________________ तुरंत जवाब देंगे... अरे ! आप तो खरतरगच्छ के हो... जैसे इन लोगो पर खरतरगच्छ की महोर लगी हो, वैसे बात तो यह है कि अगर वे खरतरगच्छ के थे तो इतने साल खरतरगच्छ के साधु-साध्वीजी ने उन्हे क्यों नहीं सम्भाला.. दूसरा इस बात का कोई भी एतिहासिक तथ्य या उल्लेख दिखा देवे की फलाणे-फलाणे गोत्र को खरतरगच्छाचार्यो ने जैन बनाया था / इस प्रकार गोत्र के नाम से किसी भी व्यक्ति को अपने गच्छ का बनाना एक धूर्तता ही है... और कुछ नही / कइ बार तो विचार आता है की साधुसाध्वीजी अपनी साधना को छोडकर वहीवंचा का "कार्य" करने लग गए है... भगवान सन्मति दे। इस विषय में सत्य जानने वाले जिज्ञासु जन पू. ज्ञानसुंदरजी द्वारा लिखित जैन जाति महोदय इत्यादी पुस्तको का अवलोकन करें / चमत्कारों का तथ्य : अब जब गोत्रो पर बात नहीं जमी तो एक और रास्ता निकाला गया... अलग अलग चमत्कारो को एक कल्पना के अनुसार बताया गया... स्थानस्थान पर चित्रपट लगवाए गए और लोगो को भ्रमित करने का नया तरीका ढुंढ निकाला गया.. इतना ही नहीं इकतीसा के रुप में एक नया भजन बनाया गया जो हनुमान चालीसा का खरतर रूपांतर मात्र है। जैसे...लक्ष्मी लीला करती आवें.... पुत्र-पौत्र बहुं संपत्ती पावे... हो प्रसन्न दीने वरदाना... इत्यादि... यह बाते हनुमान चालीसा के बराबर है... कोई भी सम्यकत्वी जैनाचार्य लोगो को पुत्र-पौत्र पैदा करने में सहायता करेंगे क्या ? प्रसन्न होकर वरदान और अप्रसन्नत हो तो श्राप देंगे? ये कहाँ का न्याय है ? ___ आगे लिखते है पांच पीर साधे बलकारी... पंजाब में पांच पीर की 3 साधना की और उनको वश किया अतः उन पांच पीरों को खरतरगच्छ के अधिष्ठायक मानने में कोई दिक्कत नहीं होगी..शायद प्राचीन दादाबाडी...अजमेर-बीलाडा व देराउर पर म्लेच्छो का कब्जा इसका ही परिणाम है व पीछले कुछ सालो में सभी दादाबाडी के आसपास बसी मुस्लिम बस्ती इसका नतीजा है।