SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (30) उजाला, तुलसी का उपकार। अनुपम मनहर आभामण्डल एक नया अवतार। उजाला, तुलसी का उपकार।। 1. नई कल्पना, नूतन सपना, सपना बन जाता था अपना, खपना ही हो जाता जपना, भाग्य और श्रम की बूंदों से हर सपना साकार ।। उजाला.... 2. मानव भूल गया है रास्ता, हिंसा को अर्पित है आस्था, आवश्यक तुलसी-सा शास्ता, सम्प्रदाय की कट्टरता से धूमिल जब संस्कार ।। उजाला.. 3. नैतिकता का मान नहीं है, अपनी भी पहचान नहीं है, जीवन का विज्ञान नहीं है, विष का घट, ढक्कन इमरत का, है दोहरा व्यवहार।। उजाला.... 4. आज आदमी बहुत पुराना, मुश्किल है मंजिल तक जाना, समाधान भी है अनजाना, जन्म नये मानव का हो अब, हो अभिनव आचार ।। उजाला. 5. दो विकास की अद्भुत भाषा, दिव्य लोक से ही है आशा, सूख रहा जल, मानव प्यासा, 'महाप्रज्ञ' जन-जन मानेगा गुरुवर का आभार।। उजाला.... लय : निहारा तुमको कितनी बार.... __ संदर्भ : विकास महोत्सव लाडनूं, भाद्रव शुक्ला 9, वि.सं. 2057 *368 चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy