________________ तपागच्छ की इस शासन निष्ठा की सराहना-अनुमोदना करना तो दूर, तपागच्छ पर सरेआम ऐसे निम्न कक्षा के आरोप लगा कर आपने अपनी किस मानसिकता का परिचय दिया है ? कोई भी कृतज्ञता गुण-संपन्न ऐसी हरकत करने की सोच भी सकता है क्या? गच्छ-कदाग्रह एवं लघुताग्रंथी से जन्मे तेजोद्वेष की मानसिकता क्या यह इस से प्रकट नहीं हो रही है ? शासन समन्वय और पारस्परिक प्रेम पर कुठाराघात कौन कर रहा है वह आप के इस पत्र की शैली से ही स्पष्ट नहीं हो रहा ? कृपया अतीव शांत चित्त से आत्म विलोकन करें / गौतमस्वामी रास के विषय में हम इतना ही निवेदन करना चाहेंगे कि यह अब जरूरी लगता है कि आप प्राचीन साहित्य के विषय में अपना ज्ञान पर्याप्त मात्रा में समृद्ध करें / देश और काल के व्यापक फलक में प्राचीन साहित्य के क्षेत्र में अनेकानेक वजहों से बहोत कुछ घटित हुआ है / यहाँ आपको यह बता दें कि गौतमस्वामी रास के कर्ता के रुप में विनयप्रभ के अलावा मात्र उदयवंत ही नहीं परंतु विजयभद्रसूरि आदि और भी अनेक विद्वानों के नाम सेंकडो वर्ष प्राचीन हस्तलिखित प्रतों में मिल रहे है। आप जिन विनयप्रभ की बात कर रहे हो वे खरतरगच्छ के ही थे उसका विश्वसनीय पुख्ता प्रमाण भी साथ में पेश करते तो अच्छा रहता / और श्री विनयप्रभ खरतरगच्छ के सिवाय के अन्य भी तो हो सकते है। एक ही काल में एक ही नाम के साधु विभिन्न गच्छों में हुए होने के अनेक प्रमाण मिलते है / कृति में उन्होनें कहा अपने गच्छ या गुरु परंपरा का कहीं उल्लेख किया है ? बाह्य प्रमाणों को प्रमाणभूत मानने से पहले उनकी विश्वसनीयता परखनी कई बार बडी जरुरी हो जाती है। कर्ता के नामों में फेरबदल की तरह अनेक ऐतिहासिक फर्जी प्रमाणों को खडे करने के प्रयासों में एक खास गच्छ के लोगों की सदियों से माहिरात रही है / वैसे आप यह बता पाएंगे कि खरतरगच्छ के अनुसार त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र के कर्ता कौन थे ? पूर्णतल्लगच्छीय कलिकालसर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी या फिर खरतरगच्छ के कोई आचार्य ? क्या जिनवल्लभ और जिनदत्तसूरि ये दोनों एक ही विद्वान के नाम है ? हम आप से