________________
(33)
कैसी वह कोमल काया रे, महाप्राण गुरुदेव ! पुष्पों ने शीश झुकाया रे, महाप्राण गुरुदेव! कंचन-सी कोमल काया रे, महाप्राण गुरुदेव! 1. कानों की छटा निराली, आंखें इमरत की प्याली,
किस ने सौंदर्य सझाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 2. माधुर्य कंठ में घोला, ममता को किसने तोला,
वात्सल्य मूर्त बन पाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 3. तुमने जो ग्रन्थ गढ़ा है, वह सबके शीश चढ़ा है
शाश्वत का स्वर गहराया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 4. शासन को खूब संवारा, अनुशासन गजब निहारा,
शीतल शीतल-सी छाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 5. जीवन-भर काम करूंगा, गण का भंडार भरूंगा,
संकल्प अटूट निभाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 6. श्रम पल-पल अविकल चलता, अनुभव का सुरतरु फलता,
पौरुष का मूल्य बढ़ाया रे, महाप्राण गुरुदेव! 7. जग परिवर्तन का प्यासा, तुमसे थी उसको आशा,
यह कैसा दृश्य दिखाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 8. तुलसी यह नाम पियारा, तुलसी का नाम सहारा,
अद्भुत सौरभ महकाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 9. तुम भिन्न देह से स्वामी, आत्मा के अन्तर्यामी,
जागृति का पाठ पढ़ाया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 10. तुम जीवन के निर्माता, प्रभु! मेरे भाग्य-विधाता,
है अलख अगोचर माया रे, महाप्राण गुरुदेव ! 11. गुरुवर की बढ़े प्रतिष्ठा, यह 'महाप्रज्ञ' की निष्ठा, जय विजय-ध्वज लहराया रे, महाप्राण गुरुदेव !
लय : दीपां वाले नंद..... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस गंगाशहर, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2054
चैत्य पुरुष जग जाए 38000
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org