Book Title: Chaitya Purush Jag Jaye
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Sarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य पुरुष जग जाए आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education Inter Private & Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य पुरुष जग जाए आचार्य महाप्रज्ञ 38538988888 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वोत्तम सर्वोत्तम साहित्य संस्थान अरिहन्त कृपा 4 29, हिरण मगरी, सेक्टर 11 उदयपुर 313001 (राज.) © प्रकाशकाधीन संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण : 2003 ई. मूल्य : पन्द्रह रुपये मात्र मुद्रक : सांखला प्रिण्टर्स, सुगन निवास चन्दनसागर, बीकानेर 334001 Rs. 15.00 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम 10 11 12 13 14 1. ऋषभ वृषभ की संस्कृति ने 2. जिसकी आज जरूरत 3. समता के शाश्वत स्वर की 4. शांति का संदेश 5. चैत्य पुरुष जग जाए 6. सुना है सरिता का आह्वान 7. दरसण पायो रे 8. तेरस आई रे 9. देवते! बतलाओ 10. धर्म की परिभाषा 11. ज्योति का अवतार 12. स्वामी! पंथ दिखाओ जी.. 13. भीखण का दर्शन पाएगा। 14. 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है 15. जीवन का निर्माण 16. आओ गाएं गीत नियति को 17. संघ में मर्यादा 18. देखो मर्यादा की महिमा 19. करें हम आत्मा का सम्मान 20. अनुशासन का आह्वान करें 15 16 17 18 19 20 21 25 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 N ल ल ल 34 35 36 37 38 39 40 21. आओ स्वामीजी! 22. भीखणजी स्वामी! 23. तुम बनो पुजारी 24. साधना का पथ तुम्हारा 25. बदले जीवन का आधार 26. दो वही आकाश 27. तुलसी स्वामी रे! 28. युग दर्शन के व्याख्याता 29. प्रभु को सपना आया जी 30. उजाला, तुलसी का उपकार 31. जय-जय जिन शासन 32. प्रभो ! तुम्हारे पदचिह्नों पर 33. महाप्राण गुरुदेव! 34. स्वामी! कौन-सा सुरीला 35. जगा जन-गण-मन में 36. दरस गुरुराज का रे! 37. मेरी जिज्ञासा है 38. आवरणों के सघन 39. देव दो हस्तावलंबन 40. आएं आएं हम आएं 41. भैक्षव शासन के शृंगार 42. स्वामी! शासनश्री बन तुम आए 43. साध्वी बालूजी 44. समता का सुरतरु छाया 45. पन्नाजी की जीवन-गाथा 46. आने का मेरा लक्ष्य है। 47. गाथा गुण-गौरव जीवन की 48. आत्मा की पोथी पढ़ने का 45 46 56 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) ॐ ऋषभाय नमः ॐ ऋषभ वृषभ की संस्कृति ने ही युग को दिया सहारा अद्भुत तेज तुम्हारा ।। 1. कृषि की विद्या दे बन पाए, मसि की विद्या दे बन पाए, असि विद्या ने आर्थिक जग को भय से सदा उबारा ।। ॐ .... 2. खाने को रोटी है सब कुछ है व्यापार व्यवस्था और सुरक्षा तंत्र प्रबल है, सुखदा सफल अवस्था । चरित बिना सब अर्थहीन, यह तुमने सत्य निहारा ।। ॐ ... धाता और विधाता, जीवन के निर्माता । 3. आत्मा का विज्ञान नहीं, तब कैसे चरित फलेगा धत्तूरे का बीज उप्त वह, आम कहां से देगा ? चेतन का संधान जरूरी, चमका एक सितारा ।। ॐ.... 4. आत्मा के तुम प्रथम प्रवक्ता, चित्र पूर्ण बन पाया, तुम विदेह बन रहे देह में, तप का तेज बढ़ाया। वर्षीतप के आदि पुरुष तुम, तप ने रूप निखारा ।। ॐ ... 5. चंचलता का करें विसर्जन, स्वयं स्वयं को जानें, संयम के निर्मल दर्पण में, अपने को पहचानें, 'महाप्रज्ञ' ऋषभाय नमः ॐ जग में हुआ उजारा। 'महाप्रज्ञ' ऋषभाय नमः ॐ सबको मिला किनारा ।। ॐ ... चैत्य पुरुष जग जाए लय : संयममय जीवन हो संदर्भ : अक्षय तृतीया श्रीडूंगरगढ़, 26 अप्रैल, 2001 5 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 (2) जिसकी आज जरूरत उसने क्यों पहले अवतार लिया ? मंद चांदनी चंदा की क्यों सूरज को उपहार दिया ? जिसकी आज... 1. तुम आये तब इस धरती ने अपना रूप संवारा था, मनुज - एकता की वाणी से उसको मिला सहारा था । मानव अपना भाग्य विधाता पौरुष को आधार दिया । । जिसकी आज.... 2. जटिल समस्या के इस युग को उस युग से कैसे तोलें, हिंसा से बहरी दुनिया में बोलें तो कैसे बोलें। पोत कहां वह जिससे तुमने इस सागर को पार किया ? जिसकी आज.... 3. करुणा का जल सूख रहा है, दुर्लभ पीने का पानी, बना रहा बाजार आज के ज्ञानी को भी अज्ञानी । भोगवाद के महारोग का प्रभु कैसे उपचार किया ? जिसकी आज... 1 4. उतरो, उतरो हे करुणाकर ! हृदयांगण में तुम उतरो, अभय-मंत्र के उद्गाता अणु-युग के भय को दूर करो मैत्री की निर्मल धारा ने शांति-शोध को द्वार दिया । । जिसकी आज... 5. ऋद्धि-सिद्धि का वर दो, वर दो, वर्धमान का पद पाएं, सहनशील बन विक्रमशाली महावीर हम बन जाएं। अनेकांत ने निराकार को पल भर में आकार दिया । । जिसकी आज... लय : बाजरे री रोटी पोई संदर्भ : महावीर की 2600वीं जयंती गंगाशहर, 7 अप्रैल, 2001 चैत्य पुरुष जग जाए Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) समता के शाश्वत स्वर की अभिनव झंकार हो। वीणा के हर कंपन में नूतन संसार हो। वह अनेकान्त की शैली मेरा आचार हो, वह जैनी जीवनशैली मेरा व्यवहार हो। 1. तुमने निहारा जग को, भीतर की आंख से, वह आंख अनुत्तरयोगी, मेरा आधार हो।। समता के शाश्वत स्वर की... 2. मैं भी निहारूं निज को, अपनी ही आंख से, ___ उस अमिट ज्योति की लय में, चिन्मय का तार हो।। समता के शाश्वत स्वर की... 3. तुम आत्मविद् आत्मा से, जीवन निष्णात हो, ___ वह वर्धमान की आस्था मेरा संस्कार हो।। समता के शाश्वत स्वर की... 4. तुम वीतराग पद की अध्यात्म गाथा हो, यह 'महाप्रज्ञ' की प्रज्ञा, रक्षा प्राकार हो।। समता के शाश्वत स्वर की... लय : प्रभु पार्श्वदेव चरणों में... संदर्भ : महावीर जयंती गंगाशहर, 7 अप्रैल, 2001 चैत्य पुरुष जग जाए 37 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) शांति का संदेश, देखने का कोण बदलें । सोचने का कोण बदलें, शांत हो आवेश । हिंसा का कारण है रोटी, और गरीबी उसकी चोटी, पर भूखा हिंसा करता जब शांत नहीं आवेश ।। 1 ।। शांति का संदेश... जटिल परिस्थिति जब-जब आती, तब-तब हिंसा भी बढ़ जाती, स्थिति कैसे बदलेगी जब तक, आवेश ।। 2 ।। शांत नहीं शांति का संदेश... कभी क्रोध से कभी लोभ से, कभी घृणा से कभी क्षोभ से, आवेशित नर हिंसक बनता शांत नहीं हिंसा से दीक्षित मानव है, शस्त्र प्रशिक्षण का तांडव है, कैसे हो मस्तिष्क धुलाई शांत नहीं नहीं समस्या को सुलझाएं, सिर्फ अहिंसा के प्रासंगिकता कैसे होगी शांत नहीं आवेश || 3 || शांति का संदेश.... नहीं प्रशिक्षण और न शिक्षण, है कोरा उपदेश कैसे हो जनमान्य अहिंसा शांत नहीं आवेश ।। 4 ।। शांति का संदेश... विचक्षण, आवेश ||5|| शांति का संदेश.... महावीर का रूप अहिंसा, दिव्य शांति का स्तूप अहिंसा, महाप्रज्ञ जन-जन सुन पाए शाश्वत का गुण गाएं, आवेश || 6 || शांति का संदेश... निर्देश ।। 7 ।। शांति का संदेश... लय : शांति का संदेश संदर्भ : महावीर जयंती, गुडामालानी वि.सं. 2059 चैत्र शुक्ला 13, चैत्य पुरुष जग जाए Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) चैत्य पुरुष जग जाए। देव! तुम्हारा पुण्य नाम, मेरे मन में रम जाए ।। 1. ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ उद्गाता, अर्ह अहँ अर्ह अर्ह अर्ह अहँ त्राता। ॐ ह्रीं श्रीं जय, ॐ ह्रीं श्रीं जय विजय ध्वजा लहराए।। 2. ॐ जय भिक्षु, भिक्षु जय ॐ ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं, विघ्न शमन ॐ, व्याधि शमन ॐ, क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं। नाम मंत्र तव व्रण संरोहण सतत अमृत बरसाए ।। 3. मिटे विषमता मन की, तन की, अनुभव की, चिन्तन की, पल-पल पग-पग मिले सफलता तन्मयता चेतना की। नाम मंत्र तव भयहर विषहर साम्य सिंधु गहराए ।। 4. 'आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है', तुमने मंत्र पढ़ाया, आत्मा अचल अरुज शिव शाश्वत, नश्वर है यह काया। आत्मा आत्मा के द्वारा ही, आत्मा में लय पाए।। 5. तुम निरुपद्रव हम निरुपद्रव, तुम हम सब हैं आत्मा , तव जागृत आत्मा से हम सब बन जाएं परमात्मा। ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं हूं ह्रः, अन्तर्मल धुल जाए ।। लय : संयममय जीवन हो... संदर्भ : गंगाशहर में संसारपक्षीय माता साध्वी बालूजी के अनुरोध पर आचार्य भिक्षु की स्मृति में रचित गीत आषाढ, वि.सं. 2028 चैत्य पुरुष जग जाए 9 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) सुना है सरिता का आह्वान। एक सलिल तट दो हैं, पाया जीवन का सम्मान। देह युगल है, इक है आत्मा, परमात्मा उपमान।। 1. जिज्ञासा है, क्या कहती थी, कल-कल जल की धारा, क्या कहता था नीरव बन कर, पावन सरित किनारा। लहर-लहर पर क्या वह अंकित, वत्सलता का गान।। 2. ज्ञान भिक्षु-सा, ध्यान भिक्षु-सा, भीखण जैसा तप हो, हर मानव की जीभ-जीभ पर, भिक्षु-भिक्षु का जप हो। भारिमाल से शिष्य विनयनत, गण में हो अम्लान।। 3. तुम उस तट पर, हम इस तट पर, सबका अपना तट है, किन्तु परस्परता का धागा, एक यही बस रट है। माला के मनकों के जैसा, बने एक संस्थान ।। 4. जिन शासन में अनुशासन की, श्वास-श्वास में पूजा, उच्छंखल की पूजा करता, वह मारग है दूजा। कंठ-कंठ में प्यास जगाई, सफल हुआ अभियान ।। 5. सेवा और समर्पण का पथ, तेरापंथ निराला, अंतिम शिक्षा की वाणी से, भरा अमृत का प्याला। पद्मासन में योगीश्वर ने, किया सहज प्रस्थान।। 6. तेरापंथ महान बना है, पा तुलसी-सा नेता, नए-नए आयाम खुले हैं, अद्भुत विश्व विजेता। कौन करेगा लेखा-जोखा, अनगिन हैं अवदान ।। 7. दिल्ली का पावस प्रवास वर, जन-जन की यह भाषा, अब केवल तुलसी गुरु से ही, समाधान की आशा। चरमोत्सव की पावन वेला, बन जाए वरदान ।। भिक्षु दिवस की पावन वेला, 'महाप्रज्ञ' वरदान ।। लय : यही है जीने का विज्ञान संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव दिल्ली, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2051 20 चैत्य पुरुष जग जाए Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) दरसण पायो रे, मन हुलसायो रे, पल-पल मन में गुरुवर! थारो ही आभास रे। थे ही म्हारै धरती प्रभुवर! थे ही हो आकाश।। दरसण पायो रे... 1. मैं आयो, थे स्वर्ग सिधाया, ओ के बण्यो विलास रे। मन री मन में रैगी, देख न पायो अमल उजास।। दरसण पायो रे... 2. पंचम आरे जनम लियो, पण पूर्ण हई है आस रे। मिलग्यो तेरापंथ संतवर! बुझगी अंतर प्यास ।। दरसण पायो रे... 3. अनुशासन रो कवच बणाकर, मर्यादा रो श्वास रे। संघपुरुष नै कर्यो चिरायु, सार्थक बण्यो विकास ।। दरसण पायो रे... 4. साधन शुद्धी री दे शिक्षा, रच्यो अलौकिक रास रे। कियां करै सूवै रो पिंजड़ो, दीपक जियां प्रकाश ।। दरसण पायो रे... 5. अद्भुत व्याख्या दया दान री, करयो हृदय में वास रे। साक्षात्कार हुयो प्रभुवर रो, सिद्ध सहज अभ्यास।। दरसण पायो रे... 6. विघ्न-हरण रो मंत्र मिल्यो, प्रभवर आयो जद पास रे। थारै वचनां में ही म्हारो, है पूरो विश्वास।। दरसण पायो रे... 7. भिक्षु और जय गणि दोनां रो, तुलसी में उच्छ्वास रे। 'महाप्रज्ञ' भैक्षव-सासण रो बधतो जावै व्यास ।। दरसण पायो रे... लय : मनड़ो लाग्यो रे... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2052 चैत्य पुरुष जग जाए Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) तेरस आई रे, मंगल शंख बजाया। नवयुग लाई रे, ज्योतिर्दीप जलाया।। तेरस आई रे... 1. तम से निकला अमल उजाला, वह अंधेरी ओरी। समता की कैंची से काढी, मैं ममता की डोरी। सृष्टि विधाता का नूतन गौरव पाया।। तेरस आई रे... 2. बता रहा है, वह वट का तरु बोधि वृक्ष की गाथा। जिसकी स्मृति से श्रद्धा-सिंचित, झुक जाता है माथा। भिक्षु स्वामी की कैसी अद्भुत माया ।। तेरस आई रे... 3. सिरियारी की तपोभूमि यह, यही अरावली घाटी। सरिता का जल, तरु का पल्लव, पंथ-पंथ की माटी। साक्षी बनकर के देते शीतल छाया।। तेरस आई रे... 4. कच्ची-पक्की हाट बनी है, धृति की अजब कहानी। वही नई है इस दुनिया में, जो है बहुत पुरानी। नए पुराने का वृक्ष न कभी उगाया।। तेरस आई रे... 5. पद्मासन का जयाचार्य ने, अतिशय मूल्य बढ़ाया। 'महाप्रज्ञ' गुरुवर तुलसी ने, उसको शिखर चढ़ाया। भैक्षव शासन की योग सिद्ध है काया।। तेरस आई रे... लय : कुंथु जिनवर रे... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2053 231200चैत्य पुरुष जग जाए Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवते! बतलाओ शासन का आधार, भिक्षुवर! कैसे तुम बन पाए अवतार। रोम-रोम में रम रहे हो, होकर एकाकार।। ...देवते! 1. अनुशासन ही बन रहा है, शासन का आधार । मर्यादा को शिर चढ़ाकर, बन जाता अवतार।। देवते...! 2. तेला भारिमाल का है, एक नया संसार । चौमासी दीपां सती की, एक नया उपहार ।। देवते...! 3. आज नहीं हैं हेम मुनिवर, प्रभु के व्याख्याकार। जयाचार्य भी हैं नहीं, प्रभु भाष्यकार शृंगार।। देवते...! 4. आर्यवर तुलसी मुनीश्वर, भक्त हृदय के हार। जिनकी मेधा ने दिया है, तुमको नव आकार | | देवते...! 5. मैंने समझा है तुम्हें यह, तुलसी का उपकार। ___ मेरे गुरु का मानता हूँ, पल-पल मैं आभार।। देवते...! 6. इन्द्रियवादी चौपई में, तव दर्शन साकार। ___ नव पदार्थ की चौपई में, खुला मुक्ति का द्वार ।। देवते...! 7. अनुकंपा की चौपई का, धर्म और व्यवहार। विश्लेषण बतला रहा है, दया धर्म का सार।। देवते...! 8. कालू करुणा से जुड़ा, है मुनि पृथ्वी का तार। (श्रद्धाभूमि से जुड़ा है भैरूं का परिवार) (श्रद्धाभूमि से जुड़ा है ईसर का परिवार) गंगा का गंगाशहर है, पावस पा गुलजार।। देवते...! 9. जन जन में जागृत रहे नित, अणु-प्रेक्षा संस्कार। 'महाप्रज्ञ' गण में करो प्रभु, भक्ति-शक्ति संचार ।। देवते...! लय : आपणे भागां री...! संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव गंगाशहर, भादव शुक्ला 13, वि.सं. 2054 चैत्य पुरुष जग जाए 1 3 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) धर्म की परिभाषा, केवल अक्षर चार, धर्म की परिभाषा । सत्य स्वयं साकार, धर्म की परिभाषा ।। 1. त्याग धर्म सिद्धान्त निराला, उलझन को सुलझाने वाला । है विवेक ही दिव्य उजाला, मिला नया उपहार । । 2. आक, गाय का दूध अलग है, नाम एक है तत्त्व अलग है । रंग एक है सत्व अलग है, आभारी संसार । । 3. धूप-छांव से सटी हुई है, छांह प्रकृति से शीत रही है। और धूप में ठंड नहीं है, एक नहीं आधार ।। 4. गुरु तुलसी ने शीस चढ़ाया, समाधान तब युग ने पाया । गीत अनूठा सस्वर गाया, जुड़ा सत्य से 5. वर्ण, जाति का भेद न जिसमें, लिंग, रंग का छेद न निर्धन- धनिक विभेद न जिसमें है समता तार । । जिसमें । ही सार । । 14 6. संघ नाम है अनुशासन का महाग्रंथ उत्तम जीवन , 7. कितना है उपकार भिक्षु का, शाश्वत है आलोक भिक्षु का । 'महाप्रज्ञ' आभार भिक्षु का, शहर सुखद सरदार ।। , निग्रह होता तन का मन का । का, शासन का श्रृंगार ।। लय : तोता उड़ जाना... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव वि.सं. 2055 सरदारशहर, भाद्रव शुक्ला 13, चैत्य पुरुष जग जाए Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) ज्योति का अवतार बाबा ज्योति ले आया । ज्योति का आभा- वलय आलोक गहराया । । ज्योति का अवतार... 1. सूत्र का आधार मुझको सूत्र मेरा प्राण, सूत्र की आराधना ही बन रही है त्राण । भक्ति का अवतार बाबा भक्ति ले आया । । ज्योति का अवतार... 2. भूख जीती और पाया नींद पर अधिकार, संतुलित मन आ रहा था जब विरोधी ज्वार । शक्ति का अवतार बाबा शक्ति ले आया । । ज्योति का अवतार... 3. धर्म की व्याख्या विलक्षण दूध दूध न तुल्य, मोक्ष मार्ग अमूल्य । क्रांति ले आया । । ज्योति का अवतार... राग हैं संसार का पथ क्रांति का अवतार बाबा 4. खेतसी की भक्ति का व्रत हेम की अधिशक्ति, वह फतह, थिरपाल मुनि की शान्ति का अवतार बाबा संघ की अनुरक्ति । शान्ति ले आया । । ज्योति का अवतार... हो परस्पर प्रीति, सफलता की नीति । गीत ले आया । । ज्योति का अवतार... 5. सीख अंतिम भिक्षु की है योग्यता ही हो कसौटी, हृदय का संगीत बाबा चैत्य पुरुष जग जाए लय : आत्म साक्षात्कार प्रेक्षाध्यान के द्वारा... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव वि.सं. 2056 दिल्ली, भाद्रव शुक्ला 13, 15 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) स्वामी ! पंथ दिखाओ जी..... तेरापंथ दिखाया, मेरा पंथ दिखाओ जी....।। . . . . . 1. मेरा पंथ बनेगा तब ही तेरापंथ मिलेगा। सूखे सरवर के परिसर में कैसे कमल खिलेगा? 2. भारिमाल मुनिवर से पूछो और हेम से पूछो। प्रवर खेतसीजी से पूछो मुनि वेणो से पूछो।। 3. करो-करो तुम पूर्ण समर्पण मेरा पंथ मिलेगा। भारिमाल की इस वाणी से शतदल कमल खिलेगा।। 4. सहन करो तुम सहन करो तुम मेरा पंथ मिलेगा। संत हेम की इस वाणी से शतदल कमल खिलेगा।। 5. विनय करो तुम विनय करो तुम मेरा पंथ मिलेगा। संत खेतसी की वाणी से शतदल कमल खिलेगा।। 6. हर स्थिति में तुम रहो संतुलित मेरा पंथ मिलेगा। मुनि वेणो की इस वाणी से शतदल कमल खिलेगा।। 7. 'महाप्रज्ञ' इस पथदर्शन से मेरा पंथ मिलेगा। मेरा पथ तेरा बनने पर शतदल कमल खिलेगा।। लय : रूट्योड़ा शिवशंकर... संदर्भ : भिक्षु चरमोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2057 3 चैत्य पुरुष जग.जाए Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) भीखण का दर्शन पाएगा, वह उलझन को सुलझाएगा। निष्ठा को जो पढ़ पाएगा, वह भिक्षु-शिष्य कहलाएगा।। भीखण का दर्शन... 1. निष्ठा जागृति की वह रेखा, दृष्टांत हेम मुनि का देखा। अब्रह्म-गणित का वह लेखा, जो आत्मा तक पहुंचाएगा। भीखण का दर्शन. मुनि खेतसी2. स्वामी ! अब स्वर्ग सिधाओगे, रुचिकर सुख में रम जाओगे। क्या हम सबको विसराओगे, दर्शन को मन ललचाएगा। __ भीखण का दर्शन.. आचार्य भिक्षु3. पुद्गल-सुख बादल छाया है, यह मोह नृपति की माया है। मैंने परमारथ पाया है, मुझको ना स्वर्ग लुभाएगा। भीखण का दर्शन.. 4. तुम भी यह वांछा मत करना, हमको है भवसागर तरना। ___ आगे शाश्वत-सुख का झरना, तम तो नीचे रह जाएगा।। भीखण का दर्शन... 5. खेती अनाज पर निर्भर है, कड़बी अनाज की सहचर है। त्यों पुण्य धर्म का अनुचर है, धार्मिक ही लाभ कमाएगा। भीखण का दर्शन... खेतसी को संबोध 6. मुनिवर को श्रीसंबोध मिला, अंतर-मानस का पुष्प खिला। __ आत्मा ही नभ है और इला, आवरण स्वयं हट जाएगा। भीखण का दर्शन. 7. यह धर्म तत्त्व की पूर्ण कला, है शुक्ल पक्ष उजला-उजला। सिरियारी में जो सत्य पला, वह 'महाप्रज्ञ' बतलाएगा। वट वृक्ष-तले जो सत्य पला, वह 'महाप्रज्ञ' बतलाएगा। तुलसी से जो मति बीज फला, वह 'महाप्रज्ञ' बतलाएगा। भीखण का दर्शन... लय : बन जोगी मन भटकाई नां. संदर्भ : आचार्य भिक्षु चरमोत्सव, बीदासर, भाद्रव शुक्ला 13, वि.सं. 2058, 31 अगस्त, 2001 रुष जग जाए 17 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात (14) 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है शक्ति संघ में है कलियुग में, तुमने यह सप्राण किया है अंतर् दर्शन की किरणों ने, संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है 1. है विश्वास मुझे अपने पर, है प्रतीति अपने साथी पर संगठन का सूत्र अनुत्तर, तुमचे यह अनुमान दिया है।। संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है 2. गणपति के प्रति पूर्ण समर्पण, कण-कण को मिलता है तर्पण आत्म निरीक्षण का वह दर्पण, एक नया अनुपान दिया है।। संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है 3. संगठन को जो तुम चाहो, तो विवाद को दूर भगाओ संवादी स्वर को अपनाओ, एक नया संधान दिया है। संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है। 4. संगठन को जो तुम चाहो, तो दोषी को दोष बताओ नहीं छिपाओ ना फैलाओ, एक नया अभियान दिया है।। __संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है 5. संख्या पीछे ही रह पाए, गुणवत्ता ही आगे आए गण का गौरव बढ़ता जाए, एक नया आह्वान किया है।। __ संगठन को त्राण दिया है... "संघे शक्ति : कलौ युगे' है 6. संगठन का रूप संवारा, अनुशासन का रूप निखारा तुलसी सबका बना सहारा, जीवन को अभिमान दिया है।। संगठन को त्राण दिया है... 'संघे शक्ति : कलौ युगे' है। 7. प्रेक्षा प्रांगण में जो आया, उसने अपना मूल्य बढ़ाया 'महाप्रज्ञ' जन-मन हरषाया, भिक्षु भक्ति संगान किया है।। संगठन को त्राण दिया है... लय : जीवन हम आदर्श बनाएं संदर्भ : आचार्य भिक्षु चरमोत्सव, अहमदाबाद, भाद्रव शुक्ला 13, विक्रम संवत् 2059 18चैत्य जग जाए Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (15) जीवन का निर्माण, हमको करना है जी, करना है। अपना अनुसंधान, हमको करना है जी, करना है। संयम का सम्मान, हमको करना है जी, करना है। अनुशासन का मान, हमको करना है जी, करना है। सेवा का बहुमान, हमको करना है जी, करना है। श्रम का पुनरुत्थान, हमको करना है जी, करना है।। mmmm 1. जिन शासन का मंत्र, हमने पाया है जी, पाया है। भैक्षवगण का तंत्र, कर में आया है जी, आया है।। 2. तुलसी का नेतृत्व, है वरदान बना, वरदान बना। तेरापथ कर्तृत्व, है अवदान बना, अवदान बना।। 3. अनेकान्त संयुक्त, जीवन दृष्टि बने जी, दृष्टि बने। वाद-विवाद विमुक्त, सारी सृष्टि बने जी, सृष्टि बने।। 4. अणुव्रत का संगान, फैले जन-जन में जी, जन-जन में। प्रेक्षा का अनुदान, व्यापे मन-मन में जी, मन-मन में।। 5. मर्यादोत्सव आज, हम हैं आभारी जी, आभारी। विश्वभारती राज, लाडनूं सुखकारी जी, सुखकारी।। लय : चांद चदयो गिगनार... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव लाडनूं, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2037 चैत्य पुरुष जग जाए 19 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 (16) " आओ गाएं गीत नियति को मिला नया वरदान है। आज विसर्जन की महिमा का पग-पग पर आह्वान है ।। 1. अहं विलय से ही दुनिया में, आता नया सवेरा है। तेरापंथ समर्पण का पथ, सब कुछ तेरा-तेरा है। मेरा केवल अनुशासन यह भीखण का अवदान है ।। आर्य भिक्षु ने मंत्र पढ़ा। 2. शिष्य वंश का करो विसर्जन, शिष्य वंश की परंपरा का एक नया इतिहास गढ़ा । योग्य शिष्य की पंरपरा का यह पहला सोपान है ।। 1 | 3. अधिकारों का करो विसर्जन, अग्रगण्य को सूत्र दिया । पद के पीछे कभी न भागो, कार्य मुख्य, पद गौण किया । अधिकारों के कुरुक्षेत्र का, यह अभिनव प्रस्थान है । । 4. अर्जन पीछे चले विसर्जन, हुई प्रवाहित वर वाणी । आर्यप्रवर तुलसी के मुख से, केरल में वह कल्याणी । सूरज के पीछे-पीछे दिन, सदा-सदा गतिमान है ।। 5. सहज समर्पण और विसर्जन, चिर जीवन का त्राण बने । धर्मसंघ के लिए समर्पित, तन-मन ऊर्जा प्राण बने । कंठ-कंठ में आज विसर्जन की गाथा का गान है ।। 6. तुलसी गुरु का महा विसर्जन, सबसे अधिक निराला है । अहं विलय के दूर क्षितिज पर, अद्भुत आज उजाला है परम सत्य के दिव्यलोक में, आत्मा का सम्मान है । । I 7. मर्यादा का प्रवर महोत्सव, दिल्ली के हर स्पंदन में । गुरु की गरिमा बोल रही है, प्रमुदित सब गण नंदन में ।। 'महाप्रज्ञ' आलोक रश्मि का, यह पावन अभियान है। 'महाप्रज्ञ' भैक्षव शासन का तेजस्वी अभियान है ।। I लय : आओ, अपनी डगर बनाएं.... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2051 चैत्य पुरुष जग जाए Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (17) संघ में मर्यादा, जीवन का आश्वास। संघ में मर्यादा, अंतर का उच्छ्वास । श्वास-श्वास में गण-गणी यह, श्वास बना विश्वास संघ में मर्यादा, जीवन का आश्वास।। 1. लिखा लेख जब भिक्षु ने तब, बोल उठा आकाश । साधु साधु अनुशासना की, कंठ-कंठ में प्यास ।। 2. जिनवाणी की लेखनी से, अक्षर का विन्यास। ___ आस्था की स्याही अमलतम, प्रकटा दिव्य प्रकाश ।। 3. संतो! क्या तुम चाहते हो, मर्यादा में वास। सबने सहमति सहज दी, तब बदल गया इतिहास ।। 4. मर्यादा के मंत्र से ही, फलता है संन्यास । भारिमाल के मुकुट का मणि, तीन दिवस उपवास ।। 5. जीत! चतुर्विध अशन का है, त्याग बिना आयास । आलोचन को आ गए झट, हेम रायऋषि पास ।। 6. दीर्घकाल नेतृत्व के प्रति, वृद्धिंगत उल्लास। आकर्षण बढ़ता रहे, यह अचरज का आभास ।। 7. मर्यादा की सजगता में, महक उठा मधुमास। तुलसी यश का मंजु मलयज, फैली सरस सुवास ।। 8. श्रम सेवा सहयोग का हो, नैसर्गिक अभ्यास । भैक्षव शासन की प्रणाली, पाए अतुल विकास ।। 9. आत्म नियंत्रण की जगे अब, जन-जन में अभिलाष। 'महाप्रज्ञ' बढ़ता रहे, गण-नंदन वन का व्यास ।। लय : वंदना लो झेलो... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव लाडनूं, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2052 चैत्य पुरुष जग जाए Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) देखो मर्यादा की महिमा, कैसी गण की सुषमा छाई। देखो अनुशासन की गरिमा, कैसी आस्था की अरुणाई।। 1. मर्यादा है स्रोत शक्ति का, आर्य भिक्षु की वाणी। माला के हर मनके में है, भीखण की सहनाणी।। 2. जिन आज्ञा का मुकुट बनाकर, अपने शीश चढ़ाया। निज पर शासन फिर अनुशासन, का ध्वज तब लहराया।। 3. विनय मूल है सुमति-सुगति का, देखा सत्य नवेला । गुरु-गुरु, चेला-चेला साक्षी, भारिमाल का तेला।। 4. निष्ठा की स्याही से देखो, लिखित पत्र यह सारा। अक्षर-अक्षर में अंकित है, एक-एक ध्रुव-तारा।। 5. जयाचार्य की सूझ-बूझ का, धर्मसंघ आभारी। मर्यादा का महा महोत्सव, नई कल्पना सारी।। 6. नव-नव चिंतन और योजना, गण का तेज बढ़ा है। तुलसी का कर्तृत्व बोलता, युग ने पाठ पढ़ा है।। 7. प्रतिपल है गुरु पास हमारे, हो चिन्तन की धारा। इस प्रायोगिक आयोजन का, कैसा स्पष्ट इशारा।। 8. चारुवास आचार्यवास है, द्रोणाचार्य निवासी। ताल और पर्वत देवानी, प्रज्ञा के अभ्यासी।। 9. गण का यह वटवृक्ष निरंतर, व्यापक बनता जाए। 'महाप्रज्ञ' तुलसी की आभा, आत्मा में रम जाए।। लय : दुनियां राम नाम नहीं जाणै... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव चाड़वास, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2053 22 2 00000 2003 चैत्य पुरुष जग जाए Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (19) करें हम आत्मा का सम्मान। आत्मा की आराधना से बनता संघ महान। करें हम आत्मा... उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान। करें हम आत्मा का सम्मान।। 1. अनुशासन के बीज मंत्र का था ज्ञाता, विज्ञाता, मर्यादा के पुण्य-कलश का अद्भुततम निर्माता।। आर्य भिक्षु की जीवन शैली एक नया संधान ।। करें हम आत्मा का सम्मान । 2. करें हम आज्ञा का सम्मान। आज्ञा की आराधना से बनता संघ महान, करें हम आज्ञा..... उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान। करें हम आज्ञा का सम्मान। आज्ञा का आलोक तीसरा जागृत नेत्र हमारा, विधि-निषेध का पथ दिखलाता तम में है उजियारा, आर्य भिक्षु के नव चिंतन का यह अनुपम अवदान।। करें हम आज्ञा का सम्मान। 3. करें हम समता का सम्मान। समता की आराधना से बनता संघ महान, करें हम समता..... उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान। करें हम समता का सम्मान। संविभाग संपुष्ट व्यवस्था साम्य योग की रेखा, 'पांती', 'बारी' के दर्पण में समाधान है देखा। रहना सीखें, सहना सीखें, जीवन का उपमान।। करें हम समता का सम्मान। 4. करें हम उपशम का सम्मान। उपशम की आराधना से बनता संघ महान, करें हम..... चैत्य पुरुष जग जाए 230 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान, करें हम उपशम का सम्मान। शांति मंत्र को जपना सीखें, शांत सुधारस गाएं, उवसम सारं सामण्णं, की लय में हम रम जाएं। शांतिपूर्ण सहवास प्रगति का है पहला सोपान।। करें हम उपशम का सम्मान। 5. करें हम सेवा का सम्मान। सेवा की आराधना से बनता संघ महान, करें हम सेवा... उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान। करें हम सेवा का सम्मान। सबके खातिर एक, एक के खातिर सबकी यात्रा, हस्व वर्ण की संयोगी से बन जाती दो मात्रा। सेवा धर्मः परम गहन यह योगी का संगान।। करें हम सेवा का सम्मान। 6. करें हम सद्गुरु का सम्मान। सद्गुरु की आराधना से बनता संघ महान, करें हम सद्गुरु..... उसका सिंचन पा अनुशासन बन जाता वरदान। करें हम सद्गुरु का सम्मान । तुलसी की गति, मति तुलसी की, धृति को शीश चढ़ाएं बहुत दिया है, बहुत लिया है, उसको और बढ़ाएं। तेरापंथ पर्याय बना है तुलसी का अभियान।। करें हम सद्गुरु का सम्मान। 7. नोखा का मर्यादा उत्सव नई प्रेरणा लाए, आत्मा के अनुशासन को अब हर मानव अपनाए। महाप्रज्ञ भैक्षव शासन की सदा अलौकिक शान। करें हम आत्मा का सम्मान । करें हम आज्ञा का सम्मान। करें हम समता का सम्मान। करें हम उपशम का सम्मान । करें हम सेवा का सम्मान । करें हम सद्गुरु का सम्मान । लय : धर्म की लौ जलाएं हम... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव नोखा, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2054 24 3 48003 चैत्य पुरुष जग जाए Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) अनुशासन का आह्वान करें, जीवन उत्सव बन जाएगा। मर्यादा का सम्मान करें, कलियुग में सतयुग आएगा। 1. तेरापथ वह पथ है जिसमें, 'मैं' को है कोई स्थान नहीं। आगे समता, पीछे समता, जलधर जलकण बरसाएगा। अनुशासन का.... 2. तेरापथ वह पथ है जिसमें, 'मम' का कोई आस्थान नहीं। __ आगे समता, पीछे समता, समता का सूर्य जगाएगा। अनुशासन का.... 3. श्री भारमल्ल का वह तेला, अद्भुत था वह कोई चेला। तब मूल्य बढ़ा अनुशासन का, इतिहास सदा बतलाएगा। अनुशासन का.... 4. शासन का हित अपना हित है, यह स्वार्थ चेतना सीमित है। हम साधर्मिक संगान करें, परमार्थ स्वयं आ जाएगा। अनुशासन का.... 5. सहना सीखें, रहना सीखें, मधु-मधुर वचन कहना सीखें। __सब शांतिपूर्ण सहवास वरें, आंगन सुरतरु लहराएगा। अनुशासन का.... 6. अप्रिय आदत को बदलेंगे, आग्रह को प्रश्रय ना देंगे। परिवर्तन का अभियान चले, अस्तित्व अटल रह पाएगा। अनुशासन का.... 7. मर्यादा की यह मर्यादा, जीवन हो नित सीधा-सादा। संयम का अनुसंधान करें, आकर्षण बढ़ता जाएगा। अनुशासन का.... 8. तुलसी से युग का बोध मिला, तुलसी से मानस पुष्प खिला। यह धर्मक्रान्ति का अवसर है, जन-जन साक्षी बन जाएगा। अनुशासन का.... 9. नेतृत्व एक यह शाश्वत है, भैक्षव गण का जीवन-व्रत है। माघोत्सव 'महाप्रज्ञ' अनुपम, हरियाणा, सदा मनाएगा, टोहना सदा मनाएगा। लय : जिसके मन में हरि नाम बसे..... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव टोहाना, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2055 पुरुष जग जाए 2 5 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 (21) आओ स्वामीजी ! गुरु- गीता को फिर से दोहराओ रे ! आओ स्वामीजी ! अब पूरा मंगलपाठ सुनाओ रे । आओ स्वामीजी ! 1. 'हेत - परस्पर राखीज्यो' यह गुरु गीता की शिक्षा रे, संघ-शक्ति का महामंत्र दीक्षा की दीक्षा रे ! आओ स्वामीजी ! 2. प्रश्न एक है आज अनुत्तर श्रावक क्यों है न्यारा रे ! क्यूं न प्रवाहित जीवन में गंगा की धारा रे ! आओ स्वामीजी ! 3. 'श्रावक और श्राविका सारा हेत परस्पर राखीज्यो, संघ संगठन रा मीठा-मीठा फल चाखीज्यो !' आओ स्वामीजी ! • 4. पूरा पाठ बने, अब ऐसा फिर से गण-नन्दन की कली कली को - मंत्र सिखाओ रे, पुनः सझाओ रे ! आओ स्वामीजी ! 5. देव! तुम्हारी वाणी में है तप का तेज निराला रे, देव! तुम्हारा चिन्तन सचमुच इमरत प्याला रे ! आओ स्वामीजी ! 6. गुरु तुलसी ने अनुशासन का भारी मूल्य बढ़ाया रे, सफल बना, जिसने अनुशासन शीश चढ़ाया रे ! आओ स्वामीजी ! 7. 'महाप्रज्ञ' अब अनुशासन का अनुपम कवच बनाओ रे, मर्यादा का मोच्छव तारानगर मनाओ रे ! आओ स्वामीजी ! लय: होली आई रे ! संदर्भ : मर्यादा महोत्सव तारानगर, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2056 चैत्य पुरुष जग जाए Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) भीखणजी स्वामी! अभिनव मर्यादा दो अब संघ को। सहनशील बन ले सकें प्रभु, हम सब सुख की सांस हो।। 1. सहनशीलता ही रहे, बस उन्नति का आधार...हो। तेरापथ की सृष्टि का यह, सर्वोत्तम उपहार...हो।। भीखणजी स्वामी !... 2. श्रद्धा के युग में लिखा प्रभु, तुमने प्रवर विधान...हो। __तार्किक युग में हो रहा, यह मर्यादा का मान...हो।। भीखणजी स्वामी !... 3. भारमल्ल ही बन रहे प्रभु, भारमल्ल के तुल्य...हो। जयाचार्य से ही बढ़ा, वर मर्यादा का मूल्य...हो।। भीखणजी स्वामी !... 4. हेम, खेतसी संत का प्रभु, जिन हाथों निर्माण...हो। ___ उन हाथों से ही भरो प्रभु, गण उपवन में प्राण...हो।। भीखणजी स्वामी !... 5. दिव्य प्रशिक्षण का बना प्रभु, कैसे यह इतिहास...हो। कैसे जागी संघ में प्रभु, अनुशासन की प्यास...हो।। भीखणजी स्वामी !... 6. तव शासन में ही हुआ प्रभु, तुलसी का अवतार...हो। जिनके चिंतन-मनन से प्रभु, खुले प्रगति के द्वार...हो।। भीखणजी स्वामी !... 7. संघ शक्ति की वृद्धि में प्रभु, व्यक्ति-व्यक्ति का योग...हो। __ व्यक्ति-प्रतिष्ठा का कभी प्रभु, लगे न गण को रोग...हो।। भीखणजी स्वामी!... 8. भक्ति भरी उस शक्ति का प्रभु, मुश्किल है अनुमान...हो। प्राणवान अब बन गया प्रभु, सरिता का संगान...हो।। भीखणजी स्वामी !... 9. शक्तिपीठ की शक्ति का है, महाप्रज्ञ आभार...हो। मर्यादोत्सव से हुआ प्रभु, गंगाणा गुलजार...हो।। भीखणजी स्वामी !... लय : भीखणजी स्वामी भारी मर्यादा बांधी... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव गंगाशहर, 31 जनवरी, 2001 माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2057 चैत्य पुरुष जग जाए 8 3999999999999927 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) तुम बनो पुजारी, देखो मर्यादा प्रभु अवतार है • जन-जन आभारी भैक्षव-शासन का यह उपहार है तुम बनो पुजारी... 1. दुर्लभ है मर्यादा रचना दुर्लभतर है निष्ठा निष्ठा से ही मर्यादा की होती प्राण प्रतिष्ठा रे तुम बनो पुजारी... 2. देव! बताओ कैसे निष्ठा पैदा की है गण में __ उसका दर्शन और निदर्शन दीख रहा कण-कण में रे तुम बनो पुजारी... 3. गोला एक मोम का देखो आंच नहीं सह पाता कठिनाई को सह न सके वह पिघल-पिघल बह जाता रे तुम बनो पुजारी... 4. गोला एक सरस मिट्टी का अग्नि-ताप सह लेता स्थिरता आती रूप निखरता रक्तिम आभा देता रे तुम बनो पुजारी... 5. कुंभकार की मर्यादा को जो घट है सह पाता उसी घड़े का आश्रय पाकर जल शीतल बन जाता रे तुम बनो पुजारी... 6. हीरा बन जो आता अथवा आ हीरा बन जाता __ गण की शोभा बढ़ती उससे काच कहां टिक पाता रे तुम बनो पुजारी... 7. अस्तिकाय की भांति अखंडित हो नेतृत्व हमारा घर-घर में आकाश विकेन्द्रित अनुशासन की धारा रे तुम बनो पुजारी... 8. बने अहिंसक जीवन-शैली समतामय घट-घट हो करुणा के धागे-धागे से निर्मित जीवन पट हो रे तुम बनो पुजारी... 9. मर्यादा का प्रवर महोत्सव पचपदरा ने पाया 'महाप्रज्ञ' मैत्री के स्वर को सबने शीश चढ़ाया रे तुम बनो पुजारी... लय : मत बनो मिजाजी... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव पचपदरा, माघ शुक्ला 7, विक्रम संवत् 2058 *28 चैत्य पुरुष जग जाए Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) साधना का पथ तुम्हारा, देव! कैसे खोज पाएं। और किस आराधना से, संघनिष्ठा को बढ़ाएं।। भिक्षु तुमने जो दिया है, संघ ने तुमसे लिया है। उस अमर अनुशासना की, वर्णमाला को पढ़ाएं।। 1 ।। दूर को तुमने सहा है, निकट को भी तब सहा है। शक्ति का वह मंत्र गुरुवर ! आज हम सबको बताएं।। 2 ।। ताप को तुमने सहा है, भूख को तुमने कहा है। शक्ति के उस पीठ पर अब, सिद्धि का गुर समझ पाएं।। 3 ।। सोचता हूं वह सही है, सीख का अवसर नहीं है। क्या नहीं मैं जानता जो, दूसरे मुझको सिखाएं।। 4 ।। सीख दे वह तो बया है, और यह बंदर नया है। मान की आंधी थमे अब, विनय का दीपक जलाएं।। 5 ।। विष अमृत बनता विनय से, वर विधायक भाव लय से। फिर निषेधात्मक प्रकृति से, अमृत को विष क्यों बनाएं।। 6 ।। हो अहिंसा का प्रखर स्वर, सुन सके हर मनुज हर घर। चेतना के तार सारे, दृष्टि बल से झनझनाएं।।7।। बीज बोया क्रांति का जो, फल मिला वह शांति का जो। आर्य तुलसी का अनुग्रह, सफल हो सब कल्पनाएं।। 8।। मुंबई में हम प्रवासी, संघ का मानस प्रवासी। है प्रतीक्षा में प्रणत सब, भाव से सबको बुलाएं।। ७ ।। सिद्ध मर्यादा महोत्सव, सफल हो हर समय हर लव। सिद्ध मर्यादा महोत्सव, सफल हो 'महाप्रज्ञ' हर लव। मुंबई के सिंधु तट पर, संघ को शिखरों चढ़ाएं।। 10।। संत सत्तावन यहां हैं, बानवें सतियां यहां हैं। समणियां नब्बे यहां हैं, समण चारों ही यहां हैं। एकता का सूत्र गण में, नित नई खोले दिशाएं।। 11 ।। लय : लक्ष्य है ऊंचा हमारा... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव, मुंबई, माघ शुक्ला 7, वि. संवत् 2059 चैत्य पुरु रुष जग जाए 2 9 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (25) बदले जीवन का आधार, बदले मानव का व्यवहार। ऐसा मंत्र बताओ हे, ऐसा यंत्र बनाओ हे.......।। 1. आज हो रहा भौतिक जग में, सीमातीत विकास। किन्तु ले रहा धार्मिक जग तो, रूढिवाद का श्वास। दोनों ओर समस्या घोर, कैसे पकड़ें उसका छोर।। ऐसा... 2. वैज्ञानिक जग खोल रहा है, बन्द सत्य के द्वार। धार्मिक जग में बन्द पड़े हैं, सत्य बोध के द्वार। कैसे हो दोनों का साथ, कैसे मिल पाए दो हाथ।। ऐसा... 3. नई कल्पना, नई योजना, अभिनव अनुसंधान । अंतरिक्ष में नगर बसेगा, नए-नए अभियान । संहारक शस्त्रों की होड़, कैसी अजब-गजब घुड़-दौड़।। ऐसा... 4. जीवन का आधार बना है, केवल आर्थिक तंत्र । नाग पाश के इस बन्धन से, सारा जग परतंत्र । कैसे मुक्त बने आकाश, जागे अपने में विश्वास।। ऐसा... 5. हो विकास की निश्चित सीमा, निश्चित उसका क्षेत्र । सीमा के सापेक्ष सत्य से, खुले तीसरा नेत्र। दोनों का संतुलित विकास, देगा जीवन को आश्वास।। ऐसा... 6. मानवता के शुभ भविष्य का, यह पहला अध्याय। एक साथ धार्मिक-वैज्ञानिक, बैठ करें व्यवसाय। प्राणी-हित का पहला स्थान, युग का सर्वोत्तम आह्वान।। ऐसा... 7. दीर्घकाल से देव! तुम्हारा, गण को मिला प्रसाद । बने विकास महोत्सव इसका, गरिमामय अनुवाद । हो अब समाधान स्याद्वाद, 'महाप्रज्ञ' मन में आह्लाद।। ऐसा... लय : नीले घोड़े रा असवार... संदर्भ : विकास महोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2052 30 चै त्य पुरुष जग जाए Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (26) दो वही आकाश, जिसका प्राण तत्त्व विकास है। दो वही आकाश, जिसमें प्रगति का उच्छ्वास है ।। 1. सफलता का सूत्र पहला, प्रबल आस्था तंत्र है, फलित अनुशासन उसी का, शक्तिशाली मंत्र है सिद्ध होगा साध्य निश्चित, सिद्धि में विश्वास है । । I 2. सफलता का सूत्र दूजा, प्रवर सम्यग् वृष्टि से खेती निपजती, कल्पना से वह विधायक मनन देता, स्वर्ग का 3. सफलता का सूत्र उज्ज्वल, तीसरा स्वाध्याय है, नयन - युग को खोलने का, जो प्रथम अध्याय है । ज्ञात से अज्ञात अब तक, कर रहा उपहास है ।। 4. सफलता का सूत्र चौथा, ध्यान का सत्य का अनुवाद निज, व्यक्तित्व की धर्म अनुभव में उतर कर, दे रहा 5. सफलता का सूत्र पंचम, मानसिक हो रहा है प्राप्त गुरु का, आर्य तुलसी की प्रभा का चैत्य पुरुष जग जाए दृष्टि है, सृष्टि है आभास है ।। आह्लाद है, कुशल आशीर्वाद है अलग ही इतिहास है ।। I संधान है, पहचान है । आश्वास है । । लय: प्रेम से बोलें कि प्यारे ! संदर्भ : विकास महोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2053 31 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 1. जन्म तुम्हारा सिंह लगन में, साक्षी पौरुष गाथा, सिंह तुल्य विक्रम के सम्मुख, झुक जाता है माथा । झंझावातों में नहीं कभी जो हारा ।। (27) तुलसी स्वामी रे ! मंगल नाम तुम्हारा । अंतर्यामी रे ! मेरा सबल सहारा ।। तुलसी स्वामी रे ! 2. शहर लाडनूं पावन भूमि, झूमर कुल बलशाली, विक्रम संवत् इकहत्तर में जन्मा वह गणमाली । वदना - आंगण में उदित हुआ ध्रुवतारा ।। 1 3. शैशव - वय में गुरु कालू कर 4. ग्यारह वर्षों तक शिक्षा, दीक्षा के प्रतिभा उभरी, जीवन वन महकाया, शीश धरा कर, मुनिवर का पद पाया। भैक्षव शासन का भावी भव्य सितारा ।। गुरुवर के इंगित को आराधा, कौशल से परम लक्ष्य को साधा । सहज समर्पण से जीवन खूब निखारा ।। 5. शिक्षक का दायित्व संभाला, सोलह वर्ष अवस्था, लघुवय में ही प्रिय अनुशासन, प्रिय थी सदा व्यवस्था । आत्मोदय का रे ! होता कहां किनारा ।। 6. इचरज है बाईस वर्ष में, तेरापथ अनुशास्ता, नवमासन ने प्रगति शिखर का, खोला सीधा रास्ता । हुई प्रवाहित रे! नव चिन्तन की धारा ।। . 7. धर्म क्रांति का शंखनाद कर, सोया विश्व जगाया, अणुव्रत की आचार-संहिता का गौरव गहराया । सघन तमिस्रा में अद्भुत आज उजारा ।। 8. वर्ण, जाति या एक जाति मानव संप्रदाय के रूढिवाद को तोड़ा, की, मानव से मानव को जोड़ा। मंजुल मंजुल है मानव धर्म नजारा ।। चैत्य पुरुष जग जाए Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. शिक्षापूर्वक दीक्षा हो, यह नई कल्पना आई, शिक्षण संस्था में जन-जन ने, देखी है गहराई। भिक्षु स्वामी का अंतिम शब्द निहारा।। 10. नए मोड़ से नवयुग आया, जाग उठी तब नारी, युगद्रष्टा के प्रति आभारी, रहती जनता सारी। युग परिवर्तन का कोई नया इशारा ।। 11. नए तीर्थ का किया प्रवर्तन, समण श्रेणी कल्याणी, आगम-संपादन से मुखरित, महावीर की वाणी। शाश्वत सत्यों को आस्था सहित उभारा।। 12. यात्रा की है अकथ कहानी, इक मुख कौन कहेगा? अनगिन हैं अवदान महाप्रभु, केवल गम्य रहेगा। शासन सुषमा में तुलसी सबको प्यारा।। 13. किया विसर्जन अपने पद का, शासन सुदृढ़ बनाया, छोड़ अचानक चले गए प्रभु, यह तो नहीं सुहाया। किया समाहित है 'महाप्रज्ञ' में सारा।। लय : कुंथु जिनवर रे..... संदर्भ : विकास महोत्सव गंगाशहर, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2054 पुरुष जग जाए9999999999 999993333 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) युग दर्शन के व्याख्याता युग का उपहार लो। बदले चिन्तन की धारा वैसा संस्कार दो।। 1. गुरुदेव जरूरत अति है, युग को अहिंसा की। हिंसा की जटिल समस्या, कैसे उपचार हो।। बदले..... 2. गुरुदेव जरूरत अति है, युग को विसर्जन की। संग्रह की जटिल समस्या, कैसे उद्धार हो।। बदले.... 3. गुरुदेव जरूरत अति है, युग को समर्पण की। परमार्थ दृष्टि का सपना, कैसे साकार हो।। बदले..... 4. गुरुदेव जरूरत अति है, युग को समन्वय की।। सापेक्षवाद का शासन, युग का आचार हो।। बदले.... 5. गुरुदेव जरूरत अति है, युग को नियोजन की। यह नव्य विकास महोत्सव, युग का आधार हो।। बदले..... 6. गुरुदेव जरूरत अति है, निर्मल व्यवहार की। प्रामाणिक जीवन शैली, युग का उपकार हो ।। बदले..... 7. संकल्प एक है सबका, गुरुवाणी अमर बने। अब 'महाप्रज्ञ' तुलसी का, पुनरपि अवतार हो।। बदले..... लय : प्रभु पार्श्व देव चरणों में..... संदर्भ : विकास महोत्सव सरदारशहर, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2055 400000000 00000000000000000000 चैत्य पुरुष जग जाए Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) प्रभु को सपना आया जी । सपना आया, मन हरसाया, गीत प्रगति का गाया । तेरापथ के उन्नति रथ को, यश के शिखर चढ़ाया । । 1. संध्या की वेला में प्रभु ने सहसा मुझे बुलाया । जैनागम क्यों आज उपेक्षित किसने दीप जलाया ? प्रभु को सपना आया जी.... 2. बने भगीरथ सुर सरिता का सलिल धरा पर आया । निर्मल आभा निरख - निरख कर जन-मानस ललचाया ।। प्रभु को सपना आया जी.... 3. अर्द्ध रात्रि में मुनि ने योगक्षेम वर्ष के तरु 5. अर्द्ध रात्रि में मुनि ने कैसे हो आध्यात्मिक 4. तुम तो हो निश्चिंत नींद में, नींद न मैं ले पाया । भारी-भरकम भार उठाया कैसे यह बिसराया । । प्रभु को सपना आया जी... आकर सहसा मुझे जगाया। की कैसी होगी छाया ? ।। प्रभु को सपना आया जी.... चैत्यपुरुष जग जाए 6. भाग्य और पुरुषार्थ योग से स्वप्न सत्य सरसाया। दिन में जागृत सपना लेना प्रभु ने हमें सिखाया । । प्रभु को सपना आया जी... आकर सहसा मुझे जगाया। यात्रा चिन्तन-मंत्र बताया । । प्रभु को सपना आया जी... 7. तुलसी और विकास एक बन अंतस में गहराया । 'महाप्रज्ञ' युग की धारा ने कायाकल्प कराया । । प्रभु को सपना आया जी... लय: म्हानै चाकर राखोजी...... संदर्भ : विकास महोत्सव दिल्ली, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2056 35 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) उजाला, तुलसी का उपकार। अनुपम मनहर आभामण्डल एक नया अवतार। उजाला, तुलसी का उपकार।। 1. नई कल्पना, नूतन सपना, सपना बन जाता था अपना, खपना ही हो जाता जपना, भाग्य और श्रम की बूंदों से हर सपना साकार ।। उजाला.... 2. मानव भूल गया है रास्ता, हिंसा को अर्पित है आस्था, आवश्यक तुलसी-सा शास्ता, सम्प्रदाय की कट्टरता से धूमिल जब संस्कार ।। उजाला.. 3. नैतिकता का मान नहीं है, अपनी भी पहचान नहीं है, जीवन का विज्ञान नहीं है, विष का घट, ढक्कन इमरत का, है दोहरा व्यवहार।। उजाला.... 4. आज आदमी बहुत पुराना, मुश्किल है मंजिल तक जाना, समाधान भी है अनजाना, जन्म नये मानव का हो अब, हो अभिनव आचार ।। उजाला. 5. दो विकास की अद्भुत भाषा, दिव्य लोक से ही है आशा, सूख रहा जल, मानव प्यासा, 'महाप्रज्ञ' जन-जन मानेगा गुरुवर का आभार।। उजाला.... लय : निहारा तुमको कितनी बार.... __ संदर्भ : विकास महोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2057 *368 चैत्य पुरुष जग जाए Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (31) जय-जय जिन शासन की जय हो भैक्षव-गण का सदा उदय हो जय-जय जिन शासन... 1. वैज्ञानिक युग में जीते हैं, बौद्धिक युग का रस पीते हैं फिर भी मति में और प्रगति में, वर्धमान दिन-रात विनय हो जय-जय जिन शासन... 2. तार्किक युग में हम जीते हैं, संशय हारा, हम जीते हैं श्रद्धा का बल बढ़ता जाए, प्रतिपल मन में यह अनुनय हो जय-जय जिन शासन... 3. सहनशीलता आज अधर में, चिंता घट-घट में घर-घर में सहनशीलता देव! हमारा, हर ऋतु में अनुकूल निलय हो जय-जय जिन शासन... 4. आवश्यक रोटी की शिक्षा, क्या कम है आचार परीक्षा हो संतुलित विकास-धारणा, जीवन का आधार अभय हो ___जय-जय जिन शासन... 5. प्रवर विकास महोत्सव का क्षण, पुलकित है जन-जन का कण-कण 'महाप्रज्ञ' सर्वोदय वेला, जय-जय-जय तुलसी की जय हो जय-जय जिन शासन... लय : जय-जय धर्मसंघ की जय हो.. संदर्भ : विकास महोत्सव, बीदासर भाद्रव शुक्ला 9, वि. संवत् 2058 चैत्य पुरुष जग जाए 37 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32) प्रभो! तुम्हारे पदचिह्नों पर हम आगे बढ़ते जाएं रहें रक्षिता, बनें रोहिणी हर तरुवर को सफल बनाएं प्रभो!... 1. आत्मशुद्धि का जहां प्रश्न है संप्रदाय का मोह न हो विश्व शांति का सूत्र तुम्हारा मंत्र कहो या तंत्र कहो बहुत जरूरी इसका आशय विश्ववृत्त को हम समझाएं प्रभो!... 2. व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म समाया, जात-पांत का भेद न हो, कलह शमन का सूत्र तुम्हारा कहीं घृणा का स्वेद न हो, मनुज एकता का स्वर गूंजे सब मिल मैत्री दिवस मनाएं प्रभो!... 3. सही हार्द आगे बढ़ने का आत्म निरीक्षण साथ चले रुकें जहां रुकना आवश्यक तम ना व्यापे दीप तले सिंहालोकन की पद्धति को जीवन का नवनीत बनाएं प्रभो!... 4. सागरवर गंभीर बनें हम सहन शक्ति बढ़ती जाए साधु-संघ की महिमा प्रतिदिन प्रगति शिखर चढ़ती जाए अनुशासन की सुरसरिता में तन को मन को नित नहलाएं प्रभो!... 5. प्रेक्षा का अभ्यास सघनतम आत्म शुद्धि का हेतु बने तुलसी का वरदान अणुव्रत नव विकास का सेतु बने 'महाप्रज्ञ' प्रेक्षा भूमि में अभय अहिंसा बीज उगाएं प्रभो!... धुन : प्रभो! तुम्हारे पावन पथ पर... संदर्भ : विकास महोत्सव, प्रेक्षा विश्व भारती, अहमदाबाद, भाद्रव शुक्ला 9, वि. संवत् 2059 10 3800% M000000002 चैत्य पुरुष जग जाए . . Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (33) कैसी वह कोमल काया रे, महाप्राण गुरुदेव ! पुष्पों ने शीश झुकाया रे, महाप्राण गुरुदेव! कंचन-सी कोमल काया रे, महाप्राण गुरुदेव! 1. कानों की छटा निराली, आंखें इमरत की प्याली, किस ने सौंदर्य सझाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 2. माधुर्य कंठ में घोला, ममता को किसने तोला, वात्सल्य मूर्त बन पाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 3. तुमने जो ग्रन्थ गढ़ा है, वह सबके शीश चढ़ा है शाश्वत का स्वर गहराया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 4. शासन को खूब संवारा, अनुशासन गजब निहारा, शीतल शीतल-सी छाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 5. जीवन-भर काम करूंगा, गण का भंडार भरूंगा, संकल्प अटूट निभाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 6. श्रम पल-पल अविकल चलता, अनुभव का सुरतरु फलता, पौरुष का मूल्य बढ़ाया रे, महाप्राण गुरुदेव! 7. जग परिवर्तन का प्यासा, तुमसे थी उसको आशा, यह कैसा दृश्य दिखाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 8. तुलसी यह नाम पियारा, तुलसी का नाम सहारा, अद्भुत सौरभ महकाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 9. तुम भिन्न देह से स्वामी, आत्मा के अन्तर्यामी, जागृति का पाठ पढ़ाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 10. तुम जीवन के निर्माता, प्रभु! मेरे भाग्य-विधाता, है अलख अगोचर माया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 11. गुरुवर की बढ़े प्रतिष्ठा, यह 'महाप्रज्ञ' की निष्ठा, जय विजय-ध्वज लहराया रे, महाप्राण गुरुदेव ! लय : दीपां वाले नंद..... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस गंगाशहर, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2054 चैत्य पुरुष जग जाए 38000 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (34) स्वामी! कौन - सा सुरीला तुमने गीत गाया ? स्वामी! कौन-सा अनबोला मंत्र याद आया ? | अद्भुत जीवन, अद्भुत गाथा स्वामी! कौन-सा सुरलोक तुमको याद आया ? । । 1. आकर्षक व्यक्तित्व तुम्हारा, याद हमें है अब भी सारा । तुम भूल गये, यह कैसी माया ? स्वामी! कौन - सा .. 2. लाखों आंखें हैं उपवासी, अब प्यास बुझाओ, अवसर आया, स्वामी! 3. जनम-जनम के हम हैं साथी, चिर परिचित है महावीर ने गौतम को बतलाया, स्वामी ! कान बने हैं ये संन्यासी । कौन -सा....... 4. तुम हम, हम तुम, सोचा हमने, चिर परिचय को सुरतरु दो फिर शीतल छाया, स्वामी! 5. अणुव्रत में आलोक निहारा, मानवता का रूप निखारा। नैतिक चेतना का अंकुर उग आया, स्वामी! कौन -सा....... 6. अमृत महोत्सव यहां मनाएं, अचरज प्रभु को पास न पाएं। दिव्य प्रेम का उच्छ्वास कैसे गहराया ? स्वामी! कौन सा ...... 7. साथ बैठते चिन्तन चलता, चिन्तन से नवनीत निकलता। मन उपवन रहता सरसाया, स्वामी ! कौन - सा ..... 40 जीवन बाती । कौन - सा ...... 8. अनगिन हैं अवदान तुम्हारे, जन-जन के तुम प्राण पियारे । उपकार न कोई गिन पाया, स्वामी! कौन - सा ..... 9. 'महाप्रज्ञ' की हर गतिविधि में, तुलसी हो, तुलसी सन्निधि में । तेरापंथ यशस्वी बन पाया, स्वामी ! कौन-सा ...... लय: स्वामी भीखण जी रो नाम ....... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस लाडनूं, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2055 तोड़ा तुमने । कौन - सा ..... चैत्य पुरुष जग जाए Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (35) जगा जन-गण-मन में विश्वास रे, आश्वास रे, होगा दिव्य अब है अभ्रमुक्त आकाश रे, होगा दिव्य अब 1. शिष्यों को आधार दिया है, शिष्यों का आभार लिया है, विनिमय के इस महामंत्र ने रचा नया इतिहास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। प्रकाश । उल्लास रे, 2. अर्जन कैसा हो न विसर्जन, सलिलहीन बादल का गर्जन, त्यागहीन संग्रह के तरु में, क्या होती कहीं सुवास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। 4. संवेदन का सूत्र स्वस्थ चेतना के 3. अगर चाहते हिंसा कम हो, जीवन शैली सहज सुगम हो, एकमात्र है पंथ विसर्जन, नव युग का आभास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश ।। प्रकाश । । चैत्य पुरुष जग जाए पिरोता, बहता है करुणा का सोता, अंबर में होता सदा विकास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 5. कूप नहीं जाएगा घर-घर, प्यासा आएगा पनघट पर, आज सुलभ नल का जल घर-घर, प्रतिभा का आयास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 6. जो न हुआ वह हो पाया है, कोई पैगम्बर आया है, ले मशाल नैतिक मूल्यों की, परिमल सुरभित-श्वास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । 7. तुलसी का जीवन जीना है, धागा बन सबको सीना है, 'महाप्रज्ञ' की हर गतिविधि में, तुलसी का उच्छ्वास रे । आश्वास रे, अब होगा दिव्य प्रकाश । । लय: धरा पर उतरा स्वर्ग विमान... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस दिल्ली, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2056 41 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) दरस गुरुराज का रे! है उत्सव का दिन आज, दरस गुरुराज का रे! है तुम पर सबको नाज, दरस गुरुराज का रे! 1. प्रश्नों की है शृंखला रे, उत्तर दो गुरुराज! उत्सुक सुनने को सभी हम, चिर परिचित आवाज।। ' दरस गुरुराज का रे! 2. दृश्य जगत से क्यों हुआ रे, सहसा देव! विराग, सूक्ष्म जगत से क्यों किया रे, इक पल में अनुराग।। दरस गुरुराज का रे! 3. जागरूक जीवन रहा रे, अर्पित गण को प्राण, भूल गये? कैसे कहूं मैं, ओ तन-मन के त्राण।। दरस गुरुराज का रे! 4. अनुशासन की उर्वरा में, जो बोये थे बीज, शत शाखी वे हो रहे हैं, कैसी अनुपम रीझ।। दरस गुरुराज का रे! 5. अणुव्रत के विस्तार से रे, जुड़ा हुआ था तार, चाहते थे तुम देखना रे, एक नया संसार।। दरस गुरुराज का रे! 6. अणुव्रत का जो चल रहा है, क्या उससे संतुष्ट ? क्यों न उपस्थित हो सभा में, करते उसको पुष्ट।। दरस गुरुराज का रे! 7. 'जैन धर्म जन धर्म हो' यह सपना अब साकार, __ धर्म क्रांति की धारणा का, मुक्त हुआ है द्वार।। दरस गुरुराज का रे! 8. आगम की आराधना में, आए नव उच्छ्वास, वत्सलता जो बरसती रे, हो उसका आभास ।। ___दरस गुरुराज का रे! 9. महाप्रज्ञ में तुलसी देखें, सिद्ध हुआ मंतव्य, तुलसी का पदचिह्न प्रतिक्षण, हम सबका गंतव्य।। दरस गुरुराज का रे! लय : कीड़ी चाली सासरे रे... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस सुजानगढ, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2056 3 चैत्य पुरुष जग जाए 142 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (37) मेरी जिज्ञासा है उत्तर दो प्रभु, अवसर आया है, मेरी आशंसा को पूर्ण करो अब अवसर आया है।। 1. चार वर्ष के बीत गए हैं, वे सारे दिन रात, अब तो मानस की कुटिया में आए नया प्रभात रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 2. भैक्षव गण में देव ! तुम्हारा कितना था विश्वास, कितना एकीपन आकर्षण श्वास-श्वास उल्लास रे। इचरज की माया है, मेरी जिज्ञासा है... 3. नई कल्पना, नई योजना प्रतिदिन का उच्छ्वास, चिन्तन कर कर देव ! सुमन का होता सतत विकास रे। अब स्मृति की छाया है, मेरी जिज्ञासा है... 4. मैं जो कुछ भी बन पाया हूं, वह प्रेरक वर हाथ, खोज रहा हूं, वही प्रेरणा दो प्रभु मेरा साथ रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 5. किसे बताऊं मन की बातें, किससे करूं विमर्श, पथ दर्शन वह किससे पाऊं, जिससे हो उत्कर्ष रे। तन-मन ने गाया है, मेरी जिज्ञासा है... 6. उस दुनिया के नियम बताओ, जिसमें आज निवास, कैसे हो साक्षात् देवते ! कण्ठ-कण्ठ में प्यास रे। अब अवसर आया है, मेरी जिज्ञासा है... 7. याद रहो तुम, याद रहें हम, समझें इसका अर्थ, 'महाप्रज्ञ' की अन्तःस्फुरणा होगी सदा समर्थ। अनुभव गहराया है, मेरी जिज्ञासा है... लय : म्हारो हीरा जड़ियो आंगणियो... ___ संदर्भ : आचार्य तुलसी चतुर्थ पुण्य-तिथि राजलदेसर, 9 जून 2001, आषाढ कृष्णा 3, वि.सं. 2058 चैत्य पुरुष जग जाए Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38) आवरणों के सघन तिमिर में जिसने सत्य निहारा, अद्भुत नेत्र तुम्हारा। संयम ही जीवन है, अभिनव जीवन की परिभाषा, उसके हर अक्षर में अंकित, है युग की अभिलाषा। राजनीति के समरांगण में, संयम बना सहारा।। 1 ।। संयम बरतो संयम बरतो, बुश ने भी दोहराया, हिन्द पाक के नेताओं के, सत्य समझ में आया। संयम ही है सूत्र शान्ति का, सहज बजा इकतारा।। 2 ।। नैतिकता से शून्य धर्म से, अणुव्रत का उद्भव है, शान्ति समन्वित धर्मक्रान्ति का, यह अनुपम अनुभव है। सत्य शोध के प्रवर पुरोधा, जग को मिला उजारा।। 3 ।। पहला पद है सम्प्रदाय का, यह विग्रह का अथ है, पहला पद हो प्रवर धर्म का, वही शान्ति का रथ है। उस वाणी से हुई प्रवाहित, आत्मशुद्धि की धारा।। 4 ।। जीवन से दर्शन को नापा, दर्शन को जीवन से, जीवन से दर्शन की दूरी, सिमट गई बचपन से। जिस पथ पर तुम चले, वही पथ देखा एक किनारा।। 5 ।। ओ माली! क्या भूल गए, यह तेरा नन्दनवन है, हर शाखा पर हर पत्ते पर, तेरा ही स्पन्दन है। जड़ को सींचो इस गाथा से, सबको मिला सहारा।। 6 ।। शब्दों की सीमा असीम को, कैसे शब्द बनाएं, उस अगम्य को स्थूल दृष्टि से, कैसे गम्य बनाएं। 'महाप्रज्ञ' तुलसी की लय में, झूम रहा जग सारा।। 7 ।। लय : संयममय जीवन हो... संदर्भ : आचार्य तुलसी पंचम पुण्य तिथि, अहमदाबाद आषाढ़ कृष्णा 3, वि. संवत् 2059 0443 33389चैत्यप रुष जग जाए Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (39) देव दो हस्तावलंबन, आत्म का साक्षात पाऊं । सो रहे इस सिंह शिशु को, आज मैं फिर से जगाऊं।। 1. मैं स्वयं चेतन सघन हूं, मैं स्वयं आनंदघन हूं। देह की इस मरुधरा में, चैत्य की सरिता बहाऊं।। 2. कौन हूं, आया कहां से, है कहां जाना यहां से। सत्य की गहराइयों में, उतर प्रभु को ढूंढ लाऊं।। 3. दीखता जो वह अचेतन, दृष्टि में आता न चेतन। कौन है फिर शत्रु मेरा, मित्र मैं किसको बनाऊं।। 4. मैं विभावों में पला हूं, मैं स्वभावों से छला हूं। ___ मैं स्वयं मेरे अहं को, आज चिन्मय में मिलाऊं ।। 5. सफल हो अभियान मेरा, अमल हो अवधान मेरा। देव तुलसी की शरण में, अमिट की लौ मैं जलाऊं।। लय : भावभीनी वन्दना..... संदर्भ : संसारपक्षीय माता साध्वी बालूजी के अनुरोध पर आचार्य तुलसी की अभिवंदना में रचित गीत गंगाशहर, आषाढ, वि.सं. 2028 चैत्य पुरुष जग जाए ॐ 8890385833668 245 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (40) आएं आएं हम आएं, अपने घर भीतर आएं। अपने घर भीतर आकर, हम सदा सुखी बन जाएं।। 1. मैं समझ रहा था तन को, यह मेरा अपना घर है, मैं समझ रहा था मन को, यह मेरा ही अनुचर है। पर टूट गया भ्रम मेरा, जीवन में ज्योति जगाएं।। 2. यह तन है पावन नौका, इससे भव-जल तरना है, यह नाविक मेरी आत्मा, इससे उद्यम करना है। प्रतिकूल हवा को अब हम, अपने अनुकूल बनाएं।। 3. मैं कौन कहां से आया, है और कहां पर जाना, क्या है मेरा अपना वह, मैंने न जिसे पहचाना। हम भूत और भावी से, अब वर्तमान में आएं।। 4. यह भूख-प्यास की पीड़ा, अब मुझको नहीं सताती, मैं केवल ज्ञाता-द्रष्टा, यह जलती चिन्मय बाती। संवेदन की भूमि से, ऊपर अब हम उठ पाएं।। 5. मैं मुक्त मृत्यु के भय से, ना मुझको व्याधि सताती, ना कष्ट मुझे अब छूते, चेतन धारा लहराती। अपना हित अपने द्वारा, यह मंत्र सतत दोहराएं।। 6. नाणं सरणं सरणं मे, सन्नाणं सरणं । सरणं, दंसण सरणं सरणं मे, सदसण सरणं सरणं। तप संयम शरणं शरणं, शरणागत हम बन जाएं।। 7. शरणं भगवं श्री वीरो, शरणं श्री गुरुवर शरणं, शरणं मम निर्मल आत्मा, शरणं रत्नत्रय शरणं। अत्राण रहे हम अब तक, अब त्राण स्वयं बन जाएं।। लयः इठलाना सब ही छोड़ो... संदर्भ : मुनि पांचीरामजी (मोमासर) का अनशन छापर, आषाढ़ कृष्णा 1, वि.सं. 2033 4630000 3 चैत्य पुरुष जग जाए Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (41) भैक्षव शासन के शृंगार, मानवता के व्याख्याकार। गण की आज बधाई लो गण की आभा बढ़ाई जो। 1. 'संघे शक्तिः कलौ युगे' यह, पाया मंत्र निधान, शिष्य वर्ग को दिया अनुत्तर, विद्या का वरदान । पहला पाठ व्यक्ति निर्माण, निखरा सबमें जीवन प्राण ।। गण की... 2. बढ़े चरण आगे अब गूंजा अणुव्रत का जयनाद, विस्मृत नैतिकता के स्वर ने पाया फिर संवाद । 'संयम ही जीवन' यह घोष उभरा नैसर्गिक संतोष।।। __ गण की.. 3. दो पैरों से नापा प्रायः सारा हिन्दुस्तान, जन साधारण से साधा सीधा संपर्क महान। की वैचारिक धार्मिक क्रान्ति, निकली जन मानस की भ्रान्ति।।। गण की... 4. परंपरा में परिवर्तन का मणि-कांचन संयोग, युग बदला बदला मानस भी, अभिनव किए प्रयोग। पहले मानव है इंसान, हिन्दू मुसलमान फिर मान ।। गण की... 5. नया मोड़ महिला जागृति का, खुला नया आयाम, रूढिविमुक्त समाज सृजन का, काम चला अविराम। पाया शाश्वत में युगबोध, युग की भाषा का अनुरोध।। । गण की... चैत्य पुरुष जग जाए 0 47 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. संघर्षों में प्रबल पराक्रम साहस का उत्कर्ष, भावात्मक संतुलन निरन्तर बना रहा आदर्श । जब भी आया विकट विरोध, समझा उसको सदा विनोद ।। ___ गण की... 7. धर्मक्रान्ति के पांच सूत्र ने दिया नया संदेश, । और साम्प्रदायिक समता का पंचपदी उन्मेष । बौद्धिक जन में धर्म प्रभाव, जागा जन-जन में सद्भाव ।। गण की... 8. आगम सूत्र वाचना सुन्दर, संपादन साक्षात, । युग चिंतन की रचनाओं से, आया नया प्रभात । है आश्वासन प्रेक्षाध्यान, शिक्षा में जीवन विज्ञान।। गण की... 9. युगप्रधान पद हुआ अलंकृत, पा जागृत व्यक्तित्व, श्रम, शिक्षा, समणी दीक्षा से चमक उठा कर्तृत्व। अमृत महोत्सव का उल्लास, 'महाप्रज्ञ' हो सतत विकास ।। ___ गण की... लय : नीले घोड़े रा असवार... संदर्भ : आचार्य तुलसी अमृत महोत्सव आमेट, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2042 48 चैत्य पुरुष जग जाए Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (42) स्वामी! शासनश्री बन तुम आए, गौरवमय चित्र बनाए, पाया जन-जन ने श्री वरदान है, हो ऋषिवर! भैक्षव गण को तुम पर अभिमान है। 1. तेरापंथ प्रवर्तक गुरु के शक्तिपात की रेखा, ऊर्ध्वारोहण की घटना को सबने सस्मय देखा। स्वामी ! पारसमणि गुरु की वाणी, मानव जीवन कल्याणी, परिवर्तन शाश्वत का संधान है।। 2. आर्य भिक्षु जय गणि की धारा के तुम सेतु बने हो, कनकोज्ज्वल इतिहास संघ का ऋषि तुम केतु बने हो। स्वामी! कैसी भीखण की माया, कैसा मंदार उगाया, देखो यह कुसुम सदा अम्लान है।। 3. जयाचार्य ने कहा--भिक्षु से मिलन नहीं हो पाया, शब्द शक्ति के माध्यम से तुमने साक्षात कराया। स्वामी! कैसा तर्कामृत प्याला, कैसा दृष्टान्त निराला, जीवन-यात्रा का नव अभियान है।। 4. संघ संपदा का संवर्धन दिन-दिन होता जाए, नए-नए उन्मेष प्रगति के आंखों में लहराए। स्वामी! शुभ साध्य मूर्त बन जाए, मृदुता नव जीवन पाए, कण-कण में कोमल कलि का तान है।। 5. आगमवेत्ता तत्त्वज्ञानी विश्रुत चर्चावादी, जीत सका है कौन हेम को, वचन स्वयं संवादी। स्वामी! कहलाए हेम हजारी, साधी गुरु से इकतारी, हर घट में बिंबित विद्यादान है।। चैत्य पुरुष जग जाए 49. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. सुन्दर तन था, सुन्दर मन था, सुन्दर रूप तुम्हारा, कायोत्सर्ग स्फटिक में तुमने अपना रूप निहारा । स्वामी! दीक्षा का पावन अवसर, उमड़ा है हर्ष समन्दर, संयममय जीवन ही अवदान है।। 7. जयाचार्य की कर्मभूमि, मघवा की जन्मस्थली है, वीर भूमि में दीक्षा द्विशती, गण की आस फली है। स्वामी! तुलसी गुरु की गहराई, नंदन वन सुषमा छाई, जय-जय 'महाप्रज्ञ' विजय संगान है, जय-जय ऋषि हेम विजय संगान है।। लय : संतां! शासण ओ स्वामीजी रो..... संदर्भ : हेम दीक्षा द्विशताब्दी बीदासर, माघ शुक्ला 13, वि.सं. 2053 - 50 mmmmmmmmmmmmwww चैत्य पुरुष जग जाए Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (43) साध्वी बालूजी श्रद्धामय आकार साध्वी बालूजी संयम ही साकार साध्वी बालूजी।। 1. जीवन में देखी हरियाली, सहज मिली इमरत की प्याली __गांव बना उपहार... 2. सूखी शाखा को भी देखा, अद्भुत है जीवन का लेखा पति वियोग का भार... 3. कहा पिता ने सुत जनमेगा, पर वह मेरा साथ न देगा चिन्ताकुल उद्गार... 4. माता बोली नहीं चाहिए, ऐसा बेटा नहीं चाहिए __ पति है प्राणाधार... 5. क्यों चिन्तातुर ? हुआ इशारा, बेटा देगा साथ तुम्हारा जुड़ा रहेगा तार... 6. पाला सुत को तन से मन से, प्राणार्पण से संचित धन से रोम रोम में प्यार... 7. योग बना पावन दीक्षा का, कालू गणपति की शिक्षा का तुलसी का उपकार... 8. अद्भुत आस्था अनुशासन में, सुरभित जीवन गण उपवन में सदा सुखद व्यवहार... 9. मालूजी का योग शिवंकर, और सुप्रभा आदि शुभंकर जागृत शुभ संस्कार... 10. यह शरीर है केवल नौका, यह विदेह साधन का मौका आत्मा ही बस सार... 11. मेरी उन्नति और प्रगति में, रही सहायक मति सम्मति में महाप्रज्ञ आभार... लय : धर्म की जय हो जय ... संदर्भ : संसारपक्षीय मां साध्वी बालूजी की तीसवीं वार्षिक पुण्य तिथि बीदासर, श्रावण कृष्णा अमावस्या (वि.सं. 2058) 20 जुलाई, 2001 चैत्य पुरुष जग जाए 8 510 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (44) समता का सुरतरु छाया, संयम के बाग में। मलयज सौरभ महकाया, बासंती राग में।। 1. सहज शांति की अविरल धारा, सहज क्रांति का अमल उजारा। किसने कब क्रोध निहारा, इस पुण्य पराग में।। 2. सहज विकस्वर मौन रहा है, शांत भाव से सकल सहा है। कटु वचन कभी न कहा है, नित लीन विराग में।। 3. उनसत्तर में जन्म लिया है, बर्मा में अधिवास किया है। क्षमता का अमृत पिया है, उपशान्त सुहाग में।। 4. धन्य भाग्य भैक्षव गण पाया, गुरु तुलसी का हाथ धराया। मधुकर का मन ललचाया, आनंद पराग में।। 5. बालूजी से ली वर शिक्षा, पन्नाजी से प्राप्त तितिक्षा। की अपनी आत्म-समीक्षा, अध्यात्म चिराग में।। 6. बनी अग्रणी शासनश्री हैं, मौसी साध्वीप्रमुखा की है। गणनायक की भगिनी है, आस्था परभाग में।। 7. अहंकार का कोई लेखा, आकांक्षा की कोई रेखा । मैंने तो कभी न देखा, मन अर्पित त्याग में।। 8. ऋजुता की यह गौरव-गाथा, श्रद्धा से झुकता है माथा। मृदुता ने लेख लिखा था, उत्तम आयाग में।। 9. पूर्वाग्रह की कथा नहीं है, पर वार्ता की व्यथा नहीं है। छलना को स्थान नहीं है, अपने संभाग में।। 10. अद्भुत सेवा मन को भाती, सात्विक श्रद्धा सहज लभाती। श्री भैक्षव गण की थाती, कण-कण प्रतिभाग में।। 11. हम सब हैं गण के आभारी, हम सब तुलसी के आभारी। 'महाप्रज्ञ' केसर की क्यारी, साध्वी मालू है न्यारी, आत्मिक अनुराग में।। लयः रहमत के बादल छाए... संदर्भ : आचार्य तुलसी के निर्देश पर संसारपक्षीया भगिनी साध्वी मालूजी के बारे में रचित गीत __ लाडनूं, फाल्गुन शुक्ला 2, वि.सं. 2052 528 चैत्य पुरुष जग जाए Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (45) पन्नाजी की जीवन-गाथा, पावन हम सब मिलकर गाएं। जप-तप की है महिमा जग में, जप-तप को हम आज बधाएं।। 1. जीवन की पोथी का देखा, पन्ना सदा खुला है। संयम के इस वृत्त चित्र में, तप का रंग घुला है।। पन्नाजी की जीवन गाथा... 2. संघ भक्ति की शक्ति अलौकिक, निर्मल जल की धारा। बालू मालू ने पाया था, जिसका सदा सहारा।। पन्नाजी की जीवन गाथा... 3. दीर्घ तपस्या, दिव्य तपस्या, दिव्य संपदा पाई। देखी अद्भुत जन मानस में, आस्था की गहराई।। पन्नाजी की जीवन गाथा... 4. ध्यान जाप में रात बीतती, सेवा करती दिन में। गाय दूझती-सी लगती थी, जागरूक छिन-छिन में।। पन्नाजी की जीवन गाथा... 5. अहंकार का लेश नहीं था, यश का ध्वज लहराया। 'महाप्रज्ञ' शासन गौरव का, गुरु ने गौरव गाया।। पन्नाजी की जीवन गाथा... लयः तेरे पग-पग पर खतरा है राही... संदर्भ : दिव्य तपस्विनी साध्वी पन्नाजी का स्मृति दिवस लाडनूं, कार्तिक कृष्णा 9, वि.सं. 2057 रुष जग जाए 3 53 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (46) आने का मेरा लक्ष्य है, मैं जीवन सफल बनाऊं जीवन सफल बनाऊं, मैं पावन बन जी पाऊं।। 1. शक्तिपीठ यह नैतिकता का, स्वस्थ समाज बनेगा, नैतिकता से ही जन-जन में, शान्ति बीज पनपेगा। यह सामाजिक आधार रे है सदाचार का सार रे शाश्वत का संगीत सुनूं, फिर नीति-निष्ठ बन जाऊं रे।। - आने का मेरा... 2. शक्तिपीठ यह संयम का है, 'संयम ही जीवन है', संयम की आस्था में अर्पित, होगा यह तन मन है। श्री तुलसी का अवदान रे तुलसी मेरे भगवान रे तुलसी की जप माला में, मैं सहज लीन हो जाऊं रे।। आने का मेरा... 3. तंत्र मंत्र के पीठ बहुत हैं, यह तो पीठ निराला, इसके प्रांगण में कोई है, जनता का रखवाला। है सच्चाई का मंत्र रे है अनुशासन का तंत्र रे एक नया प्रस्थान हुआ है, आगे चरण बढ़ाऊं रे।। __ आने का मेरा... लय : स्वामीजी! थांरी साधना री मेरु-सी ऊंचाई... संदर्भ : आचार्य तुलसी शक्तिपीठ का लोकार्पण 14 दिसम्बर 2000 300 - 00800388888888888888009002023 8 5438800000000000000000000 88888888888888 20 चैत्य पुरुष जग जाए Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्य पुरुष जग जाए (47) गाथा गुण-गौरव जीवन आभा उजले-उजले मन कमलूजी धवल कमल चादर उजली ओढी वर सौरभ मलयज चंदन संयम में गहरी जन-जन में सहज महिमा मृदुता के जैसी । वैसी । शासन गौरव सम्मान मिला । सेवा का सुरभित सुमन खिला । सुषमा समता के सावन की ।। की । की । । की ।। निष्ठा है । प्रतिष्ठा है। आसन की ।। वाणी का संयम अनुपम है। श्रम ही कौशल का आश्रम है। शोभा है गण नंदनवन की । । सर्दी झेली गर्मी दृष्टान्त बनी जीवन यह कुशल विभूति तपोधन आनन्द अमित कृति 'महाप्रज्ञ' बस आत्मा का ही ज्ञान बस आत्मा का ही ध्यान हो भेद-बुद्धि तन -चेतन झेली । शैली। की । । रहे । रहे । की ।। ॐ शांति शांति हो भीतर में अपने घर में ।। अभिनन्दन की ।। लय: जय बोलो मघवा - गणिवर की... संदर्भ : शासन गौरव साध्वी कमलूजी के प्रति बीदासर, 1 अगस्त, 2001 55 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (48) यह सुन्दर अवसर आया 1 मस्तिष्क मनुज का पाया है। निर्मल मन निर्मल काया है ।। 1. जीवन की पोथी के पहले पन्ने में, मैत्री मंत्र लिखो । सिर-दर्द समूल मिटाने . का, यह सुन्दर... ।। 1 आत्मा की पोथी पढ़ने का सोपान यही है चढ़ने का संवत्सर का संदेश सुनें, 2. भूलो, भूलो, उसको भूलो, जो कटुता का व्यवहार हुआ। जीवन को सरस बनाने का, यह सुन्दर... ।। , 3. खोलो अब वैर विरोधों की गांठें जो घुलती आई हैं। तन मन को स्वस्थ बनाने का, यह सुन्दर... ।। 4. क्यों खोज शांति की बाहर में, वह अपने मन की छाया है । उपशम की शक्ति बढ़ाने का, यह सुन्दर... ।। 5. सहना सीखो, कहना सीखो, रहना सीखो दिनचर्या में । मृदुता की ज्योति जलाने का, यह सुन्दर... ।। 6. हो वार्षिक आत्म निरीक्षण भी, क्या खोया है, क्या पाया है। वीर्य जगाने का........।। आत्मा का 56 7. जो अन्तर्दर्शन पाएगा, वह अपनी आत्मा को पाने 'महाप्रज्ञ' का कहलाएगा। यह लय: जिसके मन में हरि नाम बसे... संदर्भ : संवत्सरी महापर्व बीदासर, 23 अगस्त, 2001 सुन्दर...।। चैत्य पुरुष जग जाए Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वोत्तम