरी का लाभ प्राप हुआ है। आपके पत्रानुसार शिलालेख पर अंकित किए जाने हेतु नाम प्रेषित है। पू.आ.श्रीमद् विजय राजपश सूरीश्वर जी म.सा. के सदुपदेश से / श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ पारसनगर-नगपुरा जि. दुर्ग (छ.ग.) उपरोकानुसार नामांकन कर सूचित कीजिएगा आपके ट्रस्ट मंडल को प्रतिष्ठा महोत्सव की अग्रिम शुभकामना। जिनामार के कार्यों में दूस्ट मंडल की सहभागिता हेतु भरि भूरि अनुमोदना। सादर बात, सेठ समिनाथ शातिना पारख, दुस्व, पारसना /मनेजिंग दृस्टी (गजराज पगारिया) (अध्यक्ष) VI PRODOOOOOOOOOOOOO 6666666666666666660 DOOOOOOOOOOOOOK woooooo5600 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 11 सम्मेतशिखर में कीया एक और विखवाद खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभार तरसहसास्दीवर ardt माप 946 cri y al TERRI SN A e theirtune) सादर l आम And हात पारे - RAMu0M HTEAM ETATE +मेब महत (42Maitruuntan 107 पर आया 105 के मान में दिल M IRMATM से संपलाई तो tairnd549 130 59 टीका नामोcder होना आप trust, total AlA कर मार को मन त ससम्मान त wr 5// मंत्र) arun55 हमें RAu6 34 huhe आलोकित है सरतर शासन... शास्त्रविहित सविहित आराधन 90000000pmpomp9QOX 6666666666666666660 OOOOOOOOOOOOOOD 600000000000000 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दैनिक हिन्दुस्तान बॉर्डर श्री सांवलिया पार्श्वनाथ सम्मेतशिखरजी तीर्थ का अंजनशाला का प्रतिष्ठा व मुमुक्ष पिंकी गोलच्छा का दीक्षा महोत्सव 3 मार्च को आचार्य जिनपीयूषसागर सूरिश्वर महाराज होगें मुख्य प्रतिष्ठाचार्य बाड़मेर, 17 फरवरी। जैन तीर्थ सम्मेत संघ लच्छवाड़, चम्पापुरी, भागलपुर, पावापुरी, शिखरजी में तीर्थ के मलनायक सांवलिया ऋजुबालिका आदि तीर्थो के दर्शन-पूजन करते पार्शवनाथ भगवान के जिर्णोद्धार उपरान्त नूतन हुए 28 फरवरी के शाम को सम्मेतशिखरजी जिनालय में विराजित होने वाले जिनबिम्बों की तीर्थ पहुंचेगा तथा 3 मार्च को आयोजित होने अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर वाले मुख्य प्रतिष्ठा महोत्सव में शिरकत करेगें। तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। श्वेताम्बर मुख्य प्रतिष्ठाचार्य श्री जिनपीयूषसागर जैनों के इस प्रमुख तीर्थ का प्रतिष्ठा महोत्सव 24 सूरिश्वरजी म.सा. आचार्य विनयसागर फरवरी से प्रारम्भ होकर 3 मार्च तक चलेगा। सूरिश्वरजी म.सा. सहित विभिन्न समुदाय के फाल्गुन कृष्णा 12 को रविवार के दिन 3 मार्च आचार्य भगवंतों, श्रमण-श्रमणीवृंद की पावन को सांवलिया पार्शवनाथ भगवान के प्रभावक निश्रा में यह प्रतिष्ठा महोत्सव जीर्णोद्धारकृत नूतन जिनालय का यह प्रतिष्ठा आयोजित होने जा रहा है। बाड़मेर सहित एवं मुमुक्ष पिंकी गोलच्छा की भागवती दीक्षा मालाणी क्षेत्र के जैन श्रावकों में आचार्य महोत्सव होगा। यह प्रतिष्ठा महोत्सव श्री जैन जिनपीयूषसागर सूरिश्वरजी म.सा. की निश्रा श्वेताम्बर सोसायटी सम्मेतशिखर के द्वारा एवं प्रवर्तिनी महोदया चन्द्रप्रभा श्रीजी म.सा. आयोजित किया गया है। आचार्य की विदुषी शिष्या प.पू. विजयप्रभा श्रीजी जिनपीयूषसागर सूरीश्वर महाराज के मार्गदर्शन म.सा. व प.पू. चन्दनबालाश्रीजी म.सा. आदि में इस तीर्थ का जिर्णोद्धार संपन्न हुआ है। ठाणा के पावन सान्निध्य में होने वाले इस प्रज्ञाभारती सांवलिया पार्शवनाथ सम्मेत शिखर अंजनशलाका प्रतिष्ठा व दीक्षा महोत्सव को तीर्थ जिर्णोद्धार प्रेरिका प्रवर्तिनी साध्वी लेकर काफी उत्साह बना हुआ है। चन्द्रप्रभाश्रीजी म.सा. का इस मंदिर के जैन धर्म के अनुयायियों में इस प्रतिष्ठा जिर्णोद्धार प्रेरक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान महोत्सव को एक दुर्लभ अवसर के रूप में रहा है। देखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि सम्मेत प्रतिष्ठा महोत्सव में बाडमेर से जायेगें शिखर महातीर्थ के मुख्य मंदिर की प्रतिष्ठा को सैकड़ों श्रद्धालुगणः जैन धर्म के 24 में से तो वर्तमान युग में किसी भी व्यक्ति ने नहीं बीस-बीस तीर्थकरों की निर्वाण भूमि एवं अनंत देखा है। लेकिन अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव तो सभी आत्माओं की साधना स्थली झारखंड प्रदेशान्तर्गत के समक्ष हो रहा है। सिद्धक्षेत्र सम्मेत शिखरजी तीर्थ में आयोजित होने जा रहे अतः लोगों में काफी उत्साह का माहौल बना हुआ इस ऐतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव में भाग लेने के लिए है। सम्मेत शिखरजी के विभिन्न चोटियों से 20 तीर्थंकरों बाड़मेर शहर से सैकड़ों श्रद्धालुगण 24 फरवरी को रात्रि के साथ अनगिनत मुनि मोक्ष को गये है, इसलिए इस में गुवाहटी एक्सप्रेस ट्रेन के द्वारा प्रस्थान करेगें। ये यात्रा भूमि को अत्यंत पवित्र माना जाता है। 88888888888888888888888| 74 888888888888888888888 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ परिशिष्ट 12 आ. मणिप्रभसूरिजी द्वारा तपागच्छाचार्यों का घोर अपमान आ. मणिप्रभसागरजी द्वारा सामान्य व्यवहार की भी उपेक्षा को क्या कहें ? सामान्य अल्प ज्ञानी शिष्ट पुरूष भी अपने से बडो का आदर करते हैं, अपमान नही करता / पर जब अहंकार का नशा चढा हो तो जीव सुध बुध खो बैठता हैं और विवेक की छलनी छलनी कर देता हैं। आ. हेमचंद्रसागरसूरिजी, जो उनसे भी पर्याय में बड़े हैं उनको पूरे उज्जैन के श्रीसंघ ही नही अपित जैन अजैन के सामने अपमानित किया हैं।अपने से बडे आचार्य को अपने से नीचे बिठाकर श्रावक वर्ग को विनय का उपदेश देना कितना हास्यास्पद हैं। जहाँ श्री दशवैकालिक सूत्र में विनय गुण रक्षा हेतु वडिल साधु के उपकरण, पाट आदि को भी पैर लगने पर उनसे क्षमा माँगने का कहा हैं वहीं अपने से पर्याय वृद्ध को अपने से नीचे बिठाकर आगम का उपदेश देने वाले मणिप्रभसागरजी ने जिनाज्ञा का पालन किया या आगमों की, जिनवचनों की अवहेलना ? ऐसा मान कषाय निंदनीय नही हैं क्या ? DOORAKOOOOOOOL 00000000002O90968 0000000000000000 600000000000000 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00000000000 000000000000000000 000000000000000000000 SYD Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 1 तपागच्छाचार्य आ. राजयशसूरिजी का वर्णन શાસન પ્રભાવક, ગચ્છવાદ થી વિમુક્ત આચાર્ય પ્રવર વિજય મણી સાગર સુરિજી ની યોગ્ય .રાજયશ સૂરિ ની અનુવંદના. આપણી વાત થયા મુજબ મૂળનાયક ની સાથે ત્રીગડા ની દ્રષ્ટિ મળતી ન હતી. માટે બે પ્રતિમાજી નું ઉત્થાપન કરવું પડ્યું. જો કે પ્રાચીન સ્થાનમાં આવો દોષ કાઢવો ઉચિત નથી, મને શ્રી શ્રીપાલ ભાઈ આણંદજી કલ્યાણજી પેઢી ની ટ્રસ્ટી એ જણાવ્યું છે કે આ બે પ્રતિમાના ઉત્થાપન કરવા ની નથી એવી વાત ટ્રસ્ટીઓ જોડે થયેલી છે. બીજું પ્રાચીન મંદિર માં હીરસુરીશ્વરજી મ.સા. ની પ્રતિષ્ઠા થયેલી હતી તે જ સ્થાને તેઓની પ્રતિમા રાખવામાં આવે તેવો સમસ્ત જૈન સંઘ નો અને મારો પોતાનો પણ ભાવ છે. અમે ઉવસગ્ગહર ની પ્રતિષ્ઠા વખતે ખડેતરગચ્છના શ્રાવકો ના આગ્રહ થી મહોદયસાગરજી ને ઘણા સન્માનપૂર્વક પ્રતિષ્ઠા માં ઉપસ્થિત રહેવા દીધા હતા,અમને સમાચાર છે કે પ્રાચીન મંદિરમાં હીરસુરીશ્વરજી મ. સી. સિવાય કોઈ પણ ગુરુભગવંત ની મૂર્તિ બિરાજમાન નહોતી તો હવે કોઈ પણ ગચ્છ ના કોઈ પણ ગુરુ મહારાજ ની પ્રતિમા બિરાજમાન ન થાય તેની તકેદારી રાખજો. આપ વિચારક છો. લાંબા ગાળા નો વિચાર કરજો. ટૂંકો વિચાર કરતા લાંબા ગાળા ના વિચાર ની મહા હોય છે. જરૂર મને સંતોષ આપજો. Pana NUBIR on 2 3 47 9999999999999998 poppopose OOOOOOOOOOOK Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार विशेष सभी बातों पर चर्चा के बाद हम जान सकते है की आज विश्व चांद पर पहुंच गया है लेकीन कुछ स्वगच्छाग्रही जैनाचार्य अभी भी परगच्छद्वेष को जमीन पर लेकर बैठे है। वर्तमान समय एवं युवा वर्ग को नजर के सामने रखकर यह निर्णय लीया जाए की कीसी भी तीर्थ का जीर्णोद्धार हो या अन्य कोई मेटर तपागच्छीय प्रवर समिति के आज्ञा व मार्गदर्शन पूर्वक ही कीए जाने चाहिए / भविष्य में कभी संघर्ष ना हो ईस लीए सभी संघो को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए की भगवान महावीर के उत्तराधिकारी वर्तमान तपागच्छाचार्य है, उनके ही सान्निध्य में प्राचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार होने चाहिए / ___गच्छवाद से मुक्त होकर हम सब जिनशासन का जयकार करें इसी 8 भावना के साथ... कीसी को बुरा लगा हो तो क्षमायाचना. - समस्त श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक तपागच्छ युवक परिषद