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(3) समता के शाश्वत स्वर की अभिनव झंकार हो। वीणा के हर कंपन में नूतन संसार हो। वह अनेकान्त की शैली मेरा आचार हो,
वह जैनी जीवनशैली मेरा व्यवहार हो। 1. तुमने निहारा जग को, भीतर की आंख से, वह आंख अनुत्तरयोगी, मेरा आधार हो।।
समता के शाश्वत स्वर की... 2. मैं भी निहारूं निज को, अपनी ही आंख से, ___ उस अमिट ज्योति की लय में, चिन्मय का तार हो।।
समता के शाश्वत स्वर की... 3. तुम आत्मविद् आत्मा से, जीवन निष्णात हो, ___ वह वर्धमान की आस्था मेरा संस्कार हो।।
समता के शाश्वत स्वर की... 4. तुम वीतराग पद की अध्यात्म गाथा हो, यह 'महाप्रज्ञ' की प्रज्ञा, रक्षा प्राकार हो।।
समता के शाश्वत स्वर की...
लय : प्रभु पार्श्वदेव चरणों में...
संदर्भ : महावीर जयंती गंगाशहर, 7 अप्रैल, 2001
चैत्य पुरुष जग जाए
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