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संघ में मर्यादा, जीवन का आश्वास। संघ में मर्यादा, अंतर का उच्छ्वास । श्वास-श्वास में गण-गणी यह, श्वास बना विश्वास संघ में मर्यादा, जीवन का आश्वास।। 1. लिखा लेख जब भिक्षु ने तब, बोल उठा आकाश ।
साधु साधु अनुशासना की, कंठ-कंठ में प्यास ।। 2. जिनवाणी की लेखनी से, अक्षर का विन्यास। ___ आस्था की स्याही अमलतम, प्रकटा दिव्य प्रकाश ।। 3. संतो! क्या तुम चाहते हो, मर्यादा में वास।
सबने सहमति सहज दी, तब बदल गया इतिहास ।। 4. मर्यादा के मंत्र से ही, फलता है संन्यास ।
भारिमाल के मुकुट का मणि, तीन दिवस उपवास ।। 5. जीत! चतुर्विध अशन का है, त्याग बिना आयास ।
आलोचन को आ गए झट, हेम रायऋषि पास ।। 6. दीर्घकाल नेतृत्व के प्रति, वृद्धिंगत उल्लास।
आकर्षण बढ़ता रहे, यह अचरज का आभास ।। 7. मर्यादा की सजगता में, महक उठा मधुमास।
तुलसी यश का मंजु मलयज, फैली सरस सुवास ।। 8. श्रम सेवा सहयोग का हो, नैसर्गिक अभ्यास ।
भैक्षव शासन की प्रणाली, पाए अतुल विकास ।। 9. आत्म नियंत्रण की जगे अब, जन-जन में अभिलाष।
'महाप्रज्ञ' बढ़ता रहे, गण-नंदन वन का व्यास ।।
लय : वंदना लो झेलो...
संदर्भ : मर्यादा महोत्सव लाडनूं, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2052
चैत्य पुरुष जग जाए
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