________________
(1)
ॐ ऋषभाय नमः ॐ
ऋषभ वृषभ की संस्कृति ने ही युग को दिया सहारा अद्भुत तेज तुम्हारा ।।
1. कृषि की विद्या दे बन पाए, मसि की विद्या दे बन पाए, असि विद्या ने आर्थिक जग को भय से सदा उबारा ।। ॐ ....
2. खाने को रोटी है सब कुछ है व्यापार व्यवस्था और सुरक्षा तंत्र प्रबल है, सुखदा सफल अवस्था । चरित बिना सब अर्थहीन, यह तुमने सत्य निहारा ।। ॐ ...
धाता और विधाता, जीवन के निर्माता ।
3. आत्मा का विज्ञान नहीं, तब कैसे चरित फलेगा धत्तूरे का बीज उप्त वह, आम कहां से देगा ? चेतन का संधान जरूरी, चमका एक सितारा ।। ॐ....
4. आत्मा के तुम प्रथम प्रवक्ता, चित्र पूर्ण बन पाया, तुम विदेह बन रहे देह में, तप का तेज बढ़ाया। वर्षीतप के आदि पुरुष तुम, तप ने रूप निखारा ।। ॐ ...
5. चंचलता का करें विसर्जन, स्वयं स्वयं को जानें, संयम के निर्मल दर्पण में, अपने को पहचानें, 'महाप्रज्ञ' ऋषभाय नमः ॐ जग में हुआ उजारा। 'महाप्रज्ञ' ऋषभाय नमः ॐ सबको मिला किनारा ।। ॐ ...
चैत्य पुरुष जग जाए
Jain Education International
लय : संयममय जीवन हो
संदर्भ : अक्षय तृतीया श्रीडूंगरगढ़, 26 अप्रैल, 2001
For Private & Personal Use Only
5
www.jainelibrary.org