________________ श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास अवन्ति के नाथ-श्री अवन्तिका पार्श्वनाथ तीर्थ त्रिखण्डीय-त्रिशिखरीय 44 देहरियों से युक्त 81 फीट उंचा जिनालय श्यामवर्ण के प्राचीन श्री अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु के दांयी और श्री आदिनाथ प्रभु की श्वेत वर्ण की वि.सं.१५४८ की प्रतिमाजी विराजित है, तथा मूलनायक प्रभु के बांयी और श्री गौडी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमाजी विराजित है, जो आदिनाथ प्रभु के समकालीन है / उक्त प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा तथा जीर्णोद्धार वि.सं. 1684 के लगभग जगद्गुरु तपागच्छाधिराज, सम्राट अकबर प्रतिबोधक आचार्य श्री विजय हीरसूरिजी के पट्टधर श्री विजयसेनसूरिजी के आदेश अनुसार उनके शिष्य द्वारा सम्पन्न हुआ है / वि.सं. 1692 में जगद्गुरु श्री विजयहीरसूरिजी की पादुका की प्रतिष्ठा तथा छत्री का निर्माण शास्त्रीनगर-अलखधाम में हुआ था, जो वर्तमान में अपूजित है / कहा जाता है कि मध्यकाल में पुनः श्रीसंघ द्वारा अवन्ति पार्श्वनाथ जिनालय का समूल जीर्णोद्धार कर नूतन शिखरबद्ध जिनालय का निर्माण करवाया गया / जहां प्रतिष्ठा के पहले रात्रि में शैवों द्वार शिवलिंग स्थापित कर उसे जबरेश्वर / महादेव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया. जिन्हें राजा का पीठ बल प्राप्त था / तब से प्रभु की प्रतिमा भोयरे के रुप मे बने घूमटबंध जिनालय मे प्रतिष्ठित थी, जिनालय में वि.सं. 1384 की धातु की चौबीसी विराजित है। वि. सं. 1509 में तपागच्छ के आ.श्री जयचंद्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित पंचतीर्थी तथा वि.सं. 1518 में तपागच्छेश आचार्य श्री. रत्नसिंहसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित पंचतीर्थी प्रतिमा जिनालय में विराजित है। विक्रम की 17-18 वीं सदी में मराठाकाल में यहां जीर्णोद्धार का उल्लेख 3 मिलता है / वि. सं. 1964 में यहां धर्मशाला का निर्माण तथा वि.सं. 1976 में आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी के बिम्ब की प्रतिष्ठा तपागच्छीय मुनिराजश्री हंसविजयजी की प्रेरणा से श्रेष्ठी घमडसी जुहारमल द्वारा की गई। फाल्गुन वदी-७ वि.सं. 1995 में तपागच्छीय आचार्यश्री लक्ष्मणसूरिजी की निश्रा में श्री अवन्ति पार्श्वनाथ जैन श्वे.मू.पू. मारवाडी समाज कमेटी का निर्माण