________________ अर्थात् जहां पर दादावाडी या पगलिये हो वे सब तीर्थ खरतरगच्छ के ही थे / ऐसे भ्रम में रहने की जरुरत नही है। ओसियांजी, बलसाणाजी, अवन्तिजी(उज्जैन) आदि कई तीर्थों में दादाबाडी के नाम पर अतिक्रमण हो रहा है / ये परापूर्व से ही श्वे.मू.पू. तपागच्छ संघ के है। भगवान महावीर की अखंड श्रमण परंपरा का वारसदार तपागच्छ ही है.. इसका मतलब की भगवान महावीर से चली आ रही स्थावर व जंगम मिलकत का वारसदार सिर्फ और सिर्फ तपागच्छ ही है अन्य कोई नहीं / वर्तमान स्थिति और तपागच्छ वर्तमान में खरतरगच्छ द्वारा बारंबार तपागच्छ पर आक्रमण किया जाता रहा है.. जैसे की... . श्री अवन्ति पार्श्वनाथ मन्दिर का विवाद * श्री चैन्नई दादाबाडी का विवाद श्री अजमेर दादाबाडी का विवाद * श्री आग्रा दादाबाडी का विवाद श्री सम्मेतशिखरजी तलहटी मन्दिर प्रतिष्ठा का विवाद * तपागच्छ श्रमण संमेलन पर आक्षेप * पालीताणा दादा की टोंक में पगलीए का विवाद नाकोडा तीर्थ पर कब्जे का विवाद श्री उवसग्गहरं तीर्थ का विवाद अकबर प्रतिबोधक विषयक विवाद बलसाणा तीर्थ का विवाद श्री वाराणसी का विवाद इत्यादि काफी विवाद वर्तमान के खरतरगच्छाचार्यों ने किये है। अगर आपको इनकी भावना जाननी हो तो खरतरगच्छाधिपति आ.मणिप्रभसूरिजी द्वारा लिखीत "विहार डायरी" पुस्तक को पढ लेवे... सब पता लग जाएगा। गलत आक्षेपो एवं स्वच्छंदता का कोई जवाब नहीं होता... तपागच्छ .