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(18) देखो मर्यादा की महिमा, कैसी गण की सुषमा छाई। देखो अनुशासन की गरिमा, कैसी आस्था की अरुणाई।। 1. मर्यादा है स्रोत शक्ति का, आर्य भिक्षु की वाणी।
माला के हर मनके में है, भीखण की सहनाणी।। 2. जिन आज्ञा का मुकुट बनाकर, अपने शीश चढ़ाया।
निज पर शासन फिर अनुशासन, का ध्वज तब लहराया।। 3. विनय मूल है सुमति-सुगति का, देखा सत्य नवेला ।
गुरु-गुरु, चेला-चेला साक्षी, भारिमाल का तेला।। 4. निष्ठा की स्याही से देखो, लिखित पत्र यह सारा।
अक्षर-अक्षर में अंकित है, एक-एक ध्रुव-तारा।। 5. जयाचार्य की सूझ-बूझ का, धर्मसंघ आभारी।
मर्यादा का महा महोत्सव, नई कल्पना सारी।। 6. नव-नव चिंतन और योजना, गण का तेज बढ़ा है।
तुलसी का कर्तृत्व बोलता, युग ने पाठ पढ़ा है।। 7. प्रतिपल है गुरु पास हमारे, हो चिन्तन की धारा।
इस प्रायोगिक आयोजन का, कैसा स्पष्ट इशारा।। 8. चारुवास आचार्यवास है, द्रोणाचार्य निवासी।
ताल और पर्वत देवानी, प्रज्ञा के अभ्यासी।। 9. गण का यह वटवृक्ष निरंतर, व्यापक बनता जाए। 'महाप्रज्ञ' तुलसी की आभा, आत्मा में रम जाए।।
लय : दुनियां राम नाम नहीं जाणै...
संदर्भ : मर्यादा महोत्सव चाड़वास, माघ शुक्ला 7, वि.सं. 2053
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2003
चैत्य पुरुष जग जाए
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