________________ श्रमण संमेलन विषयक जवाब 700 (सं. 2073 में श्री तपागच्छीय श्रमण संमेलन के समय तपागच्छ पर किए गए आक्षेपों का निराकरण) खरतरगच्छाचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी, वंदना-अनुवंदना, सुखशाता-पृच्छा. आपका दिनांक 31 मार्च 2016 का प्रवर समिति के नाम लिखा पत्र यथा समय प्राप्त हो गया था / परंतु हमने ऐसे अपरिपस्वता भरे पत्र का जवाब देना उचित नहीं समझा था और उपेक्षा कर दी थी। आशा थी कि आपको (तपागच्छीय हमारे आचार्य द्वारा ही दिए गये ) आचार्य पद की गरीमा के चलते आपको स्वतः ही आप की इस अपरिपक्वता का ख्याल आ जाएगा एवं आप आपके औचित्य को स्वयं ही समज जाओगे / दुर्भाग्य है कि अभी तक भी आपको सौभाग्य से मिले इस पद की गरीमा का अहसास नहीं हो पाया है। तपागच्छ पर वार करने की स्व-उपार्जित एवं पोषित ऐसी एक तरफी द्वेष वृत्ति से प्रेरित हो कर, मानो जिसकी आप हमेशा फिराक में ही थे ऐसा कोई मौका हाथ आया जानकर आपने सारे शिष्टाचार, औचित्य व गरिमा को ताक पर रखते हुए हमारे नाम लिखे आपके इस पत्र को अधिकृत रूप से सोशियल मीडिया पर उछाल दिया / साथ ही आपके पिठु समाचार पत्रों में / भी अन्य संप्रदायों को उकसाते हुए बडी ही निम्न मनोवृत्तियों का प्रदर्शन करता यह मुद्दा उछलवा दिया / यह करके आपने तो अपरिपक्व, अबुध, नादान, गुमराह, धर्म-द्वेषी व मलीन आशय बाले लोगों को शासन हीलना का खुला मैदान ही जानबुझ के उपलब्ध करवा दिया / जिनशासन के हितों को सर्वथा भूल कर और मात्र अपने गच्छ के आत्यंतिक संकीर्ण फायदे (?) को ही ध्यान में रखते हुए आपने एक नितांत ही अनधिकृत दस्तावेज के आधार पर यह कुचेष्टा की है / और अब तक निरंतर आपके द्वारा पिलाए गए दृष्टि-द्वेष के जहर को पी-पी कर मत्त व अंधे बने लोगों के द्वारा भारत भर में विभिन्न माध्यमों से सुधर्मास्वामीजी की अविच्छन्न पाटपरंपरा व सामाचारी को धरानेवाले तपागच्छ एवं उसकी प्रवर . समिति पर अनर्गल व घटीया इल्जामों की परंपरा जारी की जारी रखी थी /