________________ आपने अपने शासन काल में बहुत सी दिक्षाएँ दी और उनके स्थानों में विचरते हुए सं.१७६२ में सूरत बंदर पधारे / आषाढ सुदि 11 को स्वयं सकल संघ समक्ष अपने पट्ट पर श्री जिनसुखसूरिजी को स्थापित किया / पारख सामीदास, सूरदास ने पद महोत्सव बडे धूमधाम से किया / सं.१७६३ में आपश्री सूरत में स्वर्गवासी हुए। खरतरगच्छ के इतिहासकार महो. विनयसागरजी के दिये हए इतिहास में भी शत्रुजय का संघ निकालने की बात तथा मंडोवर में गृहमंदिर प्रतिष्ठा करने की ही बातें लिखी हैं परंतु अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु के प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठा जैसी महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख नहीं किया हैं / यही बताता है - कि उनके जीवन में ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं थी अन्यथा उसका उल्लेख किया होता ही। अतः खरतरगच्छ के इतिहास ग्रन्थ से भी सिद्ध होता है कि अवन्ति पार्श्वनाथ प्रभु का प्रगटीकरण एवं पुनः प्रतिष्ठा श्री जिनचंद्रसूरिजी द्वारा नहीं हुई। हैं। In Short श्री अवन्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में पूर्वकालीन किसी भी खरतराचार्यों का शिलालेख या लेख मौजूद नहीं हैं। अगर पूर्व में जिनचन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठा करवायी होती तो जरुर कुछ ऐतिहासिक लेख या गुरुमूर्ति-गुरुपादुकाएँ प्राप्त होती / तथा एक उल्लेखनीय बात यह है कि 800 वर्ष प्राचीन शतपदीग्रंथ के द्वारा सिद्ध खरतरगच्छ की यह प्राचीन परंपरा रही है कि जगह-जगह पर दादागुरु आदि की पादुका वगैरह स्थापित करनी और इसी परंपरा को वर्तमान गणाधिपति श्री भी निभा रहे है। जबकि यहाँ तो ऐसा कुछ भी पुख्ता प्रमाण प्राप्त नहीं होता है। अतः खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरिजी द्वारा अवन्ति की प्रतिष्ठा की जाने की बात गप्प - गोला मात्र है। In Short उल्टा चोर चोरी करके सीनाजोरी कर रहा हैं। सत्य किसके लिए कटु होता है ? * उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ जिनमंदिर संबंधित कुछ सत्य एवं तथ्य बातें : POORRO998888888 6666666666666666660 DOOOOOOOC DOOOO 0000000000000