________________ 16. हेद्राबाद मंदिर की प्रतिष्ठा के समय मंदिर के बाहर जो पगले थे वो आचार्य कलापूर्णसूरि महाराज की हाजरी में झगडा करके मंदिर के अंदर बैठा दिए। 17. हैद्राबाद में तपागच्छ वालों को वहाँ के नवाब ने विजयहीरसूरि की दादावाडी के लिए जगह दी थी / क्या वह दादावाडी कि जगह आज तपागच्छ के पास है ? 18. तपागच्छ वालों की उपज के तो भरपूर पैसे खरतरगच्छीय मंदिरों (यानी कि दादावाडीयों / गुरुमंदिरों) आदि हेतु जाते है / परंतु उनके खुद के पैसे प्रायः प्रायः खरतरगच्छ की दादावाडीयों आदि हेतु ही लगते है / अन्य गच्छ या शासन के कार्यों में भाग्य से ही लगते होंगे। 19. गुजरात मांगरोल के मंदिर में लेख विहीन पगलीयों को दादा साहब के पगलिए बताना। 20. ब्यावर संघ में पूर्व काल से चली आती श्वेतांबर जैन समाज की यानि मूर्ति पूजक-स्थानकवासी-तेरापंथी तीनों की शामिल दादावाडी की विशाल जगह को खरतरगच्छ ने हडपा हैं / 21. नंदुरबार में खरतरगच्छ का नामोनिशान नहीं था, सालों से सभी तपागच्छ की क्रियाएं करते थे, संघ में एकता थी-सौहार्द भरा वातावरण था / कुछ खरतरगच्छीय साध्वियों के चातुर्मास, उसके बाद मणिप्रभसागरजी के चातुर्मास के बाद संघ में वैमनस्य हुआ और दो विभाग पडने की नौबत पर थे। 22. जोधपुर शहर के अनेक जैन मंदिर शुरु से जिनका अधिकार तपागच्छ का था, अभी वे खरतरगच्छ ने हस्तगत किए हैं। 23. दुठारिया गांव में कोई खरतरगच्छ को जानते भी नहीं थे / / तपागच्छ के आचार्य न मिलने से गांव वालोंने मणिप्रभसागरजी को प्रतिष्ठा हेतु - बुलाया था। उन्होंने पूरे गांव को गोत्र का बहाना निकाल कर तपागच्छ में से खरतरगच्छ में परिवर्तित कराया। 24. अवन्ति पार्श्वनाथ में एक भी प्रतिमा खरतरगच्छ की न होते हुए भी खरतर द्वारा कब्जा किया गया / 25. बीकानेर में आ. हीरसूरिजी की प्राचीन प्रतिमाजी पर खरतरगच्छ के आचार्य द्वारा लेख मिटाया गया है।