________________ गादी में लिखा हुआ लेख हैं / उसकी प्रतिलिपि "मालवांचल के लेख संग्रह " (संग्रहकर्ता एवं लेखक स्व.श्री नन्दलालजी लोढा, प्रकाशक-श्री कावेरी शोध संस्थान, उज्जैन) में पृ. 41 लेख नं.७३ में इस प्रकार दी है। सं 1788 शाके 1653 प्रवर्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे 13 तिथौ सोमवासरे श्री... अवन्तिय पार्श्वनाथस्य प्रतिष्ठिता... बिंबं.. स्य तपापक्षे श्री 108 विमलदेवसूरि राज्ये पं.श्री उत्तमविमलगणि उपदेशात् श्री अवन्ती वास्तव्य..... इसके सिवाय भी तपागच्छीय आचार्यों के लेखवाली अनेक जिनप्रतिमाएं श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में बिराजमान हैं, जिससे स्पष्ट जाहिर हो जाता है कि भूतकाल में भी इस तीर्थ के जीर्णोद्धार निर्माण कार्य, प्रतिष्ठा, देख रेख वगैरह तपागच्छीय साधु भगवंतों के उपदेश से हुए थे। पिछले 100 साल की बात देखे तो “वि.सं.१९६४ में यहाँ धर्मशाला का निर्माण तथा वि.सं. 1976 में आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी के बिम्ब की प्रतिष्ठा तपागच्छीय मुनिराज श्री हंसविजयजी की प्रेरणा से श्रेष्ठी घमडसी जुहारमल द्वारा की गई / फाल्गुन वदी-७ वि. सं. 1995 के दिन तपागच्छीय आचार्यश्री लक्ष्मणसूरिजी की निश्रा में श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन श्वे.मू.पू. मारवाडी समाज कमेटी का निर्माण हुआ / पश्चात् सन् 1976-77 को ट्रस्ट बनाया गया / घमडसी जुहारमल फर्म, जो लगभग शताधिक वर्षों से उक्त तीर्थ का देख-रेख कर रही थी, उसने दिनांक 31 अगस्त 1980 के दिन तीर्थ का संचालन श्री अवंति पार्श्वनाथ तीर्थ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मारवाडी समाज ट्रस्ट को सौंप दिया / " ऐसा होते हए भी जब सन् 1995 में मणिप्रभसागरजी की प्रेरणा से जीर्णोद्धार कराने का निर्णय हुआ तब उन्हों ने "मूलनायक प्रभु सिद्धसेनदिवाकर सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हुए हैं, अतः उत्थापन किये बिना जीर्णोद्धार होना चाहिए।" यह बात रखी थी, ऐसा आमंत्रण पत्रिका में लिखा है। कहा जाता है कि मध्यकाल में पुनः श्रीसंघ द्वारा अवन्ति पार्श्वनाथ जिनालय का समूल जीर्णोद्धार कर नूतन शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण करवाया गया / जहाँ प्रतिष्ठा के पहले रात्रि में शैवों द्वारा शिवलिंग स्थापित कर उसे जबरेश्वर महादेव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया, जिन्हें राजा का पीठ