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________________ (24) साधना का पथ तुम्हारा, देव! कैसे खोज पाएं। और किस आराधना से, संघनिष्ठा को बढ़ाएं।। भिक्षु तुमने जो दिया है, संघ ने तुमसे लिया है। उस अमर अनुशासना की, वर्णमाला को पढ़ाएं।। 1 ।। दूर को तुमने सहा है, निकट को भी तब सहा है। शक्ति का वह मंत्र गुरुवर ! आज हम सबको बताएं।। 2 ।। ताप को तुमने सहा है, भूख को तुमने कहा है। शक्ति के उस पीठ पर अब, सिद्धि का गुर समझ पाएं।। 3 ।। सोचता हूं वह सही है, सीख का अवसर नहीं है। क्या नहीं मैं जानता जो, दूसरे मुझको सिखाएं।। 4 ।। सीख दे वह तो बया है, और यह बंदर नया है। मान की आंधी थमे अब, विनय का दीपक जलाएं।। 5 ।। विष अमृत बनता विनय से, वर विधायक भाव लय से। फिर निषेधात्मक प्रकृति से, अमृत को विष क्यों बनाएं।। 6 ।। हो अहिंसा का प्रखर स्वर, सुन सके हर मनुज हर घर। चेतना के तार सारे, दृष्टि बल से झनझनाएं।।7।। बीज बोया क्रांति का जो, फल मिला वह शांति का जो। आर्य तुलसी का अनुग्रह, सफल हो सब कल्पनाएं।। 8।। मुंबई में हम प्रवासी, संघ का मानस प्रवासी। है प्रतीक्षा में प्रणत सब, भाव से सबको बुलाएं।। ७ ।। सिद्ध मर्यादा महोत्सव, सफल हो हर समय हर लव। सिद्ध मर्यादा महोत्सव, सफल हो 'महाप्रज्ञ' हर लव। मुंबई के सिंधु तट पर, संघ को शिखरों चढ़ाएं।। 10।। संत सत्तावन यहां हैं, बानवें सतियां यहां हैं। समणियां नब्बे यहां हैं, समण चारों ही यहां हैं। एकता का सूत्र गण में, नित नई खोले दिशाएं।। 11 ।। लय : लक्ष्य है ऊंचा हमारा... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव, मुंबई, माघ शुक्ला 7, वि. संवत् 2059 चैत्य पुरु रुष जग जाए 2 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003114
Book TitleChaitya Purush Jag Jaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherSarvottam Sahitya Samsthan Udaipur
Publication Year2003
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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