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चैत्य पुरुष जग जाए
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गाथा गुण-गौरव जीवन आभा उजले-उजले मन
कमलूजी धवल कमल चादर उजली ओढी
वर सौरभ मलयज चंदन
संयम में गहरी
जन-जन में सहज महिमा मृदुता के
जैसी ।
वैसी ।
शासन गौरव सम्मान
मिला ।
सेवा का सुरभित सुमन खिला । सुषमा समता के
सावन
की ।।
की ।
की । ।
की ।।
निष्ठा है । प्रतिष्ठा है।
आसन की ।।
वाणी का संयम अनुपम है। श्रम ही कौशल का आश्रम है। शोभा है गण नंदनवन
की । ।
सर्दी झेली गर्मी दृष्टान्त बनी जीवन यह कुशल विभूति तपोधन
आनन्द अमित
कृति 'महाप्रज्ञ'
बस आत्मा का ही ज्ञान बस आत्मा का ही ध्यान हो भेद-बुद्धि तन -चेतन
झेली ।
शैली।
की । ।
रहे ।
रहे ।
की ।।
ॐ शांति शांति हो भीतर में
अपने घर में ।। अभिनन्दन की ।।
लय: जय बोलो मघवा - गणिवर की... संदर्भ : शासन गौरव साध्वी कमलूजी के प्रति बीदासर, 1 अगस्त, 2001
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