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(44) समता का सुरतरु छाया, संयम के बाग में।
मलयज सौरभ महकाया, बासंती राग में।। 1. सहज शांति की अविरल धारा, सहज क्रांति का अमल उजारा।
किसने कब क्रोध निहारा, इस पुण्य पराग में।। 2. सहज विकस्वर मौन रहा है, शांत भाव से सकल सहा है।
कटु वचन कभी न कहा है, नित लीन विराग में।। 3. उनसत्तर में जन्म लिया है, बर्मा में अधिवास किया है।
क्षमता का अमृत पिया है, उपशान्त सुहाग में।। 4. धन्य भाग्य भैक्षव गण पाया, गुरु तुलसी का हाथ धराया।
मधुकर का मन ललचाया, आनंद पराग में।। 5. बालूजी से ली वर शिक्षा, पन्नाजी से प्राप्त तितिक्षा।
की अपनी आत्म-समीक्षा, अध्यात्म चिराग में।। 6. बनी अग्रणी शासनश्री हैं, मौसी साध्वीप्रमुखा की है।
गणनायक की भगिनी है, आस्था परभाग में।। 7. अहंकार का कोई लेखा, आकांक्षा की कोई रेखा ।
मैंने तो कभी न देखा, मन अर्पित त्याग में।। 8. ऋजुता की यह गौरव-गाथा, श्रद्धा से झुकता है माथा।
मृदुता ने लेख लिखा था, उत्तम आयाग में।। 9. पूर्वाग्रह की कथा नहीं है, पर वार्ता की व्यथा नहीं है।
छलना को स्थान नहीं है, अपने संभाग में।। 10. अद्भुत सेवा मन को भाती, सात्विक श्रद्धा सहज लभाती।
श्री भैक्षव गण की थाती, कण-कण प्रतिभाग में।। 11. हम सब हैं गण के आभारी, हम सब तुलसी के आभारी। 'महाप्रज्ञ' केसर की क्यारी, साध्वी मालू है न्यारी,
आत्मिक अनुराग में।।
लयः रहमत के बादल छाए... संदर्भ : आचार्य तुलसी के निर्देश पर संसारपक्षीया भगिनी साध्वी मालूजी के बारे में रचित गीत
__ लाडनूं, फाल्गुन शुक्ला 2, वि.सं. 2052
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चैत्य पुरुष जग जाए
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