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दरस गुरुराज का रे! है उत्सव का दिन आज, दरस गुरुराज का रे!
है तुम पर सबको नाज, दरस गुरुराज का रे! 1. प्रश्नों की है शृंखला रे, उत्तर दो गुरुराज! उत्सुक सुनने को सभी हम, चिर परिचित आवाज।।
' दरस गुरुराज का रे! 2. दृश्य जगत से क्यों हुआ रे, सहसा देव! विराग, सूक्ष्म जगत से क्यों किया रे, इक पल में अनुराग।।
दरस गुरुराज का रे! 3. जागरूक जीवन रहा रे, अर्पित गण को प्राण, भूल गये? कैसे कहूं मैं, ओ तन-मन के त्राण।।
दरस गुरुराज का रे! 4. अनुशासन की उर्वरा में, जो बोये थे बीज, शत शाखी वे हो रहे हैं, कैसी अनुपम रीझ।।
दरस गुरुराज का रे! 5. अणुव्रत के विस्तार से रे, जुड़ा हुआ था तार, चाहते थे तुम देखना रे, एक नया संसार।।
दरस गुरुराज का रे! 6. अणुव्रत का जो चल रहा है, क्या उससे संतुष्ट ? क्यों न उपस्थित हो सभा में, करते उसको पुष्ट।।
दरस गुरुराज का रे! 7. 'जैन धर्म जन धर्म हो' यह सपना अब साकार, __ धर्म क्रांति की धारणा का, मुक्त हुआ है द्वार।।
दरस गुरुराज का रे! 8. आगम की आराधना में, आए नव उच्छ्वास, वत्सलता जो बरसती रे, हो उसका आभास ।।
___दरस गुरुराज का रे! 9. महाप्रज्ञ में तुलसी देखें, सिद्ध हुआ मंतव्य, तुलसी का पदचिह्न प्रतिक्षण, हम सबका गंतव्य।।
दरस गुरुराज का रे! लय : कीड़ी चाली सासरे रे... संदर्भ : आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस सुजानगढ, आषाढ़ कृष्णा 3, वि.सं. 2056 3
चैत्य पुरुष जग जाए
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