________________ जिनमणिप्रभसूरिजी जो इतिहास बता रहे है, वह कुछ और है, और हकीकत / / कुछ और ही है। देखिये इस स्तवन की प्रथम कडी जो कि आमंत्रण पत्रिका में नहीं छपी है, परंतु हस्तप्रत में से पढी जा सकती है, वह इस प्रकार है : आज सफल अवतार फली सहु आसजी, परतिख देव जुहार्या जिणवर पासजी / घर धन धुनो जुनो तीरथ ए धरा, परसिध सुणीए एहनी एम परंपरा // 1 // यानि स्तवनकार जिनचंद्रसूरिजी स्वयं कह रहे है कि "आज प्रभु के दर्शन करके सभी आशाएं पूरी हुई है। इस उल्लेख से ही पता चलता है कि जिनचंद्रसूरिजी के आगमन पूर्व ही उज्जैन में श्री अवंति पार्श्वनाथ प्रभु प्रगट हो चुके थे एवं बिराजमान थे।" ___ "परसिध सुणीए एहनी एम परंपरा कहकर इस तीर्थ के इतिहास के विषय में जो परंपरा प्रसिद्ध थी उसका वर्णन किया है। जिसमें - 1. अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा का उद्भव, एवं शिवलिंग में परिवर्तन / 2. सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी द्वारा कल्याणमंदिर स्तोत्र की रचना से शिवलिंग में से प्रभु का प्रगटीकरण / 3. यवनों के भय से प्रतिमा का भंडारा जाना (भोयरे में रखना)। 4. वि.सं.१७६१ में पुनः प्रगट होना / ये सभी बातें उन्होंने इतिहास के रूप में बतायी हैं / अतः अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु जिनचंद्रसूरिजी के आगमन के पूर्व ही (निकट के काल में) प्रगट हो चुके थे, ऐसा स्वयं उनके शब्दों से ही सिद्ध हो जाता है। यह तो हुआ प्रथम कडी का फलितार्थ, अब देखियें स्तवन की अंतिम कड़ियों को वे इस प्रकार है : हिव सतरै सै संवत वरसैं इगस, प्रगट थया प्रभु पासजी वंद्या सारी पढे // 7 // उदय सकल सुख लखमी धन जीवित थयौ, भेट्या श्री भगवंत दुख दुरै गयौ / लाख भांति श्री खरतरगच्छ सोभा कही, गणधर जिनचंन्दसूरि जुहार्या गहगही // 8 //