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(23) तुम बनो पुजारी, देखो मर्यादा प्रभु अवतार है • जन-जन आभारी भैक्षव-शासन का यह उपहार है
तुम बनो पुजारी... 1. दुर्लभ है मर्यादा रचना दुर्लभतर है निष्ठा निष्ठा से ही मर्यादा की होती प्राण प्रतिष्ठा रे
तुम बनो पुजारी... 2. देव! बताओ कैसे निष्ठा पैदा की है गण में __ उसका दर्शन और निदर्शन दीख रहा कण-कण में रे
तुम बनो पुजारी... 3. गोला एक मोम का देखो आंच नहीं सह पाता कठिनाई को सह न सके वह पिघल-पिघल बह जाता रे
तुम बनो पुजारी... 4. गोला एक सरस मिट्टी का अग्नि-ताप सह लेता स्थिरता आती रूप निखरता रक्तिम आभा देता रे
तुम बनो पुजारी... 5. कुंभकार की मर्यादा को जो घट है सह पाता उसी घड़े का आश्रय पाकर जल शीतल बन जाता रे
तुम बनो पुजारी... 6. हीरा बन जो आता अथवा आ हीरा बन जाता __ गण की शोभा बढ़ती उससे काच कहां टिक पाता रे
तुम बनो पुजारी... 7. अस्तिकाय की भांति अखंडित हो नेतृत्व हमारा घर-घर में आकाश विकेन्द्रित अनुशासन की धारा रे
तुम बनो पुजारी... 8. बने अहिंसक जीवन-शैली समतामय घट-घट हो करुणा के धागे-धागे से निर्मित जीवन पट हो रे
तुम बनो पुजारी... 9. मर्यादा का प्रवर महोत्सव पचपदरा ने पाया 'महाप्रज्ञ' मैत्री के स्वर को सबने शीश चढ़ाया रे
तुम बनो पुजारी...
लय : मत बनो मिजाजी... संदर्भ : मर्यादा महोत्सव पचपदरा, माघ शुक्ला 7, विक्रम संवत् 2058
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चैत्य पुरुष जग जाए
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