________________ अपने गच्छ की महिमा बढाना, बताना बुरी बात नहीं है, परंतु इतिहास को छुपाना, उसे गलत ढंग से पेश करना, अन्य गच्छ की गौख गाथा को छुपाना यह सब न्यायप्रिय, तटस्थ, आत्मार्थी श्रमण परंपरा को शोभा नहीं देता है। जान-बुझकर गलत भ्रमणा फैलाने से भवभ्रमण भी बढता है। अतः सभी से अनुरोध है कि सही इतिहास को जानकर, भ्रमणा से मुक्त बने एवं अन्यों को भी भ्रमणा से मुक्त करें। ता.क. - खरतरगच्छ का विस्तृत इतिहास जिन्होंने लिखा है, ऐसे इतिहासज्ञ महो. विनयसागरजी ने "खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास" पुस्तक में अब तक के हुए आचार्यों के चरित्र, खरतरगच्छ की पट्टावली आदि ऐतिहासिक सामग्रीओं के आधार से लिखे हैं। उसमें जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर आ.श्री जिनचन्द्रसूरिजी का चरित्र इस प्रकार दिया है : आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि उनके बाद आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि उनके पट्ट पर आसीन हुए / आपका जन्म बीकानेर निवासी चोपडा गोत्रीय साह सहसकरण (मल) की पत्नी सुपियारदे की कोख से सं. 1693 में हुआ था / आपका जन्म नाम हेमराज था / स. 1707 (5 ?) मिती मिगसर सुदि 12 को जैसलमेर में दीक्षा हुई और दीक्षा नाम हर्षलाभ रखा गया / उस समय आप बारह वर्ष के थे / सं. 1711 में श्री जिनरत्नसूरिजी का आगरे में स्वर्गवास हुआ, तब आप राजनगर में थे। उनकी आज्ञानुसार भाद्रपद कुष्णा सप्तमी को राजनगर में नाहटा गोत्रीय साह जयमल्ल, तेजसी की माता कस्तूर बाई कृत महोत्सव द्वारा आपकी पदस्थापना हुई / आप त्यागी, वैराग्यवान् और संयम मार्ग में दृढ थे / गच्छवासी यतिजनों में प्रविष्ट होती शिथिलता को दुर करने के लिए आपने सं.१७१७ मिती आसोज सुदि 10 को बीकानेर में व्यवस्था पत्र जाहिर किया, जिससे शैथिल्य का परिहार हुआ / सं. 1735 आषाढ शुक्ल 8 को खंभात में आपने बीस स्थानक तप करना प्रारम्भ किया / आपने अनेक देशों में विहार करते हुए सिन्ध में जाकर पंच नदी की साधना की / जोधपुर निवासी शाह मनोहरदास द्वारा कारित संघ के साथ श्री शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की और मंडोवर नगर में संघपति मनोहरदास द्वारा कारित चैत्य के श्रृंगारतुल्य श्री / ऋषभदेवादि चौबीस तीर्थंकरोंकी प्रतिष्ठा की। 3888888888888888888 | 23 ] 888888888888888888