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6. सुन्दर तन था, सुन्दर मन था, सुन्दर रूप तुम्हारा, कायोत्सर्ग स्फटिक में तुमने अपना रूप निहारा ।
स्वामी! दीक्षा का पावन अवसर, उमड़ा है हर्ष समन्दर, संयममय जीवन ही अवदान है।।
7. जयाचार्य की कर्मभूमि, मघवा की जन्मस्थली है, वीर भूमि में दीक्षा द्विशती, गण की आस फली है।
स्वामी! तुलसी गुरु की गहराई, नंदन वन सुषमा छाई, जय-जय 'महाप्रज्ञ' विजय संगान है, जय-जय ऋषि हेम विजय संगान है।।
लय : संतां! शासण ओ स्वामीजी रो.....
संदर्भ : हेम दीक्षा द्विशताब्दी बीदासर, माघ शुक्ला 13, वि.सं. 2053
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चैत्य पुरुष जग जाए
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