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(38) आवरणों के सघन तिमिर में जिसने सत्य निहारा,
अद्भुत नेत्र तुम्हारा। संयम ही जीवन है, अभिनव जीवन की परिभाषा, उसके हर अक्षर में अंकित, है युग की अभिलाषा। राजनीति के समरांगण में, संयम बना सहारा।। 1 ।। संयम बरतो संयम बरतो, बुश ने भी दोहराया, हिन्द पाक के नेताओं के, सत्य समझ में आया। संयम ही है सूत्र शान्ति का, सहज बजा इकतारा।। 2 ।। नैतिकता से शून्य धर्म से, अणुव्रत का उद्भव है, शान्ति समन्वित धर्मक्रान्ति का, यह अनुपम अनुभव है। सत्य शोध के प्रवर पुरोधा, जग को मिला उजारा।। 3 ।। पहला पद है सम्प्रदाय का, यह विग्रह का अथ है, पहला पद हो प्रवर धर्म का, वही शान्ति का रथ है। उस वाणी से हुई प्रवाहित, आत्मशुद्धि की धारा।। 4 ।। जीवन से दर्शन को नापा, दर्शन को जीवन से, जीवन से दर्शन की दूरी, सिमट गई बचपन से। जिस पथ पर तुम चले, वही पथ देखा एक किनारा।। 5 ।।
ओ माली! क्या भूल गए, यह तेरा नन्दनवन है, हर शाखा पर हर पत्ते पर, तेरा ही स्पन्दन है। जड़ को सींचो इस गाथा से, सबको मिला सहारा।। 6 ।। शब्दों की सीमा असीम को, कैसे शब्द बनाएं, उस अगम्य को स्थूल दृष्टि से, कैसे गम्य बनाएं। 'महाप्रज्ञ' तुलसी की लय में, झूम रहा जग सारा।। 7 ।।
लय : संयममय जीवन हो... संदर्भ : आचार्य तुलसी पंचम पुण्य तिथि, अहमदाबाद
आषाढ़ कृष्णा 3, वि. संवत् 2059
0443
33389चैत्यप रुष जग जाए
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