SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (40) आएं आएं हम आएं, अपने घर भीतर आएं। अपने घर भीतर आकर, हम सदा सुखी बन जाएं।। 1. मैं समझ रहा था तन को, यह मेरा अपना घर है, मैं समझ रहा था मन को, यह मेरा ही अनुचर है। पर टूट गया भ्रम मेरा, जीवन में ज्योति जगाएं।। 2. यह तन है पावन नौका, इससे भव-जल तरना है, यह नाविक मेरी आत्मा, इससे उद्यम करना है। प्रतिकूल हवा को अब हम, अपने अनुकूल बनाएं।। 3. मैं कौन कहां से आया, है और कहां पर जाना, क्या है मेरा अपना वह, मैंने न जिसे पहचाना। हम भूत और भावी से, अब वर्तमान में आएं।। 4. यह भूख-प्यास की पीड़ा, अब मुझको नहीं सताती, मैं केवल ज्ञाता-द्रष्टा, यह जलती चिन्मय बाती। संवेदन की भूमि से, ऊपर अब हम उठ पाएं।। 5. मैं मुक्त मृत्यु के भय से, ना मुझको व्याधि सताती, ना कष्ट मुझे अब छूते, चेतन धारा लहराती। अपना हित अपने द्वारा, यह मंत्र सतत दोहराएं।। 6. नाणं सरणं सरणं मे, सन्नाणं सरणं । सरणं, दंसण सरणं सरणं मे, सदसण सरणं सरणं। तप संयम शरणं शरणं, शरणागत हम बन जाएं।। 7. शरणं भगवं श्री वीरो, शरणं श्री गुरुवर शरणं, शरणं मम निर्मल आत्मा, शरणं रत्नत्रय शरणं। अत्राण रहे हम अब तक, अब त्राण स्वयं बन जाएं।। लयः इठलाना सब ही छोड़ो... संदर्भ : मुनि पांचीरामजी (मोमासर) का अनशन छापर, आषाढ़ कृष्णा 1, वि.सं. 2033 4630000 3 चैत्य पुरुष जग जाए For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy