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जिसकी आज जरूरत उसने क्यों पहले अवतार लिया ? मंद चांदनी चंदा की क्यों सूरज को उपहार दिया ? जिसकी आज...
1. तुम आये तब इस धरती ने अपना रूप संवारा था, मनुज - एकता की वाणी से उसको मिला सहारा था । मानव अपना भाग्य विधाता पौरुष को आधार दिया । ।
जिसकी आज....
2. जटिल समस्या के इस युग को उस युग से कैसे तोलें, हिंसा से बहरी दुनिया में बोलें तो कैसे बोलें। पोत कहां वह जिससे तुमने इस सागर को पार किया ? जिसकी आज....
3. करुणा का जल सूख रहा है, दुर्लभ पीने का पानी, बना रहा बाजार आज के ज्ञानी को भी अज्ञानी । भोगवाद के महारोग का प्रभु कैसे उपचार किया ? जिसकी आज...
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4. उतरो, उतरो हे करुणाकर ! हृदयांगण में तुम उतरो, अभय-मंत्र के उद्गाता अणु-युग के भय को दूर करो मैत्री की निर्मल धारा ने शांति-शोध को द्वार दिया । । जिसकी आज...
5. ऋद्धि-सिद्धि का वर दो, वर दो, वर्धमान का पद पाएं, सहनशील बन विक्रमशाली महावीर हम बन जाएं। अनेकांत ने निराकार को पल भर में आकार दिया । । जिसकी आज...
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लय : बाजरे री रोटी पोई
संदर्भ : महावीर की 2600वीं जयंती गंगाशहर, 7 अप्रैल, 2001
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चैत्य पुरुष जग जाए
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