________________ मेवाड आदि विविध क्षेत्रों में अनेक मंदिर आदि स्थानकवासी एवं तेरापंथीयों के कब्जे में है / क्या इन मंदिरों में आपने खरतरगच्छ वालों के लिए दर्शन-पूजन आदि की निषेधाज्ञा फरमा रखी है ? क्या आपने आपकी इस द्वेषांध चेष्टा के माध्यम से खरतरगच्छ सहित समग्र मूर्तिपूजक श्रीसंघ के साथ द्रोह नहीं किया है ? समग्र मूर्तिपूजक श्री संघ के हितों को गंभीर नुकशान नहीं पहोंचाया है? आपने जहाँ से भी पाई है और पोषी है, आपके हृदय में तपागच्छ के प्रति एकतरफा रूप से रही इस द्वेष की महाकालिमा को आप दूर करें / यह श्रमणोचित होगा। हमारी अंतरंग चर्चा के संभावित विषयों के एक अनधिकृत कच्चे प्रारुप में आपकी इन प्रवृत्तियों पर विमर्श की भनक मात्र पर आपकी इतनी तीव्र प्रतिक्रिया ही यह स्पष्ट कर दे रही है कि आपके पत्र के माध्यम से "कौन" “किसे" "क्युं" "डांट" रहा है / सामान्य व्यवहार का एक जरा भी जानकार व्यत्ति हमारे सम्मेलन में हए निर्णयों की अधिकृत घोषणा को देखता फिर उसके उपर से अपने प्रतिभाव देता / क्या आप में इतनी भी परिपक्वता नही आई है? अब यह भी आपकी ही जिम्मेदारी बनती है कि आप श्रीसंघ में लंबे समय तक संक्लेश एवं संघर्ष का बीजारोपण व पोषण हो ऐसी आपके पक्ष द्वारा हो रही सारी प्रवृत्तियां अविलंब बंद करवाएं एवं पुनः सौहार्द का वातावरण खडा करवा कर आपकी सदाशयता का परिचय दें। हम जानते हैं कि अनेक प्रसंगों पर अनेक स्त्रोतों द्वारा स्पष्ट रूप से आप की एवं खरतरगच्छ के एक वर्ग की ओर से चल रही इन अनुचित एवं . विघातक प्रवृत्तियों की बातें आप के ध्यान पर लाई जाती रही है और उनके सामने आप निरुत्तर भी हुए है, फिर भी यदि आपको यह लग रहा है कि खरतरगच्छ की इन प्रवृत्तियों से आप सर्वथा अनजान ही है तो कृपया हमें ज्ञात करावें, हम आपको आपकी ओर से हो रही इन प्रवृत्तियों की सूचनाएं सप्रमाण भिजवाने का प्रारंभ कर सकेंगे। __आपने अपने पत्र में लिखा था कि "खरतरगच्छ के कितने ही तीर्थ तपागच्छ के अधीन है।"