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________________ (32) प्रभो! तुम्हारे पदचिह्नों पर हम आगे बढ़ते जाएं रहें रक्षिता, बनें रोहिणी हर तरुवर को सफल बनाएं प्रभो!... 1. आत्मशुद्धि का जहां प्रश्न है संप्रदाय का मोह न हो विश्व शांति का सूत्र तुम्हारा मंत्र कहो या तंत्र कहो बहुत जरूरी इसका आशय विश्ववृत्त को हम समझाएं प्रभो!... 2. व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म समाया, जात-पांत का भेद न हो, कलह शमन का सूत्र तुम्हारा कहीं घृणा का स्वेद न हो, मनुज एकता का स्वर गूंजे सब मिल मैत्री दिवस मनाएं प्रभो!... 3. सही हार्द आगे बढ़ने का आत्म निरीक्षण साथ चले रुकें जहां रुकना आवश्यक तम ना व्यापे दीप तले सिंहालोकन की पद्धति को जीवन का नवनीत बनाएं प्रभो!... 4. सागरवर गंभीर बनें हम सहन शक्ति बढ़ती जाए साधु-संघ की महिमा प्रतिदिन प्रगति शिखर चढ़ती जाए अनुशासन की सुरसरिता में तन को मन को नित नहलाएं प्रभो!... 5. प्रेक्षा का अभ्यास सघनतम आत्म शुद्धि का हेतु बने तुलसी का वरदान अणुव्रत नव विकास का सेतु बने 'महाप्रज्ञ' प्रेक्षा भूमि में अभय अहिंसा बीज उगाएं प्रभो!... धुन : प्रभो! तुम्हारे पावन पथ पर... संदर्भ : विकास महोत्सव, प्रेक्षा विश्व भारती, अहमदाबाद, भाद्रव शुक्ला 9, वि. संवत् 2059 10 3800% M000000002 चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org . .
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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