________________ झवेरी, भामाशाह इत्यादि श्रावक वर्ग ने भी शासन रक्षा के कई कार्य किये : है... अगर सिर्फ नाम लिखे तो एक अलग ग्रंथ का निर्माण हो जाता है। इसी श्रेणि में खरतरगच्छ के श्रावको द्वारा निर्मित मंदिर वगैरह जब खरतरगच्छ के यति व साधु सम्हाल न पाए तब जैन शासन का ही अंग मानते हुए तपागच्छ ने इन्हें प्राण से भी ज्यादा संभाला है / वो समय था जब खरतरगच्छ का प्रभाव बहुत कम हो गया था साधु की संख्या ना के बराबर बची थी और खरतरगच्छ के श्रावको द्वारा बनाए गए मन्दिरो पर विधर्मीओ का कब्जा हो रहा था या उक्त मन्दिरो को मस्जिद, हिन्दु मन्दिरादि में परिवर्तित किया जा रहा था... कई स्थान तो एसे है जहाँ खरतरगच्छ के श्रावक भी मन्दिर मार्ग को छोडकर स्थानकवासी या तेरापंथी बन गए थे...जैसे स्थली प्रदेश.. अब इस समय में मन्दिर-उपाश्रय व श्रावको को सम्भालने का कार्य तपागच्छ ने किया तो क्या बुरा किया ? आखिर रक्षा ही तो की है और तपागच्छ की शुद्ध नीति के अनुसार कहीं भी कोई भी शिलालेख में प्रक्षेप नहीं किया... ना ही कहीं दूसरों की तरह अपने आचार्यो के मूर्ति-चरण बिठाए है। इसी कारण महामहोपाध्याय यशोविजयजी कहते है ..... गोत्र एवं गच्छ : भगवान महावीर का श्रावक संघ समयांतर पर विविध गोत्रो में बटा... उपकेशगच्छीय आ.रत्नप्रभसूरिजी महाराजा ने ओसवालो को जिनधर्मी बनाया तो आ. स्वयंप्रभसूरिजी ने श्रीमालो को, यह बात इसा के पूर्व की है... इतिहास वेत्ता परमविद्वान पं.प्र. कल्याण विजयजी लिखते है की विक्रम की 12 वीं शताब्दी के बाद नए जैन बनाना एक दंतकथा मात्र है / क्योंकि एक तरफ मुगलो का आक्रमण था तो दूसरी तरफ शंकराचार्यो का यह वो समय था जब सेंकडो जैनो का धर्मांतर करवाया गया और दिन ब दिन जैनो की संख्या कम होती गइ / अब इस समय में कोई नए जैन बनाने की बात करता है तो वह गप्प के अलावा कुछ भी नहीं है। हमने देखा है कि... कोई भी श्रावक आ जाए.. खरतरगच्छ के साधुसाध्वीजी पूछते है कि कौन से गोत्र के ? ___ लोग कहेंगे.. जिन्दाणी-गोलेच्छा-ढढ्ढा इत्यादि / 888888888888 2 1888888888888888888 OOOOOOOOOOOOOOOOOOO cooooooooooooooooooo 200OOOOOOOOOOK OOOOOOOOOOO