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________________ चैत्य पुरुष जग जाए Jain Education International (47) गाथा गुण-गौरव जीवन आभा उजले-उजले मन कमलूजी धवल कमल चादर उजली ओढी वर सौरभ मलयज चंदन संयम में गहरी जन-जन में सहज महिमा मृदुता के जैसी । वैसी । शासन गौरव सम्मान मिला । सेवा का सुरभित सुमन खिला । सुषमा समता के सावन की ।। की । की । । की ।। निष्ठा है । प्रतिष्ठा है। आसन की ।। वाणी का संयम अनुपम है। श्रम ही कौशल का आश्रम है। शोभा है गण नंदनवन की । । सर्दी झेली गर्मी दृष्टान्त बनी जीवन यह कुशल विभूति तपोधन आनन्द अमित कृति 'महाप्रज्ञ' बस आत्मा का ही ज्ञान बस आत्मा का ही ध्यान हो भेद-बुद्धि तन -चेतन झेली । शैली। की । । रहे । रहे । की ।। ॐ शांति शांति हो भीतर में अपने घर में ।। अभिनन्दन की ।। लय: जय बोलो मघवा - गणिवर की... संदर्भ : शासन गौरव साध्वी कमलूजी के प्रति बीदासर, 1 अगस्त, 2001 For Private & Personal Use Only 55 www.jainelibrary.org
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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