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1. जन्म तुम्हारा सिंह लगन में, साक्षी पौरुष गाथा, सिंह तुल्य विक्रम के सम्मुख, झुक जाता है माथा । झंझावातों में नहीं कभी जो हारा ।।
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तुलसी स्वामी रे ! मंगल नाम तुम्हारा । अंतर्यामी रे ! मेरा सबल सहारा ।। तुलसी स्वामी रे !
2. शहर लाडनूं पावन भूमि, झूमर कुल बलशाली, विक्रम संवत् इकहत्तर में जन्मा वह गणमाली । वदना - आंगण में उदित हुआ ध्रुवतारा ।।
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3. शैशव - वय में गुरु कालू कर
4. ग्यारह वर्षों तक शिक्षा, दीक्षा के
प्रतिभा उभरी, जीवन वन महकाया, शीश धरा कर, मुनिवर का पद पाया। भैक्षव शासन का भावी भव्य सितारा ।।
गुरुवर के इंगित को आराधा, कौशल से परम लक्ष्य को साधा । सहज समर्पण से जीवन खूब निखारा ।। 5. शिक्षक का दायित्व संभाला, सोलह वर्ष अवस्था, लघुवय में ही प्रिय अनुशासन, प्रिय थी सदा व्यवस्था । आत्मोदय का रे ! होता कहां किनारा ।।
6. इचरज है बाईस वर्ष में, तेरापथ अनुशास्ता, नवमासन ने प्रगति शिखर का, खोला सीधा रास्ता । हुई प्रवाहित रे! नव चिन्तन की धारा ।।
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7. धर्म क्रांति का शंखनाद कर, सोया विश्व जगाया, अणुव्रत की आचार-संहिता का गौरव गहराया ।
सघन तमिस्रा में अद्भुत आज उजारा ।।
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8. वर्ण, जाति या एक जाति मानव
संप्रदाय के रूढिवाद को तोड़ा, की, मानव से मानव को जोड़ा। मंजुल मंजुल है मानव धर्म नजारा ।।
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चैत्य पुरुष जग जाए
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